आर्यभट्ट का चित्र

  1. आर्यभट्ट की संख्यापद्धति
  2. आर्यभट्ट पर निबंध (Essay on Aryabhatta in Hindi) – HistoryDekho.com
  3. आर्यभट्ट का जीवन परिचय 2023
  4. आर्यभट्ट का जीवन परिचय
  5. आर्यभट्ट: भारत का पहला उपग्रह — Google Arts & Culture
  6. आर्यभट्ट
  7. आर्यभट्ट का जीवन परिचय
  8. आर्यभट्ट का जीवन परिचय 2023
  9. आर्यभट्ट की संख्यापद्धति
  10. आर्यभट्ट पर निबंध (Essay on Aryabhatta in Hindi) – HistoryDekho.com


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आर्यभट्ट की संख्यापद्धति

आर्यभट को अपना ग्रंथ पद्य में लिखना था, गणित व ज्योतिष के विषयों को श्लोकबद्ध करना था। प्रचलित शब्दांकों से आर्यभट का काम नहीं चल सकता था, इसलिए उन्होंने संस्कृत वर्णमाला का उपयोग करके एक नई वर्णांक या अक्षरांक पद्धति को जन्म दिया। संस्कृत व्याकरण के विशिष्ट शब्दों का उपयोग करके आर्यभट ने अपनी नई अक्षरांक-पद्धति के सारे नियम एक श्लोक में भर दिए। ग्रंथ के आरंभ में ही अपनी नई अक्षरांक पद्धति को प्रस्तुत कर देने के बाद आर्यभट अब बड़ी-बड़ी संख्याओं को अत्यंत संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत रूप में रखने में समर्थ थे। उन्होंने शब्दांकों का भी काफी प्रयोग किया है। वह अद्भुत श्लोक है- वर्गाक्षराणि वर्गेऽवर्गेऽवर्गाक्षराणि कात् ङ्गौ यः । खद्विनवके स्वरा नव वर्गेऽवर्गे नवान्त्यवर्गे वा ॥ (आर्यभटीय गीतिकापाद २) अर्थात् क से प्रारंभ करके वर्ग अक्षरों को वर्ग स्थानों में और अवर्ग अक्षरों को अवर्ग स्थानों में (व्यवहार करना चाहिए), (इस प्रकार) ङ और म का जोड़ य (होता है)। वर्ग और अवर्ग स्थानों के नव के दूने शून्यों को नव स्वर व्यक्त करते हैं। नव वर्ग स्थानों और नव अवर्ग स्थानों के पश्चात् (अर्थात् इनसे अधिक स्थानों के उपयोग की आवश्यकता होने पर) इन्हीं नव स्वरों का उपयोग करना चाहिए। 'आर्यभटीय' के भाष्यकार परमेश्वर कहते हैं- 'केनचिदनुस्वारादिविशेषण संयुक्ताः प्रयोज्या इत्यर्थः' अर्थात् किसी अनुस्वार आदि विशेषणों का उपयोग (स्वरों में) करना चाहिए। संस्कृत वर्णमाला में क से म तक पच्चीस वर्ग अक्षर हैं और य से ह तक आठ अवर्ग अक्षर हैं। संख्याओं के लिखने में दाहिनी ओर से पहला, तीसरा, पाँचवाँ अर्थात् विषम स्थान और दूसरा, चौथा, छठा आदि सम स्थान अवर्ग स्थान है। क से म तक 25 अक्षर हैं। आर्यभट ने इन्हें 1 स...

आर्यभट्ट पर निबंध (Essay on Aryabhatta in Hindi) – HistoryDekho.com

प्रस्तावना आर्यभट्ट वह व्यक्ति थे, जिन्होंने इस दुनिया में पहली बार शून्य का आविष्कार किया था। जिसका आज हम इस दुनिया में एक संख्या के रूप में उपयोग करते है। वह एक प्रसिद्ध और पहले भारतीय गणितज्ञ और खगोलशास्त्री थे। आर्यभट्ट जी ने गणित क्षेत्र में कई सारे बड़े बड़े आविष्कार किये थे। जैसे की त्रिकोणमितीय फलन, स्थानीय मान प्रणाली, बीजगणितीय सर्वसमिकाओं की खोज और ‘पाई’ का मूल्य जैसे कई सारे खोज। उस समय सभी धार्मिक रूढ़ियों और सामाजिक कलंक को तोड़ते हुए, आर्यभट्ट जी सभी कठिनाइयों से ऊपर उठकर भारत के पहले गणितज्ञ और वैज्ञानिक बने और आधुनिक विज्ञान और गणित के सिद्धांतों को जन्म दिया जो आज हम जानते हैं। आर्यभट्ट जी का जन्म और जन्मस्थान अपने भारत देश के इस महान व्यक्ति का जन्म ४७५ ईस्वी में हुआ था। लेकिन इनके जन्मस्थान के बारेमें कोई भी सटीक जानकारी नहीं है। परंतु कुछ मान्यताओं के अनुसार ऐसा कहा गया है की, आर्यभट्ट जी आज के पटना के कुसुमपुरा नामक एक जगह के मूल निवासी थे। आर्यभट्ट जी के आविष्कार आर्यभट्ट भारत के पहले गणितज्ञ, खगोलशास्त्री और वैज्ञानिक थे जिन्होंने संख्या शून्य, स्थान मान प्रणाली, बीजगणितीय पहचान, त्रिकोणमितीय कार्य, पाई का मान, सौर मंडल के ग्रह का आकार, रोटेशन और क्रांति की संपूर्ण अवधारणा की खोज की थी। विज्ञान और गणित के क्षेत्र में आर्यभट्ट का योगदान अपार है। उनकी खोजों और आविष्कारों के कारण, भौतिकी से लेकर चिकित्सा तक इंजीनियरिंग में विभिन्न अन्य क्षेत्रों में बहुत सी अन्य खोजों को जन्म दिया गया है। आज का वैज्ञानिक समुदाय आर्यभट्ट के हजारों साल पहले के आविष्कारों के लिए हमेशा आभारी है। आर्यभट्ट के आविष्कार हजारों साल पहले भारतीय समाज की बौद्धिक प्रतिभा और उन्नत सोच...

आर्यभट्ट का जीवन परिचय 2023

Aryabhatta biography in Hindi: आर्यभट्ट भारत के पहले महान गणितज्ञ तथा खगोल विज्ञानी थे। उनका जन्म आज से लगभग 1600 वर्ष पहले हुआ था। उस समय में भारत एक स्वतंत्र देश नहीं था। तब राजाओं का शासन हुआ करता था। आर्यभट्ट ने अपनी मेहनत से गणित और खगोल विज्ञान के कई सिद्धांतों का प्रतिपादन किया। वे राजाओं के शासन के उथल-पुथल, युद्ध, व अनिश्चित शासन से प्रभावित नहीं हुए तथा अपने कार्य को जारी रखा। प्राचीन भारत में उनके जैसा महान वैज्ञानिक कोई नहीं हुआ था। 12 वीं शताब्दी में जन्मे Table of Contents • • • • • • • • • • • • • • आर्यभट्ट का परिचय (Introduction to Aryabhatta) नाम आर्यभट्ट जन्म 476 ईस्वी, पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना, भारत) माता अज्ञात पिता अज्ञात रचनाएं आर्यभटीय, आर्य-सिद्धांत खोज कार्य शून्य, पाई का मान, ग्रहों की गति व ग्रहण, बीजगणित, अनिश्चित समीकरणों के हल, अंकगणित व अन्य कार्य क्षेत्र गणित और खगोल विज्ञान काल गुप्त काल उम्र 74 वर्ष मृत्यु 550 ईस्वी, प्राचीन भारत आर्यभट्ट का जन्म 476 ईस्वी को पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना, बिहार) में हुआ था। उन्होंने आर्यभटीय किताब की रचना की थी जिसमें उन्होंने बताया है कि वे पाटलिपुत्र के निवासी हैं। तथा जब वह 23 साल के थे तब कलयुग के 3600 साल निकल चुके थे, जिससे पता चलता है कि वह समय 449 ईस्वी था जब उन्होंने उस किताब की रचना की थी। 23 साल पहले यानी 476 ईस्वी को उनका जन्म हुआ था। ऐसा माना जाता है कि आर्यभट्ट की शिक्षा पाटलिपुत्र में हुई थी तथा वे वहीं पर रहते थे। बाद में वे पाटलिपुत्र के एक शिक्षण संस्थान के मुख्य अध्यक्ष भी रहे थे। कुछ इतिहासकार यह भी मानते हैं कि वह नालंदा विश्वविद्यालय के भी अध्यक्ष रहे थे। उन्होंने तारेगना (वर्तमान पटना क...

आर्यभट्ट का जीवन परिचय

आर्यभट्ट प्राचीन भारत के सबसे महान गणितज्ञ, ज्योतिषविद एवं खगोलशास्त्री थे. विज्ञान और गणित के क्षेत्र में उनका योगदान अतुलनीय है. उनके द्वारा की गयी खोज आधुनिक युग के वैज्ञानिकों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत हैं. पुरे विश्व में ‘कॉपरनिकस’ से लगभग 1 हज़ार साल पहले ही आर्यभट्ट ने यह खोज कर ली थी कि पृथ्वी गोल है और वह सूर्य के चारो ओर चक्कर लगाती हैं. बिंदु(Points) जानकारी (Information) नाम (Name) आर्यभट्ट जन्म (Birth) दिसंबर, ई.स.476 मृत्यु (Death) दिसंबर, ई.स. 550 [74 वर्ष ] जन्म स्थान (Birth Place) अश्मक, महाराष्ट्र, भारत कार्यक्षेत्र (Profession) गणितज्ञ, ज्योतिषविद एवं खगोलशास्त्री कार्यस्थल (Work Place) नालंदा विश्वविद्यालय रचनायें (Compositions) आर्यभटीय, आर्यभट्ट सिद्धांत योगदान (Contribution) पाई एवं शून्य की खोज आर्यभट्ट का जन्म और शिक्षा (Aryabhatta Birth and Education) आर्यभट्ट के जन्म का वर्ष तो सत्यापित हैं परन्तु उनके जन्म स्थान को लेकर इतिहासकारों की आज भी अलग अलग मत हैं. इनके जन्म स्थान के कोई प्रमाणिक प्रमाण मौजूद नहीं हैं. आर्यभट्ट का जन्म ई.स. 476 व शक संवत् 398 में अश्मक, महाराष्ट्र में हुआ था. परन्तु कुछ इतिहासकारों के अनुसार आर्यभट्ट का जन्म बिहार के पटना में हुआ था. प्राचीन समय में पटना का नाम पाटलीपुत्र था. यहाँ के कुसुमपुर में इनका जन्म स्थान माना जाता हैं. इतिहासकारों के अनुसार आर्यभट्ट के समय उच्च शिक्षा हेतु प्रसिद्ध विश्वविद्यालय कुसुमपुर में स्थित था. इसलिये उन्होंने शिक्षा वहीँ से ग्रहण की थी. परन्तु इस बात के प्रामाणिक और ठोस प्रमाण मौजूद नहीं हैं. आर्यभट्ट की रचनाएं (ग्रंथ) आर्यभट्ट ने कई ग्रंथों की रचना की लेकिन वर्तमान समय में उनकी चार पुस्तक...

आर्यभट्ट: भारत का पहला उपग्रह — Google Arts & Culture

उस लॉन्चिंग के साथ, भारत दुनिया का 11वां ऐसा देश बन गया जिसने किसी उपग्रह को ऑर्बिट यानी कक्षा में भेजा हो. सबसे अहम बात यह है कि ऑर्यभट्ट ने वह नींव तैयार की जिस पर आगे चलकर भारत ने अपने प्रभावशाली अंतरिक्ष कार्यक्रम को खड़ा किया. आज, भारत उन चंद देशों में शामिल है जो चंद्रमा पर कोई प्रोब (उपग्रह) भेजने में कामयाब रहे हैं. भारत उन चार देशों में से भी एक है जो किसी उपग्रह को अंतरग्रहीय कक्षा में पहुंचाने में सफल रहे हैं. 1971 में, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भारतीय राजदूत के ज़रिए रूस से एक संदेश मिला. संदेश में उनसे कहा गया था कि सोवियत अकेडमी ऑफ़ साइंसेज़, भारत के पहले उपग्रह को लॉन्च करने में मदद के लिए तैयार है. इसमें कोई शक नहीं कि रूस, भारत और अमेरिका के बीच साझेदारी की संभावना से चिंता में पड़ गया था. अंत में, भारत ने रूस की पेशकश को स्वीकार करने और आर्यभट्ट को सोवियत संघ की मदद से लॉन्च करने का फ़ैसला किया. हालांकि, लॉन्च की तारीख तय होने से पहले ही, इसरो के संस्थापक, विक्रम साराभाई का निधन हो गया. उनके निधन से पूरा भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम ठप पड़ गया और उपग्रह प्रोजेक्ट को लेकर चिंता बढ़ने लगी. इस मुश्किल घड़ी में, डॉ राव और उनकी टीम ने अपना हौसला बनाए रखा और हर चुनौती को पीछे छोड़ते हुए प्रोजेक्ट को पूरा किया. आखिरकार, उपग्रह के लॉन्च की तारीख तय हो गई. अब तक उपग्रह का कोई नाम तय नहीं हुआ था. वैज्ञानिकों की टीम ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का रुख किया और उनसे अनुरोध किया कि वे इस उपग्रह को कोई नाम दें. उन्होंने इसे ‘‘आर्यभट्ट” नाम दिया, जो पांचवीं सदी (कॉमन ऐरा) के महान गणितज्ञ और खगोल विज्ञानी थे. वे दूसरी कई खोजों के साथ-साथ, ध्वन्यात्मक संख...

आर्यभट्ट

Rate this post . aryabhatta गणित के क्षेत्र में जहां भारत ने संसार को एक से नौ तक की संख्याओं के प्रणाली दी, वहीं उसने दशमलव का आविष्कार कर इस क्षेत्र में एक व्यापक क्रांति ला दी । इस आविष्कार से संसार का बहुत बड़ा उपकार हुआ। दशमलव के आविष्कार का श्रेय जिस को जाता है, उसका नाम आर्यभट्ट था। आर्यभट्ट से पूर्व वैदिक काल से ही ज्योतिष और गणित की ओर इस देश के पंडितों ध्यान जाता रहा है। और समय-समय पर इन दोनों क्षेत्रों में उन्होंने व्यापक आविष्कार किए। ऋग्वेद में इस बात के बहुत से संकेत मिलते हैं कि उस युग में भी भारतीय आर्य गणित और ज्योतिष में कितने आगे बढ़ गये थे। वे लोग दिन, रात, ऋतु आदि संवत्सर का कारण सूर्य को ही समझते थे उन्हें यह भी मालूम था कि सूर्य के प्रकाश से ही चंद्रमा का प्रकाश होता है। सूर्य के अयन-चलन निरीक्षण से उन्हें यह मालूम हो जाता था कि कब बसंत आएगा और कब शरद् ऋतु का आरम्भ होगा। कुछ पश्चिमी विद्वानों का तो यहां तक कहना है कि उन्हें पृथ्वी की धुरी का भी ज्ञान था। यजर्वेद, ब्राह्मण-ग्रन्थों और उपनिषदों के काल में ज्योतिष और गणित क्रमश: ‘नक्षत्र विद्या’, ‘राशि विद्या’ और ‘शुल्ब विद्या’ रेखा गणित के नाम से प्रसिद्ध हुए और वेदों के आचार्यों के लिए इन विद्याओं का ज्ञान आवश्यक हो गया था। सूत्रकाल में तो गणित और ज्योतिष को वेदों का अंग माना जाने लगा और उस समय से ये शास्त्र के नाम से प्रसिद्ध हो गए, जिस का अर्थ है वेदों का एक अंग। शुक्ल यजुर्वेद में ‘नक्षत्र-दश’, ‘गणक’ आदि शब्द तो मिलते हैं, किन्तु उस काल के गणितज्ञों और ज्योतिषियों के नाम लुप्त हो गए हैं। इस युग में केवल गर्ग का नाम ही हमें मिलता है, जो ‘गर्ग संहिता’ के रचयिता माने जाते हैं। लेकिन उनके नाम से प्रसिद...

आर्यभट्ट का जीवन परिचय

आर्यभट्ट प्राचीन भारत के सबसे महान गणितज्ञ, ज्योतिषविद एवं खगोलशास्त्री थे. विज्ञान और गणित के क्षेत्र में उनका योगदान अतुलनीय है. उनके द्वारा की गयी खोज आधुनिक युग के वैज्ञानिकों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत हैं. पुरे विश्व में ‘कॉपरनिकस’ से लगभग 1 हज़ार साल पहले ही आर्यभट्ट ने यह खोज कर ली थी कि पृथ्वी गोल है और वह सूर्य के चारो ओर चक्कर लगाती हैं. बिंदु(Points) जानकारी (Information) नाम (Name) आर्यभट्ट जन्म (Birth) दिसंबर, ई.स.476 मृत्यु (Death) दिसंबर, ई.स. 550 [74 वर्ष ] जन्म स्थान (Birth Place) अश्मक, महाराष्ट्र, भारत कार्यक्षेत्र (Profession) गणितज्ञ, ज्योतिषविद एवं खगोलशास्त्री कार्यस्थल (Work Place) नालंदा विश्वविद्यालय रचनायें (Compositions) आर्यभटीय, आर्यभट्ट सिद्धांत योगदान (Contribution) पाई एवं शून्य की खोज आर्यभट्ट का जन्म और शिक्षा (Aryabhatta Birth and Education) आर्यभट्ट के जन्म का वर्ष तो सत्यापित हैं परन्तु उनके जन्म स्थान को लेकर इतिहासकारों की आज भी अलग अलग मत हैं. इनके जन्म स्थान के कोई प्रमाणिक प्रमाण मौजूद नहीं हैं. आर्यभट्ट का जन्म ई.स. 476 व शक संवत् 398 में अश्मक, महाराष्ट्र में हुआ था. परन्तु कुछ इतिहासकारों के अनुसार आर्यभट्ट का जन्म बिहार के पटना में हुआ था. प्राचीन समय में पटना का नाम पाटलीपुत्र था. यहाँ के कुसुमपुर में इनका जन्म स्थान माना जाता हैं. इतिहासकारों के अनुसार आर्यभट्ट के समय उच्च शिक्षा हेतु प्रसिद्ध विश्वविद्यालय कुसुमपुर में स्थित था. इसलिये उन्होंने शिक्षा वहीँ से ग्रहण की थी. परन्तु इस बात के प्रामाणिक और ठोस प्रमाण मौजूद नहीं हैं. आर्यभट्ट की रचनाएं (ग्रंथ) आर्यभट्ट ने कई ग्रंथों की रचना की लेकिन वर्तमान समय में उनकी चार पुस्तक...

आर्यभट्ट का जीवन परिचय 2023

Aryabhatta biography in Hindi: आर्यभट्ट भारत के पहले महान गणितज्ञ तथा खगोल विज्ञानी थे। उनका जन्म आज से लगभग 1600 वर्ष पहले हुआ था। उस समय में भारत एक स्वतंत्र देश नहीं था। तब राजाओं का शासन हुआ करता था। आर्यभट्ट ने अपनी मेहनत से गणित और खगोल विज्ञान के कई सिद्धांतों का प्रतिपादन किया। वे राजाओं के शासन के उथल-पुथल, युद्ध, व अनिश्चित शासन से प्रभावित नहीं हुए तथा अपने कार्य को जारी रखा। प्राचीन भारत में उनके जैसा महान वैज्ञानिक कोई नहीं हुआ था। 12 वीं शताब्दी में जन्मे Table of Contents • • • • • • • • • • • • • • आर्यभट्ट का परिचय (Introduction to Aryabhatta) नाम आर्यभट्ट जन्म 476 ईस्वी, पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना, भारत) माता अज्ञात पिता अज्ञात रचनाएं आर्यभटीय, आर्य-सिद्धांत खोज कार्य शून्य, पाई का मान, ग्रहों की गति व ग्रहण, बीजगणित, अनिश्चित समीकरणों के हल, अंकगणित व अन्य कार्य क्षेत्र गणित और खगोल विज्ञान काल गुप्त काल उम्र 74 वर्ष मृत्यु 550 ईस्वी, प्राचीन भारत आर्यभट्ट का जन्म 476 ईस्वी को पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना, बिहार) में हुआ था। उन्होंने आर्यभटीय किताब की रचना की थी जिसमें उन्होंने बताया है कि वे पाटलिपुत्र के निवासी हैं। तथा जब वह 23 साल के थे तब कलयुग के 3600 साल निकल चुके थे, जिससे पता चलता है कि वह समय 449 ईस्वी था जब उन्होंने उस किताब की रचना की थी। 23 साल पहले यानी 476 ईस्वी को उनका जन्म हुआ था। ऐसा माना जाता है कि आर्यभट्ट की शिक्षा पाटलिपुत्र में हुई थी तथा वे वहीं पर रहते थे। बाद में वे पाटलिपुत्र के एक शिक्षण संस्थान के मुख्य अध्यक्ष भी रहे थे। कुछ इतिहासकार यह भी मानते हैं कि वह नालंदा विश्वविद्यालय के भी अध्यक्ष रहे थे। उन्होंने तारेगना (वर्तमान पटना क...

आर्यभट्ट की संख्यापद्धति

आर्यभट को अपना ग्रंथ पद्य में लिखना था, गणित व ज्योतिष के विषयों को श्लोकबद्ध करना था। प्रचलित शब्दांकों से आर्यभट का काम नहीं चल सकता था, इसलिए उन्होंने संस्कृत वर्णमाला का उपयोग करके एक नई वर्णांक या अक्षरांक पद्धति को जन्म दिया। संस्कृत व्याकरण के विशिष्ट शब्दों का उपयोग करके आर्यभट ने अपनी नई अक्षरांक-पद्धति के सारे नियम एक श्लोक में भर दिए। ग्रंथ के आरंभ में ही अपनी नई अक्षरांक पद्धति को प्रस्तुत कर देने के बाद आर्यभट अब बड़ी-बड़ी संख्याओं को अत्यंत संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत रूप में रखने में समर्थ थे। उन्होंने शब्दांकों का भी काफी प्रयोग किया है। वह अद्भुत श्लोक है- वर्गाक्षराणि वर्गेऽवर्गेऽवर्गाक्षराणि कात् ङ्गौ यः । खद्विनवके स्वरा नव वर्गेऽवर्गे नवान्त्यवर्गे वा ॥ (आर्यभटीय गीतिकापाद २) अर्थात् क से प्रारंभ करके वर्ग अक्षरों को वर्ग स्थानों में और अवर्ग अक्षरों को अवर्ग स्थानों में (व्यवहार करना चाहिए), (इस प्रकार) ङ और म का जोड़ य (होता है)। वर्ग और अवर्ग स्थानों के नव के दूने शून्यों को नव स्वर व्यक्त करते हैं। नव वर्ग स्थानों और नव अवर्ग स्थानों के पश्चात् (अर्थात् इनसे अधिक स्थानों के उपयोग की आवश्यकता होने पर) इन्हीं नव स्वरों का उपयोग करना चाहिए। 'आर्यभटीय' के भाष्यकार परमेश्वर कहते हैं- 'केनचिदनुस्वारादिविशेषण संयुक्ताः प्रयोज्या इत्यर्थः' अर्थात् किसी अनुस्वार आदि विशेषणों का उपयोग (स्वरों में) करना चाहिए। संस्कृत वर्णमाला में क से म तक पच्चीस वर्ग अक्षर हैं और य से ह तक आठ अवर्ग अक्षर हैं। संख्याओं के लिखने में दाहिनी ओर से पहला, तीसरा, पाँचवाँ अर्थात् विषम स्थान और दूसरा, चौथा, छठा आदि सम स्थान अवर्ग स्थान है। क से म तक 25 अक्षर हैं। आर्यभट ने इन्हें 1 स...

आर्यभट्ट पर निबंध (Essay on Aryabhatta in Hindi) – HistoryDekho.com

प्रस्तावना आर्यभट्ट वह व्यक्ति थे, जिन्होंने इस दुनिया में पहली बार शून्य का आविष्कार किया था। जिसका आज हम इस दुनिया में एक संख्या के रूप में उपयोग करते है। वह एक प्रसिद्ध और पहले भारतीय गणितज्ञ और खगोलशास्त्री थे। आर्यभट्ट जी ने गणित क्षेत्र में कई सारे बड़े बड़े आविष्कार किये थे। जैसे की त्रिकोणमितीय फलन, स्थानीय मान प्रणाली, बीजगणितीय सर्वसमिकाओं की खोज और ‘पाई’ का मूल्य जैसे कई सारे खोज। उस समय सभी धार्मिक रूढ़ियों और सामाजिक कलंक को तोड़ते हुए, आर्यभट्ट जी सभी कठिनाइयों से ऊपर उठकर भारत के पहले गणितज्ञ और वैज्ञानिक बने और आधुनिक विज्ञान और गणित के सिद्धांतों को जन्म दिया जो आज हम जानते हैं। आर्यभट्ट जी का जन्म और जन्मस्थान अपने भारत देश के इस महान व्यक्ति का जन्म ४७५ ईस्वी में हुआ था। लेकिन इनके जन्मस्थान के बारेमें कोई भी सटीक जानकारी नहीं है। परंतु कुछ मान्यताओं के अनुसार ऐसा कहा गया है की, आर्यभट्ट जी आज के पटना के कुसुमपुरा नामक एक जगह के मूल निवासी थे। आर्यभट्ट जी के आविष्कार आर्यभट्ट भारत के पहले गणितज्ञ, खगोलशास्त्री और वैज्ञानिक थे जिन्होंने संख्या शून्य, स्थान मान प्रणाली, बीजगणितीय पहचान, त्रिकोणमितीय कार्य, पाई का मान, सौर मंडल के ग्रह का आकार, रोटेशन और क्रांति की संपूर्ण अवधारणा की खोज की थी। विज्ञान और गणित के क्षेत्र में आर्यभट्ट का योगदान अपार है। उनकी खोजों और आविष्कारों के कारण, भौतिकी से लेकर चिकित्सा तक इंजीनियरिंग में विभिन्न अन्य क्षेत्रों में बहुत सी अन्य खोजों को जन्म दिया गया है। आज का वैज्ञानिक समुदाय आर्यभट्ट के हजारों साल पहले के आविष्कारों के लिए हमेशा आभारी है। आर्यभट्ट के आविष्कार हजारों साल पहले भारतीय समाज की बौद्धिक प्रतिभा और उन्नत सोच...