अमर काव्य वंशावली के लेखक

  1. मैथिलिचरण गुप्त का जीवन परिचय
  2. विद्यापति का अमर काव्य
  3. प्राचीन वंशावली
  4. ऐतिहासिक स्रोत
  5. राजस्थान के इतिहास के प्रमुख स्रोत
  6. Setu 🌉 सेतु: पाश्चात्य आलोचना के अमर शिल्पी: मैथ्यू आर्नल्ड


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मैथिलिचरण गुप्त का जीवन परिचय

मैथिलिचरण गुप्त का जीवन परिचय | Maithili Sharan Gupt Biography In Hindi नर होकर निराश न करो मन को कविता और साकेंत जैसे अमर काव्य लिखने वाले हिंदी साहित्यकार मैथिलिचरण गुप्त ही थे. खड़ी बोली हिंदी के स्तम्भ कहे जाने वाले गुप्त जी ने ब्रज जैसी भाषा में काव्य लिखने की बजाय आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी का अनुसरण करते हुए हिंदी में कदम रखा था. और आज उनकों आजादी के दौर में युवाओं के दिनों में आजादी की हकार भरने वाले राष्ट्रभक्त कवि भी कहा जाता हैं. ऐसें उज्जवल जीवन के धनी श्री मैथिलिचरण गुप्त के बारे में सक्षिप्त जानकारी के लिए नजर डालते हैं. 1.5 Related Posts: बिंदु जानकारी नाम मैथिलीशरण गुप्त जन्म 3 अगस्त 1886 आयु 78 वर्ष जन्म स्थान झाँसी, उत्तरप्रदेश पिता का नाम रामचरण गुप्त माता का नाम कशीवाई पत्नी का नाम ज्ञात नहीं पेशा लेखक, कवि भाषा शैली ब्रजभाषा मृत्यु 12 दिसम्बर 1964 मृत्यु स्थान चिरगाँव अवार्ड पद्म भूषण, पद्म विभूषण, राष्टकवि,डी.लिट. रचनाएं यशोधरा रंग में भंग साकेत भारत भारती भारत की स्वाधीनता के लिए संघर्ष का आवहान करने और भारतीय संस्क्रति की तात्विक विशेषताओं को अपने प्रबंध काव्य के माध्यम से व्याख्या करने के कारण मैथिलिचरण गुप्त राष्ट्रकवि के रूप में जाने-माने गये. आपका जन्म 1886 को चिरगांव जिला झाँसी उत्तरप्रदेश में हुआ था. आपकी शिक्षा घर पर ही हुई, परन्तु काव्य दीक्षा सरस्वती के स्वनामधन्य संपादक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के द्वारा प्राप्त हुई. आपके भारत-भारती नामक काव्य को अतीव लोकप्रियता प्राप्त हुई और भारत के राष्ट्रिय जागरण में इसका महत्वपूर्ण योगदान रहा. आपकी सभी कविताओं में राष्ट्रीयता और सांस्कृतिकता का उन्मेष दिखाई पड़ता हैं. सांकेत आपका सर्वश्रेष्ट ...

विद्यापति का अमर काव्य

( ६ जीवन से विद्यापति की इस सीमा तक की एकरूपता ने सम्भवतः विद्यापति के बंगदेजीय होने की ्ान्ति को जन्म दिया । ४. विद्यापति के युग का सिथिला सव था । लेकिन उनके * ग्रथिकां पद राधा-कृष्ण के डीवन से सम्बन्धित थे । यही कारण है कि विद्यापति विहार के तत्कालीन धार्मिक आन्दोलन से इतने बाहर चल गये कि सिहार वाले उनके मिथिलात्व तक को विस्यृत कर बेठे । विंद्यापति के प्रर्ति पिधिला की इस ्रनासक्ति ने बंगाली पिद्वारनों को विद्यापति के बंगालीकरण करने की प्रयाप्त छूट दे दी। विद्यापति के मेंथिल होने के प्रमाण १. भाषा वैज्ञानिक हृर्ष्टिकोंण से जोनवीन्स महोदय ने विद्यापति की पदांवली की भाषा कों बंगला नहीं माना । श्री प्रिंयसंत ने अपने ग्रंथ “एन इन्ट्रौडक्यन टू दि सैपिली लैन्वज आफ नाथें शिहार'” में मैथिली भाषा की स्वायत्तता सिद्ध की । नगेन्द्रवाय गुप्त महामंहोपाध्याय हर्रिप्रसाद दास्त्री प्रभृरति विद्वानों ने भीं इसीं मत को मान्यता प्रदान कीं 1 ... २. विद्यापति रचित ग्रन्यों की प्राचीन प्रतियाँ मिथिला के गावों में पाई गईहूँ। .. दर कु _ ३. मिथिला में पंजी प्रथा का प्रचलन है। १३२६ ई« में राजा हुर्रिसिंह की आज्ञा से मिथिला पूंजों की रचना हुई । उसमें विद्यापति का वश वृक्ष भी पाया जाता है । दे ए ४. कबि की स्वयं की रचनाएँ उसके प्िथिला प्रदेशीय होने गा की घोषणा करती हूँ । कर्वि की रचनाश्ों में जिन राजाओं श्र ल्‍ रानियों का उल्लेख हुमा है वे सब मिला ब्रान्त की हैं । विद्याप्ति की हर दे स्वनाओं का भौगोलिक परिवेश बंगाल का ने होकर मि थिला का हैं । है मर . ं भू. राजा दिवसिंह ने चिद्यापति को श्रावण सुद्दी सप्तमी, गुरुवार “का : लक्ष्मण सम्वतु २६ ३ के (सिंहास .रूढ़ होने पर) दिन विसपी ग्राम दान नि पे में दिया...

प्राचीन वंशावली

अनुक्रम • 1 सूर्यवंश • 2 चंद्रवंशी–पुरुवंश • 2.1 पुरु वंश • 2.2 सम्राट भरत वंश • 2.3 पांचाल राज्य • 3 चंद्रवंशी–यदुवंश • 3.1 हैहय वंश • 3.2 क्रोष्टा वंश • 3.2.1 वृष्णि वंश • 3.2.2 चेदि वंश • 3.2.3 कुकुरा राजवंश • 4 कुरु राजवंश (1500–345 ई.पू.) • 5 प्राचीन मगध • 5.1 प्रथम मगध राजवंश • 5.2 बृहद्रथ राजवंश • 6 इन्हें भी देखें • 7 सन्दर्भ • 8 स्रोत सूर्यवंश [ ] मुख्य लेख: सहस्रजीत • • • • • • • • महिष्मान ( • (सूर्यवंशी राजा • (सूर्यवंशी राजा • • • • • • (सूर्यवंशी राजा • • • (सूर्यवंशी राजा • (सूर्यवंशी • • क्रोष्टा वंश [ ] • • क्रोष्टा • वृजनिवन • व्रजपिता • भीम I • निवृति • विदुरथ • विक्रति • विक्रवन • स्वाही • स्वाति • उशनाका • रसडू • चित्ररथ प्रथम • साशाबिन्दु (सूर्यवंशी राजा मान्धाता के समकालीन) • मधु प्रथम • पृथ्वीश्रवा • वृष्णि वंश [ ] मुख्य लेख: • अंतरा • सुयज्ञ • उषा • मारुतता • • शाइन्यू • रुचाका • रुक्माकवच • जयमधा • • कृत (सूर्यवंशी • रायवाटा • विश्वंभर • पद्मवर्ण • सरसा • हरिता • • माधव • पुरुवास • पुरुदवन • जंटू • सातवात (एक यादव राजा थे जिनके वंशज सातवत कहलाते थे।) • भीम द्वितीय • अंधका (एक और यादव राजा था जिसके वंशज अंधक कहलाते थे।) • महाभोज • जीवता (सूर्यवंशी राजा अथिति के समकालीन) • विश्वंभर • वासु • कृति • कुंती • धृष्टी • तुर्वसु • दर्शन • व्योमा • जिमूता • विकृति • भीमरथ • रथवारा • नवरथ • दशरथ • एकादशारथ • शकुनि • करिभि • देवरात • देवक्षेत्र • देवला • मधु • भजमन • पुरुवाशा • पुरुहोत्र • कुमारवंश • कुंभलभी • रुक्मावतवाच • कुरुवंश • अनु • प्रवासी • पुरुमित्र • श्रीकर • चित्ररथ द्वितीय • विदुरथ • शौर्य • शार्मा • पृथ्वीराज • स्वयंभूज • हरधिका • वृष्णि द्वितीय...

ऐतिहासिक स्रोत

अनुक्रम • 1 भारतीय इतिहास के स्रोत • 1.1 साहित्यिक स्रोत • 2 सन्दर्भ • 3 इन्हेंभीदेखें • 4 बाहरीकड़ियाँ भारतीय इतिहास के स्रोत [ ] साहित्यिक स्रोत [ ] • • • • • • संगत रासो – गिरधर आंसिया • बेलिकृष्ण रुकमणीरी – पृथ्वीराज राठौड़ • अचलदास खीची री वचनिका – शिवदास गाडण • कान्हड़ दे प्रबन्ध – पदमनाभ • पातल और पीथल – कन्हैया लाल सेठिया • धरती धोरा री – कन्हैया लाल सेठिया • लीलटास – कन्हैया लाल सेठिया • रूठीराणी, चेतावणी रा चूंगठिया – केसरीसिंह बारहड • राजस्थानी कहांवता – मुरलीधर ब्यास • • मारवाड रे परगाना री विगत – मुहणौत नैणसी • • • • राजविनोद -- यह भट्ट सदाशिव द्वारा लिखा गया है और मेवाड़ के गुहिल एवं सोलहवीं शताब्दी में राजस्थान के सामाजिक परिवेश की जानकारी देता है। • • करमचंद वंशों कीर्तन काव्यम् -- यह जयसोम द्वारा लिखा गया है जो बीकानेर के राठौरों का इतिहास बीकानेर दुर्ग की निर्माण की जानकारी देता है। • अमरसार -- पंडित जीवाधर द्वारा रचित ग्रन्थ जो • अमर काव्य वंशावली -- रणछोड़ भट्ट द्वारा लिखी गई है जो मेवाड़ के गुहीलो का विशेष कर महाराणा राजसिंह की गाथा का वर्णन है। • राज रत्नाकर -- सदाशिव द्वारा लिखा गया है और महाराणा • अजीतोदय -- भट्ट जगजीवन द्वारा लिखा गया है और जोधपुर के राठौरों का तथा अजीत सिंह राठौड़ का इतिहास बताता है। • भट्टिकाव्य -- भट्टि द्वारा लिखा गया है १५शताब्दी में जैसलमेर की राजनीतिक एवं सामाजिक स्थिति पर महत्वपूर्ण प्रकाश डालता है। सन्दर्भ [ ] • Alemannisch • العربية • Català • Čeština • Чӑвашла • Dansk • Deutsch • English • Esperanto • Español • Euskara • فارسی • עברית • Magyar • Bahasa Indonesia • Italiano • 日本語 • 한국어 • Latviešu • Монгол • Bahasa Melayu ...

राजस्थान के इतिहास के प्रमुख स्रोत

Rajasthan GK PDF Download 1. राजस्थान में प्रजामंडल आन्दोलन Download 2. राजस्थान में किसान आन्दोलन Download 3. राजस्थान में 1857 की क्रांति Download 4. राजस्थान का एकीकरण Download 5. राजस्थान के पुरातात्विक स्थल Download 6. राजस्थान की हस्तकला Download 7. मेवाड़ का इतिहास Download 8. मारवाड़ का इतिहास Download 9. चौहानों का इतिहास Download 10. अलवर, भरतपुर, करौली, जैसलमेर रियासतों का इतिहास Download 11. राजस्थान का भूगोल Download 12. राजस्थान में अपवाह तंत्र Download 13. राजस्थान का अपवाह तंत्र Download 14. राजस्थान की जलवायु Download 15. राजस्थान में कृषि Download 16. राजस्थान में खनिज उत्पादन Download 17. Rajasthan Geography HandWritten Notes PDF Download 18. Geography Handwritten Notes In Hindi Download 19. Physical Geography Handwritten Notes PDF Download 20. General Science Handwritten Notes Pdf Download

Setu 🌉 सेतु: पाश्चात्य आलोचना के अमर शिल्पी: मैथ्यू आर्नल्ड

मैथ्यू आर्नल्ड को उन्नीसवीं शताब्दी का मूर्धन्य आलोचक , यथार्थवादी काव्यचिंतक तथा प्रथम कोटि का कवि माना गया है। वस्तुतः इनका समय सन् 1822 से 1888 ई० है। आर्नल्ड का शिक्षण विंचेस्टर , रग्बी और बेलिअल कालेज , ऑक्सफोर्ड में हुआ तथा यहीं से वे सन् 1884 में आनर्स के साथ स्नातक और दूसरे वर्ष ही फेलो ऑफ़ आरिअल के लिए निर्वाचित हुए। कई वर्षो तक ऑक्सफोर्ड में काव्य के आचार्य होने के साथ-साथ उन्हें एक बेहतरीन शिक्षाशास्त्री होने का गौरव भी प्राप्त है। सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर कई बार यूरोप के विभिन्न देशों में वहाँ की शिक्षा पद्धति का अध्ययन करने के लिए भेजे गये और उन्होंने शिक्षा सम्बन्धी विवरण प्रस्तुत करते हुए आंग्ल शिक्षा पद्धति की सीमाओं का स्पष्ट रूप से संकेत किया। सबसे महत्वपूर्ण बात है कि इंग्लैंड के शासन ने आर्नल्ड के विचारों को मान्यता भी प्रदान की। यद्यपि आर्नल्ड ने लगभग चालीस पुस्तकें लिखी है पर आलोचना की दृष्टि से ‘ एसेज इन क्रिटिसिज्म ’, ‘ ऑन द स्टडी ऑफ़ सेल्टिक कल्चर ’, ‘ लिटरेचर एंड ड्रामा ’ और ‘ कल्चर एंड अनार्की ’ विशेष उल्लेखनीय हैं। ये बड़े शिष्ट , सुसंस्कृत व्यवहार वाले मृदुभाषी विद्वान् थे। ऑक्सफ़ोर्ड के वातावरण से ये बहुत प्रभावित थे। अपने प्रारंभिक जीवन में ये काव्य रचना में प्रवृत्त रहे और बाद में आलोचना में संलग्न रहे फिर भी काव्य रचना कुछ न कुछ बाद में भी चलती रही। ये पद्य और गद्य दोनों ही रचनाओं में जीवन के आलोचक रहे। आर्नल्ड के लेखन में सुरुचि और गाम्भीर्य बराबर मिलता है। मैथ्यू आर्नल्ड को महान् आधुनिक आलोचक कहा गया है। आधुनिक अंग्रेजी आलोचना का प्रारम्भ मैथ्यू आर्नल्ड से ही होता है। सामान्यतया उनके साहित्यिक जीवन का आरंभ काव्य-रचना से हुआ परन्तु स्वभाव ...