औरंगजेब और गुरु गोविंद सिंह

  1. PM Modi In Veer Bal Diwas Program Said Guru Gobind Singh Stood Steadfastly Against The Terrorism Of Aurangzeb And Mughals
  2. औरंगजेब का इतिहास और उसकी धार्मिक नीति
  3. [Solved] मुगल सम्राट औरंगजेब द्वारा निष्पादित सिख गुर
  4. गुरु गोबिन्द सिंह
  5. गुरु गोविंद सिंह का जीवन परिचय
  6. गुरु गोविंद सिंह: सिखों के 10वें गुरु का जीवन इतिहास ,रचनाएं और शब्द
  7. Guru Gobind singh ji
  8. Guru Gobind singh ji
  9. गुरु गोविंद सिंह का जीवन परिचय
  10. गुरु गोबिन्द सिंह


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PM Modi In Veer Bal Diwas Program Said Guru Gobind Singh Stood Steadfastly Against The Terrorism Of Aurangzeb And Mughals

PM Modi On Mughal: दिल्ली की मेजर ध्यानचंद स्टेडियम में सोमवार (26 दिसंबर) को 'वीर बाल दिवस' (Veer Bal Diwas) के अवसर पर कार्यक्रम आयोजित किया गया. इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी हिस्सा लिया. ये कार्यक्रम साहिबजादों की कुर्बानी को समर्पित था. पीएम मोदी ने इस दौरान वीर साहिबजादों (Veer Sahibzaade) को श्रद्धांजलि अर्पित की. पीएम ने वहां मौजूद लोगों को संबोधित किया और अपने संबोधन में मुगलों का जिक्र किया. पीएम मोदी ने कहा कि भारत आज पहला 'वीर बाल दिवस' मना रहा है. मैं वीर साहिबजादों के चरणों में नमन करते हुए उन्हें कृतज्ञ श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं. इसे मैं अपनी सरकार का सौभाग्य मानता हूं कि उसे आज 26 दिसंबर के दिन को 'वीर बाल दिवस' के तौर पर घोषित करने का मौका मिला. मुगल सल्तनत का किया जिक्र मुगलों का जिक्र करते हुए पीएम ने कहा कि हर क्रूर चेहरे के सामने महानायकों और महानायिकाओं के भी एक से एक महान चरित्र रहे हैं, लेकिन ये भी सच है कि चमकौर और सरहिंद के युद्ध में जो कुछ हुआ, वो 'भूतो न भविष्यति' था. एक ओर धार्मिक कट्टरता में अंधी इतनी बड़ी मुगल सल्तनत, दूसरी ओर ज्ञान और तपस्या में तपे हुए हमारे गुरु, भारत के प्राचीन मानवीय मूल्यों को जीने वाली परंपरा. चमकौर और सरहिंद की लड़ाई वास्तव में अविस्मरणीय है. ये 3 शताब्दी पहले लड़ी गई, लेकिन अतीत इतना पुराना नहीं है कि भुला दिया जाए. इन सभी के बलिदानों को हमेशा याद रखा जाएगा. "वीर साहिबजादे किसी धमकी से डरे नहीं" पीएम मोदी ने आगे कहा कि एक ओर आतंक की पराकाष्ठा, तो दूसरी ओर आध्यात्म का शीर्ष. एक ओर मजहबी उन्माद, तो दूसरी ओर सबमें ईश्वर देखने वाली उदारता. इस सबके बीच, एक ओर लाखों की फौज और दूसरी ओर अकेले होकर भी निड...

औरंगजेब का इतिहास और उसकी धार्मिक नीति

प्रारंभिक जीवन *औरंगजेब के बारे में जानकारी अलामगीरनामा, रुक्कात ए आलमगीरी और फतुहात ए आलमगीरी जैसे ग्रंथो में मिलती है | *औरंगजेब का जन्म 24 अक्टूबर या 3 नवम्बर 1618 ई. को उज्जैन के पास दोहाद नामक स्थान पर हुआ था | *औरंगजेब के पिता का नाम शाहजहाँ और माता का नाम मुमताज महल था | *औरंगजेब की बेग़म - दिलरास बानू बेगम, नबाव बाई, उदयपुरी महल और औरंगाबादी महल | *औरंगजेब के पुत्र - बहादुरशाह प्रथम, मोहम्मद सुल्तान, मोहम्मद अकबर, मोहम्मद मुअज्जम, मोहम्मद आजम और मुहम्मद काम्बख्श | *औरंगजेब की पुत्रियाँ - जेबुन्निसा बेग़म, जीनतुन्निसा बेग़म, ज़ुब्दतुन्निसा बेग़म, बद्रुन्निसा बेग़म और मिहिरुन्निसा बेग़म | *औरंगजेब के प्रथम शिक्षक - अब्दुल लतीफ़ सुल्तानपुरी और मीर हाशिम गिलानी थे | *औरंगजेब को अरबी, फारसी, तुर्की और हिंदी भाषा का अच्छा ज्ञान था | *मई 1633 ई. में शाहजहाँ ने औरंगजेब को बहादुर की उपाधि प्रदान की क्योंकि औरंगजेब ने सुधाकर नामक एक हाथी को भाले के प्रहार से घायल कर दिया था | *औरंगजेब का पहला राज्यभिषेक 21 या 31 जुलाई 1658 ई. को सामूगढ़ युद्ध के बाद आगरा के किले में हुआ था | *औरंगजेब ने दूसरा राज्यभिषेक देवराई युद्ध के बाद 5 या 15 जून 1659 ई. को दिल्ली में हुआ था और इसी अवसर पर औरंगजेब ने अबुल मुजफ्फर मुहीउद्दीन मोहम्मद औरंगजेब बहादुर आलमगीर बादशाह गाजी की उपाधि धारण की थी | *1665 ई. में औरंगजेब ने सिक्खों के गुरु हरकिशन के पुत्र रामराय को दहरादून में एक बड़ा भू - भाग क्षेत्र अनुदान के रूप में प्रदान किया था और इसी भू - भाग पर रामराय ने एक विशाल गुरूद्वारे का निर्माण कराया था | *गुरु तेगबहादुर सिक्खों के 9वें गुरु थे परन्तु औरंगजेब से उनका मतभेद रहता था | एक दिन राजा जयसिंह के हस्तक्ष...

[Solved] मुगल सम्राट औरंगजेब द्वारा निष्पादित सिख गुर

सही उत्तर तेग बहादुरहै। Key Points • बादशाह औरंगज़ेब ने नौवें सिख गुरु तेग बहादुर के सिर और शरीर को हटाने से किसी को मना किया था। • दिल्ली में मुगल बादशाह औरंगजेब के आदेश पर, गुरु तेग बहादुर को 1675 में सार्वजनिक रूप से इस्लाम में धर्मान्तरित करने से मना कर दिया गया था। • गुरु तेग बहादुर लोगों की स्वतंत्रता में दृढ़ता से विश्वास करते थे कि वे जो भी धर्म चाहते हैं, उसकी पूजा करेंगे। Additional Information सिख गुरु योगदान गुरु नानक (1469 1539) गुरु नानक सिख धर्म के संस्थापक थे और पहले मानव गुरु थे। गुरु अर्जन (1581 1606) एक महान विद्वान, गुरु अर्जन ने सिखों के ग्रंथों को संकलित किया, जिन्हें आदि ग्रंथ के रूप में जाना जाता है। गुरु गोविंद सिंह (1675 1708) गुरु गोविंद सिंह मानव गुरुओं में से अंतिम थे। उन्होंने खालसा, या 'शुद्ध वाले’ और 'पांच के’ पेश किए। 1708 में मृत्यु से ठीक पहले, उन्होंने गुरु ग्रंथ साहिब - सिख धर्मग्रंथ - को भविष्य के गुरु के रूप में घोषित किया। 23653 vacancies will be released by the Bihar Police for recruitment to the post of Sub Inspector (Daroga). The detailedBihar Police SI Notification willbe released soon. Bihar Police Subordinate Service Commission (BPSSC) has activated the link to download the mark sheet of Bihar Police Sub Inspector on 21st August 2022. The candidates, who appeared for

गुरु गोबिन्द सिंह

"दशमेश पिता" यहाँ पुनर्प्रेषित होता है। अन्य प्रयोगों के लिए, {{ज्ञानसन्दूक व्यक्ति | name = गुरु गोबिन्द सिंह जी | nickname = दशमेश पिता, दशम गुरु, सरबंसदानी, बाजां वाले, कलगीधर, कलगियाँ वाले, संत सिपाही | image = Guru Gobind Singh.jpg | image_size = | caption = अन्यायाविरोधात लढण्याची शिकवण देणारे शीख धर्माचे दहावे गुरू, कवी, योद्धा, तत्त्ववेत्ता आणि मार्गदर्शक गुरू गोविंद सिंह यांना जयंतीनिमित्त विनम्र अभिवादन..! | birth_name = गोबिन्द राय | birth_date = ( 1708-10-07) (उम्र42) | death_place = गुरु गोबिन्द सिंह (जन्म: पौषशुक्ल सप्तमी संवत् 1723 विक्रमी तदनुसार 22 दिसम्बर 1666- ਜਯੋਤੀ ਜੋਤ 7 अक्टूबर 1708 ) गुरु गोबिन्द सिंह ने पवित्र उन्होने अन्याय, अत्याचार और पापों का खत्म करने के लिए और गरीबों की रक्षा के लिए गुरु गोविन्द सिंह जहाँ विश्व की बलिदानी परम्परा में अद्वितीय थे, वहीं वे स्वयं एक महान लेखक, मौलिक चिन्तक तथा संत सिपाही' भी कहा जाता था। वे भक्ति तथा शक्ति के अद्वितीय संगम थे। उन्होंने सदा प्रेम, सदाचार और भाईचारे का सन्देश दिया। किसी ने गुरुजी का अहित करने की कोशिश भी की तो उन्होंने अपनी सहनशीलता, मधुरता, सौम्यता से उसे परास्त कर दिया। गुरुजी की मान्यता थी कि मनुष्य को किसी को डराना भी नहीं चाहिए और न किसी से डरना चाहिए। वे अपनी वाणी में उपदेश देते हैं भै काहू को देत नहि, नहि भय मानत आन। वे बाल्यकाल से ही सरल, सहज, भक्ति-भाव वाले कर्मयोगी थे। उनकी वाणी में मधुरता, सादगी, सौजन्यता एवं वैराग्य की भावना कूट-कूटकर भरी थी। उनके जीवन का प्रथम दर्शन ही था कि धर्म का मार्ग सत्य का मार्ग है और सत्य की सदैव विजय होती है। गुरु गोविन्द सिंह का जन्म नौवें सिख गुरु गोविन्द राय...

गुरु गोविंद सिंह का जीवन परिचय

गुरु गोविन्द सिंह सिक्खों के दसवें और अन्तिम गुरु थे। उनका जन्म पौष, सुदी सप्तमी, संवत् 1723 विक्रमी, तदनुसार सन् 1666 ई० में पटना (बिहार) में हुआ था। उनके पिता सिक्खों के नवें गुरु तेगबहादुर तथा माता गूजरी थीं। उनका आरंभिक नाम गोविन्दराय था। उनकी शिक्षा-दीक्षा पटना में ही हुई। माँ ने गुरुमुखी और पिता गुरु तेग बहादुर ने उन्हें शस्त्र-शास्त्र दोनों की शिक्षा प्रदान की। गुरु गोविन्दसिंह को बिहारी और बंगला का भी ज्ञान था। गुरु गोविन्द सिंह में बचपन से ही अलौकिकता दिखायी देती थी। कश्मीरी पण्डितों को औरंगजेब ने जब मुसलमान बनाना चाहा, तो सब मिलकर गुरु तेगबहादुर के पास आनन्दपुर गये और उन्हें अपनी करुण कहानी सुनायी। उनकी बातों से गुरु तेगबहादुर मौन, उदास और दुखी हो गये। उसी समय नववर्षीय गोविन्दराय उनके पास आये। उन्होंने पिता से उनकी उदासी का कारण पूछा। पिता ने बताया, “पण्डितों पर घोर संकट है। औरंगजेब उन्हें मुसलमान बनाना चाहता है।" गोविन्दराय ने पूछा, "इससे बचने का उपाय क्या है।?" गुरु तेगबहुदर ने उत्तर दिया, "औरगजेब की प्रचण्ड धर्म की द्वेषाग्नि में किसी महान् धर्मात्मा की आहुति ही इससे बचने का उपाय है।" गोविन्दराय तुरन्त बोल उठे, "आपसे बढ़कर कौन धर्मात्मा भारतवर्ष में होगा? आप ही उस अग्नि की आहुति बनिए।" गुरु तेगबहादुर ने समझ लिया कि मेरा पुत्र मेरे न रहने पर गुरु-गद्दी का भार वहन कर लेगा। 1775 ई० में गुरु तेगबहादुर हँसते-हँसने दिल्ली में शहीद हुए। उनकी शहादत से सारा देश थर्रा उठा। गुरु-गद्दी का उत्तरदायित्व अल्पायु में ही गोविन्दराय के ऊपर आ पड़ा। उन्होंने उस समय शक्ति संघटन के लिए हिमालय की शरण ली और वहीं पहाड़ियों में अपना निवासस्थान बनाया तथा २० वर्ष तक ऐकान्तिक साधना की। इस...

गुरु गोविंद सिंह: सिखों के 10वें गुरु का जीवन इतिहास ,रचनाएं और शब्द

गुरु गोविंद सिंह : गुरु गोविंद सिंह जी के व्यक्तित्व के बारे में स्वामी विवेकानंद जी ने लिखा है कि गुरु गोविंद सिंह जैसे व्यक्तित्व का आदर्श सदैव हमारे सामने रहना चाहिए । दूसरी ओर गुरु गोविंद सिंह ने समाज में व्याप्त बुराईयों जैसे सती प्रथा, बाल विवाह, बहु विवाह आदि के खिलाफ आवाज बुंलद की थी। इस प्रकार गुरु गोविंद सिंह के शौर्य और पराक्रम का देश हमेशा कृतघ्न रहेगा। सवा लाख से एक लड़ाऊँ चिड़ियों सों मैं बाज तड़ऊँ तबे गोबिंदसिंह नाम कहाऊँ।। सिखों के दसवें गुरु थे गुरु गोविंद सिंह : उपयुक्त दोहे के माध्यम से आज हम आपका परिचय कराने जा रहे है सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोविंद सिंह से। जिन्होंने भारत में धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए अपने प्राणों की बाजी लगा दी। इतना ही नहीं मुगलों के आक्रामण के दौरान उन्हें गुलाम बनने से बेहतर मरना लगा और इस जंग में उन्होंने अपने परिवार वालों तक की चिंता नही की। यह भी पढ़ें – गुरु गोविंद सिंह का जीवन परिचय गुरु गोविंद सिंह का जन्म कब हुआ था : महान् योद्धा गुरु गोविंद सिंह का जन्म पौष माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि यानि 12 जनवरी 1666 को भारत देश के बिहार राज्य की राजधानी पटना में हुआ था। इनके बचपन का नाम गोविंद राय था। साथ ही इनके पिता का नाम गुरु तेग बहादुर था, जोकि सिखों के नौंवे गुरु थे। तो वहीं गुरु गोविंद सिंह की माता का नाम गुजरी था। लेकिन इस्लाम धर्म कबूल न करने की वजह से औरंगजेब ने नवंबर 1675 में उनका सिर कलम कर दिया गया था। ऐसे में मात्र 9 वर्ष की आयु में पिता की मृत्यु के पश्चात् गुरु गोविंद सिंह ने पिता की गद्दी संभाली। गुरु गोविंद सिंह के पुत्रों की कहानी : कहा जाता है कि गुरु गोविंद सिंह की तीन पत्नियां थी, जिनके नाम क्रमश: माता ...

Guru Gobind singh ji

1. पंज प्यारे : गुरु गोविंद सिंहजी ने ही पंज प्यारे की परंपरा की शुरुआत की थी। इसके पीछे एक बहुत ही मार्मिक कहानी है। गुरु गोविंद सिंह के समय मुगल बादशाह औरंगजेब का आतंक जारी था। उस दौर में देश और धर्म की रक्षार्थ सभी को संगठित किया जा रहा था। हजारों लोगों में से सर्वप्रथ पांच लोग अपना शीश देने के लिए सामने आए और फिर उसके बाद सभी लोग अपना शीश देने के लिए तैयार हो गए। जो पांच लोग सबसे पहले सामने आए उन्हें पंज प्यारे कहा गया। 2. पंच प्यारों को अमृत चखाया : इन पंच प्यारों को गुरुजी ने अमृत (अमृत यानि पवित्र जल जो सिख धर्म धारण करने के लिए लिया जाता है) चखाया। इसके बाद इसे बाकी सभी लोगों को भी पिलाया गया। इस सभा में हर जाती और संप्रदाय के लोग मौजूद थे। सभी ने अमृत चखा और खालसा पंथ के सदस्य बन गए। अमृत चखाने की परंपरा की शुरुआत की। 3. खासला पंथ : पंच प्यारे के समर्पण को देखते हुए गुरुदेव ने वहां उपस्थित सिक्खों से कहा, आज से ये पांचों मेरे पंच प्यारे हैं। इनकी निष्ठा और समर्पण से खालसा पंथ का आज जन्म हुआ है। आज से यही तुम्हारे लिए शक्ति का संवाहक बनेंगे। यही ध्यान, धर्म, हिम्मत, मोक्ष और साहिब का प्रतीक भी बने। पंज प्यारे के चयन के बाद गुरुजी ने धर्मरक्षार्थ खालसा पंथ की स्थापना की थी। खालसा पंथ की स्थापना (1699) देश के चौमुखी उत्थान की व्यापक कल्पना थी। बाबा बुड्ढ़ा ने गुरु हरगोविंद को 'मीरी' और 'पीरी' दो तलवारें पहनाई थीं। 4. ग्रंथ साहिब को गुरुगद्दी बख्शी : तख्त श्री हजूर साहिब नांदेड़ में गुरुग्रंथ को बनाया था गुरु। महाराष्ट्र के दक्षिण भाग में तेलंगाना की सीमा से लगे प्राचीन नगर नांदेड़ में तख्‍त श्री हजूर साहिब गोदावरी नदी के उत्तरी किनारे पर स्थित है। इस तख्‍त सचखंड साहिब...

Guru Gobind singh ji

1. पंज प्यारे : गुरु गोविंद सिंहजी ने ही पंज प्यारे की परंपरा की शुरुआत की थी। इसके पीछे एक बहुत ही मार्मिक कहानी है। गुरु गोविंद सिंह के समय मुगल बादशाह औरंगजेब का आतंक जारी था। उस दौर में देश और धर्म की रक्षार्थ सभी को संगठित किया जा रहा था। हजारों लोगों में से सर्वप्रथ पांच लोग अपना शीश देने के लिए सामने आए और फिर उसके बाद सभी लोग अपना शीश देने के लिए तैयार हो गए। जो पांच लोग सबसे पहले सामने आए उन्हें पंज प्यारे कहा गया। 2. पंच प्यारों को अमृत चखाया : इन पंच प्यारों को गुरुजी ने अमृत (अमृत यानि पवित्र जल जो सिख धर्म धारण करने के लिए लिया जाता है) चखाया। इसके बाद इसे बाकी सभी लोगों को भी पिलाया गया। इस सभा में हर जाती और संप्रदाय के लोग मौजूद थे। सभी ने अमृत चखा और खालसा पंथ के सदस्य बन गए। अमृत चखाने की परंपरा की शुरुआत की। 3. खासला पंथ : पंच प्यारे के समर्पण को देखते हुए गुरुदेव ने वहां उपस्थित सिक्खों से कहा, आज से ये पांचों मेरे पंच प्यारे हैं। इनकी निष्ठा और समर्पण से खालसा पंथ का आज जन्म हुआ है। आज से यही तुम्हारे लिए शक्ति का संवाहक बनेंगे। यही ध्यान, धर्म, हिम्मत, मोक्ष और साहिब का प्रतीक भी बने। पंज प्यारे के चयन के बाद गुरुजी ने धर्मरक्षार्थ खालसा पंथ की स्थापना की थी। खालसा पंथ की स्थापना (1699) देश के चौमुखी उत्थान की व्यापक कल्पना थी। बाबा बुड्ढ़ा ने गुरु हरगोविंद को 'मीरी' और 'पीरी' दो तलवारें पहनाई थीं। 4. ग्रंथ साहिब को गुरुगद्दी बख्शी : तख्त श्री हजूर साहिब नांदेड़ में गुरुग्रंथ को बनाया था गुरु। महाराष्ट्र के दक्षिण भाग में तेलंगाना की सीमा से लगे प्राचीन नगर नांदेड़ में तख्‍त श्री हजूर साहिब गोदावरी नदी के उत्तरी किनारे पर स्थित है। इस तख्‍त सचखंड साहिब...

गुरु गोविंद सिंह का जीवन परिचय

गुरु गोविन्द सिंह सिक्खों के दसवें और अन्तिम गुरु थे। उनका जन्म पौष, सुदी सप्तमी, संवत् 1723 विक्रमी, तदनुसार सन् 1666 ई० में पटना (बिहार) में हुआ था। उनके पिता सिक्खों के नवें गुरु तेगबहादुर तथा माता गूजरी थीं। उनका आरंभिक नाम गोविन्दराय था। उनकी शिक्षा-दीक्षा पटना में ही हुई। माँ ने गुरुमुखी और पिता गुरु तेग बहादुर ने उन्हें शस्त्र-शास्त्र दोनों की शिक्षा प्रदान की। गुरु गोविन्दसिंह को बिहारी और बंगला का भी ज्ञान था। गुरु गोविन्द सिंह में बचपन से ही अलौकिकता दिखायी देती थी। कश्मीरी पण्डितों को औरंगजेब ने जब मुसलमान बनाना चाहा, तो सब मिलकर गुरु तेगबहादुर के पास आनन्दपुर गये और उन्हें अपनी करुण कहानी सुनायी। उनकी बातों से गुरु तेगबहादुर मौन, उदास और दुखी हो गये। उसी समय नववर्षीय गोविन्दराय उनके पास आये। उन्होंने पिता से उनकी उदासी का कारण पूछा। पिता ने बताया, “पण्डितों पर घोर संकट है। औरंगजेब उन्हें मुसलमान बनाना चाहता है।" गोविन्दराय ने पूछा, "इससे बचने का उपाय क्या है।?" गुरु तेगबहुदर ने उत्तर दिया, "औरगजेब की प्रचण्ड धर्म की द्वेषाग्नि में किसी महान् धर्मात्मा की आहुति ही इससे बचने का उपाय है।" गोविन्दराय तुरन्त बोल उठे, "आपसे बढ़कर कौन धर्मात्मा भारतवर्ष में होगा? आप ही उस अग्नि की आहुति बनिए।" गुरु तेगबहादुर ने समझ लिया कि मेरा पुत्र मेरे न रहने पर गुरु-गद्दी का भार वहन कर लेगा। 1775 ई० में गुरु तेगबहादुर हँसते-हँसने दिल्ली में शहीद हुए। उनकी शहादत से सारा देश थर्रा उठा। गुरु-गद्दी का उत्तरदायित्व अल्पायु में ही गोविन्दराय के ऊपर आ पड़ा। उन्होंने उस समय शक्ति संघटन के लिए हिमालय की शरण ली और वहीं पहाड़ियों में अपना निवासस्थान बनाया तथा २० वर्ष तक ऐकान्तिक साधना की। इस...

गुरु गोबिन्द सिंह

"दशमेश पिता" यहाँ पुनर्प्रेषित होता है। अन्य प्रयोगों के लिए, {{ज्ञानसन्दूक व्यक्ति | name = गुरु गोबिन्द सिंह जी | nickname = दशमेश पिता, दशम गुरु, सरबंसदानी, बाजां वाले, कलगीधर, कलगियाँ वाले, संत सिपाही | image = Guru Gobind Singh.jpg | image_size = | caption = अन्यायाविरोधात लढण्याची शिकवण देणारे शीख धर्माचे दहावे गुरू, कवी, योद्धा, तत्त्ववेत्ता आणि मार्गदर्शक गुरू गोविंद सिंह यांना जयंतीनिमित्त विनम्र अभिवादन..! | birth_name = गोबिन्द राय | birth_date = ( 1708-10-07) (उम्र42) | death_place = गुरु गोबिन्द सिंह (जन्म: पौषशुक्ल सप्तमी संवत् 1723 विक्रमी तदनुसार 22 दिसम्बर 1666- ਜਯੋਤੀ ਜੋਤ 7 अक्टूबर 1708 ) गुरु गोबिन्द सिंह ने पवित्र उन्होने अन्याय, अत्याचार और पापों का खत्म करने के लिए और गरीबों की रक्षा के लिए गुरु गोविन्द सिंह जहाँ विश्व की बलिदानी परम्परा में अद्वितीय थे, वहीं वे स्वयं एक महान लेखक, मौलिक चिन्तक तथा संत सिपाही' भी कहा जाता था। वे भक्ति तथा शक्ति के अद्वितीय संगम थे। उन्होंने सदा प्रेम, सदाचार और भाईचारे का सन्देश दिया। किसी ने गुरुजी का अहित करने की कोशिश भी की तो उन्होंने अपनी सहनशीलता, मधुरता, सौम्यता से उसे परास्त कर दिया। गुरुजी की मान्यता थी कि मनुष्य को किसी को डराना भी नहीं चाहिए और न किसी से डरना चाहिए। वे अपनी वाणी में उपदेश देते हैं भै काहू को देत नहि, नहि भय मानत आन। वे बाल्यकाल से ही सरल, सहज, भक्ति-भाव वाले कर्मयोगी थे। उनकी वाणी में मधुरता, सादगी, सौजन्यता एवं वैराग्य की भावना कूट-कूटकर भरी थी। उनके जीवन का प्रथम दर्शन ही था कि धर्म का मार्ग सत्य का मार्ग है और सत्य की सदैव विजय होती है। गुरु गोविन्द सिंह का जन्म नौवें सिख गुरु गोविन्द राय...