बिश्नोई समाज की गोत्र

  1. बिश्नोई समाज का इतिहास, बिश्नोई शब्द की उत्पति कैसे हुई?
  2. गोत्र
  3. जाट समाज गोत्र लिस्ट : जाट गोत्र की पूरी जानकारी – Guidense
  4. बिश्नोई
  5. बिश्नोई जाट
  6. बिश्नोई धाम


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Bishnoism

आपको पता हो के बिश्नोई समाजकी स्थापना मात्र 500 वर्ष पूर्व ही हुई है। इससे पूर्व बिश्नोई समाज को अपनाने वाले लोग जाट, राजपूत व अन्य जाति/सम्प्रदायों से संबंध रखते थे। अगर सांड प्रथा बिश्नोई समाज में रही है तो निश्चित ही यह प्रथा बिश्नोई समाज के अस्तित्व में आने से पूर्व जाटों व राजपूतों में अवश्य रही होगी। अन्यथा ऐसे क्या कारण रहे होंगे जिससे कुछ लोगों की धार्मिक आस्था बदलने के साथ अचानक सांस्कृतिक परिवेश में सांड प्रथा जैसी कुप्रथा कैसे पनप सकती है। गोकि मध्य सदी में मुस्लिम आक्रांताओं का बोलबाला था हिंदू धर्म के लोगों को जबरन मुस्लिम बनाया जा रहा था। वही मध्य सदी मैं ही मरुधरा के महान संत गुरु जांभोजीने बिश्नोई पंथकी नींव रखी। बिश्नोई पंथ को अपनाने वाले लोग विद्रोही प्रवृत्ति के थे जिन पर मुस्लिम आक्रांता का कोई प्रभाव नहीं रहा। चुंकि उस वक्त मन और तन से सुदृढ़ लोग ही बिश्नोई समाज को अपनाने का सामर्थ्य जुटा पाए थे। तो जाहिर सी बात है बिश्नोई जेनेटिक सुदृढ़ता के चलते शारीरिक व मानसिक रूप से मजबूत होने के कारण दूसरे लोग ईर्ष्यावस एनकेन प्रकारेण बिश्नोईयों को नीचा के उद्देश्य से नित नई कहानियां गढ़ने लगे। इन कुटिल कहानियों में से एक है सांड प्रथा! जो बिना सर पैर की कोरी मिथक अफवाह मात्र है। विभिन्न धर्म समुदाय के लोगों के आस पास सैकड़ों वर्षो से बिश्नोई समाज के लोग रह रहे हैं क्या वो खुलेआम ऐसा कह सकते हैं कि फलां पड़ोसी के घर में यह प्रथा रही है। वहीं कुछ लालची लोगों ने भी आर्थिक लालच आकर पश्चिमी राजस्थान में आने वाले ट्रैवलर ब्लॉगर/लेखक आदि से इस मिथक प्रथा को साझा किया। कॉन्ट्रोवर्सी क्रिएट कर चर्चा में आने के लिए ब्लॉगरों व लेखकों ने इसे तूल दिया जबकि इस प्रथा पर लिखने ...

बिश्नोई समाज का इतिहास, बिश्नोई शब्द की उत्पति कैसे हुई?

Jankaritoday.com अब Google News पर। अपनेे जाति के ताजा अपडेट के लिए Last Updated on 26/12/2021 by बिश्नोई या विश्नोई (Bishnoi or Vishnoi) पश्चिमी थार रेगिस्तान और भारत के उत्तर-पश्चिमी राज्यों में पाया जाने वाला एक हिंदू समुदाय है. यह राजस्थान के मूल निवासी हैं. पर्यावरण के प्रति अपने प्रेम के कारण यह समुदाय पर्यावरण रक्षकों के रूप में जाना जाता है. बिश्नोई स्वभाव से मेहनती, निडर, साहसी और बहादुर होते हैं. यह शाकाहारी होते हैं. अधिकांश बिश्नोई जीवन यापन के लिए कृषि और पशुपालन करते हैं. भारत में इनकी कुल जनसंख्या 10 लाख के करीब है.यह मुख्य रूप से राजस्थान में पाए जाते हैं. हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब और गुजरात में भी इनकी आबादी है. यह हिंदू धर्म का पालन करते हैं. बिश्नोई वैष्णव संप्रदाय के एक उप-संप्रदाय हैं. खेजड़ी के हरे वृक्षों की रक्षा करने के लिए अमृता देवी बिश्नोई के नेतृत्व में 363 बिश्नोईयों ने अपने प्राण न्यौछावर कर दिये थे। बिश्नोई विशुद्ध शाकाहारी होते हैं।आइए जानते हैैं बिश्नोई समाज का इतिहास, बिश्नोई शब्द की उत्पति कैसे हुई? बिश्नोई जाति की उत्पत्ति कैसे हुई? बिश्नोई शब्द की उत्पत्ति “बिस+नोई” से हुई है. स्थानीय भाषा में “बिस” का अर्थ होता है-“20”, और “नोई” का अर्थ होता है-“9”. गुरु जम्भेश्वर ने अपने अनुयायियों को 29 उपदेश दिए दिए थे, जिसका समुदाय पालन करता है. इसी कारण इस समुदाय का नाम “बिश्नोई” पड़ा. स्थानीय बोली में एक कहावत प्रचलित है,” उनतीस धर्म की अखाड़ी, हृदय धरियो जोय, जम्भेजी कृपा कर, नाम बिश्नोई होय” जो लोग गुरु जम्भेश्वर के 29 सिद्धांतों का हृदय से पालन करेंगे, गुरु जंभोजी उन्हें आशीर्वाद देंगे और वह बिश्नोई होंगे. ऐसी मान्यता है कि श्...

गोत्र

नेपाली तथा भारतीय सिंधु घाटी सभ्यता ( ई.पू.) विश्वको प्राचीन सिंधु- घाटी नदी सभ्यताहरू मध्येको एक प्रमुख सभ्यता थियो। यो हडप्पा सभ्यता र सिंधु-सरस्वती सभ्यताका नामले पनि जानिन्छ, गोत्र पनि प्राचीन ऋषिमुनीहरूकै नाममा आधारित देखिन्छन्। गोत्र उनीहरूको कुल छुट्याउने एउटा भरपर्दो आधार हो। एकै जनाबाट जन्मिएको ठानिने हुनाले एउटै गोत्र भएका मानिसहरूको बिच बिहावारी चल्दैन। नेपालमा जातका मानिसहरू बाहेक अरूले आफ्नो गोत्रको परवाह गरेको पाइँदैन। गोत्र शब्दले एक प्राचिन पुरुषको अविरल वंश परम्परालाई जनाउँछ, जुन माथिबाट तल तिर क्रमशः अटुट रूपमा बढ्दै जान्छ । अर्थात एक पुरूषको गोत्रको परिभाषाबारे भेटिएका केही तथ्यहरू "नेपाली थर गोत्र प्रवर कोष" नामक पूस्तकका लेखक श्रीहरी रुपाखेतीले गोत्र के हो भन्ने विषयमा यस्तो लेखेका छन् । उहिलेदेखि अहिलेसम्म विश्वामित्रो जमदग्निर्भारद्धाजाऽथ गौतमः , अत्रिर्वशिष्ठः कस्यप इत्येते सप्तर्षयाः ।, सप्तानामृषिणामगत्याष्टमानां यदपत्यं तदगोत्रम् । अर्थात - प्रवरमञ्जरीकार वौद्यायन सन्ततिर्गोत्रजननकलान्यभिजनान्वयौ । वंशोऽन्ववायः सन्तानः । अर्थात सन्तती, गोत्र, जनन, कुल, अभिजन, अन्वय, वंश र अन्ववाय एवं सन्तान यी सबै शब्दको अर्थ सन्तान हो । -अमर कोष २ ।७। १ गोत्रको सम्वन्धमा विभिन्न नेपाली ग्रन्थहरूले पनि प्रसस्त व्याख्य गरेका छन् । ति मध्य केही ग्रन्थहरूले गोत्रको परिभाषा यसरी गरेको देखिन्छ । • वंशविस्तार गर्ने महर्षिहरू गौतम, विश्वामित्र, जमदग्नि, भारद्धाज, अत्री, वशिष्ठ र कस्यप यी सप्तर्षिका साथै अगस्त्य ऋषिका जति सन्तान छन् तिनलाई गोत्र भनिन्छ । • -संस्कृत नेपाली शब्दकोष • वंश प्रवर्तक ऋषिमुनिका नामबाट चलि आएको पुर्ख्यौली चिनाउने उपनाम गोत्र हो । • -वृहत नेपाली ...

जाट समाज गोत्र लिस्ट : जाट गोत्र की पूरी जानकारी – Guidense

दोस्तों, बात करें जाटो के बारे में तो अन्य समाजो की आबादी की तुलना अगर जाट समाज की आबादी से करें तो यह करना सही नहीं होगा क्योंकि भारत में अगर सबसे बड़ा समाज है तो वो है जाट समाज। जाट समाज के गोत्र और जाटो के कुछ रोचक तथ्य- जाट समाज जाट या जाट पारंपरिक रूप से उत्तरी भारत और पाकिस्तान में किसानों का एक जाति समुदाय है। प्राचीन काल से ही युद्ध कला में निपुण जाट मुख्य रूप से खेती और पशुपालन के व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। जाटों को अच्छा योद्धा माना जाता था और इसीलिए भारतीय सेना में जाट रेजीमेंट नाम की एक रेजीमेंट है। जाट मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू और कश्मीर आदि राज्यों में फैले हुए हैं। गुजरात में उन्हें में अंजना जाट (अंजना चौधरी) के नाम से जाना जाता है और पंजाब में जट (जट्ट सिख) कहलाते हैं और हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा क्षेत्र में इस समुदाय को घिराथ जाट या घृत चौधरी (घीरथ चौधरी) के नाम से जाना जाता है। आम तौर पर जाट हिंदू, सिख, मुस्लिम आदि सभी धर्मों में देखे जा सकते हैं। मुस्लिम, सिख जाट और बिश्नोई जाट हिंदू जाटों से परिवर्तित हुए थे। जाट समाज का इतिहास सिंध की निचली सिंधु नदी-घाटी में एक चरवाहा था और जाट मध्यकाल में उत्तर में पंजाब क्षेत्र में और बाद में 17 वीं और 18 वीं शताब्दी में दिल्ली क्षेत्र, उत्तरपूर्वी राजपुताना और पश्चिमी गंगा के मैदानों में चले गए। ये लोग जो इस्लाम, सिख और हिंदू धर्म का पालन करते हैं, अब पाकिस्तान के सिंध और पंजाब प्रांतों और भारतीय राज्यों पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में रहते हैं। “जाट” उन लोगों के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक लचीला नाम है, जि...

बिश्नोई

बिश्नोई भारत का एक हिन्दू सम्प्रदाय है जो जिसके अनुयायी राजस्थान आदि प्रदेशों में पाये जाते हैं। श्रीगुरु जम्भेश्वर जी पंवार को बिश्नोई पंथ का संस्थापक माना जाता है। 'बिश्नोई' दो शब्दों से मिलकर बना हुआ है: बीस + नो अर्थात उनतीस (२९); अर्थात जो का पालन करता है। 29 नियमो को कुछ हद तक सरलता में समझाने की कोशिश इस प्रकार है बिश्नोई के घर में जब किसी बच्चे का जन्म होता हैं तो तीस दिन के बाद उसको सँस्कार ओर 120 शब्दो से हवन करके तथा पाहल पिला कर बिश्नोई बनाया जाता हैं 1तीस दिन सूतक, महिला जब पांच दिन पीरियड के समय हो तो रसोईघर में नही जाती पूजा पाठ नही करती 2पांच दिन ऋतुवती न्यारो, सुबह अम्रत वेला यानी कि सूर्य के उदय होने से पहले स्नान करना 3सेरा करो स्नान, प्रतिदिन प्रात:काल स्नान करना। शीलता का पालन करना हमेशा शील गुण रखना किसी के प्रति वैर भाव नही रखना4. 11 संबंधों: ठाडिया एक छोटा सा गाँव है जो राजस्थान के जोधपुर जिले के बालेसर तहसील तथा देचू कस्बे में स्थित है। यह गाँव पोस्ट ऑफिस से युक्त है तथा इसका पिनकोड ३४२३१४ है। गाँव में कई सरकारी तथा कई निजी विद्यालय भी है। यहां पर कई छोटे गाँव भी है।गाँव में बाबा रामदेव का मन्दिर भी है,इनके अलावा मां सती दादी का भी मन्दिर है। बाबा रामदेव के मन्दिर को यहाँ के पनपालिया परिवार ने बनवाया है। गाँव में एक छोटा बाजार तथा उचित मूल्य की दुकान भी है। यहां पर अनेक जातियां निवास करती है जिनमें - सुथार, राजपूत, बिश्नोई, भील, जोगी, मेहतर, बनिया, मेघवाल आदि शामिल है। गाँव की जनसंख्या २०११ की जनगणना के अनुसार लगभग १०४९ हैं। . नई!!: बिश्नोई भारत का एक हिन्दू सम्प्रदाय है जो जिसके अनुयायी राजस्थान आदि प्रदेशों में पाये जाते हैं। श्रीगुरु जम्भेश्वर ज...

बिश्नोई जाट

बिश्नोई भारत का एक हिन्दू सम्प्रदाय है जो जिसके अनुयायी राजस्थान आदि प्रदेशों में पाये जाते हैं। श्रीगुरु जम्भेश्वर जी पंवार को बिश्नोई पंथ का संस्थापक माना जाता है। बिश्नोई दो शब्दों से मिलकर बना हुआ है: बीस + नो अर्थात [(29)] ; अर्थात जो उनतीस नियमों का पालन करता है। 29 नियमो को कुछ हद तक सरलता में समझाने की कोशिश इस प्रकार है बिश्नोई के घर में जब किसी बच्चे का जन्म होता हैं तो तीस दिन के बाद उसको सँस्कार ओर 120 शब्दो से हवन करके तथा पाहल पिला कर बिश्नोई बनाया जाता हैं 1तीस दिन सूतक, महिला जब पांच दिन पीरियड के समय हो तो रसोईघर में नही जाती पूजा पाठ नही करती 2पांच दिन ऋतुवती न्यारो , सुबह अम्रत वेला यानी कि सूर्य के उदय होने से पहले स्नान करना 3सेरा करो स्नान, प्रतिदिन प्रात:काल स्नान करना। शीलता का पालन करना हमेशा शील गुण रखना किसी के प्रति वैर भाव नही रखना4. शील का पालन करना। सतोषि नर सदा सुखी मन में हमेशा सतोष रखना 5. संतोष का धारण करना। 6. बाहरी एवं आन्तरिक शुद्धता एवं पवित्रता को बनाये रखना। सुबह ,दोपहर ओर शाम के समय विष्णु भगवान् की पूजा जप करना7. तीन समय संध्या उपासना करना। सुबह और शाम दोनों समय सन्ध्या की वेला हो तो हरि गुण गाना8. संध्या के समय आरती करना एवं ईश्वर के गुणों के बारे में चिंतन करना। 9. निष्ठा एवं प्रेमपूर्वक हवन करना। 10. पानी, ईंधन व दूध को छान-बीन कर प्रयोग में लेना। हमेशा शुद्ध और मीठी वाणी बोलना कभी अप्रिय भाषा का प्रयोग नही करना 11. वाणी का संयम करना। 12. दया एवं क्षमा को धारण करना। 13. चोरी नही करना 14.किसी की निंदा नही करना 15. झूठ तथा 16. वाद – विवाद का त्याग करना। 17. अमावश्या के दिनव्रत करना। 18. विष्णु का भजन करना। 19. #जीवों के प्रति दया...

बिश्नोई धाम

Samrathal dhora dham is situated 3 KM south of Muktidham Mukam. Shri Guru Jambheshwar Bhagwan preached mostly his holy speeches at the Samrathal dhora. The origin of the Bishnoi sect at Samrathal Dhora by Shri Guruji on Kartik vadi 8,1542 VE (1485 AD). So it is a most religious place of the Bishnoi community. In Sabdvani Shri Guru Jambeshwar Ji says "Guru aasan samrathale " it means Guruji remains always at Samrathal. At Samrathal dhora Guruji came as cowboy from Pipasar. There is a Mandir at the Samrathal Dhora and one religious pond down below the dhora. Bishnoi pilgrimages carry the holy sand out of the pond by climbing the dhora height appx 200 mtr. यहबीकानेरजिल की नोखा तहसील में स्थित हैं। सम्भराथल मुकाम से दो कि.मी. दक्षिण में हैं तथा पीपासर सें लगभग 10-12 कि.मी. उत्तर में हैं। बिश्नोई पंथमें सम्भराथळ का अत्यधिक महत्त्व हैं। यह स्थान गरू जाम्भोजी का प्रमुख उपदेश स्थल रहा हैं। यहंा गुरू जाम्भोजी इक्कावन वर्ष तक मानव कल्याण हेतु लोगों को ज्ञान का उपदेश देते रहें हैं। विभिन्न स्थानों पर भ्रमण करने के बाद जाम्भोजी यहीं आकर निवास करते थे। यह उनका इक्कावन वर्ष तक स्थायी निवास रहा हैं। सम्वत 1542में इसी स्थान पर गुरूज जाम्भोजी ने अपनी अलौकिक शक्ति से अकाल पीडि़तों की सहायता की थी। सम्भराथळ पर ही गुरू जाम्भोजी ने सम्वत 1542का कार्तिक वदि अष्टमी को बिश्नोई पंथ की स्थापना की थी। मुकाम में लगने वाले मेलों के समय लोग प्रतः काल यहां पहुंचकर हवन करते हैं और पाहळ ग्रहण करते हैं। सम्भराथल को सोवन-नगरी ए थलाए थल एवं संभरि आदि नामों सें भी पुकारते है। इसका प्रचलित नाम धोक धोरा हैं। सम...