अष्टांग योग निम्न योग प्रक्रिया के अन्तर्गत आता है –

  1. आष्टांग योग के नियम लाभ एवं महत्व यम
  2. अष्टांग योग (Ashtanga Yoga In Hindi) » Aadesh Guru
  3. Yoga Benefits In Hindi: अष्टांग योग और इसके अद्भुत लाभों के बारे में जानिये
  4. अष्टांग
  5. योग क्या है
  6. अष्टांग योग क्या है अष्टांग योग कितने प्रकार के होते हैं?
  7. अष्टांग योग संपूर्ण उपचार पद्धति
  8. अष्टांग योग का परिचय
  9. अष्टांग योग क्या है, अंग और फायदे


Download: अष्टांग योग निम्न योग प्रक्रिया के अन्तर्गत आता है –
Size: 41.56 MB

आष्टांग योग के नियम लाभ एवं महत्व यम

जिस प्रकार गणित की संख्याओं को जोड़ने के लिए ‘योग’ शब्द का प्रयोग किया जाता है ठीक उसी प्रकार आध्यात्म की भाषा में मानव के लिए उसकी भिभिन्न शारीरिक , मानसिक , व्यावहारिक , पारिवारिक तथा राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय तथा अखिल ब्रांभाण्ड के सम्मिलन की स्थिति के लिए ‘योग’ शब्द का प्रयोग किया जाता है | महर्षि का प्रसिद्ध ग्रंथ पातंजल योग दर्शन के अनुसार महर्षि पंतजलि ने आत्मा को परमात्मा से जोड़ने की क्रिया को आठ भागों में बांट दिया है। यही क्रिया अष्टांग योग के नाम से प्रसिद्ध है। आत्मा में बेहद बिखराव (विक्षेप) के कारण वह परमात्मा जो आत्मा में भी व्याप्त है यह मानव शरीर उस की अनुभूति नहीं कर पाता। या यह भी कहा जा सकता है कि अपने विक्षेपों (बिखराव) के समाप्त होने पर आत्मा स्वत: ही परमात्मा को पा लेता है। आष्टांग योग के आठों अंगों का उद्देश्य आत्मा के विक्षेपों को दूर करना तथा शरीर में निर्विकारी भाव की स्थापना ही है। परमात्मा को प्राप्त करने का अष्टांग योग से श्रेष्ठ अन्य कोई भी मार्ग नहीं है। अष्टांग योग के पहले दो अंग यम और नियम हमारे संसारिक व्यवहार में सिद्धान्तिक एकरूपता लाते हैं जिसको हमने शारीरिक , मानसिक , व्यावहारिक , पारिवारिक तथा राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय योग तथा अन्य छ: अंगों को अखिल ब्रांभाण्ड के सम्मिलन की स्थिति के लिए ‘योग’ शब्द को आत्मा के विस्तार तथा विक्षेपों के अंतर्विरोध का आधार माना है। महर्षि पंतजलि द्वारा वर्णित योग के आठ अंगो के क्रम का भी अत्यन्त महत्त्व है। आष्टांग योग का हर अंग आत्मा तथा शरीर के विशिष्ट विक्षेपों को दूर कर ऊर्जा देने का कार्य करता है परन्तु तभी, जब उसके पहले के अंग सिद्ध कर लिए गए हों। उदाहरणार्थ यम और नियम को सिद्ध किए बगैर आसन ...

अष्टांग योग (Ashtanga Yoga In Hindi) » Aadesh Guru

• यम • नियम • आसन • प्राणायाम • प्रात्याहार • धारणा • ध्यान • समाधि इन आठ में प्रारम्भिक दो अंगों का महत्त्व सबसे अधिक है । इसीलिए उन्हें सबसे प्रथम स्थान दिया गया है । योग का आरम्भ मनुष्यत्व की पूर्णता के साथ आरम्भ होता है । बिना इसके साधना का कुछ प्रयोजन नहीं । योग में प्रवेश करने वाले साधक के लिए यह आवश्यक है कि आत्म-कल्याण की साधना पर कदम उठाने के साथ-साथ यम-नियमों की जानकारी प्राप्त करें । उनको समझें, विचारें, मनन करें और उनको अमल में, आचरण में लाने का प्रयत्न करें । (Ashtanga Yoga) यम-नियम दोनों की सिद्धियाँ असाधारण हैं । महर्षि पातंजलि ने अपने योग दर्शन में बताया है कि इन दसों की साधना से महत्त्वपूर्ण ऋद्धि-सिद्धियाँ प्राप्त होती है । हमारा निज का अनुभव है कि यम-नियमों की साधना से आत्मा का सच्चा विकास होता है और उसके कारण जीवन सब प्रकार की सुख-शन्ति से परिपूर्ण हो जाता है । यम-नियम का परिपालन एक ऐसे राजमार्ग पर चल पड़ने के समान है जो सीधे गन्तव्य स्थल पर ही पहुँचाकर छोड़ता है । ‘राजमार्ग’ का अर्थ है आम-सड़क-वह रास्ता जिस पर होकर हर कोई चल सके, जिस पर चलने में सब प्रकार की सरलता, सुविधा हो, कोई विशेष कठिनाई सामने न आवे । (Ashtanga Yoga) राजयोग का भी ऐसा ही तात्पर्य है । जिस योग की साधना हर कोई कर सके, सरलतापूवर्क उसमें प्रगति कर सके और सफल हो सके, यह राजयोग है । हठयोग, कुण्डलिनी योग, लययोग, तंत्रयोग, शक्तियोग आदि उतने सरल नहीं है और न उनका अधिकार ही हर मनुष्य को है । उनके लिए विशेष तैयारी करनी पड़ती है, और विशेष प्रकार का रहन-सहन बनाना होता है, पर राजयोग में ऐसी शर्तें नहीं हैं, क्योंकि वह मनुष्य मात्र के लिए,स्त्री-पुरुष गृही-विरक्त, बाल-वृद्ध, शिक्षित-अशिक्षित सबके...

Yoga Benefits In Hindi: अष्टांग योग और इसके अद्भुत लाभों के बारे में जानिये

What Is Ashtanga Yoga In Hindi And Its Amazing Benefits For Everyone “सन 2018 के एक योग अध्ययन के अनुसार, अमेरिका में 3.5 करोड़ से भी ज्यादा लोग लोग का अभ्यास करते हैं और अभ्यासीगण योग से संबंधित उत्पादों और कोचिंग क्लास पर, हर साल 15 अरब डॉलर से भी ज्यादा पैसा खर्च करते हैं।” योग के अविश्वसनीय लाभ जानकार आप दंग रह जायेंगे What is Yoga in Hindi क्या है योग योग भारत की एक प्राचीन विधा/दर्शन है जो मनुष्य के अस्तित्व के तीनों घटक, शरीर, मन और आत्मा को कुछ विशेष शारीरिक मुद्राओं, प्राण के नियमन और एकाग्रता के माध्यम से जोड़कर, उसे अपनी दिव्यता पहचानने का दुर्लभ और अमूल्य अवसर प्रदान करती है। योग सिर्फ एक शारीरिक व्यायाम से कहीं ज्यादा है, जिसे आज मात्र इतने तक ही सीमित करके मानवजाति को धोखा देने का काम किया जा रहा है। योग के विषय में भ्रम फैलाकर, उन्हें उस बेशकीमती लाभ से वंचित किया जा रहा है जिस पर प्रत्येक मनुष्य का सहज अधिकार है। योग के गूढ़ अर्थ और उसके दर्शन को सही प्रकार से समझे बिना, अज्ञानपूर्वक सिर्फ योगासनों और अविधिपूर्वक किये गये प्राणायाम में उलझकर रह जाने से न सिर्फ योग का स्वरूप ही विकृत हो गया है, बल्कि उसके अविश्वसनीय और अद्भुत लाभ भी लोगों की पहुँच से बाहर हो गये हैं। वह जीवनशैली जो योग जैसी महान विद्या का आश्रय पाकर, मनुष्य के लिये सर्वोत्तम सुख, संतोष और आनंद के द्वार खोल देती, अज्ञात ही रह जाती है। इसीलिये आज हम आपको योग के स्वरुप और उसके महत्व से अच्छी तरह परिचित कराएँगे। योग भारत के षड दर्शनों में से एक है और शायद सबसे ज्यादा प्रसिद्ध भी। योग संस्कृत का शब्द है जिसकी व्युत्पत्ति युज धातु से हुई है जिसका सामान्य अर्थ है – जुड़ना, मिलना, योग करना। योग का तात्व...

अष्टांग

अष्टांग का शाब्दिक अर्थ है - अष्ट अंग या आठ अंग। • (१) • (२) • (३) शरीर के आठ अंग — जानु, पद, हाथ, उर, शिर, वचन, दृष्टि, बुद्धि, जिनसे साष्टांग दण्डवत कहते हैं। • (४) अर्घविशेष जो सूर्य को दिया जाता है। इसमें जल, क्षीर, कुशाग्र, घी, मधु, दही, रक्त चंदन और करवीर होते हैं। • (५) देवदर्शन की एक विधि - इस विधि से शरीर के आठ अंगों के द्वारा परिक्रमा या प्रणाम किया जाता है। आत्म उद्धार अथवा आत्मसमर्पण की रीतियों के अन्दर "अष्टांग प्रणिपात" भी एक है; जिसका अर्थ है - (१) आठों अंगों से पेट के बल गुरु या देवता के प्रसन्नार्थ सामने लेट जाना (अष्टंग दण्डवत), (२) इसी रूप में पुन: लेटते हुए एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना। इसके अनुसार किसी पवित्र वस्तु की परिक्रमा करना या दण्डवत प्रणाम करना भी माना जाता है। अष्टांग परिक्रमा बहुत पुण्यदायिनी मानी जाती है। साधारण जन इसको दंडौती देना कहते हैं। इसका विवरण इस प्रकार से है:-"उरसा शिरसा दृष्टया मनसा वचसा तथा, पदभ्यां कराभ्यां जानुभ्यां प्रणामोऽष्टांग उच्च्यते" (छाती मस्तक नेत्र मन वचन पैर जंघा और हाथ इन आठ अंगो के झुकाने से अष्टांग प्रणाम कियी जाता है।) महिलाओं को पंचाग प्रणाम करने का विधान है।

योग क्या है

Table of Contents • • • • • • • • • • • • योग पाणिनि ने योग शब्द की उत्पत्ति युजिर योगे एवं युज समाधि , युज संयमने हिंदी धातुओं से दी है | युजीर योगें , जोड़ना मिलना मिलाना मेल आदि | इसी आधार पर जीवात्मा परमात्मा का मिलन ही योग है | एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है जिसमें शरीर मन और आत्मा को एक साथ लाने , योग का काम होता है | यह शब्द प्रक्रिया और धारणा हिंदू पंथ , जैन पंथ , बौद्ध पंथ में प्रक्रिया से सम्बन्धित है | योग शब्द भारत से बौद्ध पन्थ के साथ चीन जापान तिब्बत दक्षिण पूर्व एशिया और श्रीलंका में भी फैल गया है और इस समय सारे सभ्य जगत्‌ में लोग इससे परिचित हैं | प्रसिद्धि के बाद पहली बार 11 दिसम्बर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने प्रत्येक वर्ष 21 जून विश्व योग दिवस के रूप में मान्यता दी है | योग का अर्थ संस्कृत व्याकरण के आधार पर योग 1 . युज्यते एतद इति योग , यानी चित्र की अवस्था जब चित्र की समस्त व्यक्तियों में एकाग्रता आ जाए कर्म कारक रूप में होती है | 2 . यूज्यते अनेक इति योग, वह साधन है जिससे समस्त चित्र व्यक्तियों में एकाग्रता लाई जाती है कारण कारक रूप में | 3 . युज् यते तस्मिन इति योग वह साधन है जहां चित्त की वृत्तियों की एकाग्रता उत्पन्न की जाती है | 4 . युज संयम ने वश में करना इंद्रियों को वश में करना | भगवत गीता प्रतिष्ठित ग्रन्थ माना जाता है उसमें योग शब्द का कई बार प्रयोग हुआ है कभी अकेले और कभी सविशेषण जैसे बुद्धि योग, सन्यासयोग, कर्मयोग, वेदोत्तर काल में भक्ति योग और हठयोग नाम भी प्रचलित हो गए हैं | पतंजलि योगदर्शन में क्रियायोग शब्द देखने में आता पशुपति योग माहेश्वर योग जैसे शब्दों के भी प्रसंग मिलते हैं | इन सब स्थलों में योग शब्द के जो अर्थ हैं वह एक दूसरे स...

अष्टांग योग क्या है अष्टांग योग कितने प्रकार के होते हैं?

अष्टांग योग महर्षि पतंजलि द्वारा रचित व प्रयोगात्मक सिद्धान्तों पर आधारित योग के परम लक्ष्य की प्राप्ति हेतु एक साधना पद्धति है। महर्षि पतंजलि ने अपने योगसूत्र नामक ग्रंथ में तीन प्रकार की योग साधनाओं का वर्णन किया है।‘अष्टांग’ शब्द दो शब्दों के मेल से बना है अर्थात् अष्ट + अंग, जिसका अर्थ है आठ अंगों वाला। • यम • नियम • आसन • प्राणायाम • प्रत्याहार • धारणा • ध्यान • समाधि 1. यमइसमें अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह सन्निहित हैं। पतजंलि योग सूत्र के अनुसार यम केवल 5 होते हैं। ये निम्नलिखित हैंः • अहिंसा • सत्य • अस्तेय • ब्रह्मचर्य तथा • अपरिग्रह 1. अहिंसा -शब्दों से, विचारो से और कर्मों से किसी को हानि न पहुँचाना। अहिंसा यानी हिंसा से दूर रहना अर्थात् विचार, वचन और कर्म में अहिंसा के प्रति सजग और अभ्यासरत रहना है। इसमें हमें करुणा, प्रेम, समझ, धैर्य, और सार्थकता का अभ्यास करने की प्रेरणा मिलती है। 4. ब्रह्मचर्य -चतेना को ब्रह्म के ज्ञान में स्थिर करना अथवा सभी इंद्रिय-जन्य सुखों में संयम बरतना। यम के चौथे घटक में यह विश्वास किया जाता है कि वासनाओं का परित्याग करने से व्यक्ति दिव्य ईश्वर के निकट पहुंचता है। इस यम के अन्तर्गत मानसिक, मौखिक या शारीरिक सभी प्रकार के वासनामय सुख से दूर रहने पर जोर दिया गया है। 5. अपरिग्रह -अपरिग्रह का शाब्दिक अर्थ है सांसारिक वस्तुओं का संचय न करना, उनके प्रति मोह न हो। आवश्यकता से अधिक संचय नहीं करना और दूसरों की वस्तुओं की इच्छा नहीं करना। 2. नियमनियम अष्टांग योग का दूसरा अंग है।इसमें शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय तथा ईश्वर-प्रणिधान सन्निहित हैं। नियम हमारे आत्म नियमन के लिए होते हैं, जिनसे एक सकारात्मक वातावरण बनाए रखने में सहायता म...

अष्टांग योग संपूर्ण उपचार पद्धति

अष्टांग योग संपूर्ण उपचार पद्धति - Grehlakshmi Close • Search for: Search • Open dropdown menu • • • Open dropdown menu • • • • Open dropdown menu • • • Open dropdown menu • • • • • Open dropdown menu • • Open dropdown menu • • • • • • Open dropdown menu • • • Open dropdown menu • • • • • • • • • • • Facebook • Instagram • YouTube • Twitter • Linkedin Close योग एक संपूर्ण चिकित्सा-पद्धति, एक रूपांतरण-प्रक्रिया है इसमें संदेह नहीं, लेकिन मात्र कुछ आसन या श्वास-प्रक्रियाएं संपूर्ण योग नहीं है। योग के आठ अंग हैं: यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। चिकित्सा-पद्धति के रूप में अथवा रूपांतरण के लिए येाग के इन सभी आठों अंगों का महत्त्व है अत: आवश्यकतानुसार सभी अंगों का अभ्यास अनिवार्य है। एक प्रसिद्ध योगाचार्य अपने नियमित कॉलम में प्रत्येक रोग के उपचार के लिए कुछ योगासन तथा प्राणायाम के अभ्यास बताते हैं। योगाचार्य जी डायबिटीज के उपचार के लिए कुछ आसन, कुछ श्वास के अभ्यास तथा अन्य क्रियाएं सुझाते हैं। क्रियाओं की विधि बतलाने से पूर्व वे कहते हैं कि हर अभ्यास इस भाव से करें कि ‘मेरा पेंक्रियाज स्वस्थ हो रहा है तथा मधुमेह एवं मधुमेह के कारण उत्पन्न अन्य रोग भी मिट रहे हैं। बालों की खूबसूरती के लिए योगाचार्य जी योगासन तथा प्राणायाम के कतिपय अभ्यासों के बाद दोनों हाथों के नाखून रगड़ने का परामर्श भी देते हैं और साथ ही ये भी बताते हैं कि नाखून रगड़ते समय मन में ये भाव रखें कि मेरे बालों का पोषण हो रहा है। यहां शारीरिक अभ्यास क्रम के साथ-साथ मानसिक अभ्यास क्रम को भी जोड़ दिया गया है। अब प्रश्न उठता है कि शारीरिक अभ्यास क्रम महत्त्वपूर्ण है या मानसिक अभ्यास क्रम? हमार...

अष्टांग योग का परिचय

मानवीय चेतना का बीज मानव की चेतना एक बीज के समान है। जैसे एक बीज में एक वृक्ष की, शाखाओं की, फल-फूल और पत्तियों की, प्रजनन की संभावनाएं समाहित हैं, वैसे ही अपार संभावनाओं को लिए मानवीय मन होता है। एक बीज के प्रस्फुरण के लिए उवर्रक मिट्टी, उचित सूर्य का प्रकाश, जल और ठीक-ठीक परिस्थितियों की आवश्यकता होती है वैसे ही मानवीय चेतना के खिलने के लिए विशिष्ट प्रयोजन आवश्यक है। या तो एक बीज अपनी इन संभावनाओं को समेटे हुए वर्षों तक निष्क्रिय रह सकता है या फिर उचित परिस्थितियों में खिल सकता है, प्रस्फुरित हो सकता है। मानवीय चेतना के बीज का प्रस्फुरण होना ही विवेक है, ज्ञान है। विवेक और स्वातंत्र्य विवेक के साथ ही स्वतंत्रता आती है। मानव के अलावा इस जगत की सारी प्रजातियां पूरी तरह से प्रकृति द्वारा ही नियंत्रित होती हैं। उन्हें विवेक की आवश्यकता नहीं होती, न ही उन्हें कोई स्वातंत्र्य प्राप्त होता है, इसलिए वे प्रकृति के बनाये नियमों को तोड़ते भी नहीं हैं। केवल मानव की चेतना, मन को ही स्वातंत्र्य के साथ विवेक भी दिया गया है। विवेक की शक्ति और ज्ञान के द्वारा ही मानवीय मन का विकास संभव है, नहीं तो वह जैसे का तैसा रह सकता है। तुम सामान्यतः किसी पशु को आवश्यकता से बहुत ज्यादा खाते हुए नहीं पाओगे। प्रायः पशु समयानुसार ही भोजन और सम्भोग करते हैं। वो निश्चित समय पर खाते और विश्राम करते हैं। उनके पास कुछ ज्यादा विकल्प नहीं होते। किन्तु मनुष्यों को ही इच्छानुसार खाने पीने, जो चाहे वैसे करने का स्वातंत्र्य है। यह स्वतंत्रता विवेक, ज्ञान और कर्म फलों के ज्ञान के साथ दी गयी है। इसीलिए मनुष्य सही चुनाव कर ज्ञान के साथ जीवन जी सकते हैं। मनुष्य जीवन की विशेषता ही यही है कि यह विवेक, ज्ञान और बुद्धि ...

अष्टांग योग क्या है, अंग और फायदे

Ashtanga Yoga in Hindi अष्टांग योग का शाब्दिक अर्थ “आठ अंगों वाला योग” हैं । प्राचीन ऋषि महर्षि पतंजलि के योग सूत्रों में इसका उल्लेख किया गया हैं, ये योग सूत्र अपने जीवन को आध्यात्मिक के माध्यम से जीने के सामान्य निर्देश देते हैं, जिस प्रकार मनुष्य को अपने जीवन में आगे बढ़ने और सफलता प्राप्त करने के लिए एक उचित मार्गदर्शन की आवश्यकता होती हैं वैसे ही योग करने के लिए भी सही मार्गदर्शन की आवश्यकता होती हैं। हम आपको नीचे अष्टांग योग क्या हैं, अष्टांग योग के ये आठ अंग कौन से हैं और अष्टांग योग के फायदे बताने जा रहें हैं। • • • • • • • • अष्टांग योग क्या हैं – What is Ashtanga Yoga in Hindi सभी योगासन के जैसे अष्टांग योग का भी नाम संस्कृत से लिया गया हैं, यह अष्टांग शब्द दो शब्द से मिलके बना हैं जिसमे पहले शब्द “अष्ट” का अर्थ आठ हैं और दूसरे अंग शब्द का अर्थ “अंग” हैं। अष्टांग योग महर्षि पतंजलि के योग दर्शन पर आधारित है। सभी योग आसन और प्राणायाम पतंजलि के योग सूत्रों पर आधारित हैं। पतंजलि के योग सूत्रों में पूर्ण कल्याण तथा शारीरिक, मानसिक और आत्मिक शुद्धि के लिए आठ अंग की आवश्यकताएं होती हैं। हम इनका क्रम में अभ्यास नहीं कर रहे हैं, लेकिन सभी एक साथ विकसित हुए हैं। आइये अष्टांग योग से होने वाले लाभ को विस्तार से जानते हैं। (और पढ़ें – अष्टांग योग के अंग – The limbs of Ashtanga Yoga in Hindi “8 अंग” नाम संस्कृत शब्द अष्टांग से आता है और योग के आठ अंगों को संदर्भित करता है: यम (हमारे पर्यावरण की ओर रुख), नियमा (खुद के प्रति दृष्टिकोण), आसाना (भौतिक मुद्रा), प्राणायाम (सांस का संयम या विस्तार ), प्रतिहार (इंद्रियों को वापस लेना), धारण (एकाग्रता), ध्यान (ध्यान) और समाधि (पूर्ण एकी...