अभिनव मनुष्य कविता का भावार्थ

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Meri bhasha mera garv: नवनिर्माण {कविता} भावार्थ एवं शब्दार्थ

कवि त्रिलोचन जी इस कविता के माध्यम से आशावादी दृष्टिकोण रखते हुए कहते हैं कि हमारा जन्म इस पृथ्वी पर हुआ है उसके पीछे कोई ना कोई उद्देश्य है| कवि कहना चाहते हैं कि एक अलौकिक शक्ति जिसे हम भगवान कहते हैं या अल्लाह कहते हैं या प्रकृति ,चाहे जो कह लो , हमें जो जन्म मिला है वह कुछ उद्देश्य पूरा करने के लिए मिला है| जिस तरह आकाश कितना बड़ा होता है हम उसको गिन सकते हैं क्या ?नाप सकते हैं क्या ?नहीं माफ सकते क्योंकि वह असीम है ,बहुत बड़ा है |ठीक उसी तरह कई अनगिनत उद्देश्य है हमारे जन्म के पीछे ; तो हमें उस उद्देश्य को पूरा करना है |हमारे इसी उद्देश्य को पूरा करने पर क्या होगा ; समाज एक नई दिशा की ओर मुड़ेगा | समाज को नई दिशा प्रदान करने के लिए प्रकृति ने बोलो या ईश्वर ,भगवान चाहो जो बोलो उन्होंने हमको इस पृथ्वी पर भेजा है ताकि हम एक नए समाज का निर्माण कर सकें| उपर्युक्त पंक्ति में कवि त्रिलोचन जी का हमें समाज की ओर आशावादी दृष्टिकोण नज़र आता है| चतुष्पद - २ २)सूत्र यह तोड़ नहीं सकते है| तोड़कर जोड़ नहीं सकते है | व्योम में जाए, कहीं भी उड़ जाए , इस भूमि को छोड़ नहीं सकते हैं | शब्दार्थ : व्योम - आसमान , आकाश भूमि - धरा , धरती भावार्थ : कवि त्रिलोचन की कहना चाहते हैं कि सृष्टि में जो चीज का भी निर्माण हुआ है उसके साथ हम छेड़छाड़ नहीं कर सकते है | जिस प्रकार किसी भी चीज को हमें तोड़ना नहीं चाहिए ,संभाल कर रखना चाहिए, फिर चाहे वह रिश्ता हो या कुछ और हो | जैसे हम अपने रिश्ते को संभाल कर रखते हैं और पूरी कोशिश करते हैं कि वह टूटना नहीं चाहिए |अगर मान लीजिए टूट जाता है तो क्या होगा? पुनः वह रिश्ता जुड़ नहीं पाएगा और अगर जुड़ भी जाता है तो रिश्तो में खटास आ जाती है| अत: सृष्टि का नियम ह...

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रहा प्रकृति को टटोल बाहर अंतर। अपनी जिज्ञासाओं की खातिर ,चांद को छू आया। अपनी अभिलाषाओं की खातिर, रहा गगन में इतराया। अपनी हथेली पर समस्त ब्रह्माण्ड को खोल दिया। प्रकृति रूपी पुस्तक के पन्ने पन्ने का ज्ञान लिया। यह मनुष्य पृथ्वी का सौंदर्य। पवन वेग को नियंत्रित कर,जल से चपला का निर्माण किया। मनुष्य ने प्रकृति से लिया छीन उसका अधिकार। अपनी सुविधाओं की खतिर किया प्रकृति से दुर्व्यवहार। किन्तु जानना उपर्युक्त भी था आवश्यक। परन्तु अब प्रकृति के साथ समन्वय रखना है अति आवश्यक। अपने सत् कृत्यों से मनुष्य को है करना धरा अमर। क्योंकि यह मनुष्य पृथ्वी का सौंदर्य। यह मनुष्य पृथ्वी का सौंदर्य। -रितेश (प्रताप) हम उम्मीद करते हैं कि यह पाठक की स्वरचित रचना है। अपनी रचना भेजने के लिए यहां क्लिक करें। विशेष • Kavya Cafe: Rachit Dixit Poetry- ब्रेक अप के बाद लड़के • Hindi Kavita: नवीन सागर की कविता 'अपना अभिनय इतना अच्छा करता हूँ' • Urdu Poetry: नसीर तुराबी की ग़ज़ल 'दिया सा दिल के ख़राबे में जल रहा है मियाँ' • Parveen Shakir Poetry: वो कहीं भी गया लौटा तो मिरे पास आया • अल्हड़ बीकानेरी की हास्य कविता- समय का फेर • Social Media Shayari: ढक कर चलता हूं, ज़ख्मों को आजकल

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Page 2 : IV. दो-तीन वाक्यों में उत्तर लिखिए :, 1. 'प्रकृति पर सर्वत्र है विजयी पुरुष आसीन' इस पंक्ति का आशय क्या है ? (२०२०), उत्तर :- आज मानव ने प्रकृति के अनेक तत्वों को अपने नियंत्रण में कर लिया है । वारि, विध्युत, और भाप अपनी इच्छानुसार बदल सकता है । अपनी आज्ञानुसार पवन के ताप को भी बदल, सकता है।, 2. दिनकर जी के अनुसार मानव का सही परिचय क्या है ?, दिनकर जी के अनुसार मानव को क्या संदेश दे रहे है ?, अथवा, उत्तर :-, जी के अनुसार मानव-मानव के बीच स्नेह , दूसरे मानव से प्रेम का रिस्ता, जोडकर आपस की दूरी को मिठानेवाला ही सही मानव कहलाने का अधिकारी कह लाता है । यही, मानव का सही परिचय है ।, अभिनव, कौन-, मनुष्य' कविता का दूसरा, अभिनव मनुष्य' कविता का दूसरा शीर्षक हैं।, 3., |- सा शीर्षक हो सकता है ? क्यों ?, मानव और प्रकृति' या आधुनिक पुरुष'|, क्यों की मनुष्य ने प्रकृति के हर एक क्षेत्र में अपना अधिकार जमाया है। वह आकाश से पाताल, उत्तर :-, तक सब जानता है । प्रकृति पर विजय प्राप्त करना मनुष्य की साधना है पर मानव-मानव के बीच, स्नेह, प्रेम का बाँध-बाँधना मानव की सिध्दि है ।, 4. आधुनिक मानव की भौतिक आधना का विवरण कविता के आधार पर दीजिए ? (२०१९), आधुनिक मानव ने प्रकृति के हर तत्व को अपने नियंत्रण में कर लिया है । वह नदी, पर्वत,, सागर एक समान लॉघ सकता है । उसका यान आकाश में जा रहा है । वह परमाणु प्रयोग भी कर, रहा है । उसकी बौध्दिक क्षमता असीमित है ।, उत्तर :-, V. भावार्थ :, यह मनुज, जो श्रुष्टि का श्रुंगार,, ज्ञान का, विज्ञान का, आलोक का आगार ।, व्योम से पाताल तक सब कुछ इसे है ज्ञेय,, पर, न यह परिचय मनुज का, यह न उसका श्रेय ।, प्रस्तुत इन पंक्तियों को कुरुक्षेत्र के 'षष्ठ सर्ग' से अभि...

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