धरती माता की कहानी लिखी हुई

  1. मां गंगा की आरती शुद्ध उच्चारण में लिखी हुई Ganga Mata Ki Aarti Lyrics
  2. धरती माता की कहानी धरती माता की कथा
  3. मोतीलाल जोतवाणी :: :: :: धरती से नाता :: कहानी
  4. सुबह उठते ही सबसे पहले करना चाहिए ये काम, मिलते हैं ढेरों फायदें
  5. धरती पर छोटी कविता :
  6. धरती मेरी माता : उपन्यासकार


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मां गंगा की आरती शुद्ध उच्चारण में लिखी हुई Ganga Mata Ki Aarti Lyrics

मां गंगे को पतित पावनी कहा गया है यह सभी पापों का नाश करने वाली है। शिवजी इन्हें अपनी जटा में धारण करते हैं। सूर्यवंश के प्रतापी राजा भगीरथ ने इनको प्रसन्न कर स्वर्ग लोक से धरती पर लाया था। तब से मां गंगा धरती पर है और सभी भक्तों को उनके पापों से मुक्ति दिलाकर उनका उद्धार करती है। गंगाजी के पवित्र जल को भक्त शुद्धि पूजा हवन आदि में प्रयोग करते हैं। इसका महत्त्व में हिंदू मान्यता में विशेष रूप से अंकित है।प्रस्तुत लेख में आग मां गंगा की आरती पढ़ेंगे। Table of Contents • • • मां गंगा की आरती (Ganga Mata Ki Aarti Lyrics) ॥श्री गंगा मैया आरती॥ नमामि गंगे ! तव पाद पंकजम्, सुरासुरैः वंदित दिव्य रूपम् भक्तिम् मुक्तिं च ददासि नित्यं, भावानुसारेण सदा नराणाम्॥ हर हर गंगे, जय माँ गंगे, हर हर गंगे, जय माँ गंगे॥ ॐ जय गंगे माता, श्री जय गंगे माता जो नर तुमको ध्याता, मनवांछित फल पाता॥ चंद्र सी जोत तुम्हारी, जल निर्मल आता शरण पडें जो तेरी, सो नर तर जाता ॥ॐ जय गंगे माता॥ पुत्र सगर के तारे, सब जग को ज्ञाता कृपा दृष्टि तुम्हारी, त्रिभुवन सुख दाता ॥ॐ जय गंगे माता॥ एक ही बार जो तेरी, शारणागति आता यम की त्रास मिटा कर, परमगति पाता ॥ॐ जय गंगे माता॥ आरती मात तुम्हारी, जो जन नित्य गाता दास वही सहज में, मुक्त्ति को पाता ॥ॐ जय गंगे माता॥ ॐ जय गंगे माता, श्री जय गंगे माता जो नर तुमको ध्याता, मनवांछित फल पाता ॐ जय गंगे माता, श्री जय गंगे माता॥ संबंधित लेख भी पढ़ें समापन हिंदू संस्कृति में मां गंगा की सर्वोच्च मान्यता है। ऐसा माना जाता है गंगा में स्नान करने से मन के सभी पाप दूर हो जाते हैं। गंगाजल को पवित्र माना गया है, इसलिए घर में शुद्धता के लिए गंगाजल को छिड़का जाता है। वैज्ञानिक शोध में भी गंगाजल क...

धरती माता की कहानी धरती माता की कथा

धरती माता की कहानी धरती माता ] एक ब्राह्मणी थी | वह बहुत धार्मिक महिला थी | सभी ग्रामवासी उसका बहुत सम्मान करते थे | कोई भी उसकी शरण में आता वह सबकी मदद किया करती थी | मन ही मन भगवान का स्मरण किया करती थी | भगवान की सेवा पूजा व जरूरतमन्दो की सेवा ही उसका परम धर्म था | एक दिन ब्राह्मणी मरकर भगवान के घर गई | वहाँ जाकर बोली , “ मुझे बैकुंठ का रास्ता बता दो |” स्वर्ग से एक दूत आया और बोला , ब्राह्मणी आपको क्या चाहिए | वो बोली मुझे बैकुंठ का रास्ता बता दो | आगे – आगे दूत और पीछे ब्राह्मणी मन्दिर तक गये , ब्राह्मणी बहुत धार्मिक महिला थी उसने बहुत दान – पुण्य कर रखा था उसे विश्वास था की उसके लिए बैकुंठ का रास्ता अवश्य खुल जायेगा | ब्राह्मणी ने वहाँ जाकर देखा वहाँ बड़ा सा मन्दिर , सोने का सिंहासन , हीरे मोती से जडित छतरी थी | चित्रगुप्त जी न्याय सभा में बठे साक्षात् इन्द्र के समान सौभा पा रहे थे और न्याय नीति से अपना राज्य सम्भाल रहे थे | यमराजजी सबको कर्मानुसार दंड दे रहे थे | ब्राह्मणी ने जाकर प्रणाम किया और बोली मुझे वैकुण्ठ जाना हैं | चित्रगुप्त ने लेखा सुनाया और कहां की ब्राह्मणी तुमने सब धर्म किये परंतु धरती माता की कहानी नहीं सुनी इसलिए तुम्हारे सिर पर धरती माता का कर्ज हैं | वैकुण्ठ में कैसे जायेगी |” ब्राह्मणी बोली – ‘ धरती माता की कहानी के क्या नियम हैं ‘ चित्रगुप्त जी जी बोले – “ कोई एक साल , कोई छ: महीने , कोई सात दिन ही सुने पर धरती माता की कहानी अवश्य सुने |” फिर उसका उद्यापन कर दे | धरती माता की कहानी सुनने से जाने अनजाने किए गए पापकर्मों को धरती माता हर लेती है स्वर्ग लोक में धर्म को ही स्थान प्राप्त है यहां पाप के लिए कोई जगह नहीं है धरती माता की कहानी पीपल के पेड़...

मोतीलाल जोतवाणी :: :: :: धरती से नाता :: कहानी

बसस्टॉप पर काफी भीड़ लग रही थी और बस के आते ही सभी लोग उसके भीतर घुसने को लपकने लगे। बसन्ताणी को बस से नीचे उतरने में काफी मुश्किल का सामना करना पड़ा। नीचे उतरकर उन्होंने जरा पीछे की ओर नंजर घुमाकर देखा, भीड़ में कुछ औरतें और मर्द, औरतें और मर्द नहीं, बल्कि निरर्थक व नपुंसक वासना के मानसिक रोग से ग्रस्त जानवर थे। सन्ध्या उतर आयी थी। महानगर की सन्ध्या गांवों की सन्ध्या से अलग हो गयी है। गांवों की सन्ध्या क्षितिज से धीरे-धीरे पहले घरों में, और फिर खेतों पर उतरती है। शहरों की शाम में घर जल्द पहु/चने की तमन्ना नहीं, आत्मीय नहीं, तृप्ति नहीं है। यहां बिजली के तेंज उजाले में भी नितान्त व्यक्तिगत भरी चादर ओढ़े हुए नहीं रहते, सभी कुछ उघड़ा-उघड़ा नंगा है। बसन्ताणी आगे बढ़े। फैड्रेशन हाऊस अभी कुछ दूरी पर है। बीच शहर में रीगल सिनेमा-घर के पास फैडे्रशन हाऊस नामक एक बड़ा भवन है। वह भवन मानो समूचे भारत का एक छोटा-सा रूप है। उसमें इस महानगर में रहनेवाले भारत के सभी प्रान्तों के लोगों ने अपनी-अपनी सांस्कृतिक संस्थाएं स्थापित की हैं। जब वह भवन बनकर तैयार हुआ था तब उस भवन के सभी खंड ऐसी संस्थाओं से घिर गये। बसन्ताणी ने सोचा, देश-विभाजन के पश्चात् उस समय हमारे लोगों का ध्यान खाना, कपड़ा और मकान की बुनियादी समस्याओं उलझा हुआ था, अन्यथा निस्सन्देह उनकी सांस्कृतिक संस्था को भी उस भवन में यथोचित स्थान मिल जाता। हमारी संस्था के लोगों का कोई एक प्रान्त नहीं है। वे सभी प्रान्तों में बिखरे हुए हैं। देश-विभाजन की दुर्घटना से सबसे अधिक हानि उनकी हुई है। गनीमत यह है कि उन्हें उस भवन की छत पर एक कमरा डालने की इजाजत दी गयी है। तब से वह प्रत्येक रविवार को नियमित रूप से अपनी इस संस्था की बैठक में सम्मिलित ...

सुबह उठते ही सबसे पहले करना चाहिए ये काम, मिलते हैं ढेरों फायदें

ये नहीं देखा तो क्या देखा (VIDEO) अगर हिंदू धर्म की नज़र से देखें तो धरती को माता का दर्ज़ा दिया गया है। ऐसा इसलिए क्योंकि शास्त्रों में पृथ्वी को मां कहा गया है। यही कारण है सनातन संस्कृति में सुबह उठते ही धरती को दाएं हाथ से स्पर्श कर माथे पर लगाने की परपंरा है। प्राचीन काल में महान ऋषि-मुनियों ने इस रीति को विधान बनाकर धार्मिक रूप इसलिए दिया ताकि मानव धरती माता के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट कर सकें और उन्हें सम्मान दे सकें। इसके अलावा कहा जाता है जो भी हम धरती में बोते हैं, ये उसे ही पल्लवित-पोषित करके हमें पुनः दे देती है। अन्न, जल, औषधियां, फल-फूल, वस्त्र एवं आश्रय आदि सब धरती की ही तो देन हैं। शास्त्रों के अनुसार इन्हीं सब कारणों से हम सब धरती माता के ऋणी हैं। ज्योतिष शास्त्र में इन्हीं सभी बातों को ध्यान में रखते हुए कहा गया है कि हर व्यक्ति को सुबह उठकर धरती को प्रणाम करना चाहिए। इसमें इसके लिए एक मंत्र भी दिया गया है। कहते हैं यूं तो माता के समान पूज्यनीय होने से भूमि पर पैर रखना भी दोष का कारण माना जाता है। पर अब भूमि स्पर्श से तो कोई अछूता नहीं रह सकता। यही कारण है कि शास्त्रों में उस पर पैर रखने की विवशता के मद्देनज़र ज्योतिष शास्त्र में एक खास मंत्र दिया गया है जिसक द्वारा धरती माता से क्षमा प्रार्थना की गई है। ये है मंत्र- समुद्र-वसने देवि, पर्वत-स्तन-मंडिते। विष्णु-पत्नि नमस्तुभ्यं, पाद-स्पर्शं क्षमस्व मे॥ अर्थात- इस मंत्र का अर्थ है, समुद्र रुपी वस्त्र धारण करने वाली पर्वत रुपी स्तनों से मंडित भगवान विष्णु की पत्नी हे माता पृथ्वी! मुझे पाद स्पर्श के लिए क्षमा करें। जानें कब-कब और क्यों होती है धरती माता की पूजा- किसी भी छोटे बबच्चे को नया वस्त्र पहनाने से पह...

धरती पर छोटी कविता :

सूचना: दूसरे ब्लॉगर, Youtube चैनल और फेसबुक पेज वाले, कृपया बिना अनुमति हमारी रचनाएँ चोरी ना करे। हम कॉपीराइट क्लेम कर सकते है धरती, जिसे हम माता कह कर बुलाते हैं। लेकिन कभी सोचा है की क्या हम इसे माँ का सम्मान भी देते हैं? आज का इन्सान इतना मतलबी हो गया है कि पर्यावरण को दूषित कर धरती की हालत ख़राब कर रहा है। पर शायद वो यह भूल जाता है कि उसके इस कारनामे से धरती के साथ उसकी भी बर्बादी लिखी जा रही है। आज जरूरत है तो हमें जागने की और अपनी धरती को बचने की। लोगों को जागरूक करने के इसी प्रयास में हम लेकर आये हैं धरती पर छोटी कविता :- धरती पर छोटी कविता दुनिया में एक ही जगह जहाँ जन्मा है इन्सान, ये धरती माता है अपनी और हम इसकी संतान। खाने को धरा ने अन्न दिया जल दिया है हमको पीने को फल-फूल और हैं जीव दिए हैं श्वास दिए हमें जीने को, अपना सबको मान कर रहने को दिया स्थान ये धरती माता है अपनी और हम इसकी संतान। मानव का है इतिहास यहाँ पढ़ता अब तक सारा जहां यहाँ वीरों की हैं गाथाएं जन्में हैं यहाँ पर लोग महान, सबका एक ही लक्ष्य था बस ये मातृभूमि को मिले सम्मान ये धरती माता है अपनी और हम इसकी संतान। जैसे जैसे युग है बदला बदल गए सब लोग बेईमानी बस गयी रगों में मतलब का लग गया है रोग, भूल गए इंसानियत सारी सब बन गए हैं हैवान ये धरती माता है अपनी और हम इसकी संतान। घोल रहें है जहर ये जल में कूड़ा-करकट भर रहे हैं थल में हवा हो रही है जहरीली बिक रही है चीजें खूब नशीली, स्वर्ग बनाना था जिसको उसे बना रहे हैं श्मशान ये धरती माता है अपनी और हम इसकी संतान। अब सबको ये समझाना होगा इस धरा को हमको बचाना होगा अस्तित्व बचाने को सन्देश ये जन-जन तक पहुँचाना होगा, होगा तभी यह संभव जब सबको होगा इसका ज्ञान ये धरती म...

धरती मेरी माता : उपन्यासकार

जोगिन्द्र सिंह कँवल (1927-2017) फीजी के सर्वाधिक लब्धप्रतिष्ठ लेखक माने जाते हैं। फीजी के हिंदी साहित्य जगत में श्री जोगिन्द्र सिंह कँवल एक युगांतर उपस्थित कर देनेवाले रचनाकार के रूप में अवतरित हुए। जोगिन्द्र सिंह कँवल का जन्म व शिक्षण पंजाब में हुआ था। आपने 1959 में फीजी के डी.ए.वी कॉलेज में शिक्षक के रूप में पदभार संभाला व बाद में 1960 में आपने खालसा कॉलेज में अध्यापन किया व 28 वर्षों तक वहाँ के प्रधानाचार्य रहे। स्वर्गीय जोगिंद्र सिंह कँवल को फीजी का एक प्रतिष्ठित शिक्षक तथा साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में एक अमूल्य योगदानकर्ता के रूप में याद किया जाता है। आज भी कँवल जी अपनी रचनाओं के मार्फत जीवित हैं। पंजाबी और उर्दू भाषाओं का अधिकार होते हुए भी उन्होंने हिंदी में तीन काव्य संग्रह, चार उपन्यास, एक कहानी संग्रह, निबंध, आलेख, आलोचनाएँ आदि विविध विधाओं में लिखकर अपनी बहुमुखी प्रतिभा का परिचय दिया है। वे हिंदी के साथ-साथ अंग्रेज़ी भाषा में भी लिखते रहे हैं। अपने साहित्यिक योगदान के लिए कँवल जी विभिन्न सम्मानों से अलंकृत हुए हैं। उन्हें फीजी के राष्ट्रपति द्वारा, 'मेम्बर ऑफ ऑर्डर ऑफ फीजी' (1995), प्रवासी भारतीय परिषद सम्मान (1981), उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान (1978), फीजी हिंदी साहित्य समिति सम्मान (2001), विश्व हिंदी सम्मान (2007) प्राप्त हैं। फीजी में हिंदी भाषा और साहित्य के उत्थान में कँवल ने अत्यंत सक्रिय भूमिका निभाई है। वे हमेशा कहते थे- "मुझे भाषा से इश्क है"। यह भाषा के सम्बन्ध में उनकी उत्साहवर्धक उक्ति रही है जो युवी पीड़ी के लिए प्रेणादायक साबित हुई। कँवल की कृतियाँ कँवल जी ने अनेक साहित्यिक विधाओं में उत्कृष्ट रचनाएँ प्रदान की है जो फीजी में हिंदी भाषा शिक्षण...