भारतीय संघवाद की प्रकृति की विवेचना कीजिए।

  1. जानिए संघवाद क्या होता है
  2. “भारतीय संविधान संघात्मक है, परन्तु उसमें एकात्मकता के लक्षण भी विद्यमान हैं।” विवेचना कीजिए।
  3. Recent questions from topic संघवाद
  4. भारतीय संघवाद की भावना
  5. वैश्वीकरण का अर्थ कारण प्रभाव
  6. नेचर ऑफ़ इंडियन कंस्टीट्यूशन: फेडरल और यूनिटरी (भारतीय संविधान की प्रकृति: संघीय या एकात्मक)
  7. भारतीय राजनीति में दबाव समूह के प्रभाव की विवेचना कीजिए


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जानिए संघवाद क्या होता है

Sangvad (संघवाद) का अर्थ वैसे तो बड़ा सादा और स्पष्ट है मगर इसे हर जगह जोड़-तोड़ के पेश किया जाता रहा है। संघवाद में 2 स्तर हैं, एक है केंद्रीय और दूसरा राज्य स्तर। केंद्र का किरदार संघवाद भले ही राज्यीय या स्थानीय स्तर से ज़रूर बड़ा है लेकिन यह इन दोनों स्तर पर हावी नहीं होता है। भारत की तरह ही बेल्जियम में भी संघवाद हमारी तरह ही चलता है। आप इस ब्लॉग में संघवाद के बारे में विस्तार से जानिए कि Sangvad क्या है। This Blog Includes: • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • संघवाद क्या है? Sangvad क्या है, इसकी जानकारी नीचे दी गई है- • संघवाद (Federalism) लैटिन शब्द ‘Foedus’ है जिसका अर्थ है एक प्रकार का समझौता या अनुबंध। • महासंघ दो तरह की सरकारों के बीच सत्ता साझा करने और उनके संबंधित क्षेत्रों को नियंत्रित करने हेतु एक समझौता है। • संघवाद सरकार का वह रूप है जिसमें देश के भीतर सरकार के कम-से-कम दो स्तर मौजूद हैं- पहला केंद्रीय स्तर पर और दूसरा स्थानीय या राज्यीय स्तर पर। • भारत की स्थिति में संघवाद को स्थानीय, केंद्रीय और राज्य सरकारों के मध्य अधिकारों के वितरण के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। संघवाद के प्रकार Sangvad के प्रकार नीचे दिए गए हैं- सहकारी संघवाद संघात्मक व्यवस्था में केंद्र व प्रांतीय सरकारों में शक्तियों का विभाजन करने के बाद सरकार के दोनों स्तरों पर सहयोग को बढ़ाने वाली व्यवस्थाएं भी की जाती हैं ताकि संघ के वांछित लक्ष्य आसानी से प्राप्त हो सकें। इस सहयोग की आवश्यकता इसलिए होती है क्योंकि सरकार के दोनों स्तर समान लक्ष्यों की दिशा में अग्रसर होते हैं। संघात्मक व्यवस्था के सामान्य उद्देश्य दोनों सरकारों के अलग-अलग कार्यों के बाद भी उनके अन्तःक्षेत्राीय सम्ब...

“भारतीय संविधान संघात्मक है, परन्तु उसमें एकात्मकता के लक्षण भी विद्यमान हैं।” विवेचना कीजिए।

भारतीय संविधान में संघात्मक और एकात्मक दोनों प्रकार के संविधानों के लक्षण पाये जाते हैं। भारत का संविधान एकात्मकता की ओर झुकता हुआ संघात्मक संविधान है। एक विद्वान्केशब्दों में, “भारतीय संविधान की प्रकृति संघीय है, किन्तु आत्मा एकात्मक।” संघात्मक विशेषताएँ भारतीय संविधान में संघात्मक संविधान की निम्नलिखित विशेषताएँ पायी जाती हैं – (1) लिखित तथा स्पष्ट –भारतीय संविधान एक लिखित संविधान है जिसमें सरल तथा स्पष्ट अर्थों वाली शब्दावली का प्रयोग किया गया है। इसे संविधान सभा ने तैयार किया था। (2) सर्वोच्च तथा कठोर –भारतीय संविधान को देश के सर्वोच्च कानून की स्थिति प्राप्त है। कोई भी सरकार इसका उल्लंघन नहीं कर सकती। यह कठोर इसलिए है, क्योंकि इसमें संशोधन की प्रक्रिया को बहुत जटिल रखा गया है। राज्यों के अधिकार-क्षेत्र के सम्बन्ध में तो अकेले केन्द्रीय संसद कोई संशोधन कर ही नहीं सकती। (3) शक्तियों का विभाजन –भारतीय संविधान के अन्तर्गत केन्द्र और राज्यों के बीच शक्तियों का स्पष्ट विभाजन किया गया है तथा सभी विषयों को तीन सूचियों में बाँट दिया गया है- ⦁संघ सुंची ⦁राज्य सूची तथा ⦁समवर्ती सूची। संघ सूची पर केन्द्रीय सरकार को तथा राज्य सूची पर राज्यों की सरकारों को कानून बनाने का अधिकार प्राप्त है। समवर्ती सूची पर केन्द्र तथा राज्यों की सरकारें कानून बना सकती हैं, किन्तु सर्वोच्चता केन्द्रीय सरकार को प्राप्त है। अवशिष्ट विषय केन्द्रीय सरकार के अधीन हैं। संघ, राज्य और समवर्ती सूची के विषयों की संख्या क्रमशः 97, 66 तथा 47 है। (4) स्वतन्त्र न्यायपालिका –भारतीय संविधान में एक स्वतन्त्र तथा शक्तिशाली न्यायपालिका की व्यवस्था की गयी है। देश का सर्वोच्च न्यायालय केन्द्रीय तथा प्रान्तीय सरकारों के न...

Recent questions from topic संघवाद

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भारतीय संघवाद की भावना

भारत की संघीय प्रकृति की बात बार-बार की जाती रही है और यह सत्तारूढ़ पार्टी तथा विपक्ष के बीच टकराव का विषय रही है। ऐसे मौके आए हैं, जब विपक्षी पार्टियों ने केंद्र पर राजनीतिक और आर्थिक तरीकों से संघीय भावना का उल्लंघन करने का आरोप लगाया और ऐसा भी हुआ है कि केंद्र ने राज्य सरकारों पर संघवाद का पालन नहीं करने का आरोप लगाया। एक मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री से फोन पर बात करने से इनकार कर दिया, दूसरे मुख्यमंत्री ने केंद्रीय जांच एजेंसी को अपने राज्य में काम करने देने से रोक दिया, केंद्र ने अनुच्छेद 356 का इस्तेमाल किया (या उसे लागू करने की धमकी दी) - ये सभी पिछले कुछ साल में संघवाद के मसले पर केंद्र और राज्यों के बीच विवाद छिड़ने के उदाहरण हैं। इसमें कोई शक नहीं कि हरेक राजनीतिक दल और राजनेता संघवाद की भावना की कसम खाता है और ‘प्रतिस्पर्द्धी संघवाद’ तथा ‘सहकारी संघवाद’ जैसे जुमले प्रचलन में हैं। भारत के संविधान में संघीय भावना की बात कही गई है, जिसे हर कोई सीने से लगाए रहता है, लेकिन क्या वास्तव में यह संघीय प्रकृति का है? क्या भारत ‘राज्यों का संघ’ है? इसका उत्तर है, नहीं। भारत मजबूत केंद्र वाला संगठित राष्ट्र है, जिसमें राज्यों को कुछ अधिकार दिए गए हैं। भारत के संविधान में ‘यूनियन’ (संगठन) शब्द को प्रमुखता दी गई है, ‘फेडरेशन’ (संघ) को नहीं। संविधान के प्रथम भाग का शीर्षक ‘द यूनियन एंड इट्स टेरिटरी’ (संघ एवं उसका राज्यक्षेत्र) है और उसका अनुच्छेद 1 कहता है, “इंडिया, दैट इज भारत, शैल बी अ यूनियन ऑफ स्टेट्स” यानी “इंडिया अर्थात् भारत राज्यों का संघ होगा।” अनुच्छेद (1) में राज्यों के संगठन को “संघीय संगठन” बताए जाने से संगठन की अहमियत कम नहीं हो जाती। संविधान के 11वें भाग में ‘यूनिय...

वैश्वीकरण का अर्थ कारण प्रभाव

वैश्वीकरण का अर्थ कारण प्रभाव परिणाम व भारत | What Is Globalisation In Hindi : नयें दौर की एक अवधारणा जिनमें विभिन्न देशों सरकारों तथा बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के बीच की अंतःक्रिया हैं. देश व दुनियां के कोने कोने में बसे लोगों के खरीद और बेच कर सकते हैं. वैश्वीकरण का अर्थ क्या है वैश्वीकरण की परिभाषा भारत और वैश्वीकरण का प्रभाव इसके कारण के बारे में What Is Globalisation In Hindi में हम चर्चा करेगे. वैश्वीकरण का अर्थ कारण प्रभाव परिणाम व भारत | What Is Globalisation In Hindi वैश्वीकरण क्या है What Is Globalisation In Hindi बीसवी शताब्दी के अंतिम दशक में संचार क्रांति ने समूचे विश्व को एक वैश्विक गाँव में बदल दिया हैं. इस युग में वैश्वीकरण एक नई अवधारणा के रूप में सूत्रपात हुआ. दुसरे विश्व युद्ध के बाद विचारधारा के आधार पर विश्व दो भागों में बंट गया. एक और पूंजीवाद, निजीकरण और उदारवाद का समर्थन करने वाले देश थे. जबकि दूसरी तरफ साम्यवाद व समाजवादी विचारधारा वाले देश थे. प्रथम गुट का नेतृत्व संयुक्त राज्य अमेरिका कर रहा था. वहीं दुसरे गुट का नेतृत्व पूर्व सोवियत संघ कर रहा था. इन दोनों गुटों के मध्य पारस्परिक राजनीतिक और आर्थिक संबंध न के बराबर थे. संयुक्त राष्ट्र संघ के दोनों गुटों के सभी देश सदस्य थे. किन्तु सोवियत संघ, पूर्वी यूरोपीय संघ और उनके समर्थक देश विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष तथा व्यापार व टैरिफ सामान्य समझौता (GATT) जैसी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के सदस्य नहीं थे. Telegram Group इन साम्यवादी देशों में निरकुंश सत्ता और स्वामित्व वाली अर्थव्यवस्था प्रचलन में थी, जबकि पूंजीवादी गुट में निजी स्वामित्व और बाजारोन्मुखी अर्थ व्यवस्था विद्यमान थी. साम्यवादी व्यवस्था...

नेचर ऑफ़ इंडियन कंस्टीट्यूशन: फेडरल और यूनिटरी (भारतीय संविधान की प्रकृति: संघीय या एकात्मक)

Table of Contents • • • • • • • • • • • • • • • • • • संघवाद (फेडरलिज्म) संघवाद किसी देश के शासन (गवर्नेंस) के लिए एक जटिल सरकारी उपकरण (कॉम्प्लेक्स गवर्नमेंटल टूल) या मशीनरी है। जिसका उद्देश्य (ऐम) कार्य करने वाली विभिन्न शक्तियों के बीच संतुलन (बैलेंस) बनाना है जो केंद्र में शक्ति की एकाग्रता (कंसंट्रेशन) के पक्ष में काम करती हैं और वह जो इसे कई भागों में फैलाने (डिस्पर्सल) का आग्रह (अर्जिंग) कर रही है। एक संघीय (फेडरल) संविधान केंद्र और राज्य के बीच सरकारी कार्यों और उसकी शक्तियों के एक सीमांकन (डिमार्केशन) की परिकल्पना (एनवाइसेज) करता है जैसा कि संविधान द्वारा स्वीकृत (सैंक्शनड) है जो एक लिखित दस्तावेज है। निम्नलिखित दो आवश्यक परिणाम हैं: • सरकार के एक स्तर (लेवल) द्वारा सरकार के दूसरे स्तर को सौंपे गए क्षेत्र पर आक्रमण (इनवेशन) संविधान का उल्लंघन (ब्रीच) है। • यह भी कहा जाता है कि संविधान का कोई भी उल्लंघन एक न्यायोचित मुद्दा (जस्टिफिएबल इश्यू) है जिसे न्यायालयों द्वारा निर्धारित (डिटरमाइन्ड) किया जाता है क्योंकि अदालत द्वारा सौंपे गए क्षेत्र के भीतर सरकार के प्रत्येक स्तर पर कार्य करता है। भारतीय संविधान की संघीय विशेषताएं (फेडरल फीचर्स ऑफ इंडियन कंस्टीट्यूशन) भारतीय संविधान एक संघीय संविधान है और यह राजनीति (पॉलिटी) की प्रकृति से स्पष्ट रूप से दिखाई देता है जैसे नागरिकता (सिटिजनशिप), सार्वजनिक सेवाओं (पब्लिक सर्विसेज), न्यायिक प्रणाली (सिस्टम), आपातकालीन प्रावधानों (इमरजेंसी प्रोविजन) की जांच करके और जब सामान्य समय में संघ की शक्ति प्रबल होती है। 1. नागरिकता (सिटिजनशिप) कनाडा की तरह भारत ने भी एकल (सिंगल) नागरिकता की शुरुआत की है लेकिन राज्यों के लिए अलग नागरिकता नह...

भारतीय राजनीति में दबाव समूह के प्रभाव की विवेचना कीजिए

विषय सूची भारत में दबाव समूह भारत में दबाव समूहों का निर्माण स्वतन्त्रता प्राप्ति से पूर्व ही आरम्भ हो चुका था। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसकी स्थापना 1885 में हुई थी जिसका तब उद्देश्य राजनीतिक तथा सामाजिक क्षेत्र में ब्रिटिश सरकार से अधिकतम मविधाएं प्राप्त करना था। कोलकाता में 'इण्डिया लीग' नामक संस्थाकी स्थापना की गयी दो जिसका उद्देश्य ब्रिटिश सरकार में यह मांग करना था कि भारतीय लोक सेवा में भारतवासियों के लिए स्थानों की मख्या बढायो जाये तथा इस सेवा में प्रवेश के लिए निर्धारित आयु सीमा को बढ़ाया जाये। 1920 में गांधीजी ने राष्ट्रीय आन्दोलन को एक नयी दिशा दी। उन्होंने कृषक तथा श्रमिक वर्ग को सगठित कर कांग्रेस के आन्दोलन को जन आन्दोलन का रूप दिया। प्रथम विश्व युद्ध से पूर्व श्रमिक संगठनों का निर्माण हो चुका था। लवानिया तथा जैन के शब्दों में "1908 में मुम्बई में अमिक आन्दोलन तेज हुआ और एक वर्ष में सात ट्रेड यूनियनों की स्थापना हुई। 1920 में राष्ट्रीय स्तर पर एक ट्रेड यूनियन 'ऑल इण्डिया देड यूनियन कांपेस' संगठित हुई, जिसका अध्यक्ष कांग्रेस दल के तात्कालीन अध्यक्ष लाला लाजपत राय को बनाया गया। 19346 में राष्ट्रीय स्तर पर किसानों का एक संगठन 'ऑल इण्डिया किसान सभा' स्थापित हुई जिसे कांग्रेस का निर्देशन तथा समर्थन प्राप्त था। इस संस्था की ओर से जमीदारी उन्मूलन तथा भूमि के पुनर्वितरण की मांग की गयो।' स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत में दबाव गुटों की संख्या स्वाभाविक रूप से बढ़ी, जिसका कारण वयस्क मताधिकार, गजनीतिक समानता, सरकार के कार्यक्षेत्र में विस्तार तथा संविधानद्वारा भाषण, प्रेस तथा समुदाय बनाने की स्वतन्त्रता के अधिकारों का दिया जाना था। भारत के संविधान में सत्ता का स्रोत जनता को मा...