Chhayawadi yug ke pramukh lekhak hain

  1. भारत का इतिहास
  2. Bhartendu Yug Ke Kavi
  3. छायावादी युग के कवि और उनकी रचनाएं
  4. द्विवेदी युग के कवि और उनकी रचनाएँ
  5. Dwivedi Yug Ke Kavi
  6. छायावादी युग की प्रमुख रचनाएं? » Chhayavadi Yug Ki Pramukh Rachnaye


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भारत का इतिहास

7000-3300 ee.poo 1700-1300 ee.poo 700–300 ee.poo 545–320 ee.poo 230 ee.poo-199 ee. 321–184 ee.poo 184–123 ee.poo 123 ee.poo–200 ee. 60–240 ee. poorv madhyakalin bharat- 240 ee.poo– 800 ee. 250 ee.poo- 1070 ee. 280–550 ee. 750–1174 ee. 830–963 ee. 900–1162 ee. 1206–1526 ee. 1206-1290 ee. 1290-1320 ee. 1320-1414 ee. 1414-1451 ee. 1451-1526 ee. 1526–1857 ee. 1490–1596 ee. 1358-1518 ee. 1490-1565 ee. 1040-1565 ee. 736-973 ee. 1040–1346 ee. 1083-1323 ee. 1326-1565 ee. 1674-1818 ee. sikh rajyasangh 1716-1849 ee. 1760-1947 ee. sattar hazar sal purana hone ki sanbhavana hai. is vyakti ke gunasootr afriqa ke prachin manav ke jaivik gunasootroan (jins) se poori tarah milate haian. prachin bharatiy itihas ke srot bharatiy itihas janane ke srot ko tin bhagoan mean vibhajit kiya ja sakata haian- • sahityik sakshy • videshi yatriyoan ka vivaran • puratattv sambandhi sakshy sahityik sakshy sahityik sakshy ke antargat sahityik granthoan se prapt aitihasik vastuoan ka adhyayan kiya jata hai. sahityik sakshy ko do bhagoan mean vibhajit kiya ja sakata hai- dharmik sahity aur laukik sahity. dharmik sahity dharmik sahity ke antargat brahman tatha brahmanettar sahity ki charcha ki jati hai. • brahman granthoan mean- • brahmanettar granthoan mean laukik sahity laukik sahity ke antargat aitihasik granth, jivani, kalpana-pradhan tatha galp sahity ka varnan kiya jata hai. dharm-granth prachin kal se hi brahman dharm-granth brahman dharm - granth ke antargat ved, upanishadh, mahakavy tatha smriti gr...

Bhartendu Yug Ke Kavi

Contents • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • Bhartendu Yug Ke Kavi | भारतेन्दु युग के कवि और उनकी रचनाएँ नमस्कार दोस्तों ! हमने पिछले नोट्स में आधुनिक काल और भारतेन्दु हरिश्चंद्र के बारे में चर्चा की थी। इसी क्रम में आज हम “ Bhartendu Yug Ke Kavi | भारतेन्दु युग के कवि और उनकी रचनाएँ” के बारे में अध्ययन करने जा रहे है। तो चलिए शुरू करते है : श्री प्रताप नारायण मिश्र | Pratap Narayan Mishra ये भारतेंदु मंडल के प्रमुख लेखकों में से एक थे। इन्होंने हिंदी साहित्य के अनेक रूपों में सेवा की। ये कवि होने के साथ उच्च कोटि के निबंधकार और नाटककार भी थे । पंडित प्रताप नारायण मिश्र का जन्म 24 सितंबर 1856 ईं को उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में हुआ। यह कान्यकुब्ज ब्राह्मण पंडित थे। यह द्वितीय भारतेंदु के नाम से प्रसिद्ध हैं। इन्होंने कानपुर से ब्राह्मण पत्रिका निकाली थी। यह कानपुर के रसिक समाज के प्रधान कार्यकर्ता रहे हैं। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने निबंधकार की हैसियत से प्रताप नारायण मिश्र को “ हिंदी का एडिसन“ कहा है। मनोविज्ञान के क्षेत्र में आचार्य शुक्ल से पहले ही प्रताप नारायण मिश्र ने अपनी कलम चलाई है। यह ब्रजभाषा के घोर पक्षधर रहे हैं। श्री प्रताप नारायण मिश्र की रचनाएँ : • मन की लहर • प्रेम पुष्पावली • प्रताप लहरी • लोकोक्ति शतक • दीवान ए बरहमन • संगीत शाकुंतलम् • रसखान शतक • इनकी रचना मन की लहर में 31 लावनियां है । • लोकोक्ति शतक में 100 लोकोक्ति व कहावतों पर देशभक्ति की रचनाएं लिखी गई हैं। • दीवान -ए- बरहमन में उर्दू कविताओं का संग्रह है। ब्रज भाषा में रचित कविताएं : • तृप्यन्ताम • हरगंगा श्री प्रताप नारायण मिश्र की चर्चित पंक्तियां : “पढ़िय ...

छायावादी युग के कवि और उनकी रचनाएं

छायावादी कवि और उनकी रचनाएँ छायावाद की कालावधि 1920 या 1918 से 1936 ई. तक मानी जाती है। वहीं इलाचंद्र जोशी, शिवनाथ और प्रभाकर माचवे ने छायावाद का आरंभ लगभग 1912-14 से माना है। द्विवेदी युगीन काव्य की प्रतिक्रिया में छायावाद का जन्म हुआ था।रामचंद्र शुक्ल ने भी लिखा है की ‘छायावाद का चलन द्विवेदी-काल की रुखी इतिवृत्तात्मकता की प्रतिक्रिया के रूप में हुआ था।’ छायावाद का सर्वप्रधान लक्षण आत्माभिव्यंजना है। लिखित रूप में छायावाद शब्द के प्रथम प्रयोक्ता मुकुटधर पांडेय थे, इन्होंने ‘हिंदी में छायावाद’ लेख में सर्वप्रथम इसका प्रयोग किया। यह लेख जबलपुर से प्रकाशित होने वाली पत्रिका ‘श्री शारदा’ (1920 ई.) में चार किस्तों में प्रकाशित हुआ था। सुशील कुमार ने भी सरस्वती पत्रिका (1921 ई.) में ‘हिन्दी में छायावाद’ शीर्षक लेख लिखा था। यह लेख मूलतः संवादात्मक निबंध था, इस संवाद में सुशीला देवी, हरिकिशोर बाबू, चित्राकार, रामनरेश जोशी, पंत ने भाग लिया था। आचार्य शुक्ल ने छायावाद का प्रवर्तक मुकुटधर पांडेय और मैथिलीशरण गुप्त को मानते हैं और नंददुलारे वाजपेयी पंत तथा उनकी कृति ‘उच्छ्वास’(1920) से छायावाद का आरंभ माना है। वहीं इलाचंद्र जोशी और शिवनाथ ने ‘जयशंकर प्रसाद’ को छायावाद का जनक मानते हैं। विनयमोहन शर्मा,प्रभाकर माचवे ने ‘माखनलाल चतुर्वेदी’ को छायावाद का प्रवर्तक माना है। छायावादी युग के प्रमुख कवि और उनकी रचनाएँ 1.जयशंकर प्रसाद(1889-1936) छायावादी रचनाएं: झरना (1918), आंसू (1925), लहर (1933), कामायनी (1935) अन्य रचनाएं: उर्वशी (1909), वन मिलन (1909), प्रेम राज्य (1909), अयोध्या का उद्धार (1910), शोकोच्छवास (1910), वभ्रुवाहन (1911), कानन कुसुम (1913), प्रेम पथिक (1913), करुणालय (1913), ...

द्विवेदी युग के कवि और उनकी रचनाएँ

द्विवेदी युग के कवि और उनके ग्रंथ आधुनिक कविता के दूसरे पड़ाव (सन्1903से1916)को द्विवेदी-युग के नाम से जाना जाता है। डॉ. नगेन्द्र ने द्विवेदी युग को ‘जागरण-सुधार काल’भी कहा जाता है और इसकी समयावधि1900से1918ई. तक माना। वहीं आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने द्विवेदी युग को ‘नई धारा: द्वितीय उत्थान’ के अन्तर्गत रखा है तथा समयावधि सन्1893से1918ई. तक माना है। यह आधुनिक कविता के उत्थान व विकास का काल है। सन्1903ई. में महावीर प्रसाद द्विवेदी जी ‘सरस्वती’ पत्रिका के संपादक बने, संपादक बनने के बाद द्विवेदी जी हिंदी भाषा के परिष्कार पर विशेष ध्यान दिया। इन्होंने सरस्वती के माध्यम से कवियों को नायिका भेद जैसे विषय से हट कर अन्य विषयों पर कविता लिखने के लिए प्रेरित किया तथा ब्रजभाषा के स्थान पर काव्यभाषा के रूप में खड़ीबोली का प्रयोग करने का सुझाव दिया ताकि गद्य और काव्य की भाषा में एकरूपता आ सके। द्विवेदी जी ने भाषा संस्कार,व्याकरण शुद्धता और विराम चिन्हों के प्रयोग पर बल देकर हिंदी को परिनिष्ठित रूप प्रदान किया। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने लिखा है की, ‘खड़ीबोली के पद्य पर द्विवेदी जी का पूरा-पूरा असर पड़ा। बहुत से कवियों की भाषा शिथिल और अव्यवस्थित होती थी। द्विवेदी जी ऐसे कवियों की भेजी हुई कविताओं की भाषा आदि दुरुस्त करके सरस्वती में छापा करते थे। इस प्रकार कवियों की भाषा साफ होती गई और द्विवेदी जी के अनुकरण में अन्य लेखक भी शुद्ध भाषा लिखने लगे।’ द्विवेदी जी की हिंदी साहित्य में भूमिका एक सर्जक के रूप में उतना नहीं है जितना कि विचारक,दिशा निर्देशक,चिंतक एवं नियामक के रूप में। इस युग में अधिकतर कवियों ने द्विवेदी जी के दिशा-निर्देश के अनुसार काव्य रचना कर रहे थे। किन्तु कुछ कवि ऐसे भी थे जो...

Dwivedi Yug Ke Kavi

Contents • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • Dwivedi Yug Ke Kavi | द्विवेदी युग के कवि और उनकी रचनाएँ नमस्कार दोस्तों ! जैसाकि हम पिछले नोट्स में द्विवेदी काल के बारे में जानकारी ले ही चुके है। आज इसी क्रम में हम Dwivedi Yug Ke Kavi | द्विवेदी युग के कवि और उनकी प्रमुख रचनाओं के बारे में अध्ययन करने जा रहे है। आज के नोट्स में हम मुख्यतः अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’, जगन्नाथदा, राय देवी प्रसाद, रामचरित उपाध्याय, सत्यनारायण और मैथिलीशरण गुप्त जी के बारे में विस्तार से चर्चा करने जा रहे है। तो चलिए शुरू करते है : अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ | Ayodhya Prasad Upadhyay ‘Hari Oudh’ Dwivedi Yug Ke Kavi | द्विवेदी युग के प्रमुख कवि : इनका जन्म 1865 ईस्वी में उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ के निजामाबाद तहसील में हुआ। इन्हे हरिऔध भी कहा जाता है। हरी मतलब सिंह और औध मतलब अयोध्या से है अर्थात अयोध्या सिंह। इन्हें कवि सम्राट कहा जाता है। बाबा सुमेर सिंह इनके साहित्यिक गुरु थे । चाचा ब्रहम सिंह उपाध्याय ने इनका पालन पोषण किया। बाबा सुमेर सिंह ने इन्हें सिख धर्म में दीक्षित किया। अयोध्या सिंह उपाध्याय की प्रमुख रचनाएँ : ब्रजभाषा के प्रारंभिक मुक्तक काव्य : • प्रेमाम्भूप्रश्रवण • प्रेमाम्भूवारिधि • प्रेमाम्भूप्रवाह इन संकलनों में हरिऔध परंपरा प्रेमी कवि के रूप में नजर आते हैं। ये मात्र 17 वर्ष की उम्र के थे, जब इन्होंने “श्री कृष्ण शतक” की रचना की थी। • प्रियप्रवास प्रियप्रवास इनकी ख्याति का आधारभूत ग्रंथ है। 1914 में प्रकाशित यह खड़ी बोली हिंदी का पहला महाकाव्य कहलाता है। इसमें 17 सर्ग है।इसमें श्री कृष्ण के बचपन से लेकर मथुरा प्रस्थान तक की कथा कहीं गई है। सुधारवाद...

छायावादी युग की प्रमुख रचनाएं? » Chhayavadi Yug Ki Pramukh Rachnaye

चेतावनी: इस टेक्स्ट में गलतियाँ हो सकती हैं। सॉफ्टवेर के द्वारा ऑडियो को टेक्स्ट में बदला गया है। ऑडियो सुन्ना चाहिये। सी अनामिका कैदी और कोकिला पोस्ट बहुत सारा सुमित्रानंदन पंत का सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का मैथिलीशरण गुप्त का लिखा गया हो गया कैदी और कोकिला हो गया कुछ हो गया अभी नाश्ता हो गया आगे हो गया ठीक है यह सब छायावादी युग के बहुत ही प्रमुख रचनाओं में से एक हैं si anamika kaidi aur kokila post bahut saara sumitranandan pant ka suryakant tripathi niraala ka maithalisharan gupt ka likha gaya ho gaya kaidi aur kokila ho gaya kuch ho gaya abhi nashta ho gaya aage ho gaya theek hai yah sab chhayavadi yug ke bahut hi pramukh rachnaon me se ek hain सी अनामिका कैदी और कोकिला पोस्ट बहुत सारा सुमित्रानंदन पंत का सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का