बीती रात कमल दल फूले का अर्थ

  1. उठो लाल अब आँखें खोलो, कवि
  2. Happy Children's Day: 'बाल दिवस' पर पढ़ें बचपन से जुड़ी सुंदर रचनाएं
  3. manohar chamoli manu मनोहर चमोली मनु: उठो लाल अब आँखें खोलो
  4. बीती रात कमल दल फूले
  5. बचपन की कविता १
  6. उठो लाल अब आँखें खोलो


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उठो लाल अब आँखें खोलो, कवि

उठो लाल अब आँखें खोलो, पानी लायी हूँ मुंह धो लो। बीती रात कमल दल फूले, उसके ऊपर भँवरे झूले। चिड़िया चहक उठी पेड़ों पे, बहने लगी हवा अति सुंदर। नभ में प्यारी लाली छाई, धरती ने प्यारी छवि पाई। भोर हुई सूरज उग आया, जल में पड़ी सुनहरी छाया। नन्ही नन्ही किरणें आई, फूल खिले कलियाँ मुस्काई। इतना सुंदर समय मत खोओ, मेरे प्यारे अब मत सोओ। कवि - सोहनलाल द्विवेदी , Hindi Inspirational Poem Utho Lal Ab Aankhain Kholo Hindi Rhymes for Kids – Zappy Toons • • • • • • ज्यादा नींद आने की वजह, Jyada Nind Kyon Aati Hai, ज्यादा नींद आना के कारण, ज्यादा नींद आना, शरीर में सुस्ती, शरीर में थकावट • • • • • • • ज्यादा नींद आने की वजह, Jyada Nind Kyon Aati Hai, ज्यादा नींद आना के कारण, ज्यादा नींद आना, शरीर में सुस्ती, शरीर में थकावट • • • • • • • • • मोटिवेशनल कोट्स इन हिंदी फॉर लाइफ, Motivational Quotes in Hindi for Life, ब्यूटीफुल गुड मॉर्निंग कोट्स, लाइफ कोट्स, लेटेस्ट गुड मॉर्निंग कोट्स, Beautiful Morning Quotes • • • • अमिताभ बच्चन की जीवनी, अमिताभ बच्चन की बायोग्राफी, अमिताभ की फिल्में, अमिताभ की शादी, अमिताभ का राजनीतिक करियर, Amitabh Bachchan Ki Jivani • • • • • • • •

Happy Children's Day: 'बाल दिवस' पर पढ़ें बचपन से जुड़ी सुंदर रचनाएं

हिंदी साहित्य (Hindi Sahitya) में बाल साहित्य को विशेष महत्व दिया गया है. अच्छे साहित्य के माध्यम से ही हम बच्चों को अच्छी सीख, उन्हें अच्छे संस्कार और एक अच्छा इनसान बनने की प्ररेणा देते हैं. हमारे साहित्यकारों (bal Sahityakar) ने चंचल बचपन के दिनों को अलग-अलग शब्द दिए हैं. आज भी हम जब बचपन की कविताओं की बात करते हैं तो सबसे पहले ‘मैया, मैं तौ चंद-खिलौना लैहौं’, ‘चंदा मामा दूर के’, ‘उठे लाल अब आंखें खोलो’ समेत तमाम गीत-कविताओं होंठों पर थिरकने लगती हैं. बाल दिवस से अवसर पर हम भी अलग-अलग लेखकों के गीत और रचनाएं प्रस्तुत कर रहे हैं. मैया, मैं तौ चंद-खिलौना लैहौं मैया, मैं तौ चंद-खिलौना लैहौं। जैहौं लोटि धरनि पर अबहीं, तेरी गोद न ऐहौं॥ सुरभी कौ पय पान न करिहौं, बेनी सिर न गुहैहौं। ह्वै हौं पूत नंद बाबा को , तेरौ सुत न कहैहौं॥ आगैं आउ, बात सुनि मेरी, बलदेवहि न जनैहौं। हँसि समुझावति, कहति जसोमति, नई दुलहिया दैहौं तेरी सौ, मेरी सुनि मैया, अबहिं बियाहन जैहौं॥ सूरदास ह्वै कुटिल बराती, गीत सुमंगल गैहौं॥ – महाकवि सूरदास बाल साहित्य: क्षमा शर्मा की कहानी ‘बारिश के दिन में तोते’ उठो लाल अब आँखें खोलो उठो लाल अब आँखें खोलो, पानी लायी हूँ मुंह धो लो। बीती रात कमल दल फूले, उसके ऊपर भँवरे झूले। चिड़िया चहक उठी पेड़ों पे, बहने लगी हवा अति सुंदर। नभ में प्यारी लाली छाई, धरती ने प्यारी छवि पाई। भोर हुई सूरज उग आया, जल में पड़ी सुनहरी छाया। नन्ही नन्ही किरणें आई, फूल खिले कलियाँ मुस्काई। इतना सुंदर समय मत खोओ, मेरे प्यारे अब मत सोओ। – अयोध्या सिंह उपाध्या ‘हरिओध’ नोट- यह बाल गीत इंटरनेट की दुनिया में हिंदी के वरिष्ठ कवि सोहन लाल द्विवेदी के नाम से वायरल हो रहा है. मेरी ख़्वाहिश है कि फिर से ...

manohar chamoli manu मनोहर चमोली मनु: उठो लाल अब आँखें खोलो

मेरा इतना कहने भर से दोस्तों ने अपनी राय देनी शुरू कर दी। मक़सद भी यही था। मैं बार-बार यही कहता हूं कि असहमति से हमें बिदकना नहीं चाहिए। हमें यह भी जानना चाहिए कि आज जो रचना नई है कल पुरानी हो जाएगी। अधिक पुरानी इतिहास हो जाएंगी। कुछ ऐसी हो जाएंगी जिनके बारे में चर्चा न ही हो, वही बेहतर। सबसे पहले आपका आभार कि आपने कम से कम इस कविता पर ध्यान देने का मन तो बनाया। टिप्पणियां की। आप के विचार इस ओर एक पहल की तरह है। कई दोस्त तो दूर खड़े होकर जायज़ा लेते हैं। कुछ विचार शून्य हैं। वह चिन्तन ही नहीं करना चाहते। इस आलेख का मक़सद यही है कि हम हर पुरानी चीज़ को केवल गौरव, संस्कृति और जीवन से जोड़ कर नहीं देख सकते। मसलन सती प्रथा, बाल विवाह, विधवाओं के साथ हमारा व्यवहार, हमारी लोक मान्यताएं पुरानी मान्यताओं में रहा है। तो क्या हम उन्हें अपने गौरव से जोड़ सकते हैं? बहुपति विवाह जैसी मान्यताएं भी हमारे लोकजीवन का हिस्सा रही हैं। तो क्या हम आज अपनी बेटियों को ऐसे विवाह की ओर धकेलना चाहेंगे? हम वाक़िफ़ हैं कि बेहतर और गंभीर पाठक कौन होते हैं। अभिभावक, लेखक और अध्यापक कौन होते हैं? ज़ाहिर है मेरी तरह आप भी मानते ही होंगे कि इन सभी के लिए आवश्यक है कि वह नया सीखने और समझने के लिए तत्पर हों। वह जान चुकी और मान चुकी मान्यताओं, धारणाओं को अंतिम सत्य न मानें। वह हर बार खुद में अवलोकन करते रहने की क्षमता को ज़िन्दा रखते हों। वह निरंतर प्रयोग करते रहते हों। विश्लेषण करते हों। पुरानी मान्यताओं, समझ और धारणाओं की गठरी लिए न फिरते हों। बेहतर और गंभीर वही हैं जो नए ज्ञान और सृजन के निर्माण में पुरानी बातों, मान्यताओं और धारणाओं से खुद को अद्यतन करते रहें। हम सभी को इस ओर सोचना होगा कि क्या हम ऐसा करते हैं? इसे...

बीती रात कमल दल फूले

बीती रात कमल दल फूले, सुबह हुई उजियारा छाया, पेड़ों ने भी ली अंगड़ाई, बहने लगी सुरीली पुरवाई, चहंक उठीं चिड़ियाँ चारों ओर, मोर भी करने लगा नृत्य झूम-झूमकर, कल-कल बहने लगीं नदियाँ प्यारी, ॐ की ध्वनि का लगा स्वर गूँजने, मंदिरों में बजनेलगी घंटियाँ प्यारी, चहुँ ओर लोग लगे भागने-दौड़ने, हरी घास भी लगी इतराने, स्कूल का समय हो चला अब, उठो लाल! और नहीं स्वप्न की बारी अब, बीती रात कमल दल फूले........ मौलिक रचना नूतन गर्ग (दिल्ली)

बचपन की कविता १

उठो लाल अब आँखे खोलो, पानी लाई हूँ मुह धो लो | बीती रात कमल दल फूले, उनके ऊपर भँवरे झूले | चिड़िया चहक उठी पेड़ों पर, बहने लगी हवा अति सुन्दर | नभ में न्यारी लाली छाई, धरती ने प्यारी छवि पाई | भोर हुई सूरज उग आया, जल में पड़ी सुनहरी छाया | नन्ही नन्ही किरणें आईं, फूल खिले कलियाँ मुस्काईं | इतना सुन्दर समय ना खोओ, मेरे प्यारे अब मत सोओ | यह कविता हमारे फिल्म जगत के बहुत ही विशुद्ध एवं मंझे हुए कलाकार श्रीमान आशुतोष राणा जी द्वारा एक चैनल के साछात्कार के मध्य में सुनाया गया जो सभी भारतीयों के लिए अत्यंत प्रेरणा श्रोत है एवं वीर रस से ओत प्रोत है हे भारत के राम जगो, मैं तुम्हे जगाने आया हूँ, सौ धर्मों का धर्म एक, बलिदान बताने आया हूँ। सुनो हिमालय कैद हुआ है, दुश्मन की जंजीरों में आज बता दो कितना पानी, है भारत के वीरो में, खड़ी शत्रु की फौज द्वार पर, आज तुम्हे ललकार रही, सोये सिंह जगो भारत के, माता तुम्हे पुकार रही। रण की भेरी बज रही, उठो मोह निद्रा त्यागो, पहला शीष चढाने वाले, माँ के वीर पुत्र जागो। बलिदानों के वज्रदंड पर, देशभक्त की ध्वजा जगे, और रण के कंकण पहने है, वो राष्ट्रभक्त की भुजा जगे।। अग्नि पंथ के पंथी जागो, शीष हथेली पर धरकर, जागो रक्त के भक्त लाडले, जागो सिर के सौदागर, खप्पर वाली काली जागे, जागे दुर्गा बर्बंडा, और रक्त बीज का रक्त चाटने, वाली जागे चामुंडा। नर मुंडो की माला वाला, जगे कपाली कैलाशी, रण की चंडी घर घर नाचे, मौत कहे प्यासी प्यासी, रावण का वध स्वयं करूँगा, कहने वाला राम जगे अचानक बचपन में माँ द्वारा कही एक लोकोक्ति याद आई। यह लोकोक्ति बताती है की घर से निकलने से पहले क्या करें की आपका काम सफल हो जाये। रवि को पान, सोम को दर्पण (दर्पण देख कर निकलो ), मंगल की...

उठो लाल अब आँखें खोलो

उठो लाल अब आँखें खोलो उठो लाल अब आँखें खोलो, पानी लायी हूँ मुंह धो लो। बीती रात कमल दल फूले, उसके ऊपर भँवरे झूले। चिड़िया चहक उठी पेड़ों पे, बहने लगी हवा अति सुंदर। नभ में प्यारी लाली छाई, धरती ने प्यारी छवि पाई। भोर हुई सूरज उग आया, जल में पड़ी सुनहरी छाया। नन्ही नन्ही किरणें आई, फूल खिले कलियाँ मुस्काई। इतना सुंदर समय मत खोओ, मेरे प्यारे अब मत सोओ। — अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध लिंक्स: • • • • • • इस कविता को सुनते ही पिता जी की याद आती है क्योकि पिता जी हमे सुबह जगाते थे तब यह सुनाते हुए जगाते अब इस कविता को सुनते ही आँखे नम हो जाती हैं। क्योकि अब इस कविता को सुनाने वाला भगवान हमारे साथ नही है। लोग कहते है कि जब चोट लगती है तो मुह से माँ का नाम निकलता है लकिन हमारे मुह से बाप का नाम निकलता था ।