आचार्य विश्वनाथ के अनुसार काव्य की परिभाषा

  1. आचार्य विश्वनाथ
  2. निम्नलिखित में से आचार्य विश्वनाथ प्रतिपादित काव्य की परिभाषा क्या है?
  3. काव्य प्रयोजन का विवेचन
  4. काव्य लक्षण


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आचार्य विश्वनाथ

साहित्य दर्पण का अंग्रेज़ी रूपांतरआचार्य विश्वनाथ (पूरा नाम आचार्य विश्वनाथ महापात्र) संस्कृत काव्य शास्त्र के मर्मज्ञ और आचार्य थे। वे साहित्य दर्पण सहित अनेक साहित्यसम्बन्धी संस्कृत ग्रन्थों के रचयिता हैं। उन्होंने आचार्य मम्मट के ग्रंथ काव्य प्रकाश की टीका भी की है जिसका नाम "काव्यप्रकाश दर्पण" है। . 7 संबंधों: साहित्य दर्पण संस्कृत भाषा में लिखा गया साहित्य विषयक ग्रन्थ है जिसके लेखक पण्डित विश्वनाथ हैं। विश्वनाथ का समय 14वीं शताब्दी ठहराया जाता है। मम्मट के काव्यप्रकाश के समान ही साहित्यदर्पण भी साहित्यालोचना का एक प्रमुख ग्रन्थ है। काव्य के श्रव्य एवं दृश्य दोनों प्रभेदों के संबंध में इस ग्रन्थ में विचारों की विस्तृत अभिव्यक्ति हुई है। इसक विभाजन 10 परिच्छेदों में है। . नई!!: संस्कृत (संस्कृतम्) भारतीय उपमहाद्वीप की एक शास्त्रीय भाषा है। इसे देववाणी अथवा सुरभारती भी कहा जाता है। यह विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है। संस्कृत एक हिंद-आर्य भाषा हैं जो हिंद-यूरोपीय भाषा परिवार का एक शाखा हैं। आधुनिक भारतीय भाषाएँ जैसे, हिंदी, मराठी, सिन्धी, पंजाबी, नेपाली, आदि इसी से उत्पन्न हुई हैं। इन सभी भाषाओं में यूरोपीय बंजारों की रोमानी भाषा भी शामिल है। संस्कृत में वैदिक धर्म से संबंधित लगभग सभी धर्मग्रंथ लिखे गये हैं। बौद्ध धर्म (विशेषकर महायान) तथा जैन मत के भी कई महत्त्वपूर्ण ग्रंथ संस्कृत में लिखे गये हैं। आज भी हिंदू धर्म के अधिकतर यज्ञ और पूजा संस्कृत में ही होती हैं। . नई!!: आचार्य मम्मट संस्कृत काव्यशास्त्र के सर्वश्रेष्ठ विद्वानों में से एक समझे जाते हैं। वे अपने शास्त्रग्रंथ काव्यप्रकाश के कारण प्रसिद्ध हुए। कश्मीरी पंडितों की परंपरागत प्रसिद्धि के अनुसार वे नैषधीय चरित के ...

निम्नलिखित में से आचार्य विश्वनाथ प्रतिपादित काव्य की परिभाषा क्या है?

Correct Answer - Option 3 : वाक्यं रसात्मकं काव्यम् स्पष्टीकरण - • वाक्यं रसात्मकं काव्यम् आचार्य विश्वनाथ प्रतिपादित काव्य की परिभाषा है। • आचार्य विश्वनाथ - साहित्यदर्पण इस ग्रन्थ के कर्ता कविराज विश्वनाथ के पिता का नाम चन्द्रशेखर है, जिसक उल्लेख इसी ग्रन्थ के दुसरे और दसवे परिच्छेद में मिलता है। विश्वनाथ अपने पिता के पश्चात दुसरे भानुदास के काल में सन्धिविग्रहक ऐसा काम करते थे। इस के अनुसार विश्वनाथ का काल इ. स. १२५० से १३२० था। • कविराज पदवी प्राप्त करने वाले आचार्य विश्वनाथ के नाम पर साहित्यदर्पण सहित ९ कलाकृती है। • साहित्यदर्पण - कविराज विश्वनाथलिखित ग्रन्थ मम्मट के काव्यप्रकाश पर आधारित है । इसलिये काव्यप्रकाश के दस उल्हासों के जैसे साहित्यदर्पण के दस परिच्छेद है। • साहित्यशास्त्र से संबंधित सर्व विषयों का समावेश इस एक ही ग्रन्थ-साहित्यदर्पण में होने के कारण यह ग्रन्थ विशेष महत्त्वपूर्ण है। • वाक्यं रसात्मकं काव्यम् - साहित्यदर्पण के प्रथम परिच्छेद में काव्य का लक्षण बतलाते हुए आचार्य विश्वनाथ कहते है - वाक्यं रसात्मकं काव्यम् अर्थात् रसात्मक वाक्य ही काव्य है । सार स्वरूप होने से रस ही जिसके जीवन का आधान करने वाला है ऐसे रसात्मक वाक्य को काव्य कहते है । रस के बिना वाक्य में काव्यता नही रहती है । रस्यते इति रस: जिसक आस्वादन किया जाता है वह रस है । इसलिये वाक्यं रसात्मकं काव्यम् आचार्य विश्वनाथ प्रतिपादित काव्य की परिभाषा है । • वक्रोक्तिः काव्यजीवितम् - वक्रोक्तिजीवित के रचनाकार कुंतक वक्रोक्ति को काव्य का जीवित मतलब प्राण मानते हैं। • रमणीयार्थप्रतिपादकं काव्यम् - पण्डितराज जगन्नाथ ने रसगंगाधर काव्य के लक्षण बताते हुए इस परिभाषा को प्रतिपादित किया है। अर्थात् रमणी...

काव्य प्रयोजन का विवेचन

काव्य प्रयोजन का विवेचन, अर्थ या तात्पर्य काव्य का उद्देश्य या लक्ष्य होता है। अर्थात काव्य का एक निश्चित उद्देश्य ही काव्य प्रयोजन प्रकट करता है । भारतीय काव्यशास्त्र के प्रणेताओं ने काव्य के प्रयोजनों को अपने-अपने ढंग से समझाया है। साहित्य जीवन की अभिव्यक्ति है और जीवन से साहित्य का अभिन्न संबंध है । इसलिए जीवन की प्रेरणा ही साहित्य है । भारतीय मनीषियों ने धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चतुर्वर्ग फल की प्राप्ति को ही जीवन का उद्देश्य बताया है । काव्य प्रयोजन भारतीय काव्यशास्त्र के साथ-साथ साहित्यशास्त्र का भी विषय है । Table of Contents • • • • संस्कृत आचार्यों के अनुसार काव्य प्रयोजन की परिभाषा व लक्षण भरतमुनि के अनुसार काव्य प्रयोजन परिभाषा थर्मयश्यमायुष्यम् हितबुद्धिविवर्धनम् लोकोपदेशजननं नाटूयमेतद् भविष्यति आचार्य भरत ने नाटक के संदर्भ में काव्य प्रयोजन की बात की है । उनकी दृष्टि में धर्म, यश, आयुवृद्धि, हित-साधन एवं लोकोपदेश ही नाट्य प्रयोजन है। भामह के अनुसार काव्य प्रयोजन परिभाषा धर्मार्थ काममोक्षेषु वैचक्षण्यं कलासु च करोति कीर्तिं प्रीतिं च साधुकाव्य निषेवणम् आचार्य भामह धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, कलाओं में विचक्षणता पाना, कीर्ति और आनंद की उपलब्धि को काव्य का प्रयोजन माना है। मम्मट के अनुसार काव्य प्रयोजन लक्षण काव्यं यशसे अर्थकृते व्यवहारविदे शिवेतरक्षते। सद्यः परिनिवृत्तये कान्ता सम्मितयोपदेशयुजे।। मम्मट ने अपने ग्रंथ काव्यप्रकाश में छह काव्य प्रयोजन माने है। 1- यश की प्राप्ति 2- धन की प्राप्ति 3- लौकिक व्यवहार का ज्ञान 4- अनिष्ट का निवारण 5- आनंद की प्राप्ति 6- उपदेश आचार्य विश्वनाथ के अनुसार काव्य प्रयोजन लक्षण चतुर्वर्गफलप्राप्ति सुखादल्पधियामपि । काव्यादेवयतस्तेन ...

काव्य लक्षण

शरीरं तावदिष्टार्थ व्यवच्छिना पदावली अर्थात् इष्ट अर्थ से युक्त पदावली तो उसका अर्थात् काव्य का शरीर मात्र है। स्पष्ट है दण्डी केवल शब्दार्थ को काव्य नहीं मानते क्योंकि उनके अनुसार शब्दार्थ तो काव्य का शरीर मात्र है, उसकी आत्मा नहीं। दण्डी अलंकारवादी आचार्य थे और काव्य की आत्मा मानते थे। दण्डी के अनुसार, वह शब्दार्थ जो अलंकार युक्त हो, काव्य है। अलंकार विहीन शब्दार्थ दण्डी के विचार से काव्य नहीं कहा जा सकता। आचार्य वामन (8 वीं शताब्दी) रीति सम्प्रदाय के प्रवर्तक आचार्य वामन अपने ग्रन्थ ’काव्यालंकार सूत्रवृत्ति’ में काव्य की निम्न परिभाषा दी है। शब्दार्थों सहितौ काव्यम्। अर्थात् शब्द और अर्थ के ’सहित भाव’ को काव्य कहते हैं। आचार्य भामह शब्द और अर्थ के सामंजस्य पर बल देते हैं, अर्थात् कविता न तो शब्द चमत्कार है और न केवल अर्थ का सौष्ठव है। आचार्य विश्वनाथ (14 वीं शताब्दी) साहित्य दर्पणकार आचार्य विश्वनाथ ने मम्मट के काव्य लक्षण का तर्कपूर्ण खण्डन किया है। उन्होंने काव्य की निम्न परिभाषा प्रस्तुत की है। वाक्यरसात्मकंकाव्यम् अर्थात् रस से पूर्ण वाक्य ही काव्य है। इस परिभाषा से स्पष्ट है कि आचार्य विश्वनाथ ने रस को ही काव्य का प्रमुख तत्त्व माना है जबकि पूर्ववर्ती आचार्यों ने गुण सम्पन्ना और सालंकारिता पर अधिक बल दिया था। पण्डितराज जगन्नाथ (17 वीं शताब्दी) पण्डितराज जगन्नाथ ने अपने ग्रन्थ रस गंगाधर में काव्य लक्षण को निम्न शब्दों में व्यक्त कियाः रमणीयार्थ प्रतिपादकः शब्दः काव्यम् अर्थात् रमणीय अर्थ का प्रतिपादन करने वाला शब्द ही काव्य है। इस परिभाषा में रमणीय शब्द अस्पष्ट है। बाबू गुलाबराय ने रमणीय का अर्थ मन को रमाने वाला, लीन करने वाला बताया है। रस में लीन मन आनन्द से व्याप्...