अंत अस्ति प्रारंभ in sanskrit

  1. श्रीमद भगवत गीता के श्लोक अर्थ सहित
  2. अस्ति in Hindi
  3. CBSE Class 11 Sanskrit अनुच्छेद
  4. श्रीमद भगवत गीता के श्लोक अर्थ सहित
  5. अस्ति in Hindi
  6. CBSE Class 11 Sanskrit अनुच्छेद


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श्रीमद भगवत गीता के श्लोक अर्थ सहित

गीता के श्लोक कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥ अर्थ – श्री कृष्ण कहते हैं कि हे अर्जुन, कर्म करना तुम्हारा अधिकार है परन्तु फल की इच्छा करना तुम्हारा अधिकार नहीं है| कर्म करो और फल की इच्छा मत करो अर्थात फल की इच्छा किये बिना कर्म करो क्यूंकि फल देना मेरा काम है| गीता श्लोक परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्। धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे॥ अर्थ – श्री कृष्ण कहते हैं कि हे अर्जुन, साधू और संत पुरुषों की रक्षा के लिये, दुष्कर्मियों के विनाश के लिये और धर्म की स्थापना हेतु मैं युगों युगों से धरती पर जन्म लेता आया हूँ| गीता श्लोक गुरूनहत्वा हि महानुभवान श्रेयो भोक्तुं भैक्ष्यमपीह लोके | हत्वार्थकामांस्तु गुरुनिहैव भुञ्जीय भोगान्रुधिरप्रदिग्धान् || अर्थ – महाभारत के युद्ध के समय जब अर्जुन के सामने उनके सगे सम्बन्धी और गुरुजन खड़े होते हैं तो अर्जुन दुःखी होकर श्री कृष्ण से कहते हैं कि अपने महान गुरुओं को मारकर जीने से तो अच्छा है कि भीख मांगकर जीवन जी लिया जाये| भले ही वह लालचवश बुराई का साथ दे रहे हैं लेकिन वो हैं तो मेरे गुरु ही, उनका वध करके अगर मैं कुछ हासिल भी कर लूंगा तो वह सब उनके रक्त से ही सना होगा| गीता श्लोक न चैतद्विद्मः कतरन्नो गरियो यद्वा जयेम यदि वा नो जयेयु: | यानेव हत्वा न जिजीविषाम- स्तेSवस्थिताः प्रमुखे धार्तराष्ट्राः || अर्थ – अर्जुन कहते हैं कि मुझे तो यह भी नहीं पता कि क्या उचित है और क्या नहीं – हम उनसे जीतना चाहते हैं या उनके द्वारा जीते जाना चाहते हैं| धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारकर हम कभी जीना नहीं चाहेंगे फिर भी वह सब युद्धभूमि में हमारे सामने खड़े हैं| गीता श्लोक कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः पृच्छा...

अस्ति in Hindi

काइंगा वास्तुकला शैली (ओडिया: କଳିଙ୍ଗ ସ୍ଥାପତ୍ୟକଳା) एक ऐसी शैली है जो प्राचीन कालिंग क्षेत्र या ओडिशा, पूर्वी बंगाल और उत्तरी आंध्र प्रदेश के पूर्वी भारतीय राज्य में विकसित हुई है। शैली में तीन अलग-अलग प्रकार के मंदिर होते हैं: रेखा देला, पिधा देवला और खखारा देवला। पूर्व दो विष्णु, सूर्य और शिव मंदिरों से जुड़े हुए हैं जबकि तीसरा मुख्य रूप से चामुंडा और दुर्गा मंदिरों के साथ है। रेखा देला और खखारा देवला में पवित्र अभयारण्य है, जबकि पिधा देवला बाहरी नृत्य और हॉल पेश करता है। एकस्मिन् देवालये ताम्रचूड़नाम् वसति स्म। सः कृत्वा जीविका निर्वाहं करोति स्म। एकदा भिक्षां अवलम्ब्य स: देशाटनं संस्थाप्य नागदन्ते । एक: मूषक: उत्कृत्य-उत्कृत्य भिक्षापात्रस्यां सर्वां अखादत्। सः खिन्नः तत्र अधः भूमौ अखनत्। सः तत्रस्थं आदाय सुप्तः तदा मूषकः उत्कत्तुं न ..। परिव्राजक: हृत्वा प्रसन्नोऽभवत् । धनं देव भोः पितरस्माकं परस्मिन् व्योम्नि तिष्ठसि। त्वदीयं कीर्त्यतां नाम तस्मिन् प्रीतिः सदास्तु नः॥ स्थाप्यतां तव सम्राज्यमत्रैव पृथिवीतले। भवेह सिद्धसंकल्पो यथासि स्वस्य धामनि॥ अन्नं दैनन्दिनं दत्त्वा पालयास्मान् दिने दिने। क्षमस्व चापराधान् नो ज्ञात्वाज्ञात्वा तु वा कृतान्॥ यथास्माभिर्हि चान्येषाम् अपराधा हि मर्जिताः। हे प्रभो न तथैवास्मान् गमयाधर्मवर्त्मनि॥ लोभात्पापप्रवृत्तिश्च दौरात्म्याच्चैव मोचय। युक्तमेतत् यतस्तेऽस्ति राज्यं प्रभाववैभवं। अत्र परत्र सर्वत्र अद्य श्वश्च युगे युगे॥ प्रात: सूर्य: उदेति। सूयौदयेन सह दिवसारम्भः भवति। सूयौदयात् प्राक् उषः कालो भवति यो हि अतीव रमणीयःभवति। सर्वे ग्रहा: सूर्य परिक्रमान्ति। पृथिवी अपि सूर्य परिक्रमति। पृथिव्या: सूर्यस्य परिक्रमाकालः संवत्सरकालः। अतः सूर्य ...

CBSE Class 11 Sanskrit अनुच्छेद

CBSE Class 11 Sanskrit अनुच्छेद-लेखनम् (चित्रमधिकृत्य, निर्दिष्टशब्दसूचीसाहाय्येन) कस्यचिद् विषयस्य एक केन्द्रीयभावं विचारं वा आश्रित्य कृतं लघु निबन्धात्मकं चित्रणम् अनुच्छेदः कथ्यते। सामान्यः विशेषता • एकः एव भावः विचारो वा प्रस्तोतव्यः। (एक ही भाव या विचार प्रस्तुत करना चाहिए।) • भूमिका उपसंहारो वा न भवितव्यः। (भूमिका या उपसंहार नहीं होना चाहिए।) • विषयस्य सद्यः एव आरम्भः कर्त्तव्यः। (विषय को तुरंत शुरू कर देना चाहिए।) • वाक्यानि परस्परं सम्बद्धानि भवेयुः। (वाक्य आपस में सम्बद्ध हों।) • रोचकतागुणः अनुच्छेदस्य विशिष्टता भवति। (रोचकता अनुच्छेद का विशिष्ट गुण है।) • भाषा सरला, सुबोधा प्रवाहमयी च भवेत्। (भाषा सरल, सुबोध व प्रवाहमयी होनी चाहिए।) • केन्द्रीयभावः अन्ते प्रारंभे वा अवश्यम् दातव्यः (प्रारंभ में अथवा अंत में केन्द्रीय भाव अवश्य लिखना चाहिए।) • वाक्यं न तु अतिविस्तृतं स्यात् न तु अतिलघु वा स्यात्। (वाक्य न तो अधिक लंबा हो और न हो अधिक छोटा।) • वाक्यसंख्या प्रश्नानुसारम् एव देया। (वाक्य संख्या प्रश्न के अनुसार देनी चाहिए।) (क) चित्रमधिकृत्य प्रश्न: 1. अधोदत्तानि चित्राणि अधिकृत्य अनुच्छेदं लिखत – उत्तरम्: चित्रे विद्यालयस्य कक्षः चित्रितोऽस्ति। कक्षस्य एकस्मिन् कोणे प्रवेशद्वारः अस्ति। तत्र भित्त्याम् श्यामपट्टः अवलम्बते। श्यामपट्टे एकः शिक्षकः चाकद्वारा एकां वर्तुलाकृतिं करोति। तस्य समक्षं मञ्चेषु छात्राः अवस्थिताः सन्तिा ते श्यामपटं दृष्ट्वा निजेषु लिपिपुस्तकेषु किमपि लिखन्ति। एक: छात्रः उत्थाय शिक्षकं किमपि पृच्छति। अन्ये छात्राः ध्यानेन शृण्वन्ति। कक्षस्य वातावरणम् अतीव शान्तिपूर्णम् अस्ति। प्रश्न: 2. अधोदत्तानि चित्राणि अधिकृत्य अनुच्छेद लिखत उत्तरम्: चित्रे व...

संस्कृत

कासार yadubanshi (assist.prof.)j.v.u.BN Mobil.n-8171851502 ओ३म्'---ईश्वर का निज नाम , ईश्वर का मुख्य नाम , gnmmc Bbnmmजो ईश्वर के अधिकाधिक गुण , कर्म, स्वभावों को प्रदर्शित करे ॐ --- मौलिक ध्वनि 'ओ३म्'

श्रीमद भगवत गीता के श्लोक अर्थ सहित

गीता के श्लोक कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥ अर्थ – श्री कृष्ण कहते हैं कि हे अर्जुन, कर्म करना तुम्हारा अधिकार है परन्तु फल की इच्छा करना तुम्हारा अधिकार नहीं है| कर्म करो और फल की इच्छा मत करो अर्थात फल की इच्छा किये बिना कर्म करो क्यूंकि फल देना मेरा काम है| गीता श्लोक परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्। धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे॥ अर्थ – श्री कृष्ण कहते हैं कि हे अर्जुन, साधू और संत पुरुषों की रक्षा के लिये, दुष्कर्मियों के विनाश के लिये और धर्म की स्थापना हेतु मैं युगों युगों से धरती पर जन्म लेता आया हूँ| गीता श्लोक गुरूनहत्वा हि महानुभवान श्रेयो भोक्तुं भैक्ष्यमपीह लोके | हत्वार्थकामांस्तु गुरुनिहैव भुञ्जीय भोगान्रुधिरप्रदिग्धान् || अर्थ – महाभारत के युद्ध के समय जब अर्जुन के सामने उनके सगे सम्बन्धी और गुरुजन खड़े होते हैं तो अर्जुन दुःखी होकर श्री कृष्ण से कहते हैं कि अपने महान गुरुओं को मारकर जीने से तो अच्छा है कि भीख मांगकर जीवन जी लिया जाये| भले ही वह लालचवश बुराई का साथ दे रहे हैं लेकिन वो हैं तो मेरे गुरु ही, उनका वध करके अगर मैं कुछ हासिल भी कर लूंगा तो वह सब उनके रक्त से ही सना होगा| गीता श्लोक न चैतद्विद्मः कतरन्नो गरियो यद्वा जयेम यदि वा नो जयेयु: | यानेव हत्वा न जिजीविषाम- स्तेSवस्थिताः प्रमुखे धार्तराष्ट्राः || अर्थ – अर्जुन कहते हैं कि मुझे तो यह भी नहीं पता कि क्या उचित है और क्या नहीं – हम उनसे जीतना चाहते हैं या उनके द्वारा जीते जाना चाहते हैं| धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारकर हम कभी जीना नहीं चाहेंगे फिर भी वह सब युद्धभूमि में हमारे सामने खड़े हैं| गीता श्लोक कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः पृच्छा...

अस्ति in Hindi

काइंगा वास्तुकला शैली (ओडिया: କଳିଙ୍ଗ ସ୍ଥାପତ୍ୟକଳା) एक ऐसी शैली है जो प्राचीन कालिंग क्षेत्र या ओडिशा, पूर्वी बंगाल और उत्तरी आंध्र प्रदेश के पूर्वी भारतीय राज्य में विकसित हुई है। शैली में तीन अलग-अलग प्रकार के मंदिर होते हैं: रेखा देला, पिधा देवला और खखारा देवला। पूर्व दो विष्णु, सूर्य और शिव मंदिरों से जुड़े हुए हैं जबकि तीसरा मुख्य रूप से चामुंडा और दुर्गा मंदिरों के साथ है। रेखा देला और खखारा देवला में पवित्र अभयारण्य है, जबकि पिधा देवला बाहरी नृत्य और हॉल पेश करता है। एकस्मिन् देवालये ताम्रचूड़नाम् वसति स्म। सः कृत्वा जीविका निर्वाहं करोति स्म। एकदा भिक्षां अवलम्ब्य स: देशाटनं संस्थाप्य नागदन्ते । एक: मूषक: उत्कृत्य-उत्कृत्य भिक्षापात्रस्यां सर्वां अखादत्। सः खिन्नः तत्र अधः भूमौ अखनत्। सः तत्रस्थं आदाय सुप्तः तदा मूषकः उत्कत्तुं न ..। परिव्राजक: हृत्वा प्रसन्नोऽभवत् । धनं देव भोः पितरस्माकं परस्मिन् व्योम्नि तिष्ठसि। त्वदीयं कीर्त्यतां नाम तस्मिन् प्रीतिः सदास्तु नः॥ स्थाप्यतां तव सम्राज्यमत्रैव पृथिवीतले। भवेह सिद्धसंकल्पो यथासि स्वस्य धामनि॥ अन्नं दैनन्दिनं दत्त्वा पालयास्मान् दिने दिने। क्षमस्व चापराधान् नो ज्ञात्वाज्ञात्वा तु वा कृतान्॥ यथास्माभिर्हि चान्येषाम् अपराधा हि मर्जिताः। हे प्रभो न तथैवास्मान् गमयाधर्मवर्त्मनि॥ लोभात्पापप्रवृत्तिश्च दौरात्म्याच्चैव मोचय। युक्तमेतत् यतस्तेऽस्ति राज्यं प्रभाववैभवं। अत्र परत्र सर्वत्र अद्य श्वश्च युगे युगे॥ प्रात: सूर्य: उदेति। सूयौदयेन सह दिवसारम्भः भवति। सूयौदयात् प्राक् उषः कालो भवति यो हि अतीव रमणीयःभवति। सर्वे ग्रहा: सूर्य परिक्रमान्ति। पृथिवी अपि सूर्य परिक्रमति। पृथिव्या: सूर्यस्य परिक्रमाकालः संवत्सरकालः। अतः सूर्य ...

CBSE Class 11 Sanskrit अनुच्छेद

CBSE Class 11 Sanskrit अनुच्छेद-लेखनम् (चित्रमधिकृत्य, निर्दिष्टशब्दसूचीसाहाय्येन) कस्यचिद् विषयस्य एक केन्द्रीयभावं विचारं वा आश्रित्य कृतं लघु निबन्धात्मकं चित्रणम् अनुच्छेदः कथ्यते। सामान्यः विशेषता • एकः एव भावः विचारो वा प्रस्तोतव्यः। (एक ही भाव या विचार प्रस्तुत करना चाहिए।) • भूमिका उपसंहारो वा न भवितव्यः। (भूमिका या उपसंहार नहीं होना चाहिए।) • विषयस्य सद्यः एव आरम्भः कर्त्तव्यः। (विषय को तुरंत शुरू कर देना चाहिए।) • वाक्यानि परस्परं सम्बद्धानि भवेयुः। (वाक्य आपस में सम्बद्ध हों।) • रोचकतागुणः अनुच्छेदस्य विशिष्टता भवति। (रोचकता अनुच्छेद का विशिष्ट गुण है।) • भाषा सरला, सुबोधा प्रवाहमयी च भवेत्। (भाषा सरल, सुबोध व प्रवाहमयी होनी चाहिए।) • केन्द्रीयभावः अन्ते प्रारंभे वा अवश्यम् दातव्यः (प्रारंभ में अथवा अंत में केन्द्रीय भाव अवश्य लिखना चाहिए।) • वाक्यं न तु अतिविस्तृतं स्यात् न तु अतिलघु वा स्यात्। (वाक्य न तो अधिक लंबा हो और न हो अधिक छोटा।) • वाक्यसंख्या प्रश्नानुसारम् एव देया। (वाक्य संख्या प्रश्न के अनुसार देनी चाहिए।) (क) चित्रमधिकृत्य प्रश्न: 1. अधोदत्तानि चित्राणि अधिकृत्य अनुच्छेदं लिखत – उत्तरम्: चित्रे विद्यालयस्य कक्षः चित्रितोऽस्ति। कक्षस्य एकस्मिन् कोणे प्रवेशद्वारः अस्ति। तत्र भित्त्याम् श्यामपट्टः अवलम्बते। श्यामपट्टे एकः शिक्षकः चाकद्वारा एकां वर्तुलाकृतिं करोति। तस्य समक्षं मञ्चेषु छात्राः अवस्थिताः सन्तिा ते श्यामपटं दृष्ट्वा निजेषु लिपिपुस्तकेषु किमपि लिखन्ति। एक: छात्रः उत्थाय शिक्षकं किमपि पृच्छति। अन्ये छात्राः ध्यानेन शृण्वन्ति। कक्षस्य वातावरणम् अतीव शान्तिपूर्णम् अस्ति। प्रश्न: 2. अधोदत्तानि चित्राणि अधिकृत्य अनुच्छेद लिखत उत्तरम्: चित्रे व...