चिपको आंदोलन कब हुआ था

  1. 1970 में चिपको आंदोलन कहाँ प्रारंभ हुआ? – ElegantAnswer.com
  2. जानिए चिपको आन्दोलन का इतिहास और पूरी जानकारी
  3. चिपको आंदोलन: कब हुआ था और क्यों हुआ था?
  4. Apiko आंदोलन की शुरुआत कब हुई? – ElegantAnswer.com
  5. जानिए चिपको आंदोलन का इतिहास और पूरी जानकारी
  6. chipko movement completes 50 years know how it started and where it was affected unk
  7. चिपको आंदोलन (Chipko Andolan)
  8. चिपको आंदोलन कब और कहाँ प्रारंभ हुआ था? – Expert
  9. जानिए चिपको आंदोलन का इतिहास और पूरी जानकारी
  10. चिपको आंदोलन (Chipko Andolan)


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1970 में चिपको आंदोलन कहाँ प्रारंभ हुआ? – ElegantAnswer.com

1970 में चिपको आंदोलन कहाँ प्रारंभ हुआ? इसे सुनेंरोकेंयह आन्दोलन तत्कालीन उत्तर प्रदेश के चमोली जिले में सन 1973 में प्रारम्भ हुआ। एक दशक के अन्दर यह पूरे उत्तराखण्ड क्षेत्र में फैल गया था। चिपको आन्दोलन की एक मुख्य बात थी कि इसमें स्त्रियों ने भारी संख्या में भाग लिया था। पर्यावरण संबंधी आंदोलन क्यों होते हैं? इसे सुनेंरोकेंपर्यावरण आंदोलन “सामाजिक आंदोलन का एक प्रकार है जिसमें व्यक्तियों समूहों और गठबंधन की एक सरणी शामिल होती है जो पर्यावरण संरक्षण में एक आम रुचि का अनुभव करते हैं और पर्यावरण नीतियों और प्रथाओं में बदलाव लाने के लिए कार्य करते हैं। (टोंग यांकी 2005 ) । भारत में पर्यावरणीय आंदोलन से आप क्या समझते हैं? इसे सुनेंरोकेंभारत में विकास के साथ-साथ पर्यावरण आधरित संघर्ष भी बढ़ते जा रहे हैं क्योंकी ये विकास नीति कही ना कही पर्यावरणीय संतुलन को खतरे में डालकर बनाया जा रहा है। सार्वजनिक नीति में परिवर्तन के माध्यम से पर्यावरण की रक्षा के लिए होने वाले विरोध को पर्यावरण आंदोलन बोला जा सकता है। विश्नोई आंदोलन कब हुआ था? इसे सुनेंरोकें​बिश्नोई आंदोलन​ 1730 में जोधपुर के राजा अभय सिंह ने महल बनवाने के लिए लकड़ियों का इंतजाम करने के लिए अपने सैनिकों को भेजा। महाराज के सैनिक पेड़ काटने के लिए राजस्थान के खेजरी गांव में पहुंचे तो वहां की महिलाएं अपनी जान की परवाह किए बिना पेड़ों को बचाने के लिए आ गईं। विश्नोई समाज के लोग पेड़ों की पूजा करते थे। उत्तराखंड में चिपको आंदोलन कब हुआ? इसे सुनेंरोकेंOn: Saturday 26 March 2022. चिपको आंदोलन का एक दृश्य, भारत में वनों के संरक्षण के लिए सबसे मजबूत आंदोलनों में से एक। चिपको आंदोलन की पहली लड़ाई 1973 की शुरुआत में उत्तराखंड के चमोली ज...

जानिए चिपको आन्दोलन का इतिहास और पूरी जानकारी

इसलिएहमेंपेड़ोंकीअंधाधुंधकटाईकोरोकनेऔरजंगलोंकेदोहनकेलिएउचितकदमउठानेचाहिए, लेकिनक्याआपजानतेहैंकि, प्रकृतिकीरक्षाकेलिएचिपकोआंदोलन– Chipko Movementचलायागयाथा।जिसमेंपेड़ोंकीहोरहीकटाईकाविरोधकियागयाथा, वहींइसआंदोलनकीखासबातयहथीकि वहींकबहुईचिपकोआंदोलनकीशुरुआत, इसआंदोलनसेक्याप्रभावपड़ाऔरक्यारहींइसआंदोलनकीउपलब्धियांसमेततमामजानकारीहमआपकोअपनेइसआर्टिकलमेंदेंगे, लेकिनसबसेपहलेहमआपकोचिपकोआंदोलनकेस्लोगन– Chipko Andolan Slogan केबारेमेंबताएंगे– ‘क्याहैंजंगलकेउपकार, मिट्टी, पानीऔरबयार।मिट्टी, पानीऔरबयार, जिंदारहनेकेआधार।’ इसीस्लोगनकोचिपकोआंदोलनकेदौरानआधारबनायागया।इसकेसाथहीपर्यावरणकोमानवजीवनसेजोड़तेहुए, चिपकोआंदोलनकीशुरुआतकीगई। जानिएचिपकोआन्दोलनकाइतिहासऔरपूरीजानकारी– Chipko Movement in Hindi Chipko Movement चिपकोआंदोलनकेबारेमें– Chipko Andolan in Hindi आंदोलनकानाम चिपकोआंदोलन ( Chipko Movement) आंदोलनकीशुरुवात साल१९७३ आंदोलनकेप्रमुखनेता • गौरादेवी, • चंडीप्रसादभट्ट, • सुंदरलालबहुगुणा, • शमशेरसिंहबिष्ट, • सुरशादेवी, • बचनीदेवी, • गोविंदसिंहरावत, • धूमसिंहनेजी, • घनश्यामरातुरीइत्यादि .. आंदोलनकाराज्यतथाजगह चमोली ( आंदोलनकाउद्देश्य पेडकटाईकोरोकनातथाउनकासंरक्षणकरना चिपकोआंदोलनकेजानकारी– Chipko Movement Information चिपकोकामतलबहै‘चिपकना’इसलिएचिपकोआंदोलन– Chipko Movementकासांकेतिकअर्थहैकिपेड़ोंसेचिपकजानायागलेलगानाऔरपेड़ोंकोबचानेकेलिएप्राणदेदेना।इसकेसाथहीचिपकोआंदोलनसेमतलबइसबातसेभीहैकिकिसीभीहालमेंप्राकृतिकसंपदापेड़कोनहींकाटनेदेनाहै।अर्थातजानकीपरवाहकिएबिनापेड़ोंकीरक्षाकरनाहै। क्याहैचिपकोआंदोलन? – What is Chipko Movement चिपकोआंदोलनएक‘ईको-फेमिनिस्ट’आंदोलनथा, जिसकापूराताना-बानामहिलाओंनेहीबुनाथा। दरअसलजबयेआ...

चिपको आंदोलन: कब हुआ था और क्यों हुआ था?

चिपको आन्दोलन की शुरुआत चिपको आन्दोलन एक प्रकार का प्राकृतिक संकट और पर्यावरण सुरक्षा आन्दोलन था जिसकी शुरुआत वर्ष 1973 में उत्तराखंड (उस समय उत्तर प्रदेश का भाग) से शुरू हुई. चिपको आन्दोलन के माध्यम से व्यक्तियों ने पेड़ों को कटाई से बचने के लिए यह आन्दोलन किया था. चिपको आन्दोलन: उद्देश्य चिपको आन्दोलन का उद्देश्य भारतीय जंगलों और वन विभाग के तेजी से पेड़ों की कटाई करने और नदियों को बांध बनाने की नीतियों के खिलाफ एक आवाज़ बुलंद करना था. चिपको आन्दोलन: प्रमुख नेता इस आन्दोलन के प्रमुख नेता सुन्दरलाल बहुगुणा थे, जिन्होंने वनों की कटाई के खिलाफ लोक जागरण कराने के लिए अपने जीवन का बहुत बड़ा हिस्सा समर्पित किया था. चिपको आन्दोलन: महिलाओं का योगदान चिपको आन्दोलन में महिलाओं का भी महत्वपूर्ण योगदान था, जिन्होंने जोर शोर से आवाज बुलंद की और चिपको यानी पेड़ों को गले लगा लेना का प्रयोग करके पदों को कटाई से बचाया. निष्कर्ष: चिपको आन्दोलन के बाद, वन विभाग ने पेड़ों की कटाई पर नियंत्रण लगाने के लिए नई नीतियाँ बनायी और आधुनिक पर्यावरण सुरक्षा आन्दोलन की शुरुआत हुई. चिपको आन्दोलन को भारतीय और विदेशी पर्यावरण आंदोलनों का मुख्या प्रेरणा स्त्रोत माना जाता है. Tagged Post navigation

Apiko आंदोलन की शुरुआत कब हुई? – ElegantAnswer.com

इसे सुनेंरोकेंचिपको आंदोलन क्या है? खेजड़ली (जोधपुर) राजस्थान में 1730 के आस-पास अमृता देवी विश्नोई के नेतृत्व में लोगों ने राजा के आदेश के विपरीत पेड़ों से चिपककर उनको बचाने के लिये आंदोलन चलाया था। पश्चिमी घाट आंदोलन कब हुआ था? इसे सुनेंरोकेंअप्पिको आंदोलन कई और इलाके में फैला। इसके कारण इस इलाके में आई कई विनाशकारी परियोजनाओं को रोकने में सफलता मिली। बड़े बांध, परमाणु बिजलीघर और पश्चिमी घाट में पर्यावरण व पारिस्थितिकीय बचाने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है। अगर हम आंदोलन पर नजर डालें तो 1983 से 1989 तक अप्पिको आंदोलन चला। शांत घाटी आंदोलन क्या है? इसे सुनेंरोकेंशांत घाटी आंदोलन (साइलेंट वैली) आंदोलन केरल राज्य के शांत घाटी में हुआ था। यह आंदोलन 1973 से शुरू होकर 1980 ई० तक चला था। यह आंदोलन कुंती पुन्झ नदी के तट पर “जल विद्युत् परियोजना के विरोध में” हुआ था। सरकार द्वारा इस परियोजना के रद्द किये जाने पर यह आंदोलन समाप्त हो गया। हिमालय क्षेत्र का प्रसिद्ध आंदोलन कौन सा था? इसे सुनेंरोकेंचिपको आंदोलन ने तब की केंद्र सरकार का ध्यान अपनी ओर खींचा था. जिसके बाद यह निर्णय लिया गया कि अगले 15 सालों तक उत्तर प्रदेश के हिमालय पर्वतमाला में एक भी पेड़ नहीं काटे जाएंगे. चिपको आंदोलन का प्रभाव उत्तराखंड (तब उत्त्त प्रदेश का हिस्सा था) से निकलकर पूरे देश पर होने लगा. चिपको आंदोलन कब और कहां हुआ था? इसे सुनेंरोकेंयह आन्दोलन तत्कालीन उत्तर प्रदेश के चमोली जिले में सन 1973 में प्रारम्भ हुआ। एक दशक के अन्दर यह पूरे उत्तराखण्ड क्षेत्र में फैल गया था। चिपको आन्दोलन की एक मुख्य बात थी कि इसमें स्त्रियों ने भारी संख्या में भाग लिया था। पश्चिमी घाट कहाँ स्थित है? इसे सुनेंरोकेंभारत के पश्चिमी ...

जानिए चिपको आंदोलन का इतिहास और पूरी जानकारी

जानिए चिपको आंदोलन का इतिहास और पूरी जानकारी जानिए चिपको आंदोलन का इतिहास और पूरी जानकारी चिपको आंदोलन पर्यावरण के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती क्योंकि हमारा जीवन पूरी तरह से पर्यावरण पर ही आश्रित है। वहीं अगर हमारी जलवायु में थोड़ा सा भी बदलाव होता है।तो इसका सीधा असर हमारे शरीर पर पड़ता है।इसलिए पर्यावरण को सुरक्षित करना हम सभी का कर्तव्य है। इसलिए हमें पेड़ों की अंधाधुंध कटाई को रोकने और जंगलों के दहन के लिए उचित कदम उठाने चाहिए। लेकिन क्या आप जानते हैं कि प्रकृति की रक्षा के लिए चिपको आंदोलन चलाया गया था। जिसमें पेड़ों की हो रही कटाई का विरोध किया गया था। वही इस आंदोलन की खास बात यह थी कि महात्मा गांधी जी का अहिंसा का मार्ग अपनाते हुए इस आंदोलन को शांतिपूर्ण तरीके से किया गया था। वहीं कब हुई चिपको आंदोलन की शुरुआत इस आंदोलन से क्या प्रभाव पड़ा और क्या रहे इस आंदोलन की उपलब्धियां समेत तमाम जानकारी हम आपको अपने इस आर्टिकल में देंगे लेकिन सबसे पहले हम आपको चिपको आंदोलन के स्लोगन के बारे में बताएंगे, "क्या है जंगल के उपकार मिट्टी पानी और व्यास मिट्टी प्राणी और व्यास जिंदा रहने के आधार।" इसी स्लोगन को चिपको आंदोलन के दौरान आधार बनाया गया। इसके साथ ही पर्यावरण को मानव जीवन से जोड़ते हुए चिपको आंदोलन की शुरुआत की गई। जानिए चिपको आंदोलन का इतिहास और पूरी जानकारी- चिपको का मतलब है।चिपकना इसलिए चिपको आंदोलन का सांकेतिक अर्थ है कि पेड़ों से चिपक जाना या गले लगाना और पेड़ों को बचाने के लिए प्राण दे देना इसके साथ ही चिपको आंदोलन से मतलब इस बात से भी है कि किसी भी हाल में प्राकृतिक संपदा पेड़ को नहीं काटने देना है अर्थात जान की परवाह किए बिना पेड़ों की रक्षा करना। क्या है चिप...

chipko movement completes 50 years know how it started and where it was affected unk

Chipko Movement: चिपको आंदोलन के 50 साल पूरे, जानें कैसे हुई इसकी शुरुआत और कहां-कहां पड़ा प्रभाव चिपको आंदोलन पेड़ों की रक्षा के लिए किया गया एक महत्वपूर्ण आंदोलन था. ग्रामीणों ने पेड़ को बचाने के लिए अहिंसक विरोध प्रदर्शन किया था. उन्होंने पेड़ों को कटने से बचाने के लिए उससे चिपक कर उसे गले लगा लिया था. आरती श्रीवास्तव चिपको आंदोलन अपने पचास वर्ष पूरे कर रहा है और आज भी दुनिया को दिशा दे रहा है. बीते दिनों झारखंड के धनबाद में लोगों ने पेड़ से चिपक कर सैकड़ों पेड़ों को कटने से बचाया. चिपको आंदोलन के योद्धा के तौर पर पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा और चंडी प्रसाद भट्ट दुनियाभर में लोकप्रिय हैं, लेकिन 26 मार्च, 1974 को रेणी गांव के जंगल बचाने की मुहिम में महिला मंगल दल की अध्यक्ष गौरा देवी के साथ इक्कीस महिलाओं और सात बच्चियों ने अहम भूमिका निभायी थी. इस प्रतिरोध के परिणामस्वरूप ही देश में 1980 में वन संरक्षण अधिनियम बना. आज जब विश्व पर्यावरण की तमाम चुनौतियों से घिरा हुआ है, इस आंदोलन को नये सिरे से याद करने की दरकार है. चिपको आंदोलन पेड़ों की रक्षा के लिए किया गया एक महत्वपूर्ण आंदोलन था. ग्रामीणों ने पेड़ को बचाने के लिए अहिंसक विरोध प्रदर्शन किया था. उन्होंने पेड़ों को कटने से बचाने के लिए उससे चिपक कर उसे गले लगा लिया था. उनके लिए अपने प्राणों से मूल्यवान वे पेड़ थे, जो पर्यावरण संतुलन के लिए आवश्यक हैं. आंदोलन का मुख्य उद्देश्य व्यवसाय के लिए हो रही वनों की कटाई को रोकना था. जिसका केंद्र उत्तराखंड के चमोली जिले का रेणी गांव था. वर्ष 1974 के शुरुआत की बात है. वन विभाग द्वारा जोशीमठ ब्लॉक के रेणी गांव के पास स्थित पेंग मुरेंडा वन के 2451 अंगू (ऐश) के पेड़ों को इलाहाबाद स्थ...

चिपको आंदोलन (Chipko Andolan)

उत्तराखंड में 26 मार्च, 1974 को चमोली जिले के रैणी गाँव में एक आंदोलन की शुरुआत हुई थी, जिसे नाम दिया गया था चिपको आंदोलन (Chipko Andolan)। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य व्यावसाय के लिए हो रही वनों की कटाई को रोकना था और इसे रोकने के लिए महिलाएं वृक्षों से चिपककर खड़ी हो गई थीं। इस आंदोलन की शुरूआत चंडीप्रसाद भट्ट और गौरा देवी की ओर से की गई थी और भारत के प्रसिद्ध सुंदरलाल बहुगुणा ने आगे इसका नेतृत्व किया। इस आंदोलन में पेड़ों को काटने से बचने के लिए गांव के लोग पेड़ से चिपक जाते थे, इसी वजह से इस आंदोलन का नाम चिपको आंदोलन पड़ा था। चिपको आंदोलन (Chipko Andolan) उत्तराखंड के चमोली जिले के रैणी गाँव में अंगू के पेड़ों को जब सरकार ने स्थानीय लोगों को न देकर इलाहाबाद की खेल का सामान बनाने वाली कंपनी साइमन को दे दिया तो, यह सवाल खड़ा हुआ कि खेत जरूरी है की खेल। स्थानीय लोग अंगू की लकड़ी से खेत जोतने के लिए हल, जुआ आदि खेती से संबंधित वस्तुएँ बनाते थे लेकिन सरकार ने उनको अंगू के पेड़ देने के बजाए पूरा जंगल खेल का सामान बेट, स्टम्प, आदि बनाने वाली साइमन कंपनी को दे दिया था। इसके बाद अपने जंगलों और खेती के साथ जीवन को बचाने के लिए शुरू हुआ चिपको आंदोलन पूरी दुनिया का ध्यान पर्यावरण की तरफ खींचने में सफल हुआ लेकिन सरकारों के नजरिए में कोई परिवर्तन नहीं आया। ‘चिपको आन्दोलन’ का घोष वाक्य – क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और बयार। मिट्टी, पानी और बयार, जिन्दा रहने के आधार। इसके विरोध में गौरा देवी व अन्य महिलाओं के साथ मिलकर उस नीलामी का विरोध किया जिसमें उत्तराखंड के रैंणी गाँव के जंगल के लगभग ढाई हजार पेड़ों को काटे जाने थे। स्थानीय नागरिकों के विरोध करने के बावजूद सरकार और ठेकेदारो...

चिपको आंदोलन कब और कहाँ प्रारंभ हुआ था? – Expert

Table of Contents • • • • • • • • • • • • • • • • चिपको आंदोलन कब और कहाँ प्रारंभ हुआ था? यह आन्दोलन तत्कालीन उत्तर प्रदेश के चमोली जिले में सन 1974 में प्रारम्भ हुआ। एक दशक के अन्दर यह पूरे उत्तराखण्ड क्षेत्र में फैल गया था। चिपको आंदोलन का दूसरा नाम क्या है? चिपको आंदोलन को चिपको मूवमेंट, अहिंसक, सामाजिक और पारिस्थितिक आंदोलन भी कहा जाता है। चिपको आंदोलन के प्रसिद्ध नेता कौन थे? Answer. इस आन्दोलन की शुरुआत 1970 में भारत के प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सुन्दरलाल बहुगुणा, कामरेड गोविन्द सिंह रावत, चण्डीप्रसाद भट्ट तथा श्रीमती गौरादेवी के नेत्रत्व मे हुई थी। चिपको आंदोलन का नारा क्या है? BBCHindi. तीस साल पहले उत्तरांचल के पर्वतीय इलाक़ों में पेड़ों से चिपककर महिलाओं ने एक नारा दिया था – पहले हमें काटो तब जंगल और पेड़ काटने गये ठेकेदारों को उनके सामने हथियार डालने पड़े थे. ये चिपको आंदोलन था. चिपको आन्दोलन भारत में सबसे पहले कहाँ शुरू हुआ था? इस आंदोलन में पेड़ों को काटने से बचने के लिए गांव के लोग पेड़ से चिपक जाते थे, इसी वजह से इस आंदोलन का नाम चिपको आंदोलन पड़ा था. चिपको आंदोलन की शुरुआत प्रदेश के चमोली जिले में गोपेश्वर नाम के एक स्थान पर की गई थी. आंदोलन साल 1972 में शुरु हुई जंगलों की अंधाधुंध और अवैध कटाई को रोकने के लिए शुरू किया गया. READ: कैसे 1 महीने में 10 किलो वजन बढ़ाने के लिए? चिपको आंदोलन के संस्थापक कौन है? Solution : चिपको आंदोलन के प्रवर्तक सुन्दरलाल बहाणा और चंडी प्रसाद भट्ट थे। राजस्थान में चिपको आंदोलन कब हुआ था? चिपको आंदोलन क्या है? खेजड़ली (जोधपुर) राजस्थान में 1730 के आस-पास अमृता देवी विश्नोई के नेतृत्व में लोगों ने राजा के आदेश के विपरीत पेड़ों से चिप...

जानिए चिपको आंदोलन का इतिहास और पूरी जानकारी

जानिए चिपको आंदोलन का इतिहास और पूरी जानकारी जानिए चिपको आंदोलन का इतिहास और पूरी जानकारी चिपको आंदोलन पर्यावरण के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती क्योंकि हमारा जीवन पूरी तरह से पर्यावरण पर ही आश्रित है। वहीं अगर हमारी जलवायु में थोड़ा सा भी बदलाव होता है।तो इसका सीधा असर हमारे शरीर पर पड़ता है।इसलिए पर्यावरण को सुरक्षित करना हम सभी का कर्तव्य है। इसलिए हमें पेड़ों की अंधाधुंध कटाई को रोकने और जंगलों के दहन के लिए उचित कदम उठाने चाहिए। लेकिन क्या आप जानते हैं कि प्रकृति की रक्षा के लिए चिपको आंदोलन चलाया गया था। जिसमें पेड़ों की हो रही कटाई का विरोध किया गया था। वही इस आंदोलन की खास बात यह थी कि महात्मा गांधी जी का अहिंसा का मार्ग अपनाते हुए इस आंदोलन को शांतिपूर्ण तरीके से किया गया था। वहीं कब हुई चिपको आंदोलन की शुरुआत इस आंदोलन से क्या प्रभाव पड़ा और क्या रहे इस आंदोलन की उपलब्धियां समेत तमाम जानकारी हम आपको अपने इस आर्टिकल में देंगे लेकिन सबसे पहले हम आपको चिपको आंदोलन के स्लोगन के बारे में बताएंगे, "क्या है जंगल के उपकार मिट्टी पानी और व्यास मिट्टी प्राणी और व्यास जिंदा रहने के आधार।" इसी स्लोगन को चिपको आंदोलन के दौरान आधार बनाया गया। इसके साथ ही पर्यावरण को मानव जीवन से जोड़ते हुए चिपको आंदोलन की शुरुआत की गई। जानिए चिपको आंदोलन का इतिहास और पूरी जानकारी- चिपको का मतलब है।चिपकना इसलिए चिपको आंदोलन का सांकेतिक अर्थ है कि पेड़ों से चिपक जाना या गले लगाना और पेड़ों को बचाने के लिए प्राण दे देना इसके साथ ही चिपको आंदोलन से मतलब इस बात से भी है कि किसी भी हाल में प्राकृतिक संपदा पेड़ को नहीं काटने देना है अर्थात जान की परवाह किए बिना पेड़ों की रक्षा करना। क्या है चिप...

चिपको आंदोलन (Chipko Andolan)

उत्तराखंड में 26 मार्च, 1974 को चमोली जिले के रैणी गाँव में एक आंदोलन की शुरुआत हुई थी, जिसे नाम दिया गया था चिपको आंदोलन (Chipko Andolan)। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य व्यावसाय के लिए हो रही वनों की कटाई को रोकना था और इसे रोकने के लिए महिलाएं वृक्षों से चिपककर खड़ी हो गई थीं। इस आंदोलन की शुरूआत चंडीप्रसाद भट्ट और गौरा देवी की ओर से की गई थी और भारत के प्रसिद्ध सुंदरलाल बहुगुणा ने आगे इसका नेतृत्व किया। इस आंदोलन में पेड़ों को काटने से बचने के लिए गांव के लोग पेड़ से चिपक जाते थे, इसी वजह से इस आंदोलन का नाम चिपको आंदोलन पड़ा था। चिपको आंदोलन (Chipko Andolan) उत्तराखंड के चमोली जिले के रैणी गाँव में अंगू के पेड़ों को जब सरकार ने स्थानीय लोगों को न देकर इलाहाबाद की खेल का सामान बनाने वाली कंपनी साइमन को दे दिया तो, यह सवाल खड़ा हुआ कि खेत जरूरी है की खेल। स्थानीय लोग अंगू की लकड़ी से खेत जोतने के लिए हल, जुआ आदि खेती से संबंधित वस्तुएँ बनाते थे लेकिन सरकार ने उनको अंगू के पेड़ देने के बजाए पूरा जंगल खेल का सामान बेट, स्टम्प, आदि बनाने वाली साइमन कंपनी को दे दिया था। इसके बाद अपने जंगलों और खेती के साथ जीवन को बचाने के लिए शुरू हुआ चिपको आंदोलन पूरी दुनिया का ध्यान पर्यावरण की तरफ खींचने में सफल हुआ लेकिन सरकारों के नजरिए में कोई परिवर्तन नहीं आया। ‘चिपको आन्दोलन’ का घोष वाक्य – क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और बयार। मिट्टी, पानी और बयार, जिन्दा रहने के आधार। इसके विरोध में गौरा देवी व अन्य महिलाओं के साथ मिलकर उस नीलामी का विरोध किया जिसमें उत्तराखंड के रैंणी गाँव के जंगल के लगभग ढाई हजार पेड़ों को काटे जाने थे। स्थानीय नागरिकों के विरोध करने के बावजूद सरकार और ठेकेदारो...