छत्तीसगढ़ का राज्य गीत

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रचनाकार – कवि डाॅ. नरेन्द्र देव वर्मा अरपा पइरी के धार महानदी हे अपार, इन्द्राबती ह पखारय तोर पइँया। महूँ पाँव परँव तोर भुइँया, जय हो जय हो छत्तिसगढ़ मइया।। सोहय बिन्दिया सही घाते डोंगरी, पहार चन्दा सुरूज बने तोर नयना, सोनहा धाने के संग, लुगरा के हरियर रंग तोर बोली जइसे सुघर मइना अँचरा तोरे डोलावय पुरवइया।। महूँ पाँव परव तोर भुइँया, जय हो जय हो छत्तिसगढ़ मइया।। रइगढ़ हाबय तोरे मँउरे मुकुट सरगुजा (अऊ) बेलासपुर हे बहियाँ, रइपुर कनिहा सही घाते सुग्घर फभय दुरुग, बस्तर सोहय पयजनियाँ, नाँदगाँवे नवा करधनियाँ महूँ पाँव परँव तोर भुइँया जय हो जय हो छत्तिसगढ़ मइया।। छत्तीसगढ़ राज्य गीत गायन की समय अवधि 1 मिनट 15 सेकण्ड का है।

छत्तीसगढ़ के लोकगीत

• करमा गीत : यह छत्तीसगढ़ के आदिवासियों का मुख्य लोकगीत है। करमा नृत्य के साथ गाये जाने वाले गीत को करमा गीत के नाम से जाना जाता है। • गम्मत गीत : यह गीत राज्य में • गौरा गीत : यह महिलाओं द्वारा • घोटुल पाटा : छत्तीसगढ़ के अनेक आदिवासी क्षेत्रों में मृत्यु गीत गाने की परम्परा है। मृत्यु के अवसर पर मुड़िया आदिवासियों में • जंवरा गीत : यह नवरात्रि के समय गाया जाने वाला माता का गीत है। • ढोलकी गीत : • ढोलामारू : यह मूलतः • ददरिया : यह मूलतः एक प्रेम-गीत है जिसमें शृंगार की प्रधानता होती है। ददरिया दो-दो पंक्ति के स्फुट गीत होते हैं, जो लोक-गीति-काव्य के श्रेष्ठ उदाहरण होते हैं । ददरिया गीत स्त्री और पुरुष मिलकर अथवा अलग-अलग भी गाते हैं। जब स्त्री और पुरुष गाते हैं तब ददरिया सवाल-जबाब के रूप में गाया जाता है। स्त्रियों के दो दल भी संवादात्मक ददरिया गा सकते हैं। ददरिया की लोकधुन इतनी लोकप्रिय और मधुर होती है कि कोई व्यक्ति उसे आसानी से गा सकता है। हर ददरिया को उसकी दूसरी पंक्ति के अंतिम शब्द अथवा स्वर को पकड़कर गाया जाता है, जिसे ‘छोर’ कहते हैं। ददरिया किसी भी समय गाया जा सकता है। महुआ बीनते हुए, धान रोपते हुए, धान काटते हुए, राह में चलते हुए, चक्की पीसते हुए आदि कभी भी किसी समय ददरिया गीत गाए जा सकते हैं। ददरिया गीतों का विषय जीवन की कोई बात हो सकती है जिसमें युवा मन के प्रेम शृंगार की चर्चा हो। • दहकी गीत : यह होली के अवसर पर अश्लीलतापूर्ण परिहास में गाया जाने वाला लोक गीत है। • देवार गीत : राज्य की देवार जाति में गाया जाने वाला यह नृत्य गीत लोक कथाओं पर आधारित होता है। • धनकुल : यह बस्तर क्षेत्र का प्रमुख लोक गीत है। • नगमत गीत : नागपंचमी को गाए जाने वाले इस लोक गीत को गुरु ...

संपूर्ण गीत गोविंद का पहला डिजिटल संकलन

नयी दिल्ली,14 जून (वार्ता) पांच साल के गहन शोध ने एक नए युग की कलात्मक रचना का सृजन किया है — प्रामाणिक कथक में संपूर्ण गीत गोविंद का पहला चित्रण। किसी भी नृत्य के लिए किया गया इस तरह का यह पहला प्रयास है। जयदेव की प्रसिद्ध 12वीं शताब्दी की संस्कृत कविता के सभी 24 गीतों को उत्तर भारतीय शैली में प्रस्तुत किया गया है। और इसका श्रेय जाता है, कथक के प्रसिद्ध गुरु डॉ पाली चंद्रा और उनकी टीम को, जिन्हें केरल स्थित नाट्यसूत्र-इनविस टीम का समर्थन प्राप्त हुआ। एक हजार दिनों में दो सौ लोगों की टीम ने इस कार्य को पूरा किया। नाट्यसूत्रऑनलाइन.कॉम द्वारा किए गए इस महत्वपूर्ण कार्य में 24 प्रबंधों की उत्कृष्ट कृति के पूर्ण पाठ की कोरियोग्राफी है, जिसमें यमुना के किनारे सखियों के साथ भगवान कृष्ण को दिखाते हुए कृष्ण और राधा के प्रेम को भी चित्रित किया गया है। इस डिजिटल सामग्री को दुनिया भर में वितरण के लिए तैयार किया गया है। नाट्यसूत्र के अनुसार, कार्यक्रम एक से पांच साल तक की विभिन्न अवधियों के लिए ग्राहकों के लिए उपलब्ध रहेगा। प्रसिद्ध गुरु विक्रम सिंघे और गुरु कपिला राज की प्रमुख शिष्या स्विट्जरलैंड में बसी गुरु डॉ पाली चंद्रा ने कहा कि लाभार्थी पेशेवर नर्तक, छात्र और संस्कृति को बचाने के इच्छुक लोग होंगे। ये वीडियो संस्कृति शोधकर्ताओं, प्रदर्शन करने वाले कलाकारों और विभिन्न शैलियों के कोरियोग्राफरों के लिए भी उपयोगी होंगे। कार्यक्रम को नाट्यशास्त्र और अभिनय दर्पण के आधार पर तैयार किया गया है ताकि सभी नृत्य रूपों के छात्र इस सामग्री का प्रयोग अपने-अपने नृत्यों में कर सकें। गुरु डॉ पाली चंद्रा की 21 वीं सदी की व्याख्या की मदद से, शिक्षार्थी मूल रचना के हर पहलू को समझ पाता है। जयदेव ने गी...

Top 20+ Chhattisgarhi Lok Geet

छत्तीसगढ़ व्यापक रूप से गावो , कस्बो का राज्य है । यंहा की संस्कृति को लोक संस्कृति के रूप में देखना सबसे अधिक सुन्दर और सार्थक माना जाता है । chhattisgarh की संस्कृति लोक संस्कृति है , जो जनजातीय लोगो और अलग अलग भू भागो के साथ में इनकी अलग अलग अपनी एक अलग ही संस्कृति दिखती है और उन्हें संरक्षित भी किया जा रहा है । इन सभी के विचार , रीती रिवाज , पर्व उत्सव , यंहा की देवी देवताओ की मान्यताये , यंहा की लोगो की जीवन शैली , यंहा की भाषा , कथाय , लोक कथाय , लोक नृत्य , लोक गीत , लोक संगीत , लोक नाट्य , लोक आचरण , और यंहा की लोक देवता , का एक विराट रूप है जिसे आसानी के साथ समझ नहीं जा सकता है और न ही इन्हे कम साम्य में परखा जा सकता है । इनकी chhattisgarhi lok geet सबसे सुन्दर , घनिष्ठ , मधुर और निरवाळी है जो लोगो के मन को महित कर लेती है । भले ही विकास की दृश्टिकोण से देखे तो बहुत ही पिछड़ा हुआ है । किन्तु संस्कृति की दृटिकोण से देखे तो इसमें सबसे आगे है । दया , ममता , सरलता , आदरता , chhattisgarh के लोगो का गुण है । Chhattisgarhi Lok geet छत्तीसगढ़ में अनेक सस्कृति पलती है बढ़ती है । जंहा तक उसे अपनी संस्कृति का प्रश्न है , वह अपने पुराने संस्कृति से आज भी अच्छे , घनिस्ट रूप से जुड़ा हुआ है । chhattisgarh के अधिकांश निवासी प्रकृति में आस्था रखते है लेकिन सच और ईमान के आलावा इनका कोई अलग देवता नहीं है । यदि देखा जय तो तेजी से बदलती दुनिया के कारन से chhattisgarhi lok geet पर इसका प्रभाव देखने को मिल रहा है । छत्तीसगढ़ के लोकगीत Chhattisgarhi Lok Geet cg lok geet लोगो की सामान्य और अलिखित व्यावहारिक रचना है , जो लोक परप्मरा से शुरू होती है और उसी से जुडी हुई है । लोक गीतों के रचियता प...

Recitation of state song

No: एफ 10-11/2019/1/5 Dated: Feb, 04 2020 छत्तीसगढ़ शासन सामान्य प्रशासन विभाग ::मंत्रालयः: महानदी भवन, नवा रायपुर अटल नगर-492002 क्रमांक एफ 10-11/2019/1/5 नवा रायपुर अटल नगर दिनांक04 फरवरी, 2020 प्रति, शासन के समस्त विभाग, अध्यक्ष, राजस्व मंडल, छ0ग0 बिलासपुर, समस्त विभागाध्यक्ष, समस्त संभागायुक्त, समस्त कलेक्टर एवं जिला दंडाधिकारी, छत्तीसगढ़ | विषय: "अरपा पैरी के धार, महानदी हे अपार" राज्य-गीत का मानकीकरण स्वरूप का वंदन/गायन किए जाने के संबंध मे । संदर्भ: विभागीय समसंख्यक पत्र दिनांक 18/11/2019. -00- राज्य शासन द्वारा डॉ० नरेन्द्र देव वर्मा द्वारा लिखित छत्तीसगढ़ी गीत "अरपा पैरी के धार, महानदी हे अपार" को राज्य गीत घोषित किया गया है । संदर्भित पत्र के माध्यम से उक्त राज्य-गीत का गायन सभी शासकीय कार्यक्रमों के प्रारंभ में किये जाने के संबंध में लेख किया गया था। मंत्रि-परिषद में लिये गए निर्णय अनुसार सार्वजनिक कार्यकगों में गायन हेतु राज्य-गीत का मानकीकरण किया गया है, जो कि जनसंपर्क एवं सामान्य प्रशासन विभाग की वेबसाईट http://www.dpreg.gov.in एवं http://gad.cg.gov.in/notice_display.aspx में अपलोड किया गया है । 2/ विभिन्न कार्यक्रमों के प्रारंभ में गाये जाने वाले राज्य-गीत में इसका उपयोग किया जा सकता है, इसकी अवधि 1 मिनट 15 सेकंड है । माननीकरण पश्चात गाये जाने वाले राज्य-गीत निम्नानुसार है: "अरपा पइरी के धार महानदी हे अपार, इन्द्रावती ह पखारय तोर पइँया । महूँ पाँव परॅव तोर मुइँया, जय हो जय हो छत्तिसगढ़ मइया ।। सोहय बिन्दिया सही घाते डोंगरी, पहार चन्दा सुरूज बने तोर नयना, सोनहा धाने के संग, लुगरा के हरियर रंग तोर बोली जइसे सुघर मइना । अँचरा तोरे डोलावय पुरवइया ।। (महूँपाँव पर...