अद्भुत रस की परिभाषा

  1. रौद्र रस
  2. रस क्या है, क्यों जरुरी है, परिभाषा, भेद, उदाहरण
  3. adbhut ras
  4. Adbhut Ras in Hindi
  5. अद्भुत रस
  6. अद्भुत रस की परिभाषा, अवयव और उदाहरण
  7. अद्भुत रस की परिभाषा, उदाहरण, स्थायी भाव सहित पूरी जानकारी
  8. adbhut ras
  9. रौद्र रस
  10. अद्भुत रस की परिभाषा, उदाहरण, स्थायी भाव सहित पूरी जानकारी


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रौद्र रस

Raudra Ras – Raudra ras ki paribhasha रौद्र रस: रौद्र रस काव्य का एक रस है जिसमें ‘स्थायी भाव’ अथवा ‘क्रोध’ का भाव होता है। धार्मिक महत्व के आधार पर इसका वर्ण रक्त एवं देवता रुद्र है। or इसका स्थायी भाव क्रोध होता है जब किसी एक पक्ष या व्यक्ति द्वारा दुसरे पक्ष या दुसरे व्यक्ति का अपमान करने अथवा अपने गुरुजन आदि कि निन्दा से जो क्रोध उत्पन्न होता है उसे रौद्र रस कहते हैं इसमें क्रोध के कारण मुख लाल हो जाना, दाँत पिसना, शास्त्र चलाना, भौहे चढ़ाना आदि के भाव उत्पन्न होते हैं। काव्यगत रसों में रौद्र रस का महत्त्वपूर्ण स्थान है। भरत ने ‘नाट्यशास्त्र’ में श्रृंगार, रौद्र, वीर तथा वीभत्स, इन चार रसों को ही प्रधान माना है, अत: इन्हीं से अन्य रसों की उत्पत्ति बतायी है, यथा-‘तेषामुत्पत्तिहेतवच्क्षत्वारो रसा: श्रृंगारो रौद्रो वीरो वीभत्स इति’ । रौद्र से करुण रस की उत्पत्ति बताते हुए भरत कहते हैं कि ‘रौद्रस्यैव च यत्कर्म स शेय: करुणो रस:’ ।रौद्र रस का कर्म ही करुण रस का जनक होता है, रौद्र रस के अवयव: • स्थाई भाव– क्रोध । • आलंबन (विभाव)– विपक्षी, अनुचित बात कहनेवाला व्यक्ति। • उद्दीपन (विभाव)– विपक्षियों के कार्य तथा उक्तियाँ। • अनुभाव – मुख लाल होना, दांत पीसना, आत्म-प्रशंशा, शस्त्र चलाना, भौहे चढ़ना, कम्प, प्रस्वेद, गर्जन आदि। • संचारी भाव– आवेग, अमर्ष, उग्रता, उद्वेग, स्मृति, असूया, मद, मोह आदि। रौद्र रस का स्थायी भाव – Raudra ras ka sthaye bhav रौद्र रस का ‘स्थायी भाव’ ‘क्रोध’ है तथा इसका वर्ण रक्त एवं देवता रुद्र है। • भानुदत्त ने ‘रसतरंगिणी’ में लिखा है – ‘परिपूर्ण:क्रोधो रौद्र: सर्वेन्द्रियाणामौद्धत्यं वा। वर्णोऽस्य रक्तो दैवतं रुद्र:’, अर्थात स्थायी भाव क्रोध का पूर्णतया प्रस्फ...

रस क्या है, क्यों जरुरी है, परिभाषा, भेद, उदाहरण

रस हिंदी व्याकरण और हिंदी साहित्य में पढ़ाए जाने वाला एक महत्वपूर्ण टॉपिक है। जैसा कि आचार्य भरतमुनि ने वर्णन किया है – विभावानुभावव्यभिचारिसंयोगाद्रसनिष्पत्तिः – अर्थात् विभाव, अनुभाव तथा व्यभिचारिभाव के मेल से रस की उत्पति होती है। इसका मतलब यह है कि विभाव, अनुभाव तथा संचारी भाव से दयालु व्यक्ति के मन में उपस्थित ‘रति’ आदि स्थायी भाव ‘रस’ के स्वरूप में बदलता है। Ras in Hindi के बारे में विस्तार से जानने के लिए इस ब्लॉग को अंत तक पढ़ें। This Blog Includes: • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • रस क्या होता है? ‘रस’ शब्द रस् धातु और अच् प्रत्यय के मेल से बना है। संस्कृत वाङ्गमय में रस की उत्पत्ति ‘रस्यते इति रस’ इस प्रकार की गयी है अर्थात् जिससे आस्वाद अथवा आनन्द प्राप्त हो वही रस है। रस का शाब्दिक अर्थ है ‘आनन्द’। काव्य को पढ़ने या सुनने से अथवा चिन्तन करने से जिस अत्यंत आनन्द का अनुभव होता है, उसे ही रस कहा जाता है। रस की विशेषताएं रस की कुछ विशेषताएं निम्नलिखित हैं: • रस स्वप्रकाशानन्द तथा ज्ञान से भरा हुआ है। • भाव सुखात्मक दुखात्मक होते हैं, किन्तु जब वे रस रूप में बदल जाते हैं तब आनन्दस्वरूप हो जाते हैं। • रस अखण्ड होता है। • रस न सविकल्पक ज्ञान है, न निर्विकल्पक ज्ञान, अतः अलौकिक है। • रस वेद्यान्तर सम्पर्क शून्य है अर्थात् रसास्वादकाल में सामाजिक पूर्णतः तन्मय रहता है। • रस ब्रह्मानन्द सहोदर है। अतः ras in Hindi का आनन्द ब्रह्मानन्द (समाधि) के समान है। रस के बारे में महान कवियों की पंक्तियां रस के महत्व को बताते हुए आचार्य भरतमुनि ने स्वयं लिखा है- नहि रसाते कश्चिदर्थः प्रवर्तते। ऐसा ही विश्वनाथ कविराज ने भी लिखा है सत्वोद्रेकादखण्ड-स्वप्रकाशानन्द चित्तमयः । ...

adbhut ras

Adbhut Ras adbhut ras जहां पर चकित कर देने के दृश्य के चित्रण से जो रस उत्पन्न होता है वहां अद्भुत रस उत्पन्न होता है. जहां पर चकित कर देने के दृश्य के चित्रण से जो रस उत्पन्न होता है वहां अद्भुत रस Adbhut ras उत्पन्न होता है.किसी असाधारण वस्तु या दृश्य को देखकर मन में विस्मय नमक स्थाई भाव ही विभावावादि से संयुक्त होकर अद्भुत रस में परिणत हो जाता है। Definition Of Adbhut Ras अदभुत रस का स्थायी भाव आश्चर्य होता है। जब ब्यक्ति के मन में विचित्र अथवा आश्चर्यजनक वस्तुओं को देखकर जो विस्मय आदि के भाव उत्पन्न होता है उसे ही अदभुत रस कहा जाता है। इसके अन्दर औंसू आना, रोमांच, गद्गद होना, काँपना, आँखे फाड़कर देखना आदि के भाव व्यक्त होता है। Adbhut Ras In Other Words किसी असाधारण वस्तु या दृश्य को देखकर मन में विस्मय नमक स्थाई भाव ही विभावावादि से संयुक्त होकर अद्भुत रस में परिणत हो जाता है। अद्भुत रस ‘विस्मयस्य सम्यक्समृद्धिरद्भुत: सर्वेन्द्रियाणां ताटस्थ्यं या’-अर्थात् विस्मय की सम्यक समृद्धि या सम्पूर्ण इन्द्रियों की तटस्थता अदभुत रस है। कहने का तातपर्य यह है कि जब किसी रचना में विस्मय 'स्थायी भाव' इस प्रकार पूर्णतया प्रस्फुट हो कि सम्पूर्ण इन्द्रियाँ उससे अभिभावित होकर निश्चेष्ट बन जाएँ, तो वहाँ पर अद्भुत रस की निष्पत्ति होती है। . Adbhut Ras Ke Udaharan अखिल भुवन चर- अचर सब हरि मुख में लखि मातु। चकित भई गद्गद् वचन विकसित दृग पुलकातु॥ देख यशोदा शिशु के मुख में, सकल विश्व की माया, क्षणभर को वह बनी अचेतन, हिल न सकी कोमल काया। चित अलि कत भरमत रहत कहाँ नहीं बास। विकसित कुसुमन मैं अहै काको सरस विकास। देखरावा मातहि निज अदभुत रूप अखण्ड, रोम रोम प्रति लगे कोटि-कोटि ब्रह्माण्ड।

Adbhut Ras in Hindi

Table of Contents • • • • • • • जब किसी व्यक्ति के मन में अजीबोगरीब या आश्चर्यजनक चीजें देखकर विस्मय आदि के भाव उत्पन्न होते हैं, तो उसे अद्भुत रस कहते हैं, उसमें रोमांच के भाव, आंसू, कंपकंपी, चक्कर आना, आंखों में आंसू आना आदि भाव प्रकट होते हैं। अथवा विचित्र अथवा आश्चर्यजनक वस्तुओं को देखकर हृदय में जो विस्मय आदि के भाव उत्पन्न होते हैं। इन्ही भावों के विकसित रूप को ‘अद्भुत रस’ कहा जाता है। Adbhut Ras ki Paribhasha in Hindi अद्भुत रस हिन्दी काव्य में मान्य नौ रसों में से एक है। अद्भुत रस का स्थायी भाव ‘ आश्चर्य‘ होता है| अद्भुत रस के अवयव : Adbhut Ras ke Avayav • स्थाई भाव: आश्चर्य। • आलंबन (विभाव): आश्चर्य उत्पन्न करने वाला पदार्थ या व्यक्ति। • उद्दीपन (विभाव): अलौकिक वस्तुओ का दर्शन, श्रवण, कीर्तन आदि। • अनुभाव: दाँतो तले उंगली दवाना, आंखे फाड़कर देखना, रोमांच, आँसू आना, काँपना, गदगद होना आदि। • संचारी भाव: उत्सुकता, आवेग, भ्रान्ति, धृति, हर्ष, मोह आदि। हिन्दी के आचार्य कुलपति ने ‘रस-रहस्य’ नामक ग्रन्थ में अद्भुत रस का वर्णन किया है – जहँ अनहोने देखिए, बचन रचन अनुरूप। अद्भुत रस के जानिये, ये विभाव स्रु अनूप।। बचन कम्प अरु रोम तनु, यह कहिये अनुभाव। हर्श शक चित मोह पुनि, यह संचारी भाव।। जेहि ठाँ नृत्य कवित्त में, व्यंग्य आचरज होय। ताँऊ रस में जानियो, अद्भुत रस है सोय। अद्भुत रस के उदाहरण– Adbhut Ras ke Udaharan Example 1. ‘ब्रज बछरा निज धाम करि फिरि ब्रज लखि फिरि धाम। फिरि इत र्लाख फिर उत लखे ठगि बिरंचि तिहि ठाम’।। (पोद्दार : ‘रसमंजरी’) Example 2. चित अलि कत भरमत रहत कहाँ नहीं बास। विकसित कुसुमन मैं अहै काको सरस विकास। Adbhut Ras ke Udaharan Adbhut Ras ke Easy Example Exa...

अद्भुत रस

Adbhut Ras – Adbhut Ras Ki Paribhasha अद्भुत रस: इसका स्थायी भाव आश्चर्य होता है जब ब्यक्ति के मन में विचित्र अथवा आश्चर्यजनक वस्तुओं को देखकर जो विस्मय आदि के भाव उत्पन्न होते हैं उसे ही अदभुत रस कहा जाता है इसके अन्दर रोमांच, औंसू आना, काँपना, गद्गद होना, आँखे फाड़कर देखना आदि के भाव व्यक्त होते हैं। इहाँ उहाँ दुह बालक देखा। मति भ्रम मोरि कि आन बिसेखा। देखि राम जननी अकलानी। प्रभु हँसि दीन्ह मधुर मुसुकानी॥ देखरावा मातहि निज, अद्भुत रूप अखण्ड। ‘रोम-रोम प्रति लागे, कोटि-कोटि ब्रह्मण्ड। -तुलसीदास स्पष्टीकरण:– बालक राम को एक साथ ही दो स्थानों पर देखकर माता कौशल्या के मन में उत्पन्न होनेवाला आश्चर्य ही स्थायी भाव’ है। यहाँ राम ‘आलम्बन’ है। राम का एक साथ दो स्थानों पर दिखाई देना तथा उनका अखण्ड रूप ‘उद्दीपन’ है। कौशल्या का पुलकित होना, वचन न निकलना तथा आँखें बन्द करके राम के चरणों में सिर झुकाना ‘अनुभाव’ है। भ्रान्ति, त्रास, वितर्क आदि ‘संचारी भाव’ है। इस प्रकार इन पंक्तियों में अद्भुत रस की पूर्ण अभिव्यक्ति हुई है। अद्भुत रस के अवयव: • स्थाई भाव : आश्चर्य। • आलंबन (विभाव) : आश्चर्य उत्पन्न करने वाला पदार्थ या व्यक्ति। • उद्दीपन (विभाव) : अलौकिक वस्तुओ का दर्शन, श्रवण, कीर्तन आदि । • अनुभाव : दाँतो तले उंगली दवाना, आंखे फाड़कर देखना, रोमांच, आँसू आना, काँपना, गदगद होना आदि। • संचारी भाव : उत्सुकता, आवेग, भ्रान्ति, धृति, हर्ष, मोह आदि । Adbhut Ras Ka Sthayi Bhav – स्थाई भाव अद्भुत रस का स्थायी भाव ‘ आश्चर्य‘ होता है जब ब्यक्ति के मन में विचित्र अथवा आश्चर्यजनक वस्तुओं को देखकर जो विस्मय आदि के भाव उत्पन्न होते हैं उसे ही अदभुत रस कहा जाता है। साहित्यकारों द्वारा अद्भुत रस की परिभाष...

अद्भुत रस की परिभाषा, अवयव और उदाहरण

इस पेज पर आप अद्भुत रस की समस्त जानकारी पढ़ेंगे जो परीक्षा की दृष्टि से जरुरी हैं। पिछले पेज पर हमने रस की परिभाषा शेयर की हैं तो उस पोस्ट को भी जरूर पढ़े। चलिए अद्भुत रस की परिभाषा, अवयव और उदाहरण को पढ़ते और समझते हैं। अद्भुत रस की परिभाषा जहां पर किसी आलौरिक क्रिया कलाप आश्चर्य चकित वस्तुओं को देखकर या उन से सम्बंधित घटनाओं को देखकर मन में जो भाव उत्पन्न होते हैं वहाँ पर अद्भुत रस होता हैं। जब विस्मय भाव अपने अनुकूल, आलंबन, उद्दीपन, अनुभाव और संचारी भाव का सहयोग पाकर अस्वाद का रूप धारण कर लेता है तो उसे अद्भुत रस कहते हैं। अद्भुत रस के 10 उदाहरण उदाहरण 1. बिनू पद चलै सुने बिनु काना। कर बिनु कर्म करै विधि नाना।। उदाहरण 2. इहाँ उहाँ दुह बालक देखा। मति भ्रम मोरि कि आन बिसेखा। उदाहरण 3. देखी राम जननी अकलानी। प्रभू हँसि दीन्ह मधुर मुसुकानी।। उदाहरण 4. देखरावा मातहि निज, अद्भुत रूप अखण्ड। रोम-रोम प्रति लागे, कोटि-कोटि ब्रम्हाण्ड।। उदाहरण 5. देख यशोदा शिशु के मुख में, सकल विश्व की माया, क्षणभर को वह बनी अचेतन, हिल ना सकी कोमल काया। उदाहरण 6. केशव नहीं जाई का कहिये। देखत तब रचना विचित्र अति समुझि मनहीं मन दाहिये।। उदाहरण 7. पद पाताल सीस अजयधामा, अपर लोक अंग-अंग विश्राम। भृकुटि बिलास भयंकर काला, नयन दिवाकर कच धन माला।। उदाहरण 8. लक्ष्मी थी या दुर्गा वह, स्वयं वीरता की अवतार। देख मराठे पुलकित होते, उसकी तलवारों के वार।। उदाहरण 9. आयु सिता-सित रूप चितैचित, स्याँम शरीर रगे रँग रातें। ‘केसव’ कॉनन ही न सुनें, सु कै रस की रसना बिन बातें।। उदाहरण 10. मैं फिर भूल गया इस छोटी सी घटना को और बात भी क्या थी, याद जिसे रखता मन! किंतु, एक दिन जब मैं संध्या को आँगन में टहल रहा था, तब सहसा मैंने जो...

अद्भुत रस की परिभाषा, उदाहरण, स्थायी भाव सहित पूरी जानकारी

इस लेख के माध्यम से आप अद्भुत रस की परिभाषा, भेद, उदाहरण, स्थायी भाव, आलम्बन, उद्दीपन, अनुभाव तथा संचारी भाव सहित अध्ययन कर पाएंगे। इस लेख के अध्ययन उपरांत आप रस विषय से भली-भांति अवगत होंगे। दो रसों के बीच क्या भिन्नता अथवा समानता है जान पाएंगे। विशेष रुप से अद्भुत रस के संदर्भ में आप सूक्ष्म से सूक्ष्म जानकारी हासिल कर अपने ज्ञान की वृद्धि करेंगे – रस किसी भी साहित्य की प्राण तथा आत्मा होती है। साहित्य किसी भी उद्देश्य की पूर्ति के लिए लिखा जाए , किंतु रस सदैव विद्यमान रहता है। रस ग्यारह प्रकार के हैं , कुछ विद्वानों ने रस को नौ रूपों में ही स्वीकार किया है। रस के तेंतीस संचारी भाव है , आचार्यों के अनुसार विभाव , अनुभाव , संचारी भाव आदि के मिश्रण से रस की निष्पत्ति होती है। अद्भुत रस की संपूर्ण जानकारी – Adbhut ras in Hindi स्थायी भाव :- अद्भुत रस का स्थायी भाव विस्मय है। परिभाषा :- विस्मय का साधारण रूप आश्चर्य से है। अर्थात किसी ऐसी चीज को देखकर जब आश्चर्य का भाव जागृत होता है वहां अद्भुत रस होता है। उदाहरण के लिए समझे तो नट समूह के लोग कई ऐसे करतब करते हैं , जो सामान्य व्यक्ति के लिए दुष्कर होते हैं। जैसे • रस्सियों पर दौड़ना , • दोनों पैर आसमान की ओर करके हाथों के बल चलना या • तलवार अथवा डंडों से ऐसे करता प्रस्तुत करना जिसको देखते दर्शक दांतों तले अंगुली दबाने पर विवश हो जाता है। यह विस्मय का स्थायी भाव अद्भुत रस में परिणत होता है। साहित्य में भी इस रस का प्रयोग कुछ इसी प्रकार किया जाता है। जिसको दर्शक पढ़ते अथवा सुनते समय विस्मय/आश्चर्यचकित होता है उसकी उत्सुकता बढ़ती जाती है। भारत के प्राचीन साहित्य में अद्भुत रस का विशेष विवरण पढ़ने को मिलता है। रामायण , महाभारत जै...

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Adbhut Ras adbhut ras जहां पर चकित कर देने के दृश्य के चित्रण से जो रस उत्पन्न होता है वहां अद्भुत रस उत्पन्न होता है. जहां पर चकित कर देने के दृश्य के चित्रण से जो रस उत्पन्न होता है वहां अद्भुत रस Adbhut ras उत्पन्न होता है.किसी असाधारण वस्तु या दृश्य को देखकर मन में विस्मय नमक स्थाई भाव ही विभावावादि से संयुक्त होकर अद्भुत रस में परिणत हो जाता है। Definition Of Adbhut Ras अदभुत रस का स्थायी भाव आश्चर्य होता है। जब ब्यक्ति के मन में विचित्र अथवा आश्चर्यजनक वस्तुओं को देखकर जो विस्मय आदि के भाव उत्पन्न होता है उसे ही अदभुत रस कहा जाता है। इसके अन्दर औंसू आना, रोमांच, गद्गद होना, काँपना, आँखे फाड़कर देखना आदि के भाव व्यक्त होता है। Adbhut Ras In Other Words किसी असाधारण वस्तु या दृश्य को देखकर मन में विस्मय नमक स्थाई भाव ही विभावावादि से संयुक्त होकर अद्भुत रस में परिणत हो जाता है। अद्भुत रस ‘विस्मयस्य सम्यक्समृद्धिरद्भुत: सर्वेन्द्रियाणां ताटस्थ्यं या’-अर्थात् विस्मय की सम्यक समृद्धि या सम्पूर्ण इन्द्रियों की तटस्थता अदभुत रस है। कहने का तातपर्य यह है कि जब किसी रचना में विस्मय 'स्थायी भाव' इस प्रकार पूर्णतया प्रस्फुट हो कि सम्पूर्ण इन्द्रियाँ उससे अभिभावित होकर निश्चेष्ट बन जाएँ, तो वहाँ पर अद्भुत रस की निष्पत्ति होती है। . Adbhut Ras Ke Udaharan अखिल भुवन चर- अचर सब हरि मुख में लखि मातु। चकित भई गद्गद् वचन विकसित दृग पुलकातु॥ देख यशोदा शिशु के मुख में, सकल विश्व की माया, क्षणभर को वह बनी अचेतन, हिल न सकी कोमल काया। चित अलि कत भरमत रहत कहाँ नहीं बास। विकसित कुसुमन मैं अहै काको सरस विकास। देखरावा मातहि निज अदभुत रूप अखण्ड, रोम रोम प्रति लगे कोटि-कोटि ब्रह्माण्ड।

रौद्र रस

Raudra Ras – Raudra ras ki paribhasha रौद्र रस: रौद्र रस काव्य का एक रस है जिसमें ‘स्थायी भाव’ अथवा ‘क्रोध’ का भाव होता है। धार्मिक महत्व के आधार पर इसका वर्ण रक्त एवं देवता रुद्र है। or इसका स्थायी भाव क्रोध होता है जब किसी एक पक्ष या व्यक्ति द्वारा दुसरे पक्ष या दुसरे व्यक्ति का अपमान करने अथवा अपने गुरुजन आदि कि निन्दा से जो क्रोध उत्पन्न होता है उसे रौद्र रस कहते हैं इसमें क्रोध के कारण मुख लाल हो जाना, दाँत पिसना, शास्त्र चलाना, भौहे चढ़ाना आदि के भाव उत्पन्न होते हैं। काव्यगत रसों में रौद्र रस का महत्त्वपूर्ण स्थान है। भरत ने ‘नाट्यशास्त्र’ में श्रृंगार, रौद्र, वीर तथा वीभत्स, इन चार रसों को ही प्रधान माना है, अत: इन्हीं से अन्य रसों की उत्पत्ति बतायी है, यथा-‘तेषामुत्पत्तिहेतवच्क्षत्वारो रसा: श्रृंगारो रौद्रो वीरो वीभत्स इति’ । रौद्र से करुण रस की उत्पत्ति बताते हुए भरत कहते हैं कि ‘रौद्रस्यैव च यत्कर्म स शेय: करुणो रस:’ ।रौद्र रस का कर्म ही करुण रस का जनक होता है, रौद्र रस के अवयव: • स्थाई भाव– क्रोध । • आलंबन (विभाव)– विपक्षी, अनुचित बात कहनेवाला व्यक्ति। • उद्दीपन (विभाव)– विपक्षियों के कार्य तथा उक्तियाँ। • अनुभाव – मुख लाल होना, दांत पीसना, आत्म-प्रशंशा, शस्त्र चलाना, भौहे चढ़ना, कम्प, प्रस्वेद, गर्जन आदि। • संचारी भाव– आवेग, अमर्ष, उग्रता, उद्वेग, स्मृति, असूया, मद, मोह आदि। रौद्र रस का स्थायी भाव – Raudra ras ka sthaye bhav रौद्र रस का ‘स्थायी भाव’ ‘क्रोध’ है तथा इसका वर्ण रक्त एवं देवता रुद्र है। • भानुदत्त ने ‘रसतरंगिणी’ में लिखा है – ‘परिपूर्ण:क्रोधो रौद्र: सर्वेन्द्रियाणामौद्धत्यं वा। वर्णोऽस्य रक्तो दैवतं रुद्र:’, अर्थात स्थायी भाव क्रोध का पूर्णतया प्रस्फ...

अद्भुत रस की परिभाषा, उदाहरण, स्थायी भाव सहित पूरी जानकारी

इस लेख के माध्यम से आप अद्भुत रस की परिभाषा, भेद, उदाहरण, स्थायी भाव, आलम्बन, उद्दीपन, अनुभाव तथा संचारी भाव सहित अध्ययन कर पाएंगे। इस लेख के अध्ययन उपरांत आप रस विषय से भली-भांति अवगत होंगे। दो रसों के बीच क्या भिन्नता अथवा समानता है जान पाएंगे। विशेष रुप से अद्भुत रस के संदर्भ में आप सूक्ष्म से सूक्ष्म जानकारी हासिल कर अपने ज्ञान की वृद्धि करेंगे – रस किसी भी साहित्य की प्राण तथा आत्मा होती है। साहित्य किसी भी उद्देश्य की पूर्ति के लिए लिखा जाए , किंतु रस सदैव विद्यमान रहता है। रस ग्यारह प्रकार के हैं , कुछ विद्वानों ने रस को नौ रूपों में ही स्वीकार किया है। रस के तेंतीस संचारी भाव है , आचार्यों के अनुसार विभाव , अनुभाव , संचारी भाव आदि के मिश्रण से रस की निष्पत्ति होती है। अद्भुत रस की संपूर्ण जानकारी – Adbhut ras in Hindi स्थायी भाव :- अद्भुत रस का स्थायी भाव विस्मय है। परिभाषा :- विस्मय का साधारण रूप आश्चर्य से है। अर्थात किसी ऐसी चीज को देखकर जब आश्चर्य का भाव जागृत होता है वहां अद्भुत रस होता है। उदाहरण के लिए समझे तो नट समूह के लोग कई ऐसे करतब करते हैं , जो सामान्य व्यक्ति के लिए दुष्कर होते हैं। जैसे • रस्सियों पर दौड़ना , • दोनों पैर आसमान की ओर करके हाथों के बल चलना या • तलवार अथवा डंडों से ऐसे करता प्रस्तुत करना जिसको देखते दर्शक दांतों तले अंगुली दबाने पर विवश हो जाता है। यह विस्मय का स्थायी भाव अद्भुत रस में परिणत होता है। साहित्य में भी इस रस का प्रयोग कुछ इसी प्रकार किया जाता है। जिसको दर्शक पढ़ते अथवा सुनते समय विस्मय/आश्चर्यचकित होता है उसकी उत्सुकता बढ़ती जाती है। भारत के प्राचीन साहित्य में अद्भुत रस का विशेष विवरण पढ़ने को मिलता है। रामायण , महाभारत जै...