1919 के अधिनियम के तहत स्थापित द्वैध प्रशासन से आप क्या समझते हैं

  1. द्वैध प्रणाली क्या है? – ElegantAnswer.com
  2. Explainer: जानिए क्या था भारत सरकार अधिनियम, 1919
  3. द्वैध शासन प्रणाली क्या है ? 1919 के अधिनियम के तहत स्थापित द्वैध प्रशासन से आप क्या समझते हैं ? – 11th , 12th notes In hindi
  4. [Quiz] भारत सरकार अधिनियम, 1919 से सम्बंधित Questions
  5. भारत सरकार अधिनियम, १९१९
  6. स्थानीय प्रशासन से आप क्या समझते हैं ? स्थानीय स्वशासन की आवश्यकता तथा महत्त्व बताइए।
  7. भारत सरकार अधिनियम
  8. ब्रिटिश भारत में प्रशासनिक विकास
  9. स्थानीय प्रशासन से आप क्या समझते हैं ? स्थानीय स्वशासन की आवश्यकता तथा महत्त्व बताइए।
  10. भारत सरकार अधिनियम


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द्वैध प्रणाली क्या है? – ElegantAnswer.com

द्वैध प्रणाली क्या है? इसे सुनेंरोकेंजब दो शासक एक साथ सत्ता का संचालन करते है तो इसे द्वैध शासन (Diarchy) कहते है। प्रायः देखा गया है की शासक अपने पद को आजीवन ग्रहण किया रहता है तथा वो इसे अपने पुत्र या सगे-संबंधियो को सुपुर्द करता है। के ‘भारतीय शासन अधिनियम, 1919’ में लागू किया गया, जिसके अनुसार प्रांतों में द्वैध शासन स्थापित हुआ। … द्वैध शासन कब समाप्त किया गया? इसे सुनेंरोकें(iv) द्वैध शासन प्रणाली को 1935 ई० के एक्ट के द्वारा समाप्त कर दिया गया. 1919 के अधिनियम के तहत स्थापित दूध प्रशासन से आप क्या समझते हैं? इसे सुनेंरोकें1919 ई. के भारत सरकार अधिनियम द्वारा प्रांतीय सरकार को मजबूत बनाया गया और द्वैध शासन (diarchy) की स्थापना की गई. 1919 के पहले प्रांतीय सरकारों पर केंद्र सरकार का पूर्ण नियंत्रण रहता था. इस द्वैध शासन का एकमात्र उद्देश्य था – भारतीयों को पूर्ण उत्तरदायी शासन के लिए प्रशासनिक शिक्षा देना. भारत शासन अधिनियम 1935 में कितनी धाराएं थी? इसे सुनेंरोकेंभारत शासन अधिनियम 1935 (Government of India Act 1935) : भारत शासन अधिनियम 1935 भारत में पूर्ण उत्तरदायी सरकार के गठन एवं भारत के वर्तमान संविधान निर्माण के लिए एक मील का पत्थर साबित हुआ। भारत शासन अधिनियम एक लंबा और विस्तृत दस्तावेज़ था, जिसमें 321 धाराएं और 10 अनुसूचियाँ थी। भारत शासन अधिनियम 1919 की प्रमुख विशेषता क्या थी? इसे सुनेंरोकेंभारत सरकार अधिनियम 1919 की विशेषताएं इसके अनुसार, ब्रिटिश सरकार का उद्देश्य भारत में जिम्मेदार सरकार का क्रमिक परिचय था। केंद्रीय और प्रांतीय विषयों के वर्गीकरण के साथ-साथ प्रांतीय स्तर पर अराजकता का परिचय। अधिनियम के अनुसार, आयकर को केंद्र सरकार को राजस्व के स्रोत के रूप म...

Explainer: जानिए क्या था भारत सरकार अधिनियम, 1919

2014 - "मौन्तेग्यु-चेम्सफोर्डसुधारप्रस्तावोंने 'द्विशासन' प्रणालीलागूकी, किन्तुइसनेजिम्मेदारियोंकीरेखाओंकोधुंधलाकरदिया।" समालोचनात्मकपरीक्षणकीजिए। भारतसचिवएडविनमोंटेग्यूइसघोषणाकेबाद, भारतकेलिएजल्द-से-जल्दएकनएअधिनियमकेनिर्माणमेंलगगया।उससमयभारतकावायसरायलॉर्डचेम्सफोर्डथा।नवंबर 1917 मेंमोंटेग्यूभारतआया।मोंटेग्यू-चेम्सफोर्डनेभारतीयनेताओंसेविचार-विमर्शकरउत्तरदायीशासनकीस्थापनाकेसंबंधमेंउनकेविचारएकत्रकिए।अपनीयोजनातैयारकर 8 जुलाई, 1918 कोउन्होंनेइसेप्रकाशितकिया।यहीरिपोर्ट 1919 केभारतीयशासनअधिनियमकाआधारबनी।इसीकेआधारपरब्रिटिशसंसदने 1919 मेंभारतकेऔपनिवेशिकप्रशासनकेलिएएकनयाशासन-विधानबनाया। अधिनियमपारितहोनेकेकारण यहअधिनियमउसपरआधारितथाजिसेलोकप्रियरूपसेमोंटेग्यू-चेम्सफोर्डसुधारकेरूपमेंजानाजाताहै। 1909 केमॉर्ले-मिंटोसुधारोंसेभारतीयसंतुष्टनहींहोसके।इसनेहिन्दू-मुसलिमकेबीचकीखाईकोपटानेकेबजाएइसेचौड़ाकरनेकाहीकामकिया।इसनेनतोकांग्रेसकोसंतुष्टकियाऔरनहीमुसलिमलीगको।मुसलमानोंमेंराष्ट्रीयजागरणहुआऔरवेअँग्रेज़विरोधीहोगए।ब्रिटिशसरकारनेसुधारोंद्वाराउदारवादियोंकोखुशकरनेऔरक्रांतिकारियोंकोकुचलनेकीजोनीतिअपनाईउसकीप्रतिक्रियापूरेदेशमेंहुई। राष्ट्रवादियोंकीस्वशासनकीमांगजोरपकड़तीजारहीथी, जिससेसुधारोंकीआवश्यकतापड़ी।प्रथमविश्वयुद्धकेसमयअंग्रेजोंनेभारतीयसहयोगप्राप्तकरनेकेलिएअनेकघोषणाएँकीथी, लेकिनयुद्धकेबादभारतीयोंकीआशाएंपूरीहोतीनहींदिखी, जिससेउनमेंअसंतोषबढ़ा।एनीबेसेंटकेस्वशासनआन्दोलनकोकुचलनेकेलिएसरकारनेकडाकदमउठाया, जिससेराष्ट्रीयएकताबढ़ी। 1916 केकांग्रेस-लीगसमझौता (लखनऊपैक्ट) केबादकांग्रेसकीस्वराजकीमांगकोलीगनेसमर्थनदिया।उपर्युक्तकारणोंकेकारणदेशमेंसुधारअधिनियमबनानाज़रूरीहोगयाथा। सुधारयोजनापरप्रतिक्रिया तिलकनेरिपोर्टकोस्वीकार...

द्वैध शासन प्रणाली क्या है ? 1919 के अधिनियम के तहत स्थापित द्वैध प्रशासन से आप क्या समझते हैं ? – 11th , 12th notes In hindi

1919 के अधिनियम के तहत स्थापित द्वैध प्रशासन से आप क्या समझते हैं ? द्वैध शासन प्रणाली क्या है ? द्वैघशासन : 1919 के एक्ट द्वारा आठ प्रमुख प्रांतों में, जिन्हें “गवर्नर के प्रांत कहा जाता था, द्वैधशासन की एक नयी पद्धति शुरू की गई। प्रांतों में आंशिक रूप से जिम्मेदार सरकार की स्थापना से पहले प्रारंभिक व्यवस्था के रूप में प्रांतीय सरकारों के कार्य-क्षेत्र का सीमांकन करना जरूरी था। तदनुसार एक्ट में उपबंध किया गया था कि प्रशासनिक विषयों का केंद्रीय तथा प्रांतीय के रूप में वर्गीकरण करने, प्रांतीय विषयों के संबंध में प्राधिकार स्थानीय शासनों को सौंपने, और राजस्व तथा अन्य धनराशियां उन सरकारों को आवंटित करने के लिए नियम बनाए जाए। विषयों का ‘केंद्रीय तथा ‘प्रांतीय‘ के रूप में हस्तांतरण नियमों द्वारा विस्तृत वर्गीकरण किया गया। 1919 के एक्ट की खामियां : 1919 के एक्ट में अनेक खामियां थीं। इसने जिम्मेदार सरकार की मांग को पूरा नहीं किया। इसके अलावा, प्रांतीय विधानमंडल गवर्नर जनरल की स्वीकृति के बगैर अनेक विषय-क्षेत्रों में विधेयकों पर बहस नही कर सकते थे। सिद्धात के रूप में, केंद्रीय विधानमडल संपूर्ण क्षेत्र के लिए कानून बनाने के वास्ते सर्वोच्च तथा सक्षम बना रहा। केंद्र तथा प्रांतों के बीच शक्तियो के बटवारे के बावजूद “पहले के अत्यधिक केंद्रीयकृत शासन” को सघीय शासन मे बदलने का सरकार का कोई इरादा मालूम नहीं पड़ा। ब्रिटिश भारत का संविधान एकात्मक राज्य का संविधान ही बना रहा। प्रांतों में वैधशासन पूरी तरह से विफल रहा। गवर्नर का पूर्ण वर्चस्व कायम रहा। वित्तीय शक्ति के अभाव मे, मत्री अपनी नीति को प्रभावी रूप से कार्यान्वित नहीं कर सकते थे। इसके अलावा, मत्री विधानमडल के प्रति सामूहिक रूप से जिम...

[Quiz] भारत सरकार अधिनियम, 1919 से सम्बंधित Questions

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भारत सरकार अधिनियम, १९१९

अनुक्रम • 1 इतिहास • 2 कमियाँ • 3 इन्हेंभीदेखें • 4 बाहरीकड़ियाँ इतिहास [ ] भारतमंत्री लॉर्ड मांटेग ने 20 अगस्त, 1917 को मांटेग-चेम्सफ़ोर्ड रिपोर्ट के प्रवर्तनों को 'भारत के रंग बिरंगे इतिहास में सबसे महत्त्वपूर्ण घोषणा' की संज्ञा दी गयी और इसे एक युग का अन्त और एक नवीन युग का प्रारंभ माना गया। इस घोषणा ने कुछ समय के लिए भारत में तनावपूर्ण वातावरण को समाप्त कर दिया। पहली बार 'उत्तरदायी शासन' शब्दों का प्रयोग इसी घोषणा में किया गया। ==विशेषताएँ==1919 इस अधिनियम के मुख्य बिंदु निम्न थे: • केंद्र में • केंद्र में प्रत्यक्ष • प्रांतों में द्वैध शासन प्रणाली की शुरुआत • लोक सेवा आयोग का गठन किया गया • पहली बार महिलाओं को (सीमित मात्रा में) मत देने का अधिकार • केन्द्रीय • हिंदू मुस्लिम सिख क्रिचियन के लिए अलग निर्वाचन व्यवस्था (जो 1909 में केवल मुस्लिम को दिया था।) • कमियाँ [ ] परंतु, इस अधिनियम में अनेक कमियाँ थी और यह भारतीयों की आकांक्षाओं को एक सिरे से नकार रहा था। उदाहरण के लिए इसमें भारतीयों के लिये मताधिकार बहुत सीमित था। केंद्र में कार्यकारी परिषद के सदस्यों का गवर्नर-जनरल के निर्णयों पर कोई नियंत्रण नहीं था और न ही केंद्र में विषयों का विभाजन संतोषजनक था। प्रांतीय स्तर पर प्रशासन का दो स्वतंत्र भागों में बँटवारा भी राजनीति के सिद्धान्त व व्यवहार के विरूद्ध था। अधिनियम में विषयों का जो 'आरक्षित' व 'हस्तांतरित' बँटवारा था, वह भी अव्यवहारिक था। उस समय मद्रास के मंत्री रहे के.वी. रेड्डी ने व्यंग्य भी किया था- 'मैं विकास मंत्री था किंतु मेरे अधीन वन विभाग नहीं था। मैं सिंचाई मंत्री था किंतु मेरे अधीन सिंचाई विभाग नहीं था।' इस अधिनियम का एक महत्त्वपूर्ण दोष यह भी था कि इसमें ...

स्थानीय प्रशासन से आप क्या समझते हैं ? स्थानीय स्वशासन की आवश्यकता तथा महत्त्व बताइए।

भारत में केन्द्र व राज्य सरकारों के अतिरिक्त, तीसरे स्तर पर एक ऐसी सरकार है। जिसके सम्पर्क में नगरों और ग्रामों के निवासी आते हैं। इस स्तर की सरकार को स्थानीय स्वशासन कहा जाता है, क्योंकि यह व्यवस्था स्थानीय निवासियों को अपना शासन-प्रबन्ध करने का अवसर प्रदान करती है। इसके अन्तर्गत मुख्यतया ग्रामवासियों के लिए पंचायत और नगरवासियों के लिए नगरपालिका उल्लेखनीय हैं। इन संस्थाओं द्वारा स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति तथा स्थानीय समस्याओं के समाधान के प्रयास किये जाते हैं। व्यावहारिक रूप में वे सभी कार्य जिनका सम्पादन वर्तमान समय में ग्राम पंचायतों, जिला पंचायतों, नगर पालिकाओं, नगर निगम आदि के द्वारा किया जाता है, वे स्थानीय स्वशासन के अन्तर्गत आते हैं। स्थानीय स्वशासन की आवश्यकता एवं महत्त्व स्थानीय स्वशासन की आवश्यकता एवं महत्त्व को निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर स्पष्ट किया जा सकता है – 1, लोकतान्त्रिक परम्पराओं को स्थापित करने में सहायक –भारत में स्वस्थ लोकतान्त्रिक परम्पराओं को स्थापित करने के लिए स्थानीय स्वशासन व्यवस्था ठोस आधार प्रदान करती है। उसके माध्यम से शासन-सत्ता वास्तविक रूप से जनता के हाथ में चली जाती है। इसके अतिरिक्त स्थानीय स्वशासन-व्यवस्था, स्थानीय निवासियों में लोकतान्त्रिक संगठनों के प्रति रुचि उत्पन्न करती है। 2. भावी नेतृत्व का निर्माण –स्थानीय स्वशासन की संस्थाएँ भारत के भावी नेतृत्व को तैयार करती हैं। ये विधायकों और मन्त्रियों को प्राथमिक अनुभव एवं प्रशिक्षण प्रदान करती हैं, जिससे वे भारत की ग्रामीण समस्याओं से अवगत होते हैं। इस प्रकार ग्रामों में उचित नेतृत्व का निर्माण करने एवं विकास कार्यों में जनता की रुचि बढ़ाने में स्थानीय स्वशासन का महत्त्वपूर्ण योगद...

भारत सरकार अधिनियम

भारत सरकार अधिनियम- 1919 को 'मांटेग्यू-चेम्सफ़ोर्ड सुधार' के नाम से भी जाना जाता है। भारतमंत्री लॉर्ड मांटेग्यू ने विशेषताएँ 1919 के इस अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित थी- • प्रान्तों के हस्तान्तरित विषयों पर भारत सचिव का नियंत्रण कम हो गया, जबकि केन्द्रीय नियंत्रण बना रहा। • भारतीय कार्य की देखभाल के लिए एक नया अधिकारी 'भारतीय उच्चायुक्त' नियुक्त किया गया। इसे भारतीय राजकोष से वेतन देने की व्यवस्था की गयी। • • विषयों को पहली बार केन्द्रीय व प्रान्तीय भागों में बांटा गया। राष्ट्रीय महत्व के विषयों को केन्द्रीय सूची में शामिल किया गया था, जिस पर गवर्नर-जनरल सपरिषद क़ानून बना सकता था। विदेशी मामले रक्षा, राजनीतिक संबंध, डाक और तार, सार्वजनिक ऋण, संचार व्यवस्था, दीवानी तथा फ़ौजदारी क़ानून तथा कार्य प्रणाली इत्यादि सभी मामले केन्द्रीय सूची मे थे। प्रान्तीय महत्व के विषयों पर गवर्नर कार्यकारिणी तथा विधानमण्डल की सहमति से क़ानून बनाता था। प्रान्तीय महत्व के विषय थे- स्वास्थ्य, स्थानीय स्वशासन, भूमिकर प्रशासन, शिक्षा, चिकत्सा, जलसंभरण, अकाल सहायता, शान्ति व्यवस्था, कृषि इत्यादि। जो विषय स्पष्टतया हस्तान्तरित नहीं किये गये थे, वे सभी केन्द्रीय माने गये। • केन्द्र में द्विसदनी विधान सभा राज्य परिषद में स्त्रियाँ सदस्यता के लिए उपयुक्त नहीं समझी गयी थी, केन्द्रीय विधानसभा का कार्यकाल 3 वर्षों का था, जिसे गवर्नर-जनरल बढ़ा सकता था। साम्प्रदायिक निर्वाचन का दायरा बढ़ाकर • केन्द्रीय विधान मण्डल सम्पूर्ण भारत के लिए क़ानून बना सकता था। गवर्नर-जनरल अध्यादेश जारी कर सकता था तथा उसकी प्रभाविता 6 महीने तक रहती थी। • बजट पर बहस हो तो सकती थी, पर मतदान का अधिकार नहीं दिया गया था। • प्रान...

ब्रिटिश भारत में प्रशासनिक विकास

ब्रिटिश प्रशासन में संवैधानिक एवं प्रशासनिक विकास (Constitutional And Administrative Development In British Rule) • भारतीय प्रशासनिक ढांचा प्रधानतया ब्रिटिश शासन की विरासत है। भारतीय प्रशासन के विभिन्न ढांचागत और कार्यप्रणालीगत पक्षों, जैसे- सचिवालय प्रणाली, अखिल भारतीय सेवाएँ, भर्ती, प्रशिक्षण, कार्यालय पद्धति, स्थानीय प्रशासन, जिला प्रशासन, बजट प्रणाली, लेखापरीक्षा, केंद्रीय करोँ की प्रवृत्ति, पुलिस प्रशासन, राजस्व प्रशासन आदि की जगह ब्रिटिश शासन मेँ निहित हैं। • भारत मेँ ब्रिटिश शासन काल को दो चरणों मेँ विभक्त कर सकते हैंँ – वर्ष 1858 तक कंपनी का शासन और वर्ष 1947 तक ब्रिटिश ताज का शासन भारत। सामग्री • १ प्रशानिक विकास • १.१ पिट्स इंडिया एक्ट 1784 • १.२ चार्टर एक्ट 1833 • १.३ चार्टर एक्ट 1853 • १.४ भारत शासन अधिनियम 1858 • १.५ भारतीय परिषद अधिनियम 1861 • १.६ भारतीय परिषद अधिनियम 1892 • १.७ भारतीय परिषद अधिनियम 1909 • १.८ भारतीय शासन अधिनियम 1919 • १.९ भारत शासन अधिनियम 1935 • १.१० भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम - 1947 • २ लोक सेवा का विकासक्रम (Evolution of Civil Services) • २.१ एचीशन आयोग • २.२ इसलिंग्टन आयोग • २.३ मोंट-फोर्ड रिपोर्ट • २.४ ली आयोग • ३ अन्य संस्थाओं का विकास • ३.१ केन्द्रीय सचिवालय • ३.२ स्थानीय प्रशासन • ३.३ वित्तीय प्रशासन • ४ स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद परिवर्तन प्रशानिक विकास [ ] 31दिसम्बर 1600 में एलिजाबेथ प्रथम की सहमति से दिया गवर्नर एण्ड कम्पनी आफ मर्चेंटस ट्रेडिंग इन टू दि ईस्ट इंडीज नामक व्यापारिक कम्पनी की स्थापना की गई,जिसे "केप ऑफ गुड होप" से लेकर पूर्व की तरफ मैगलन की खाड़ी,भारत, एशिया, अफ्रीका, अमेरिका आदि तक व्यापार करने का एकाधिकार प्रदान किय...

स्थानीय प्रशासन से आप क्या समझते हैं ? स्थानीय स्वशासन की आवश्यकता तथा महत्त्व बताइए।

भारत में केन्द्र व राज्य सरकारों के अतिरिक्त, तीसरे स्तर पर एक ऐसी सरकार है। जिसके सम्पर्क में नगरों और ग्रामों के निवासी आते हैं। इस स्तर की सरकार को स्थानीय स्वशासन कहा जाता है, क्योंकि यह व्यवस्था स्थानीय निवासियों को अपना शासन-प्रबन्ध करने का अवसर प्रदान करती है। इसके अन्तर्गत मुख्यतया ग्रामवासियों के लिए पंचायत और नगरवासियों के लिए नगरपालिका उल्लेखनीय हैं। इन संस्थाओं द्वारा स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति तथा स्थानीय समस्याओं के समाधान के प्रयास किये जाते हैं। व्यावहारिक रूप में वे सभी कार्य जिनका सम्पादन वर्तमान समय में ग्राम पंचायतों, जिला पंचायतों, नगर पालिकाओं, नगर निगम आदि के द्वारा किया जाता है, वे स्थानीय स्वशासन के अन्तर्गत आते हैं। स्थानीय स्वशासन की आवश्यकता एवं महत्त्व स्थानीय स्वशासन की आवश्यकता एवं महत्त्व को निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर स्पष्ट किया जा सकता है – 1, लोकतान्त्रिक परम्पराओं को स्थापित करने में सहायक –भारत में स्वस्थ लोकतान्त्रिक परम्पराओं को स्थापित करने के लिए स्थानीय स्वशासन व्यवस्था ठोस आधार प्रदान करती है। उसके माध्यम से शासन-सत्ता वास्तविक रूप से जनता के हाथ में चली जाती है। इसके अतिरिक्त स्थानीय स्वशासन-व्यवस्था, स्थानीय निवासियों में लोकतान्त्रिक संगठनों के प्रति रुचि उत्पन्न करती है। 2. भावी नेतृत्व का निर्माण –स्थानीय स्वशासन की संस्थाएँ भारत के भावी नेतृत्व को तैयार करती हैं। ये विधायकों और मन्त्रियों को प्राथमिक अनुभव एवं प्रशिक्षण प्रदान करती हैं, जिससे वे भारत की ग्रामीण समस्याओं से अवगत होते हैं। इस प्रकार ग्रामों में उचित नेतृत्व का निर्माण करने एवं विकास कार्यों में जनता की रुचि बढ़ाने में स्थानीय स्वशासन का महत्त्वपूर्ण योगद...

भारत सरकार अधिनियम

भारत सरकार अधिनियम- 1919 को 'मांटेग्यू-चेम्सफ़ोर्ड सुधार' के नाम से भी जाना जाता है। भारतमंत्री लॉर्ड मांटेग्यू ने विशेषताएँ 1919 के इस अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित थी- • प्रान्तों के हस्तान्तरित विषयों पर भारत सचिव का नियंत्रण कम हो गया, जबकि केन्द्रीय नियंत्रण बना रहा। • भारतीय कार्य की देखभाल के लिए एक नया अधिकारी 'भारतीय उच्चायुक्त' नियुक्त किया गया। इसे भारतीय राजकोष से वेतन देने की व्यवस्था की गयी। • • विषयों को पहली बार केन्द्रीय व प्रान्तीय भागों में बांटा गया। राष्ट्रीय महत्व के विषयों को केन्द्रीय सूची में शामिल किया गया था, जिस पर गवर्नर-जनरल सपरिषद क़ानून बना सकता था। विदेशी मामले रक्षा, राजनीतिक संबंध, डाक और तार, सार्वजनिक ऋण, संचार व्यवस्था, दीवानी तथा फ़ौजदारी क़ानून तथा कार्य प्रणाली इत्यादि सभी मामले केन्द्रीय सूची मे थे। प्रान्तीय महत्व के विषयों पर गवर्नर कार्यकारिणी तथा विधानमण्डल की सहमति से क़ानून बनाता था। प्रान्तीय महत्व के विषय थे- स्वास्थ्य, स्थानीय स्वशासन, भूमिकर प्रशासन, शिक्षा, चिकत्सा, जलसंभरण, अकाल सहायता, शान्ति व्यवस्था, कृषि इत्यादि। जो विषय स्पष्टतया हस्तान्तरित नहीं किये गये थे, वे सभी केन्द्रीय माने गये। • केन्द्र में द्विसदनी विधान सभा राज्य परिषद में स्त्रियाँ सदस्यता के लिए उपयुक्त नहीं समझी गयी थी, केन्द्रीय विधानसभा का कार्यकाल 3 वर्षों का था, जिसे गवर्नर-जनरल बढ़ा सकता था। साम्प्रदायिक निर्वाचन का दायरा बढ़ाकर • केन्द्रीय विधान मण्डल सम्पूर्ण भारत के लिए क़ानून बना सकता था। गवर्नर-जनरल अध्यादेश जारी कर सकता था तथा उसकी प्रभाविता 6 महीने तक रहती थी। • बजट पर बहस हो तो सकती थी, पर मतदान का अधिकार नहीं दिया गया था। • प्रान...