Balyavastha mein vikas ki gati kaisi hoti hai

  1. कृषि का महत्त्व
  2. Pratiyogita Today
  3. किशोरावस्था का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं
  4. शारीरिक विकास (Physical Development)
  5. बालक का भाषा विकास (Language Development)


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कृषि का महत्त्व

mahattvapoorn tathy desh ki unnati tatha usake samagr vikas ke lie krishi ka mahattv kitana adhik hai, is bat ki nimnalikhit tathyoan se pushti ki ja sakati hai- • krishi udyog bharat ki adhikaansh janata ko rozagar pradan karata hai. is desh ki 52 pratishat abadi pratyaksh roop se krishi par nirbhar hai. krishi utpadoan ko • bharat ki khadyann avashyakata ki lagabhag shat-pratishat poorti bharatiy krishi dvara hi ki jati hai. isake atirikt chini, vastr, patasan, tel adi udyog prayah poori tarah bharatiy krishi par hi nirbhar karate haian. kyoanki inaki avashyakata ke kachche mal ki poorti mukhyatah ghareloo utpadan dvara hi hoti hai. kuchh lambe reshe ki rooee tatha patasan ki kami rahati hai, jo videshoan se prapt ki jati hai. • vishv ki sabase b di krishi sanbandhi arthavyavasthaoan mean se ek bharat mean krishi kshetr ka yogadan varsh • bharatiy krishi manasoon par nirbhar hai. isi karan bharatiy krishi ko 'manasoon ka jua' kaha gaya hai. yadi manasoon yatha-samay evan yathesht matra mean a jata hai to krishi utmadan bhi thik ho jata hai, jisase desh mean khadyannoan ki avashyakata ki poorti ho jati hai aur udyoangoan ko bhi yathesht • • bharat mean krishi ke mahatv ka karan yah hai ki isase anek pramukh udyogoan ko kachcha mal milata hai. sooti vastr, patasan, chini, vanaspati adi udyog bharatiy krishi ki samasyaean bharat krishi pradhan desh hai, parantu yahaan krishi ki dasha santoshajanak nahian hai. krishi utpadan mean vriddhi poorv mean janavriddhi dar se bhi kam...

Pratiyogita Today

इस आर्टिकल में बालक के विकास की अवस्थाएं, बाल्यावस्था क्या है, बाल्यावस्था में शारीरिक विकास, बाल्यावस्था में सामाजिक विकास, बाल्यावस्था में मानसिक विकास, बाल्यावस्था में संज्ञानात्मक विकास, बाल्यावस्था और विकास आदि टॉपिक पर चर्चा की गई है। इस प्रकार वृद्धि में साधारणतया केवल बढ़ने का अर्थ छिपा होता है जबकि विकास का आशय बढ़ने के साथ-साथ उचित रूप से बढ़ने से है। वृद्धि और विकास में परिपक्वता का भाव निहित है। विकास एक आजीवन चलने वाली प्रक्रिया है। वृद्धि शारीरिक परिपक्वता के साथ समाप्त हो जाती है, जबकि विकास की प्रक्रिया शारीरिक परिपक्वता के पश्चात भी निरंतर होती रहती है। वृद्धि को भौतिक (Phisicaly) रूप से नापा जा सकता है, परंतु विकास को बालक के व्यवहारिक रूपों में आए परिवर्तनों द्वारा ही देखा जा सकता है। अतः अब विकास की कौन-कौन सी अवस्थाएं हैं और उनमें कौनसा विकास होता है इस पर विचार किया जाएगा – विकास की अवस्थाएं Table of Contents • • • • • • • • • • • • • • बालक का विकास कुछ अवस्थाओं से होकर गुजरता है। मुख्य रूप से चार अवस्थाएं हैं – • शैशवावस्था (Infancy)- जन्म से 6 वर्ष तक • बाल्यावस्था (Childhood)- 6 वर्ष से 12 वर्ष तक • किशोरावस्था (Adolescen)- 12 वर्ष से 21 वर्ष तक • प्रौढ़ावस्था (Maturity)- 21 वर्ष के पश्चात हरलॉक के अनुसार विकास की अवस्थाएं • गर्भावस्था – गर्भधारण से जन्म तक • नवजात अवस्था – जन्म से 14 दिन तक • शैशवावस्था – 14 दिन से 2 वर्ष तक • बाल्यावस्था – 2 से 11 वर्ष तक • किशोरावस्था – 11 से 21 वर्ष तक रॉस के अनुसार विकास की अवस्थाएं • शैशवावस्था – 1 से 3 वर्ष तक • पूर्व बाल्यावस्था – 3 से 6 वर्ष तक • उत्तर बाल्यावस्था – 6 से 12 वर्ष तक • किशोरावस्था – 12 से 1...

किशोरावस्था का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं

kishoravastha ka arth paribhasha visheshta;मानव विकास की सबसे विचित्र तथा जटिल अवस्था किशोरावस्था है। इसका काल 12 वर्ष से 18 वर्ष तक रहता हैं। इसमें होने वाले परिवर्तन बालक के व्यक्तित्व के गठन में महत्वपूर्ण योग प्रदान करते हैं। अतः शिक्षा के क्षेत्र में इस अवस्था का विशेष महत्व है। ई. ए. किलपैट्रिक ने लिखा है," इस बात पर कोई मतभेद नही हो सकता है कि किशोरावस्था जीवन का सबसे कठिन काल हैं।" स्टेनले हाल के अनुसार," किशोरावस्था बड़े संघर्ष, तनाव, तूफान एवं विरोध की अवस्था है।" किशोरावस्था का अर्थ (kishoravastha kise kahte hai) किशोरावस्था शब्द अंग्रेजी के 'एडोलसेंस' का हिंदी रूपांतर हैं। 'एडोलसेंस' शब्द लैटिन भाषा के 'एडोलसियर' से बना हैं, जिसका अर्थ है परिपक्वता की तरफ बढ़ना। अतः शाब्दिक अर्थ के रूप में हम कह सकते हैं कि किशोरावस्था वह काल है, जो परिपक्वता की तरफ संक्रमण करता हैं। 12 से 18 वर्ष की आयु को विद्वानों ने किशोरावस्था का काल माना हैं। किशोरावसाथा जन्म के समय 'शैशावस्था' और बाल्यावस्था के बाद मानव विकास की तीसरी अवस्था है। जो कि बाल्यावस्था की समाप्ति के बाद शुरू होती हैं और प्रौढ़ावस्था के पहले समाप्त हो जाती हैं। किशोरावस्था को जीवन का 'बसंत काल' भी कहा जाता है। यह अवस्था तूफान और झंझावत की अवस्था होती है। इसलिए इस अवस्था को जीवन का सबसे कठिन काल के नाम से भी जाना जाता है। किशोवस्था मे बालक और बालिकाओं का बहुत ही तेजी से विकास होता है। इस अवस्था मे विभिन्न अंगों का विकास होता है। जैसे-- मस्तिष्क का विकास, हड्डियों का विकास, लंबाई का विकास, मोटाई का विकास, आवाज मे परिवर्तन, आंतरिक अंगो का विकास एवं अन्य अंगों का विकास इत्यादि इस अवस्था मे होता हैं। कुल्हन के अनुसा...

शारीरिक विकास (Physical Development)

बालक काशारीरिक विकास मानव जीवन का प्रारम्भ उसके पृथ्वी पर जन्म लेने से पहले ही प्रस्फुटित होने लगता है। वर्तमान समय में गर्भधारण की स्थिति से ही मानवीय जीवन का प्रारम्भ माना जाता है। माँ के गर्भ में बच्चा 280 दिन या 10 चन्द्रमास तक विकसित होकर परिपक्वावस्था प्राप्त करता है। अतः शारीरिक दशा का विकास गर्भकाल में निश्चित किया जा सकता है। भ्रूणावस्था में शारीरिक विकास (Physical Development in Embryo Stage) शुक्राणु तथा डिम्ब के संयोग से गर्भ स्थापित होता है। इस अवस्था में बालक का शारीरिक विकास तीन अवस्थाओं में विकसित होकर पूर्ण होता है- 1. डिम्बावस्था इस अवस्था में पहले डिम्ब उत्पादन होता है। इस समय अण्डे के आकार का विकास होता है। इस समय उत्पादन कोष में परिवर्तन होने लगते हैं। इस अवस्था में अनेक रासायनिक क्रियाएँ उत्पन्न होती हैं, जिससे कोषों में विभाजन होना प्रारम्भ हो जाता है। 2. भ्रूणीय अवस्था इस अवस्था में डिम्ब का विकास प्राणी के रूप में होने लगता है। इस समय डिम्ब की थैली में पानी हो जाता है और उसे पानी की थैली की संज्ञा दी जाती है। यह झिल्ली प्राणी को गर्भावस्था में विकसित होने में मदद देती है। जब दो माह व्यतीत हो जाते हैं तो सिर का निर्माण, फिर नाक, मुँह आदि का बनना प्रारम्भ होने लगता है। इसके पश्चात् शरीर का मध्य भाग एवं टाँगें और घुटने विकसित होने लगते हैं। 3. भूणावस्था गर्भावस्था में द्वितीय माहसेलेकर जन्म लेने तक की अवस्था को भ्रणावस्था कहते हैं। तृतीय चन्द्र माह के अन्त तक भ्रूण 37 इंच लम्बा, 3/4 औंस भारी होता है। दो माह के बाद 10 इंच लम्बा एवं भार 7 से 10 ओंस हो जाता है। आठवें माह तक लम्बाई 16 से 18 इंच, भार 4 से 5 पौण्ड हो जाता है। जन्म के समय इसकी लम्बाई 20 इंच ...

बालक का भाषा विकास (Language Development)

बालक का भाषा विकास या अभिव्यक्ति क्षमता का विकास (Language Development or Development of Manifestation Ability) भाषा विकास बौद्धिक विकास की सर्वाधिक उत्तम कसौटी मानी जाती है। बालक को सर्वप्रथम भाषा ज्ञान परिवार से होता है। तत्पश्चात विद्यालय एवं समाज के सम्पर्क में उनका भाषायी ज्ञान समृद्ध होता है। कार्ल सी. गैरिसन के अनुसार- “ स्कूल जाने से पहले बालकों में भाषा ज्ञान का विकास उनके बौद्धिक विकास की सबसे अच्छी कसौटी है। भाषा का विकास भी विकास के अन्य पहलुओं के लाक्षणिक सिद्धान्तों के अनुसार होता है। यह विकास परिपक्वता तथा अधिगम दोनों के फलस्वरूप होता है। इसमें नयी अनुक्रियाएँ सीखनी होती हैं और पहले की सीखी हुई अनुक्रियाओं का परिष्कार भी करना होता है।“ शैशवावस्था में भाषा का विकास (Language Development in Infancy) जन्म के समय शिशु क्रन्दन करता है। यही उसकी पहली 10 मास की अवस्था में शिशु पहला शब्द बोलता है, जिसे बार-बार दोहराता है। एक वर्ष तक शिशु की भाषा समझना कठिन होता है। केवल अनुमान से ही उसकी भाषा समझी जा सकती है। मेक-कॉर्थी (Mec-Corthy) ने सन् 1950 में एक अध्ययन किया और यह निष्कर्ष निकाला कि 18 मास के बालक की भाषा 26% समझ में आती है। आरम्भ में बालक एक शब्द से वाक्यों का बोध कराते हैं। स्किनर के अनुसार- “ आयु-स्तरों पर बालकों के शब्द ज्ञान के गुणात्मक पक्षों के अध्ययन से पता चलता है कि शब्दों की परिभाषा के स्वरूप में वृद्धि होती है।” स्मिथ ने भाषा विकास की प्रगति (Table-1) आयु शब्द जन्म से 8 मास 0 10 मास 1 1 वर्ष 3 1 वर्ष 3 मास 19 1 वर्ष 6 मास 22 1 वर्ष 9 मास 118 2 वर्ष 212 4 वर्ष 1550 5 वर्ष 2072 6 वर्ष 2562 शिशु की भाषा पर उसकी बुद्धि तथा विद्यालय का वातावरण अपनी भूमिक...