Argala stotram in hindi

  1. Durga Saptashati Argala Stotram in Hindi
  2. अर्गला स्तोत्रम् अर्थ सहित
  3. [अर्गला स्तोत्रम्] ᐈ Argala Stotram Lyrics In Hindi/Sanskrit With PDF
  4. अर्गला स्तोत्र हिंदी में


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Durga Saptashati Argala Stotram in Hindi

॥ अथार्गलास्तोत्रम् ॥ ॐ अस्य श्रीअर्गलास्तोत्रमन्त्रस्य विष्णुर्ऋषिः,अनुष्टुप् छन्दः, श्रीमहालक्ष्मीर्देवता, श्रीजगदम्बाप्रीतयेसप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः॥ ॐ नमश्‍चण्डिकायै॥ मार्कण्डेय उवाच ॐ जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी। दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥1॥ जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतार्तिहारिणि। जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोऽस्तु ते॥2॥ मधुकैटभविद्राविविधातृवरदे नमः। रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥3॥ महिषासुरनिर्णाशि भक्तानां सुखदे नमः। रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥4॥ रक्तबीजवधे देवि चण्डमुण्डविनाशिनि। रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥5॥ शुम्भस्यैव निशुम्भस्य धूम्राक्षस्य च मर्दिनि। रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥6॥ वन्दिताङ्‌घ्रियुगे देवि सर्वसौभाग्यदायिनि। रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥7॥ अचिन्त्यरुपचरिते सर्वशत्रुविनाशिनि। रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥8॥ नतेभ्यः सर्वदा भक्त्या चण्डिके दुरितापहे। रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥9॥ स्तुवद्‌भ्यो भक्तिपूर्वं त्वां चण्डिके व्याधिनाशिनि। रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि१॥10॥ चण्डिके सततं ये त्वामर्चयन्तीह भक्तितः। रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥11॥ देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्। रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥12॥ विधेहि द्विषतां नाशं विधेहि बलमुच्चकैः। रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥13॥ विधेहि देवि कल्याणं विधेहि परमां श्रियम्। रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥14॥ सुरासुरशिरोरत्ननिघृष्टचरणेऽम्बिके। रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥15॥ विद्यावन्तं यशस्वन्तं लक्ष्मीवन्तं जनं कुरु। रुपं देहि...

अर्गला स्तोत्रम् अर्थ सहित

Argala Stotram Meaning in Hindi अर्गला स्तोत्र का विनियोग ॥अथ अर्गला स्तोत्रम्॥ ॐ अस्य श्री अर्गलास्तोत्रमन्त्रस्य विष्णुर्ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः, श्रीमहालक्ष्मीर्देवता, श्रीजगदम्बाप्रीतये सप्तशती पाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः॥ ॐ नमश्चण्डिकायै ॐ, श्री अर्गलास्तोत्र मंत्रके विष्णु ऋषि, अनुष्टुप छन्द, श्रीमहालक्ष्मी देवता है। श्री जगदम्बा की कृपा के लिए सप्तशती पाठ के पहले इसका विनियोग किया जाता है। ॐ चंडिका देवी को नमस्कार है। अर्गला स्तोत्र माँ जगदम्बा के सभी रूपों को नमस्कार मार्कण्डेय उवाच ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी। दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते॥१॥ मार्कण्डेय जी कहते हैं – जयन्ती, मंगला, काली, भद्रकाली, कपालिनी, दुर्गा, क्षमा, शिवा, धात्री, स्वाहा और स्वधा – इन नामों से प्रसिद्ध जगदम्बिके! तुम्हें मेरा नमस्कार है। चामुंडा देवी को नमस्कार जय त्वं देवी चामुण्डे जय भूतार्ति-हारिणि। जय सर्वगते देवी कालरात्रि नमोऽस्तुते॥२॥ देवी चामुण्डे! तुम्हारी जय हो। सम्पूर्ण प्राणियों की पीड़ा हरने वाली देवी! तुम्हारी जय हो। सब में व्याप्त रहने वाली देवी! तुम्हारी जय हो। कालरात्रि! तुम्हें नमस्कार है॥ मधुकैटभविद्रावि-विधातृ वरदे नमः। रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥३॥ मधु और कैटभ को मारने वाली तथा ब्रह्माजी को वरदान देने वाली देवी! तुम्हे नमस्कार है। तुम मुझे रूप (आत्मस्वरूप का ज्ञान) दो, जय (मोह पर विजय) दो, यश (मोह-विजय और ज्ञान-प्राप्तिरूप यश) दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो॥ रूप – आत्मस्वरूप का ज्ञान जय – मोह पर विजय यश – मोह पर विजय और ज्ञान-प्राप्तिरूप यश महिषासुर-निर्णाशि भक्तानां सुखदे नमः। रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥ ४॥ महिषासुर का ...

[अर्गला स्तोत्रम्] ᐈ Argala Stotram Lyrics In Hindi/Sanskrit With PDF

Argala Stotram Lyrics In Hindi/Sanskrit अस्यश्री अर्गला स्तोत्र मन्त्रस्य विष्णुः ऋषिः। अनुष्टुप्छन्दः। श्री महालक्षीर्देवता। मन्त्रोदिता देव्योबीजं। नवार्णो मन्त्र शक्तिः। श्री सप्तशती मन्त्रस्तत्वं श्री जगदन्दा प्रीत्यर्थे सप्तशती पठां गत्वेन जपे विनियोगः॥ ध्यानं ॐ बन्धूक कुसुमाभासां पञ्चमुण्डाधिवासिनीं। स्फुरच्चन्द्रकलारत्न मुकुटां मुण्डमालिनीं॥ त्रिनेत्रां रक्त वसनां पीनोन्नत घटस्तनीं। पुस्तकं चाक्षमालां च वरं चाभयकं क्रमात्॥ दधतीं संस्मरेन्नित्यमुत्तराम्नायमानितां। अथवा या चण्डी मधुकैटभादि दैत्यदलनी या माहिषोन्मूलिनी या धूम्रेक्षन चण्डमुण्डमथनी या रक्त बीजाशनी। शक्तिः शुम्भनिशुम्भदैत्यदलनी या सिद्धि दात्री परा सा देवी नव कोटि मूर्ति सहिता मां पातु विश्वेश्वरी॥ ॐ नमश्चण्डिकायै मार्कण्डेय उवाच ॐ जयत्वं देवि चामुण्डे जय भूतापहारिणि। जय सर्व गते देवि काल रात्रि नमोऽस्तुते॥1॥ मधुकैठभविद्रावि विधात्रु वरदे नमः ॐ जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी ॥2॥ दुर्गा शिवा क्षमा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥3॥ महिषासुर निर्नाशि भक्तानां सुखदे नमः। रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥4॥ धूम्रनेत्र वधे देवि धर्म कामार्थ दायिनि। रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥5॥ रक्त बीज वधे देवि चण्ड मुण्ड विनाशिनि । रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥6॥ निशुम्भशुम्भ निर्नाशि त्रैलोक्य शुभदे नमः रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥7॥ वन्दि ताङ्घ्रियुगे देवि सर्वसौभाग्य दायिनि। रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥8॥ अचिन्त्य रूप चरिते सर्व शतृ विनाशिनि। रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥9॥ नतेभ्यः सर्वदा भक्त्या चापर्णे दुरितापहे। रूपं ...

अर्गला स्तोत्र हिंदी में

अर्गला स्तोत्र का पाठ मार्कण्डेय जी कहते हैं – जयन्ती, मंगला, काली, भद्रकाली, कपालिनी, दुर्गा, क्षमा, शिवा, धात्री, स्वाहा और स्वधा – इन नामों से प्रसिद्ध देवी! तुम्हें मैं नमस्कार करता हूँ, हे देवी! सम्पूर्ण प्राणियों की पीड़ा हरने वाली तथा सबमें व्याप्त रहने वाली देवी! तुम्हारी जय हो। कालरात्रि! तुम्हें नमस्कार है, मधु और कैटभ को मारने वाली, ब्रह्माजी को वरदान देने वाली देवी!तुम्हें नमस्कार है। तुम मुझे रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।महिषासुर का नाश करने वाली तथा भक्तों को सुख देने वाली देवी! तुम्हें नमस्कार है। तुम मुझे सुंदर स्वरूप दो, विजय दो, और मेरे शत्रुओं को नष्ट करो। हे रक्तबीज का वध करने वाली! हे चण्ड-मुण्ड का विनाश करने वाली देवी! तुम मुझे रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो । हे शुम्भ, निशुम्भ और धूम्रलोचन का मर्दन करने वाली देवी ! मुझको स्वरूप दो ,विजय दो,यश दो और मेरे शत्रुओं का नाश करो। हे पूजित युगल चरण वालीदेवी! हे सम्पूर्ण सौभग्य प्रदान करने वाली देवी! तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो। हे देवी ! तुम्हारे रूप और चरित्र अमिट हैं। तुम सब शत्रुओं का नाश करने वाली हो। मुझे रूप, जय ,यश दो और काम क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो, पापों को दूर करनेवाली चण्डिके! इस संसार में जो भक्ति से तुम्हारा पूजन करते हैं, उनको तुम रूप तथा विजय और यश दो तथा उनके शत्रुओं का नाश करो। रोंगों का नाश करनेवाली चण्डिके! जो भक्तिपूर्वक तुम्हारी स्तुति करते हैं, उन्हें रूप दो, जय दो, यश दो और उनके काम क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो। हे चण्डिके ! इस संसार में जो भक्तिपूर्वक तुम्हारी पूजा करते हैं,उन्हें रूप दो, जय दो, ...