Bharat ki jalvayu ko prabhavit karne wale karak

  1. जलवायु क्या है. जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक
  2. पर्यावरण
  3. मांग की लोच क्या है? मांग की लोच का महत्व, प्रभावित करने वाले तत्व
  4. भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक
  5. ग्लाइसेमिक लोड (GL): उपयोग और प्रभाव
  6. राजस्थान की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक कौन से हैं? » Rajasthan Ki Jalvayu Ko Prabhavit Karne Waale Kaarak Kaun Se Hain


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जलवायु क्या है. जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक

मैदानी इलाकों की तुलना में पहाड़ अधिक ठंडे होते हैं, शिमला अधिक ऊंचाई पर स्थित होने के कारण जालंधर की तुलना में ठंडा है हालांकि दोनों शहर एक ही अक्षांश पर स्थित हैं. ऊंचाई बढ़ने के साथ तापमान घटता जाता है. औसतन, प्रत्येक 165 मीटर ऊंचाई के लिए तापमान 1 डिग्री सेल्सियस कम हो जाता है. इस प्रकार ऊँचाई बढ़ने के साथ-साथ तापमान में निरन्तर कमी आती जाती है. जल बहुत देर में गर्म होता है और बहुत देर में ठंडा होता है. समुद्र तट के निकटवर्ती स्थानों की जलवायु सम होती है समुद्र के इस समकारी प्रभाव के कारण तट के समीप के स्थानों का तापमान परिसर कम तथा आर्द्रता अधिक होती है. महाद्वीपों के आन्तरिक भाग समुद्र के इस समकारी प्रभाव से वंचित रहते हैं. उदाहरण के लिए, मुंबई और नागपुर दोनों शहर लगभग एक ही अक्षांश पर स्थित हैं लेकिन समुद्र के प्रभाव के कारण मुंबई में नागपुर की तुलना में कम तापमान और अधिक वर्षा होती है. समुद्र से आने वाली हवाएँ (तटीय हवाएँ) नमी युक्त होती हैं और उनके मार्ग में पड़ने वाले क्षेत्रों में बारिश का कारण बनती हैं. महाद्वीपों के भीतरी भाग से समुद्र की ओर आने वाली पवनें (अपतटीय पवनें) शुष्क होती हैं और वे वाष्पीकरण में सहायता करती हैं. भारत में ग्रीष्मकालीन मानसूनी हवाएँ समुद्र से आती हैं इसलिए वे देश के अधिकांश क्षेत्रों में बारिश करते हैं. इसके विपरीत सर्दियों की मानसूनी हवाएँ आम तौर पर शुष्क होती हैं क्योंकि वे भूमि से आती हैं. मेघ विहीन मरुस्थलीय क्षेत्रों में दिन के समय वायु के अत्यधिक गर्म होने के कारण छाया में भी उच्च तापमान पाया जाता है, रात में यह गर्मी सतह से जल्दी खत्म हो जाती है. अतः मरुस्थल में दैनिक तापान्तर अधिक होता है, इसके विपरीत आसमान में बादल छाए होने और...

पर्यावरण

vishay soochi • 1 paryavaran ke prakar • 2 paryavaran ki gatishilata • 3 paryavaran ke karak • 4 bhautik sanghatak • 5 paryavaran sammelan • 6 tika tippani aur sandarbh • 7 bahari k diyaan • 8 sanbandhit lekh paryavaran ( hindi shabd paryavaran ka ‘pari’ tatha ‘avaran’ shabdoan ka yugm hai. ‘pari’ ka arth haian - ‘charoan taraph’ tatha ‘avaran’ ka arth haian - ‘ghera’ arthath prakriti mean jo bhi charoan or parilakshit hai yatha- vayu, sabhi bhoogolavidoan ka sandarbh vishay mukhy roop se manushy ka paryavaran raha hai. aisa isalie hai kyoanki manushy ka any jiv-jantuoan tatha padap jivan se alag astitv kisi bhi paristhit mean sambhav nahian hai. park ne un dashaoan ke yog ko paryavaran mana hai, jo nishchit samay mean nishchat sthan par manushy ko avrit karati haian. harsakovits un sabhi bahari dashaoan aur prabhavoan ke yog ko paryavaran manate haian jo prani ke jivan aur vikas ko prabhavit karate haian. paryavaran ki samata prakriti se ki gayi haian. prakriti mean paye jane vale nirjiv bhautik ghatakoan - vayu, jal, mrida adi tatha jaivik ghatakoan - pe d-paudhe, jiv-jantu, sookshm jivanu adi ke adhar par paryavaran ko mukhyatah bhautik evan jaivik paryavaran mean vibhajit kiya gaya hai. e. gauji ne apani pustak ‘The Nature of Invoirment’ mean paryavaran ke prakar bhautik ghatakoan ki tin avasthaoan thos, drav tatha gais ke adhar par bhautik paryavaran ki tin shreniyaan hai • sthalamandaliy paryavaran • jalamandaliy paryavaran • vayumandaliy paryavaran isi prakar jaivik...

मांग की लोच क्या है? मांग की लोच का महत्व, प्रभावित करने वाले तत्व

मांग की लोच क्या है? (maang ki loch kise kahte hai) maang ki loch ka arth paribhasha mahatva prabhavit karane vale tatva;मांग के नियम के अनुसार जब वस्तु के मूल्य मे वृद्धि होती है तो वस्तु की मांग कम हो जाती है और इसी प्रकार से जब वस्तु के मूल्य मे कमी आती है तो मांग मे वृद्धि हो जाती है। इस तरह से यह नियम मूल्य मे परिवर्तन होने के परिणामस्वरूप मांग के परिवर्तन की दिशा ही दर्शाता है, लेकिन यह नही दर्शाता है कि मांग की मात्रा मे कितना परिवर्तन होता है। मांग की मात्रा मे परिवर्तन जानने के लिए अर्थशास्त्रियों ने मांग की लोच का तकनीकी विचार प्रस्तुत किया है। मांग की लोच का मतलब वस्तु के मूल्य, उपभोक्ताओं की आय, सम्बन्धित वस्तु का मूल्य एवं विज्ञापन खर्च मे परिवर्तन के फलस्वरूप मांग मे होने वाले परिवर्तन की मात्रा की माप से सम्बंधित है। यह मांग की मात्रा वस्तु की मात्रा वस्तु के मूल्य उपभोक्ताओं की आय, या सम्बन्धित वस्तुएं का मूल्य, या विज्ञापन खर्च के मध्य परिमाणात्मक संबंध को व्यक्त करता है। मांग की लोच को परिभाषित करते हुये प्रो. मार्शल ने कहा है कि- " बाजार मे मांग की लोच इस तथ्य के अनुसार अधिक या कम होती है कि मूल्य मे निश्चित कमी होने के कारण मांग की मात्रा मे अधिक या कम वृद्धि हो अथवा मूल्य मे निश्चित वृद्धि होने पर मांग की मात्रा मे अधिक या कम गिरावट हो। श्रीमति जाॅन के अनुसार," मांग की लोच, मूल्य मे थोड़े से परिवर्तन के फलस्वरूप क्रय की गई मात्रा के अनुपातिक परिवर्तन मे मूल्य के अनुपातिक परिवर्तन से भाग देने पर प्राप्त होती है। प्रो. बोल्डिंग ने मांग की लोच को इस प्रकार से परिभाषित किया है," किसी वस्तु के मूल्य मे निश्चित प्रतिशत परिवर्तन होने पर उस वस्तु की मांग मे जो...

भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक

Table of Contents • • • • • • • • • • • • • • भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक इस प्रकार हैं – 1. स्थिति एवं अक्षांशीय विस्तार (Position and Latitudinal Extent) • भारत विषुवत् वृत्त के पास होने के कारण दक्षिणी भागों में वर्ष भर उच्च तापमान पाये जाते हैं। दूसरी ओर उत्तरी भाग गर्म शीतोष्ण पेटी में स्थित है। 2. समुद्र से दूरी (Distance From The Sea) • प्रायद्वीपीय भारत अरब सागर, हिन्द महासागर तथा बंगाल की खाड़ी से घिरा हुआ है। अतः भारत के तटीय प्रदेशों की जलवायु सम या अनुसमुद्री है। इसके विपरीत जो प्रदेश देश के आंतरिक भागों में स्थित हैं, वे समुद्री प्रभाव से अछूते हैं। फलस्वरूप उन प्रदेशों की जलवायु अति विषम या महाद्वीपीय है। 3. उत्तर पर्वतीय श्रेणियाँ (Northern Mountain Ranges) • हिमालय व उसके साथ की श्रेणियाँ जो उत्तर-पश्चिम में कश्मीर से लेकर उत्तर-पूर्व में अरुणाचल प्रदेश तक फैली हुई हैं, भारत को शेष एशिया से अलग करती हैं। • ये श्रेणियाँ शीतकाल में मध्य एशिया से आने वाली अत्यधिक ठन्डी व शुष्क पवनों से भारत की रक्षा करती हैं। • साथ ही वर्षादायिनी दक्षिण पश्चिमी मानसून पवनों के सामने एक प्रभावी अवरोध बनती हैं, ताकि वे भारत की उत्तरी सीमाओं को पार न कर सकें। इस प्रकार, ये श्रेणियाँ भारतीय उपमहाद्वीप तथा मध्य एशिया के बीच एक जलवायु विभाजक का कार्य करती हैं। 4. स्थलाकृति (Topography) • देश के विभिन्न भागों में स्थलाकृतिक लक्षण वहां के तापमान, वायुमण्डलीय दाब, पवनों की दिशा तथा वर्षा की मात्रा को प्रभावित करते हैं। 5. मानसून पवनें (Monsoon Winds) • भारत में पवनों की दिशा के पूर्णतया उलटने से, ऋतुओं में अचानक परिवर्तन हो जाता ह...

ग्लाइसेमिक लोड (GL): उपयोग और प्रभाव

Contents • 1 ग्लाइसेमिक लोड क्या है? Glycemic Load Kya Hai? • 2 ग्लाइसेमिक इंडेक्स (जीआई) और ग्लाइसेमिक लोड (जीएल) – Glycemic Index (GI) Aur Glycemic Load (GL) • 2.1 ग्लाइसेमिक इंडेक्स और ग्लाइसेमिक लोड में अंतर • 3 ग्लाइसेमिक लोड जीएल की गणना – Glycemic Load Ki Calculation • 4 ग्लाइसेमिक लोड का उपयोग – Glycemic Load Ka Upyog? • 4.1 चिकित्सा स्थिति और ग्लाइसेमिक लोड • 4.2 ग्लाइसेमिक लोड और मेटाबॉलिज्म • 5 ग्लाइसेमिक लोड को प्रभावित करने वाले कारक – Glycemic Load Ko Prabhavit Karne WaLe Karak • 6 ग्लाइसेमिक लोड और अच्छा आहार – Glycemic Load Aur Good Diet • 6.1 कम ग्लाइसेमिक लोड वाले आहार • 6.2 ज़्यादा ग्लाइसेमिक लोड वाले खाद्य पदार्थों से परहेज़ • 7 मंत्रा केयर – Mantra Care ग्लाइसेमिक लोड क्या है? Glycemic Load Kya Hai? ग्लाइसेमिक लोड भोजन की संख्या या मूल्य है, जो बताता है कि भोजन और उसकी मात्रा खाने के बाद किसी व्यक्ति का सिडनी विश्वविद्यालय के अनुसार, खाद्य पदार्थों को निम्न, मध्यम या उच्च ग्लाइसेमिक लोड वाले खाद्य पदार्थों में बांटा गया है, जो 0 से 20 और उससे ज़्यादा स्तर पर स्थित हैं। यह श्रेणियां इस प्रकार हैं: • कम ग्लाइसेमिक लोड (कम जीएल): 0 से 10 • मध्यम ग्लाइसेमिक लोड (मेड जीएल): 11 से 19 • उच्च ग्लाइसेमिक लोड (उच्च जीएल): 20 और ज़्यादा। ग्लाइसेमिक इंडेक्स (जीआई) और ग्लाइसेमिक लोड (जीएल) – Glycemic Index (GI) Aur Glycemic Load (GL) आमतौर पर खाद्य स्रोतों से बढ़ने वाली ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाले खाद्य पदार्थों को उनके अवशोषित होने और शरीर में रक्त शर्करा का स्तर बढ़ाने की क्षमता पर आधारित मूल्य है। इसी वजह से अक्सर इसकी निंदा की जाती है और इससे निपटाने के लिए ही ग्ला...

राजस्थान की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक कौन से हैं? » Rajasthan Ki Jalvayu Ko Prabhavit Karne Waale Kaarak Kaun Se Hain

चेतावनी: इस टेक्स्ट में गलतियाँ हो सकती हैं। सॉफ्टवेर के द्वारा ऑडियो को टेक्स्ट में बदला गया है। ऑडियो सुन्ना चाहिये। राजस्थान के राजस्थान की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक निर्णय देते कि समुद्र की ऊंचाई दूरी पर्वत दिशा पर्वतों की दिशा पवनों की दिशा मिट्टी का प्रकार व वनस्पति की मात्रा आदि और देखा जाए तो कर्क रेखा पर क्षेत्रफल में सबसे बड़ा राज्य राजस्थान rajasthan ke rajasthan ki jalvayu ko prabhavit karne waale kaarak nirnay dete ki samudra ki unchai doori parvat disha parwaton ki disha pavnon ki disha mitti ka prakar va vanaspati ki matra aadi aur dekha jaaye toh kark rekha par kshetrafal me sabse bada rajya rajasthan राजस्थान के राजस्थान की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक निर्णय देते कि समुद्र की ऊंचाई द