छायावाद के प्रवर्तक कवि

  1. छायावादी काव्य की पांच विशेषताएं लिखिए तथा इसके प्रवर्तक कवि का नाम भी लिखिए? » Chhayavadi Kavya Ki Paanch Visheshtayen Likhiye Tatha Iske Pravartak Kavi Ka Naam Bhi Likhiye
  2. छायावादी कवि के नाम और उनकी रचनाएँ
  3. छायावादी युग के कवि और उनकी रचनाएं
  4. छायावाद में मुकुटधर पाण्डेय की भूमिका (आलेख) – अभिव्यक्ति
  5. छायावाद
  6. हालावाद के प्रवर्तक हरिवंश राय बच्चन
  7. जयंती विशेष: प्रेम, सौंदर्य और रोमांच के रचनाकार थे कवि जयशंकर प्रसाद
  8. Uttar Chhayavad Ke Kavi


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छायावादी काव्य की पांच विशेषताएं लिखिए तथा इसके प्रवर्तक कवि का नाम भी लिखिए? » Chhayavadi Kavya Ki Paanch Visheshtayen Likhiye Tatha Iske Pravartak Kavi Ka Naam Bhi Likhiye

चेतावनी: इस टेक्स्ट में गलतियाँ हो सकती हैं। सॉफ्टवेर के द्वारा ऑडियो को टेक्स्ट में बदला गया है। ऑडियो सुन्ना चाहिये। छायावाद के संदर्भ में अधिकतर विद्वानों का मानना है कि यह स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह 1830 जीवन की अभिव्यक्ति के विरुद्ध भावना एवं कल्पना कविता शाहबाद की समिति मां अट्ठारह सौ से अब तक है चाय बाद की निम्नलिखित विशेषताओं का वर्णन इस प्रकार है व्यक्ति स्वतंत्र अथवा आतंकवादी कविता शादी कभी अपनी भावनाओं को सीधे व्यक्त करना चाहते हैं वह अपने एवं अपने प्रिय प्रिय सी के विषय में स्पष्ट कविता करना चाहते हैं कहने का अभिप्राय है कि छायावादी सभी कवि निर्माता पूर्वक अपने निजी सुख दुख हर चौक आशा निराशा आदि को अभिव्यक्त करते हैं और शायद कभी प्रेम सुंदरी के कवि हैं उनका सौंदर्य बस तू ही नहीं बल्कि पर भाग में है में रहता है मैं कभी प्रकृति के पुजारी हैं इसलिए उन्होंने प्रकृति एवं अलौकिक सौंदर्य का वर्णन किया हेलो प्रेम भावना शादी कविता अलौकिक प्रेम अथवा अलौकिक प्रेम के संगम की कविताएं कवियों ने अपने प्रेमा नवाब कहा समाप्त होते हैं और कहां ईश्वरीय प्रेम प्रारंभ हो जाता है उनके काव्य में इस बात का पता भी नहीं चलता उनके काव्य में प्रेम वासना की जगह भावुकता एवं आदर्श अधिक रहस्यवाद छायावाद के सभी कवि प्रकृति एवं अलौकिक प्रेम को खोजते रहते हैं जिससे उनके काव्य में जिज्ञासा तथा मिलन सभी के गीत उपलब्ध है बेटा और निराशा छायावादी कवि विश्व की वेदना से स्रावित होते हैं यह करना भाग से प्रभु से माता के कल्याण के लिए प्रार्थना करते हैं chaayavaad ke sandarbh mein adhiktar vidvaano ka manana hai ki yah sthool ke prati sukshm ka vidroh 1830 jeevan ki abhivyakti ke viruddh bhavna evam...

छायावादी कवि के नाम और उनकी रचनाएँ

छायावादी काव्य का प्रारम्भ कब हुआ? यह प्रश्न आज भी विवाद का विषय बना हुआ है। स्थूल रूप से यह माना जाता है कि द्विवेदी युगसन् 1920 के बाद निष्पभाव हो गया था। वस्तुतः आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी द्वारा संपादित पत्रिका‘‘सरस्वती‘‘ ही संपादन अवधि को ही द्विवेदी युग की संज्ञा देना उपयुक्त है। उनके कार्यकाल के अन्तिम चरण में (सन् 1915 के आसपास) छायावाद का आरंभ अब लगभग सर्व मान्य हो गया है। ‘‘छायावाद‘‘ जैसा कि पहले ही चर्चा की गई है, अपने आप में कविता का एक ऐसा युग है जिसका सम्बन्ध भाव-जगत से हे, हृदय की भूमि से है। भावलोक की तो सत्ता ही अनुभव विषय हे, हृदय से जानने, समझने ओर महसूस करने की वस्तु है। उसी छायावाद में समय.समय पर अनेक रचनाकारों ओर कवियों का समावेश होता रहा। कभी वहाँ‘‘बृहतत्रयी‘‘ के रूप में‘‘प्रसाद‘‘, ‘‘निराला‘‘ ओर ‘‘पन्त‘‘ की चर्चा की जाती रही तो कभी बृहच्चतुष्ट्य के रूप में इन तीनों कवियों के साथ ‘‘महादेवी‘‘ का नाम जोडकर देखा जाता रहा। कुल मिलाकर छायावाद प्रमुख कवियों या आधार स्तम्भों में इन चारों महाकवियों की चर्चा, किसी न किसी रूप में चलती ही रही। यह अलग बात है कि इन चार कवियों के साथ.साथ छायावाद के अन्य कवियों में, उत्तरछायावादी कवि या गौण छायावाद कवि कहकर माखनलाल चतुर्वेदी, डाॅ. रामकुमार वर्मा, जानकीबल्लभ शास़्त्री, हरिकृष्ण प्रेमी, जनार्दन झा‘‘द्विज‘‘, लक्ष्मी नारायण मिश्र, इलाचन्द्र जोशी, डाॅ. नगेन्द्र, चन्र्द र्पकाश सिंह, विद्यावती कोकिल, तारा पाण्डेय, मुकुटधर पाण्डेय, उदय शंकर भट्ट तथा नरेन्द्र शर्मा आदि कवियों को भी इसमें समाविष्ट किया जाता रहा। वे उन्नाव जिले के गढकोला गाँव के रहने वाले कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे। महिशादल राज्य में ये नौकरी करने आये थे और वही...

छायावादी युग के कवि और उनकी रचनाएं

छायावादी कवि और उनकी रचनाएँ छायावाद की कालावधि 1920 या 1918 से 1936 ई. तक मानी जाती है। वहीं इलाचंद्र जोशी, शिवनाथ और प्रभाकर माचवे ने छायावाद का आरंभ लगभग 1912-14 से माना है। द्विवेदी युगीन काव्य की प्रतिक्रिया में छायावाद का जन्म हुआ था।रामचंद्र शुक्ल ने भी लिखा है की ‘छायावाद का चलन द्विवेदी-काल की रुखी इतिवृत्तात्मकता की प्रतिक्रिया के रूप में हुआ था।’ छायावाद का सर्वप्रधान लक्षण आत्माभिव्यंजना है। लिखित रूप में छायावाद शब्द के प्रथम प्रयोक्ता मुकुटधर पांडेय थे, इन्होंने ‘हिंदी में छायावाद’ लेख में सर्वप्रथम इसका प्रयोग किया। यह लेख जबलपुर से प्रकाशित होने वाली पत्रिका ‘श्री शारदा’ (1920 ई.) में चार किस्तों में प्रकाशित हुआ था। सुशील कुमार ने भी सरस्वती पत्रिका (1921 ई.) में ‘हिन्दी में छायावाद’ शीर्षक लेख लिखा था। यह लेख मूलतः संवादात्मक निबंध था, इस संवाद में सुशीला देवी, हरिकिशोर बाबू, चित्राकार, रामनरेश जोशी, पंत ने भाग लिया था। आचार्य शुक्ल ने छायावाद का प्रवर्तक मुकुटधर पांडेय और मैथिलीशरण गुप्त को मानते हैं और नंददुलारे वाजपेयी पंत तथा उनकी कृति ‘उच्छ्वास’(1920) से छायावाद का आरंभ माना है। वहीं इलाचंद्र जोशी और शिवनाथ ने ‘जयशंकर प्रसाद’ को छायावाद का जनक मानते हैं। विनयमोहन शर्मा,प्रभाकर माचवे ने ‘माखनलाल चतुर्वेदी’ को छायावाद का प्रवर्तक माना है। छायावादी युग के प्रमुख कवि और उनकी रचनाएँ 1.जयशंकर प्रसाद(1889-1936) छायावादी रचनाएं: झरना (1918), आंसू (1925), लहर (1933), कामायनी (1935) अन्य रचनाएं: उर्वशी (1909), वन मिलन (1909), प्रेम राज्य (1909), अयोध्या का उद्धार (1910), शोकोच्छवास (1910), वभ्रुवाहन (1911), कानन कुसुम (1913), प्रेम पथिक (1913), करुणालय (1913), ...

छायावाद में मुकुटधर पाण्डेय की भूमिका (आलेख) – अभिव्यक्ति

हिन्दी साहित्य को पढ़ना और पढ़ाना जितना आसान समझा जाता है, असल में यह उतना आसन है नहीं। हिन्दी साहित्य में अनेक विधाएं हैं। उन सभी विधाओं में काव्य और काव्य की विधा में ‘छायावाद’ का तो कुछ कहना ही नहीं। छायावाद हिन्दी साहित्य की अत्यंत समृद्ध, सौन्दर्यशालिनी, सशक्त एवं कलात्मक काव्यधारा रही है। हिन्दी साहित्य के इतिहास में आधुनिक काल का इसे तृतीय उत्थान माना जाता है। सन् 1918 ई० के आसपास प्रथम विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद जो राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक परस्थितियाँ थी, उनसे प्रेरणा लेकर एक नवीन कल्पना, प्रवीण कवियों का काव्य प्रस्फुटित हुआ। वह काव्य था छायावाद। छायावाद ने भावों को नया परिवेश और नई अभिव्यक्ति दिया। प्राचीन संस्कृति, साहित्य और मध्यकालीन हिन्दी साहित्य से छायावाद ने सांस्कृतिक और भावात्मक संबंध को जोड़ दिया। छायावाद आधुनिक हिन्दी साहित्य का एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। यह भक्ति साहित्य आन्दोलन के बाद का सबसे महत्वपूर्ण काव्यान्दोलन है। जहाँ काव्य, दर्शन, कला और कल्पना का मिलन होता है। यहाँ जीवन का जगत से और मानव का प्रकृति से समन्वय है। यद्यपि छायावाद के भाग्य का उदय द्विवेदी युग के उतरार्ध में ही हो गया था, किन्तु इसका नामकरण सन् 1920 ई० में श्री मुकुटधर पाण्डेय जी के द्वारा किया गया। वे प्रगतिवाद के रचनाकार थे। उन्होंने अपने काव्य में उन आत्मगत भावनाओं को स्थान दिया जो द्विवेदी युग के काव्य प्रवृति से भिन्न थे। नवीन कोटि की अभिव्यंजना प्रणाली के साथ-साथ भावात्मक तथा परोक्ष सत्ता के प्रति समर्पण भाव उनकी काव्य की विशेषता थी। उनकी आध्यात्मिक भावना ठाकुर रविन्द्रनाथ की आध्यात्मिकता एवं मानवतावादी विचारधारा से प्रभावित थी। ‘छायावादी’ विद्वानों का मानना था ...

छायावाद

विषय सूची • 1 क्या है छायावाद? • 2 समय काल • 3 छायावाद शब्द का प्रयोग • 3.1 समाज का अन्तर्विरोध • 4 मुख्य कवि • 5 परिभाषाएँ • 5.1 महत्त्वपूर्ण तथ्य • 6 रचनाएँ • 6.1 प्रकृति चित्रण • 7 प्रसाद की 'कामायनी' • 7.1 प्रेमगीतात्मक प्रवृत्ति • 8 साम्य • 8.1 काव्य शैली की विशेषता • 9 टीका टिप्पणी और संदर्भ • 10 संबंधित लेख क्या है छायावाद? 'छायावाद' के स्वरूप को समझने के लिए उस पृष्ठभूमि को समझ लेना आवश्यक है, जिसने उसे जन्म दिया। हिन्दी कविता के क्षेत्र में प्रथम महायुद्ध ( समय काल छायावाद शब्द का प्रयोग हिन्दी की कुछ पत्रिकाओं- 'श्रीशारदा' और ' दूसरी ओर समाज का अन्तर्विरोध छायावादी मुख्य कवि 'छायावाद' का केवल पहला अर्थात् मूल अर्थ लेकर तो हिन्दी काव्य क्षेत्र में चलने वाली • • • • • • • नन्द दुलारे वाजपेयी • • • • • "छायावाद के परिभाषाएँ 'छायावाद' का नामकरण भले ही बिना सोचे समझे कर दिया गया हो, किंतु परिभाषाओं की दृष्टि से यह बड़ा सौभाग्यशाली है। विभिन्न विद्वानों ने अपने अपने ढंग से छायावाद की इतनी अधिक और विचित्र परिभाषाएँ दी हैं कि उन्हें पढ़कर चाहे 'छायावाद' समझ में आये या न आये, पाठक के मस्तिष्क पर अवश्य 'छायावाद' छा जाता है। 'छायावाद' अपने युग की अत्यंत व्यापक प्रवृत्ति रही है। फिर भी यह देख कर आश्चर्य होता है कि उसकी परिभाषा के संबंध में विचारकों और समालोचकों में एकमत नहीं हो सका। • • • डॉ. राम कुमार वर्मा ने 'छायावाद' और ' • आचार्य नंददुलारे वाजपेयी का मंतव्य है- "मानव अथवा प्रकृति के सूक्ष्म किंतु व्यक्त सौंदर्य में आध्यात्मिक छाया का भान मेरे विचार से 'छायावाद' की एक सर्वमान्य व्याख्या हो सकती है। 'छायावाद' की व्यक्तिगत विशेषता दो रूपों में दीख पड़ती है- एक सूक्ष्म और क...

हालावाद के प्रवर्तक हरिवंश राय बच्चन

प्रतापगढ़ में बाबूपट्टी के बच्चन इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में अंग्रेज़ी पढ़ाते मगर कविताएं हिंदी में करते. उनके दो दर्जन से ज़्यादा कविता संग्रह छपे मगर ज़माना उन्हें याद करता है, ‘मधुशाला’ के लिए. निःसंदेह वह हालावाद के प्रवर्तक रहे भी. हाला को जीवन का प्रतीक बनाकर, उन्होंने अपनी कविताओं में जो जीवन दर्शन दिया, वह पाठकों के सामने मधुशाला के रूप में आया. उनकी कविताओं में हाला जीवन की कटुताओं, विषमताओं, कुंठाओं तथा अतृप्तियों के विरुद्ध प्रतिक्रिया स्वरूप आई. हाला जीवन के विक्षोभ को प्रकट करने का साधन और रूढ़िवादियों, सम्प्रदायवादियों और धर्म के ठेकेदारों पर चोट करने का हथियार बन गई. हरिवंश राय बच्चन की कविताओं में शराब कहीं जीवन, कहीं मस्ती, कहीं मादकता और अद्वैतवाद का पर्याय बनकर आती है -‘‘घृणा का देते हैं उपदेश यहां धर्म के ठेकेदार/ खुला है सबके हित, सब काल हमारी मधुशाला का द्वार.’’ हिंदी कविता में छायावाद के बाद जब कविता में हर रोज़ नए प्रयोग हो रहे थे, यह हरिवंश राय बच्चन ही थे, जिन्होंने किसी भी धारा में न बहते हुए अपनी एक जुदा राह बनाई. वह जिजीविषा, जीवटता के कवि-गीतकार थे – ‘‘जीवित है तू आज मरा सा, पर मेरी यह अभिलाषा/चिता निकट भी पहुंच सकूं अपने पैरों-पैरों चलकर.’’ उमर ख़ैयाम की रुबाईयों और सूफ़ी मत का असर उन पर शुरू से ही था. सूफ़ियों के जीवन दर्शन का तो शराब एक हिस्सा थी. हालांकि, लौकिक प्रेम के समान उसे भी ‘शराबे मारिफ़त’ के रूप में अलौकिक बना दिया गया था. ‘‘बैर बढ़ाते मंदिर-मस्जिद, मेल कराती मधुशाला.’’ बच्चन की रचनाओं में जीवन के प्रति अनुराग है, न कि शराब पीने की हिमायत. सच बात तो यह है कि उनकी रचनाओं में हाला, प्रतीकात्मक रूप में आकर आध्यात्मिक रहस्यों के पर्दे हटात...

जयंती विशेष: प्रेम, सौंदर्य और रोमांच के रचनाकार थे कवि जयशंकर प्रसाद

जयंती विशेष: आज ही के दिन छायावाद के प्रवर्तक कवि जयशंकर प्रसाद का जन्म काशी, उत्तर प्रदेश में हुआ। कवि जयशंकर प्रसाद ने कविता ही नहीं नाटक, उपन्यास, कहानियों और निबंध सबमें अपनी लेखनी छोड़ी। उनका प्रसिद्ध रचना कामायनी को आज भी साहित्य प्रेमी बड़ी गंभीरता से पढ़ते हैं। जयशंकर प्रसाद इंदु पत्रिका के संपादक थे। इसके साथ ही उनकी रचनाओं में कामायनी के अलावा आंसू, झरना, लहर, उर्वशी, अजातशत्रु, कंकाल, तितली, कामना, चंद्रगुप्त, राज्यश्री, प्रेम-पथिक जैसी अन्य रचनाएं हैं। प्रेम, आइए जानें कवि जयशंकर प्रसाद के विचार :- • दरिद्रता सब पापों की जननी है तथा लोभ उसकी सबसे बड़ी • अधिक हर्ष और अधिक उन्नति के बाद ही अधिक दु:ख और पतन की बारी आती है। • आत्म-सम्मान के लिए मर-मिटना ही दिव्य जीवन है। • जागृत राष्ट्र में ही विलास और कलाओं का आदर होता है। • निद्रा भी कैसी प्यारी वस्तु है। घोर दु:ख के समय भी मनुष्य को यही सुख देती है। • मनुष्य, दूसरों को अपने मार्ग पर चलाने के लिए रुक जाता है, और अपना चलना बन्द कर देता है। • स्त्री का हृदय प्रेम का रंगमंच है। • पुरुष क्रूरता है तो स्त्री करुणा है। • जिसकी भुजाओं में दम न हो उसके मस्तिष्क में तो कुछ होना ही चाहिए। • ऐसा जीवन तो विडंबना है जिसके लिए दिन-रात लड़ना पड़े। • संसार ही युद्ध क्षेत्र है, इसमें पराजित होकर शस्त्र अर्पण करके जीने से क्या लाभ। • अन्य देश मनुष्यों की जन्मभूमि है, लेकिन भारत मानवता की जन्मभूमि है। • जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है—प्रसन्नता। यह जिसने हासिल कर ली, उसका जीवन सार्थक हो गया। • स्त्री जिससे प्रेम करती है उसी पर सर्वस्व वार देने को समर्पित हो जाती है। • दो प्यार करने वालों के बीच स्वर्गीय ज्योति का निवास होता है। • क्षम...

Uttar Chhayavad Ke Kavi

Contents • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • Uttar Chhayavad Ke Kavi | उत्तर छायावाद के कवि एवं उनकी रचनाएँ हेलो दोस्तों ! एक बार फिर से स्वागत है आपके चहेते Uttar Chhayavad Ke Kavi | उत्तर छायावाद के कवि एवं उनकी रचनाओ के बारे में अध्ययन करने जा रहे है। आज के नोट्स में हम उत्तर छायावाद क्या है ? इसकी प्रवृत्तियां तथा इसके प्रमुख कवियों के बारे में विस्तार से जानेंगे। तो चलिए शुरू करते है : Uttar Chhayavad | उत्तर छायावादी युग छायावादी काव्य में सांस्कृतिक नवजागरण का बोध होता है। वहीँ 1930 के बाद छायावाद में कुछ परिवर्तन हमें दिखाई देता है जिसे हम उत्तर छायावाद के नाम से जानते हैं। उत्तर छायावादी प्रवृत्ति एक अल्पकालिक प्रवृत्ति रही है। उत्तर छायावादी काव्य ने केवल छायावादी काव्य में बदलाव लाने का कार्य किया और एक अन्य जागृत युग की आधार भूमि तैयार की। इस काल के आरंभ में प्रणय के स्पष्ट और शरीरी रूप को अधिक व्यक्त किया गया है। व्यक्तिगत जीवन में प्रणय की तृष्टि करना ही उनका एकमात्र लक्ष्य रहने के कारण काव्य में क्षोभ और निराशा का वातावरण महसूस होने लगा। जैसे : “इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा।” इस प्रकार अनेक आशा-निराशाओं के द्वंद की स्थिति इन कवियों के वैचारिक जगत में रही। जीवन के विकास में जिन चीजों को नकारा गया।इन कवियों ने उन्हें ही काव्य में सबसे अधिक स्वीकृति दी। उत्तर छायावादी कवियों के सौंदर्य की उपासना, नारी प्रेम, आराधना और भक्ति आदि बिंदु समान है। Uttar Chhayavad | उत्तर छायावाद की प्रवृत्तियां उत्तर छायावाद की निम्न प्रवृत्तियां दृष्टिगोचर होती है : • जीवन संघर्ष से पलायन। • शारीरिक भोग एवं ऐन्द्रिकता। • वैक्तिक अभावों की ...