भारत की परमाणु नीति की समीक्षा कीजिए

  1. भारत का परमाणु विकास कार्यक्रम और चीन का नज़रिया?
  2. क्या भारत को अपनी परमाणु नीति पर फिर से विचार करने की जरूरत है?
  3. व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि और भारत: एक विश्लेषण
  4. :: Drishti IAS Coaching in Delhi, Online IAS Test Series & Study Material
  5. भारत की परमाणु नीति इन हिंदी
  6. शांति और युद्ध में भारतीय परमाणु सिद्धांत
  7. [Mission 2022] INSIGHTS करेंट अफेयर्स+ पीआईबी नोट्स [ DAILY CURRENT AFFAIRS + PIB Summary in HINDI ] 2 July 2022
  8. डूप्ले की नीति की समीक्षा कीजिए तथा फ्रांसीसियों की असफलता के कारणों का वर्णन कीजिए।


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भारत का परमाणु विकास कार्यक्रम और चीन का नज़रिया?

यह लेख पोखरण के 25 साल : भारत की परमाणु यात्रा की समीक्षा श्रृंखला का हिस्सा है . भारत 11 और 13 मई 2023 को पोखरण -II परमाणु परीक्षणों की 25 वीं सालगिरह मनाएगा . वर्ष 1998 में किए गए पांच भूमिगत परमाणु परीक्षणों के साथ ही भारत ने खुद को एक पूर्ण रूप से परमाणु हथियार संपन्न राष्ट्र घोषित करके इतिहास रच दिया था . भारत ने पहली बार मई 1974 में एक परमाणु परीक्षण किया था , जिसे पीसफुल न्यूक्लियर एक्सप्लोशन यानी शांतिपूर्ण परमाणु विस्फोट (PNE) बताया गया था . इसके बाद वर्ष 1998 में भारत द्वारा पोखरण -II भूमिगत परमाणु परीक्षण विस्फोट किया गया . उसके पश्चात से देखा जाए तो पिछले 25 वर्षों के दौरान वैश्विक मंच पर भारत एक ज़िम्मेदार परमाणु ताक़त के रूप में उभरा है , क्योंकि भारत एकमात्र परमाणु हथियार संपन्न राष्ट्र है , जो परमाणु अप्रसार संधि (NPT) पर हस्ताक्षर नहीं करने के बावज़ूद नागरिक व्यापार में संलग्न हो सकता है . इसके अतिरिक्त , वर्ष 1998 के बाद से भारत के मिसाइल कार्यक्रम में ज़बरदस्त तरीक़े से बढ़ोतरी हुई है . ज़ाहिर है कि ऐसे में पोखरण -II परमाणु परीक्षण की 25 वीं वर्षगांठ की पूर्व संध्या के विशेष अवसर पर भारत के परमाणु हथियार कार्यक्रम के बारे में चीन के नज़रिए को लेकर चर्चा ज़रूरी हो जाती है . देखा जाए तो पिछले 25 वर्षों के दौरान वैश्विक मंच पर भारत एक ज़िम्मेदार परमाणु ताक़त के रूप में उभरा है, क्योंकि भारत एकमात्र परमाणु हथियार संपन्न राष्ट्र है, जो परमाणु अप्रसार संधि (NPT) पर हस्ताक्षर नहीं करने के बावज़ूद नागरिक व्यापार में संलग्न हो सकता है. ऐतिहासिक नज़रिया राजनीतिक मोर्चे की बात करें , तो चीन ने वर्ष 1974 के बाद भारत को एक समान परमाणु राष्ट्र के रूप में नहीं देखा है ...

क्या भारत को अपनी परमाणु नीति पर फिर से विचार करने की जरूरत है?

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कुछ दिन पहले भारत-पाकिस्तान के बीच चल रही तनातनी को लेकर दो बड़े बयान दिए. उन्होंने कहा कि अब अगर पाकिस्तान से बात होगी तो सिर्फ़ उसके क़ब्जे वाले कश्मीर (पीओके) पर होगी. इसके साथ राजनाथ सिंह ने भारत की परमाणु शक्ति के संबंध में ऐसी बात कही जिसने एक पुरानी को बहस फिर छेड़ दिया. रक्षा मंत्री ने कहा कि अभी तक भारत की परमाणु नीति ‘पहले हमला नहीं’ (एनएफ़यू) करने के सिद्धांत की रही है, लेकिन भविष्य में यह नीति परिस्थितियों पर निर्भर करेगी. राजनाथ सिंह के इस बयान को कई लोगों ने भारत की परमाणु नीति में जल्दी ही होने जा रहे परिवर्तन के संकेत के रूप में देखा है. उनकी पार्टी भाजपा विपक्ष में रहते हुए एनएफ़यू की समीक्षा की बात कहती रही है. वहीं, सरकार में आने बाद भी वह इसकी समीक्षा की ज़रूरत पर बल दे चुकी है. इस सिलसिले में पूर्व रक्षा मंत्री दिवंगत मनोहर पर्रिकर का साल 2016 में दिया वह बयान याद किया जा सकता है जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत अनंतकाल के लिए एनएफ़यू पर क़ायम नहीं रह सकता. अब जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटने के बाद पाकिस्तान के साथ जिस तरह की तनातनी चल रही है, उसे देखते हुए रक्षा मंत्री का बयान हैरान नहीं करता. न्यूक्लियर डॉक्ट्रिन और भारत की एनएफ़यू नीति द्वितीय विश्व युद्ध में अमेरिका द्वारा जापान के ख़िलाफ़ परमाणु हथियार इस्तेमाल किए जाने के बाद इस बेहद विनाशकारी शक्ति का फिर कभी किसी युद्ध में उपयोग नहीं किया गया. लेकिन ख़ुद को परमाणु संपन्न बनाने की होड़ दुनिया के सभी कथित शांतिप्रिय देशों के बीच चलती रही है. इस फ़ेहरिस्त में अमेरिका और रूस के नाम सबसे आगे हैं. ज़्यादा से ज़्यादा परमाणु हथियार बनाने और उनका परीक्षण करने की इन दोनों देशों की...

व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि और भारत: एक विश्लेषण

व्यापकपरमाणुपरीक्षणप्रतिबंधसंधिऔरभारत: एकविश्लेषण - यूपीएससी, आईएएस, सिविलसेवाऔरराज्यपीसीएसपरीक्षाओंकेलिएसमसामयिकी चर्चाकाकारण हालहीमेंव्यापकपरमाणुपरीक्षणप्रतिबंधसंधिसंगठन (CTBTO) नेभारतको ‘पर्यवेक्षक’ कादर्जादेनेऔरअंतर्राष्ट्रीयनिगरानीप्रणाली (IMS) डाटातकपहुंचमुहैयाकरानेकीपेशकशकीहै।व्यापकपरमाणुपरीक्षणप्रतिबंधसंधिसंगठनकेकार्यकारीसचिवनेकहाकिसंगठनभारतसेव्यापकपरमाणुपरीक्षणप्रतिबंधसंधि (Comprehensive Nuclear Test Ban Treaty) कोअनुमोदितकरनेकीउम्मीदनहींकररहालेकिनभारतकोपर्यवेक्षककेरूपमेंशामिलहोनेकाअवसरदेनाएकअच्छीशुरुआतहोसकतीहै। सीटीबीटीओअंतर्राष्ट्रीयनिगरानीप्रणाली (IMS) काकार्यान्वयनकरताहै।इसकेअलावायहलगातारपरमाणुविस्फोटोंकेसन्दर्भमेंविश्वकीनिगरानीकरताहैऔरअपनेसदस्यदेशोंकेसाथनिष्कर्षसाझाकरताहै।मौजूदासमयमेंआइएमएसकेपास 89 देशोंमेंफैले 337 केन्द्रहैं। परिचय व्यापकपरमाणुपरीक्षणप्रतिबंधसंधिवर्ष 1996 मेंप्रस्तुतकीगई, जोपरमाणुअप्रसारसंधिकीपूरकहै।इससंधिमेंपरमाणुपरीक्षणकोप्रतिबंधितकरकेपरमाणुप्रसारकोरोकनेकीव्यवस्थाकीगई।सीटीबीटीसेसंबंधितकुछप्रावधानोंकावर्णननिम्नलिखितबिन्दुओंकेअन्तर्गतकियाजासकताहै- • संधिकेतहतभूमिगत, जलऔरआकाशमेंपरमाणुपरीक्षणप्रतिबंधितकियागयाहै। • संधिमेंअंतर्राष्ट्रीयपर्यवेक्षणकेंद्र (International Monitoring Centre)) कीस्थापनाकाप्रावधानकियागयाहै। • विदितहोकिवर्ष 2017 मेंसंयुत्तफ़राष्ट्रनेइससंधिकेनएस्वरूपकोअपनाया, जोपरमाणुहथियारोंकेउपयोग, उत्पादन, हस्तांतरण, अधिग्रहण, संग्रहणवतैनातीकोअवैधकरारदेतीहै। • संधिमेंअंतर्राष्ट्रीयडाटाकेंद्रकेनिर्माणकीभीव्यवस्थाकीगयीहै। वर्तमानमें 183 देशोंनेइससंधिपरहस्ताक्षरकरदिएहैं, जिनमेंसे 164 देशोंनेइससंधिकाअनुसमर्थनभीकरदियाहै।इससंधिमेंयहभीप्रावध...

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विशेष/इन-डेप्थ: चीन- पाकिस्तान और भारत की परमाणु नीति संदर्भ एवं पृष्ठभूमि हाल ही में जब उत्तर कोरिया ने अपने परमाणु परीक्षण स्थलों को नष्ट करने की बात कही तो इसे कुछ इस तरह पेश किया गया जैसे विश्व से परमाणु हथियारों का खतरा पूरी तरह खत्म हो गया हो। उत्तर कोरिया के बदले रवैये से राहत अवश्य मिली है, लेकिन यह कहना सही नहीं है कि विश्व परमाणु हथियारों के खतरे से उबर गया है। भारत के पड़ोस में स्थित चीन तथा हमारा एक अन्य पड़ोसी पाकिस्तान भी परमाणु शक्ति संपन्न देश है और दोनों ही के साथ हमारे मधुर सैन्य संबंध नहीं हैं। ऐसे में यह आवश्यक हो जाता है कि भारत अपनी न्यूनतम सुरक्षा आवश्यकताओं के तहत परमाणु नीति की समय-समय पर समीक्षा करे तथा उसे अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों के अनुरूप बनाए। भारत की परमाणु नीति के प्रमुख बिंदु इस परिप्रेक्ष्य में भारत की परमाणु नीति पर नज़र डाली जाए तो पता चलता है कि इसका ताना-बाना देश की विदेश नीति, ऊर्जा आवश्यकताओं और राष्ट्रीय सुरक्षा को पूरा करने का रहा है। • भारत ने 2003 में अपनी परमाणु नीति घोषित की जिसमें सुरक्षा के लिये न्यूनतम परमाणु क्षमता के विकास की बात कही गई। • भारत की परमाणु नीति का आधार 'नो फर्स्ट यूज़' यानी परमाणु अस्त्रों का पहले उपयोग नहीं करने का रहा है, लेकिन हमला होने की स्थिति में कड़ा जवाब दिया जाएगा। • भारत किसी दूसरे परमाणु शक्ति वाले राष्ट्र के खिलाफ अपने परमाणु हथियारों का पहला इस्तेमाल कब करेगा, इसको लेकर पूर्ण स्पष्टता नहीं है। • कभी परिस्थितियां ऐसा मोड़ भी ले सकती हैं जिनमें कुछ मामलों में भारत को इसका पहला इस्तेमाल उपयोगी लग सकता है। बदलाव की ज़रूरत है या नहीं? • परमाणु नीति का मामला इतना संवेदनशील है कि इस पर सार्वजनिक चर्चा किसी...

भारत की परमाणु नीति इन हिंदी

भारत की परमाणु नीति (India's Nuclear Policy) : सबसे पहले तो आपको बता दे की भारत ने अपना पहला परमाणु परीक्षण मई 1974 में (india first nuclear test) पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के शासनकाल में किया था। इस परमाणु परीक्षण का नाम "स्माइलिंग बुद्धा" था। और इसके बाद मई 1998 में पोखरण परीक्षण (pokhran nuclear test) रेंज पर किये गए पांच परमाणु बम परीक्षणों की श्रृंखला का एक हिस्सा था। भारत ने 11 और 13 मई, 1998 को राजस्थान के पोरखरण परमाणु स्थल पर 5 परमाणु परीक्षण किये थे। इस कदम के साथ ही भारत की दुनिया भर में धाक जम गई। भारत पहला ऐसा परमाणु शक्ति संपन्न देश बना जिसने परमाणु अप्रसार संधि (NPT) पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। भारत द्वारा किये गए इन परमाणु परीक्षणों की सफलता ने विश्व समुदाय की नींद उड़ा दी थी। भारत की परमाणु नीति की विशेषताएं : यहाँ हम निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा भारत की परमाणु नीति की विशेषताओं से अवगत करा रहे है, जो इस प्रकार है... • भारत की परमाणु नीति का मूल सिद्धांत "पहले उपयोग नही", इस नीति के अनुसार भारत किसी भी देश पर परमाणु हमला तब तक नही करेगा जब तक कि शत्रु देश भारत के ऊपर हमला नही कर देता। • भारत अपनी परमाणु नीति को इतना सशक्त रखेगा कि दुश्मन के मन में भय बना रहे। • यदि किसी देश ने भारत पर परमाणु हमला किया तो उसका प्रतिशोध इतना भयानक होगा कि दुश्मन को अपूर्णीय क्षति हो और वह जल्दी इस हमले से उबर ना सके। • दुश्मन के खिलाफ परमाणु हमले की कार्यवाही करने के अधिकार सिर्फ जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों अर्थात देश के राजनीतिक नेतृत्व को ही होगा हालाँकि परमाणु कमांड अथॉरिटी का सहयोग जरूरी होगा। • जिन देशों के पास परमाणु हथियार नही हैं उनके खिलाफ परमाणु हथियारों का ...

शांति और युद्ध में भारतीय परमाणु सिद्धांत

पिछले कुछ वर्षों से राजनीतिक और सामरिक समुदायों के बीच भारत के परमाणु सिद्धांत की समीक्षा को लेकर बहस जारी है। सामरिक समुदाय वर्तमान भारतीय परमाणु सिद्धांत की परमाणु हथियारों का पहले इस्तेमाल न करने संबंधी नीति (एनएफयू) और बदले की व्यापक कार्रवाई करने संबंधी रणनीति सहित विविध कारकों पर सवालिया निशान लगाते हुए इस संबंध में विशेष तौर पर सक्रिय रहा है। आलोचक एनएफयू नीति को एक ऐसी मानक नीति करार देते रहे हैं, जो भारत के राष्ट्रीय हितों को साधने में विफल रही है। (1) विरोधी देश से परम्परागत तौर पर श्रेष्ठ देश के लिए ऐसी नीति अपनाना भले ही उचित हो, लेकिन परम्परागत तौर पर सशक्त शत्रु के विरुद्ध यह नीति परमाणु हथियारों के उपयोग की रक्षात्मक उपयोगिता को सीमित करती है। संभवतः 1999 और 2003 में जब क्रमशः भारतीय परमाणु सिद्धांत (2) पर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड की रिपोर्ट के मसौदे और सुरक्षा मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति की प्रेस विज्ञप्ति द्वारा भारत के परमाणु सिद्धांत (3) के संचालन की दिशा में हुई प्रगति की समीक्षा को सार्वजनिक किया गया था, तो उस समय भारत, यदि खुद को चीन से बेहतर नहीं समझता था, तो कम से कम उससे कमतर भी नहीं समझता था। हालांकि दशक भर में हालात बहुत बदल चुके हैं और चीन ऐसी सैन्य ताकत जुटा चुका है, जिसने भारत की तुलना में परम्परागत सैन्य ताकत के बीच का फासला और बढ़ा दिया है। इसलिए भारतीय परमाणु सिद्धांत में एनएफयू के इस्तेमाल का प्रश्न बहुत महत्वपूर्ण है और उसे हर हाल में हल किया जाना चाहिए। इसी तरह, किसी भी स्तर पर परमाणु हथियार के इस्तेमाल में पहल करने के विपरीत बदले की व्यापक कार्रवाई की रणनीति को कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा है। विशेषकर पाकिस्तान द्वारा सामरिक परमा...

विशेष/इन

टैग्स: • • संदर्भ एवं पृष्ठभूमि हाल ही में जब उत्तर कोरिया ने अपने परमाणु परीक्षण स्थलों को नष्ट करने की बात कही तो इसे कुछ इस तरह पेश किया गया जैसे विश्व से परमाणु हथियारों का खतरा पूरी तरह खत्म हो गया हो। उत्तर कोरिया के बदले रवैये से राहत अवश्य मिली है, लेकिन यह कहना सही नहीं है कि विश्व परमाणु हथियारों के खतरे से उबर गया है। भारत के पड़ोस में स्थित चीन तथा हमारा एक अन्य पड़ोसी पाकिस्तान भी परमाणु शक्ति संपन्न देश है और दोनों ही के साथ हमारे मधुर सैन्य संबंध नहीं हैं। ऐसे में यह आवश्यक हो जाता है कि भारत अपनी न्यूनतम सुरक्षा आवश्यकताओं के तहत परमाणु नीति की समय-समय पर समीक्षा करे तथा उसे अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों के अनुरूप बनाए। भारत की परमाणु नीति के प्रमुख बिंदु इस परिप्रेक्ष्य में भारत की परमाणु नीति पर नज़र डाली जाए तो पता चलता है कि इसका ताना-बाना देश की विदेश नीति, ऊर्जा आवश्यकताओं और राष्ट्रीय सुरक्षा को पूरा करने का रहा है। • भारत ने 2003 में अपनी परमाणु नीति घोषित की जिसमें सुरक्षा के लिये न्यूनतम परमाणु क्षमता के विकास की बात कही गई। • भारत की परमाणु नीति का आधार 'नो फर्स्ट यूज़' यानी परमाणु अस्त्रों का पहले उपयोग नहीं करने का रहा है, लेकिन हमला होने की स्थिति में कड़ा जवाब दिया जाएगा। • भारत किसी दूसरे परमाणु शक्ति वाले राष्ट्र के खिलाफ अपने परमाणु हथियारों का पहला इस्तेमाल कब करेगा, इसको लेकर पूर्ण स्पष्टता नहीं है। • कभी परिस्थितियां ऐसा मोड़ भी ले सकती हैं जिनमें कुछ मामलों में भारत को इसका पहला इस्तेमाल उपयोगी लग सकता है। बदलाव की ज़रूरत है या नहीं? • परमाणु नीति का मामला इतना संवेदनशील है कि इस पर सार्वजनिक चर्चा किसी भी देश में नहीं की जाती और यह वैसे भी नीति...

[Mission 2022] INSIGHTS करेंट अफेयर्स+ पीआईबी नोट्स [ DAILY CURRENT AFFAIRS + PIB Summary in HINDI ] 2 July 2022

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डूप्ले की नीति की समीक्षा कीजिए तथा फ्रांसीसियों की असफलता के कारणों का वर्णन कीजिए।

डूप्ले की नीति- डूप्ले की नीति को निम्नलिखित रूप से समझा जा सकता है (i) भारतीय शासकों के मामलों में हस्तक्षेप-डूप्ले ने भारत की राजनीतिक स्थिति के अनुसार अनुमान लगा लिया कि सफलता प्राप्त करने के लिए राजाओं के आपसी झगड़ों में हस्तक्षेप करना, व्यापार व राजनीतिक अधिकारों के लिए लाभकारी है, अतः उसने इस नीति का अनुसरण किया। हैदराबाद और कर्नाटक के झगड़ों में उसे सफलता प्राप्त भी हुई। (ii) फ्रांसीसी साम्राज्य की स्थापना-डूप्ले फ्रांसीसी सरकार तथा फ्रांसीसी व्यापारियों के लाभ हेतु यहाँ पर भारत के अन्य क्षेत्रों में भी साम्राज्य स्थापित करने की नीति में विश्वास करता था और साम्राज्य स्थापना के लिए वह अत्यधिक सक्रिय हो गया था। (iii) व्यापारिक नीति में परिवर्तन-डूप्ले प्रारम्भ में अपने देश की समृद्धि के लिए भारत में व्यापार की वृद्धि करने आया। उसने फ्रांसीसी कम्पनी को भारत में सुदृढ़ नींव पर खड़ा करने का प्रयास किया, परन्तु बाद में वह समझ गया था कि अंग्रेजों के विरुद्ध सफल होने के लिए राजनीतिक प्रभुत्व स्थापित करना भी अनिवार्य है। अतः व्यापार की वृद्धि के लिए वह राजनीतिक प्रतिस्पर्धा में जुट गया। इस प्रकार डूप्ले ने फ्रांसीसी कम्पनी की व्यापारिक नीति में परिवर्तन किया तथा दक्षिणी भारत में फ्रांस के राजनीतिक प्रभुत्व की स्थापना की ओर ध्यान दिया। (iv) भारतीय सैन्य-बल पर प्रयोग-डूप्ले फ्रांसीसी सेनाओं की दुर्बलताओं से भली-भाँति परिचित था। अत: उसने सैन्य बल का लाभ उठाने की नीति अपनाई थी। उसने भारतीय राजाओं की सेनाओं को पाश्चात्य ढंग से प्रशिक्षण देना शुरू किया। (v) उपहार ग्रहण करना-धन की अभिवृद्धि के लिए डूप्ले ने भारतीय राजाओं से उपहार ग्रहण करने की नीति अपनाई। यह नीति राजनीतिक दृष्टिकोण...