1991 के आर्थिक सुधार drishti ias

  1. 1991 Reforms & 2021 Crisis
  2. मनमोहन सिंह ने मुझे बताया था कि 1991 में 'सत्ता से अलगाव' और 'सुधार के प्रति लगाव' उनका प्रमुख हथियार था
  3. Impact of 1991 Economic Reforms
  4. Hindi
  5. Indian Economy (भारतीय अर्थव्यवस्था) Notes in Hindi PDF
  6. भारत में आर्थिक सुधार
  7. New Economic Policy of 1991


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1991 Reforms & 2021 Crisis

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मनमोहन सिंह ने मुझे बताया था कि 1991 में 'सत्ता से अलगाव' और 'सुधार के प्रति लगाव' उनका प्रमुख हथियार था

1991 में तत्कालीन कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा लागू किये गए भारत के ऐतिहासिक आर्थिक उदारीकरण कार्यक्रम के बारे में बहुत कुछ कहा और लिखा गया है तथा इस पर काफी चर्चा और बहस भी की गई है. भारत की अर्थव्यवस्था पर 1991 के उदारीकरण कार्यक्रम का गहरा प्रभाव काफी अच्छी तरह से परिमाणित और डॉक्युमेंटेड है- सकल घरेलू उत्पाद के हिस्से के रूप में भारत का विदेशी व्यापार तकरीबन तीन गुना बढ़ा है, विदेशी मुद्रा भंडार भी 100 गुना बढ़ा है, प्रति व्यक्ति आय वास्तविक रूप में छह गुना बढ़ी है, गरीबी की दर आधी रह गई है, जीवन प्रत्याशा (लाइफ एक्सपेक्टेंसी) में 11 साल की बढ़ोतरी हुई है, शहरीकरण 10 प्रतिशत से भी जयादा दर से बढ़ा है, और भी काफी कुछ. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि आर्थिक सुधारों के लंबे हाथों ने लगभग हर एक भारतीय को छुआ और उनमे से अधिकांश के जीवन स्तर में नाटकीय रूप से सुधार आया. बेशक, आलोचक यह तर्क दे सकते है कि अन्य एशियाई देश जैसे चीन, इंडोनेशिया, वियतनाम या यहां तक ​​कि श्रीलंका भी इसी अवधि में ‘बिग बैंग’ आर्थिक सुधारों के बिना भी काफी तेजी से आगे बढ़े हैं. क्या आर्थिक उदारीकरण के उपायों के बिना भारत के आर्थिक प्रदर्शन में उतनी तेजी से सुधार नहीं हुआ होता? यह सैद्धांतिक रूप से विरोधाभासी तथ्यों पर आधारित है जिस पर बहस करना व्यर्थ होगा. हालांकि कोई भी किये गये प्रयासों और संख्याओं के बारे में संदेह प्रकट कर सकता है, मगर यह तथ्य संशय के परे है कि 1991 के आर्थिक सुधारों ने भारत की आर्थिक नीति की दिशा को अमूल-चूल रूप से बदल दिया और एक नया रास्ता तैयार किया जिसपर यह पिछले तीन दशकों से निर्बाध चल रहा है. अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक दिप्रिंट आ...

Impact of 1991 Economic Reforms

(प्रारंभिक परीक्षा: आर्थिक और सामाजिक विकास) (मुख्य परीक्षा, प्रश्नपत्र 3: उदारीकरण का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, औद्योगिक नीति में परिवर्तन तथा औद्योगिक विकास पर इनका प्रभाव।) संदर्भ वर्ष 1991 में आयात और औद्योगिक लाइसेंस के उन्मूलन के साथ भारत में आर्थिक सुधारों का दौर आरंभ हुआ, जिसके पश्चात् कई अन्य कानूनों और विनियमों को समाप्त कर दिया गया। आर्थिक सुधारों से संबंधित धारणाएँ • उद्योग जगत से दो प्रकार की प्रतिक्रियाएँ सामने आईं। एक समूह ने महसूस किया कि इससे अस्थिरता बढ़ेगी। उनका मानना था कि इससे आर्थिक उलटफेर होगा और अर्थव्यवस्था अस्थिर होगी। • प ्रतिक्रियाओं के दूसरे वर्ग ने उद्योगों पर प्रतिबंध हटाने का ज़ोरदार स्वागत किया। ये ऐसे कारोबारी घराने हैं , जो अनेक चुनौतियों का सामना करने के बावजूद बच गए और समृद्ध हुए। आ र्थिक सुधारों का प्रभाव बहुराष्ट्रीय कंपनियों का प्रवेश आर्थिक सुधारों से संयुक्त उद्यम (JV) के माध्यम से बहुराष्ट्रीय कंपनियों का प्रवेश हुआ। इन्होंने भारतीय भागीदारों पर पूरी तरह से ध्यान दिये बिना संयुक्त उपक्रमों को शीघ्रता से आरंभ करने के लिये आकर्षित किया, क्योंकि भारतीय कंपनियाँ नई तकनीकों और उत्पादों तक पहुँचने के लिये उत्सुक थीं। उ पभोक्ताओं की केंद्रीयता • स ुधारों ने उपभोक्ताओं को केंद्रीयता प्रदान की, जो वर्ष 1991 तक उपलब्ध नहीं थी। • भारतीय उपभोक्ताओं को विकल्प दिये गए तथा विदेशी व भारतीय दोनों कंपनियाँ उनकी पहली पसंद बनना चाहती थीं। • ब ाज़ार से नई माँग की वृद्धि ने परिदृश्य को बदल दिया तथा जी.डी.पी. ने प्रतिवर्ष 7 प्रतिशत की संवृद्धि दर्ज़ की। प्रतिस्पर्द्धा में वृद्धि • पहली बार, भारतीय कंपनियों को अन्य भारतीय और विदेशी कंपनियों से वास्तविक प्रतिस्...

Hindi

• मालाबार नौसैन्य अभ्यास एक वार्षिक इवेंट है जिसमें 2020 में 'क्वाड समूह' के सदस्य भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया की भागीदारी देखी जाएगी. आइये इस लेख के माध्यम से मालाबार नौसैन्य अभ्यास के बारे में विस्तार से अध्ययन करते हैं. Nov 3, 2020 • 210 मेगावाट क्षमता वाली लुहरी जल विद्युत परियोजना के प्रथम चरण के लिए मंत्रिमंडल ने मंजूरी दे दी है. आइये इस परियोजना के बारे में विस्तार से अध्ययन करते हैं. Nov 5, 2020 • रेडियोएक्टिव पदार्थ से निकलने वाली किरणों को रेडियोएक्टिव किरणें कहा जाता है और यह तीन प्रकार की होती हैं: अल्फा, बीटा और गामा. आइये इस लेख के माध्यम से इन किरणों और इनके बीच क्या अंतर होता है के बारे में अध्ययन करते हैं. Dec 16, 2020 • • हाल ही में, चीन और नेपाल ने मिलकर किये सर्वेक्षण के अनुसार दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी 'माउंट एवरेस्ट' की ऊंचाई 8,848.86 मीटर बताई है. यह माउंट एवरेस्ट की पुरानी मान्य ऊंचाई से 86 सेंटीमीटर ज्यादा है. क्या आप जानते हैं कि मूल ऊंचाई की गणना कैसे की जाती है और इस संशोधन का क्या अर्थ है? आइये इस लेख के माध्यम से अध्ययन करते हैं. Dec 17, 2020 • हाल ही में, हरिकेन 'एटा' बिलवी (Bilwi) के निकारागुआन (Nicaraguan) शहर के दक्षिण में एक शक्तिशाली श्रेणी 4 तूफान के रूप में आया. आइये इस लेख के माध्यम से हरिकेन 'एटा' के बारे में अध्ययन करते हैं. Nov 6, 2020 • हेपेटाइटिस सी (Hepatitis C) वायरस की खोज के लिए 5 अक्टूबर, 2020 को दो अमेरिकियों और एक ब्रिटिश वैज्ञानिक को संयुक्त रूप से मेडिसिन या फिजियोलॉजी 2020 में नोबेल पुरस्कार दिया गया. आइए वैज्ञानिकों और उनकी खोज के बारे में विस्तार से अध्ययन करते हैं. Oct 13, 2020 • मंगलवार को...

Indian Economy (भारतीय अर्थव्यवस्था) Notes in Hindi PDF

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भारत में आर्थिक सुधार

स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत एक पिछड़ा एवं अल्प विकसित देश था, जो मूल्यत: कृषि प्रधान देश था। जिसका औद्योगिक आधार कमजोर था। जिसमें भारी बेरोजगारी विद्यमान थी। जिसमें आधार संरचना सुविधाएं नाममात्र थी। अर्थव्यवस्था के विकास के लिए एक भारी धक्का लगने की जरूरत थी। यही कारण था कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद 40 वर्ष यानी 1951 से 1990 तक भारत में आर्थिक विकास के लिए किसी एक नीति का अनुसरण नहीं किया गया, बल्कि विकास के अनेक मार्गो को आजमाया गया। परिणामत: अर्थव्यवस्था में किए गए इन प्रयोगों के वंचित परिणाम नहीं निकले। स्वतंत्रता के बाद सार्वजनिक क्षेत्र के विस्तार को औद्योगिक नीति 1956 के द्वारा केंद्रीय स्थान प्रदान किया गया। आर्थिक चिंतकों को यह अपेक्षा थी कि सार्वजनिक क्षेत्र, आर्थिक विकास के लिए एक इंजन का कार्य करेगा, किंतु 1970 के दशक के मध्य से ही उनका मोहभंग होना आरंभ हो गया और 1980 का दशक आते-आते इसके प्रति विरोध संगठित हो गया। 1980 के दशक में स्वतंत्रता के बाद से चली आ रही परंपरागत नीतियों में वर्तमान की आवश्यकता महसूस की जाने लगी, परंतु सरकार अभी कोई स्पष्ट निर्णय लेने की स्थिति में नहीं थी। इधर 1980 के दशक के दौरान ही समाजवादी अर्थव्यवस्थाओं के मायाजाल टूटने के कारण विश्व में मिश्रित पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में सार्वजनिक क्षेत्र के प्रति मोहभंग होने की प्रक्रिया त्वरित हो गई। 80 के दशक में ही पहली बार भारतीय अर्थव्यवस्था में उदारवादी प्रवृत्ति का प्रवेश हुआ। 1980 में नई औद्योगिक नीति घोषित की गई। जिसके द्वारा उद्योग को गति देने के लिए ₹15 करोड़ के मूल्य की स्थायी संपत्तियों वाले उद्योगों को लाइसेंस से पूर्ण रूप से मुक्त कर दिया गया। निवेश को आकर्षित करने के लिए फेरा का...

New Economic Policy of 1991

सारांश: जून 1991 में नरसिंह राव सरकार ने भारत की अर्थव्यवस्था को नयी दिशा प्रदान की । यह दिशा उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण (एलपीजी मॉडल के रूप में जाना जाता है) के रूप में पूरे देश में आर्थिक सुधारों के रूप में लागू की गयी । इस नई औद्योगिक नीति के तहत सरकार ने कई ऐसे क्षेत्रों में निजी कंपनियों को प्रवेश करने की अनुमति दी, जो पहले केवल सरकारी क्षेत्रों के लिए आरक्षित थे। इस नई आर्थिक नीति को लागू करने के पीछे मुख्य कारण भुगतान संतुलन (BOP) का निरंतर नकारात्मक होना था। आजादी के बाद 1991 का साल भारत के आर्थिक इतिहास में एक मील का पत्थर साबित हुआ। इससे पहले देश एक गंभीर आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा था। और इसी संकट ने भारत के नीति निर्माताओं को नयी आर्थिक नीति को लागू के लिए मजबूर कर दिया था । संकट से उत्पन्न हुई स्थिति ने सरकार को मूल्य स्थिरीकरण और संरचनात्मक सुधार लाने के उद्देश्य से नीतियों का निर्माण करने के लिए प्रेरित किया। स्थिरीकरण की नीतियों का उद्देश्य कमजोरियों को ठीक करना था, जिससे राजकोषीय घाटा और विपरीत भुगतान संतुलन को ठीक किया सके। संरचनात्मक सुधारों ने कठोर नियमों को दूर कर दिया था जिससे कारण सुधारों को भारतीय अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में भी लागू किया गया। और इन्ही नीतियों का परिणाम है कि आज भारत अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसे विश्व स्तर के संस्थान को भी मदद दे सका । 1991 की नई आर्थिक नीति के मुख्य उद्देश्य 1991 में तत्कालीन केंद्रीय वित्त मंत्री डॉ मनमोहन सिंह द्वारा नई आर्थिक नीति (New Economic policy) का शुभारंभ करने के पीछे मुख्य उद्देश्य इस प्रकार हैं: I. भारतीय अर्थव्यवस्था को 'वैश्वीकरण' के मैदान में उतारना के साथ-साथ इसे बाजार के रूख के अन...