बेइरादा नजर मिल गई तो

  1. खूबसूरत दिलचस्प कहानी : बेइरादा नज़र मिल गई तो.......
  2. बे इरादा नजर मिल गयी
  3. Beirada Najar Unse Takra Gai (बेइरादा नजर उससे टकरा गई)
  4. आँखें चार होना मुहावरे का अर्थ और वाक्य प्रयोग
  5. Niranjan Parihar: जिंदगी की पतझड़ में बहार का नाम है सावन कुमार
  6. Niranjan Parihar: जिंदगी की पतझड़ में बहार का नाम है सावन कुमार
  7. खूबसूरत दिलचस्प कहानी : बेइरादा नज़र मिल गई तो.......
  8. Beirada Najar Unse Takra Gai (बेइरादा नजर उससे टकरा गई)


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खूबसूरत दिलचस्प कहानी : बेइरादा नज़र मिल गई तो.......

कभी होंठों को दांतों से दबाये तो कभी मुस्कराहट छुपाने की कोशिश। उसका यूं अजीब-अजीब नज़रों से देखना, ख़ुद नाज़िश को अजीब से एहसासों से भर रहा था, बार-बार पर्स में रखे कांच को हीले बहाने से तांक वह ख़ुद पर रश्क़ कर रही थी एक तो मुई उमर सोलह, तिस पर फ़ीचर भी क़यामत ही दिए हैं अल्लाह ने !पर मैं इतनी खूबसूरत हूं मुझे पता नहीं था दिल ही दिल में उसे खुद पर नाज़ हो रहा था.... "अफ़ज़ाल हसन " उस लड़की का भाई जिसे वह अपनी भाभी बनाने के सिलसिले में देखने आई थी लन्दन पलट था, बेहद हसीन-जमील और लेडी-किलर टाइप का। उसका इस तरह मुस्कुरा कर देखना किसी भी लड़की को पागल बना सकता था, फिर नाज़िश तो एक बेहद ख़ुश-फ़हम लड़की थी। दिल ही दिल में उसका बावला हो जाना लाज़िमी भी था, एक तो उम्र सोलह तिस पर ख़्वाबों के ख़रगोश ! "लिल्लाह!! ये क्या चाहता है "अपना आप छुप-छुप के दरपन में देखती "वह" बिना बात लाल हुए जा रही थी, "शायद मेरी आंखों पर मर रहा हो "उसने मुस्कुरा के पर्स खोला और खुद को शीशे में देखा, वाक़ई हैं भी मर मिटने लायक! अपनी नरगिसी आंखों और मुड़ी-मुड़ी पलकों पर निहाल हो गयी वह। "अरशी हसन" वह लड़की जिसे वह अपनी भाभी बनाने को देखने आई थीं, एक सादा सी शख्सियत की घरेलू लड़की थी। अल्लाह मियां से अपना जोड़ा मांगते मांगते उम्र के अट्ठाईसवें में दस्तक देती न जाने कितनी दफ़े मेहमानो के आगे नाश्ते की प्लेटें सजा-उठा चुकी थी। पढ़ी-लिखी बेहद सलीक़ेमन्द और ख़ुश-अखलाक़। अपने भाई के बरक्स थोड़ी गन्दुमी। उसकी संवलाहट उसके भाई की झल मारती ख़ूबसूरती के आगे अक्सर हैरतज़दा सवाल खड़े कर देती थी और लोग उसकी अम्मी से यहां तक पूछ बैठते थे, "आपकी बिटिया अस्पताल में बदल तो नहीं गई कहीं!""जी! आप पानी लेंगीं?"अफ़ज़ाल हसन ने अपनी शरारती आंखों को सीरियस बनाने ...

बे इरादा नजर मिल गयी

Summary : Beirada Najar Mil Gayi To Song Sanam Bewafa Movie से हैं, इस फिल्म में Salman Khan, Chandani, Pran, Danny Denzongpa, Dina & Puneet Israar मुख्य भूमिका मे थे। इस गाने को गाया है Vipin Sachdeva ने, Music दिया है Mahesh Kishore ने और गाने के बोल लिखे हैं Sawan Kumar ने। About : Be Irada Najar Mil Gayi To Song • Song Title : Beirada Najar Mil Gayi To • Movie : Sanam Bewafa (1991) • Singer : Vipin Sachdeva • Music : Mahesh Kishore • Lyricist : Sawan Kumar • Starcast : Salman Khan, Chandani • Director : Sawan Kumar Tak • Label : Shemaroo Beirada Najar Mil Gayi To Song Lyrics in Hindi बे इरादा नजर मिल गयी तो मुझसे दिल वो मेरा मांग बैठे.. है मेरा दिल तुम्हारी अमानत नौजवां होके तुम मांग लेना है मेरा दिल तुम्हारी अमानत नौजवां होके तुम मांग लेना जानेमन कमसिनी के ये दिन है इन दिनों तुम ये क्या मांग बैठे कैसे संभलेगा इनसे मेरा दिल हाय नादां ये क्या मांग बैठे बे इरादा नजर मिल गयी तो मुझसे दिल वो मेरा माँग बैठे.. प्यार करने के भी है तरीके रस्मे उल्फत के भी है सलीके प्यार करने के भी है तरीके रस्मे उल्फत के भी है सलीके ये तो है इंतिहाये मोहब्बत आप तो इंतिहाँ मांग बैठे कैसे संभलेगा हाय कैसे संभलेगा कैसे संभलेगा इनसे मेरा दिल हाय नादां ये क्या मांग बैठे बे इरादा नजर मिल गयी तो मुझसे दिल वो मेरा मांग बैठे.. सोला सावन तो हो जाये पुरे तब कहीं जाके नजरे मिलाना सोला सावन तो हो जाये पुरे तब कहीं जाके नजरे मिलाना है बहुत कीमती चीज ये दिल आप हंसके ये क्या मांग बैठे कैसे संभलेगा इनसे मेरा दिल हाय नादां ये क्या मांग बैठे बे इरादा नजरमिल गयी तो मुझसे दिल मेरा मांग बैठे.. Beirada Najar Mil Gay...

Beirada Najar Unse Takra Gai (बेइरादा नजर उससे टकरा गई)

‘बेइरादा नजर उनसे टकरा गई’ हिंदी के वयोवृद्ध साहित्‍यकार स्‍वामी ज्ञानभेद की आत्‍मकथा है। किशोरावस्‍था से ही स्‍वामी ज्ञानभेद की रुचि पठन-पाठन और लेखन में रही, लेकिन विधि के विधान ने उन्‍हें बिक्री-कर विभाग से संबंद्ध कर दिया। ज्ञानभेद जी निश्चित ही इस निहायत, गैर साहित्यिक, कला-विहीन विभाग में जीवन खपाने के लिए बहुत मन मारकर ही राजी होंगे 1993 में नौकरी से अवकाश पाते ही, हृदय के गर्त में एक समय से दफन बीज अंकुरित होने लगे। अध्‍यात्‍म और साहित्‍तय के अंकुर फूटने लगे। 1988 में ओशो साहित्‍य से जुड़ चुके थे। ओशो साहित्‍य से जुड़ चुके थे। ओशो साहित्‍य ने सोच में आमूल –चूल परिवर्तन तो किया ही, जीवनचर्य को भी एक सौ अस्‍सी अंश तक पहुंचा दिया। भीतर कहीं एक हलचल तो ही, ओशों के सान्निध्‍य ने ज्‍वार-भाटा पैदा कर दिया। “बेइरादा नजर उनसे टकरा गई” पुस्‍तक एक सेल्‍फ जस्‍टीफिकेशन का तत्‍व उभरता नहीं दिखता है। कारण यह कि लेखक स्‍वयं अपने को नग्‍न देखने को उत्‍सुक है। वो आत्‍म साक्षात्‍कार की प्‍यास से उत्‍पन्‍न हृदय है। इसीलिए ये आत्‍म कथा लेखक के जीवन की तमाम ऊंच-नीच अपने में संजोकर चलती है। लेखक का यही साहस, कथा की पारदर्शिता को यथासंभव बना कर रखता है ज्ञानभेद जी ने आत्‍मकथा के बहाने अपनी अतंर्यात्रा के अनुभवों को भी बखूबी इसमें पिरोया है। author language Hindi notes editions बेइरादा नजर उससे टकरा गई Year of publication: 2005 Publisher: Edition no.: 1 Number of pages: 336 Hardcover / Paperback / Ebook: P Edition notes: •

आँखें चार होना मुहावरे का अर्थ और वाक्य प्रयोग

आँखें चार होना मुहावरे का अर्थ और वाक्य प्रयोग (Aankhen chaar hona Muhavara ka Arth Aur Vakya Pryog) आँखें चार होना करना मुहावरे का अर्थ – प्रेम होना, किसी से भेंट मुलाकात हो ना, किसी का आमने सामने होना, नजरों से नजरों का मिलना। Aankhen chaar hona karana muhaavare ka arth – prem hona, kisee se bhent mulaakaat ho na, kisee ka aamane saamane hona, najaron se najaron ka milana. आँखें चार होना मुहावरे का हिंदी में वाक्य प्रयोग वाक्य प्रयोग: एक बार राधा और मोहन रास्ते में एक-दूसरे के आमने-सामने हुए और उनकी आंखें चार हो गई। वाक्य प्रयोग: सीता अपनी कक्षा के एक लड़के के साथ नजरों से नजरें मिली और आंखें चार हो गई। वाक्य प्रयोग: मोहन अपने किसी रिश्तेदार के यहां भेंट मुलाकात के लिए गया था वहां उसे किसी लड़की से मुलाकात हो गई और उसकी आंखें चार हो गई। वाक्य प्रयोग: राधा ट्रेन से कहीं जा रही थी और उसे ट्रेन में एक लड़के के साथ नजरों से नजरें मिल गई और उसकी आंखें चार हो गई। यहां हमने “आँखें चार होना “जैसे बहुचर्चित मुहावरे का अर्थ और उसके वाक्य प्रयोग को समझा।आंखें चार हो गई का अर्थ होता है किसी से भेंट मुलाकात करना किसी का आमने सामने होना और किसी के नजरों से नजरों का मिलना जब हम किसी खास इंसान से मिलते हैं या किसी अजनबी से मिलते हैं तो उनसे मिलने के बाद अगर नजर से नजर मिल जाती है तो आंखें चार हो जाती है अर्थात एक आकर्षण एक प्रेम की भावना उत्पन्न होती है। मुहावरे परीक्षाओं में मुख्य विषय के रूप में पूछे जाते हैं। एक शब्द के कई मुहावरे हो सकते हैं।यह जरूरी नहीं कि परीक्षा में यहाँ पहले दिये गए मुहावरे ही पूछा जाए। परीक्षा में सभी किसी का भी मुहावरे पूछा जा सकता है। मुहावरे का अपना एक भाग ...

Niranjan Parihar: जिंदगी की पतझड़ में बहार का नाम है सावन कुमार

सावन कुमार टाक आज 82 साल की ऊम्र में भी कोई कम लोक लुभावन नहीं दिखते। सोचिये , जब वे जवान रहे होंगे , तो कितने खूबसूरत दिखते होंगे , और कितनियों के दिलों पर बिजलियां गिराते रहे होंगें। मीना कुमारी तक कोई यूं ही थोड़े ही उन पर मरती थीं। इसलिए अपना मानना है कि सावन कुमार को लोग जानते भी हैं और नहीं भी जानते। और जो उनको जानने का दावा करते हैं , वे भी दरअसल , उतना ही जानते हैं , जितना उनको बाकी दुनिया जानती है। क्योंकि असल में , सावन कुमार को जानना आसान नहीं है। जयपुर की उस मिट्टी में कोई तो तासीर जरूर है कि एक सामान्य से परिवार के नादान बच्चे में इतनी सारी काबिलीयत एक साथ भर दी कि वह छोटी सी ऊमर में ही गजब का अंग्रेजीदां बन गया। थोड़ा सा बड़ा होते ही सिनेमा के सपने पालकर मुंबई पहुंच गया। सुनते ही सीधे दिल में उतरनेवाले गीतों का बादशाह बन गया। रोमांटिक फिल्मों का निर्माता भी बन गया। और जिंदगी की असलियत को छू लेनेवाला निर्देशक भी बन गया। बात सन 1956 की है। सावन कुमार तब 20 साल के थे। और छुपाकर कर रखे हुए अपनी माताजी के 42 रुपए चुपचाप उठाकर घर से निकले और सीधे मुंबई पहुंच गए। काबीलियत उनमें इतनी थी कि जयपुर के मोती कटला स्कूल में जब वे छठी कक्षा में पढ़ते थे , तब से ही वे ऐसी फर्राटेदार अंग्रेजी बोल जाते थे कि उनके अध्यापक भी चकरा जाते थे। कहते हैं कि सावन का मौसम सबके लिए बहार लाता है। लेकिन हीरो बनने मुंबई आए सावन कुमार के लिए फिल्मी दुनिया के शुरुआती दिन पतझड़ में कुछ पाने की प्यास के दिन थे। मुंबई आकर लगभग दस साल तक सावन कुमार लगातार संघर्ष करते रहे। कभी प्रोड्यूसर एफसी मेहरा के गैराज में ड्रायवर गोपाल के साथ सो जाते थे , तो कभी फुटपाथ पर भी। कभी भूखे भी रहे और पैसे के अभाव मे...

संशोधित

फीरोजाबाद, निज प्रतिनिधि : पालीवाल हाल में सुरों की महफिल को प्ले बैक सिंगर विनोद राठौर की वाह-वाही मिली तो थिरकते हुए कदमों का उत्साह अनुमिता सुमन की तालियों ने बढ़ाया। प्रतिभा इंस्टीट्यूट के बैनर तले होने वाले कार्यक्रम में दर्शकों को देर रात तक बांधे रखा लाफ्टर चैलेंज के रजनीश ने अपनी विशिष्ट शैली से। प्रतिभा इंस्टीट्यूट के बैनर तले टैलेंट हंट सेशन थ्री के तहत सिंगिंग एवं डांस के कंपटीशन का शुभारंभ किया सुमित कुमार सिंह ने एक गीत से बेइरादा नजर मिल गई तो मुझसे दिल वो मेरा मांग बैठे. की गूंज पर हाल में सन्नाटा बिखर गया। फ‌र्स्ट की छात्रा ने अपने नृत्य से जमकर तालियों की गड़गड़ाहट बटोरी। देर रात तक चले कार्यक्रम का विधिवत शुभारंभ हुआ अनुमिता सुमन के नृत्य से। इसके बाद विभिन्न फिल्मों में अपने सुरों से रंग भर चुके विनोद राठौर ने दर्शकों का अभिवादन कर तालियों की गड़गड़ाहट बटोर कहा कि फीरोजाबाद में टैलेंट की खोज करने आए हैं। विशिष्ट अतिथि के रूप में अरुण कुमार जैन भी मंच पर रहे। वहीं अन्य अतिथियों के रूप में रमेश चंद्र अग्रवाल, ओंकारनाथ विज, डीके सिंह, विमल चंद्र जैन, स्वतंत्र कुमार, प्रतिभा के डायरेक्टर दिनेश कुमार जैन, कल्पना सिंह सहित अन्य प्रमुखजन उपस्थित थे। एंकरिंग नमन आर जैन ने की। कोरियोग्राफर सुशील यादव व एक्सपर्ट आलोक शर्मा उपस्थित रहे। डीके सिंह ने कहा चुने हुए प्रतिभागियों को इंडियन आइडियल के लिए तैयारी कराई जाएंगी। मुंबई से आए विनोद एवं अनुमिता ने सहयोग का आश्वासन दिया है। * गायन: सुमित कुमार सिंह प्रथम, विवेचना उपाध्याय दूसरे एवं प्रवीन तीसरे स्थान पर रहे। * गायन-टू: अविनाश राजपूत प्रथम, सुमन यादव द्वितीय, तनू शर्मा तीसरे स्थान पर रहे। * नृत्य : कुणाल कश्यप पहले, ज...

Niranjan Parihar: जिंदगी की पतझड़ में बहार का नाम है सावन कुमार

सावन कुमार टाक आज 82 साल की ऊम्र में भी कोई कम लोक लुभावन नहीं दिखते। सोचिये , जब वे जवान रहे होंगे , तो कितने खूबसूरत दिखते होंगे , और कितनियों के दिलों पर बिजलियां गिराते रहे होंगें। मीना कुमारी तक कोई यूं ही थोड़े ही उन पर मरती थीं। इसलिए अपना मानना है कि सावन कुमार को लोग जानते भी हैं और नहीं भी जानते। और जो उनको जानने का दावा करते हैं , वे भी दरअसल , उतना ही जानते हैं , जितना उनको बाकी दुनिया जानती है। क्योंकि असल में , सावन कुमार को जानना आसान नहीं है। जयपुर की उस मिट्टी में कोई तो तासीर जरूर है कि एक सामान्य से परिवार के नादान बच्चे में इतनी सारी काबिलीयत एक साथ भर दी कि वह छोटी सी ऊमर में ही गजब का अंग्रेजीदां बन गया। थोड़ा सा बड़ा होते ही सिनेमा के सपने पालकर मुंबई पहुंच गया। सुनते ही सीधे दिल में उतरनेवाले गीतों का बादशाह बन गया। रोमांटिक फिल्मों का निर्माता भी बन गया। और जिंदगी की असलियत को छू लेनेवाला निर्देशक भी बन गया। बात सन 1956 की है। सावन कुमार तब 20 साल के थे। और छुपाकर कर रखे हुए अपनी माताजी के 42 रुपए चुपचाप उठाकर घर से निकले और सीधे मुंबई पहुंच गए। काबीलियत उनमें इतनी थी कि जयपुर के मोती कटला स्कूल में जब वे छठी कक्षा में पढ़ते थे , तब से ही वे ऐसी फर्राटेदार अंग्रेजी बोल जाते थे कि उनके अध्यापक भी चकरा जाते थे। कहते हैं कि सावन का मौसम सबके लिए बहार लाता है। लेकिन हीरो बनने मुंबई आए सावन कुमार के लिए फिल्मी दुनिया के शुरुआती दिन पतझड़ में कुछ पाने की प्यास के दिन थे। मुंबई आकर लगभग दस साल तक सावन कुमार लगातार संघर्ष करते रहे। कभी प्रोड्यूसर एफसी मेहरा के गैराज में ड्रायवर गोपाल के साथ सो जाते थे , तो कभी फुटपाथ पर भी। कभी भूखे भी रहे और पैसे के अभाव मे...

खूबसूरत दिलचस्प कहानी : बेइरादा नज़र मिल गई तो.......

कभी होंठों को दांतों से दबाये तो कभी मुस्कराहट छुपाने की कोशिश। उसका यूं अजीब-अजीब नज़रों से देखना, ख़ुद नाज़िश को अजीब से एहसासों से भर रहा था, बार-बार पर्स में रखे कांच को हीले बहाने से तांक वह ख़ुद पर रश्क़ कर रही थी एक तो मुई उमर सोलह, तिस पर फ़ीचर भी क़यामत ही दिए हैं अल्लाह ने !पर मैं इतनी खूबसूरत हूं मुझे पता नहीं था दिल ही दिल में उसे खुद पर नाज़ हो रहा था.... "अफ़ज़ाल हसन " उस लड़की का भाई जिसे वह अपनी भाभी बनाने के सिलसिले में देखने आई थी लन्दन पलट था, बेहद हसीन-जमील और लेडी-किलर टाइप का। उसका इस तरह मुस्कुरा कर देखना किसी भी लड़की को पागल बना सकता था, फिर नाज़िश तो एक बेहद ख़ुश-फ़हम लड़की थी। दिल ही दिल में उसका बावला हो जाना लाज़िमी भी था, एक तो उम्र सोलह तिस पर ख़्वाबों के ख़रगोश ! "लिल्लाह!! ये क्या चाहता है "अपना आप छुप-छुप के दरपन में देखती "वह" बिना बात लाल हुए जा रही थी, "शायद मेरी आंखों पर मर रहा हो "उसने मुस्कुरा के पर्स खोला और खुद को शीशे में देखा, वाक़ई हैं भी मर मिटने लायक! अपनी नरगिसी आंखों और मुड़ी-मुड़ी पलकों पर निहाल हो गयी वह। "अरशी हसन" वह लड़की जिसे वह अपनी भाभी बनाने को देखने आई थीं, एक सादा सी शख्सियत की घरेलू लड़की थी। अल्लाह मियां से अपना जोड़ा मांगते मांगते उम्र के अट्ठाईसवें में दस्तक देती न जाने कितनी दफ़े मेहमानो के आगे नाश्ते की प्लेटें सजा-उठा चुकी थी। पढ़ी-लिखी बेहद सलीक़ेमन्द और ख़ुश-अखलाक़। अपने भाई के बरक्स थोड़ी गन्दुमी। उसकी संवलाहट उसके भाई की झल मारती ख़ूबसूरती के आगे अक्सर हैरतज़दा सवाल खड़े कर देती थी और लोग उसकी अम्मी से यहां तक पूछ बैठते थे, "आपकी बिटिया अस्पताल में बदल तो नहीं गई कहीं!""जी! आप पानी लेंगीं?"अफ़ज़ाल हसन ने अपनी शरारती आंखों को सीरियस बनाने ...

संशोधित

फीरोजाबाद, निज प्रतिनिधि : पालीवाल हाल में सुरों की महफिल को प्ले बैक सिंगर विनोद राठौर की वाह-वाही मिली तो थिरकते हुए कदमों का उत्साह अनुमिता सुमन की तालियों ने बढ़ाया। प्रतिभा इंस्टीट्यूट के बैनर तले होने वाले कार्यक्रम में दर्शकों को देर रात तक बांधे रखा लाफ्टर चैलेंज के रजनीश ने अपनी विशिष्ट शैली से। प्रतिभा इंस्टीट्यूट के बैनर तले टैलेंट हंट सेशन थ्री के तहत सिंगिंग एवं डांस के कंपटीशन का शुभारंभ किया सुमित कुमार सिंह ने एक गीत से बेइरादा नजर मिल गई तो मुझसे दिल वो मेरा मांग बैठे. की गूंज पर हाल में सन्नाटा बिखर गया। फ‌र्स्ट की छात्रा ने अपने नृत्य से जमकर तालियों की गड़गड़ाहट बटोरी। देर रात तक चले कार्यक्रम का विधिवत शुभारंभ हुआ अनुमिता सुमन के नृत्य से। इसके बाद विभिन्न फिल्मों में अपने सुरों से रंग भर चुके विनोद राठौर ने दर्शकों का अभिवादन कर तालियों की गड़गड़ाहट बटोर कहा कि फीरोजाबाद में टैलेंट की खोज करने आए हैं। विशिष्ट अतिथि के रूप में अरुण कुमार जैन भी मंच पर रहे। वहीं अन्य अतिथियों के रूप में रमेश चंद्र अग्रवाल, ओंकारनाथ विज, डीके सिंह, विमल चंद्र जैन, स्वतंत्र कुमार, प्रतिभा के डायरेक्टर दिनेश कुमार जैन, कल्पना सिंह सहित अन्य प्रमुखजन उपस्थित थे। एंकरिंग नमन आर जैन ने की। कोरियोग्राफर सुशील यादव व एक्सपर्ट आलोक शर्मा उपस्थित रहे। डीके सिंह ने कहा चुने हुए प्रतिभागियों को इंडियन आइडियल के लिए तैयारी कराई जाएंगी। मुंबई से आए विनोद एवं अनुमिता ने सहयोग का आश्वासन दिया है। * गायन: सुमित कुमार सिंह प्रथम, विवेचना उपाध्याय दूसरे एवं प्रवीन तीसरे स्थान पर रहे। * गायन-टू: अविनाश राजपूत प्रथम, सुमन यादव द्वितीय, तनू शर्मा तीसरे स्थान पर रहे। * नृत्य : कुणाल कश्यप पहले, ज...

Beirada Najar Unse Takra Gai (बेइरादा नजर उससे टकरा गई)

‘बेइरादा नजर उनसे टकरा गई’ हिंदी के वयोवृद्ध साहित्‍यकार स्‍वामी ज्ञानभेद की आत्‍मकथा है। किशोरावस्‍था से ही स्‍वामी ज्ञानभेद की रुचि पठन-पाठन और लेखन में रही, लेकिन विधि के विधान ने उन्‍हें बिक्री-कर विभाग से संबंद्ध कर दिया। ज्ञानभेद जी निश्चित ही इस निहायत, गैर साहित्यिक, कला-विहीन विभाग में जीवन खपाने के लिए बहुत मन मारकर ही राजी होंगे 1993 में नौकरी से अवकाश पाते ही, हृदय के गर्त में एक समय से दफन बीज अंकुरित होने लगे। अध्‍यात्‍म और साहित्‍तय के अंकुर फूटने लगे। 1988 में ओशो साहित्‍य से जुड़ चुके थे। ओशो साहित्‍य से जुड़ चुके थे। ओशो साहित्‍य ने सोच में आमूल –चूल परिवर्तन तो किया ही, जीवनचर्य को भी एक सौ अस्‍सी अंश तक पहुंचा दिया। भीतर कहीं एक हलचल तो ही, ओशों के सान्निध्‍य ने ज्‍वार-भाटा पैदा कर दिया। “बेइरादा नजर उनसे टकरा गई” पुस्‍तक एक सेल्‍फ जस्‍टीफिकेशन का तत्‍व उभरता नहीं दिखता है। कारण यह कि लेखक स्‍वयं अपने को नग्‍न देखने को उत्‍सुक है। वो आत्‍म साक्षात्‍कार की प्‍यास से उत्‍पन्‍न हृदय है। इसीलिए ये आत्‍म कथा लेखक के जीवन की तमाम ऊंच-नीच अपने में संजोकर चलती है। लेखक का यही साहस, कथा की पारदर्शिता को यथासंभव बना कर रखता है ज्ञानभेद जी ने आत्‍मकथा के बहाने अपनी अतंर्यात्रा के अनुभवों को भी बखूबी इसमें पिरोया है। author language Hindi notes editions बेइरादा नजर उससे टकरा गई Year of publication: 2005 Publisher: Edition no.: 1 Number of pages: 336 Hardcover / Paperback / Ebook: P Edition notes: •