चौरी चौरा कांड

  1. what is chauri chaura incident chauri chaura in hindi
  2. 1922 चौरी
  3. pm modi to inaugurate centenary celebrations of chauri chaura incident
  4. Chauri Chaura Kand in Hindi
  5. क्या था चौरी
  6. 1922 चौरी
  7. चौरी चौरा शताब्‍दी समारोह: PM मोदी भी होंगे शामिल, जानें क्‍यों
  8. राष्ट्रीय समसामयिकी 5 (7
  9. 1922 चौरी
  10. राष्ट्रीय समसामयिकी 5 (7


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what is chauri chaura incident chauri chaura in hindi

मुमताज़ खान: भारतीय की आज़ादी की तहरीक की एक बड़ी कड़ी चौरी-चौरा सानेहा के आज 100 साल हो गए हैं. इस मौक़े पर यूपी हुकूमत सालभर कई प्रोग्राम और तक़रीब चलाने वाली है. आइए जानते हैं क्या था चौरी चौरा सानेहा, जिसने अंग्रेजों की हुकूमत को हिला कर रख दिया था. जलियांवाला बाग क़त्ले-आम के बाद बाबा-ए-क़ौम महात्मा गांधी जी ने सितम्‍बर 1920 से मुल्कभर में असहयोग आंदोलन शुरू किया. इसने भारतीय आजादी की लड़ाई को नई बेदारी दी. जब भी गांधीजी की इस तहरीक की बात चलती है, तब चौरी-चौरा कांड की याद भी इसके साथ जुड़ जाती है. दरअसल जब पूरे मुल्क में असहयोग आंदोलन उरूज छू रहा था, मुल्कभर के लोगों के असहयोग के सबब अंग्रेज सरकार के पसीने छूटने लगे थे. तब एक ऐसा वाक्या हुआ, जिससे महात्मा गांधी ने इस आंदोलन को वापस ले लिया. हालांकि बहुत से कांग्रेसी लीडर इस वजह से उनसे नाराज भी हुए. ये चौरी-चौरा कांड ही था, जिसमें 4 फरवरी 1922 के दिन कुछ लोगों की गुस्साई भीड़ ने गोरखपुर के चौरी-चौरा के पुलिस थाने में आग लगा दी थी. इसमें 23 पुलिस वालों की मौत हो गई थी. तारीख़ के पन्नों में दर्ज है कि 4 फरवरी, 1922 को चौरी चौरा से मुतस्सिल भोपा बाजार में सत्याग्रही अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जुलूस निकाल रहे थे. चौरी चौरा थाने के सामने उस वक्त के थानेदार गुप्तेश्वर सिंह ने उन्हें रोका तो झड़प हो गई. एक पुलिस अहलकार ने किसी सत्याग्रही की टोपी पर बूट रख दिया जिसके बाद भीड़ बेकाबू हो गई. पुलिस की फायरिंग में 11 सत्याग्रही शहीद हो गए और कई ज़ख्मी भी हुए. इससे सत्याग्रही भड़क उठे और उन्होंने चौरी चौरा थाना फूंक दिया. इसमें 23 पुलिसवाले जिंदा जल गए. इसके बाद अंग्रेजी हुकूमत ने सैकड़ों सत्यग्रहियों पर मुक़दमे चलाए, 19 सत्याग्रही...

1922 चौरी

1922 चौरी-चौरा कांड: इतिहास में अविस्मरणीय काकोरी फरवरी, 1922 में चौरी-चौरा कांड के बाद गांधी जी द्वारा असहयोग आंदोलन वापस लेने के बाद राष्ट्रीय आंदोलन विराम के दौर से गुजर रहा था। सृजनात्मक कार्य तो हो रहे थे, पर भावनाओं का उद्दाम प्रवाह कहीं दबा हुआ था। ऐसे हालात में कुछ क्रांतिकारी संगठन गुप्त रूप से अंग्रेजों से लगातार मोर्चा ले रहे थे। ऐसा ही एक संगठन था, हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन, जिसका गठन 1924 में कानपुर में उत्तर प्रदेश तथा बंगाल के कुछ क्रांतिकारियों द्वारा किया गया। इस संगठन ने अपना घोषणापत्र द रिवोल्यूशनरी के नाम से देश के सभी प्रमुख स्थानों पर वितरित किया। आजादी का आंदोलन चलाने के लिए क्रांतिकारियों को धन की जरूरत पड़ती थी। इसी उद्देश्य से संगठन द्वारा रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में एक-दो राजनीतिक डकैतियां डाली गई। इन डकैतियों से अपेक्षानुरूप धन तो नहीं मिला, अलबत्ता एक-एक व्यक्ति जरूर मारा गया। यह तय किया गया कि अब इस तरह की डकैतियां नहीं डाली जाएंगी, मात्र सरकारी धन ही लूटा जाएगा। काकोरी सरकारी धन को लूटने की पहली बड़ी वारदात थी। आठ अगस्त, 1925 को शाहजहांपुर में बिस्मिल के घर पर क्रांतिकारियों की एक गुप्त बैठक हुई, जिसमें 08 डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर ट्रेन में डकैती डालने की योजना बनी, क्योंकि इसमें सरकारी खजाना लाया जा रहा था। तय किया गया कि लखनऊ से करीब पच्चीस किलोमीटर पहले पड़ने वाले स्थान काकोरी में ट्रेन डकैती डाली जाए। नेतृत्व बिस्मिल का था और इस योजना को फलीभूत करने के लिए 10 क्रांतिकारियों को शामिल किया गया, जिनमें अशफाक उल्ला खां, मुरारी शर्मा, बनवारी लाल, राजेंद्र लाहिड़ी, शचींद्रनाथ बख्शी, केशव चक्रवर्ती (छद्म नाम), चंद्रशेखर आजाद, मन्मथनाथ ग...

pm modi to inaugurate centenary celebrations of chauri chaura incident

चौरी-चौरा शताब्दी समारोह: चौरी-चौरा कांड के बाद क्या हुआ? 4 फरवरी 1922 को चौरी-चौरा में घटना हो जाने के बाद सबसे पहली प्रतिक्रिया महात्मा गांधी की ओर से हुई. उन्होंने अपना असहयोग आंदोवन वापस ले लिया और कहा, अब असहयोग का रास्ता भारत को अंग्रेजों की दासता से मुक्त कारने के योग्य नहीं रहा. महात्मा गांधी के इस फैसले को लेकर क्रांतिकारियों का एक दल नाराज हो गया था. नई दिल्लीः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज गुरुवार को चौरी-चौरा शताब्दी समारोह की शुरुआत करेंगे. PM Modi वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए इस समारोह की शुरुआत करेंगे. इसके अलावा एक विशेष डाक टिकट भी जारी किया जाएगा. उत्तर प्रदेश के सीएम योगी का भी एजेंडे में शताब्दी समारोह को लेकर कई प्लान है. जिला प्रशासन वीडियो अपलोड के माध्यम से वन्दे मातरम गीत की पहली पंक्ति को एक साथ गाकर गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड बनाने के लिये पूरी तरह से तैयार है. इसके अलावा राज्य सरकार साल भर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करेगी. 4 फरवरी 1922 को चौरी-चौरा में हुई यह घटना कई कारणों से ऐतिहासिक बन गई. घटना को ऐतिहासिक बनाते हैं 3 तथ्य, पहला, वह वजह, जिसके कारण घटना हुई, दूसरा, घटना में क्या हुआ और तीसरा घटना घट जाने के बाद क्या प्रभाव पड़े. इतिहास में चौरी-चौरा कांड क्या था, यह तो खूब दर्ज है, लेकिन इसके बाद क्या-क्या हुआ यह ऐतिहासिक विषय नहीं बल्कि बहस का मुद्दा रह गया. इसके पहले सितम्बर 1920 में कलकत्ता के डरे हुए अंग्रेजों ने लिया दमनकारी फैसला उधर, अंग्रेजों के लिए यह मौका भयंकर डर, शर्म और सदमे से भरा था. दरअसल यह दूसरा मौका था जब उन्हें इतने भयानक आक्रोश का सामना करना पड़ा था. इसके पहले 1857 की क्रांति को झेल चुके और उसका सफलता पूर्वक दमन कर च...

Chauri Chaura Kand in Hindi

Chauri Chaura (Chora Chori) kand in hindi |चौरी चौरा कांड कब और कहाँ घटित हुआ था इसके कारण और किससे सम्बंधित है भारत के इतिहास में 4 फरबरी 1922 का दिन जो चौरा चौरी कांड के तौर पर जाना जाता है, इसी हिंसक घटना के बाद महात्मा गाँधी जी ने असहयोग आन्दोलन को वापस लेने का फेसला किया| यही वह काण्ड था जिससे कांग्रेस दो खेमों में बट गई नरम दल और गरम दल, यही वह घटना है जिसने भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव जैसे क्रांतिकारियों का जन्म हुआ| जिनका मानना था अहिंसा से कभी भी आजादी नहीं मिल सकती, हिंसा ही एक मात्र रास्ता है अंग्रेजों से आज़ादी पाने का| आइये चर्चा करते हैं क्या था चौरा चौरी कांड कब हुआ था, चौरा चौरी कांड के क्या कारण थे और इसके परिणाम Chauri Chaura Kand in Hindi घटना का नाम चौरी चौरा जगह चौरी चौरा गोरखपुर उत्तर प्रदेश तारीख 4 फरबरी 1922 किस आन्दोलन का हिस्सा असहयोग आन्दोलन कारण शांतिपूर्ण आन्दोलनकारियों पर पुलिस द्वारा गोली चलाना परिणाम 12 फरबरी को असहयोग आन्दोलन वापस ले लिया गया अन्य परिणाम कांग्रेस पार्टी दो भागों में बात गई नरम दल और गरम दल, आन्दोलनकारियों को फांसी की सजा इसके अलावा विदेशी कपड़ों का वहिष्कार, सरकारी नौकरी, स्कूल, कॉलेज और शिक्षा का बहिष्कार इत्यादि शामिल थे| इन आन्दोलन का प्रमुख कारणों में से एक अंग्रेजों के द्वारा बनाया गया Rowlatt Act था और अंग्रेजों से स्वराज प्राप्त करना था| चौरा चौरी काण्ड का मुख्य कारण 2 फरबरी 1922 को असहयोग आन्दोलन के तहत गोरखपुर उत्तर प्रदेश स्थित चौरा चौरी (Chauri Chaura) स्थान पर किसान शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे थे| इसी दिन आन्दोलनकारियों में से कुछ लोगों को अंग्रेजों की पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया| इसी गिरफ़्तारी का विरोध करने के लिए 4...

क्या था चौरी

तारीख 4 फरवरी 1922 जगह चौरी-चौरा,गोरखपुर जिला (उत्तरप्रदेश) सजा 19 क्रांतिकारियों को फांसी की सजा किस आन्दोलन का हिस्सा क्या है चौरी-चौरा कांड (Chauri Chaura kand in Hindi) चौरी-चौरा उत्तरप्रदेश के गोरखपुर जिले में एक गांव हैं. जो ब्रिटिश शासन काल में कपड़ों और अन्य वस्तुओं की बड़ी मंडी हुआ करता था. अंग्रेजी शासन के समय गांधीजी ने असहयोग आंदोलन की शुरुआत की थी. जिसका उद्देश्य अंग्रेजी शासन का विरोध करना था. इस आन्दोलन के दौरान देशवासी ब्रिटिश उपाधियों, सरकारी स्कूलों और अन्य वस्तुओं का त्याग कर रहे थे और वहाँ के स्थानीय बाजार में भी भयंकर विरोध हो रहा था. इस विरोध प्रदर्शन के चलते 2 फरवरी 1922 को पुलिस ने दो क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर लिया था. गिरफ़्तारी का विरोध करने के लिए करीब 4 हजार आन्दोलनकरियों ने थाने के सामने ब्रिटिश शासन के खिलाफ प्रदर्शन और नारेबाजी की. इस प्रदर्शन को रोकने के लिए पुलिस ने हवाई फायरिंग की और जब प्रदर्शनकारी नहीं माने तो उन लोगों पर ओपन फायर किया गया. जिसके कारण तीन प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई और कई लोग घायल हो गए. इसी दौरान पुलिसकर्मियों की गोलिया खत्म हो गई और प्रदर्शनकारियों को उग्र होता देख वह थाने में ही छिप गए. अपने साथी क्रांतिकारियों की मौत से आक्रोशित क्रांतिकारियों ने थाना घेरकर उसमे आग लगा दी. इस घटना में कुल 23 पुलिसकर्मियों की जलकर मौत हो गई थी. जिसमे तत्कालीन दरोगा “गुप्तेश्वर सिंह” भी शामिल थे. यह घटना जब गांधीजी को पता चली तो उन्होंने अपना चौरी-चौरा कांड मुकदमा और सजा (Chauri Chaura kand Case and Panishments) 9 जनवरी 1923 के दिन चौरी-चौरी कांड के लिए 172 लोगों को आरोपी बनाया गया था और फांसी की सजा दे दी गई थी. इलाहाबाद हाई कोर्ट म...

1922 चौरी

फरवरी, 1922 में चौरी-चौरा कांड के बाद गांधी जी द्वारा असहयोग आंदोलन वापस लेने के बाद राष्ट्रीय आंदोलन विराम के दौर से गुजर रहा था। सृजनात्मक कार्य तो हो रहे थे, पर भावनाओं का उद्दाम प्रवाह कहीं दबा हुआ था। ऐसे हालात में कुछ क्रांतिकारी संगठन गुप्त रूप से अंग्रेजों से लगातार मोर्चा ले रहे थे। ऐसा ही एक संगठन था, हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन, जिसका गठन 1924 में कानपुर में उत्तर प्रदेश तथा बंगाल के कुछ क्रांतिकारियों द्वारा किया गया। इस संगठन ने अपना घोषणापत्र द रिवोल्यूशनरी के नाम से देश के सभी प्रमुख स्थानों पर वितरित किया। आजादी का आंदोलन चलाने के लिए क्रांतिकारियों को धन की जरूरत पड़ती थी। इसी उद्देश्य से संगठन द्वारा रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में एक-दो राजनीतिक डकैतियां डाली गई। इन डकैतियों से अपेक्षानुरूप धन तो नहीं मिला, अलबत्ता एक-एक व्यक्ति जरूर मारा गया। यह तय किया गया कि अब इस तरह की डकैतियां नहीं डाली जाएंगी, मात्र सरकारी धन ही लूटा जाएगा। काकोरी सरकारी धन को लूटने की पहली बड़ी वारदात थी। आठ अगस्त, 1925 को शाहजहांपुर में बिस्मिल के घर पर क्रांतिकारियों की एक गुप्त बैठक हुई, जिसमें 08 डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर ट्रेन में डकैती डालने की योजना बनी, क्योंकि इसमें सरकारी खजाना लाया जा रहा था। तय किया गया कि लखनऊ से करीब पच्चीस किलोमीटर पहले पड़ने वाले स्थान काकोरी में ट्रेन डकैती डाली जाए। नेतृत्व बिस्मिल का था और इस योजना को फलीभूत करने के लिए 10 क्रांतिकारियों को शामिल किया गया, जिनमें अशफाक उल्ला खां, मुरारी शर्मा, बनवारी लाल, राजेंद्र लाहिड़ी, शचींद्रनाथ बख्शी, केशव चक्रवर्ती (छद्म नाम), चंद्रशेखर आजाद, मन्मथनाथ गुप्त एवं मुकुंदी लाल शामिल थे। इन क्रांतिकारियों के...

चौरी चौरा शताब्‍दी समारोह: PM मोदी भी होंगे शामिल, जानें क्‍यों

आज यानी 4 फरवरी 2021 को ऐतिहासिक चौरी चौरा घटना का शताब्दी समारोह मनाया जा रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसका वर्चुअल उद्घाटन कर रहे हैं. चौरी चौरा की घटना को याद करने के लिए यूपी सरकार इस वर्ष चौरी चौरा की घटना का शताब्दी समारोह मना रही है. साल 1922 में स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ी इस घटना को आइए सिलसिलेवार जानें कि आख‍िर ऐसा क्‍या हुआ था उस दिन.

राष्ट्रीय समसामयिकी 5 (7

राष्ट्रीय समसामयिकी 5 (7-February-2022)^‘चौरी चौरा’ घटना की शताब्दी^(Centenary of 'Chauri Chaura' incident) Posted on February 7th, 2022 हाल ही में प्रधानमंत्री ने चौरी-चौरा कांड के सौ साल पूरे होने पर हमारे स्वतंत्रता संग्राम के नायकों को श्रद्धांजलि दी। ‘चौरी चौरा’ कांड: यह घटना ब्रिटिश भारत के अंतर्गत संयुक्त प्रांत (आधुनिक उत्तर प्रदेश) के गोरखपुर जिले के चौरी चौरा (Chauri Chaura) में घटित हुई थी। इस घटना के दौरान, असहयोग आंदोलन में भाग लेने वाले प्रदर्शनकारियों का एक बड़ा समूह पुलिस के साथ भिड़ गया, जिस पर पुलिस ने अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। इसकी जवाबी कार्रवाई में, प्रदर्शनकारियों ने एक पुलिस स्टेशन पर हमला किया और उसमे आग लगा दी, जिसमें थाने में उपस्थित सभी कर्मियों की मौत हो गयी। इसकी प्रतिक्रिया में, हिंसा के सख्त खिलाफ रहने वाले महात्मा गांधी ने 12 फरवरी 1922 को असहयोग आंदोलन को राष्ट्रीय स्तर पर स्थगित कर दिया। पृष्ठभूमि : 1 अगस्त 1920 को गांधी जी द्वारा सरकार के खिलाफ ‘असहयोग आंदोलन’ का आरंभ किया गया था। इस आंदोलन में, स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग और विदेशी वस्तुओं- विशेष रूप से मशीन-निर्मित वस्त्रों, कानूनी, शैक्षणिक और प्रशासनिक संस्थानों का बहिष्कार करना, अर्थात “कुशासन करने वाले शासक का हर तरह से असहयोग करना’ शामिल था। महात्मा गांधी और अन्य नेताओं की प्रतिक्रिया: महात्मा गांधी ने पुलिसकर्मियों की हत्या किए जाने की निंदा की। “वास्तविक सहानुभूति” प्रदर्शित करने और प्रायश्चित करने के लिए एक ‘चौरी चौरा सहायता कोष’ की स्थापना की गई थी। गांधी ने ‘कांग्रेस कार्यसमिति’ को इस मामले में अपनी मर्जी की आगे झुकने पर विवश किया और 12 फरवरी, 1922 को ‘असहयोग आंदोलन’ को औपचारि...

1922 चौरी

फरवरी, 1922 में चौरी-चौरा कांड के बाद गांधी जी द्वारा असहयोग आंदोलन वापस लेने के बाद राष्ट्रीय आंदोलन विराम के दौर से गुजर रहा था। सृजनात्मक कार्य तो हो रहे थे, पर भावनाओं का उद्दाम प्रवाह कहीं दबा हुआ था। ऐसे हालात में कुछ क्रांतिकारी संगठन गुप्त रूप से अंग्रेजों से लगातार मोर्चा ले रहे थे। ऐसा ही एक संगठन था, हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन, जिसका गठन 1924 में कानपुर में उत्तर प्रदेश तथा बंगाल के कुछ क्रांतिकारियों द्वारा किया गया। इस संगठन ने अपना घोषणापत्र द रिवोल्यूशनरी के नाम से देश के सभी प्रमुख स्थानों पर वितरित किया। आजादी का आंदोलन चलाने के लिए क्रांतिकारियों को धन की जरूरत पड़ती थी। इसी उद्देश्य से संगठन द्वारा रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में एक-दो राजनीतिक डकैतियां डाली गई। इन डकैतियों से अपेक्षानुरूप धन तो नहीं मिला, अलबत्ता एक-एक व्यक्ति जरूर मारा गया। यह तय किया गया कि अब इस तरह की डकैतियां नहीं डाली जाएंगी, मात्र सरकारी धन ही लूटा जाएगा। काकोरी सरकारी धन को लूटने की पहली बड़ी वारदात थी। आठ अगस्त, 1925 को शाहजहांपुर में बिस्मिल के घर पर क्रांतिकारियों की एक गुप्त बैठक हुई, जिसमें 08 डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर ट्रेन में डकैती डालने की योजना बनी, क्योंकि इसमें सरकारी खजाना लाया जा रहा था। तय किया गया कि लखनऊ से करीब पच्चीस किलोमीटर पहले पड़ने वाले स्थान काकोरी में ट्रेन डकैती डाली जाए। नेतृत्व बिस्मिल का था और इस योजना को फलीभूत करने के लिए 10 क्रांतिकारियों को शामिल किया गया, जिनमें अशफाक उल्ला खां, मुरारी शर्मा, बनवारी लाल, राजेंद्र लाहिड़ी, शचींद्रनाथ बख्शी, केशव चक्रवर्ती (छद्म नाम), चंद्रशेखर आजाद, मन्मथनाथ गुप्त एवं मुकुंदी लाल शामिल थे। इन क्रांतिकारियों के...

राष्ट्रीय समसामयिकी 5 (7

राष्ट्रीय समसामयिकी 5 (7-February-2022)^‘चौरी चौरा’ घटना की शताब्दी^(Centenary of 'Chauri Chaura' incident) Posted on February 7th, 2022 हाल ही में प्रधानमंत्री ने चौरी-चौरा कांड के सौ साल पूरे होने पर हमारे स्वतंत्रता संग्राम के नायकों को श्रद्धांजलि दी। ‘चौरी चौरा’ कांड: यह घटना ब्रिटिश भारत के अंतर्गत संयुक्त प्रांत (आधुनिक उत्तर प्रदेश) के गोरखपुर जिले के चौरी चौरा (Chauri Chaura) में घटित हुई थी। इस घटना के दौरान, असहयोग आंदोलन में भाग लेने वाले प्रदर्शनकारियों का एक बड़ा समूह पुलिस के साथ भिड़ गया, जिस पर पुलिस ने अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। इसकी जवाबी कार्रवाई में, प्रदर्शनकारियों ने एक पुलिस स्टेशन पर हमला किया और उसमे आग लगा दी, जिसमें थाने में उपस्थित सभी कर्मियों की मौत हो गयी। इसकी प्रतिक्रिया में, हिंसा के सख्त खिलाफ रहने वाले महात्मा गांधी ने 12 फरवरी 1922 को असहयोग आंदोलन को राष्ट्रीय स्तर पर स्थगित कर दिया। पृष्ठभूमि : 1 अगस्त 1920 को गांधी जी द्वारा सरकार के खिलाफ ‘असहयोग आंदोलन’ का आरंभ किया गया था। इस आंदोलन में, स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग और विदेशी वस्तुओं- विशेष रूप से मशीन-निर्मित वस्त्रों, कानूनी, शैक्षणिक और प्रशासनिक संस्थानों का बहिष्कार करना, अर्थात “कुशासन करने वाले शासक का हर तरह से असहयोग करना’ शामिल था। महात्मा गांधी और अन्य नेताओं की प्रतिक्रिया: महात्मा गांधी ने पुलिसकर्मियों की हत्या किए जाने की निंदा की। “वास्तविक सहानुभूति” प्रदर्शित करने और प्रायश्चित करने के लिए एक ‘चौरी चौरा सहायता कोष’ की स्थापना की गई थी। गांधी ने ‘कांग्रेस कार्यसमिति’ को इस मामले में अपनी मर्जी की आगे झुकने पर विवश किया और 12 फरवरी, 1922 को ‘असहयोग आंदोलन’ को औपचारि...