ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ pdf free download

  1. ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ Pdf
  2. Dhyan Tatha Iski Paddhatiya
  3. ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ / Dhyan Tatha Isaki Paddhatiya


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ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ Pdf

2 ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ Pdf Download श्रीचरणों में यह पत्रपुष्प रूपी अलुधहि“सांदरें समर्पित है। उन्हीं की प्रेरणा से यह प्रारंभ हश्ना और उन्हीं ने इसे पूरे कराया अतः उन्हीं को यह निवेद्ति किया जाना उचित है । हे इंश्वर ! अज्ञानी जनों फो इन्द्रियों के भोग के वाशवान्‌ पदार्थों पर जैसी गाढ़ी प्रीति रहती है उसी प्रकारें की प्रीति हमारी तुक में हो और तेरा स्मरण करते हुए: हमारे हृदय से वह खुख कभी दूर न होवे ?” हम देखते हे इन्द्रियमोग के पदार्थों से वढ़कर है और किसी बस्तु को न जानने वाले लोग इन पदार्थों पर-घर्न घान्य, कपड़े लत्ते, पुत्र कलन्न, वंधु वांधव, ओर अन्यान्य सामपियों पर कैसी दृढ प्रीति फरते हैं; इनचस्तुओंके प्रति उनकी कैसी घोर आसक्ति रहती है। इसीलिये इस परिभाषा में वे भक्त चद्दपिराज कहते हैं. “ चैसी ही प्रबल आसक्ति, वेसी ही दढ संलभता केवल तेरे प्रति मुझे रहे ” ऐसी ही भीति जब इश्वर के प्रति की जाती दै तव चह “ भक्ति ” कद्दाती है! भक्ति किसी वस्तुका संद्दार नहीं करती वरन भक्ति हमें यह सिखाती है कि हमे जो २ शक्तियां दी गई हैँ उनमें खे कोई भी निरर्थक नहीं है बल्कि उन्हीं के अन्तगत हमारी मुक्ति का स्वासाविक साग है। भक्ति न तो फिसी वस्तु का निषेध ही करती है, न वह हमें प्रकृति के विरुद्ध ही चलाती है। भक्ति तो केवल हमारी प्रकृति को ऊँची उठाती है और उसे अधिक शक्तिशाली प्रेरणा देती है। झंद्रेय विषयोपर हमारी कैसी स्वाभाविक प्रीति हुआ करती है। ऐसी प्रीति किये विना हम रह ही नहीं। सकते क्योकि ये विषय-ये पदाथे हमे इतने सत्य प्रतीत होते हैं। साधारणतः हमे इनसे उच्चतर पदार्थों में कोई यथा- थे ही नहीं दिखाई देती; पर जब मलुप्य इन इन्द्रियों के परे-इन्द्रियों के संसार के उस पार-किसी यथार्थ ...

Dhyan Tatha Iski Paddhatiya

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ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ / Dhyan Tatha Isaki Paddhatiya

श्रीरामकृष्ण के शब्दों में स्वामी विवेकानन्द ‘ध्यानसिद्ध’ थे। इन ‘ध्यानसिद्ध’ महर्षि की गहन आध्यात्मिक अनुभूतियों के स्वयं उन्हीं के द्वारा किये गये विशद वर्णन के आधार पर ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ नामक यह पुस्तक पाठकों को प्रस्तुत करते हमें प्रसन्नता हो रही है। स्वामीजी ने न केवल भारतीय आध्यात्मिक चिन्तन की जाँची-परखी दीर्घ परम्परा के अनुसार ध्यान के अनेक पक्षों को हमारे समक्ष रखा है अपितु मनुष्य जीवन के ध्येय के लिये उसकी उपयोगिता भी बतायी है। साथ ही उन्होंने ध्यानमग्नता द्वारा सुप्त आध्यात्मिक शक्ति को जागृत करके दैनिक व्यावहारिक जीवन में भी दिव्यता की अभिव्यक्ति पर अत्यधिक बल दिया है। अधिक अनुभव अपना अपनी अपने अब अवस्था आत्मा आप इन इस इसी ईश्वर उनके उन्हें उन्होंने उस उसका उसकी उसके उसे एक ऐसा ओर कभी कर करता है करते करना करने करो कहते कहा का कारण किया किसी की कुछ के लिए के लिये केवल को कोई क्या है क्यों क्योंकि गया गये चाहिए जगत् जब जा जाती जीवन जो तक तथा तब तरह तुम तुम्हारे तो था थी थे दिन दिया दी द्वारा धर्म ध्यान नहीं नहीं है नारद ने पर परन्तु प्रत्येक प्राप्त फिर बात बाद बार बुद्ध भी मत मन मनुष्य मुक्त मुझे में मेरे मैं यदि यह यही या योगी रहा रहे रूप वह वे वेदान्त व्यक्त शक्त शब्द शरीर शान्त शिष्य संसार सकते सत्य सब सभी समय साथ से स्वयं स्वामी विवेकानन्द स्वामीजी हम हमारे हमें ही हुआ हुए हूँ है और है कि हो जाता है होकर होगा होता है होती होते होने