1971 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी की कांग्रेस को कितनी सीटें मिली

  1. पांचवा आम चुनाव 1971
  2. 1971 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को सीटें मिली थी? » 1971 Ke Lok Sabha Chunav Me Congress Party Ko Seaten Mili Thi
  3. राजनीति विज्ञान MCQ for Class 12 Chapter 5 Political Science Hindi Medium
  4. लोकसभा चुनाव 1971:जब 'इंदिरा हटाओ' पर भारी पड़ा 'गरीबी हटाओ' और रच गया इतिहास
  5. 5वीं लोकसभा 1971 : गरीबी हटाओ के नारे के साथ इंदिरा गांधी सत्ता में वापसी
  6. 1971: आम चुनाव से पहले ही हो गए कांग्रेस में दो फाड़, ये थी मुसीबत की वजह
  7. Chunavnama 1971: When Indira had appealed to vote against Congress candidate


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पांचवा आम चुनाव 1971

पांचवा आम चुनाव 1971: दो हिस्सों में बंटी कांग्रेस, इंदिरा गांधी पर जनता ने जताया भरोसा 1967 के बाद साल 1971 में लोकसभा चुनाव हुए । आजाद भारत का यह पांचवा आम चुनाव होने के साथ-साथ देश का पहला मध्यावधि चुनाव भी था। कांग्रेस के अंदर मची उथल-पुथल इसी लोकसभा चुनाव से पहले खुलकर सामने आई । वहीं पाकिस्तान का बंटवारा भी इसी साल में देखने को मिला। इसी लोकसभा के वक्त में देश ने पहली बार आपातकाल लगते भी देखा, जिसके बाद कांग्रेस की स्थिति बिगड़ गई और जनता पार्टी सामने आई । 1971 में कुल 520 लोकसभा सीटों पर चुनाव हुए, जिसमें से 352 पर कांग्रेस को जीत मिली थी। इसके बाद कांग्रेस ने लगातार पांचवी बार सरकार बनाई थी। इस चुनाव में कुल 15.15 करोड़ वोट डाले गए थे। कुल वोटरों में से 55.3 प्रतिशत ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया था। इस जीत में कांग्रेस का वोट प्रतिशत 43.68 % था। पहले मध्यावधि चुनाव कांग्रेस पार्टी के अंदर चले आ रहे मतभेद धीरे-धीरे बढ़ने लगे। फिर 1969 में मोरारजी देसाई को 'अनुशासनहीनता' के लिए निष्कासित कर दिया गया। इस घटना के बाद कांग्रेस दो भागों में विभाजित हो गई जिन्हें कांग्रेस (ओ) और कांग्रेस (आर) कहा गया। इंदिरा ने दिसंबर 1970 तक सी.पी.आई. (एम) के समर्थन से एक अल्पमत वाली सरकार को चलाया। वह आगे अल्पमत की सरकार नहीं चलाना चाहती थीं, इसलिए उन्होंने चुनावों की अवधि से एक वर्ष पहले मध्यावधि लोकसभा चुनावों की घोषणा कर दी। 1971 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा ने गरीबी हटाओ का नारा दिया था, जिसकी वजह से उन्हें भारी जीत मिली। इस चुनाव में कांग्रेस ने पिछले लोकसभा चुनाव के मुकाबले ज्यादा सीटें भी हासिल की थीं। 1967 में कांग्रेस को 283 सीटों पर जीत मिली थी और इस लोकसभा चुनाव के बाद यह आ...

1971 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को सीटें मिली थी? » 1971 Ke Lok Sabha Chunav Me Congress Party Ko Seaten Mili Thi

चेतावनी: इस टेक्स्ट में गलतियाँ हो सकती हैं। सॉफ्टवेर के द्वारा ऑडियो को टेक्स्ट में बदला गया है। ऑडियो सुन्ना चाहिये। 1967 के चुनाव में जो कांग्रेसी एकजुट तक कांग्रेस को 283 सीटें मिली थी 1969 में कांग्रेस का विभाजन हो गया इसके बावजूद 1971 के चुनाव में इंदिरा गांधी की कांग्रेस को 352 सीटें मिली टोटल 518 सीटों में 518 सीटों में चुनाव हुए थे उसमें से कांग्रेस ने 352 सीटें जीती सीपीएम को 25 मिली सीपीआई को 23:00 जंक्शन को 22:00 मिली और कांग्रेसियों की मोरारजी देसाई और कामराज की कांग्रेसी उनको 16 सीटें मिली इस प्रबल जीत से इंदिरा गांधी का विश्वास बहुत बढ़ गया था और जो 1971 का युद्ध हुआ जिसमें बांग्लादेश बना उसमें इंदिरा गांधी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई वह भूमिका इसमें भी निभा पाई कि उनके पास प्रबल बहुमत था ना कि उसके बाद महंगाई बढ़ने लगी और चीजें आउट ऑफ कंट्रोल हो गई और जून 1975 में हाई कोर्ट से केस हारने के बाद इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगा दी थी जो उनके नाम पर सबसे बड़ा धब्बा था और अगला चुनाव हार गई थी धन्यवाद 1967 ke chunav me jo congressi ekjut tak congress ko 283 seaten mili thi 1969 me congress ka vibhajan ho gaya iske bawajud 1971 ke chunav me indira gandhi ki congress ko 352 seaten mili total 518 seaton me 518 seaton me chunav hue the usme se congress ne 352 seaten jeeti CPM ko 25 mili cpi ko 23 00 junction ko 22 00 mili aur congressiyo ki morarji desai aur kamraj ki congressi unko 16 seaten mili is prabal jeet se indira gandhi ka vishwas bahut badh gaya tha aur jo 1971 ka yudh hua jisme bangladesh bana usme indira gandhi ne mahatvapurna bhumika nibhaai vaah bhumika ism...

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भारत में लोकसभा के सबसे पहले आम चुनाव 1951 में हुए थे. इस चुनाव में 489 लोक सभा सीटों के लिए चुनाव हुए थे. इस चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने 364 सीटें जीती थीं जबकि जनसंघ को केवल 3 सीटों पर जीत मिली थी. वर्ष 1952 में हुए लोक सभा आम चुनावों के बाद अब तक कुल 16 लोकसभा चुनाव भारत में कराये जा चुके हैं. इस लेख में हम भारत के पहले लोक सभा चुनाव से लेकर अभी तक के चुनावों में विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा जीती गयी सीटों के बारे में बताया गया है. भारत में 17वीं लोकसभा के गठन के लिए अभी अप्रैल 2019 में चुनाव चल रहे हैं. देश में लोकसभा के लिए कुल 552 सीटें हो सकतीं हैं लेकिन चुनावों में सिर्फ 543 सीटों के लिए मतदान कराया जा रहा है जिनमें से 523 सीटें राज्यों से जबकि 20 सीटें केंद्र शासित प्रदेशों से भरी जाती हैं. यदि कुल 543 सीटों में एंग्लो इंडियन समुदाय का कोई भी सदस्य चुनकर नहीं आता है तो राष्ट्रपति इस समुदाय के दो लोगों को चुनकर लोकसभा में भेज सकता है. राष्ट्रपति द्वारा 2 लोगों के चुने जाने के स्थिति में लोकसभा में 545 सीटें हो जाती हैं. इस लेख में हम भारत के पहले लोकसभा चुनाव से लेकर अभी तक के चुनावों में विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा जीती गयी सीटों के बारे में बता रहे हैं. पहले चुनाव से लेकर अब तक महत्वपूर्ण राजनीतिक दलों द्वारा जीती गयी सीटों की स्थिति इस प्रकार है; चुनाव वर्ष कुल निर्वाचित स्थान दलों को मिली सीटें पहला (1952) 489 कांग्रेस-364,वामपंथी-27, समाजवादी-12, जन संघ- 3 दूसरा (1957) 494 कांग्रेस-371,वामपंथी-27, प्रजा समाजवादी-19, जन संघ- 4 तीसरा (1962) 494 कांग्रेस-361,वामपंथी-29, प्रजा समाजवादी-12, जन संघ- 14 चौथा (1967) 520 कांग्रेस-283, जनसंघ- 35, सीपीआई-23, सीपीएम-19,...

राजनीति विज्ञान MCQ for Class 12 Chapter 5 Political Science Hindi Medium

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लोकसभा चुनाव 1971:जब 'इंदिरा हटाओ' पर भारी पड़ा 'गरीबी हटाओ' और रच गया इतिहास

लोकसभा चुनाव 1971: जब 'इंदिरा हटाओ' पर भारी पड़ा 'गरीबी हटाओ' और रच गया इतिहास 1971 सिर्फ पांचवें लोकसभा चुनाव के लिए ही नहीं बल्कि भारत-पाकिस्तान युद्ध के लिए भी जाना जाता है। यह साल इंदिरा गांधी के लिए बेहद अहम था। इस वक्त तक कांग्रेस के दो फाड़ हो चुके थे। पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के सारे पुराने दोस्त उनकी बेटी इंदिरा के खिलाफ थे। इंदिरा को कांग्रेस के भीतर से ही चुनौती मिल रही थी। मोरारजी देसाई और कामराज फिर से मैदान में थे। 1967 के आम चुनाव में इंदिरा जहां सिंडिकेट का सूपड़ा साफ करके सत्ता पर काबिज हुई थी वहीं, फिर से कांग्रेस (ओ) के तौर पर उनके सामने पुराने दुश्मन खड़े थे। चुनावी मैदान में एक तरफ इंदिरा की नई कांग्रेस और दूसरी तरफ पुराने बुजुर्ग कांग्रेसी नेताओं की कांग्रेस (ओ) थी। दरअसल, 12 नवंबर 1969 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को कांग्रेस से बाहर का रास्ता दिखा गया गया था। उनपर पार्टी ने अनुशासन के उल्लंघन का आरोप लगाया गया था। इस कदम से बौखलाईं इंदिरा गांधी ने नई पार्टी कांग्रेस (आर) बनाई। सिंडिकेट ने कांग्रेस (ओ) का नेतृत्व किया। फिर से सत्ता पर काबिज होने में सफल हुई इंदिरा इंदिरा गांधी अपने एक नारे 'गरीबी हटाओ' की बदौलत फिर से सत्ता में आ गईं। उनके नेतृत्व वाली कांग्रेस नेे लोकसभा की 545 सीटों में से 352 सीटें जीतीं। जबकि कांग्रेस (ओ) के खाते में सिर्फ 16 सीटें ही आई। भारतीय जनसंघ ने चुनाव में 22 सीटें जीतीं। सीपीआई ने चुनाव में 23 सीटें जीतीं। जबकि सीपीआईएम के खाते में 25 सीटें आईं। प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ने 2 सीटें जीतीं जबकि संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के खाते में 3 सीटें आईं। स्वतंत्र पार्टी के खाते में सिर्फ 8 सीटें आई। यह चुनाव 27 राज्यों एवं केंद...

5वीं लोकसभा 1971 : गरीबी हटाओ के नारे के साथ इंदिरा गांधी सत्ता में वापसी

निजलिंगप्पा, एसके पाटिल, कामराज और मोरारजी देसाई जैसे दिग्गज कांग्रेस नेताओं की पहल पर नीलम संजीव रेड्डी राष्ट्रपति पद के लिए कांग्रेस के आधिकारिक उम्मीदवार बना दिए गए। यह एक तरह से इंदिरा गांधी की हार थी। संसदीय बोर्ड के फैसले के बाद इंदिरा गांधी भी नीलम संजीव रेड्‌डी की उम्मीदवारी की एक प्रस्तावक थीं लेकिन उन्हें रेड्डी का राष्ट्रपति बनना गंवारा नहीं था। इसी बीच तत्कालीन उपराष्ट्रपति वराहगिरी व्यंकट गिरि (वीवी गिरि) ने अपने पद से इस्तीफा देकर खुद को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया। स्वतंत्र पार्टी, समाजवादियों, कम्युनिस्टों, जनसंघ आदि सभी विपक्षी दलों ने वीवी गिरि को समर्थन देने का एलान कर दिया। चुनाव के ऐन पहले इंदिरा गांधी भी पलट गई और उन्होंने कांग्रेस में अपने समर्थक सांसदों-विधायकों को रेड्डी के बजाय गिरि के पक्ष में मतदान करने का फरमान जारी कर दिया। इंदिरा गांधी के इस पैंतरे से कांग्रेस में हड़कंप मच गया। वीवी गिरि जीत गए और कांग्रेस के अधिकृत उम्मीदवार संजीव रेड्डी को दिग्गज कांग्रेसी नेताओं का समर्थन हासिल होने के बावजूद पराजय का मुंह देखना पड़ा। वीवी गिरि की जीत को इंदिरा गांधी की जीत माना गया। निर्धारित समय से एक साल पहले हुए चुनाव : इस घटना के बाद औपचारिक तौर पर कांग्रेस दोफाड़ हो गई। बुजर्ग कांग्रेसी दिग्गजों ने कांग्रेस (संगठन) नाम से अलग पार्टी बना ली। इंदिरा गांधी के लिए यह बेहद मुश्किलों भरा दौर था। उनकी सरकार अल्पमत में आ गई थी। अपने समक्ष मौजूदा राजनीतिक चुनौतियां का सामना करने के लिए इंदिरा गांधी ने बैंकों का राष्ट्रीयकरण करने और पूर्व राजा-महाराजाओं के प्रिवीपर्स के खात्मे जैसे कदम उठाकर अपनी साहसिक और प्रगतिशील नेता की छवि बनाने की कोशिश की। अप...

1971: आम चुनाव से पहले ही हो गए कांग्रेस में दो फाड़, ये थी मुसीबत की वजह

राष्ट्रपति चुनाव इंदिरा और सिंडिकेट की लड़ाई में लाया निर्णायक मोड़ कामराज और सिंडिकेट के दूसरे नेताओं ने इस पद के लिए नीलम संजीव रेड्डी को उम्मीदवार बनाने का फ़ैसला किया. रेड्डी उस वक्त लोकसभाध्यक्ष थे. वे 1960 और 1962 के बीच कांग्रेस अध्यक्ष भी रह चुके थे. वे इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल के सदस्य भी थे, लेकिन उन्होंने 1967 के चुनाव के बाद उन्हें अपने कैबिनेट में नहीं लिया था. रेड्डी के नाम का ऐलान इंदिरा गांधी को बिल्कुल भी हज़म नहीं हुआ. वो इससे परेशान हो गईं कि उन्होंने उप राष्ट्रपति वी वी गिरि के पास जाकर उन्हें इस पद के लिए लड़ने के लिए तैयार कर लिया. 75 वर्षीय गिरि ने तब सार्वजनिक रूप से ऐलान कर दिया कि अगर कांग्रेस उन्हें अपना उम्मीदवार नहीं भी बनाती तब भी वो निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में राष्ट्रपति का चुनाव लड़ेंगे. इसके बाद इंदिरा ने रेड्डी का सीधा विरोध तो नहीं किया लेकिन ऐलान कर दिया कि उनके दल के लोग इस चुनाव में अपनी 'अंतरात्मा की आवाज़' पर वोट करें. चुनावी लड़ाई उस समय दिलचस्प हो गई जब सिंडिकेट के नेताओं ने रेड्डी को जितवाने के लिए दक्षिणपंथी जनसंघ और स्वतंत्र पार्टी से संपर्क किया. इंदिरा गांधी ने भी सभी मुख्यमंत्रियों से संपर्क कर गिरि को जिताने की अपील की. इनमें उन राज्यों के मुख्यमंत्री भी शामिल थे, जहां उनकी पार्टी सत्ता में नहीं थी. वीवी गिरि की जीत ने तय किया इंदिरा का प्रभुत्व 16 अगस्त को चुनाव होने के बाद 20 अगस्त, 1969 को वोटों की गिनती शुरू हुई. जब मतों की गिनती शुरू हुई तो कभी गिरी आगे होते तो कभी रेड्डी. पहले राउंड की समाप्ति पर किसी को बहुमत नहीं मिला, फिर दूसरी पसंद के वोटों की गिनती की गई. अंत में इंदिरा के उम्मीदवार वी वी गिरि ने कांग्रेस के आ...

Chunavnama 1971: When Indira had appealed to vote against Congress candidate

काशकंद में तत्‍कालीन यह भी पढ़ें: चुनावनामा: जम्‍मू और कश्‍मीर में लोकसभा के लिए 1967 में पहली बार हुआ मतदान यह भी पढ़ें: चुनावनामा: केरल की पहली निर्वाचित सरकार की बर्खास्‍तगी के बाद सुर्खियों में आईं इंदिरा गांधी राष्‍ट्रपति पद को लेकर कांग्रेस के दिग्‍गज नेताओं से इंदिरा का सीधा टकराव प्रधानमंत्री बनने के बाद इंदिरा गांधी जिस तेजी से बड़े फैसले ले रही थीं, यह बात कांग्रेस के कुछ दिग्‍गज को पसंद नहीं आ रही थी. कांग्रेस के दिग्‍गज नेताओं और इंदिरा के बीच का मनमुटाव 1969 के राष्‍ट्रपति चुनाव के समय खुलकर सामने आ गया. दरसअल, इंदिरा गांधी बाबू जगजीवन राम को राष्‍ट्रपति पद के लिए कांग्रेस का उम्‍मीदवार बनाना चाह रहे थे. लेकिन कांग्रेस के कई दिग्‍गज नेताओं ने इंदिरा की बात को नजरअंदाज कर नीलम संजीव रेड्डी को पार्टी का उम्‍मीदवार घोषित कर दिया. यह बात इंदिरा गांधी को बिल्‍कुल रास नहीं आई थी. यह भी पढ़ें: चुनावनामा: जब 5 साल में देश ने देखे 4 प्रधानमंत्री इंदिरा की चाल के सामने ध्‍वस्‍त हुए कांग्रेस और‍ विपक्षी दलों के मंसूबे कांग्रेस पार्टी द्वारा नीलम संजीव रेड्डी को राष्‍ट्रपति पद का उम्‍मीदवार बनाया जाना इंदिरा गांधी को बिल्‍कुल पसंद नहीं आया था. इसी बीच, देश के उपराष्‍ट्रपति वीवी गिरि ने अपने पद से इस्‍तीफा देकर राष्‍ट्रपति पद के लिए दावेदारी पेश कर दी. दावेदारी पेश होते ही तमाम विपक्षी दल वीवी गिरि के पक्ष में आकर खड़े हो गए. इंदिरा गांधी इसी मौके का इंतजार कर रही थी. मतदान से ठीक पहले इंदिरा गांधी ने अपने समर्थक सांसदों और विधायकों से वीवी गिरि के पक्ष में मतदान करने को बोल दिया. इंदिरा के इस फैसले से पूरी कांग्रेस में हड़कंप की स्थिति हो गई. यह भी पढ़ें: चुनावनामा: अगले ...