चौरी चौरा कांड कहाँ हुआ था

  1. चौरी चौरा कांड में भारत का वायसराय कौन था?
  2. [Solved] चौरी चौरा घटना किस वर्ष में हुई थी______ ।
  3. [Solved] चौरी
  4. चौरी चौरा कांड कहाँ हुआ था
  5. Kakori Kand in Hindi, Complete Information
  6. चौरी चौरा कांड के सौ साल
  7. कौन था वो दारोगा, जिसके फायरिंग आदेश के बाद हुआ चौरी चौरा कांड
  8. चौरी चौरा कांड कब और कहां हुआ था? – Expert
  9. कौन था वो दारोगा, जिसके फायरिंग आदेश के बाद हुआ चौरी चौरा कांड


Download: चौरी चौरा कांड कहाँ हुआ था
Size: 2.2 MB

चौरी चौरा कांड में भारत का वायसराय कौन था?

4 फरवरी 1922 को गोरखपुर का चौरीचौरा काण्ड हुआ था। अंग्रेजी हुकूमत के समय सम्भवत: देश का पहला यह काण्ड है जिसमें पुलिस की गोली खाकर जान गंवाने वाले आजादी के दीवानों के अलावा गुस्से का शिकार बने पुलिसवाले भी शहीद माने जाते हैं। पुलिसवालों को अपनी ड्यूटी के लिए शहीद माना जाता है तो आजादी की लड़ाई में जान गवाने से सत्याग्रहियों को। 4 फरवरी को दोनों अपनी-अपनी शहादत दिवस के रूप में मनाते हैं। थाने के पास बनी समाधी पर पुलिसवाले शहीद पुलिसकर्मियों को श्रद्धांजलि देते हैं। वहीं अंग्रेजी पुलिस के शिकार सत्याग्रहियों को पूरा देश श्रद्धांजलि देकर नमन करता है। Table of Contents Show • • • • • • शांति मार्च निकाल रहे सत्याग्रहियों पर पुलिस ने चलाई थी गोलियां फायरिंग की घटना से गुस्साई भीड़ ने फूंक दिया था चौरीचौरा थाना पुलिस की फायरिंग में 11 और थाना फूंकने में गई थी 23 की जान महात्मा गांधी ने विदेशी कपड़ों के बहिष्कार, अंग्रेजी पढ़ाई छोड़ने और चरखा चलाकर कपड़े बनाने का अह्वान किया था। उनका यह सत्याग्रह आंदोलन पूरे देश में रंग ला रहा था। 4 फरवरी 1922 दिन शनिवार को चौरीचौरा के भोपा बाजार में सत्याग्रही इकट्ठा हुए और थाने के सामने से जुलूस की शक्ल में गुजर रहे थे। तत्कालीन थानेदार ने जुलूस को अवैध मजमा घोषित कर दिया। एक सिपाही ने वालंटियर की गांधी टोपी को पांव से रौंद दिया। गांधी टोपी को रौंदता देख सत्याग्रही आक्रोशित हो गए। उन्होंने इसका विरोध किया तो पुलिस ने जुलूस पर फायरिंग शुरू कर दी। जिसमें 11 सत्याग्रही मौके पर ही शहीद हो गए जबकि 50 से ज्यादा घायल हो गए। गोली खत्म होने पर पुलिसकर्मी थाने की तरफ भागे। फायरिंग से भड़की भीड़ ने उन्हें दौड़ा लिया। थाने के पास स्थित एक दुकान से एक टीना ...

[Solved] चौरी चौरा घटना किस वर्ष में हुई थी______ ।

सही उत्‍तर है → 1922 । प्रमुख बिंदु • चौरी चौरा की घटना 1922 में उत्तर प्रदेश के गोरखपुरजिले में हुई थी। • चौरी-चौरा की घटना में, प्रदर्शनकारियों ने एक पुलिस स्टेशन में आग लगा दी जिसके कारण 23 पुलिसकर्मियों और तीन 3 नागरिकों की मौत हो गई थी। • चौरी चौरा घटना के कारण, महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया था। • चौरी चौरा की घटना के बाद 12 फरवरी 1922 को महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया था।

[Solved] चौरी

सही उत्तर 4फरवरी 1922है। • चौरी चौरा की घटना गोरखपुर जिले (उत्तर प्रदेश) के चौरी चौरा में 4 फरवरी 1922 को हुई, जब असहयोग आंदोलन में भाग लेने वाले प्रदर्शनकारियों का एक बड़ा समूह पुलिस के साथ भिड़ गया, जिसने फिर गोलियां चलाईं। • इस घटना के हिंसक होने के बाद महात्मा गांधी ने 12 फरवरी 1922 को इस घटना के प्रत्यक्ष परिणाम के रूप में 'असहयोग आंदोलन' को वापस ले लिया। • असहयोग आंदोलन की शुरुआत महात्मा गांधी ने 1920 में जलियांवाला बाग नरसंहार के बाद अंग्रेजों को देश से निकालनेके लिए की थी।

चौरी चौरा कांड कहाँ हुआ था

चौरी चौरा, उत्तर प्रदेश में गोरखपुर के पास का एक कस्बा है जहाँ 5 फ़रवरी 1922 को भारतीयों ने ब्रिटिश सरकार की एक पुलिस चौकी को आग लगा दी थी जिससे उसमें छुपे हुए 22 पुलिस कर्मचारी जिन्दा जल के मर गए थे। इस घटना को चौरीचौरा काण्ड के नाम से जाना जाता है। इसके परिणामस्वरूप गांधीजी ने कहा था कि हिंसा होने के कारण असहयोग आन्दोलन उपयुक्त नहीं रह गया है और उसे वापस ले लिया था।चौरी-चौरा कांड के अभियुक्तों का मुक़दमा पंडित मदन मोहन मालवीय ने लड़ा और उन्हें बचा ले जाना उनकी एक बड़ी सफलता थी इस घटना के तुरन्त बाद गांधीजी ने असहयोग आन्दोलन को समाप्त करने की घोषणा कर दी। बहुत से लोगों को गांधीजी का यह निर्णय उचित नहीं लगा। विशेषकर क्रांतिकारियों ने इसका प्रत्यक्ष या परोक्ष विरोध किया। गया कांग्रेस में रामप्रसाद बिस्मिल और उनके नौजवान सहयोगियों ने गांधीजी का विरोध किया। 1922 की गया कांग्रेस में खन्नाजी ने व उनके साथियों ने बिस्मिल के साथ कन्धे से कन्धा भिड़ाकर गांधीजी का ऐसा विरोध किया कि कांग्रेस में फिर दो विचारधारायें बन गयीं - एक उदारवादी या लिबरल और दूसरी विद्रोही या रिबेलियन। गांधीजीजी विद्रोही विचारधारा के नवयुवकों को कांग्रेस की आम सभाओं में विरोध करने के कारण हमेशा हुल्लड़बाज कहा करते थे।

द्विवेदी युग का समय सन 1900 से 1920 तक माना जाता है। बीसवीं शताब्दी के पहले दो दशक के पथ-प्रदर्शक, विचारक और साहित्य नेता आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के नाम पर ही इस काल का नाम 'द्विवेदी युग' पड़ा। इसे 'जागरण सुधारकाल' भी कहा जाता है। महावीर प्रसाद द्विवेदी हिन्दी के ऐसे पहले लेखक थे, जिन्होंने अपनी जातीय परंपरा का गहन अध्ययन ही नहीं किया था, अपितु उसे आलोचकीय दृष्टि से भी देखा। उन्होंने वेदों से लेकर पंडितराज जगन्नाथ तक के संस्कृत साहित्य की निरंतर प्रवाहमान धारा का अवगाहन किया एवं उपयोगिता तथा कलात्मक योगदान के प्रति एक वैज्ञानिक नज़रिया अपनाया। कविता की दृष्टि से द्विवेदी युग 'इतिवृत्तात्मक युग' था। इस समय आदर्शवाद का बोलबाला रहा। भारत का उज्ज्वल अतीत, देश-भक्ति, सामाजिक सुधार, स्वभाषा-प्रेम आदि कविता के मुख्य विषय थे। नीतिवादी विचारधारा के कारण श्रृंगार का वर्णन मर्यादित हो गया। कथा-काव्य का विकास इस युग की विशेषता है। मैथिलीशरण गुप्त, अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध', श्रीधर पाठक, रामनरेश त्रिपाठी आदि इस युग के यशस्वी कवि थे। जगन्नाथदास 'रत्नाकर' ने इसी युग में ब्रजभाषा में सरस रचनाएँ प्रस्तुत कीं। नामकरण आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के नाम पर ही यह काल 'द्विवेदी युग' के नाम से जाना जाता है। इसे 'जागरण-सुधारकाल' भी कहा जाता है। इस समय ब्रिटिश दमन-चक्र बहुत बढ़ गया था। जनता में असंतोष और क्षोभ की भावना प्रबल थी। ब्रिटिश शासकों द्वारा लोगों का अर्थिक-शोषण भी चरम पर था। देश के स्वाधीनता संग्राम के नेताओं द्वारा पूर्ण-स्वराज्य की मांग की जा रही थी। गोपालकृष्ण गोखले और लोकमान्य गंगाधर तिलक जैसे नेता देश के स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व कर रहे थे। इस काल के साहित्यकारों ने न...

Kakori Kand in Hindi, Complete Information

Kakori Kand History story information in Hindi | काकोरी कांड का इतिहास कहानी और जानकारी हिंदी में भारत का स्वाधीनता संग्राम 1857 से लेकर 1947 तक कई महान आंदोलनों का गवाह बना| लेकिन कुछ ऐसे आन्दोलन भी थे जिन्हें बहुत कम अहमियत दी गई| कई इतिहासकारों ने तो इन घटनाओं को स्वतंत्रता संग्राम के आन्दोलन मानने से ही इनकार कर दिया| लेकिन जब जब जिस जिस आन्दोलन ले भारत की जनता के ह्रदय को आज़ादी की स्वछन्द तरंगों से आंदोलित किया हो भला उस बलिदान का कैसे आज़ादी की लड़ाई में योगदान नहीं हो सकता है| ऐसी ही एक घटना काकोरी उत्तर प्रदेश में 9 अगस्त 1925 में हुई, जिसने भारत के युवा वर्ग को होसले और हिम्मत से भर दिया| ऐसा साहस भारत में 1857 की लड़ाई के बाद पहली बार देखने को मिला जहाँ सीधा अंग्रेजों के राज को चंद बहादुर लड़कों ने चुनोती दी| दोस्तो, आइये आज चर्चा करेंगे स्वतंत्रता आन्दोलन के (Kakori Kand) काकोरी कांड की, कहाँ हुआ, किसने किया, क्या इसका इतिहास और काकोरी कांड में कोन कोन लोग इसमें शामिल थे| Kakori Kand in Hindi नाम काकोरी कांड तारीख 9 अगस्त 1925 कहाँ हुआ था काकोरी उत्तर प्रदेश क्या हुआ था सरकारी खजाना लुटा गया था करीब 4601 रूपए किसको मिली सजा रामप्रसाद बिस्मिल, राजेंद्र लाहिड़ी, ठाकुर रोशन सिंह को फांसी सचिन्द्र सान्याल को आजीवन कारावास, मन्मथनाथ गुप्त को 14 वर्ष का कारावास क्यों लूटा खजाना हथियार खरीदने के लिए, काकोरी कांड के बारे में जानकारी इस घटना के तार जुड़ते हैं 1923 से, जब सर्वप्रथम शचीन्द्रनाथ सान्याल ने एक क्रांतिकारी पार्टी ‘हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन (एच आर ए) की स्थापना की थी| इस क्रन्तिकारी संगठन का मुख्य कार्य अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों का हिंसा के माध्यम से जबाव देना...

चौरी चौरा कांड के सौ साल

• हमारे बारे में • • • • • • • सिविल सेवा परीक्षा • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • प्रारंभिक परीक्षा • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • मुख्य परीक्षा • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • प्रैक्टिस टेस्ट • • • • • • • • • • • • • • • • • पी.सी.एस. • • • • • • • • • टेस्ट सीरीज़ • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • करेंट अफेयर्स • • • • • • • • • दृष्टि स्पेशल्स • • • • • • • • • • • • • • • • • • • डाउनलोड्स • • • • • • • • • • • • • • • • • • • वीडियो सेक्शन • • • • • • • • • • • • और देखें टैग्स: • • • चर्चा में क्यों? हाल ही में चौरी चौरा ( Chauri Chaura) कांड के सौ साल पूरे होने के अवसर पर प्रधानमंत्री द्वारा एक डाक टिकट जारी किया गया है। • चौरी चौरा, उत्तर प्रदेश के गोरखपुर ज़िले में स्थित एक कस्बा है। • इस कस्बे में 4 फरवरी, 1922 को एक हिंसक घटना घटित हुई थी। किसानों की भीड़ ने यहाँ के एक पुलिस स्टेशन में आग लगा दी जिसके कारण 22 पुलिस कर्मियों की मौत हो गई। इस घटना को देखकर महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) ने असहयोग आंदोलन (Non-Cooperation Movement- 1920-22) को वापस ले लिया। प्रमुख बिंदु पृष्ठभूमि (असहयोग आंदोलन की शुरुआत): • गांधीजी ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ 1 अगस्त, 1920 को असहयोग आंदोलन शुरू किया था। • इस आंदोलन के तहत गांधीजी ने उन सभी वस्तुओं (विशेष रूप से मशीन से बने कपड़े), संस्थाओं और व्यवस्थाओं का बहिष्कार करने का फैसला लिया था जिसके तहत अंग्रेज़ भारतीयों पर शासन कर रहे थे। • वर्ष 1921-22 की सर्दियों में कॉन्ग्रेस के स्वयंसेवकों और खिलाफत आंदोलन (Khilafat Movement) के कार्यकर्त्ताओं को एक राष...

कौन था वो दारोगा, जिसके फायरिंग आदेश के बाद हुआ चौरी चौरा कांड

04 फरवरी 1922 के दिन चौरा में स्वयंसेवकों की भीड़ नारा लगाते हुए थाना परिसर के दक्षिण पूरब कोने से उत्तर दिशा में मुड़कर आगे बढ़ रही थी. उसे चौरा बाजार, बाले गांव होते हुए मुंडेरा बाजार की ओर जाना था. प्रदर्शनकारियों का ये जुलूस शांतिपूर्ण था. उसकी थाने पर आक्रमण करने की कोई योजना नहीं थी. ना उसके नेताओं ने ऐसा कुछ करने का निर्देश दिया था. अभी ये जुलूस थाने के पास से आगे बढ़ ही रहा था कि 300 स्वयंसेवक थाने के पास रुक गए. उन्होंने वहां खड़े दारोगा से पूछा कि उन्होंने मुंडेरा बाजार में उनके भाइयों को क्यों मारा. स्वयंसेवकों के ताली बजाने पर दारोगा नाराज हो गया थानेदार ने अपनी सफाई दी, जिस पर स्वयंसेवक संतुष्ट नजर आए. वो आगे बढ़ गए. लेकिन दारोगा के साथ खड़े सरदार हरचरन ने बाद में कहा, दारोगा ने इसके बाद हाथ उठाकर जुलूस को गैर-कानूनी घोषित किया. स्वयंसेवकों ने आगे जाकर जब तालियां बजानी शुरू कीं तो दारोगा ने इसे अपना अपमान समझा. क्या था दारोगा का नाम तब चौरा थाने में तैनात दारोगा का नाम गुप्तेश्वर सिंह था. उसकी उम्र 35 से 40 साल के बीच की थी. बाद में अदालत में दी गई जानकारी से मालूम हुआ कि वो आजमगढ़ के किसी गांव का रहने वाला था. पहले सेना में रह चुका था. सेना से रिटायरमेंट के बाद उसने पुलिस में नौकरी शुरू की थी. उसे 03-04 कमरों का एक बड़ा घर थाने के बगल में ही सरकार द्वारा दिया गया था. जहां वो अपने परिवार के साथ रहता था. दारोगा ने भीड़ पर लाठीचार्ज का आदेश दिया दारोगा के आदेश पर चौकीदारों ने जमीन पर लाठी ठकठकाना शुरू कर दिया. हालांकि साक्ष्य ये कहते हैं कि दारोगा ने उन्हें लाठीचार्ज का आदेश दिया था. बस चौकीदार पुलिसवालों ने लाठियां बरसानी शुरू कर दीं. स्वयंसेवकों ने बदले में पत...

चौरी चौरा कांड कब और कहां हुआ था? – Expert

Table of Contents • • • • • • • • • • चौरी चौरा कांड कब और कहां हुआ था? क्या है पूरी घटना? जब चौरी चौरा की घटना 4 अप्रैल 1922 में हुई तब प्रदर्शनकारियों ने मार्केट लेन चौरा की तरफ अपना रुख मोड़ लिया तब उनपर और असहयोग आंदोलन कर रहे लोगों पर गोलियों की बौछार कर दी गई जिसके परिणामस्वरूप उन्होंने कई पुलिस स्टेशनों को आग के हवाले कर दिया। चौरी चौरा नाम का प्रसिद्ध स्थल कहाँ है? चौरी चौरा, उत्तर प्रदेश में गोरखपुर के पास का एक कस्बा था (वर्तमान में तहसील है) जहाँ 4 फ़रवरी 1922 को भारतीयों ने ब्रिटिश सरकार की एक पुलिस चौकी को आग लगा दी थी जिससे उसमें छुपे हुए 22 पुलिस कर्मचारी जिन्दा जल के मर गए थे। इस घटना को चौरीचौरा काण्ड के नाम से जाना जाता है। चोरा चोरी कांड का नया नाम क्या है? जिसकी जगह दोनों घटनाओं को अब नए नाम से जाना जाएगा। योगी सरकार ने काकोरी ट्रेन लूट कांड को अब “काकोरी ट्रेन एक्शन” के नाम से जाना जाएगा। इसी तरह चौरी चौरा कांड का भी नाम बदलकर ‘चौरी चौरा क्रांति” करने का फैसला लिया गया है। READ: हिमालय का निर्माण कैसे होता है? 5 फरवरी 1922 में क्या हुआ था? सही उत्तर चौरी-चौरा की घटना है। चोरा चोरी कांड क्यों प्रसिद्ध है? महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन के दौरान 4 फरवरी 1922 को कुछ लोगों की गुस्साई भीड़ ने गोरखपुर के चौरी-चौरा के पुलिस थाने में आग लगा दी थी. इसमें 23 पुलिस वालों की मौत हो गई थी. इस घटना के दौरान तीन नागरिकों की भी मौत हो गई थी. चोर चोरी कांड क्यों हुआ? 1922 की गया कांग्रेस में प्रेमकृष्ण खन्ना व उनके साथियों ने रामप्रसाद बिस्मिल के साथ कन्धे से कन्धा भिड़ाकर गांधीजी का विरोध किया। चौरी-चौरा कांड के अभियुक्तों का मुकदमा पंडित मदन मोहन मालवीय ने लड़ा और अध...

कौन था वो दारोगा, जिसके फायरिंग आदेश के बाद हुआ चौरी चौरा कांड

04 फरवरी 1922 के दिन चौरा में स्वयंसेवकों की भीड़ नारा लगाते हुए थाना परिसर के दक्षिण पूरब कोने से उत्तर दिशा में मुड़कर आगे बढ़ रही थी. उसे चौरा बाजार, बाले गांव होते हुए मुंडेरा बाजार की ओर जाना था. प्रदर्शनकारियों का ये जुलूस शांतिपूर्ण था. उसकी थाने पर आक्रमण करने की कोई योजना नहीं थी. ना उसके नेताओं ने ऐसा कुछ करने का निर्देश दिया था. अभी ये जुलूस थाने के पास से आगे बढ़ ही रहा था कि 300 स्वयंसेवक थाने के पास रुक गए. उन्होंने वहां खड़े दारोगा से पूछा कि उन्होंने मुंडेरा बाजार में उनके भाइयों को क्यों मारा. स्वयंसेवकों के ताली बजाने पर दारोगा नाराज हो गया थानेदार ने अपनी सफाई दी, जिस पर स्वयंसेवक संतुष्ट नजर आए. वो आगे बढ़ गए. लेकिन दारोगा के साथ खड़े सरदार हरचरन ने बाद में कहा, दारोगा ने इसके बाद हाथ उठाकर जुलूस को गैर-कानूनी घोषित किया. स्वयंसेवकों ने आगे जाकर जब तालियां बजानी शुरू कीं तो दारोगा ने इसे अपना अपमान समझा. क्या था दारोगा का नाम तब चौरा थाने में तैनात दारोगा का नाम गुप्तेश्वर सिंह था. उसकी उम्र 35 से 40 साल के बीच की थी. बाद में अदालत में दी गई जानकारी से मालूम हुआ कि वो आजमगढ़ के किसी गांव का रहने वाला था. पहले सेना में रह चुका था. सेना से रिटायरमेंट के बाद उसने पुलिस में नौकरी शुरू की थी. उसे 03-04 कमरों का एक बड़ा घर थाने के बगल में ही सरकार द्वारा दिया गया था. जहां वो अपने परिवार के साथ रहता था. दारोगा ने भीड़ पर लाठीचार्ज का आदेश दिया दारोगा के आदेश पर चौकीदारों ने जमीन पर लाठी ठकठकाना शुरू कर दिया. हालांकि साक्ष्य ये कहते हैं कि दारोगा ने उन्हें लाठीचार्ज का आदेश दिया था. बस चौकीदार पुलिसवालों ने लाठियां बरसानी शुरू कर दीं. स्वयंसेवकों ने बदले में पत...