आधुनिक काल के कवि एवं उनकी रचनाएं

  1. भारतेंदु युग
  2. हिंदी के प्रसिद्ध कवि एवं उनकी रचनाएँ
  3. Bhartendu Yug Ke Kavi
  4. संस्कृत साहित्य
  5. छायावादी युग
  6. कवि और उनकी रचनाएँ PDF
  7. द्विवेदी युग का नामकरण, प्रवृत्तियॉं प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाऍं
  8. जयशंकर प्रसाद
  9. मप्र के प्रमुख साहित्यकार
  10. आधुनिक काल


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भारतेंदु युग

Bhartendu Yug भारतेन्दु युग (1850 ई०-1900 ई०) भारतेंदु युग का नामकरण हिंदी नवजागरण के अग्रदूत भारतेंदु हरिश्चंद्र (1850-1885 ई०) के नाम पर किया गया है। आधुनिक हिंदी काव्य के प्रथम चरण को “भारतेन्दु युग” की संज्ञा प्रदान की गई है। भारतेन्दु हरिश्चंद्र को हिन्दी साहित्य के नवजागरण काल– भारतेंदु काल को “नवजागरण काल” भी कहा गया है। हिंदी साहित्य के आधुनिक काल के संक्राति काल के दो पक्ष हैं। इस समय के दरम्यान एक और प्राचीन परिपाटी में काव्य रचना होती रही और दूसरी ओर सामाजिक राजनीतिक क्षेत्रों में जो सक्रियता बढ़ रही थी और परिस्थितियों के बदलाव के कारण जिन नये विचारों का प्रसार हो रहा था, उनका भी धीरे-धीरे साहित्य पर प्रभाव पड़ने लगा था। प्रारंभ के 25 वर्षों (1843 से 1869) तक साहित्य पर यह प्रभाव बहुत कम पड़ा, किन्तु सन 1868 के बाद नवजागरण के लक्षण अधिक स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगे थे। विचारों में इस परिवर्तन का श्रेय भारतेन्दु हरिश्चन्द्र को है। इसलिए इस युग को “भारतेन्दु युग” भी कहते हैं। भारतेन्दु के पहले ब्रजभाषा में भक्ति और श्रृंगार परक रचनाएँ होती थीं और लक्षण ग्रंथ भी लिखे जाते थे। भारतेन्दु के समय से काव्य के विषय चयन में व्यापकता और विविधता आई। श्रृंगारिकता, रीतिबद्धता में कमी आई। राष्ट्र-प्रेम, भाषा-प्रेम और स्वदेशी वस्तुओं के प्रति प्रेम कवियों के मन में भी पैदा होने लगा। उनका ध्यान सामाजिक समस्याओं और उनके समाधान की ओर भी गया। इस प्रकार उन्होंने सामाजिक राजनीतिक क्षेत्रों में गतिशील नवजागरण को अपनी रचनाओं के द्वारा प्रोत्साहित किया। भारतेंदु युग की रचनाएं भारतेंदु युग का साहित्य अनेक अमूल्य रचनाओं का सागर है, इतना समृद्ध साहित्य किसी भी दूसरी भाषा का नहीं है और न ही...

हिंदी के प्रसिद्ध कवि एवं उनकी रचनाएँ

हिंदी के प्रसिद्ध कवि एवं उनकी रचनाएँ आधुनिक काल के कवि और उनकी रचनाएँ हिंदी के प्रसिद्ध लेखक लेखक एवं उनकी रचनाएँ रचना और रचनाकार हिंदी की प्रमुख रचनाएँ हिंदी रचनाएँ कवियों की रचनाएँ हिंदी के प्रसिद्ध कवि एवं उनकी रचनाएँ - प्रिय मित्रों ,हिंदीकुंज.कॉम में प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए उपयोगी हिंदी के प्रसिद्ध कवि व उनकी प्रसिद्ध रचनाओं का परिचय दिया जा रहा है .आशा है कि यह कार्य विद्यार्थी वर्ग के लिए लाभप्रद सिद्ध होगा . • दलपति विजय - खुमानरासो . • नरपति नाल्ह - वीसलदेव रासो . • जगनिक - परमालरासो . • सारंगधर - हम्मीर रासो . • चंदबरदाई - प्रथ्वीराज रासो . • तुलसीदास - रामचरितमानस, विनय पत्रिका ,कवितावली ,दोहावली ,जानकी मंगल . • कबीरदास -रमैनी,सबद,साखी. • सूरदास - सूरसागर ,साहित्य लहरी ,सूर सारावली . • जायसी - पद्मावत ,अखरावट ,आखिरी कलाम. • बिहारी - बिहारी सतसई . • देव - अष्टयाम ,भाव विलास ,रस विलास . • पद्माकर - पद्मभारण ,हितोपदेश,राम रसायन ,जगत विनोद . • मतिराम - ललितललाम ,चंद्र्सार ,रसराज ,साहित्यकार . • चिंतामणि - कविकुल ,कल्पतरु ,काव्य विवेक . • भूषण - शिवावावनी, शिवराजभूषण ,छत्रशाल दशक . • केशवदास - रामचंद्रिका ,कविप्रिया ,रसिकप्रिया ,विज्ञानगीता . • रहीम - रहीम सतसई ,रहीम रत्नावली ,श्रृंगार सतसई ,रास पंचाध्यायी ,बरवे नायिका . • मीराबाई - रागगोविन्द ,गीतगोविन्द ,नरसीजी का मेहरा, राग सोरठ के पद • घनानंद - सुजान सागर ,प्रेम पत्रिका ,प्रेम सरोवर ,वियोग बोलि ,इश्कता . • भारतेन्दु हरिश्चंद - प्रेमफुलवारी ,प्रेम प्रलाप ,श्रृंगार लहरी . • रामनरेश त्रिपाठी - पथिक ,मिलन ,स्वपन ,मानसी ,ग्राम्य गीत . • श्रीधर पाठक - कश्मीर सुषमा ,भारत गीत ,हेमंत ,मनोविनोद ,स्वर्गीय ,वीणा . • अयोध...

Bhartendu Yug Ke Kavi

Contents • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • Bhartendu Yug Ke Kavi | भारतेन्दु युग के कवि और उनकी रचनाएँ नमस्कार दोस्तों ! हमने पिछले नोट्स में आधुनिक काल और भारतेन्दु हरिश्चंद्र के बारे में चर्चा की थी। इसी क्रम में आज हम “ Bhartendu Yug Ke Kavi | भारतेन्दु युग के कवि और उनकी रचनाएँ” के बारे में अध्ययन करने जा रहे है। तो चलिए शुरू करते है : श्री प्रताप नारायण मिश्र | Pratap Narayan Mishra ये भारतेंदु मंडल के प्रमुख लेखकों में से एक थे। इन्होंने हिंदी साहित्य के अनेक रूपों में सेवा की। ये कवि होने के साथ उच्च कोटि के निबंधकार और नाटककार भी थे । पंडित प्रताप नारायण मिश्र का जन्म 24 सितंबर 1856 ईं को उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में हुआ। यह कान्यकुब्ज ब्राह्मण पंडित थे। यह द्वितीय भारतेंदु के नाम से प्रसिद्ध हैं। इन्होंने कानपुर से ब्राह्मण पत्रिका निकाली थी। यह कानपुर के रसिक समाज के प्रधान कार्यकर्ता रहे हैं। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने निबंधकार की हैसियत से प्रताप नारायण मिश्र को “ हिंदी का एडिसन“ कहा है। मनोविज्ञान के क्षेत्र में आचार्य शुक्ल से पहले ही प्रताप नारायण मिश्र ने अपनी कलम चलाई है। यह ब्रजभाषा के घोर पक्षधर रहे हैं। श्री प्रताप नारायण मिश्र की रचनाएँ : • मन की लहर • प्रेम पुष्पावली • प्रताप लहरी • लोकोक्ति शतक • दीवान ए बरहमन • संगीत शाकुंतलम् • रसखान शतक • इनकी रचना मन की लहर में 31 लावनियां है । • लोकोक्ति शतक में 100 लोकोक्ति व कहावतों पर देशभक्ति की रचनाएं लिखी गई हैं। • दीवान -ए- बरहमन में उर्दू कविताओं का संग्रह है। ब्रज भाषा में रचित कविताएं : • तृप्यन्ताम • हरगंगा श्री प्रताप नारायण मिश्र की चर्चित पंक्तियां : “पढ़िय ...

संस्कृत साहित्य

संस्कृत के प्रमुख साहित्य एवं साहित्यकार संस्कृत भाषा का साहित्य अनेक अमूल्य ग्रंथरत्नों का सागर है, इतना समृद्ध साहित्य किसी भी दूसरी प्राचीन भाषा का नहीं है और न ही किसी अन्य भाषा की परम्परा अविच्छिन्न प्रवाह के रूप में इतने दीर्घ काल तक रहने पाई है। अति प्राचीन होने पर भी इस भाषा की सृजन-शक्ति कुण्ठित नहीं हुई, इसका धातुपाठ नित्य नये शब्दों को गढ़ने में समर्थ रहा है। संस्कृत के कवियों की सूची और उनकी रचनाएं अगस्त्य (कवि) की प्रमुख रचनाएं • अगस्त्य संहिता अमरु की प्रमुख रचनाएं • अमरूशतक अश्वघोष की प्रमुख रचनाएं • बुद्धचरितम् • सौन्दरानंदकाव्यम् • गंडीस्तोत्रगाथा • शारिपुत्रप्रकरणम् आर्यशूर की प्रमुख रचनाएं • जातकमाला कलानाथ शास्त्री की प्रमुख रचनाएं प्रमुख पुस्तकें : हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी में हिन्दी भाषा और भारतीय संस्कृति विषयक अनेक ग्रंथ प्रकाशित हुए हैं। प्रकाशित ग्रंथों में- संस्कृत में – • “जीवनस्य पृष्ठद्वयम्” (उपन्यास) • “आख्यानवल्लरी” (कथा-संग्रह) (2004 का संस्कृत का केन्द्रीय संस्कृत अकादमी का पुरस्कार) • “नाट्यवल्लरी”(नाटक), (राजस्थान संस्कृत अकादमी द्वारा पुरस्कृत) • “सुधीजनवृत्तम्” (जीवनी संग्रह, जयपुर, 1997) • “कवितावल्लरी” (काव्य संग्रह, जयपुर, 2008) • ‘कथानकवल्ली’ (कथा संग्रह, जयपुर, 1987) • “विद्वज्जनचरितामृतम्” (जीवनी संग्रह, नई दिल्ली, 1982) • ‘जीवनस्य-पाथेयम्’ (उपन्यास, 2003) ‘ललितकथा कल्पवल्ली’ (2012) हिन्दी में – • ‘वैदिक वाङ्मय में भारतीय संस्कृति’ (बीकानेर, 2003) • ‘आधुनिक काल का संस्कृत गद्य साहित्य’ (नई दिल्ली, 1995) • ‘मानक हिन्दी का स्वरुप’ (नई दिल्ली, 2002, जयपुर, 2010) • “संस्कृत साहित्य का इतिहास” (जयपुर, 1995, 2009) • ‘भारतीय संस्कृति- ...

छायावादी युग

Chhayavadi Yug छायावादी युग (1918 ई०-1936 ई०) हिंदी साहित्य के इतिहास में छायावाद के वास्तविक अर्थ को लेकर विद्वानों में विभिन्न मतभेद है। छायावाद का अर्थ मुकुटधर पांडे ने “रहस्यवाद, सुशील कुमार ने “अस्पष्टता” महावीर प्रसाद द्विवेदी ने “अन्योक्ति पद्धति” रामचंद्र शुक्ल ने “शैली बैचित्र्य “नंददुलारे बाजपेई ने “आध्यात्मिक छाया का भान” डॉ नगेंद्र ने “स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह”बताया है। छायावाद–“द्विवेदी युग” के बाद के समय को छायावाद कहा जाता है। बीसवीं सदी का पूर्वार्द्ध छायावादी कवियों का उत्थान काल था। इस युग को जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला” और सुमित्रानंदन पंत जैसे छायावादी प्रकृति उपासक-सौन्दर्य पूजक कवियों का युग कहा जाता है। “द्विवेदी युग” की प्रतिक्रिया का परिणाम ही “छायावादी युग” है। नामवर सिंह के शब्दों में, ‘छायावाद शब्द का अर्थ चाहे जो हो परंतु व्यावहारिक दृष्टि से यह प्रसाद, निराला, पंत और महादेवी की उन समस्त कविताओं का द्योतक है जो 1918 ई० से लेकर 1936 ई० (‘उच्छवास’ से ‘युगान्त’) तक लिखी गई। सामान्य तौर पर किसी कविता के भावों की छाया यदि कहीं अन्यत्र जाकर पड़े तो वह ‘छायावादी कविता’ है। उदाहरण के तौर पर पंत की निम्न पंक्तियाँ देखी जा सकती हैं जो कहा तो जा रहा है छाँह के बारे में लेकिन अर्थ निकल रहा है नारी स्वातंत्र्य संबंधी : कहो कौन तुम दमयंती सी इस तरु के नीचे सोयी, अहा तुम्हें भी त्याग गया क्या अलि नल-सा निष्ठुर कोई।। छायावादी युग में हिन्दी साहित्य में गद्य गीतों, भाव तरलता, रहस्यात्मक और मर्मस्पर्शी कल्पना, राष्ट्रीयता और स्वतंत्र चिन्तन आदि का समावेश होता चला गया। इस समय की हिन्दी कविता के अंतरंग और बहिरंग में एकदम परिवर...

कवि और उनकी रचनाएँ PDF

हिन्दी के कवि और उनकी रचनाएँ PDF इस अध्याय से सभी प्रतियोगी परीक्षाओं में 1 या दो प्रश्न अवश्य पूछे जाते है इसमें कम से कम 200 कवि और उनकी रचनाएं दिये गये है । और इसका पी.डी.एफ भी डाउनलोड कीजिए कवि और उनकी रचनाएँ PDF कवि और उनकी रचनाएँ PDF रचना/रचनाएँ रचनाकार/लेखक/कवि रानी केतकी की कहानी इंशाअल्ला खाँ माधव विलास लल्लूलाल प्रेमसागर लल्लूलाल नासिकेतोपाख्यान सदल मिश्र दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता गोकुलनाथ चौराशी वैष्णवन की वार्ता गोकुलनाथ अष्टयाम नाभादास गोरा बादल की कथा जटमल पद्ममपुराण पं. दौलतराम परीक्षा गुरु किशोरीलाल गोस्वामी नहषू गोपालदास (गिरिधरदास) कवियों की खोज श्यामसुंदर दास चिन्तामणि रामचन्द्र शुक्ल रस मीमांसा रामचन्द्र शुक्ल हिन्दी साहित्य का इतिहास रामचन्द्र शुक्ल शेष स्मृतियाँ रघुवीर सिंह उसने कहा था चन्द्रधर शर्मा गुलेरी ग्यारह वर्ष का समय आचार्य रामचन्द्र शुक्ल बनारसीदास विलास बनारसीदास दीपशिखा महादेवी वर्मा नीरजा महादेवी वर्मा स्मृति की रेखाएँ महादेवी वर्मा अतीत के चलचित्र महादेवी वर्मा पथ के साथी महादेवी वर्मा मेरा परिवार महादेवी वर्मा मेरा जीवन-प्रवाह वियोगी हरि आवारा मसीहा विष्णु प्रभाकर टूटते परिवेश विष्णु प्रभाकर क्या भुलूँ क्या याद करूँ हरिवंशराय बच्चन नीड़ का निर्माण फिर हरिवंश राय बच्चन अर्द्धनारीश्वर रामधारी सिंह दिनकर सूरज का ब्याह रामधारी सिंह दिनकर भोर का तारा जगदीशचन्द्र माथुर वैशाली की नगरबधु बाबू गुलाबराय मेरी असफलताएँ बाबू गुलाबराय ठलुआ कल्ब बाबू गुलाबराय कलम का सिपाही अमृतराय परदा यशपाल गुनाहों के देवता धर्मवीर भारती अन्धा युग धर्मवीर भारती सूरज का सातवाँ घोड़ा धर्मवीर भारती तमस भीष्म साहनी चन्द्रगुप्त जयशंकर प्रसाद अजातशत्रु जयशंकर प्रसाद ध्र...

द्विवेदी युग का नामकरण, प्रवृत्तियॉं प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाऍं

द्विवेदी युग: हिंदी साहित्य में भारतेंदु युग के बाद का समय को द्विवेदी युग का नाम दिया गया है। इस युग का नाम महावीर प्रसाद द्विवेदी के नाम से रखा गया है।डॉ. नगेन्द्र ने इस युग को ‘जागरण-सुधार काल’ भी कहा जाता है तथा इसकी समयावधि 1900 से 1918 ई. तक माना। वहीं आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने द्विवेदी युग को‘नई धारा: द्वितीय उत्थान’ के अन्तर्गत रखा है तथा समयावधि सन् 1893 से 1918 ई. तक माना है। महावीर प्रसाद द्विवेदी एक महान साहित्यकार थे, जो बहुभाषी होने के साथ ही साहित्य के इतर विषयों में भी समान रुचि रखते थे। उन्होंने सरस्वती का 18 वर्षों तक संपादन कर हिन्दी पत्रकारिता में एक महान कीर्तिमान स्थापित किया था। वे हिन्दी के पहले व्यवस्थित समालोचक थे, जिन्होंने समालोचना की कई पुस्तकें लिखी थीं। वे खड़ीबोली हिन्दी की कविता के प्रारंभिक और महत्वपूर्ण कवि थे। आधुनिक हिन्दी कहानी उन्हीं के प्रयत्नों से एक साहित्यिक विधा के रूप में मान्यता प्राप्त कर सकी थी। वे भाषाशास्त्री, अनुवादक, इतिहासज्ञ, अर्थशास्त्री तथा विज्ञान में भी गहरी रुचि रखने वाले थे। अत: वे युगांतर लाने वाले साहित्यकार थे या दूसरे शब्दों में कहें, युग निर्माता थे। वे अपने चिन्तन और लेखन के द्वारा हिन्दी प्रवेश में नव-जागरण पैदा करने वाले साहित्यकार थे। Contents द्विवेदी युग का समय डॉ० नगेन्द्र ने द्विवेदी काल को 'जागरण सुधार काल' नाम से अभिहित किया और इसकी समयावधि 1900 से 1918 ई० तक माना। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने द्विवेदी युग को 'नई धारा : द्वितीय उत्थान' के अन्तर्गत रखा है तथा समयावधि सन् 1893 से 1918 ई० तक माना है। तथा कहींं कही इसकी समय अवधि 1900 से 1920 ई० तक भी देखने को मिलती हैं। द्विवेदी युग का नामकरण डॉ. शिवकुमार ...

जयशंकर प्रसाद

जयशंकर प्रसाद जी आधुनिक काल के छायावादी कवि थे| इन्होंने पन्द्रह वर्ष की अवस्था से ही लिखना आरम्भ कर दिया था| ये बहुमुखी प्रतिभा से सम्पन्न महान साहित्यकार थे| इन्हें काव्य, नाटक, कहानी, निबन्ध तथा उपन्यास सभी प्रकार की साहित्यिक रचनाएँ कीं थी, किन्तु मूलतः ये कवि थे| पहले ‘कलाधर’ नाम से ब्रजभाषा में कविता लिखा करते थे, इनकी प्रारम्भिक कविताएँ ब्रजभाषा में ही पाया जाता है| जयशंकर प्रसाद आधुनिक हिन्दी साहित्य की श्रेष्ठ प्रतिभा संपन्न कवि थे| द्विवेदी-युग की स्थूल और इतिवृत्तात्मक कविता-धारा को सूक्ष्म भाव-सौन्दर्य, रमणीयता एवं माधुर्य से परिपूर्ण कर प्रसादजी ने नवयुग का गठबंधन किया| ये छायावाद के प्रवर्तक, उन्नायक तथा प्रतिनिधि कवि होने साथ ही नाटककार एवं कहानीकार भी रहे हैं| जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय​जयशंकर प्रसाद का जन्म 30 जनवरी, 1889 ई० में भारत के उत्तर प्रदेश में काशी के सुँघनी साहू नामक प्रसिद्ध वैश्य परिवार में हुआ था| जयशंकर प्रसाद के माता का नाम मुन्नी देवी तथा पिता का नाम देवी प्रसाद था| छोटी अवस्था में ही पिता तथा बड़े भाई के मृत्यु हो जाने के कारण इनकी शिक्षा पूरी ना हो सकी | घर के व्यापार को सँभालते हुए भी इन्होंने स्वाध्याय पर विशेष ध्यान रखा| घर पर ही इन्होंने हिन्दी, अंग्रेजी उर्दू, फारसी का गहन अध्ययन किया| परिवारजनों की मृत्यु, अर्थ-संकट, पत्नी की मृत्यु का वियोग आदि संघर्षों को अत्यन्त समस्याओं को झेलते हुए| यह अलौकिक प्रतिभासम्पन्न साहित्यकार हिन्दी के मन्दिर में अमूल्य रचना-सुमन अर्पित करता रहा| जयशंकर प्रसाद 14 जनवरी, 1937 ई. को क्षय रोग से ग्रसित होने के कारण साहित्य के इस महान कवि का मृत्यु हो गया| जयशंकर प्रसाद का साहित्यिक परिचय​‘कानन-कुसुम’, ‘...

मप्र के प्रमुख साहित्यकार

राज्य में साहित्य सृजन की परंपरा प्राचीन काल से ही रही है प्राचीन काल में साहित्य सृजन की मुख्य भाषा संस्कृति संस्कृत के महान साहित्यकार कवि वाल्मीकि महाकवि कालिदास बाणभट्ट और भ्रतहरि मध्य प्रदेश के ही निवासी थे ! ??राज्य के लोगों द्वारा संपर्क भाषा के तौर पर मुख्यता हिंदी का प्रयोग किया जाता है मध्य काल एवं आधुनिक काल में हिंदी का विकास हुआ वह राज्य में सर साहित्य अधिकतर हिंदी और उसकी बोलियों में लिखा जाने लगा ! 1. प्राचीन काल के साहित्यकार ??कालिदास *?? कालिदास (संभवता उज्जैन के निवासी) कालिदास उज्जैन के नरेश विक्रमादित्य के नवरत्नों में शामिल थे इन्हें भारत का शेक्सपियर कहा जाता है ??काल- कालिदास के काल के विषय में स्पष्ट जानकारी नहीं है कुछ लोगों ने ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी का मानते हैं तो कुछ लोगों ने चौथी शताब्दी का मानते हैं ! ??रचनाएं- अभिज्ञान शाकुंतलम, विक्रमोर्वशीय, मालविकाग्निमित्रम् ,मेघदूत. कुमारसंभव ,रघुवंशम, ऋतुसंहार ! ??भाषा शैली-कालिदास की भाषा परिष्कृत सरल एवं भावों के अनुकूल हैं इन्होंने संस्कृत भाषा में अलंकार शैली का सहज प्रयोग किया है ! ?? विशेषता- अलंकृत पदों में भी मानवीय भावनाओं की सहज और प्रभावपूर्ण प्रस्तुति तथा उनके वर्णन कि सरलता हैं कालिदास के ज्ञान की विपुलता और जीवन तथा प्रकृति के सूक्ष्म निरीक्षण की गंभीरता उनकी रचनाओं में प्रकट होती है ! ?? भर्तृहरि ??काल- भर्तहरि के काल को कुछ विद्वान ईसा पूर्व 72 तो कुछ विद्वान 7 वी शताब्दी मानते हैं ! ?? रचनाएं- श्रंगार शतक. नीतिशतक, वैराग्य शतक ?? भाषा शैली- भर्तहरि संस्कृत भाषा में एक श्लोकी कविता शैली का प्रयोग किया गया है वह एक श्लोकी कविता के सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं ?? विशेषता- बहुआयामी व्यक्...

आधुनिक काल

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