भक्ति आचार्यों द्वारा कितने आसक्तियों का वर्णन किया गया है?

  1. निर्गुण प्रेममार्गी (सूफ़ी ) काव्यधारा
  2. हिंदी साहित्य का इतिहास नोट्स
  3. भक्ति आंदोलन का भारत में इतिहास क्या है? व इसके उदय के कारण
  4. भक्ति सम्प्रदाय MCQ [Free PDF]
  5. तुलसीदास की भक्ति भावना
  6. भक्तिकाल हिन्दी साहित्य का स्वर्ण युग । Complete information of the Bhaktikal । भक्तिकाल की सम्पूर्ण जानकरी । Bhaktikal ki Jankari ।
  7. भक्ति आंदोलन का क्या अर्थ है? भक्ति आंदोलन कि प्रमुख विशेषताएँ@2021 - Achiverce Information


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निर्गुण प्रेममार्गी (सूफ़ी ) काव्यधारा

इस इकाई के अंतर्गत आप निर्गुण काव्यधारा की प्रेमाश्रयी (सूफी) शाखा का अध्ययन करेंगे। इस इकाई को पढ़ने के बाद आपः • सूफी काव्य की पृष्ठभूमि की जानकारी प्राप्त कर सकेंगे; • सूफी मत और सिद्धांत के विधायक तत्वों को पहचान कर उसके स्वरूप को समझ सकेंगे; • सूफी प्रेमाख्यान के स्वरूप, मूल प्रेरणा, काव्य-परंपरा का अध्ययन करने के पश्चात आप सूफी काव्य के मूल तत्वों से परिचित हो सकेंगे; • सूफी काव्य की प्रवृत्तियों और उनके वैशिष्ट्य को बता सकेंगे; • सूफी रहस्यवाद के स्वरूप एवं प्रदेय का विवेचन कर सकेंगे; • सूफी काव्य के वस्तु एवं शिल्प पक्ष की विशेषताओं का परिचय प्राप्त कर सकेंगे; • सूफी काव्यधारा के महत्व का प्रतिपादन कर सकेंगे। इस इकाई के अंतर्गत आप निर्गुण-भक्ति की दूसरी धारा-प्रेममार्गी धारा के विषय में पढ़ेंगे। सूफी काव्यधारा ने अपने उदार मानवीय दर्शन के माध्यम से सिद्ध कर दिया कि “एक ही गुप्त तार मनुष्य मात्र के हृदयों से होता हुआ गया है जिसे छूते ही मनुष्य सारे बाहरी रूपरंग के भेदों की ओर से ध्यान हटा एकात्व का अनुभव करने लगता है।” (रामचंद्र शुक्ल) सूफी कविता का न केवल अंतर्व्यापी-सूत्र वरन् उसकी परंपरा भी इस कथन की पुष्टि करती है। भावुक मुसलमानों द्वारा प्रवर्तित प्रम की पीर’ की यह काव्य-परंपरा अपनी विकास-प्रक्रिया के दौरान हर उदार मानवीय एवं कवि हृदय को अपने में समाती चली गई, बिना संप्रदाय, मत या दर्शन की परवाह किए मानवीय आवेगों ने संकीर्णताओं को बहा दिया और मानवतावादी दृष्टि की स्थापना की। हर स्तर पर व्याप्त बाह्याचार एवं कर्मकांडों की दुनिया में यही उदार दृष्टि इस काव्यधारा का महत्वपूर्ण प्रदेय है जो इसके कालजयी होने का प्रमुख कारण भी है। आप पढ़ोगे • 1 सूफ़ी शब्द का अर्थ • 2...

हिंदी साहित्य का इतिहास नोट्स

दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम Hindi Sahitya Ka Itihas टॉपिक का एक विस्तृत अध्ययन करेंगे , आज के इस लेख में हम हिंदी साहित्य का इतिहास , हिन्दी साहित्य का नामकरण , हिंदी साहित्य का काल विभाजन , आदिकाल , भक्ति काल , रीति काल , आधुनिक काल , हिंदी साहित्य के इतिहास लेखन की प्रमुख समस्याएं , हिन्दी साहित्य के प्रमुख कवि,लेखक और उनकी रचनाएँ , आदि काल के प्रमुख कवि, लेखक और उनकी रचनाएँ , भक्तिकाल के प्रमुख कवि, लेखक और उनकी रचनाएँ , रीति काल के प्रमुख कवि, लेखक और उनकी रचनाएँ , आधुनिक काल के प्रमुख कवि, लेखक और उनकी रचनाएँ के बारे में पढ़ेंगे एवं अंत में हिंदी साहित्य का इतिहास Questions and Answers पर भी एक नजर डालेंगे 1.5 हिंदी साहित्य का इतिहास Questions and Answers | hindisahitya ka itihas Questions and Answers हिन्दी साहित्य का इतिहास विभिन्न लेखकों द्वारा वर्गीकृत किया गया जिनमें डॉ. नागेन्द्र ,आचार्य रामचंद्र शुक्ल,रामकुमार वर्मा एवं बाबू श्याम सुन्दर दास का नाम प्रमुखता से लिया जाता है | आचार्य रामचन्द्र शुक्ल द्वारा लिखित, हिन्दी साहित्य का इतिहास सर्वाधिक प्रामाणिक माना जाता हैं दोस्तों लेख़ के अंत में आप हिंदी साहित्य का इतिहास नोट्स PDF DOWNLOAD कर सकते हैं तो चलिए दोस्तों शुरू करते हैं हिंदी साहित्य का इतिहास हिंदी साहित्य का इतिहास लिखने की सर्वप्रथम कोशिश एक फ्रेंच विद्वान् ने की जिनका नाम गार्सा द तासी था ,इनके फ्रेंच भाषा में लिखे ‘ इसवार द ला सितरेत्युर रहुई ए हिन्दुस्तानी‘ नामक ग्रन्थ में हिंदी तथा उर्दु भाषा के कवियों का वर्णन है, परन्तु इस प्रयास में काल विभाजन एवं उनका नामकरण नहीं किया गया है ,काल विभाजन एवं नामकरण के बारे में प्रयास करने का श्रेय जॉर्ज ग्ति...

भक्ति आंदोलन का भारत में इतिहास क्या है? व इसके उदय के कारण

Facebook Twitter WhatsApp Email Messenger भक्ति आंदोलन ने भारत की जनता के नैतिक,सामाजिक, राजनैतिक दृष्टिकोण में क्रांतिकारी बदलाव उत्पन्न किया महत्वपूर्ण पूर्ण रुप से भक्ति आंदोलन ने विभिन्न धर्मों के बीच विद्वान समानता ओं को प्रदर्शित किया उन्हें यह ध्यान देना भी महत्वपूर्ण है कि इसने समाज की विभाजक और विध्वंसक तत्वों के विरुद्ध सार्थक भूमिका अदा की कर्म योग और ज्ञान योग के साथ-साथ भक्ति योग के द्वारा भक्ति आंदोलन ने अपने आप को ईश्वर प्राप्ति के ढंग और मार्ग के रूप में स्थापित किया । इस इकाई के उद्‌देश 1 छात्र को प्राचीन और मध्यकालीन भारत के भक्ति आंदोलन के बारे में ज्ञान प्राप्त कर आना 2 छात्र को आंदोलन के नेताओं के उद्देश्य और सेवाओं को समझने के योग्य बनाना Table of Contents • • • • • • • • • • • भक्ति आंदोलन की प्रस्तावना भक्ति पद संस्कृत के भज् धातु से निकला है। जिसका अर्थ होता है पूजा करना धर्म का अर्थ है वस्तु का प्राकृतिक गुण आंदोलन का अर्थ है वह व्यवहार जो समाज के एक बड़े भाग को प्रभावित करता है आरंभ में भक्ति शब्द का उल्लेख सबसे पहले ऋग्वेद में इंद्र और सूर्य देवताओं की पूजा के अर्थ में हुआ है नारद भक्ति सूत्र में नारद द्वारा भक्ति पर प्रसिद्ध विमर्श में भी भक्ति का वर्णन हुआ है इसी तरह विष्णु सूक्त में भी भक्ति की चर्चा हुई है | बाद में उपनिषदों ने परा भक्ति पर जोर दिया है विष्णु शिव रूद्र नारायण और सूर्य के भक्ति एवं उपासना का भी संकेत उपनिषदों में हुआ है रामायण महाभारत ने पितृ भक्ति और गुरु भक्ति पर बल दिया है | भक्ति आंदोलन के सिद्धांत भक्ति आंदोलन के प्रमुख सिद्धांत हैं :- 1. ईश्वर एक है 2. ईश्वर की पूजा के लिए मनुष्य को मानवता की सेवा करनी चाहिए 3. सभी मनुष...

भक्ति सम्प्रदाय MCQ [Free PDF]

1 - iv, 2 - v, 3 - ii, 4 - iii.. यहाँ सही युग्म है। • विशिष्टाद्वैतवाद के प्रवर्तक : रामानुजाचार्य • शुद्धाद्वैतवाद : वल्लभाचार्य • अद्वैतवाद : शंकराचार्य • द्वैताद्वैतवाद : निम्बार्काचार्य • मध्वाचार्य :- द्वैतवाद Important Points • 1. अद्वैतवाद- शंकराचार्य • 2. विशिष्टाद्वैतवाद- रामानुजाचार्य • 3. द्वैतवाद - माधवाचार्य • 4. द्वैताद्वैतवाद-आचार्य निम्बार्क • 5. शुद्धताद्वैतवाद -बल्लभाचार्य • 6. स्यादवाद- पाश्र्वनाथ • 7. संघातवाद/क्षणिकवाद-बुद्ध • 8. श्री सम्प्रदाय - रामानुज • 9. सनक सम्प्रदाय-निम्बार्क • 10. रूद्र सम्प्रदाय -विष्णु स्वामी • 11. ब्रम्ह सम्प्रदाय -माध्वाचार्य • 12. रामावत सम्प्रदाय-रामानंद Important Points • ये संप्रदाय इस प्रकार हैं :- • विष्णु संप्रदाय : • प्रवर्तक विष्णु गोस्वामी हैं। • रुद्र संप्रदाय भी कहा जाता है। • शुद्धाद्वैतवादी है । • निम्बार्क संप्रदाय : • प्रवर्तक निम्बक आचार्य हैं। • द्वैताद्वैतवादी है। • इस संप्रदाय में कृष्ण के वामांग में सुशोभित राधा के साथ कृष्ण की उपासना का विधान है । • माध्व-संप्रदाय : • प्रवर्तक माध्वाचार्य है • द्वैतवाद • श्री संप्रदाय: • रामानुजाचार्य हैं। • विशिष्टाद्वैत की स्थापना इनके द्वारा हुई । • रामानंदी संप्रदाय : • संस्थापक रामानंद हैं। • इन्होंने विशिष्टाद्वैतवाद को मान्यता दी । • वल्लभ संप्रदाय : • इसके प्रवर्तक वल्भाचार्य हैं। • इन्होंने शुद्ध अद्वैतवाद को मान्यता दी। • इन्होंने श्रीमद्भागवत की तत्त्वबोधिनी टीका लिखी। • वल्लभ संप्रदाय में कृष्ण के बाल रूप की उपासना मिलती है। • चैतन्य संप्रदाय : • इसके प्रवर्तक चैतन्य महाप्रभु हैं। • इसे गौड़ीया संप्रदाय भी कहा जाता है। • द्वैताद्वैतवाद में आस्था • इसमें ब्र...

तुलसीदास की भक्ति भावना

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(भक्तिकाल

भक्तिकाल (संवत 1375-1700) प्रकरण 1.(सामान्य परिचय) • देश में मुसलमानों का राज्य प्रतिष्ठित हो जाने पर हिंदू जनता के हृदय में गौरव, गर्व और उत्साह के लिए वह अवकाश न रह गया। • अपने पौरुष से हताश जाति के लिए भगवान की शक्ति और करुणा की ओर ध्यान ले जाने के अतिरिक्त दूसरा मार्ग ही क्या था? • धर्म का प्रभाव कर्म, ज्ञान और भक्ति इन तीनों धाराओं में चलता है। • कर्म और भक्ति ही सारे सारे जनसमुदाय की संपत्ति होती है। • हिंदी साहित्य के आदिकाल में कर्म तो अर्थशून्य विधिविधान, तीर्थाटन और पर्वस्नान इत्यादि के संकुचित घेरे में पहले बहुत कुछ बद्ध चला आता था। • धर्म की भावात्मक अनुभूति या भक्ति, जिसका सूत्रपात महाभारतकाल में और विस्तृत प्रवर्तन पुराणकाल में हुआ था, कभी कहीं दबती, कभी कहीं उभरती किसी प्रकार चली भर आ रही थी। • अर्थशून्य बाहरी विधिविधान, तीर्थाटन, पर्वस्नान आदि की निस्सारता का संस्कार फैलाने का जो कार्य वज्रयानी सिद्धों और नाथपंथियों जोगियों के द्वारा हुआ। • पर उनका उद्देश्य ‘कर्म’ को उस तंग गड्ढे से निकालकर प्रकृत धर्म के खुले क्षेत्र में लाना न था बल्कि एकबारगी किनारे ढकेल देना था। • जनता की दृष्टि को आत्मकल्याण और लोक कल्याण विधायक सच्चे कर्म की ओर ले जाने के बदले उसे वे कर्मक्षेत्र से ही हटाने में लग गए थे।( वज्रयानी सिद्ध तथा नाथपंथी योगियों के संदर्भ में 3,4 ) • गोरख जगायो जोग भक्ति भगायो लोग (तुलसीदास द्वारा रचित) • सारांश यह है कि जिस समय मुसलमान भारत में आए उस समय सच्चे धर्मभाव का बहुत कुछ ह्यस हो गया था।परिवर्तन के लिए बहुत बड़े धक्कों की आवश्यकता थी। • कालदर्शी भक्त कवि जनता के हृदय को संभालने और लीन रखने के लिए दबी हुई भक्ति को जगाने लगे। क्रमशः भक्ति का प्रवाह ऐ...

भक्तिकाल हिन्दी साहित्य का स्वर्ण युग । Complete information of the Bhaktikal । भक्तिकाल की सम्पूर्ण जानकरी । Bhaktikal ki Jankari ।

भक्तिकाल की सम्पूर्ण जानकरी Complete information of the B haktikal भक्तिकाल- एक परिचय B haktikal - an introduction हिन्दी साहित्य के इतिहास के वर्गीकरण में भक्तिकाल का द्वितीय स्थान है। भक्तिकाल का आरम्भ अधिकांश विद्वान सन् 1350 से मानते हैं, किन्तु आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी सन् 1375 से स्वीकारते हैं। इस काल को भक्ति का स्वर्ण युग कहा गया है क्योंकि इस काल में संत कबीर, जायसी, तुलसीदास, सूरदास इन समकालीन कवियों ने अपनी रचनाओं का निर्माण कर भक्ति को चरम पर पहुँचाया। उपासना भेद की दृष्टि से इस काल के साहित्य को दो भागों में बाँटा गया है। एक सगुण भक्ति और दूसरा निर्गुण भक्ति। निर्गुण के दो भेद किए गए है। संतो की निर्गुण उपासना अर्थात ज्ञानमार्गी शाखा तथा सूफियों की निर्गुण उपासना अर्थात प्रेममार्गी शाखा। सगुण में विष्णु के दो अवतार राम और कृष्ण की उपासना साहित्य सृजित है। इस पोस्ट में भक्तिकाल की सम्पूर्ण जानकारी (Bhaktikal ki jankari) प्रदान की जा रही है। Bhaktikal भक्तिकाल की परिस्थितियाँ- 1. राजनैतिक परिस्थितियाँ - हिन्दी साहित्य में भक्तिकाल तक उत्तरी भारत में मुस्लिम साम्राज्य की स्थापना हो चुकी थी। किन्तु इन दिनों मुगलों और अफगानों में परस्पर संघर्ष जारी हुआ । इस समय मुस्लिमों में हिन्दुओं से संबंध स्थापित कर अपना शासन दृढ करना शुरू किया। इस कालखण्ड में दिल्ली पर तुगलक वंश, लोधी वंश, बाबर, हुमायुं, अकबर, जहाँगीर और शाहजहाँ का शासन रहा है। मुगलवंश काल राजनीतिक दृष्टि से प्रायः यह काल अशान्त और संघर्षमय रहा था। इस काल में हिन्दुओं और मुसलिमों में द्वेष बढ गया था। जात-पात, छुआ-छूत, ऊँच-नीच की भावना अत्यधिक बढ गई थी। भक्तिकाल का साहित्य राजनीतिक वातावरण के प्रतिकूल है। कबीर...

भक्ति आंदोलन का क्या अर्थ है? भक्ति आंदोलन कि प्रमुख विशेषताएँ@2021 - Achiverce Information

1.10 5. भक्ति आंदोलन के आर्थिक प्रभाव भक्ति आंदोलन मध्युग काल का एक धार्मिक आंदोलन था। यह भारतीय समाज का मौन क्रांति था जो हिंदू, मुस्तामानो सिखों द्वारा भगवान की पूजा से जुड़ा था। भक्ति आंदोलन में सामाजिक-धार्मिक सुधारकों द्वारा समाज में अलग अलग तरह से भगवान की भक्ति का प्रचार प्रसार किया गया है। भक्ति आंदोलन के द्वारा ही सिख धर्म का उद्भव हुआ है। भक्ति आंदोलन के प्रमुख सिद्धांत (i) ईश्वर एक है और वह निराकार है। (ii) ईश्वर के प्रति निष्ठा रखने से ही मनुष्य को उसकी कृपा प्राप्त हो सकती हैं। मनुष्य को पुर्णरूप से अपने को ईश्वर के प्रति समर्पित कर देना चाहिए। (iii) बाहरी आडम्बरों में विश्वास नहीं करना चाहिए। (iv) अच्छे कर्म और पवित्र जीवन पर जोर देना चाहिए। (v) ईश्वर की प्राप्ति में गुरु सहायक होता है। (vi) सभी भाषायें पवित्र हैं। (vii) ईश्वर के प्रति श्रद्धा रखने में जाति की कोई आवश्यकता नहीं है। (viii) ईश्वर के प्रति निष्ठा रखने वाला ईश्वर भक्त बन जाता है। 1. एकेश्वरवाद — भक्ति आंदोलन के सभी संत एक ईश्वर में विश्वास करते थे। इन सुधारकों ने अबतारवाद और अनेक देवी-देवताओं के अस्तित्व को झूठा बताया। उन्होंने कहा कि ईश्वर एक है और वही सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापक है। 2. ईश्वर में असीम –इस आंदोलन के लोग ईश्वर में बहुत अधिक श्रद्धा रखते थे और भक्ति करने के लिए लोगों को उत्साहित करते थे। उनका कहना था कि भगवान का सदैव भजन करना चाहिए। उनका विचार था कि ईश्वर का नाम लेने से मुक्ति मिलती है। हमें सच्चे हृदय से उसकी पूजा करनी चाहिए। चैतन्य महाप्रभु के अनुसार भक्ति द्वारा ही ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है। गुरुनानक ने भी उसका नाम अपने पर जोर दिया 3. आत्मसमर्पण — इस काल के संत आत्मसमर्पण क...