बैजू बावरा के गाने

  1. Sanjay Leela Bhansali’s Baiju Bawra becomes most talked
  2. बैजू बावरा
  3. बेटी अपराजिता बोलीं
  4. बैजू बावरा ❤️ FIZIKA MIND
  5. बेटी अपराजिता बोलीं
  6. बैजू बावरा
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Sanjay Leela Bhansali’s Baiju Bawra becomes most talked

Sanjay Leela Bhansali's Baiju Bawra: भारत के सबसे बेहतरीन फिल्ममेकर्स में शुमार संजय लीला भंसाली की फिल्मों का सभी को बेसब्री से इंतजार रहता है। हमने आखिरी बार 'गंगूबाई काठियावाड़ी' के जरिए उनकी प्रतिभा देखी, जो महामारी के दौरान बॉलीवुड की सफल फिल्मों में शामिल रही। वहीं, भंसाली की अगली फिल्म 'बैजू बावरा' इस साल की सबसे बहुप्रतीक्षित फिल्म है। कोई शक नहीं कि भंसाली की आगामी प्रोजेक्ट 'बैजू बावरा' ने इंडस्ट्री का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया है। इसके निर्माण और स्टार-स्टडेड कलाकारों के बारे में काफी चर्चा हुई है। निस्संदेह, 'बैजू बावरा' भारतीय सिनेमा की सबसे महत्वपूर्ण फिल्मों में से एक है, जो SLB बैनर से एक और सिनेमाई करिश्मा होने का वादा करता है। चर्चा में बनी हुई है फिल्म इंडस्ट्री विशेषज्ञ तरण आदर्श ने भी अपने सोशल मीडिया का सहारा लेते हुए कहा, "संजय लीला भंसाली की 'बैजू बावरा'... #BaijuBawra के बारे में जबरदस्त अटकलें हैं... इसकी कास्टिंग से लेकर प्रोजेक्ट की टाइमलाइन तक, हर चीज पर मीडिया द्वारा चर्चा की जा रही है... क्योंकि #BaijuBawra इंडस्ट्री की सबसे बड़ी परियोजनाएं में से एक है.... एक ऐसा विषय जिसने पिछले कुछ समय से #SanjayLeelaBhansali को आकर्षित किया है... इस फिल्म पर और खबरों के लिए हमारे साथ बने रहें!" 1952 में बनी थी बैजू बावरा पर सुपरहिट फिल्म फिल्म में रणवीर सिंह और आलिया भट्ट के होने की अफवाहें है। फिलहाल स्टारकास्ट की आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है। बता दें, 'बैजू बावरा' ओरिजिनल फिल्म, विजय भट्ट ने 1952 में बनाई थी। इस फिल्म में भारत भूषण और सुरेंद्र, बैजू बावरा और तानसेन की भूमिका में थे। वहीं मीना कुमारी फिल्म की हीरोइन थी। मीना कुमारी को इस फिल्म के लिए 1...

बैजू बावरा

पूरा नाम बैजनाथ मिश्र अन्य नाम बैजनाथ प्रसाद जन्म 1542 ई. मृत्यु 1613 ई. कर्म-क्षेत्र विषय संगीत प्रसिद्धि संगीत सम्राट नागरिकता भारतीय अन्य जानकारी जब बैजू युवा हुए तो नगर की कलावती नामक युवती से उनका प्रेम प्रसंग हुआ। संगीत और गायन के साथ-साथ बैजू अपनी प्रेयसी के प्यार में पागल हो गए। इसी से लोग उन्हें बैजू बावरा कहने लगे। संगीत सम्राट बैजू बावरा (जन्म: 1542 ई. – मृत्यु: 1613 ई.) बैजनाथ प्रसाद और बैजनाथ मिश्र के नाम से भी जाना जाता है। वे जीवन परिचय 16 वीं शताब्दी के महान् गायक तानसेन से मुक़ाबला महान सम्राट बैजू बावरा अकबर के दरबार में रहने के बजाय अंतिम समय कला और बैजू का प्रेम प्रसंग जितना निश्छल, अद्वितीय एवं सुखद था, उसका अंत उतनी ही दुखद घटना से हुआ। कहा जाता है कि बैजू को अपने पिता के साथ तीर्थों के दर्शन के लिए ज़िंदगी की शाम होते-होते पं. बैजनाथ उर्फ बैजू बावरा चंदेरी वापस आ गए। वहां गुरु हरिदास? बैजू बावरा फ़िल्म

बेटी अपराजिता बोलीं

आज फिल्म एक्टर भारत भूषण की 104वीं जयंती है। फिल्मों में सबसे शरीफ एक्टर की बात की जाए तो भारत भूषण उसमें पूरी तरह फिट बैठते थे। बोलने, चलने के अंदाज से लेकर कपड़ों तक उन्हें फिल्मी दुनिया के सबसे शरीफ और शालीन एक्टर का दर्जा मिला हुआ है। 14 जून 1920 को मेरठ में जन्मे भारत भूषण अपने पिता की मर्जी के खिलाफ फिल्मों में आए। फिल्म बैजू बावरा से उन्हें सुपर स्टार माना गया। वे अपने जमाने के सबसे स्टाइलिश एक्टर भी थे। एक कमरा भरकर कपड़े उनके कलेक्शन में हुआ करते थे। मुंबई और पुणे में तीन आलीशान बंगले और कोई एक लाख किताबों का कलेक्शन। अपने एक्टिंग करियर में इतनी सफलता देखने वाले भारत भूषण जब फिल्म प्रोड्यूसर बने तो कंगाली की कगार पर आ गए। तीनों बंगले, किताबें तक बिक गईं। वो फ्लैट में रहने लगे और फिल्मों में साइड रोल करने लगे। आज उनकी 104वीं बर्थ एनिवर्सरी पर हमने बात की उनकी बेटी अपराजिता भूषण से। अपराजिता भी एक्टर हैं और 1987 में आए टीवी सीरियल रामायण में मंदोदरी के रोल के लिए जानी जाती हैं। अपराजिता ने अपने पिता की जिंदगी के कई अनछुए पहलुओं को हमारे साथ शेयर किया। पढ़िए, महान फिल्म कलाकार भारत भूषण की जिंदगी की कहानी, उनकी बेटी अपराजिता की जुबानी... बेटी अपराजिता के साथ भारत भूषण। दो साल में मां को खोया, फिल्म देखने गए तो पिता से पड़ी मार पापा जी (भारत भूषण) का जन्म 14 जून 1920 को मेरठ में हुआ था। उनके पिता रायबहादुर मोतीलाल भल्ला सरकारी वकील थे। जब वो दो साल के थे, तभी उनकी मां का स्वर्गवास हो गया। मां की मौत के बाद पिता ने उन्हें और उनके भाई को अलीगढ़ में दादा-दादी के पास भेज दिया। बचपन से ही उनको फिल्में देखने का बहुत शौक था। एक बार पिता घर आए, लेकिन वो वहां मौजूद नहीं थे। पू...

बैजू बावरा ❤️ FIZIKA MIND

बैजू बावरा भारत के ध्रुपदगायक थे। उनको बैजनाथ प्रसाद और बैजनाथ मिश्र के नाम से भी जाना जाता है। वे ग्वालियर के राजा मानसिंह के दरबार के गायक थे और अकबर के दरबार के महान गायक तानसेन के समकालीन थे। उनके जीवन के बारे में बहुत सी किंवदन्तियाँ हैं जिनकी ऐतिहासिक रूप से पुष्टि नहीं की जा सकती है। प्रारंभिक जीवन १६ वीं शताब्दी के महान गायक संगीतज्ञ तानसेन के गुरुभाई पंडित बैजनाथ का जन्म चंदेरी में सन् १५४२ में शरद पूर्णिमा की रात एक ब्राह्मण परिवार में हुआ। पंडित बैजनाथ की बाल्यकाल से ही गायन एवं संगीत में काफ़ी रुचि थी। उनके गले की मधुरता और गायन की चतुराई प्रभावशाली थी। पंडित बैजनाथ को बचपन में लोग प्यार से 'बैजू' कहकर पुकारते थे। बैजू की उम्र के साथ-साथ उनके गायन और संगीत में भी बढ़ोतरी होती गई। जब बैजू युवा हुए तो नगर की कलावती नामक युवती से उनका प्रेम प्रसंग हुआ। कलावती बैजू की प्रेयसी के साथ-साथ प्रेरणास्रोत भी रही। संगीत और गायन के साथ-साथ बैजू अपनी प्रेयसी के प्यार में पागल हो गए। इसी से लोग उन्हें बैजू बावरा कहने लगे। बैजनाथ ने ध्रुपद शैली में गायन की दीक्षा उस समय के मशहूर गुरु हरिदास स्वामी से वृंदावन में ग्रहण की थी। ग्वालियर में जय विलास महल में संरक्षित ऐतिहासिक पुस्तकों के अनुसार, बैजू राग दीपक गाकर तेल के दीप जला सकते थे, राग मेघ, मेघ मल्हार, या गौड़ मल्हार गाकर वर्षा करा सकते थे, राग बहार गाकर फूल खिला सकते थे और यहाँ तक कि राग मालकौंस गाकर पत्थर भी पिघला सकते थे। संगीत प्रतियोगिता सम्राट अकबर संगीत एवं कला का प्रेमी था। उसके दरबार में संगीतकारों और साहित्यकारों का तांता लगा रहता था। तानसेन अकबर के दरबार के नौ रत्नों में गिने जाते थे। अकबर ने अपने दरबार में एक सं...

बेटी अपराजिता बोलीं

आज फिल्म एक्टर भारत भूषण की 104वीं जयंती है। फिल्मों में सबसे शरीफ एक्टर की बात की जाए तो भारत भूषण उसमें पूरी तरह फिट बैठते थे। बोलने, चलने के अंदाज से लेकर कपड़ों तक उन्हें फिल्मी दुनिया के सबसे शरीफ और शालीन एक्टर का दर्जा मिला हुआ है। 14 जून 1920 को मेरठ में जन्मे भारत भूषण अपने पिता की मर्जी के खिलाफ फिल्मों में आए। फिल्म बैजू बावरा से उन्हें सुपर स्टार माना गया। वे अपने जमाने के सबसे स्टाइलिश एक्टर भी थे। एक कमरा भरकर कपड़े उनके कलेक्शन में हुआ करते थे। मुंबई और पुणे में तीन आलीशान बंगले और कोई एक लाख किताबों का कलेक्शन। अपने एक्टिंग करियर में इतनी सफलता देखने वाले भारत भूषण जब फिल्म प्रोड्यूसर बने तो कंगाली की कगार पर आ गए। तीनों बंगले, किताबें तक बिक गईं। वो फ्लैट में रहने लगे और फिल्मों में साइड रोल करने लगे। आज उनकी 104वीं बर्थ एनिवर्सरी पर हमने बात की उनकी बेटी अपराजिता भूषण से। अपराजिता भी एक्टर हैं और 1987 में आए टीवी सीरियल रामायण में मंदोदरी के रोल के लिए जानी जाती हैं। अपराजिता ने अपने पिता की जिंदगी के कई अनछुए पहलुओं को हमारे साथ शेयर किया। पढ़िए, महान फिल्म कलाकार भारत भूषण की जिंदगी की कहानी, उनकी बेटी अपराजिता की जुबानी... बेटी अपराजिता के साथ भारत भूषण। दो साल में मां को खोया, फिल्म देखने गए तो पिता से पड़ी मार पापा जी (भारत भूषण) का जन्म 14 जून 1920 को मेरठ में हुआ था। उनके पिता रायबहादुर मोतीलाल भल्ला सरकारी वकील थे। जब वो दो साल के थे, तभी उनकी मां का स्वर्गवास हो गया। मां की मौत के बाद पिता ने उन्हें और उनके भाई को अलीगढ़ में दादा-दादी के पास भेज दिया। बचपन से ही उनको फिल्में देखने का बहुत शौक था। एक बार पिता घर आए, लेकिन वो वहां मौजूद नहीं थे। पू...

बैजू बावरा

पूरा नाम बैजनाथ मिश्र अन्य नाम बैजनाथ प्रसाद जन्म 1542 ई. मृत्यु 1613 ई. कर्म-क्षेत्र विषय संगीत प्रसिद्धि संगीत सम्राट नागरिकता भारतीय अन्य जानकारी जब बैजू युवा हुए तो नगर की कलावती नामक युवती से उनका प्रेम प्रसंग हुआ। संगीत और गायन के साथ-साथ बैजू अपनी प्रेयसी के प्यार में पागल हो गए। इसी से लोग उन्हें बैजू बावरा कहने लगे। संगीत सम्राट बैजू बावरा (जन्म: 1542 ई. – मृत्यु: 1613 ई.) बैजनाथ प्रसाद और बैजनाथ मिश्र के नाम से भी जाना जाता है। वे जीवन परिचय 16 वीं शताब्दी के महान् गायक तानसेन से मुक़ाबला महान सम्राट बैजू बावरा अकबर के दरबार में रहने के बजाय अंतिम समय कला और बैजू का प्रेम प्रसंग जितना निश्छल, अद्वितीय एवं सुखद था, उसका अंत उतनी ही दुखद घटना से हुआ। कहा जाता है कि बैजू को अपने पिता के साथ तीर्थों के दर्शन के लिए ज़िंदगी की शाम होते-होते पं. बैजनाथ उर्फ बैजू बावरा चंदेरी वापस आ गए। वहां गुरु हरिदास? बैजू बावरा फ़िल्म

Sanjay Leela Bhansali’s Baiju Bawra becomes most talked

Sanjay Leela Bhansali's Baiju Bawra: भारत के सबसे बेहतरीन फिल्ममेकर्स में शुमार संजय लीला भंसाली की फिल्मों का सभी को बेसब्री से इंतजार रहता है। हमने आखिरी बार 'गंगूबाई काठियावाड़ी' के जरिए उनकी प्रतिभा देखी, जो महामारी के दौरान बॉलीवुड की सफल फिल्मों में शामिल रही। वहीं, भंसाली की अगली फिल्म 'बैजू बावरा' इस साल की सबसे बहुप्रतीक्षित फिल्म है। कोई शक नहीं कि भंसाली की आगामी प्रोजेक्ट 'बैजू बावरा' ने इंडस्ट्री का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया है। इसके निर्माण और स्टार-स्टडेड कलाकारों के बारे में काफी चर्चा हुई है। निस्संदेह, 'बैजू बावरा' भारतीय सिनेमा की सबसे महत्वपूर्ण फिल्मों में से एक है, जो SLB बैनर से एक और सिनेमाई करिश्मा होने का वादा करता है। चर्चा में बनी हुई है फिल्म इंडस्ट्री विशेषज्ञ तरण आदर्श ने भी अपने सोशल मीडिया का सहारा लेते हुए कहा, "संजय लीला भंसाली की 'बैजू बावरा'... #BaijuBawra के बारे में जबरदस्त अटकलें हैं... इसकी कास्टिंग से लेकर प्रोजेक्ट की टाइमलाइन तक, हर चीज पर मीडिया द्वारा चर्चा की जा रही है... क्योंकि #BaijuBawra इंडस्ट्री की सबसे बड़ी परियोजनाएं में से एक है.... एक ऐसा विषय जिसने पिछले कुछ समय से #SanjayLeelaBhansali को आकर्षित किया है... इस फिल्म पर और खबरों के लिए हमारे साथ बने रहें!" 1952 में बनी थी बैजू बावरा पर सुपरहिट फिल्म फिल्म में रणवीर सिंह और आलिया भट्ट के होने की अफवाहें है। फिलहाल स्टारकास्ट की आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है। बता दें, 'बैजू बावरा' ओरिजिनल फिल्म, विजय भट्ट ने 1952 में बनाई थी। इस फिल्म में भारत भूषण और सुरेंद्र, बैजू बावरा और तानसेन की भूमिका में थे। वहीं मीना कुमारी फिल्म की हीरोइन थी। मीना कुमारी को इस फिल्म के लिए 1...

बैजू बावरा ❤️ FIZIKA MIND

बैजू बावरा भारत के ध्रुपदगायक थे। उनको बैजनाथ प्रसाद और बैजनाथ मिश्र के नाम से भी जाना जाता है। वे ग्वालियर के राजा मानसिंह के दरबार के गायक थे और अकबर के दरबार के महान गायक तानसेन के समकालीन थे। उनके जीवन के बारे में बहुत सी किंवदन्तियाँ हैं जिनकी ऐतिहासिक रूप से पुष्टि नहीं की जा सकती है। प्रारंभिक जीवन १६ वीं शताब्दी के महान गायक संगीतज्ञ तानसेन के गुरुभाई पंडित बैजनाथ का जन्म चंदेरी में सन् १५४२ में शरद पूर्णिमा की रात एक ब्राह्मण परिवार में हुआ। पंडित बैजनाथ की बाल्यकाल से ही गायन एवं संगीत में काफ़ी रुचि थी। उनके गले की मधुरता और गायन की चतुराई प्रभावशाली थी। पंडित बैजनाथ को बचपन में लोग प्यार से 'बैजू' कहकर पुकारते थे। बैजू की उम्र के साथ-साथ उनके गायन और संगीत में भी बढ़ोतरी होती गई। जब बैजू युवा हुए तो नगर की कलावती नामक युवती से उनका प्रेम प्रसंग हुआ। कलावती बैजू की प्रेयसी के साथ-साथ प्रेरणास्रोत भी रही। संगीत और गायन के साथ-साथ बैजू अपनी प्रेयसी के प्यार में पागल हो गए। इसी से लोग उन्हें बैजू बावरा कहने लगे। बैजनाथ ने ध्रुपद शैली में गायन की दीक्षा उस समय के मशहूर गुरु हरिदास स्वामी से वृंदावन में ग्रहण की थी। ग्वालियर में जय विलास महल में संरक्षित ऐतिहासिक पुस्तकों के अनुसार, बैजू राग दीपक गाकर तेल के दीप जला सकते थे, राग मेघ, मेघ मल्हार, या गौड़ मल्हार गाकर वर्षा करा सकते थे, राग बहार गाकर फूल खिला सकते थे और यहाँ तक कि राग मालकौंस गाकर पत्थर भी पिघला सकते थे। संगीत प्रतियोगिता सम्राट अकबर संगीत एवं कला का प्रेमी था। उसके दरबार में संगीतकारों और साहित्यकारों का तांता लगा रहता था। तानसेन अकबर के दरबार के नौ रत्नों में गिने जाते थे। अकबर ने अपने दरबार में एक सं...