भारतीय संविधान का कौन सा हिस्सा मौलिक अधिकारों के बारे में बात करता है

  1. भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों के बारे में संपूर्ण जानकारी
  2. अनुच्छेद 21
  3. भारतीय संविधान का आर्टिकल 13
  4. अनुच्छेद 14
  5. भारतीय संविधान के किस भाग में मौलिक अधिकारों का उल्लेख किया गया है – Studywhiz
  6. NCERT Solutions for Class 9th: पाठ 2
  7. संविधान: मौलिक अधिकारों का मकसद व्यक्ति को स्वतंत्रता दिलाना है
  8. [Solved] भारतीय संविधान का कौन सा हिस्सा मौलिक अधिकार�
  9. मौलिक कर्तव्य
  10. Article 134A Explained in Hindi [अनुच्छेद 134A] PDF


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भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों के बारे में संपूर्ण जानकारी

नमस्कार दोस्तो भारतीय संविधान के अंतर्गत मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) एक महत्वपूर्ण भाग है ! इस भाग से लगभग सभी Exam में एक न एक Question आता ही है, तो आजहम आपको मौलिक अधिकारों के वारे में संपूर्ण जानकारी देंगे ! मौलिक अधिकारों की आवश्यक्ता – जिन संविधानों में मौलिक अधिकारों की व्यवस्था नही होती, वह बहुत जल्द ही तानाशाही का साधन बन जाता है। अतः यह राज्य शक्ति पर संविधानिक नियंत्रण के द्वारा व्यक्ति की मूलभूत स्वतंत्रताओं की सुरक्षा करता है। मौलिक अधिकारों का वर्णन संविधान के भाग-3 में अनुच्छेद 12 से 35 तक वर्णन किया गया है। भारतीय संविधान मेंमौलिक अधिकार अमेरिका के संविधान से लिए गये हैं । मौलिक अधिकार वे मूलभूत अधिकार हैं जो किसी व्यक्ति के जीवनयापन हेतु मौलिक एवं अनिवार्य होने के कारण संविधान के द्वारा नागरिकों को प्रदान किये जाते हैं ! • ये अधिकार व्यक्ति के मानसिक व भौतिक और नैतिक विकास के लिए आवश्यक है । • विधि के शासन की स्थापना करना, संविधान में मोैलिक अधिकारों को शामिल करने का एक उद्देश्य है। • अनुच्छेद 13 के अनुसार – मौलिक अधिकार न्यायलय द्वारा प्रवर्तनीय है तथा इनका उल्लंघन करने वाले किसी भी कानून को न्यायालय शून्य घोषित कर सकता है। • मूल संविधान में 7 मौलिक अधिकार दिये गये थे लेकिन 1978 में 44वे संविधान संशोधन द्वारा अनुच्छेद31 में वर्णित सम्पत्ति के अधिकार को समाप्त करके उसे अनुच्छेद 300 क के तहत कानूनी अधिकार घोषित किया गया है । वर्तमान में 6मौलिक अधिकारहैं ! Fundamental Rights in Hindi 1.समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14 से 18 तक) – • अनुच्छेद 14 के अनुसार सभी व्यक्तियों को राज्य के द्वारा कानून के समक्ष समानता और कानून का समान संरक्षण प्राप्त होगा । • अनुच्...

अनुच्छेद 21

विवरण किसी व्यक्ति को उसके प्राण या दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जाएगा, अन्यथा नहीं। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 (प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण) अनुच्‍छेद 21 के अंतर्गत स्वास्थ्य एवं स्वास्थ्य की सावधानी का अधिकार वैसा ही है, जैसे जीवन का अधिकार होता है। यह अनुच्छेद भारत के प्रत्येक नागरिक के जीवन जीने और उसकी निजी स्वतंत्रता को सुनिश्चित करता है, यदि कोई अन्य व्यक्ति या कोई संस्था किसी व्यक्ति के इस अधिकार का उल्लंघन करने का प्रयास करता है, तो पीड़ित व्यक्ति को सीधे उच्चतम न्यायलय तक जाने का अधिकार होता है। अन्य शब्दों में किसी भी प्रकार का क्रूर, अमाननीय उत्‍पीड़न या अपमान जनक व्‍यवहार चाहे वह किसी भी प्रकार की जॉंच के दौरान पूछे जाने वाले प्रश्‍न से या किसी अन्‍य स्‍थान पर हो, तो यह इस अनुच्‍छेद 21 का अतिक्रमण करता है, जो कि भारतीय संविधान के अनुसार वर्जित है। यह एक मूल अधिकार है, इसमें कहा गया है, कि किसी व्‍यक्ति को उसके जीवन और निजता की स्‍वतंत्रता से बंछित किये जाने संबंधी कार्यवाही उचित ऋजु एवं युक्तियुक्‍त होनी चाहिए। य‍ह सब अनुच्‍छेद 21 के अंतर्गत आता है। निजता के अधिकार की अवधारणा को आसानी से नहीं समझा जा सकता है। निजता प्राकृतिक अधिकारों के सिद्धांत का उपयोग करती है और आम तौर पर नई सूचना और संचार प्रौद्योगिकियों का जवाब देती है। निजता का अधिकार हमारे चारों ओर एक डोमेन रखने का हमारा अधिकार है, जिसमें ये सभी चीजें शामिल हैं जो हमारा हिस्सा हैं, जैसे कि हमारा शरीर, घर, संपत्ति, विचार, भावनाएं, रहस्य और पहचान, निजता का अधिकार हमें क्षमता देता है यह चुनने के लिए कि इस डोमेन में कौन से हिस्से दूसरों द्वारा एक्सेस क...

भारतीय संविधान का आर्टिकल 13

Image Source- https://rb.gy/ug02gk यह लेख इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय के विवेकानंद इंस्टीट्यूट ऑफ प्रोफेशनल स्टडीज से बीबीए एलएलबी कर रही Shubhangi Upmanya द्वारा लिखा गया है। उन्होंने मौलिक अधिकारों (फंडामेंटल राइट्स )और भारतीय संविधान के आर्टिकल 13 का वर्णन किया है। इस लेख का अनुवाद Arunima Shrivastava द्वारा किया गया है। Table of Contents • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • परिचय (इंट्रोडक्शन) ‘लोग कानून में विश्वास करते हैं’ और उस विश्वास को बनाए रखने के लिए मसौदा समिति (ड्राफ्टिंग कमिटी) ने भारतीय संविधान के भाग III में मौलिक अधिकारों की अवधारणा (कंसेप्ट) दी है। यह भारत के नागरिकों को स्वतंत्रता देता है और इसे स्टेट द्वारा उल्लंघन किए जाने से बचाता है। यह उनके मौलिक अधिकार का उल्लंघन होने पर उपाय भी प्रदान करता है। स्टेट में लोगों के विश्वास को बनाए रखने के लिए, आर्टिकल 12 और 13 पेश किए गए। आर्टिकल 12 स्टेट की परिभाषा देता है और लोगों और उनके मौलिक अधिकारों के प्रति स्टेट की जिम्मेदारी के बारे में बताता है जबकि भारतीय संविधान का आर्टिकल 13 जो खुद को चार भागों में प्रस्तुत करता है, मौलिक अधिकारों की अवधारणा को और ज्यादा शक्तिशाली बनाता है और इसे असली प्रभाव देता है। यह आर्टिकल किसी भी कानून को शून्य बनाकर व्यक्ति के मौलिक अधिकारों की रक्षा करता है यदि यह स्वतंत्रता में हस्तक्षेप (इंटरवेन) करता है या व्यक्ति के मौलिक अधिकार के साथ किसी भी तरह से असंगत (इन्कन्सीस्टेन्ट) है। मौलिक अधिकारों की उत्पत्ति और विकास भारतीय संविधान की मुख्य विशेषताएं अन्य संविधानों से पहचानने योग्य और अद्वितीय (यूनिक) हैं, भले ही इसने दुनिया के अन्य संविधानों की कुछ व...

अनुच्छेद 14

विवरण राज्य, भारत के राज्यक्षेत्र में किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता से या विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 14 ( विधि के समक्ष समता का अधिकार) समानता का अधिकार भारत के संविधान में निहित मौलिक अधिकारों में से एक है। यह समझना बहुत महत्वपूर्ण है कि यह अधिकार क्या है और इसमें क्या शामिल है। मौलिक अधिकारों की गारंटी भारत के सभी नागरिकों के बुनियादी मानवाधिकारों की रक्षा के लिए दी जाती है और कुछ सीमाओं के अधीन अदालतों द्वारा इन्हें लागू किया जाता है। ऐसे ही मौलिक अधिकारों में से एक है समानता का अधिकार। समानता का अधिकार कानून की नजर में समानता को संदर्भित करता है, जाति के आधार पर किसी भी अनुचितता को त्यागना, जाति, धर्म, जन्म स्थान और लिंग एवं इसमें रोजगार के मामलों में संभावनाओं की समानता, अस्पृश्यता का उन्मूलन और उपाधियों का उन्मूलन भी शामिल है। हमारे देश के नागरिकों की समानता और जाति, लिंग, धर्म, जन्म स्थान अनुच्छेद 14 से 18 तक परिभाषित किया गया है । हमारा भारतीय संविधान उदार है और प्रत्येक व्यक्ति को बोलने, काम करने, जीने का समान अधिकार देता है। भारतीय संविधान में छुआछूत को समाप्त कर दिया गया है और किसी भी रूप में इसका अभ्यास वर्जित है। छुआछूत से उत्पन्न होने वाली अक्षमताओं को लागू करना कानून के अनुसार दंडनीय अपराध होगा। समानता के प्रकार हैं: • प्राकृतिक • सामाजिक • सिविल • राजनीतिक • आर्थिक • कानूनी "समानता के अधिकार" के सामान्य सिद्धांत शब्द "समानता का अधिकार" को किसी स्पष्टीकरण की आवश्यकता नहीं है क्योंकि यह अपना अर्थ स्वयं बताता है और यह हमारा मौलिक अधिकार भी है, लेकिन कुछ छुपे हुए मुद्दे हैं जिन्हें समझाने की जरूरत है, जो हमारे भ...

भारतीय संविधान के किस भाग में मौलिक अधिकारों का उल्लेख किया गया है – Studywhiz

यदि किसी नागरिक के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है, तो वह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 के अंतर्गत सीधा_ के पास जा सकता है। – भारत के उच्चतम न्यायालय उत्प्रेषण, निषेध तथा बंदी प्रत्यक्षीकरण में से कौन-सा/से अध्यादेश किसी निजी व्यक्ति के विरुद्ध जारी किया/किए जा सकता/सकते है/हैं ? — बंदी प्रत्यक्षीकरण भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में ‘जीवन का अधिकार’ के पानी का अधिकार भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद के अंतर्गत, किसी नागरिक के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है, तो वह उच्च न्यायालय जा सकता है ? – अनुच्छेद 226 के भारतीय संविधान के किस भाग में मौलिक अधिकार वर्णित है? — भाग III में किस मौलिक अधिकार के तहत कानून के नजर में सभी लोग समान है? — समानता का अधिकार नागरिक कौन-से मौलिक अधिकार का सहारा लेकर अदालत जा सकता है, जब उसे लगता है कि राज्य द्वारा उसके किसी मौलिक अधिकार का उल्लंघन किया जा रहा है? — संवैधानिक उपचार का अधिकार भारतीय संविधान के किस खंड को आमतौर पर उसकी ‘अंतरात्मा’ भी कहा जाता है? — मौलिक अधिकार भारतीय संविधान का भाग IV A के बारे में उल्लेख करता है? – मूल कर्तव्य मौलिक अधिकार भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद में कहा गया है, कि भारत के किसी भी नागरिक के साथ धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाएगा? – अनुच्छेद 15 जीवन का संरक्षण तथा व्यक्तिगत स्वतंत्रता भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद में दिया गया है? – अनुच्छेद 21 भारतीय संविधान में उल्लिखित मौलिक कर्तव्य किसके लिए है ? — सभी नागरिकों के लिए भारतीय संविधान में मौलिक अधिकार किस देश के संविधान से लिए गए हैं? — अमेरिकी संविधान से ‘अधिकार-पृच्छा’ शब्द का शाब्दिक अर्थ क्या है? — किस अधिकार से भ...

NCERT Solutions for Class 9th: पाठ 2

(क) मोतीलाल नेहरू 1. संविधान सभा के अध्यक्ष (ख) बी० आर० अंबेडकर 2. संविधान सभा की सदस्या (ग) राजेंद्र प्रसाद 3. प्रारूप कमेटी के अध्यक्ष (घ) सरोजिनी नायडू 4. 1928 में भारत का संविधान बनाया उत्तर (क) मोतीलाल नेहरू 1. संविधान सभा के अध्यक्ष4. 1928 में भारत का संविधान बनाया (ख) बी० आर० अंबेडकर 3. प्रारूप कमेटी के अध्यक्ष (ग) राजेंद्र प्रसाद 1. संविधान सभा के अध्यक्ष (घ) सरोजिनी नायडू 2. संविधान सभा की सदस्या 6. हमारे संविधान को दिशा देने वाले ये कुछ मूल्य और उनके अर्थ हैं। इन्हें आपस में मिलाकर दोबारा लिखिए। (क) संप्रभु 1. सरकार किसी धर्म के निर्देशों के अनुसार काम नहीं करेगी। (ख) गणतंत्र 2. फैसले लेने का सर्वोच्च अधिकार लोगों के पास है। (ग) बंधुत्व 3. शासन प्रमुख एक चुना हुआ व्यक्ति है। (घ) धर्मनिरपेक्ष 4. लोगों को आपस में परिवार की तरह रहना चाहिए। 7. कुछ दिन पहले नेपाल से आपके एक मित्र ने वहाँ की राजनैतिक स्थिति के बारे में आपको पत्र लिखा था। वहाँ अनेक राजनैतिक पार्टियाँ राजा के शासन का विरोध कर रही थीं। उनमें से कुछ का कहना था कि राजा द्वारा दिए गए मौजूदा संविधान में ही संशोधन करके चुने हुए प्रतिनिधियों को ज़्यादा अधिकार दिए जा सकते हैं। अन्य पार्टियाँ नया गणतांत्रिक संविधान बनाने के लिए नई संविधान सभा गठित करने की माँग कर रही थीं। इस विषय में अपनी राय बताते हुए अपने मित्र को पत्र लिखें। 8. भारत के लोकतंत्र के स्वरूप में विकास के प्रमुख कारणों के बारे में कुछ अलग-अलग विचार इस प्रकारहैं। आप इनमें से हर कथन को भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए कितना महत्त्वपूर्ण कारण मानते हैं? क. अंग्रेज़ शासकों ने भारत को उपहार के रूप में लोकतांत्रिक व्यवस्था दी। हमने ब्रिटिश हुकूमत के ...

संविधान: मौलिक अधिकारों का मकसद व्यक्ति को स्वतंत्रता दिलाना है

Indian Constitution: स्वतंत्रता का दिन आने से पहले ही भारत के संविधान का निर्माण का काम शुरू हो गया था. 16 मई 1946 को कैबिनेट मिशन के माध्यम से जो योजना स्वीकार की गई, उसमें मौलिक अधिकारों, अल्पसंख्यक समुदायों की सुरक्षा, कबाइली और पृथक क्षेत्रों की प्रशासन व्यवस्था, संघ व्यवस्था, प्रांतीय व्यवस्था का खाका बनाने के लिए एक परामर्श समिति बनाने की बात कही गई थी दो विश्व युद्धों और उपनिवेशवाद की बेहद अपमानजनक कड़वे अनुभवों के गुजरने के बाद 1940 का दशक आते-आते तक पूरी दुनिया में मानव के मूलभूत अधिकारों की स्थापना के लिए सघन वातावरण बन गया था. एक तरफ तो अमेरिका-ब्रिटेन मिल कर अटलांटिक चार्टर जारी कर रहे थे, तो दूसरी तरफ संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना हो रही थी. इसी संघ के तहत मानव अधिकारों के वैश्विक घोषणा पत्र को स्वीकार किया जा रहा था. भारत के लिए मूलभूत अधिकारों के मायने बहुत व्यापक इसलिए भी थे क्योंकि स्वतंत्रता के आंदोलन के दौरान ही भारत में यह बहस बहुत परिपक्व रूप ले चुकी थी कि केवल ब्रिटिश शासन ख़त्म हो जाने से भारत आज़ाद नहीं होगा. इसकी पूर्ण आज़ादी जातिवादी-लैंगिक भेदभावकारी और जमींदारी-राजशाही चरित्र से मुक्ति के बाद ही संभव होगी. अतः ब्रिटिश शासन से मुक्त होने के बाद हमें भीतरी आज़ादी के लिए हमें अपना संघर्ष जारी रखना होगा. इसी सोच को आधार बना कर भारतीय संविधान में मूलभूत अधिकारों और नीति निदेशक तत्वों के प्रावधान किये गए. चूंकि भारत के अपने भीतरी विरोधाभास और चुनौतियां (जातिवाद, छुआछूत, जमींदारी, असमानता) बहुत गहरे थे, अतः भारत के नागरिकों के मूलभूत अधिकारों की स्थापना के लिए राज्य की भूमिका को बहुत महत्वपूर्ण माना गया. समाज से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती थी कि वह बेगारी,...

[Solved] भारतीय संविधान का कौन सा हिस्सा मौलिक अधिकार�

इसका सही उत्तर " भाग III"है। प्रमुख बिंदु • भारत के संविधान के भाग iii (संविधान 12 - 32) में निहित मौलिक अधिकार नागरिक स्वतंत्रता की गारंटी देते हैं, जैसा कि सभी भारतीय भारत के नागरिक के रूप में शांति और सद्भाव में अपने जीवन का नेतृत्व कर सकते हैं। • इन अधिकारों को 'अबेसेडेरियन'के रूप में जाना जाता है क्योंकि वे सभी दौर के विकास के लिए सबसे आवश्यक हैं, जैसे भौतिक, बौद्धिक, नैतिक और आध्यात्मिक और देश के अबेसेडरियन कानून द्वारा बचाव किया जाता है। संविधान • इनमें कानून से पहले समानता, बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, संघ और शांतिपूर्ण सभा की स्वतंत्रता, धर्म का अभ्यास करने की स्वतंत्रता, और बंदी प्रत्यक्षीकरण के समान रिट के माध्यम से नागरिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए स्वदेशी उपायों के अधिकार जैसे व्यक्तिगत अधिकार शामिल हैं। • इन अधिकारों के उल्लंघन का प्रभाव भारतीय दंड संहिता में निर्दिष्ट सुधार पर पड़ता है, जो बार के विवेकाधीन है। अतिरिक्त जानकारी • मौलिक अधिकारों को प्रारंभिक मानव स्वतंत्रता के रूप में परिभाषित किया गया है जिसे प्रत्येक भारतीय नागरिक को व्यक्तित्व के उचित और सामंजस्यपूर्ण विकास के लिए आनंद लेने का अधिकार है। • ये अधिकार सभी नागरिकों पर व्यापक रूप से लागू होते हैं, चाहे वे किसी भी जाति, जन्म स्थान, धर्म, संपत्ति या संपत्ति के हों। • वे कुछ प्रतिबंधों के अधीन न्यायालयों द्वारा प्रवर्तनीय हैं। • अधिकारों की उत्पत्ति कई स्रोतों में हुई है, जिसमें इंग्लैंड का अधिकार विधेयक, संयुक्त राज्य अमेरिका का अधिकार विधेयक और फ्रांस का मनुष्य के अधिकारों का विरोध शामिल है। • मौलिक अधिकार हैं: • समतुल्यता का अधिकार ( संरचना14-18) • स्वतंत्रता का अधिकार ( संरचना19-22) • शो...

मौलिक कर्तव्य

टैग्स: • • प्रिलिम्स के लिये: मौलिक कर्तव्य, स्वर्ण सिंह समिति मेन्स के लिये: मौलिक कर्तव्यों का महत्त्व, स्वर्ण सिंह समिति, मौलिक कर्तव्यों को लागू करना। चर्चा में क्यों? हाल ही में भारत के मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि संविधान में मौलिक कर्तव्य केवल "पांडित्य या तकनीकी" उद्देश्य की पूर्ति के लिये नहीं हैं, बल्कि उन्हें सामाजिक परिवर्तन की कुंजी के रूप में शामिल किया गया है। मौलिक कर्तव्यों का प्रावधान: • मौलिक कर्तव्यों का विचार रूस के संविधान (तत्कालीन सोवियत संघ) से प्रेरित है। • इन्हें 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिशों पर संविधान के भाग IV-A में शामिल किया गया था। • मूल रूप से मौलिक कर्त्तव्यों की संख्या 10 थी, बाद में 86वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 के माध्यम से एक और कर्तव्य जोड़ा गया था। • सभी ग्यारह कर्तव्य संविधान के अनुच्छेद 51-ए (भाग- IV-ए) में सूचीबद्ध हैं। • राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों की तरह, मौलिक कर्तव्य भी प्रकृति में गैर-न्यायिक हैं। म ौलिक कर्त्तव्यों की सूची: • संविधान का पालन करें और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज एवं राष्ट्रीय गान का आदर करें। • स्वतंत्रता के लिये राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोये रखें और उनका पालन करें। • भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करें तथा उसे अक्षुण्ण रखें। • देश की रक्षा करें और आह्वान किये जाने पर राष्ट्र की सेवा करें। • भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भातृत्व की भावना का निर्माण करें जो धर्म, भाषा व प्रदेश या वर्ग आधारित सभी प्रकार के भेदभाव से परे हो, ऐसी प्रथाओं का त्याग करें जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध हैं। • हमारी...

Article 134A Explained in Hindi [अनुच्छेद 134A] PDF

यह लेख अनुच्छेद 134A (Article 134A) का यथारूप संकलन है। आप इसका हिन्दी और इंग्लिश दोनों अनुवाद पढ़ सकते हैं। आप इसे अच्छी तरह से समझ सके इसीलिए इसकी व्याख्या भी नीचे दी गई है आप उसे जरूर पढ़ें। पाठकों से अपील 🙏 Bell आइकॉन पर क्लिक करके हमारे नोटिफ़िकेशन सर्विस को Allow कर दें ताकि आपको हरेक नए लेख की सूचना आसानी से प्राप्त हो जाए। साथ ही नीचे दिए गए हमारे सोशल मीडिया हैंडल से जुड़ जाएँ और नवीनतम विचार-विमर्श का हिस्सा बनें; ⬇️⬇️⬇️ • Join Facebook Group • Subscribe YouTube • Join Telegram Channel 📜 अनुच्छेद 134A (Article 134A) – Original केंद्रीय न्यायपालिका 1[ 134क. उच्चतम न्यायालय में अपील के लिए प्रमाणपत्र — प्रत्येक उच्च न्यायालय, जो अनुच्छेद 132 के खंड (1) या अनुच्छेद 133 के खंड (1) या अनुच्छेद 134 के खंड (1) में निर्दिष्ट निर्णय, डिक्री, अंतिम आदेश या दंडादेश �