ब्रिटेन में विधि के शासन का अर्थ स्पष्ट कीजिए

  1. विधि के शासन का अर्थ
  2. ब्रिटिश संविधान और इसकी विशेषताएं
  3. समाजशास्त्र
  4. न्यायिक पुनरावलोकन का अर्थ, परिभाषा एवं महत्व
  5. संविधान के स्रोत
  6. ब्रिटिश प्रधानमन्त्री की शक्ति और कार्य
  7. ब्रिटेन में विधि का शासन
  8. Pratiyogita Today
  9. # ब्रिटिश संविधान की प्रमुख विशेषताएं/लक्षण
  10. ब्रिटिश संसद, शक्तियाँ, रचना और संप्रभुता


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विधि के शासन का अर्थ

परिचय समस्त आंग्ल सैक्सन देशों में विधि-व्यवस्था का प्रमुख सिद्धान्त विधि का शासन है, जबकि योरोप महाद्वीपीय देशों, जैसे-फ्रांस, जर्मनी आदि में ‘प्रशासकीय विधि’ का सिद्धान्त मान्य है। इंग्लैण्ड और अन्य राष्ट्रमण्डल के देशों में यह माना जाता है कि राज्य कर्मचारियों से जनता की स्वतंत्रता की रक्षा-विधि के शासन द्वारा ही हो सकती है। ब्रिटेन में विधि के शासन को विशेष महत्व दिया गया है। ‘विधि के शासन’ का अर्थ साधारणतया यह माना जाता है कि उस राज्य में शासन कानून के अनुसार चलता है, व्यक्ति की इच्छानुसार नहीं। किसी भी व्यक्ति को किसी दूसरे व्यक्ति की इच्छानुसार दण्डित नहीं किया जा सकता है। अन्य शब्दों में हम कह सकते हैं कि सभी व्यक्ति कानून के अधीन होते हैं तथा कानून के ऊपर कोई भी व्यक्ति नहीं होता है और कानून की दृष्टि में सभी व्यक्ति समान होते हैं। विधि के शासन का सरल अर्थ यह है कि राज्य में विधियों का शासन होता है, न कि किसी व्यक्ति की निरंकुश इच्छा का। विधि ही सर्वोच्च मानी जाती है तथा यह न्याय व्यवस्था की अत्यन्त महत्वपूर्ण विशेषता होती है। विभिन्न विद्वानों ने कानून के शासन को स्पष्ट किया है परन्तु उनमें डायसी का विवेचन अधिक स्पष्ट है। विधि के शासन का अर्थ ब्रिटेन की शासन-व्यवस्था की सर्वप्रमुख विशेषता विधि का शासन’ (Rule of Law) है। यह वहाँ के नागरिकों के अधिकार का ‘रक्षा कवच’ तथा ‘न्याय-व्यवस्था का प्राण’ है। विभिन्न विद्वानों ने विधि के शासन की विभिन्न व्याख्याएँ दी हैं। किसी ने उसे ‘शाश्वत् नैसर्गिक नियम तो किसी ने उसे केवल ‘राजाज्ञा’ कहा है। लार्ड हेवर्ट के अनुसार, “व्यक्तियों के अधिकारों के निर्णय में स्वेच्छाचारी या ऐसे ही किसी अन्य प्रकार के ढंग के स्थान पर विधि की सर्...

ब्रिटिश संविधान और इसकी विशेषताएं

ब्रिटिश संविधान और इसकी विशेषताएं | British Constitution and Its Features in Hindi. ब्रिटेन का वर्तमान संविधान वस्तुतः यूनाइट किंगडम आफ ग्रेट ब्रिटेन और उत्तरी आयरलैंड का संविधान है । यूनाइटेड किंगडम आफ ग्रेट ब्रिटेन और उत्तरी आयरलैण्ड 1921 में अस्तित्व में आया । इसके पूर्व 1535 में इंग्लैंड में वेल्स शामिल हुआ । 1707 में जब स्काटलैंड शामिल हुआ तो इंग्लैंड, वेल्स और स्काटलैंड को स्टेट ऑफ ग्रेट ब्रिटेन की संयुक्त संज्ञा दी गयी । 1921 में उत्तरी आयरलैंड के साथ समझौता हुआ और यूनाइटेड किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन और उत्तरी आयरलैंड के संयुक्त राज्य का उदय हुआ । वर्तमान संविधान इसी संयुक्त राज्य का संविधान है । लेकिन यह संविधान काफी प्राचीन है और विश्व का सबसे पुराना, पहला और परंपरागत संविधान है । ब्रिटिश संविधान की विशेषताएं (Features of British Constitution): ब्रिटिश संविधान को ”संविधानों की जननी” कहा जाता है क्योंकि सबसे पुराने इस संविधान ने बाद के सभी संविधानों के लिए मार्गदर्शक का काम किया । वेध राजतंत्र वादी ब्रिटेन में ही आधुनिक विश्व की पहली प्रजातांत्रिक शासन प्रणाली अस्तित्व में आयी । कुलीनवाद से प्रेरित रहे ब्रिटेन में राजतंत्र के रहते हुए भी प्रजातांत्रिक संस्थाओं और प्रतिनिधिक शासन का विकास हुआ और अलिखित ब्रिटिश संविधान पर राजतंत्र, कुलीनतंत्र और जनतंत्र तीनों का असर आया । ADVERTISEMENTS: ब्रिटिश संविधान की विशेषताओं को इन संदर्भों में ही निम्नानुसार समझा जा सकता हैं: 1. अलिखित संविधान: विश्व के विभिन्न प्रगतिशील देशों के संविधान जहां लिखित है, ब्रिटिश संविधान अलिखित है । यही नहीं वहां सरकारी काम काज के नियम आदि का भी अधिकांश भाग अलिखित है । वस्तुतः ब्रिटिश संविधान का वि...

समाजशास्त्र

अनुक्रम • 1 आधार • 1.1 इतिहास • 1.2 महत्वपूर्ण व्यक्ति • 1.3 एक अकादमिक विषय के रूप में समाजशास्त्र का संस्थानिकरण • 1.4 प्रत्यक्षवाद और गैर-प्रत्यक्षवाद • 2 बीसवीं सदी के विकास • 3 ज्ञान मीमांसा और प्रकृति दर्शनशास्त्र • 4 समाजशास्त्र का कार्य-क्षेत्र और विषय • 4.1 संस्कृति • 4.2 अपराध और विचलन • 4.3 अर्थशास्त्र • 4.4 पर्यावरण • 4.5 शिक्षा • 4.6 परिवार और बचपन • 4.7 लिंग और लिंग-भेद • 4.8 इंटरनेट • 4.9 ज्ञान • 4.10 क़ानून और दंड • 4.11 मीडिया • 4.12 सैन्य • 4.13 राजनीतिक समाजशास्त्र • 4.14 वर्ग एवं जातीय संबंध • 4.15 धर्म • 4.16 वैज्ञानिक ज्ञान एवं संस्थाएं • 4.17 स्तर-विन्यास • 4.18 शहरी और ग्रामीण स्थल • 5 शोध विधियां • 5.1 सिंहावलोकन • 5.2 पद्धतियों के प्रकार • 5.3 व्यावहारिक अनुप्रयोग • 6 समाजशास्त्र और अन्य सामाजिक विज्ञान • 7 इन्हें भी देखें • 7.1 संबंधित सिद्धांत, तरीके और जांच के क्षेत्र • 8 पाद टिप्पणियां • 9 ग्रंथ सूची • 10 अतिरिक्त पठन • 11 बाहरी कड़ियाँ • 11.1 व्यावसायिक संगठन • 11.2 अन्य संसाधन आधार [ ] इतिहास [ ] 1890 में पहली बार इस विषय को इसके अपने नाम के तहत अमेरिका के समाजशास्त्र के तत्व था, पहली बार प्रथम यूरोपीय समाजशास्त्र विभाग की स्थापना 1895 में, L'Année Sociologique(1896) के संस्थापक ब्रिटिश जर्नल ऑफ़ सोशिऑलजी की जन्मभूमि) में हुआ। समाजशास्त्र में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग 1893 में शुरू हुआ, जब , जो 1949 में स्थापित अपेक्षाकृत अधिक विशाल प्रत्यक्षवाद और गैर-प्रत्यक्षवाद [ ] बीसवीं सदी के विकास [ ] 20वीं सदी के प्रारंभिक वर्षों में समाजशास्त्र का विस्तार यूरोप में, विशेष रूप से आतंरिक युद्ध की अवधि के दौरान, अधिनायकवादी सरकारों द्वारा और पश्चिम में रूढ...

न्यायिक पुनरावलोकन का अर्थ, परिभाषा एवं महत्व

न्यायिक पुनरावलोकन का अर्थन्यायिक पुनरावलोकन का अर्थ है किसी भी निर्णय की समीक्षा करना। न्यायिक पुनरावलोकन का उन देशों में काफी महत्व है जहाँ पर लिखित संविधान है, क्योंकि उन देशों मे सीमित सरकार की अवधारणा लागू होती है। न्यायिक पुनरावलोकन इस अर्थ मे माना जाता है कि इससे किसी विधायिका की शक्तियों की मान्यता कहाँ तक उचित है तथा सरकार के कार्यों की वैधता कहाँ तक है। विशेषकर संविधान के प्रावधानों के अनुरूप सरकार के कार्य संपन्न हो रहे हैं या नहीं इन सब कारणों के लिए न्यायालय को न्यायिक पुनरावलोकन की शक्तियाँ दी गयी है। न्यायिक पुनरावलोकन के बारे में अनेक विद्वानों ने अलग अलग परिभाषाएं दी हैं जो इसका अर्थ स्पष्ट करती है। न्यायिक पुनरावलोकन के बारे में परिभाषाएं दी गई हैं :- • अमेरिका के न्यायधीश मारबरी मार्शल ने न्यायिक पुनरावलोकन को परिभाषित करते हुए कहा है-”यह न्यायालय की ऐसी शक्ति है जिसमें यह किसी कानूनी या सरकासरी कार्य को असंवैधानिक घोषित कर सकती है जिसे यह देश की मूल विधि या संविधान के विरुद्ध समझती है।” • मुनरो के अनुसार-”न्यायिक पुनरावलोकन वह शक्ति है जिसके अन्तर्गत कांग्रेस द्वारा पारित किसी कानून अथवा राज्य के संविधान की किसी व्यवस्था या कानून जैसे प्रभाव वाले और किसी सार्वजनिक नियम के सम्बन्ध में यह निर्णय लिया जाता है कि वह संयुक्त राज्य के संविधान के अनुकूल है या नहीं।” • मैक्रिडिस तथा ब्राउन के अनुसार-”न्यायिक पुनरावलोकन का अर्थ न्यायधीशों की उस शक्ति में है जिसके अधीन वे एक उच्चतर कानून के नाम पर संविंधियों तथा आदेशों की व्याख्या कर सकें और संविधान के विरुद्ध पाने पर उन्हें अमान्य ठहरा सकें।” • डिमॉक के अनुसार-”न्यायिक पुनर्निरीक्षण, व्यवस्थापिका द्वारा निर्मित ...

संविधान के स्रोत

संविधान के स्रोत | भारतीय संविधान किन किन देशों से लिया गया है? दुनिया के सबसे बड़े लिखित संविधान का भारत मे जब निर्माण किया गया तो अलग अलग विचारों को कई सोर्स से लिये गया था। इसके साथ ही कई दूसरे देशों के संविधान से भी प्रेरित था। तो आइए देखते है जब भारत मे संविधान को बनाया गया तो कहां कहाँ से सूचनाएं लिए गए थे? भारत के संविधान के स्रोत क्या है? संविधान के स्रोत आज भारत देश दुनिया का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक देश है, यहाँ हर किसी को सामान अधिकार, सामान दृष्टि से देखा जाता है, सबके लिए एक ही कानून है और भारत में सब कुछ सामन्य तरीके से चलाया जाता हैं, और ये सब भारत के महान संविधान के वजह से मुमकिन है। संविधान का स्रोत का क्या अर्थ है? संविधान का स्त्रोत से मतलब है, जहा से संविधान को शक्ति मिलेगी, जो संविधान को सर्वोपरि बनाएगा। भारतीय संविधान में बहुत सी अच्छी अच्छी चीजे दूसरे स्त्रोतों से ली गयी है, और इनमें आन्तरिक एव बाह्य स्त्रोत दोनों सम्मलित है। जब ब्रिटिश शासन भारत पर राज कर रहा था तब बहुत सारे अधिनियम पारित किये गए थे। जिससे भारत की शासन व्यवस्था को चलाया जाता था, और इन्ही अधिनियमो से ली गयी चीजों को ही आंतरिक स्रोत कहा जाता है। भारतीय संविधान किन किन देशों से लिया गया है? संविधान के स्रोत • संविधान के मूल स्रोत 1935 का भारत सरकार अधिनियम भारतीय संविधान पर सबसे अधिक प्रभाव ‘भारतीय शासन अधिनियम: 1935 का है। भारतीय संविधान के 395 अनुच्छेदों में से लगभग 250 अनुच्छेद ऐसे हैं, जो 1935 ई० के अधिनियम से या तो शब्दश: लिए गए हैं या फिर उनमें बहुत थोड़ा परिवर्तन किया गया ह। मुख्यतः भारत अधिनियम 1935 से बहुत सारी चीजे भारत के संविधान में जोड़ी गयी है जैसे, न्यायपालिका के सम्बन्ध में...

ब्रिटिश प्रधानमन्त्री की शक्ति और कार्य

उत्तर - ब्रिटेन में संसदीय शासन व्यवस्था है। संसदीय शासन में कार्यपालिका का एक औपचारिक प्रधान होता है और दूसरा वास्तविक प्रधान सत्ता का प्रयोग वास्तविक प्रधान करता है , औपचारिक प्रधान नहीं। ब्रिटेन में सम्राट को औपचारिक प्रधान कहते हैं और मन्त्रिमण्डल के अध्यक्ष प्रधानमन्त्री को कार्यपालिका का वास्तविक प्रधान कहा जाता है। मन्त्रिमण्डल के गठन की प्रक्रिया प्रधानमन्त्रीकी नियुक्ति से आरम्भ होती है। ब्रिटिश प्रधानमन्त्री की नियुक्ति :- सैद्धान्तिक रूप में ब्रिटिश प्रधानमन्त्री की नियुक्ति सम्राट् के द्वारा की जाती है , परन्तु व्यवहार में कॉमन सभा के बहुमत दल के नेता को प्रधानमन्त्री बनाया जाता है। ब्रिटेन में ऐसे भी अवसर आए हैं जब सम्राट् ने अपने विवेक के आधार पर प्रधानमन्त्री की नियुक्ति की है , परन्तु अब सम्राट को अपने विवेक के प्रयोग के अवसर कम ही मिलते हैं। यद्यपि औपचारिक रूप से मन्त्रियों की नियुक्ति सम्राट् के द्वारा की जाती है , परन्तु यह नियुक्ति प्रधानमन्त्री के परामर्श से ही की जाती है। प्रधानमन्त्री अपने साथियों में से कुछ संसद सदस्यों को मन्त्री पद प्रदान करता है , परन्तु अन्तिम रूप से इनकी नियुक्ति सम्राट् के द्वारा की जाती है। प्रधानमन्त्री जिस व्यक्ति को भी मन्त्री बनाना चाहता है , सम्राट् उसकी इस सिफारिश को स्वीकार कर लेता है। किसी व्यक्ति को मन्त्री बनाने में प्रधानमन्त्री अनेक बातों को ध्यान में रखता है। ब्रिटेन में एकदलीय मन्त्रिमण्डल की परम्परा है। परन्तु यदि प्रधानमन्त्री किसी दूसरे दल के सदस्य को मन्त्री नियुक्त कर देता है , तो इस सम्बन्ध में कोई आपत्ति नहीं उठाई जा सकती। प्रधानमन्त्री ही मन्त्रियों के विभागों का वितरण करता है। विभागों के वितरण में प्रधा...

ब्रिटेन में विधि का शासन

यूनाइटेड किंगडम संविधान की एक अनुपम देन विधि का शासन है। इसका अभिप्राय यह है कि ब्रिटेन में किसी व्यक्ति विशेष की निजी इच्छा का शासन न होकर विधि अर्थात् कानून का शासन है। चाहे कोई व्यक्ति कितना ही बड़ा उच्चाधिकारी क्यों न हो, वह विधि के नियन्त्रण में रहते हुए एक समान है। यहाँ डायसी का यह कथन उल्लेखनीय है कि“कोई व्यक्ति विधि के क्षेत्र से बाहर नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति चाहे उसका पद कुछ भी क्यों न हो, राज्य की साधारण विधि के अधीन है और राज्य के साधारण न्यायालय के क्षेत्राधिकार के अन्तर्गत है। ब्रिटेन में विधि का शासन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। विधि के शासन को परिभाषित करते हुए ही लॉर्ड हीवर्ट ने कहा है कि "विधि के शासन का तात्पर्य कानून की सर्वोच्चता है। विधि के शासन की विशेषताएँ प्रो. डायसी ने ब्रिटेन में विधि के शासन को संविधान का एक प्रमुख अंग माना है। उनके अनुसार विधि के शासन की तीन प्रमुख विशेषताएँ हैं (1) विधि की सर्वोच्चता - ब्रिटिश शासन-व्यवस्था में सर्वोपरि स्थान विधि को दिया जाता है न कि किसी व्यक्ति अथवा सरकारी अधिकारी को। अर्थात् सरकारी अधिकारियों के द्वारा मनमाने तरीके से अपनी शक्तियों का प्रयोग नहीं किया जा सकता। उन्हें विधि द्वारा निर्धारित सीमाओं के अन्तर्गत रहते ही अपना कार्य करना होता है। इस सम्बन्ध में हैगन और पॉवेल लिखते हैं, “जो लोग सरकार बनाते हैं वे लोग मनमानी नहीं कर सकते। उनको अपनी शक्ति संसद द्वारा निर्मित नियमों के अनुसार ही प्रयोग में लानी होती है।” (2) सभी नागरिकों के लिए एक ही प्रकार की विधि और न्यायालय-डायसी के अनुसार विधि के शासन की दूसरी और अधिक महत्वपूर्ण अभिव्यक्ति यह है कि सभी व्यक्ति चाहे उन्हें कोई भी पद या स्थिति प्राप्त क्यों न हो, वि...

Pratiyogita Today

ब्रिटिश संविधान की प्रमुख विशेषताएं निम्न है – • प्राचीनतम संविधान • वास्तविक लोकतंत्र का जनक • एकमात्र अलिखित संविधान • विकसित संविधान • स्वतंत्रता का प्रतीक • आधुनिक शासन व्यवस्था पर प्रभाव • लचीला संविधान • सिद्धांत एवं व्यवहार का अंतर • संसद की सर्वोच्चता • एकात्मक शासन • विधि का शासन • नागरिक स्वतंत्रता पर बल • प्रजातंत्र एवं राजतंत्र का समन्वय • द्विसदनीय व्यवस्था (1) प्राचीनतम संविधान (Oldest Constitution) यह विश्व का प्राचीनतम सविधान है। विश्व के किसी भी संविधान का इतना लंबा इतिहास नहीं रहा है। यह विश्व में अपनी तरह का पहला संविधान था जो 1400 वर्षों से अधिक समय में अपने वर्तमान स्वरूप को प्राप्त कर सका। इस संविधान का महत्व इस बात से और बढ़ जाता है कि इसने न केवल (2) वास्तविक लोकतंत्र का जनक (Father of Real Democracy) ब्रिटेन के संविधान के द्वारा सर्वप्रथम लोकतंत्र का अंकुरण हुआ। इसे आधुनिक विश्व का प्रथम लोकतांत्रिक संविधान कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। निरंकुश राजतंत् (Autocratic Monarchy) से सक्षम लोकतंत्र (Competent Democracy ) की यात्रा उतार-चढ़ाव भरी रही। यह सत्य है कि ब्रिटेन से पहले यूनान में लोकतंत्र प्रचलित था, परंतु उस व्यवस्था और ब्रिटेन एवं आज के विशाल राज्यों के लोकतंत्र में बड़ा अंतर है। विशाल राज्यों में अप्रत्यक्ष लोकतंत्र को अपनाने का पहला सफल प्रयास ब्रिटेन में ही हुआ। विश्व के अन्य देशों में लोकतंत्र को यही से ग्रहण किया। मुनरो के शब्दों में, “18 वीं एवं 19 वीं शताब्दियों में सभ्य संसार के एक बड़े भाग को लोकतांत्रिक अधिकांशत: अंग्रेज भाषा-भाषी जातियों के नेतृत्व में हुआ।” (3) एकमात्र अलिखित संविधान यह आधुनिक समय में और अधिक महत्वपूर्ण हो ...

# ब्रिटिश संविधान की प्रमुख विशेषताएं/लक्षण

Table of Contents • • • • • • • • • • • • • ब्रिटिश संविधान की प्रमुख विशेषताएं : ब्रिटिश संविधान अन्य देशों के संविधानों से विभिन्न लक्षणों में भिन्न है। यह देश के कर्णधारों द्वारा निश्चित स्थान व समय में निर्मित नहीं हुआ, वरन् समय-समय पर विभिन्न आवश्यकताएँ उत्पन्न हुईं और उन्हीं के आधार पर संविधान का विकास होता गया। ब्रिटेन के लोगों ने सर्वप्रथम यह खोज की कि किस प्रकार राज्य प्रजातान्त्रिक प्रणाली के आधार पर चलाया जा सकता है। यही कारण है कि हम संविधान की विशेषताओं का वर्णन करने को उत्सुक हैं। ब्रिटेन के संविधान की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं- 1. अलिखित संविधान ब्रिटिश संविधान का स्वरूप अलिखित है। यहाँ ‘ इंग्लैण्ड का संविधान‘ नाम का कोई सरकारी प्रलेख उपलब्ध नहीं है। जिन विधियों और सिद्धान्तों के आधार पर ब्रिटेन में शासन चलता है, वह ब्रिटिश समाज के रीति-रिवाजों, परम्पराओं आदि पर आधारित हैं। हाँ, इनमें से कुछ को संसद ने पारित कर अधिनियमों का रूप दे दिया है, जैसे- महाधिकार पत्र (1215), अधिकारयाचनापत्र (1618), संसद अधिनियम (1911) जो 1949 ई. में संशोधित किया गया आदि, ब्रिटिश संविधान के प्रमुख अंग हैं। किन्तु क्योंकि ब्रिटिश संविधान का अधिकांश भाग अलिखित है, इसलिए इसको अलिखित संविधान कहा गया है। संविधान के अलिखित होने के कारण ही टॉकाबिली तथा पेन (Paine) आदि विद्वानों ने यह मत प्रतिपादित किया कि “इंग्लैण्ड का संविधान है ही नहीं।” 2. विकसित संविधान ब्रिटिश संविधान विकसित है, निर्मित नहीं। मुनरो के शब्दों में, “ब्रिटिश संविधान का निर्माण करने के लिए कभी कोई संविधान सभा का गठन नहीं किया गया। यह तो प्राणधारियों की भाँति पनपा है और युग-युग में उन्नति की है।” संविधान के विकास में ए...

ब्रिटिश संसद, शक्तियाँ, रचना और संप्रभुता

लन्दन शहर मे वेस्ट मिनिस्टर महल की जो शानदार गोल इमारत हैं वह ब्रिटेन की संसद हैं। ब्रिटेन मे संसद ही सम्प्रभु है। संवैधानिक दृष्टि से वह सर्वोच्च है। ब्रिटिश संसद विधि निर्माण की सामान्य प्रक्रिया द्वारा ही किसी भी विषय पर कानून बना सकती है और उसके द्वारा निर्मित कानूनों को किसी के भी द्वारा कोई चुनौती नही दी जा सकती। आज हम ब्रिटिश संसद की शक्तियों, ब्रिटिश संसद की रचना और संप्रभुता के बारे मे चर्चा करेंगे। ब्रिटिश संसद को ब्लैकस्टोन ने सर्वशक्तिशाली संस्था बताते हुए लिखा हैं "यह प्रेत्यक सम्भव कार्य को कर सकती हैं जो प्रकृति से अशक्य न हो।" ब्रिटिश संसद के बारे में एडवर्ड कोक ने कहा "संसद की शक्ति और अधिकार क्षेत्र इतना महान श्रेष्ठ एवं अनियंत्रित है कि उस पर किसी व्यक्ति का, कीन्हीं कारणों का और किसी भी रूकावट का बन्धन नहीं है।" डी. लोम महोदय ने ब्रिटिश संसद पर चुटकी लेते हुए कहा हैं " ब्रिटिश संसद स्त्री को पुरूष और पुरूष को स्त्री बनाने के अतिरिक्त और सब कुछ कर सकती हैं। ब्रिटिश संसद की शक्तियाँ ( british sansad ki shaktiya) ब्रिटेन मे न्यायिक पुनरावलोकन की व्यवस्था नही होने के कारण संसद की विधि निर्माण शक्ति को "संप्रभुता" कहा जा सकता हैं। संवैधानिक दृष्टि से ब्रिटिश संसद सर्वोच्च हैं। ब्रिटिश संसद कोई भी कानून बना सकती हैं और किसी भी कानून को भंग कर सकती है। संसद एक ही प्रक्रिया द्वारा साधारण व संवैधानिक दोनों भांति के कानूनो का निर्माण कर सकती हैं। किसी भी व्यक्ति या संस्था को इस बात का अधिकार नही है कि वह संसद द्वारा निर्मित कानूनों की अवहेलना अथवा उनका उल्लंघन कर सके न ही इनकी वैधता को चुनौती दी जा सकती है। विश्व में ब्रिटिश संसद की शक्तियाँ सर्वोपरि है, संसद की ...