आर्यभट्ट की जीवनी

  1. आर्यभट जीवनी
  2. आर्यभट्ट की जीवनी Aryabhatta biography in hindi
  3. Biography of aryabhatta
  4. गुप्त साम्राज्य इतिहास और रोचक तथ्य
  5. आर्यभट्ट महान गणितज्ञ जीवनी
  6. आर्यभट्ट महान गणितज्ञ जीवनी
  7. आर्यभट जीवनी
  8. आर्यभट्ट की जीवनी Aryabhatta biography in hindi
  9. Biography of aryabhatta
  10. गुप्त साम्राज्य इतिहास और रोचक तथ्य


Download: आर्यभट्ट की जीवनी
Size: 8.31 MB

आर्यभट जीवनी

आर्यभट (४७६-५५०) प्राचीन भारत के एक महान ज्योतिषविद् और गणितज्ञ थे। इन्होंने आर्यभटीय ग्रंथ की रचना की जिसमें ज्योतिषशास्त्र के अनेक सिद्धांतों का प्रतिपादन है। इसी ग्रंथ में इन्होंने अपना जन्मस्थान कुसुमपुर और जन्मकाल शक संवत् 398 लिखा है। बिहार में वर्तमान पटना का प्राचीन नाम कुसुमपुर था लेकिन आर्यभट का कुसुमपुर दक्षिण में था, यह अब लगभग सिद्ध हो चुका है। एक अन्य मान्यता के अनुसार उनका जन्म महाराष्ट्र के अश्मक देश में हुआ था। उनके वैज्ञानिक कार्यों का समादर राजधानी में ही हो सकता था। अतः उन्होंने लम्बी यात्रा करके आधुनिक पटना के समीप कुसुमपुर में अवस्थित होकर राजसान्निध्य में अपनी रचनाएँ पूर्ण की। आरंभिक जीवन : यद्यपि आर्यभट के जन्म के वर्ष का आर्यभटीय में स्पष्ट उल्लेख है, उनके जन्म के वास्तविक स्थान के बारे में विवाद है। कुछ मानते हैं कि वे नर्मदा और गोदावरी के मध्य स्थित क्षेत्र में पैदा हुए थे, जिसे अश्माका के रूप में जाना जाता था और वे अश्माका की पहचान मध्य भारत से करते हैं जिसमे महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश शामिल है, हालाँकि आरंभिक बौद्ध ग्रन्थ अश्माका को दक्षिण में, दक्षिणापथ या दक्खन के रूप में वर्णित करते हैं, जबकि अन्य ग्रन्थ वर्णित करते हैं कि अश्माका के लोग अलेक्जेंडर से लड़े होंगे, इस हिसाब से अश्माका को उत्तर की तरफ और आगे होना चाहिए. आर्यभट्ट ने अपने ग्रन्थ ‘आर्यभटिया’ में अपना जन्मस्थान कुसुमपुर और जन्मकाल शक संवत् 398 (476) लिखा है। इस जानकारी से उनके जन्म का साल तो निर्विवादित है परन्तु वास्तविक जन्मस्थान के बारे में विवाद है। कुछ स्रोतों के अनुसार आर्यभट्ट का जन्म महाराष्ट्र के अश्मक प्रदेश में हुआ था और ये बात भी तय है की अपने जीवन के किसी काल में वे उच्...

आर्यभट्ट की जीवनी Aryabhatta biography in hindi

Aryabhatta biography in hindi aryabhatta history in hindi language-दोस्तों आज हम आपको देश के ही नहीं बल्कि दुनिया के ऐसे महान गणितज्ञ एवं वैज्ञानिक के बारे में बताने वाले हैं जिन्होंने हम सबके लिए बहुत सारी खोजे की हैं वो भारत के पहले वैज्ञानिक माने जा सकते है. इन्होंने जीरो की खोज की और गणित के सवालों को हल करने में हमारी मदद की.वास्तव में आर्यभट हमारी इस पूरी दुनिया के लिए एक चमकते सूरज की तरह थे जिन्होंने बहुत कुछ उजाला कर दिया था तो चलिए पढ़ते हैं आर्यभट्ट के जीवन के बारे में शुरू से Aryabhatta biography in hindi image source- आर्यभट्ट के जन्म के बारे में अलग-अलग मत हैं कुछ लोगो का मानना है की इनका जन्म भारत के कुसुमपुर में हुआ था आर्यभट ने अपना पूरा जीवन शोध कार्यों में निछावर कर दिया था उन्होंने कई ग्रंथो की रचना की लेकिन बहुत सी रचनाएं इनकी ऐसी भी हैं जो लुप्त हो गई हैं इनकी रचना जो अभी ज्ञात है उनमे आर्यभटीय सबसे महत्वपूर्ण रचना है जिसमें उन्होंने अंक गणित और बीजगणित का विस्तारपूर्वक वर्णन किया है.इन्होंने अपनी उच्च शिक्षा कुसुमपुर से ही की थी जहां पर एक विश्वविद्यालय भी है. आर्यभट जैसे महान वैज्ञानिक ने चंद्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण पर भी कई बातें बताई. उन्होंने बताया की चंद्र और सूर्य ग्रहण कब पड़ने वाला है उसका समय निकालने का फार्मूला भी हमें दिया और ऐसी कई रचनाएं कि जो वास्तव में प्रशंसनीय है उस समय यह माना जाता था कि पृथ्वी इस ब्रम्हांड के बीच में है लेकिन आर्यभट ने साबित किया कि सौरमंडल के केंद्र में सूर्य है और सभी ग्रह सूर्य की परिक्रमा कर रहे हैं पृथ्वी भी सूर्य की परिक्रमा कर रही है. आर्यभट्ट ने अपने जीवन में पाई की खोज की इन्होने पाई की वेल्यु 4 अंको तक सही...

Biography of aryabhatta

आर्यभट्ट का नाम हमारे भारत के इतिहास किर्ति को स्थापित करने में एक अमूल्य भूमिका निभाता है आर्यभट्ट एक महान गणितज्ञ, ज्योतिशविद और खगोलशास्त्री थे, जिनहोने अपने ज्ञान के आधार पर बताया की पृथ्वी 365 दिन 6 घंटे और 12 मिनट और 30 सेकंड में सूर्य का एक चक्कर लगती है तो चलिये जानते है आर्यभट्ट के बारे में। आर्यभट्ट का जन्म कब हुआ आर्यभट्ट के जन्म के बारे में वैसे तो इतिहासकारों के अलग अलग मत है परंतु समान्यतः यह माना जाता है की आर्यभट्ट का जन्म 476 ईसा पूर्व मे बिहार पटना के कुसुमपुर में हुआ एक अन्य मत यह है की आर्यभट्ट का जन्म महराष्ट्र के अश्मक स्थान में हुआ और उन्होने अपनी शिक्षा के लिए बिहार के कुसुमपुर में आए जो वर्तमान मे पटना के नाम से जाना जाता है, और आर्यभट्ट ने अपनी शिक्षा कुसुमपुर बिहार से ही प्राप्त की। आर्यभट्ट के कार्य एवं रचनाएँ आर्यभट्ट ने अनेक क्षेत्रो मे अपना योगदान दिया है जैसे- गणित, खगोलविज्ञान, ज्योतिषशास्त्र, कृतिया, पाई एवं शून्य की खोज आदि तो चलिये एक एक करके आर्यभट्ट के योगदान के बारे में जानते है- आर्यभट्ट का सिद्धांत आर्यभट्ट की इस रचना में निम्नलिखित खगोलीय यंत्रो और उपकारणों का उल्लेख मिलता हैं. • छाया यन्त्र (Shadow Instrument) • कोण मापी उपकरण (Angle Measuring Device) • धनुर यंत्र / चक्र यंत्र (Semi Circular/Circular Instrument) • शंकु यन्त्र (Gnomon) • छत्र यन्त्र (Umbrella Shaped Device) • जल घडी (Water Clock) • बेलनाकार यस्ती यन्त्र (Cylindrical Stick) गणित में योगदान आर्यभट्ट ने पाई एवं शून्य की खोज की इस बात का साक्ष्य उनकी रचनाओं आर्यभट्टिका के गणितपद 10 मे मिलता है आर्यभट्ट ने स्थान मूल्य प्रणाली पर कार्य किया, जिसमें संख्याओं को चिन्हित कर...

गुप्त साम्राज्य इतिहास और रोचक तथ्य

Gupta Empire in Hindi/ गुप्त राजवंश या गुप्त वंश प्राचीन भारत के प्रमुख राजवंशों में से एक था। इसे भारत का एक स्वर्ण युग माना जाता है। गुप्त वंश 275 ई. के आसपास अस्तित्व में आया। इसकी स्थापना श्रीगुप्त ने की थी। लगभग 510 ई. तक यह वंश शासन में रहा। आरम्भ में इनका शासन केवल मगध पर था, पर बाद में गुप्त वंश के राजाओं ने संपूर्ण उत्तर भारत को अपने अधीन करके दक्षिण में कांजीवरम के राजा से भी अपनी अधीनता स्वीकार कराई। इस वंश में अनेक प्रतापी राजा हुए। कालिदास के संरक्षक सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय (380-415 ई.) इसी वंश के थे। यही ‘विक्रमादित्य’ और ‘शकारि’ नाम से भी प्रसिद्ध हैं। नृसिंहगुप्त बालादित्य (463-473 ई.) को छोड़कर सभी गुप्तवंशी राजा वैदिक धर्मावलंबी थे। बालादित्य ने गुप्त राजवंश का इतिहास – History of Gupta Empire in Hindi गुप्त राजवंशों का इतिहास साहित्यिक तथा पुरातात्विक दोनों प्रमाणों से प्राप्त होता है। गुप्त राजवंश या गुप्त वंश प्राचीन भारत के प्रमुख राजवंशों में से एक था। इसे भारत का ‘स्वर्ण युग’ माना जाता है। गुप्त काल भारत के प्राचीन राजकुलों में से एक था। मौर्य चंद्रगुप्त ने गिरनार के प्रदेश में शासक के रूप में जिस ‘राष्ट्रीय’ (प्रान्तीय शासक) की नियुक्ति की थी, उसका नाम ‘वैश्य पुष्यगुप्त’ था। शुंग काल के प्रसिद्ध ‘बरहुत स्तम्भ लेख’ में एक राजा ‘विसदेव’ का उल्लेख है, जो ‘गाप्तिपुत्र’ (गुप्त काल की स्त्री का पुत्र) था। अन्य अनेक शिलालेखों में भी ‘गोप्तिपुत्र’ व्यक्तियों का उल्लेख है, जो राज्य में विविध उच्च पदों पर नियुक्त थे। इसी गुप्त कुल के एक वीर पुरुष श्रीगुप्त ने उस वंश का प्रारम्भ किया, जिसने आगे चलकर भारत के बहुत बड़े भाग में मगध साम्राज्य का फिर से विस्तार...

आर्यभट्ट महान गणितज्ञ जीवनी

आर्यभट्ट (Aryabhatta), को महान गणितज्ञ, ज्योतिष शास्त्री, खगोल शास्त्री के रूप में प्राचीन भारतीय इतिहास में जाना जाता है। यह भारतीय इतिहास में अपनी एक अलग पहचान एवं विशिष्ट स्थान रखते हैं। उन्होंने भारतीय गणित के साथ विश्व को ऐसा गणितीय सिद्धांत दिया, जिसकी परिकल्पना तत्कालीन समय में किसी अन्य देश के पास नहीं थी। आर्यभट्ट ने दशमी पद्धति के प्रयोग का सबसे प्राचीन भारतीय उदाहरण प्रस्तुत किया है। उनकी इस अंकन पद्धति, दशामिक पद्धति और शुन्य का प्रयोग पूरे विश्व को इन्होंने ही सिखाया है। आज के हमारे इस लेख में हम आर्यभट्ट के जीवन के बारे में विस्तार से जानेंगे। Aryabhatta biography Hindi Table of Contents • • आर्यभट्ट महान गणितज्ञ जीवनी – Aryabhatta biography in Hindi आर्यभट्ट (Aryabhatta) का जन्म 476 ईसवी पूर्व उनकी उनकी इस पुस्तक को चार भागों में विभक्त किया जा सकता है। जिसमें अलग-अलग जानकारियां के आधार पर विभक्त किया गया है। इसमें गीतिकापद, गणितपद, कालक्रियापद और गोलपाद, इन चार भागों में बांटा गया है। आर्यभट्ट की इस पुस्तक में आपको ज्योतिषी और गणित संबंधी कई सारी जानकारियां मिलती है। इस पुस्तक में उनके द्वारा अपनाई गई अंकन पद्धति को लाखों लोगों ने अपनाया और पश्चिमी देशों तक इनका प्रचार किया गया। अंग्रेजी में भारतीय अंक माला को अरबी अंक (Arabic numerals) कहते हैं, लेकिन वही अरब लोग इसे हिंन्दसा कहते हैं। पश्चिम में अंक माला का प्रचार होने से सदियों पहले से भारत में इसका प्रयोग होता रहा है। दसमिक का पद्धति का प्रयोग आर्यभट्ट ने (376-500) ईसा पूर्व के आसपास किया था। जिसका प्रयोग बाद में अरबी लोगों ने भारत से सीखा। भारतीय लोगों ने शून्य का प्रयोग सर्वप्रथम किया था। अरब वासियों ...

आर्यभट्ट महान गणितज्ञ जीवनी

आर्यभट्ट (Aryabhatta), को महान गणितज्ञ, ज्योतिष शास्त्री, खगोल शास्त्री के रूप में प्राचीन भारतीय इतिहास में जाना जाता है। यह भारतीय इतिहास में अपनी एक अलग पहचान एवं विशिष्ट स्थान रखते हैं। उन्होंने भारतीय गणित के साथ विश्व को ऐसा गणितीय सिद्धांत दिया, जिसकी परिकल्पना तत्कालीन समय में किसी अन्य देश के पास नहीं थी। आर्यभट्ट ने दशमी पद्धति के प्रयोग का सबसे प्राचीन भारतीय उदाहरण प्रस्तुत किया है। उनकी इस अंकन पद्धति, दशामिक पद्धति और शुन्य का प्रयोग पूरे विश्व को इन्होंने ही सिखाया है। आज के हमारे इस लेख में हम आर्यभट्ट के जीवन के बारे में विस्तार से जानेंगे। Aryabhatta biography Hindi Table of Contents • • आर्यभट्ट महान गणितज्ञ जीवनी – Aryabhatta biography in Hindi आर्यभट्ट (Aryabhatta) का जन्म 476 ईसवी पूर्व उनकी उनकी इस पुस्तक को चार भागों में विभक्त किया जा सकता है। जिसमें अलग-अलग जानकारियां के आधार पर विभक्त किया गया है। इसमें गीतिकापद, गणितपद, कालक्रियापद और गोलपाद, इन चार भागों में बांटा गया है। आर्यभट्ट की इस पुस्तक में आपको ज्योतिषी और गणित संबंधी कई सारी जानकारियां मिलती है। इस पुस्तक में उनके द्वारा अपनाई गई अंकन पद्धति को लाखों लोगों ने अपनाया और पश्चिमी देशों तक इनका प्रचार किया गया। अंग्रेजी में भारतीय अंक माला को अरबी अंक (Arabic numerals) कहते हैं, लेकिन वही अरब लोग इसे हिंन्दसा कहते हैं। पश्चिम में अंक माला का प्रचार होने से सदियों पहले से भारत में इसका प्रयोग होता रहा है। दसमिक का पद्धति का प्रयोग आर्यभट्ट ने (376-500) ईसा पूर्व के आसपास किया था। जिसका प्रयोग बाद में अरबी लोगों ने भारत से सीखा। भारतीय लोगों ने शून्य का प्रयोग सर्वप्रथम किया था। अरब वासियों ...

आर्यभट जीवनी

आर्यभट (४७६-५५०) प्राचीन भारत के एक महान ज्योतिषविद् और गणितज्ञ थे। इन्होंने आर्यभटीय ग्रंथ की रचना की जिसमें ज्योतिषशास्त्र के अनेक सिद्धांतों का प्रतिपादन है। इसी ग्रंथ में इन्होंने अपना जन्मस्थान कुसुमपुर और जन्मकाल शक संवत् 398 लिखा है। बिहार में वर्तमान पटना का प्राचीन नाम कुसुमपुर था लेकिन आर्यभट का कुसुमपुर दक्षिण में था, यह अब लगभग सिद्ध हो चुका है। एक अन्य मान्यता के अनुसार उनका जन्म महाराष्ट्र के अश्मक देश में हुआ था। उनके वैज्ञानिक कार्यों का समादर राजधानी में ही हो सकता था। अतः उन्होंने लम्बी यात्रा करके आधुनिक पटना के समीप कुसुमपुर में अवस्थित होकर राजसान्निध्य में अपनी रचनाएँ पूर्ण की। आरंभिक जीवन : यद्यपि आर्यभट के जन्म के वर्ष का आर्यभटीय में स्पष्ट उल्लेख है, उनके जन्म के वास्तविक स्थान के बारे में विवाद है। कुछ मानते हैं कि वे नर्मदा और गोदावरी के मध्य स्थित क्षेत्र में पैदा हुए थे, जिसे अश्माका के रूप में जाना जाता था और वे अश्माका की पहचान मध्य भारत से करते हैं जिसमे महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश शामिल है, हालाँकि आरंभिक बौद्ध ग्रन्थ अश्माका को दक्षिण में, दक्षिणापथ या दक्खन के रूप में वर्णित करते हैं, जबकि अन्य ग्रन्थ वर्णित करते हैं कि अश्माका के लोग अलेक्जेंडर से लड़े होंगे, इस हिसाब से अश्माका को उत्तर की तरफ और आगे होना चाहिए. आर्यभट्ट ने अपने ग्रन्थ ‘आर्यभटिया’ में अपना जन्मस्थान कुसुमपुर और जन्मकाल शक संवत् 398 (476) लिखा है। इस जानकारी से उनके जन्म का साल तो निर्विवादित है परन्तु वास्तविक जन्मस्थान के बारे में विवाद है। कुछ स्रोतों के अनुसार आर्यभट्ट का जन्म महाराष्ट्र के अश्मक प्रदेश में हुआ था और ये बात भी तय है की अपने जीवन के किसी काल में वे उच्...

आर्यभट्ट की जीवनी Aryabhatta biography in hindi

Aryabhatta biography in hindi aryabhatta history in hindi language-दोस्तों आज हम आपको देश के ही नहीं बल्कि दुनिया के ऐसे महान गणितज्ञ एवं वैज्ञानिक के बारे में बताने वाले हैं जिन्होंने हम सबके लिए बहुत सारी खोजे की हैं वो भारत के पहले वैज्ञानिक माने जा सकते है. इन्होंने जीरो की खोज की और गणित के सवालों को हल करने में हमारी मदद की.वास्तव में आर्यभट हमारी इस पूरी दुनिया के लिए एक चमकते सूरज की तरह थे जिन्होंने बहुत कुछ उजाला कर दिया था तो चलिए पढ़ते हैं आर्यभट्ट के जीवन के बारे में शुरू से Aryabhatta biography in hindi image source- आर्यभट्ट के जन्म के बारे में अलग-अलग मत हैं कुछ लोगो का मानना है की इनका जन्म भारत के कुसुमपुर में हुआ था आर्यभट ने अपना पूरा जीवन शोध कार्यों में निछावर कर दिया था उन्होंने कई ग्रंथो की रचना की लेकिन बहुत सी रचनाएं इनकी ऐसी भी हैं जो लुप्त हो गई हैं इनकी रचना जो अभी ज्ञात है उनमे आर्यभटीय सबसे महत्वपूर्ण रचना है जिसमें उन्होंने अंक गणित और बीजगणित का विस्तारपूर्वक वर्णन किया है.इन्होंने अपनी उच्च शिक्षा कुसुमपुर से ही की थी जहां पर एक विश्वविद्यालय भी है. आर्यभट जैसे महान वैज्ञानिक ने चंद्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण पर भी कई बातें बताई. उन्होंने बताया की चंद्र और सूर्य ग्रहण कब पड़ने वाला है उसका समय निकालने का फार्मूला भी हमें दिया और ऐसी कई रचनाएं कि जो वास्तव में प्रशंसनीय है उस समय यह माना जाता था कि पृथ्वी इस ब्रम्हांड के बीच में है लेकिन आर्यभट ने साबित किया कि सौरमंडल के केंद्र में सूर्य है और सभी ग्रह सूर्य की परिक्रमा कर रहे हैं पृथ्वी भी सूर्य की परिक्रमा कर रही है. आर्यभट्ट ने अपने जीवन में पाई की खोज की इन्होने पाई की वेल्यु 4 अंको तक सही...

Biography of aryabhatta

आर्यभट्ट का नाम हमारे भारत के इतिहास किर्ति को स्थापित करने में एक अमूल्य भूमिका निभाता है आर्यभट्ट एक महान गणितज्ञ, ज्योतिशविद और खगोलशास्त्री थे, जिनहोने अपने ज्ञान के आधार पर बताया की पृथ्वी 365 दिन 6 घंटे और 12 मिनट और 30 सेकंड में सूर्य का एक चक्कर लगती है तो चलिये जानते है आर्यभट्ट के बारे में। आर्यभट्ट का जन्म कब हुआ आर्यभट्ट के जन्म के बारे में वैसे तो इतिहासकारों के अलग अलग मत है परंतु समान्यतः यह माना जाता है की आर्यभट्ट का जन्म 476 ईसा पूर्व मे बिहार पटना के कुसुमपुर में हुआ एक अन्य मत यह है की आर्यभट्ट का जन्म महराष्ट्र के अश्मक स्थान में हुआ और उन्होने अपनी शिक्षा के लिए बिहार के कुसुमपुर में आए जो वर्तमान मे पटना के नाम से जाना जाता है, और आर्यभट्ट ने अपनी शिक्षा कुसुमपुर बिहार से ही प्राप्त की। आर्यभट्ट के कार्य एवं रचनाएँ आर्यभट्ट ने अनेक क्षेत्रो मे अपना योगदान दिया है जैसे- गणित, खगोलविज्ञान, ज्योतिषशास्त्र, कृतिया, पाई एवं शून्य की खोज आदि तो चलिये एक एक करके आर्यभट्ट के योगदान के बारे में जानते है- आर्यभट्ट का सिद्धांत आर्यभट्ट की इस रचना में निम्नलिखित खगोलीय यंत्रो और उपकारणों का उल्लेख मिलता हैं. • छाया यन्त्र (Shadow Instrument) • कोण मापी उपकरण (Angle Measuring Device) • धनुर यंत्र / चक्र यंत्र (Semi Circular/Circular Instrument) • शंकु यन्त्र (Gnomon) • छत्र यन्त्र (Umbrella Shaped Device) • जल घडी (Water Clock) • बेलनाकार यस्ती यन्त्र (Cylindrical Stick) गणित में योगदान आर्यभट्ट ने पाई एवं शून्य की खोज की इस बात का साक्ष्य उनकी रचनाओं आर्यभट्टिका के गणितपद 10 मे मिलता है आर्यभट्ट ने स्थान मूल्य प्रणाली पर कार्य किया, जिसमें संख्याओं को चिन्हित कर...

गुप्त साम्राज्य इतिहास और रोचक तथ्य

Gupta Empire in Hindi/ गुप्त राजवंश या गुप्त वंश प्राचीन भारत के प्रमुख राजवंशों में से एक था। इसे भारत का एक स्वर्ण युग माना जाता है। गुप्त वंश 275 ई. के आसपास अस्तित्व में आया। इसकी स्थापना श्रीगुप्त ने की थी। लगभग 510 ई. तक यह वंश शासन में रहा। आरम्भ में इनका शासन केवल मगध पर था, पर बाद में गुप्त वंश के राजाओं ने संपूर्ण उत्तर भारत को अपने अधीन करके दक्षिण में कांजीवरम के राजा से भी अपनी अधीनता स्वीकार कराई। इस वंश में अनेक प्रतापी राजा हुए। कालिदास के संरक्षक सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय (380-415 ई.) इसी वंश के थे। यही ‘विक्रमादित्य’ और ‘शकारि’ नाम से भी प्रसिद्ध हैं। नृसिंहगुप्त बालादित्य (463-473 ई.) को छोड़कर सभी गुप्तवंशी राजा वैदिक धर्मावलंबी थे। बालादित्य ने गुप्त राजवंश का इतिहास – History of Gupta Empire in Hindi गुप्त राजवंशों का इतिहास साहित्यिक तथा पुरातात्विक दोनों प्रमाणों से प्राप्त होता है। गुप्त राजवंश या गुप्त वंश प्राचीन भारत के प्रमुख राजवंशों में से एक था। इसे भारत का ‘स्वर्ण युग’ माना जाता है। गुप्त काल भारत के प्राचीन राजकुलों में से एक था। मौर्य चंद्रगुप्त ने गिरनार के प्रदेश में शासक के रूप में जिस ‘राष्ट्रीय’ (प्रान्तीय शासक) की नियुक्ति की थी, उसका नाम ‘वैश्य पुष्यगुप्त’ था। शुंग काल के प्रसिद्ध ‘बरहुत स्तम्भ लेख’ में एक राजा ‘विसदेव’ का उल्लेख है, जो ‘गाप्तिपुत्र’ (गुप्त काल की स्त्री का पुत्र) था। अन्य अनेक शिलालेखों में भी ‘गोप्तिपुत्र’ व्यक्तियों का उल्लेख है, जो राज्य में विविध उच्च पदों पर नियुक्त थे। इसी गुप्त कुल के एक वीर पुरुष श्रीगुप्त ने उस वंश का प्रारम्भ किया, जिसने आगे चलकर भारत के बहुत बड़े भाग में मगध साम्राज्य का फिर से विस्तार...