भारतेंदु हरिश्चंद्र का जीवन परिचय कक्षा 12

  1. भारतेंदु हरिश्चंद्र / परिचय
  2. भारतेंदु हरिश्चंद्र का जीवन परिचय
  3. भारतेन्दु हरिश्चंद्र जीवन परिचय / bhartendu harishchandra ka jeevan parichay
  4. भारतेंदु हरिश्चंद्र का जीवन परिचय//bharatendu Harishchandra ka jivan Parichay Hindi mein
  5. भारतेंदु हरिश्चंद्र का जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय एवं भाषा शैली
  6. भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय एवं भाषा शैली
  7. भारतेंदु हरिश्चंद्र का जीवन परिचय : HindiPrem.com
  8. भारतेंदु हरिश्चंद्र का जीवन परिचय
  9. भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय एवं भाषा शैली
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भारतेंदु हरिश्चंद्र / परिचय

सामग्री • १ जीवन परिचय • १.१ शिक्षा • १.२ साहित्य सेवा • १.३ समाज सेवा • २ कृतियां • ३ काव्यगत विशेषताएं • ३.१ वर्ण्य विषय • ३.२ श्रृंगार रस प्रधान • ३.३ भक्ति प्रधान • ३.४ सामाजिक समस्या प्रधान • ३.५ राष्ट्र-प्रेम प्रधान • ३.६ प्राकृतिक चित्रण • ४ भाषा • ५ शैली • ६ रस • ७ छंद • ८ अलंकार • ९ साहित्य में स्थान जीवन परिचय [ ] 'होनहार विरवान के होत चीकने पात' कहावत को चरितार्थ करने वाले भारतेंदु हरिश्चंद्र का जन्म 1850 में काशी के एक प्रतिष्ठित वैश्य परिवार में हुआ। उनके पिता सेठ गोपाल चंद्र एक अच्छे कवि थे और गिरधर दास उपनाम से कविता लिखा करते थे। शिक्षा [ ] भारतेंदु जी की अल्पावस्था में ही उनके माता-पिता का देहांत हो गया था अतः स्कूली शिक्षा प्राप्त करने में भारतेंदु जी असमर्थ रहे। घर पर रह कर हिंदी, मराठी, बंगला, उर्दू तथा अंग्रेज़ी का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया। भारतेंदु जी को काव्य-प्रतिभा अपने पिता से विरासत के रूप में मिली थी। उन्होंने पांच वर्ष की अवस्था में ही निम्नलिखित दोहा बनाकर अपने पिता को सुनाया और सुकवि होने का आशीर्वाद प्राप्त किया- लै ब्योढ़ा ठाढ़े भए श्री अनिरुध्द सुजान। वाणा सुर की सेन को हनन लगे भगवान।। साहित्य सेवा [ ] पंद्रह वर्ष की अवस्था से ही भारतेंदु ने साहित्य सेवा प्रारंभ कर दी थी, अठारह वर्ष की अवस्था में उन्होंने कवि वचन-सुधा नामक पत्र निकाला जिसमें उस समय के बड़े-बड़े विद्वानों की रचनाएं छपती थीं।हरिश्चन्द्र जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। अत: उन्होंने साहित्य के हर क्षेत्र में काम किया है। कविता, नाटक, निबन्ध, व्याख्यान आदि पर उन्होंने कार्य किया। 'सुलोचना'उनका प्रमुख आख्यान है। 'बादशाह दर्पण' उनका इतिहास की जानकारी प्रदान करने वाला ग्रन्थ है। ...

भारतेंदु हरिश्चंद्र का जीवन परिचय

भारतेंदु हरिश्चंद्र का जीवन परिचय || Bharatendu Harishchandra ka Jivan Parichay जीवन परिचय (Jivan Parichay) - युग प्रवर्तक साहित्यकार एवं असाधारण प्रतिभा संपन्न भारतेंदु हरिश्चंद्र का जन्म सन् 1850 ई० में, काशी में हुआ था। इनके पिता गोपालचंद्र 'गिरधरदास' ब ब्रजभाषा के प्रसिद्ध कवि थे। बाल्यकाल में मात्र 10 वर्ष की अवस्था में ही ये माता-पिता के सुख से वंचित हो गए थे। नाम भारतेंदु हरिश्चंद्र पिता का नाम बाबू गोपालचन्द्र 'गिरिधरदास' जन्म सन् 1850 ई० जन्म - स्थान काशी शिक्षा स्वाध्याय के माध्यम से विभिन्न भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया। संपादन कवि-वचन सुधा, हरिश्चंद्र मैगजीन, हरिश्चंद्र चंद्रिका लेखन - विधा कविता, नाटक, एकांकी, निबंध, उपन्यास, पत्रकारिता भाषा - शैली भाषा - बृज भाषा एवं खड़ी बोली प्रमुख रचनाएं शैली - मुक्तक निधन सन् 1850 ई० साहित्य में स्थान हिंदी साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका भारतेंदु हरिश्चंद्र की आरंभिक शिक्षा घर पर ही हुई, जहां इन्होंने हिंदी, उर्दू, बांग्ला एवं अंग्रेजी भाषा एवं साहित्य का अध्ययन किया। इसके पश्चात इन्होंने ' क्वींस कॉलेज' में प्रवेश लिया, किंतु काव्य रचना में रूचि होने के कारण इनका मन अध्ययन में नहीं लग सका; परिणाम स्वरूप इन्होंने शीघ्र ही कॉलेज छोड़ दिया। काव्य-रचना के अतिरिक्त इनकी रूचि यात्राओं में भी थी। अवकाश के समय में ये विभिन्न स्थानों की यात्राएं किया करते थे। भारतेंदु जी बड़े ही उदार एवं दानी पुरुष थे। अपनी उदारता के कारण शीघ्र ही इनकी आर्थिक दशा शोचनीय हो गई और ये ऋणग्रस्त हो गए। ऋणग्रस्तता के समय ही ये क्षय रोग के भी शिकार हो गए। इन्होंने इस रोग से मुक्त होने का हरसंभव उपाय किया, किंतु मुक्त नहीं हो सके। सन् 1885 ईस्वी म...

भारतेन्दु हरिश्चंद्र जीवन परिचय / bhartendu harishchandra ka jeevan parichay

भारतेन्दु हरिश्चंद्र जीवन परिचय / bhartendu harishchandra ka jeevan parichay भारतेन्दु हरिश्चंद्र भारतेंदु हरिश्चंद्र जी का जीवन परिचय जीवन परिचय संक्षिप्त परिचय- हिंदी साहित्य गगन के इन्दु भारतेन्दु हरिश्चंद्र का जन्म सन 1850 ईस्वी में काशी के एक संभ्रात वैश्य परिवार में हुआ था. इनके पिता बाबू गोपालचंद्र गिरधरदास ब्रज भाषा में कविता करते थे. इन्होने पाँच वर्ष की अवस्था में ही एक दोहा रचकर अपने कवि पिता से सुकवि होने का आशीर्वाद प्राप्त किया था. दुर्भाग्य से 5 वर्ष की अवस्था में माता और 10 वर्ष की अवस्था में इनके पिता का स्वर्गवास हो गया. इन्होने स्वाद्ध्याय से ही उर्दू , फ़ारसी , हिंदी , संस्कृत और बांग्ला भाषाओं का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया था। इन्होंने विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं का संपादन किया और हिंदी साहित्य की समृद्धि के लिए धन को पानी की तरह बहा दिया. 35वर्ष की अल्पायु में ही सन 1885 ईस्वी में ये दिवंगत हो गए. कृतियां ( रचनायें ) • प्रेम माधुरी • सतसई श्रृंगार • विजय पताका • विजय वल्लरी साहित्य में स्थान - हरिश्चंद्र ही एक मात्र ऐसे सर्वश्रेष्ठ कवि हैं जिन्होंने अन्य किसी भी भारतीय लेखक की अपेक्षा देशी बोली में रचित साहित्य को लोकप्रिय बनाने में सर्वश्रेष्ठ योगदान दिया. Bhartendu harishchandra ka jivan Parichay भारतेंदु हरिश्चंद्र का जीवन परिचय Bhartendu harishchandra ka jivan Parichay जीवन परिचय- युग प्रवर्तक साहित्यकार एवं असाधारण प्रतिभा संपन्न भारतेंदु हरिश्चंद्र का जन्म 1850 ईस्वी में काशी में हुआ था। इनके पिता गोपालचंद्र ' गिरिधरदास' ब्रजभाषा के प्रसिद्ध कवि थे। बाल्यकाल में मात्र 10 वर्ष की अवस्था में ही यह माता पिता के सुख से वंचित हो गए थे। भारतेंदु हरिश्चंद...

भारतेंदु हरिश्चंद्र का जीवन परिचय//bharatendu Harishchandra ka jivan Parichay Hindi mein

भारतेंदु हरिश्चंद्र का जीवन परिचय//bharatendu Harishchandra ka jivan Parichay Hindi mein जीवन परिचय- युग प्रवर्तक साहित्यकार एवं असाधारण प्रतिभा संपन्न भारतेंदु हरिश्चंद्र का जन्म 1850ई० में काशी में हुआ था। इनके पिता गोपालचंद्र गिरिधरदास ब्रजभाषा के प्रसिद्ध कवि थे। बाल्यकाल में मात्र 10 वर्ष की अवस्था में ही माता-पिता के सुख से वंचित हो गए थे। भारतेंदु हरिश्चंद्र का जीवन परिचय//bharatendu Harishchandra ka jivan Parichay Hindi mein भारतेंदु हरिश्चंद्र की आरंभिक शिक्षा घर पर ही हुई, जहां इन्होंने हिंदी उर्दू बांग्ला एवं अंग्रेजी भाषा तथा साहित्य के अध्ययन किया है। इसके पश्चात उन्होंने क्वींस कॉलेज में प्रवेश लिया किंतु काव्यरचना में रुचि होने के कारण का मन है अध्ययन में नहीं लग सका; परिणाम स्वरूप इन्होंने शीघ्र ही कॉलेज छोड़ दिया। काव्य रचना के अतिरिक्त इनकी रूचि यात्राओं में ही थी। अवकाश के समय विभिन्न क्षेत्रों की यात्राएं किया करते थे। भारतेंदु जी बड़े ही उदार एवं दानी पुरुष थे। अपनी उदारता के कारण से गिरी इनकी आर्थिक दशा सोचनीय हो गई और यह ऋण ग्रस्त हो गए। श्रणग्रस्ताता के समय ही यह छह रोग के भी शिकार हो गए। इन्होंने इस रोग से मुक्ति हुई होने का हर संभव प्रयास किया, किंतु मुक्त नहीं हो सके। 1850 ई० मैं किसी रोग के कारण मात्र 35 वर्ष की अल्पायु में भारतेंदु जी का स्वर्गवास हो गया। परिचय कवि एक दृष्टि में नाम भारतेंदु हरिश्चंद्र पिता का नाम बाबू गोपालचंद्र गिरिधरदास जन्म 1850ई० जन्म स्थान काशी शिक्षा स्वाध्याय के माध्यम से विभिन्न विभागों को ज्ञान प्राप्त किया संपादन कवि-वचन-सुधा, हरिश्चंद्र, मैग्नीज, हरिश्चंद्र चंद्रिका लेखन विधि कविता, नाटक, एकांकी, निबंध, उपन्यास, पत्...

भारतेंदु हरिश्चंद्र का जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय एवं भाषा शैली

भारतेंदु हरिश्चंद्र का जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय एवं भाषा शैली || Jivan Parichay in Hindi भारतेंदु हरिश्चंद्र (जीवनकाल : सन् 1850 - 1885 ई०) भारतेंदु हरिश्चंद्र का जीवन परिचय यहां पर सबसे सरल भाषा में लिखा गया है। यह जीवन परिचय कक्षा 9वीं से लेकर कक्षा 12वीं तक के छात्र के लिए महत्वपूर्ण है। इसमें भारतेंदु हरिश्चंद्र के सभी पहलुओं के विषय में चर्चा की गई है, तो इसे कोई भी व्यक्ति भी पढ़ सकता है। नाम भारतेंदु हरिश्चंद्र पिता का नाम बाबू गोपाल चंद्र 'गिरिधरदास' माता का नाम पार्वती देवी जन्म सन् 1850 ईस्वी जन्म-स्थान काशी शिक्षा स्वाध्याय के माध्यम से विभिन्न भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया। संपादन कवि-वचन सुधा, हरिश्चंद्र मैगजीन, हरिश्चंद्र चंद्रिका। लेखन-विधा कविता, नाटक, एकांकी, निबंध, उपन्यास, पत्रकारिता। भाषा-शैली भाषा - ब्रजभाषा एवं खड़ी बोली। शैली - मुक्तक। प्रमुख रचनाएं नीलदेवी, प्रेम-जोगनी, भारत दुर्दशा, अंधेर नगरी, कर्पूरमंजरी, सुलोचना। निधन सन् 1885 ईसवी साहित्य में स्थान हिंदी साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका। अन्य बातें 5 वर्ष की आयु में दोहा रचा, 18 वर्ष की आयु में साहित्य रचना, पत्रकार तथा संस्थाओं की स्थापना और बहुमुखी प्रतिभा भारतेंदु हरिश्चंद्र की आरंभिक शिक्षा घर पर ही हुई, जहां इन्होंने हिंदी, उर्दू, बांग्ला एवं अंग्रेजी भाषा तथा साहित्य का अध्ययन किया। इसके पश्चात इन्होंने 'क्वींस कॉलेज' में प्रवेश लिया, किंतु काव्य रचना में रूचि होने के कारण इनका मन अध्ययन में नहीं लग सका; परिणामस्वरूप इन्होंने शीघ्र ही कॉलेज छोड़ दिया। काव्य-रचना के अतिरिक्त इनकी रूचि यात्राओं में भी थी। अवकाश के समय में ये विभिन्न स्थानों की यात्राएं किया करते थे। भारतेंदु जी बड़े...

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय एवं भाषा शैली

आपने कभी न कभी भारतेंदु हरिश्चंद्र के बारे में तो जरूर सुना होगा, क्योंकि यह कोई छोटा मोटा नाम नहीं है। भारतेंदु हरिश्चंद्र एक बहुत बड़े कवि, लेखक और नाटककार थे। यदि आप 11वी या 12वी कक्षा में पढ़ रहे है, तो आपके किस भारतेंदु हरिश्चंद्र के जीवन परिचय के बारे में जान लेना काफी महत्वपूर्ण होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि अक्सर इन कक्षाओं में भारतेंदु हरिश्चंद्र जी के जीवन से जुड़ी प्रश्न पूछे जाते है। ऐसे में अगर आप भी परीक्षा में अच्छे अंक लाना चाहते हैं, तो आपको भारतेंदु हरिश्चंद्र जी के जीवन परिचय से जुड़ी हर महत्वपूर्ण जानकारी होनी बहुत जरूरी है। बस भारतेंदु हरिश्चंद्र का जीवन परिचय से जुड़ी हर महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त करने हेतु आपको हमारे आज के लेख को अंत तक पढ़ने की आवश्यकता होगी। क्योंकि आज के लेख में आप सभी को सरल शब्दों में भारतेंदु हरिश्चंद्र कौन थे से जुड़ी जानकारी प्रदान की जाने वाली है। भारतेंदु हरिश्चंद्र कौन थे? यदि हम भारतेंदु हरिश्चंद्र कौन थे इसकी चर्चा करें, तो यह एक भारतीय लेखक, कवि और नाटककार थे। वही यदि हम इनके जन्म के बारे में चर्चा करें, तो इनका जन्म 9 सितंबर साल 1850 में हुआ था। भारतेंदु हरिश्चंद्र जी का जन्म एक सामान्य परिवार में वाराणसी, उत्तर प्रदेश में हुआ था। इनके पिता जी का नाम गोपालचंद्र थे, जो की काशी के सुप्रसिद्ध सेठ माने जाते थे। भारतेंदु हरिश्चंद्र जी को बचपन से काव्य प्रतिभा में काफी दिलचस्पी थी। जब भारतेंदु हरिश्चंद्र जी केवल पांच वर्ष के ही थे, तब ही वे निम्न दोहा रचकर अपने पिता गोपालचंद्र जी को सुनाया करते थे और अपने पिता जी से ही इन्होंने सुकवि होने का भी आशीर्वाद लिया करते थे। यदि हम भारतेंदु हरिश्चंद्र जी के शिक्षा की बात करें, तो चूंकि इन...

भारतेंदु हरिश्चंद्र का जीवन परिचय : HindiPrem.com

भारतेंदु हरिश्चंद्र का जीवन परिचय ( Bharatendu Harishchandra ka Jivan Parichay ) : आधुनिक अपने अल्प जीवन काल में हिंदी साहित्य के क्षेत्र में इनका योगदान अविस्मरणीय है। जिस कारण इनके काल को भारतेंदु युग के नाम से जाना जाता है। साहित्यिक व्यक्तित्व – भारत के महान कवि, निबंधकार, नाटककार, पत्रकार, सम्पादक व आलोचक भारतेंदु जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। इनकी प्रतिभा का सर्वाधिक विकास कविता व नाटक के क्षेत्र में हुआ। इनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर ही भारत के विद्वानों ने इन्हें भारतेंदु की उपाधि दी। इन्होंने बहुत सी भारतीय भाषाओं में रचनाएं कीं। लेकिन ब्रजभाषा पर इनकी विशेष पकड़ थी। ब्रजभाषा में इनकी अधिकांश रचनाएं श्रंगारिक हैं। इनकी केवल प्रेम के विषय पर लिखित कविताओं के सात संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। ये संग्रह निम्नलिखित हैं – प्रेम-माधुरी, प्रेम-मालिका, प्रेम-फुलवारी, प्रेमाश्रु-वर्षण, प्रेम-सरोवर, प्रेम-तरंग, प्रेम-प्रलाप। इसे भी पढ़ें नरेंद्र मोदी | Narendra Modi युगप्रवर्तक – भारतेंदु हरिश्चंद्र एक युग प्रवर्तक साहित्यकार के रूप में जाने जाते हैं। इन्होंने अपनी विलक्षण प्रतिभा के दम पे हिन्दी साहित्य के विकास में अमूल्य योगदान दिया। ये मात्र 9 वर्ष की अवस्था से ही कविताएं करने लगे थे। इनके हृदय में अपनी मात्रभाषा के लिए अगाध प्रेम था। इन्होंने हिन्दी को तत्कालीन विद्यालयों में स्थान दिलाने का प्रयास किया। सम्पादक व प्रकाशक के रूप में – मात्र 18 वर्ष की अवस्था में भारतेंदु हरिश्चंद्र ने ‘कवि-वचन-सुधा’ नामक पत्रिका का सम्पादन और प्रकाशन किया। इसके माध्यम से उन्होंने तत्काल कवियों का पथ प्रदर्शन भी किया। इसके पांच वर्ष बाद इन्होंने एक दूसरी पत्रिका ‘हरिश्चंद्र मैगजीन’ का सं...

भारतेंदु हरिश्चंद्र का जीवन परिचय

भारतेंदु हरिश्चंद्र का जीवन परिचय || Bharatendu Harishchandra ka Jivan Parichay जीवन परिचय (Jivan Parichay) - युग प्रवर्तक साहित्यकार एवं असाधारण प्रतिभा संपन्न भारतेंदु हरिश्चंद्र का जन्म सन् 1850 ई० में, काशी में हुआ था। इनके पिता गोपालचंद्र 'गिरधरदास' ब ब्रजभाषा के प्रसिद्ध कवि थे। बाल्यकाल में मात्र 10 वर्ष की अवस्था में ही ये माता-पिता के सुख से वंचित हो गए थे। नाम भारतेंदु हरिश्चंद्र पिता का नाम बाबू गोपालचन्द्र 'गिरिधरदास' जन्म सन् 1850 ई० जन्म - स्थान काशी शिक्षा स्वाध्याय के माध्यम से विभिन्न भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया। संपादन कवि-वचन सुधा, हरिश्चंद्र मैगजीन, हरिश्चंद्र चंद्रिका लेखन - विधा कविता, नाटक, एकांकी, निबंध, उपन्यास, पत्रकारिता भाषा - शैली भाषा - बृज भाषा एवं खड़ी बोली प्रमुख रचनाएं शैली - मुक्तक निधन सन् 1850 ई० साहित्य में स्थान हिंदी साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका भारतेंदु हरिश्चंद्र की आरंभिक शिक्षा घर पर ही हुई, जहां इन्होंने हिंदी, उर्दू, बांग्ला एवं अंग्रेजी भाषा एवं साहित्य का अध्ययन किया। इसके पश्चात इन्होंने ' क्वींस कॉलेज' में प्रवेश लिया, किंतु काव्य रचना में रूचि होने के कारण इनका मन अध्ययन में नहीं लग सका; परिणाम स्वरूप इन्होंने शीघ्र ही कॉलेज छोड़ दिया। काव्य-रचना के अतिरिक्त इनकी रूचि यात्राओं में भी थी। अवकाश के समय में ये विभिन्न स्थानों की यात्राएं किया करते थे। भारतेंदु जी बड़े ही उदार एवं दानी पुरुष थे। अपनी उदारता के कारण शीघ्र ही इनकी आर्थिक दशा शोचनीय हो गई और ये ऋणग्रस्त हो गए। ऋणग्रस्तता के समय ही ये क्षय रोग के भी शिकार हो गए। इन्होंने इस रोग से मुक्त होने का हरसंभव उपाय किया, किंतु मुक्त नहीं हो सके। सन् 1885 ईस्वी म...

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय एवं भाषा शैली

आपने कभी न कभी भारतेंदु हरिश्चंद्र के बारे में तो जरूर सुना होगा, क्योंकि यह कोई छोटा मोटा नाम नहीं है। भारतेंदु हरिश्चंद्र एक बहुत बड़े कवि, लेखक और नाटककार थे। यदि आप 11वी या 12वी कक्षा में पढ़ रहे है, तो आपके किस भारतेंदु हरिश्चंद्र के जीवन परिचय के बारे में जान लेना काफी महत्वपूर्ण होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि अक्सर इन कक्षाओं में भारतेंदु हरिश्चंद्र जी के जीवन से जुड़ी प्रश्न पूछे जाते है। ऐसे में अगर आप भी परीक्षा में अच्छे अंक लाना चाहते हैं, तो आपको भारतेंदु हरिश्चंद्र जी के जीवन परिचय से जुड़ी हर महत्वपूर्ण जानकारी होनी बहुत जरूरी है। बस भारतेंदु हरिश्चंद्र का जीवन परिचय से जुड़ी हर महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त करने हेतु आपको हमारे आज के लेख को अंत तक पढ़ने की आवश्यकता होगी। क्योंकि आज के लेख में आप सभी को सरल शब्दों में भारतेंदु हरिश्चंद्र कौन थे से जुड़ी जानकारी प्रदान की जाने वाली है। भारतेंदु हरिश्चंद्र कौन थे? यदि हम भारतेंदु हरिश्चंद्र कौन थे इसकी चर्चा करें, तो यह एक भारतीय लेखक, कवि और नाटककार थे। वही यदि हम इनके जन्म के बारे में चर्चा करें, तो इनका जन्म 9 सितंबर साल 1850 में हुआ था। भारतेंदु हरिश्चंद्र जी का जन्म एक सामान्य परिवार में वाराणसी, उत्तर प्रदेश में हुआ था। इनके पिता जी का नाम गोपालचंद्र थे, जो की काशी के सुप्रसिद्ध सेठ माने जाते थे। भारतेंदु हरिश्चंद्र जी को बचपन से काव्य प्रतिभा में काफी दिलचस्पी थी। जब भारतेंदु हरिश्चंद्र जी केवल पांच वर्ष के ही थे, तब ही वे निम्न दोहा रचकर अपने पिता गोपालचंद्र जी को सुनाया करते थे और अपने पिता जी से ही इन्होंने सुकवि होने का भी आशीर्वाद लिया करते थे। यदि हम भारतेंदु हरिश्चंद्र जी के शिक्षा की बात करें, तो चूंकि इन...

भारतेन्दु हरिश्चंद्र जीवन परिचय / bhartendu harishchandra ka jeevan parichay

भारतेन्दु हरिश्चंद्र जीवन परिचय / bhartendu harishchandra ka jeevan parichay भारतेन्दु हरिश्चंद्र भारतेंदु हरिश्चंद्र जी का जीवन परिचय जीवन परिचय संक्षिप्त परिचय- हिंदी साहित्य गगन के इन्दु भारतेन्दु हरिश्चंद्र का जन्म सन 1850 ईस्वी में काशी के एक संभ्रात वैश्य परिवार में हुआ था. इनके पिता बाबू गोपालचंद्र गिरधरदास ब्रज भाषा में कविता करते थे. इन्होने पाँच वर्ष की अवस्था में ही एक दोहा रचकर अपने कवि पिता से सुकवि होने का आशीर्वाद प्राप्त किया था. दुर्भाग्य से 5 वर्ष की अवस्था में माता और 10 वर्ष की अवस्था में इनके पिता का स्वर्गवास हो गया. इन्होने स्वाद्ध्याय से ही उर्दू , फ़ारसी , हिंदी , संस्कृत और बांग्ला भाषाओं का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया था। इन्होंने विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं का संपादन किया और हिंदी साहित्य की समृद्धि के लिए धन को पानी की तरह बहा दिया. 35वर्ष की अल्पायु में ही सन 1885 ईस्वी में ये दिवंगत हो गए. कृतियां ( रचनायें ) • प्रेम माधुरी • सतसई श्रृंगार • विजय पताका • विजय वल्लरी साहित्य में स्थान - हरिश्चंद्र ही एक मात्र ऐसे सर्वश्रेष्ठ कवि हैं जिन्होंने अन्य किसी भी भारतीय लेखक की अपेक्षा देशी बोली में रचित साहित्य को लोकप्रिय बनाने में सर्वश्रेष्ठ योगदान दिया. Bhartendu harishchandra ka jivan Parichay भारतेंदु हरिश्चंद्र का जीवन परिचय Bhartendu harishchandra ka jivan Parichay जीवन परिचय- युग प्रवर्तक साहित्यकार एवं असाधारण प्रतिभा संपन्न भारतेंदु हरिश्चंद्र का जन्म 1850 ईस्वी में काशी में हुआ था। इनके पिता गोपालचंद्र ' गिरिधरदास' ब्रजभाषा के प्रसिद्ध कवि थे। बाल्यकाल में मात्र 10 वर्ष की अवस्था में ही यह माता पिता के सुख से वंचित हो गए थे। भारतेंदु हरिश्चंद...