आर्य समाज का संस्थापक

  1. जानें आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती जी की जीवनी
  2. स्वामी श्रद्धानन्द
  3. आर्य समाज के संस्थापक कौन है, Arya Samaj Ke Sansthapak Kaun Hai
  4. आर्य समाज के संस्थापक कौन थे
  5. Dayanand Saraswati की Birth anniversary, दयानंद सरस्वती आर्य समाज के संस्थापक
  6. स्वामी श्रद्धानन्द
  7. Dayanand Saraswati की Birth anniversary, दयानंद सरस्वती आर्य समाज के संस्थापक
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  9. आर्य समाज के संस्थापक कौन थे
  10. आर्य समाज


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जानें आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती जी की जीवनी

जानें, आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती जी की जीवनी भारत की उत्कृष्ट वैदिक संस्कृति एवं सभ्यता की गरिमामयी विरासत मध्यकाल के तमसाच्छन्न युग में लुप्तप्राय हो गई थी। राजनीतिक परतंत्रता तथा पराधीनता के कारण विचलित भारतीय जनमानस को महर्षि दयानंद सरस्वती ने आत्मबोध आत्मगौरव स्वाभिमान एवं स्वाधीनता का मंत्र प्रदान किया। भारत ऋषि-मुनियों की पावन धरा है। इसी पुण्य धरा पर गुजरात के टंकारा प्रांत में फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को वर्ष 1824 ईसवी में स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म हुआ। मूल नक्षत्र में जन्म लेने के कारण इनका नाम मूल शंकर रखा गया। हमारे सनातनी कैलेंडर के अनुसार, 26 फरवरी, शनिवार को इस महामानव की जयंती है। शाश्वत सत्य के अन्वेषण हेतु एवं सत्य व शिव की प्राप्ति हेतु मूल शंकर वर्ष 1846 में 21 वर्ष की आयु में समृद्ध घर-परिवार, मोह ममता के बंधनों को त्याग कर संन्यासी जीवन की ओर बढ़ गए। उन्होंने 1859 में गुरु विरजानंद जी से व्याकरण व योग दर्शन की शिक्षा प्राप्त की। भारत की उत्कृष्ट वैदिक संस्कृति एवं सभ्यता की हजारों वर्षों की गरिमामयी विरासत मध्यकाल के तमसाच्छन्न युग में लुप्तप्राय हो गई थी। राजनीतिक पराधीनता के कारण विचलित, निराश व हताश भारतीय जनमानस को महर्षि दयानंद सरस्वती ने आत्मबोध, आत्मगौरव, स्वाभिमान एवं स्वाधीनता का मंत्र प्रदान किया। स्वामी दयानंद 19वीं सदी के नवजागरण के सूर्य थे, जिन्होंने मध्ययुगीन अंधकार का नाश किया। महर्षि दयानंद के प्रादुर्भाव के समय भारत धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक दृष्टि से अतिजर्जर और छिन्न-भिन्न हो गया था। ऐसे विकट समय में जन्म लेकर महर्षि ने देश के आत्मगौरव के पुनरुत्थान का अभूतपूर्व कार्य किया। लोक कल्याण ...

स्वामी श्रद्धानन्द

स्वामी श्रद्धानन्द भारत सरकार ने स्वामी श्रद्धानन्द की स्मृति में सन १९७० में डाकटिकट जारी किया। जन्म मुंशीराम विज 22 फ़रवरी 1856 Tahlwan, मृत्यु 23 दिसम्बर 1926 ( 1926-12-23) (उम्र70) मृत्यु का कारण अब्दुल रशीद नाम के एक उन्मादी द्वारा गोली मारकर व्यवसाय समाजसेवा, पत्रकार, स्वतन्त्रता सेनानी, अध्यापक स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती (मुंशीराम विज; 22 फरवरी, 1856 - 23 दिसम्बर, 1926) अनुक्रम • 1 जीवन परिचय • 1.1 गुरुकुल की स्थापना • 1.2 पत्रकारिता एवं हिन्दी-सेवा • 1.3 स्वतन्त्रता आन्दोलन • 1.4 शुद्धि • 1.5 हत्या • 2 साहित्य एवं कृतियाँ • 3 संदर्भ ग्रंथसूची • 4 पठनीय • 5 सन्दर्भ • 6 इन्हें भी देखें • 7 बाहरी कड़ियाँ जीवन परिचय [ ] स्वामी श्रद्धानन्द (मुंशीराम विज) का जन्म 22 फरवरी सन् 1856 (फाल्गुन कृष्ण त्र्योदशी, विक्रम संवत् 1913) को मुंशीराम विज था, किन्तु मुन्शीराम सरल होने के कारण अधिक प्रचलित हुआ। पिता का स्थानान्तरण अलग-अलग स्थानों पर होने के कारण उनकी आरम्भिक शिक्षा अच्छी प्रकार नहीं हो सकी। वे एक सफल उनका विवाह श्रीमती शिवा देवी के साथ हुआ था। जब आप ३५ वर्ष के थे तभी शिवा देवी स्वर्ग सिधारीं। उस समय उनके दो पुत्र और दो पुत्रियां थीं। स्वामी श्रद्धानन्द के नाम से विख्यात हुए। गुरुकुल की स्थापना [ ] स्वामी श्रद्धानन्द सन् 1901 में मुंशीराम विज ने अंग्रेजों द्वारा जारी शिक्षा पद्धति के स्थान पर वैदिक धर्म तथा भारतीयता की शिक्षा देने वाले संस्थान " महात्मा की उपाधि से विभूषित किया और बहुत पहले यह भविष्यवाणी कर दी थी कि वे आगे चलकर बहुत महान बनेंगे। पत्रकारिता एवं हिन्दी-सेवा [ ] उन्होने पत्रकारिता में भी कदम रखा। वे अर्जुन तथा उर्दू में तेज। स्वतन्त्रता आन्दोलन [ ] उन्होने ...

आर्य समाज के संस्थापक कौन है, Arya Samaj Ke Sansthapak Kaun Hai

आर्य समाज के संस्थापक कौन है, Arya Samaj Ke Sansthapak Kaun Hai • • • • • • • • • आर्य समाज की स्थापना, arya samaj ki sthapna आर्य समाज का आविष्कार महर्षि दयानंद सरस्वती ने 10 अप्रैल 1875 में मुंबई के क्रॉस मैदान में किया था। अनहोन इस संस्था को वैदिक धर्म को पुन: स्थापित करने के लिए स्थपित किया था। क्या संस्था का उद्देश्य धार्मिक सुधार के साथ-साथ सामाजिक सुधार भी था। महर्षि दयानन्द सरस्वती ने आर्य समाज को स्थापित करने से पहले बहुत से अध्ययन और विचार का सम्मान किया था। उनका उद्देश था कि लोगों को वैदिक धर्म और संस्कृति के प्रति जागृत बनाया जाए और इस धर्म को सही धंग से समझा जाए। इस्लिए अनहोने साफ-सुथरी जीवन शैली को महत्व दिया और सभी प्रकारों के अचार-विचार को त्याग करने की सलाह दी। आर्य समाज के तत्वबोध का मूलाधार वैदिक ग्रन्थों पर है। अनहोन है संस्था के प्रचार के लिए काई ग्रंथ जैसे, जिनमे से “सत्यार्थ प्रकाश” और “ऋग्वेद भाषणम” बहुत प्रसिद्ध है। क्या संस्था का लक्ष्य था कि वैदिक धर्म और संस्कृति को पुन: प्राचीन समय की तरह पुनर्जीवन किया जाए, जिस्म लोगों के जीवन में सच और सामाजिक न्याय हो। आर्य समाज के संस्थान का नाम क्या है, aarya samaj ke sansthapak ka naam kya hai आर्य समाज के संस्थापक का नाम महर्षि दयानन्द सरस्वती है। FAQs आर्य समाज क्या है? आर्य समाज एक धार्मिक और सामाजिक संस्था है, जो महर्षि दयानंद सरस्वती द्वार 1875 में स्थपित की गई थी। इसका उद्देश्य वैदिक धर्म और संस्कृति को प्रसारित करने के साथ-साथ सामाजिक सुधार भी है। आर्य समाज के मूल तत्व क्या है? आर्य समाज के मूल तत्व वैदिक धर्म और संस्कृति पर अधारित है। क्या संस्था के अनुयाई सत्य, अहिंसा, धार्मिकता, अध्ययन, और अचार-...

आर्य समाज के संस्थापक कौन थे

Ans: स्वामी दयानंद सरस्वती स्वामी दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना की। आर्य समाज की स्थापना स्वामी दयानंद सरस्वती ने 1875 में की थी। उन्होंने वेदों का अनुवाद किया और सत्यार्थ प्रकाश, वेद भाष्य भूमिका और वेद भाष्य नामक तीन पुस्तकें लिखीं। उन्होंने “वेदों की ओर लौट चलो” का नारा दिया। दयानंद आंग्ल वैदिक (D.A.V) स्कूल उनके दर्शन और शिक्षाओं के आधार पर स्थापित किए गए थे।

Dayanand Saraswati की Birth anniversary, दयानंद सरस्वती आर्य समाज के संस्थापक

BHOPAL. आर्य समाज के संस्थापक, दार्शनिक और समाज सुधारक स्वामी दयानंद सरस्वती की आज जयंती है। दयानंद सरस्वती का नाम पहले मूलशंकर तिवारी था। उनका जन्म 12 फरवरी 1824 को गुजरात के टंकारा में हुआ था। दयानंद सरस्वती के पिता करशनजी लालजी कपाड़ी धनी व्यक्तियों में से एक थे। इसलिए उनका बचपन विलासिता में बीता। दयानंद जब 8 साल के थे तब उनका यज्ञोपवीत संस्कार किया गया था और वे औपचारिक रूप से ब्राह्मणवाद की दुनिया में शामिल हो गए। दयानंद ने 27 विद्वानों और 12 विशेषज्ञ पंडितों को हराया दयानंद सरस्वती ने 14 साल की उम्र में धार्मिक छंदों का पाठ करना शुरू कर दिया था। वे धार्मिक बहस में भी भाग लेने लगे थे। वाराणसी में 22 अक्टूबर 1869 को दयानंद सरस्वती ने एक धार्मिक बहस के दौरान 27 विद्वानों और 12 विशेषज्ञ पंडितों को हरा दिया था। बहस का विषय था कि क्या वेद देवता पूजा का समर्थन करते हैं। मूर्ति पूजा के विरोधी होने के पीछे बचपन की कहानी स्वामी दयानंद सरस्वती मूर्ति पूजा के विरोधी थे। इसके पीछे उनके बचपन में घटी एक घटना है। एक बार महाशिवरात्रि पर उनके पिता ने उनसे रात्रि उपवास और पूजा करने के लिए कहा। पिता की आज्ञा के अनुसार उन्होंने पूरे दिन उपवास किया और रात्रि जागरण के लिए पालकी लेकर शिव मंदिर में बैठ गए। आधी रात को उन्होंने देखा कि चूहों का झुंड भगवान शिव की मूर्ति को घेरकर प्रसाद खा रहा है। उनके मन में एक सवाल उठा कि ये मूर्ति एक पत्थर है, जो अपनी रक्षा नहीं कर सकती उससे हम क्या उम्मीद कर सकते हैं। इस घटना ने उन पर बहुत प्रभाव डाला और आत्म ज्ञान की प्राप्ति के लिए उन्होंने घर छोड़ दिया। स्वामी विरजानंद के शिष्य बने दयानंद सरस्वती दयानंद सरस्वती जब मथुरा पहुंचे तो उनकी मुलाकात स्वामी विरजान...

स्वामी श्रद्धानन्द

स्वामी श्रद्धानन्द भारत सरकार ने स्वामी श्रद्धानन्द की स्मृति में सन १९७० में डाकटिकट जारी किया। जन्म मुंशीराम विज 22 फ़रवरी 1856 Tahlwan, मृत्यु 23 दिसम्बर 1926 ( 1926-12-23) (उम्र70) मृत्यु का कारण अब्दुल रशीद नाम के एक उन्मादी द्वारा गोली मारकर व्यवसाय समाजसेवा, पत्रकार, स्वतन्त्रता सेनानी, अध्यापक स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती (मुंशीराम विज; 22 फरवरी, 1856 - 23 दिसम्बर, 1926) अनुक्रम • 1 जीवन परिचय • 1.1 गुरुकुल की स्थापना • 1.2 पत्रकारिता एवं हिन्दी-सेवा • 1.3 स्वतन्त्रता आन्दोलन • 1.4 शुद्धि • 1.5 हत्या • 2 साहित्य एवं कृतियाँ • 3 संदर्भ ग्रंथसूची • 4 पठनीय • 5 सन्दर्भ • 6 इन्हें भी देखें • 7 बाहरी कड़ियाँ जीवन परिचय [ ] स्वामी श्रद्धानन्द (मुंशीराम विज) का जन्म 22 फरवरी सन् 1856 (फाल्गुन कृष्ण त्र्योदशी, विक्रम संवत् 1913) को मुंशीराम विज था, किन्तु मुन्शीराम सरल होने के कारण अधिक प्रचलित हुआ। पिता का स्थानान्तरण अलग-अलग स्थानों पर होने के कारण उनकी आरम्भिक शिक्षा अच्छी प्रकार नहीं हो सकी। वे एक सफल उनका विवाह श्रीमती शिवा देवी के साथ हुआ था। जब आप ३५ वर्ष के थे तभी शिवा देवी स्वर्ग सिधारीं। उस समय उनके दो पुत्र और दो पुत्रियां थीं। स्वामी श्रद्धानन्द के नाम से विख्यात हुए। गुरुकुल की स्थापना [ ] स्वामी श्रद्धानन्द सन् 1901 में मुंशीराम विज ने अंग्रेजों द्वारा जारी शिक्षा पद्धति के स्थान पर वैदिक धर्म तथा भारतीयता की शिक्षा देने वाले संस्थान " महात्मा की उपाधि से विभूषित किया और बहुत पहले यह भविष्यवाणी कर दी थी कि वे आगे चलकर बहुत महान बनेंगे। पत्रकारिता एवं हिन्दी-सेवा [ ] उन्होने पत्रकारिता में भी कदम रखा। वे अर्जुन तथा उर्दू में तेज। स्वतन्त्रता आन्दोलन [ ] उन्होने ...

Dayanand Saraswati की Birth anniversary, दयानंद सरस्वती आर्य समाज के संस्थापक

BHOPAL. आर्य समाज के संस्थापक, दार्शनिक और समाज सुधारक स्वामी दयानंद सरस्वती की आज जयंती है। दयानंद सरस्वती का नाम पहले मूलशंकर तिवारी था। उनका जन्म 12 फरवरी 1824 को गुजरात के टंकारा में हुआ था। दयानंद सरस्वती के पिता करशनजी लालजी कपाड़ी धनी व्यक्तियों में से एक थे। इसलिए उनका बचपन विलासिता में बीता। दयानंद जब 8 साल के थे तब उनका यज्ञोपवीत संस्कार किया गया था और वे औपचारिक रूप से ब्राह्मणवाद की दुनिया में शामिल हो गए। दयानंद ने 27 विद्वानों और 12 विशेषज्ञ पंडितों को हराया दयानंद सरस्वती ने 14 साल की उम्र में धार्मिक छंदों का पाठ करना शुरू कर दिया था। वे धार्मिक बहस में भी भाग लेने लगे थे। वाराणसी में 22 अक्टूबर 1869 को दयानंद सरस्वती ने एक धार्मिक बहस के दौरान 27 विद्वानों और 12 विशेषज्ञ पंडितों को हरा दिया था। बहस का विषय था कि क्या वेद देवता पूजा का समर्थन करते हैं। मूर्ति पूजा के विरोधी होने के पीछे बचपन की कहानी स्वामी दयानंद सरस्वती मूर्ति पूजा के विरोधी थे। इसके पीछे उनके बचपन में घटी एक घटना है। एक बार महाशिवरात्रि पर उनके पिता ने उनसे रात्रि उपवास और पूजा करने के लिए कहा। पिता की आज्ञा के अनुसार उन्होंने पूरे दिन उपवास किया और रात्रि जागरण के लिए पालकी लेकर शिव मंदिर में बैठ गए। आधी रात को उन्होंने देखा कि चूहों का झुंड भगवान शिव की मूर्ति को घेरकर प्रसाद खा रहा है। उनके मन में एक सवाल उठा कि ये मूर्ति एक पत्थर है, जो अपनी रक्षा नहीं कर सकती उससे हम क्या उम्मीद कर सकते हैं। इस घटना ने उन पर बहुत प्रभाव डाला और आत्म ज्ञान की प्राप्ति के लिए उन्होंने घर छोड़ दिया। स्वामी विरजानंद के शिष्य बने दयानंद सरस्वती दयानंद सरस्वती जब मथुरा पहुंचे तो उनकी मुलाकात स्वामी विरजान...

जानें आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती जी की जीवनी

जानें, आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती जी की जीवनी भारत की उत्कृष्ट वैदिक संस्कृति एवं सभ्यता की गरिमामयी विरासत मध्यकाल के तमसाच्छन्न युग में लुप्तप्राय हो गई थी। राजनीतिक परतंत्रता तथा पराधीनता के कारण विचलित भारतीय जनमानस को महर्षि दयानंद सरस्वती ने आत्मबोध आत्मगौरव स्वाभिमान एवं स्वाधीनता का मंत्र प्रदान किया। भारत ऋषि-मुनियों की पावन धरा है। इसी पुण्य धरा पर गुजरात के टंकारा प्रांत में फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को वर्ष 1824 ईसवी में स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म हुआ। मूल नक्षत्र में जन्म लेने के कारण इनका नाम मूल शंकर रखा गया। हमारे सनातनी कैलेंडर के अनुसार, 26 फरवरी, शनिवार को इस महामानव की जयंती है। शाश्वत सत्य के अन्वेषण हेतु एवं सत्य व शिव की प्राप्ति हेतु मूल शंकर वर्ष 1846 में 21 वर्ष की आयु में समृद्ध घर-परिवार, मोह ममता के बंधनों को त्याग कर संन्यासी जीवन की ओर बढ़ गए। उन्होंने 1859 में गुरु विरजानंद जी से व्याकरण व योग दर्शन की शिक्षा प्राप्त की। भारत की उत्कृष्ट वैदिक संस्कृति एवं सभ्यता की हजारों वर्षों की गरिमामयी विरासत मध्यकाल के तमसाच्छन्न युग में लुप्तप्राय हो गई थी। राजनीतिक पराधीनता के कारण विचलित, निराश व हताश भारतीय जनमानस को महर्षि दयानंद सरस्वती ने आत्मबोध, आत्मगौरव, स्वाभिमान एवं स्वाधीनता का मंत्र प्रदान किया। स्वामी दयानंद 19वीं सदी के नवजागरण के सूर्य थे, जिन्होंने मध्ययुगीन अंधकार का नाश किया। महर्षि दयानंद के प्रादुर्भाव के समय भारत धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक दृष्टि से अतिजर्जर और छिन्न-भिन्न हो गया था। ऐसे विकट समय में जन्म लेकर महर्षि ने देश के आत्मगौरव के पुनरुत्थान का अभूतपूर्व कार्य किया। लोक कल्याण ...

आर्य समाज के संस्थापक कौन थे

Ans: स्वामी दयानंद सरस्वती स्वामी दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना की। आर्य समाज की स्थापना स्वामी दयानंद सरस्वती ने 1875 में की थी। उन्होंने वेदों का अनुवाद किया और सत्यार्थ प्रकाश, वेद भाष्य भूमिका और वेद भाष्य नामक तीन पुस्तकें लिखीं। उन्होंने “वेदों की ओर लौट चलो” का नारा दिया। दयानंद आंग्ल वैदिक (D.A.V) स्कूल उनके दर्शन और शिक्षाओं के आधार पर स्थापित किए गए थे।

आर्य समाज

आर्य समाज सन २००० में आर्यसमाज को समर्पित एक डाकटिकट सिद्धांत "कृण्वन्तो विश्वमार्यम्" (विश्व को आर्य (श्रेष्ठ) बनाते चलो।) स्थापना 10अप्रैल 1875 ; 148 वर्ष पहले ( 1875-04-10) संस्थापक प्रकार वैधानिक स्थिति न्यास (Foundation) उद्देश्य शैक्षिक, धार्मिक शिक्षा, अध्यात्म, समाज सुधार मुख्यालय निर्देशांक 26°27′00″N 74°38′24″E / 26.4499°N 74.6399°E / 26.4499; 74.6399 26°27′00″N 74°38′24″E / 26.4499°N 74.6399°E / 26.4499; 74.6399 अनुक्रम • 1 इतिहास • 2 सिद्धान्त • 2.1 मान्यताएँ • 3 आर्य समाज के दस नियम • 4 आर्यसमाज का योगदान • 5 आर्य समाज और भारत का नवजागरण • 5.1 भारतीय स्वतंत्रता का सशस्त्र आन्दोलन • 5.2 समाज सुधार • 5.3 शिक्षा का प्रसार • 5.4 हिन्दी-सेवा • 5.5 विद्वानों की पूर्ति • 6 सन्दर्भ • 7 इन्हें भी देखें • 8 वाह्य सम्पर्क सूत्र इतिहास 10 अप्रैल सन् 1875 ई. (चैत्र शुक्ला 5 शनिवार सम्वत् 1932 विक्रमी) को स्वामी दयानन्द ने 31 दिसम्बर 1874 से 10 जनवरी 1875 तक "स्वामीजी ने यह प्रस्ताव किया कि राजकोट में आर्यसमाज स्थापित किया जाए और आर्यसमाज के नियमों के विषय में इस जीवन-चरित में लिखा है कि- "स्वामीजी ने आर्यसमाज के नियम बनाये, जो मुद्रित कर लिये गये। इनकी 300 प्रतियां तो स्वामीजी ने इसके बाद 10 अप्रैल, सन् 1875 को आर्यसमाज की स्थापना हुई। इससे सम्बन्धित विवरण "स्वामीजी के गुजरात की ओर चले जाने से आर्यसमाज की स्थापना का विचार जो बम्बई वालों के मन में उत्पन्न हुआ था, वह ढीला हो गया था। परन्तु स्वामी जी के पुनः आने से फिर बढ़ने लगा और अन्ततः यहां तक बढ़ा कि कुछ सज्जनों ने दृढ़ संकल्प कर लिया कि चाहे कुछ भी हो, बिना (आर्यसमाज) स्थापित किए हम नहीं रहेंगे। स्वामीजी के लौटकर आते ही ...