बालमणि अम्मा की कविता

  1. Balamani Amma: कैसे Google Doodle एक मलयालम कवि को उनकी 113वीं जयंती पर श्रद्धांजलि दे रहा है?
  2. नालापत बालमणि अम्मा
  3. बालमणि अम्मा की काव्यगत विशेषताएँ
  4. बालामणि अम्मा (Balamani Amma) जिसे मलयालम साहित्य की दादी कहा जाता है
  5. कविता: कुछ विचार


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Balamani Amma: कैसे Google Doodle एक मलयालम कवि को उनकी 113वीं जयंती पर श्रद्धांजलि दे रहा है?

Google प्रशंसित भारतीय कवयित्री बालमणि अम्मा की 113वीं जयंती पर उन्हें समर्पित एक विशेष डूडल के साथ मना रहा है। बालमणि अम्मा को मलयालम कविता की ‘अम्मा’ (माँ) और ‘मुथस्सी’ (दादी) के रूप में जाना जाता है और विभिन्न पुरस्कारों और सम्मानों की प्राप्तकर्ता थीं। Balamani Amma Poems: Google 19 जुलाई, 2022 को प्रशंसित भारतीय कवि बलमणि अम्मा की 113वीं जयंती पर उन्हें समर्पित एक विशेष डूडल के साथ मना रहा है। बालमनी अम्मा को मलयालम कविता की ‘अम्मा’ (माँ) और ‘मुथस्सी’ (दादी) के रूप में जाना जाता है। कवि बालमणि अम्मा 1987 में पद्म भूषण, 1965 में साहित्य अकादमी पुरस्कार और 1995 में सरस्वती सम्मान सहित विभिन्न पुरस्कारों और सम्मानों की प्राप्तकर्ता थीं। • • Google डूडल ने बनमनी अम्मा को कवि की एक छवि के साथ मनाया जहां उन्हें किताबों के बीच बैठी और सफेद साड़ी में लिखते हुए देखा जा सकता है। बालमणि अम्मा ने मलयालम कवियों की पीढ़ियों को प्रेरित किया है। कोच्चि अंतर्राष्ट्रीय पुस्तक मेला उनके नाम पर लेखकों को नकद पुरस्कार देता है, जिसे बालमणि अम्मा पुरस्कार के रूप में जाना जाता है। जैसा कि Google डूडल ने बनमनी अम्मा को उनकी 113 वीं जयंती पर सम्मानित किया, उनके जीवन, कविताओं और विरासत के बारे में और जानें जो उन्होंने आने वाली पीढ़ियों के लिए छोड़ी हैं। Today’s Learn more about the grandmother of Malayalam literature here → Balamani Amma: कौन थीं? 19 जुलाई, 2022 को Google Doodle, एक प्रसिद्ध भारतीय बंदरगाह, जिसे मलयालम साहित्य की दादी के रूप में भी जाना जाता है, बालमणि अम्मा की 113वीं जयंती मना रहा है। उनका जन्म आज ही के दिन 1909 में त्रिशूर जिले में स्थित पुन्नयुरकुलम में उनके पैतृक घर नालापत ...

नालापत बालमणि अम्मा

U चित्र:NBA-2.jpg मलयालम कवयित्री नालापत बालमणि अम्मा अपनी कविता संग्रह "मुथास्सी" के लिए केरल साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त करती हुई (1963) नालापत बालमणि अम्मा भारतiu से मलयालम भाषा की सर्वाधिक प्रतिभावान कवयित्रियों में से हैं।कवयिuहिन्दी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों[क] में से एक महादेवी वर्मा की समकालीन थीं। उन्होंने 500 से अधिक कविताएँ लिखीं। उनकी गणना बीसवीं शताब्दी की चर्चित व प्रतिष्ठित मलयालम कवयित्रियों में की जाती है। अम्मा का काव्यसाम्राज्य मातृत्व का दिव्य प्रपंच है। उनकी रचनाएँ एक ऐसे अनुभूति मंडल का साक्षात्कार कराती हैं जो मलयालम् में अदृष्टपूर्व है। आधुनिक मलयालम की सबसे सशक्त कवयित्रियों में से एक होने के कारण उन्हें मलयालम साहित्य की दादी कहा जाता है। उनकी अनेक पंक्तियाँ सुभाषित बन गई हैं। जैसे- कविता [ ] हर कहीं लाए सूर्य प्रकाश हर कहीं लगाए बगीचे दोनों मार्गों पर- बढ़ते वक्त बधाई मदद देने वाले.....! बालमणि अम्मा के दाम्पत्य की झलक वाली एक कविता का अंश पुस्तक: 'सरस्वती की चेतना' से बाह्य सूत्र [ ]

बालमणि अम्मा की काव्यगत विशेषताएँ

यह पृष्ठ • • • वर्ष 1928 में अम्मा का विवाह वी॰ एम॰ नायर के साथ हुआ और वे उनके साथ अम्मा के दो दर्जन से अधिक काव्य-संकलन, कई गद्य-संकलन और अनुवाद प्रकाशित हुए हैं। उन्होंने छोटी अवस्था से ही कविताएँ लिखना शुरू कर दिया था। उनकी पहला कविता संग्रह "कूप्पुकई" 1930 में प्रकाशित हुआ था। उन्हें सर्वप्रथम उनकी कविताएँ दार्शनिक विचारों एवं मानवता के प्रति अगाध प्रेम की अभिव्यक्ति होती हैं। बच्चों के प्रति प्रेम-पगी कविताओं के कारण मलयालम-कविता में वे "अम्मा" और "दादी" के नाम से समादृत हैं। इन्हें भी देखें [ ] बाहरी छवियाँ • • • टीका-टिप्पणी [ ] • ↑ टंडन, विशण नारायण. . अभिगमन तिथि 6 जून 2014. • द हिन्दू (अंग्रेज़ी में). 30 सितम्बर 2004. . अभिगमन तिथि 23 अप्रैल 2014. • . अभिगमन तिथि 23 अप्रैल 2014. • द हिन्दू (अंग्रेज़ी में). 8 अक्टूबर 2004. मूल से 6 जुलाई 2007 को . अभिगमन तिथि 23 अप्रैल 2014. • जॉर्ज, के॰एम॰ (1998). Western influence on Malayalam language and literature[ मलयालम भाषा और साहित्य पर पश्चिमी प्रभाव] (अंग्रेज़ी में). साहित्य अकादमी. पृ॰132. 978-81-260-0413-3. मूल से 2 मई 2014 को . अभिगमन तिथि 1 जुलाई 2014. • जाँचें |url= मान ( द इंडियन एक्स्प्रेस (अंग्रेज़ी में). 30 सितम्बर 2004 . अभिगमन तिथि 3 मई 2014. [ बाहरीकड़ियाँ [ ] विकिसूक्ति पर • • • • •

बालामणि अम्मा (Balamani Amma) जिसे मलयालम साहित्य की दादी कहा जाता है

मलयालम साहित्य में कवि नलपत बालामणि अम्मा का महत्वपूर्ण स्थान है। प्रसिद्ध हिंदी कवि महादेवी वर्मा की समकालीन अम्मा ने पाँच सौ से अधिक कविताएँ लिखीं। वह एक पारंपरिक, तरल कवि हैं। नारी का मातृ रूप, उसके हृदय की भावनाओं को उनकी कविताओं में बहुत ही सरल, सीधे शब्दों में व्यक्त किया गया है। उनके भजन, बाल साहित्य और अनुवाद भी उल्लेखनीय हैं। उनके काव्य में सौन्दर्य, भावुकता और दर्शन का कलात्मक संगम है। ममतामयी हृदय की जो दृष्टि उनकी कविता से निकलती है, वह असाधारण है और यही कारण है कि इस पारंपरिक कवयित्री को ‘मलयालम साहित्य की जननी’ माना जाता है। आइए जानते है इस लेख में कवि बालमणि अम्मा की जीवन गाथा। Table of Contents • • • • • • • • • बालामणि अम्मा का जन्म :- नालापत बालामणि अम्मा भारत की एक प्रसिद्ध कवि, जिसे मलयालम साहित्य की दादी भी कहा जाता है। इनका जन्म आज ही के दिन यानी 19 जुलाई 1909 को केरल के त्रिशूर जिले में स्थित पुन्नयुरकुलम में उनके पैतृक घर नालापत में हुआ था। उनके माता का कोचुअम्मा था और पिता का नाम चित्तन्नूर कुंजुन्नी राजा था। बालामणि अम्मा अपनी कविताओ के लिए अनगिनत पुरस्कारों से सम्मानित कवी है, जिनमें सरस्वती सम्मान जो देश का सबसे सम्मानित साहित्यिक पुरस्कार है। इसके अतिरिक्त पद्म विभूषण जिसे भारत गणराज्य का दूसरा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार कहा जाता है, वह भी शामिल हैं। बालामणि अम्मा ने कोई औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं की :- आपको बता दें कि, अम्मा ने कभी कोई औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं की थी, बल्कि उन्हें उनके मामा ने जिनका नाम नलप्पट नारायण मेनन था, जो एक लोकप्रिय मलयाली कवि थे, उन्होंने ने ही बालामणि अम्मा को घर पर ही शिक्षा दी। अपने मामा के पुस्तकों के संग्रह के स...

कविता: कुछ विचार

निबन्ध संग्रह ‘सरस्वती की चेतना’ से; अनुवादक: डॉ. आरसु हर आदमी के मन में एक कवि का अंश विद्यमान है। हर निमिष को आस्वाद्य बनाकर, हर कर्म को महत्त्व प्रदान कर, युगान्तरों से मानव-संस्कृति को पालने-पोसनेवाली उस प्रतिभामूर्ति को भारतीय जनमानस आज उपहार दे रहा है। मैं कामना करती हूँ कि भारत की कोटि-कोटि जनता के मन में उस कवि को जाग्रत होकर काम करने का मौक़ा मिले। मेरा लालन-पालन एक ग्रामीण परिवार में हुआ, जिसमें पूजा के दीप जलते थे। कई पुण्य ग्रन्थ भी उस घर में उपलब्ध थे। उस ग्रामीण घर से प्रज्वलित इस शिखा को स्वतंत्र भारत के निर्माण उत्साह-स्वर से मुखरित होने वाले इस महानगर दिल्ली के सामने मैं रख लेती हूँ। इस चिरंतन भूमि की नित्य तृष्णा उसमें प्रज्वलित होती है। यह स्नेह और शांति की तृष्णा है। हर बालक चित्र बनाता है और हर युवक कविता लिखता है। बचपन और यौवन शोभन अनुभूतियों का समय है। मनुष्यात्मा महान प्रेम के बल पर इस विश्व के सहजीवी और व्यक्तियों से तादात्मय स्थापित करती है। इस तादात्मय की स्थिति में विशिष्ट अनुभूतियाँ जाग उठती हैं। तब स्वप्नों के दीपक प्रज्वलित होते हैं। आदर्श प्रतिष्ठापित होते हैं। वे दीपक कभी न बुझ पाएँ। वे बिम्ब कभी उखड़ न जाएँ। उनको एक जीवकाल तक बनाए रखने के लिए निरंतर साधना आवश्यक होगी। स्नेह और त्याग की वह साधना कवि के मन को विकसित करती है। इस संसार में कवियों की संख्या हमारी कल्पना से भी ज़्यादा हो जाए। सबसे अच्छी कविता लिखी गई कविता नहीं है, अपितु वह जी गई कविता है। कविता महज जीवन का प्रतिबिम्ब नहीं है, वह जीवन के आंतरिक चैतन्य और उसके सर्वोत्कृष्ट भाव की अभिव्यक्ति है। कवि के भौतिक जीवन की अपेक्षा उसके मानस में टिका आदर्श-जीवन कविता के माध्यम से ज़्यादा उजाग...