Adhyaropan ka siddhant in hindi

  1. सिगमंड फ्रायड का मनोविश्लेषण सिद्धांत: Sigmund Freud Theory In Hindi
  2. कोहलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धांत
  3. चार्ल्स डार्विन
  4. बाल विकास के सिद्धांत
  5. जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत


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सिगमंड फ्रायड का मनोविश्लेषण सिद्धांत: Sigmund Freud Theory In Hindi

प्रतिपादक- सिगमंड फ्रायड निवासी- ऑस्ट्रिया (वियना) 1856-1939 यह सिद्धांत सिगमंड फ्रायड ने दीया, इन्होंने अपने सिद्धांत को समझाने के लिए मन के तीन स्तर बताएं जो इस प्रकार है। 1. चेतन मन ( 10%),1\10 भाग 2. अर्द्ध चेतन मन 3. अचेतन मन (90%),9\10 भाग (1)चेतन मन- यह मन वर्तमान से संबंधित है। (2) अर्द्ध चेतन मन – ऐसा मन जिसमें याद होते हुए भी याद ना आए कोई भी चीज, पर जब मन पर ज्यादा जोर दिया जाए तो यह ( कोई भी चीज) याद आ जाता है। (3) अचेतन मन – जो मन चेतना में नहीं होता, यह दुखी, दम्भित इच्छाओं का भंडार होता है। मन के आधार पर फ्रायड ने व्यक्तित्व को तीन भागों में बांटा है। 1. Id (इदम् ) 2. Ego (अहम् ) 3. Super ego (पराअहम्) ये भी जाने: जेरोम ब्रूनर का संज्ञानात्मक सिद्धांत 1. Id (इड़) इदम् • सुख वादी सिद्धांत पर आधारित होता है। • यह अचेतन मन से जुड़ा हुआ होता है। • काम प्रवृत्ति सबसे बड़ा सुख है। • इदम् पार्श्विक प्रवृत्ति से जुड़ा है। • Id ,Ego अहम् द्वारा नियंत्रित होता है। 2. Ego (अहम् ) • इसमे वास्तविकता पर आधारित है। • यह अर्द्ध चेतन मन से जुड़ा है। • इसमें उचित अनुचित का ज्ञान होता है। • यह मानवतावादी से संबंधित है। 3. Super ego (पराअहम्) • यह आदर्शवादी सिद्धांत है। • यह Id और Ego पर नियंत्रित करता है। • यह पूरी तरह सामाजिकता एवं नैतिकता पर आधारित है। • यह चेतन मन से जुड़ा हुआ है। इसमें प्रवृत्ति देवत्त होती है। सिगमंड फ्रायड ने दो प्रकार की मूल प्रवृत्तियां बताए हैं। (1) जीवन मूल प्रवृत्ति – यह जीने के लिए साधन जुटाने के लिए अभी प्रेरित करती है। यह जीवन मूल प्रवृत्ति के शारीरिक व मानसिक दोनों पक्षों का प्रतिनिधित्व करती है। इसमें काम, वासना, भूख, व्यास शामिल है। (2) मृत्यु ...

कोहलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धांत

कोहलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धांत Kohlberg Theory पियाजे के नैतिक-मूल्यों के सिद्धांतों से प्रेरित था। कोहलबर्ग (1927-1987) अमेरिका के मनोवैज्ञानिक थे, जिनके द्वारा नैतिक-मूल्यों के विकास के सिद्धांतों का प्रतिपादन किया गया था। इनके इन सिद्धांतो को शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किया जाता हैं। इनके इन विचारों को छात्रों के जीवन हेतु क्या वस्तु या विचार नैतिक हैं या अनैतिक इसका निर्धारण नैतिक-मूल्यों के विकास द्वारा ही किया जाता हैं। इसलिए कोहलबर्ग के इस सिद्धांत को कोहलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धांत (Kohlberg Moral Devlopment Theory) के नाम से जाना जाता हैं। कोहलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धांत |Kohlberg Theory of Moral Devlopment in Hindi कोहलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धान्त कोहलबर्ग ने अपने नैतिक विकास के सिद्धान्त का प्रतिपादन वर्ष 1969 में किया एवं 1981 और 1984 में अपने विचारों में संशोधन का कार्य किया। कोहलबर्ग के अनुसार नैतिकता छात्रों के भावात्मक स्वरूप का अंग होती हैं। कोहलबर्ग अपने परीक्षण हेतु कथाओं का उपयोग करते थे। वह इन कथाओं के माध्यम से छात्रों से कुछ प्रश्न पूछते थे और उन प्रश्नों से प्राप्त उत्तरों के माध्यम से नैतिक विकास के सिद्धांतों का निर्माण करते थे। उदाहरण – कोहलबर्ग की एक कथा जिसमें से प्रत्येक शिक्षक संबंधित परीक्षाओं में प्रश्न पूछे जाते हैं जो कि एक लघु कथा हैं वह इस प्रकार हैं- यूरोप की एक महिला जो कि बीमार थी जो मौत और जिंदगी के मध्य लड़ाई लड़ रही थी। उसके पति का नाम हिंज था। डॉक्टर के अनुसार एक रेडियम हैं जिससे इसकी जान बचाई जा सकती हैं। उस समय उस रेडियम की खोज एक फार्मेसिस्ट ने की थी। उस दवाई का मूल्य बहुत अधिक था क्योंकि जिस ...

कौटिल्य:

कौटिल्य को भारतीय राजनीतिक विचारों का जनक माना जाता है. उनका जन्म चौथी ईसा पूर्व मगध राज्य में हुआ. उनके बचपन का नाम विष्णुगुप्त था तथा उन्हें चाणक्य भी कहा जाता है. उन्होंने विश्व प्रसिद्ध पुस्तक “अर्थशास्त्र” की रचना की. उनकी शिक्षा-दीक्षा तक्षशिला विश्वविद्यालय में हुई बाद में वे वहीं अध्यापक भी थे. एक बार नन्द राजा द्वारा आयोजित ब्राह्मण भोज में उन्हें आमंत्रित किया गया जहाँ नन्द राजा ने कौटिल्य का अपमान किया. इसके चलते कौटिल्य ने नन्द वंश का समूल नाश करने की प्रतिज्ञा की. उन्होंने चन्द्र गुप्त मौर्य नामक एक सैनिक को प्रशिक्षण प्रदान किया तथा उसके द्वारा नन्द वंश का तख्तापलट कर दिया. इसी के साथ महान् मौर्य वंश का उत्थान हुआ. कौटिल्य ने सर्वप्रथम एक व्यवस्थित राज्य व्यवस्था का विचार प्रदान किया. राज्य की उत्पत्ति उन्होंने राज्य की उत्पत्ति का समझौतावादी सिद्धांत दिया है अर्थात् उन्होंने कहा कि राज्य में पहले मत्स्य् न्याय था जिसके चलते अव्यवस्था उत्पन्न हो गयी. तब लोगों ने मनु को अपना राजा चुना. राज्य के लोगों ने मनु को कर के रूप में अपने अनाज का छठा भाग, व्यापार का दसवाँ भाग तथा पशु व्यापार लाभ का पचासवाँ भाग देने का वचन दिया. सप्तांग सिद्धांत कौटिल्य ने राज्य के सात अंगों का वर्णन किया है तथा राज्य के सभी अंगों की तुलना शरीर के अंगों से की है. जबकि आधुनिक राज्यों में राज्य के चार लक्षण या अंग पाए जाते हैं. कौटिल्य द्वारा वर्णित राज्य के सात अंग निम्नलिखित हैं- 1. राजा या स्वामी कौटिल्य ने राजा को राज्य का केंद्र व अभिन्न अंग माना है तथा उन्होनें राजा की तुलना शीर्ष से की है. उनका मानना है कि राजा को दूरदर्शी, आत्मसंयमी, कुलीन,स्वस्थ,बौद्धिक गुणों से संपन्न तथा महावीर ...

चार्ल्स डार्विन

चार्ल्स डार्विन डार्विन, 45 की उम्रमें 1854 जन्म चार्ल्स रॉबर्ट डार्विन 12 फ़रवरी 1809 दि माउंट, श्र्यूस्बरी, श्रोपशायर, मृत्यु 19 अप्रैल 1882 ( 1882-04-19) (उम्र73) डाउनहाउस, लक्सटेड रोड, डाउन, केंट, यूनाइटेड किंगडम आवास इंग्लैण्ड नागरिकता ब्रिटिश राष्ट्रीयता ब्रिटिश क्षेत्र संस्थान Tertiary education: Professional institution: अकादमी सलाहकार प्रसिद्धि दि वॉयज ऑफ़ दि बीगल प्राकृतिक वरण प्रभाव प्रभावित जोसेफ़ डाल्टन हुकर जॉन लुबोक उल्लेखनीय सम्मान अनुक्रम • 1 पत्राचार • 2 डार्विन का व्यवसाय • 3 इन्हें भी देखें • 4 सन्दर्भ • 5 बाहरी कड़ियाँ पत्राचार [ ] कई वर्षों के दौरान, जिसमें उन्होंने अपने सिद्धान्त को परिष्कृत किया, डार्विन ने अपने अधिकांश साक्ष्य विशेषज्ञों के लम्बे पत्राचार से प्राप्त किया। डार्विन का मानना था कि वे प्रायः किसी से चीजों को सीख सकते हैं और वे विभिन्न विशेषज्ञों, जैसे, कैम्ब्रिज के प्रोफेसर से लेकर सुअर-पालकों तक से अपने विचारों का आदान-प्रदान करते थे। डार्विन का व्यवसाय [ ] बीगल पर विश्व भ्रमण हेतु अपनी समुद्री-यात्रा को वे अपने जीवन की सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना मानते थे जिसने उनके व्यवसाय को सुनिश्चित किया। समुद्री-यात्रा के बारे में उनके प्रकाशनों तथा उनके नमूने इस्तेमाल करने वाले प्रसिद्ध वैज्ञानिकों के कारण, उन्हें लंदन की वैज्ञानिक सोसाइटी में प्रवेश पाने का अवसर प्राप्त हुआ। अपने कैरियर के प्रारंभ में, डार्विन ने प्रजातियों के जीवाश्म सहित बर्नाकल (विशेष हंस) के अध्ययन में आठ वर्ष व्यतीत किए। उन्होंने 1851 तथा 1854 में दो खंडों के जोड़ों में बर्नाकल के बारे में पहला सुनिश्चित वर्गीकरण विज्ञान का अध्ययन प्रस्तुत किया। इसका अभी भी उपयोग किया जाता ह...

बाल विकास के सिद्धांत

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जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत

प्रवर्तक – इस सिद्धांत के प्रतिपादक जीन पियाजे ,स्विट्जरलैंड के निवासी थे। जीन पियाजे एक मनोवैज्ञानिक और आनुवंशिक एपिस्टेमोलॉजिस्ट थे। वह सबसे अधिक संज्ञानात्मक विकास के अपने सिद्धांत के लिए प्रसिद्ध है जो इस बात पर ध्यान देता है कि बचपन के दौरान बच्चे बौद्धिक रूप से कैसे विकसित होते हैं। पियाजे के सिद्धांत से पहले, बच्चों को अक्सर केवल मिनी-वयस्कों के रूप में सोचा जाता था। इसके बजाय, पियाजे ने सुझाव दिया कि जिस तरह से बच्चे सोचते हैं, वह उस तरह से अलग है, जिस तरह से वयस्क सोचते हैं। Advertisement उनके सिद्धांत का मनोविज्ञान के भीतर एक विशिष्ट उपक्षेत्र के रूप में विकासात्मक मनोविज्ञान के उद्भव पर जबरदस्त प्रभाव था और शिक्षा के क्षेत्र में बहुत योगदान दिया। उन्हें रचनावादी सिद्धांत के एक अग्रणी के रूप में भी श्रेय दिया जाता है, जो बताता है कि लोग अपने विचारों और अपने अनुभवों के बीच की बातचीत के आधार पर सक्रिय रूप से दुनिया के अपने ज्ञान का निर्माण करते हैं। 2002 के एक सर्वेक्षण में पियाजे को बीसवीं शताब्दी के दूसरे सबसे प्रभावशाली मनोवैज्ञानिक के रूप में स्थान दिया गया था। Jean Piaget cognitive development theory facts: Jean Piaget • सर्वप्रथम संज्ञानात्मक पक्ष का क्रमबद्ध व वैज्ञानिक अध्ययन स्विट्जरलैंड के प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक जीन पियाजेके द्वारा किया गया। • संज्ञान- प्राणी का वह व्यापक और स्थाई ज्ञान है जिससे वह वातावरण/ उद्दीपक जगत/ बाह्य जगत के माध्यम से ग्रहण करता है। • समस्या समाधान, समप्रत्ययीकरर्ण ( विचारों का निर्माण), प्रत्येकक्षण( देखकर सीखना) आदि मानसिक क्रियाएं सम्मिलित होती है। यह क्रियाएं परस्पर अंतर संबंधित होती हैं। • जीन पियाजेका संज्ञानात्मक पक्ष पर बल ...