अभिमन्यु का पुत्र कौन था

  1. MCQ Questions for Class 7 Hindi Chapter 33 अभिमन्यु Bal Mahabharat Katha
  2. महाभारत में अभिमन्यु की मृत्यु का वह सच जानिए आखिर क्यों हुई?
  3. Mahabharat Se Jude 300+ Rochak Tathya Part
  4. अभिमन्यु का पुत्र कौन था जाने
  5. अभिमन्यु का पुत्र कौन था
  6. हरिराम


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MCQ Questions for Class 7 Hindi Chapter 33 अभिमन्यु Bal Mahabharat Katha

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महाभारत में अभिमन्यु की मृत्यु का वह सच जानिए आखिर क्यों हुई?

नमस्कार मित्रों आज हम लोग जानंगे महाभारत के उस महान योद्धा जिन्होंने अकेले अपने दम पर पूरे चक्रव्यूह को हिला कर रख देने वाले उस महान योद्धा अर्जुन पुत्र अभिमन्यु के बारे में. जिन्होंने महज 16 वर्ष की उम्र में ही पूरे कुरुक्षेत्र के बड़े-बड़े महारथी योद्धाओं को एक पल अपनी युद्ध कौशल रणनीति से सोचने पर मजबूर कर दिया था. मैं उसी अभिमन्यु के बारे में बात कर रहा हूं जिनके पिता अर्जुन जो सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर माने जाते है जिनके मामा स्वयं भगवान श्री कृष्ण है. तो चलिए जानते हैं उस अभिमन्यु के बारे में जिनकी वीरता की चर्चा तीनों लोकों में होती है और इसके पीछे की रहस्यमई कहानी क्या है? महाभारत के चक्रव्यूह और अभिमन्यु की मृत्यु की कथा, अभिमन्यु की मृत्यु कैसे हुई. महाभारत में अभिमन्यु कौन था अभिमन्यु श्री कृष्ण की बहन सुभद्रा और अर्जुन की संतान था, अभिमन्यु को चक्रव्यूह का ज्ञान अपनी मां सुभद्रा के गर्भ में ही प्राप्त हो गया था. यह तब की बात है जब अर्जुन और सुभद्रा अकेले बैठे थे तब सुभद्रा ने चक्रव्यूह के बारे में जानना चाहा. अर्जुन सुभद्रा को चक्रव्यूह में प्रवेश करने और शत्रु को कैसे पराजित करना है उसका वर्णन बता रहे थे अर्जुन द्वारा सुभद्रा को मकरव्यूह,कर्मव्यूह और सर्पव्यूह कि जानकारी दी गई. सुभद्रा चक्रव्यूह के बारे में सुनते सुनते अचानक सो गई, सुभद्रा को सोता हुआ देख अर्जुन ने परेशान करना ठीक नहीं समझा और वहां से चले गए. इस प्रकार से अभिमन्यु ने चक्रव्यूह के बहुत से राज माँ के गर्भ में जान तो लिए लेकिन अंतिम व बेहद महत्वपूर्ण तरीका वह जान ना सका. यही अभिमन्यु की मृत्यु का कारण बना था, पुरे महाभारत काल में अर्जुन के बाद यदि कोई चक्रव्यूह में जाने का साहस कर सकता था तो वह था अभिम...

Mahabharat Se Jude 300+ Rochak Tathya Part

(381) (305) (290) (279) (258) (210) (195) (184) (173) (149) (118) (111) (100) (69) (68) (64) (50) (45) (42) (36) (36) (34) (30) (30) (28) (25) (24) (24) (24) (24) (24) (21) (21) (21) (20) (20) (19) (17) (17) (16) (16) (16) (16) (16) (15) (15) (15) (14) (13) (13) (13) (13) (13) (12) (12) (12) (11) (11) (10) (10) (10) (10) (10) (9) (9) (9) (8) (8) (8) (8) (8) (7) (7) (7) (7) (6) (6) (5) (5) (5) (5) (5) (5) (5) (5) (5) (4) (4) (4) (4) (4) (4) (4) (4) (4) (4) (4) (4) (3) (3) (3) (3) (3) (3) (3) (3) (2) (2) (2) (2) (2) (2) (2) (1) (1) (1) (1) (1) (1) (1) (1) (1) (1) (1) (1) (1) (1) (1) (1) (1) (1) (1) (1) (1) (1) (1) (1) (1) (1) (1) (1) (1) (1) (1) (1)

अभिमन्यु का पुत्र कौन था जाने

लेकिन श्री कृष्ण की आज्ञा से ब्रह्मास्त्र अर्जुन ने वापस ले लिया लेकिन अश्वत्थामा को ब्रह्मास्त्र वापिस लेना नहीं आता था • • • • wife of abhimanyu इसलिए अश्वत्थामा ने वह ब्रह्मास्त्र अभिमन्यु के होने वाले पुत्र पर चला दिया तो श्री कृष्ण भगवान ने उस समय अभिमन्यु के पुत्र की रक्षा की अभिमन्यु वह पुत्र और पांडवों का पौत्र परीक्षित नाम से विख्यात हुआ जोकि पांडवो के बाद हस्तिनापुर का राजा बना और जब अश्वत्थामा ने अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु के पुत्र पर यानी कि परीक्षित पर ब्रह्मास्त्र चलाया तो उसके बदले श्री कृष्ण ने अर्जुन को आदेश दिया अभिमन्यु का पुत्र कौन था क्या नाम था कि अश्वत्थामा की सर में चमकने वाली मणि को निकाल लिया जाए तो अर्जुन ने मणि को निकाल लिया और जो घाव अश्वत्थामा के सर में रह गया उस घाव को कभी ना ठीक होने और हमेशा पीच में भरे रहने रसी से भरे रहने का श्राप श्री कृष्ण ने अश्वत्थामा को दिया abhimanyu ke putra ka naam और कहा की अश्वथामा हमेशा तक पृथ्वी पर जीवित रहेगा इसलिए हमारे ग्रंथ कहते हैं कि अश्वत्थामा आज भी जीवित है

अभिमन्यु का पुत्र कौन था

अभिमन्यु का पुत्र कौन था | Abhimanyu ka putr kaun tha | who is the son of abhimanyu महावीर अभिमन्यु का एक ही बेटा था।उसका नाम परीक्षित था।संस्कृत के अनुसार, परीक्षित का अर्थ है, जो परीक्षण / सिद्ध किया गया है। महावीर अभिमन्यु ने अपनी एकमात्र पत्नी उत्तरा (मत्स्य की राजकुमारी) से अपने पुत्र परीक्षित उत्पन्न हुआ था।अपने पिता महावीर अभिमन्यु की तरह, परीक्षित को भी कभी अपने पिता के साथ रहने या अधिक सटीक होने का मौका नहीं मिला, उन्होंने केवल अपने पिता की कहानी के बारे में सुना है लेकिन उन्हें धारण करने या देखने या महसूस करने का कभी मौका नहीं मिला क्योंकि महावीर अभिमन्यु की मृत्यु हो गई उसके पुत्र के पृथ्वी पर पहुँचने से पहले युद्ध।इसी तरह, महावीर अभिमन्यु जो वास्तव में अपने बेटे को सभी पितृ प्रेम देना चाहता था, जो वह युवा होने के दौरान चूक गया था; कभी भी अपने बेटे को महसूस करने या उसे देखने या कम से कम देखने का मौका नहीं मिला।दोनों कभी नहीं जानते थे कि दूसरे एक जैसे कैसे दिखेंगे। भगवान ने युद्धक्षेत्र में महावीर अभिमन्यु की इच्छा शक्ति और दृढ़ संकल्प का परीक्षण किया है।परिणामस्वरूप महावीर अभिमन्यु ने स्वेच्छा से धर्म का पालन करने और युद्ध में पांडवों को बचाने के लिए बलिदान दिया।लेकिन यह कभी यहां समाप्त नहीं होता है। भगवान ने अपनी माँ के गर्भ में रहते हुए भी अपने पुत्र का परीक्षण किया।द्रोण के पुत्र अश्वत्थामा ने पांडवों के वंश के अंतिम वारिस को मारने के इरादे से उत्तरा के गर्भ की ओर ब्रह्मास्त्र छोड़ा।महावीर अभिमन्यु ने मानव जाति को बचाने के लिए अपना जीवन त्याग दिया।उनके अच्छे काम ने अब उनके बीज (उनके बेटे) को बचा लिया जो उनकी पत्नी के गर्भ में थे।माँ सुभद्रा और उत्तरा की दलील ...

हरिराम

और कहते लिखो तब वह अक्षर नहीं लिखते और स्लेट पर राम का नाम लिखते और अपने मित्रों को भी यही शिक्षा देते उनको बचपन से ही सत्संग में जाने का चाव था वे जहा भी सतसंग होती वहा जाते थे और प्रेम से सतसंग सुनते थे जब उनके भरवाले नाराज होते की तुम नीची जति के लोगो के घर सतसंग सुनकर आता है Hariram ji ki katha | जी की कथा 1 ही पार्ट में hariram ji jhorda तब वे बात को अनसुनी कर दिया करते थे एक बार हरिरामजी को पता चला की पास के गांव में सादु बाबा आये है और रोज सतसंग करते है तो बालक को चाव चढ़ गया और वे भी जाने लगे लेकिन उस समय में उनके गांव झोरड़ा और हरिराम जी रात को व्यक्ति सोता और सुभह उसकी चारपाई से उसकी लास ही उठानी • • • एक दिन अपना गुरु बनने का आग्रह किया तो सादु बाबा ने उन्हें गुरु बनना स्वीकार किया अगर हरिरामजी की कहानी पूरी विस्तार से सुन्नी है ( Hariram ji ki katha हरिराम Hariram ji ki katha तो आप हमे कमेंट करे और सादु बाबा ने शिक्षा दी इसी कारण महराज जी झोरड़ा गांव में प्रसिद्ध हुए और बहुत से लोगो को बचाया कहते है वे सादु महाराज जो हरिराम जी के गुरु बने वो कोई और नहीं बल्कि स्वयं हनुमानजी महाराज ही थे राम जी राम (