गांधी इरविन समझौता कब हुआ था

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  4. 1931 में आज के दिन गांधी
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गांधी इरविन समझौता कब हुआ था

गांधी इरविन समझौता कब हुआ था – 1930 में, भारत अभी भी ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के अधीन था, और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन गति पकड़ रहा था। वायसराय लॉर्ड इरविन के नेतृत्व में ब्रिटिश सरकार को बढ़ते सविनय अवज्ञा और विरोध का सामना करना पड़ा। इन आंदोलनों को कुचलने के प्रयास में, लॉर्ड इरविन ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता मोहनदास करमचंद गांधी के साथ बातचीत शुरू की। इन वार्ताओं ने ऐतिहासिक गांधी-इरविन समझौते को जन्म दिया, एक ऐसा समझौता जिसने स्वतंत्रता के लिए भारत के संघर्ष में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर चिह्नित किया। गांधी-इरविन समझौते की ओर ले जाने वाला प्रसंग भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन भारत लगभग दो शताब्दियों तक ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के अधीन रहा था जब 20वीं शताब्दी की शुरुआत में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन ने गति पकड़ी थी। मोहनदास करमचंद गांधी सहित भारतीय नेता, ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता प्राप्त करने और एक स्वतंत्र, लोकतांत्रिक भारत की स्थापना के लिए दृढ़ संकल्पित थे। नमक सत्याग्रह और सविनय अवज्ञा गांधी-इरविन समझौते तक पहुंचने वाली सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक नमक सत्याग्रह था, जिसे नमक मार्च भी कहा जाता है। 1930 में, गांधी ने अनुयायियों के एक समूह का नेतृत्व करते हुए नमक इकट्ठा करने के लिए अरब सागर की ओर मार्च किया, ब्रिटिश कानूनों की अवज्ञा में, जिसने भारतीयों को बिना कर का भुगतान किए नमक इकट्ठा करने या बेचने पर रोक लगा दी थी। इस आंदोलन ने व्यापक सविनय अवज्ञा को जन्म दिया, जिसमें हजारों भारतीय विरोध में शामिल हुए और ब्रिटिश शासन के खिलाफ सविनय अवज्ञा के कृत्यों का मंचन किया। बातचीत की आवश्यकता वायसराय लॉर्ड इरविन के नेतृत्व वाली ब्रिटिश सरकार को एक दुविधा का सामना करना पड़ा...

गांधी इरविन समझौता कब हुआ था?

Explanation : गांधी इरविन समझौता 1931 में हुआ था। लंदन में आयोजित दूसरे गोलमेज सम्मेलन से पूर्व 5 मार्च, 1931 को महात्मा गांधी और भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इर्विन के मध्य हस्ताक्षरित गांधी इर्विन समझौता एक राजनीतिक समझौता था। इस समझौते के साथ ही भारत में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध गांधी और उनके अनुयायियों द्वारा शुरु किया गया नमक मार्च (मार्च-अप्रैल 1930) के साथ आरंभ हुआ सविनय अवज्ञा आंदोलन (सत्याग्रह) समाप्त हो गया। बता दे​ कि इस प्रश्न से जुड़े सामान्य ज्ञान के प्रश्न रेलवे की विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे जाते रहे है। जो छात्र भारतीय रेलवे की वि​भिन्न जोनल रेलवे और उत्पादन इकाईयों में गैर तकनीकी लोकप्रिय श्रेणियों जैसे कनिष्ठ सह टंकक, लेखा लिपिक सह टंकक, ट्रेन लिपिक, वाणिज्यिक सह टिकट लिपिक, यातायात सहायक, गुड्स गार्ड, वरिष्ठ वाणिज्यिक सह टिकट लिपिक, वरिष्ठ लिपिक सह टंकक, कनिष्ठ लेखा सहायक सह टंकक, वरिष्ठ समयपाल कमर्शियल अपरेंटिस और स्टेशन मास्टर के पदों के लिए तैयारी कर रहे है। उन्हें इन प्रश्नों को विशेषतौर पर याद कर लेना चाहिए। Tags :

gandhi irwin samjhauta kab hua tha

People Also Read: What is Gandhi–Irwin Pact – Wikipedia The Gandhi–Irwin Pact was a political agreement signed by Mahatma Gandhi and Lord Irwin, Viceroy of India, on 5 March 1931 before the Second Round Table Coference in London. Before this, Irwin , the Viceroy, had announced in October 1929 a vague offer of ' dominion status ' for India in an unspecified future and a Round Table Coference to discuss a future constitution. People Also Read: How to use गांधी -इरविन समझौता कब हुआ था? » Gandhi Irvine Samjhauta Kab Hua Tha गाँधी-इरविन समझौता | Gandhi–Irwin Pact in Hindi | दिल्ली समझौता,. This post is also available in: English (English) गांधी इरविन समझौता (Gandhi Irwin Pact in Hindi) 5 मार्च 1931 को महात्मा गांधी और लॉर्ड इरविन द्वारा संपन्न एक राजनीतिक समझौता है। इस समझौते का उद्देश्य गोलमेज सम्मेलनों में भारतीय. Gandhi Irwin Pact-गांधी-इरविन पैक्ट या गाँधी इरविन समझौता 5 मार्च सन 1931 को महात्मा गाँधी और भारत के तत्कालीन वायसराय लार्ड इरविन के बीच हुआ था. यह समझौता अपने आप में एक ऐतिहासिक समझौता था. Rajiv Gandhi Longowal Samjhauta Kab Hua Tha. (क) 1985 में (ख) 1990 में (ग) 2000 में (घ) 2005 में. People Also Read: Disclaimer Statement: This article was written by someone else. Their opinions are their own and not necessarily those of Nashikcorporation.in or NC. NC doesn't guarantee or endorse anything in this article, so please make sure to check that the information is accurate and up-to-date. NC doesn't provide any warranties about this article. You can also report this us...

1931 में आज के दिन गांधी

आधुनिक भारत के इतिहास में 5 मार्च 1931 का दिन बहुत खास था। महात्मा गांधी और तत्कालीन वायसरॉय लॉर्ड इरविन के बीच ऐतिहासिक समझौता हुआ था। पहली बार अंग्रेजों ने भारतीयों के साथ समान स्तर पर समझौता किया था। इतिहासकार यह भी मानते हैं कि गांधीजी चाहते तो भगत सिंह की फांसी रोकने के लिए वायसरॉय पर दबाव बना सकते थे, पर उन्होंने ऐसा किया नहीं। इस समझौते की पृष्ठभूमि 1930 की है। अंग्रेजी हुकूमत ने भारतीयों के नमक बनाने और बेचने पर पाबंदी लगा दी थी। इसके खिलाफ महात्मा गांधी ने अहमदाबाद के साबरमती आश्रम से दांडी तक मार्च निकाला, जिसे दांडी मार्च भी कहते हैं। यह सविनय अवज्ञा आंदोलन की ओर पहला कदम था। गांधीजी ने समुद्र तट पर पहुंचकर खुद यह नमक कानून तोड़ा था। इस पर उन्हें जेल में डाल दिया गया था। नमक आंदोलन ने पूरी दुनियाभर में सुर्खियां हासिल कीं और इस कारण लॉर्ड इरविन की मुश्किलें बढ़ गई थीं। तब उन्होंने पांच दौर की बैठक के बाद महात्मा गांधी के साथ 5 मार्च 1931 को समझौता किया, जिसे गांधी-इरविन पैक्ट कहा जाता है। इसमें हिंसा के आरोपियों को छोड़कर बाकी सभी राजनीतिक बंदियों को रिहा करने पर सहमति बनी थी। उस समय पूरा देश 23 साल के भगत सिंह की चर्चा कर रहा था, जिन्हें अक्टूबर 1930 में फांसी की सजा सुनाई गी थी। गांधीजी पर कांग्रेस के साथ-साथ देश का भी दबाव था कि वे भगत सिंह की फांसी को रुकवाएं, पर गांधी-इरविन समझौते में इसका जिक्र तक नहीं था। गांधी ने अपने पत्र में इतना ही लिखा कि भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी न दी जाए तो अच्छा है। दरअसल, वे भगत सिंह के संघर्ष को राष्ट्रीय आंदोलन का हिस्सा नहीं मानते थे। इसी वजह से 23 मार्च 1931 को भगत सिंह और उनके दो साथियों को फांसी दे दी गई। वहीं, स...

गांधी

आज के इस टॉपिक में हमलोग गाँधी-इरविन समझौता के बारे में और गांधी-इरविन समझौता कब हुआ ( Gandhi Ir win Samjhauta Kab Hua ) के बारे में पढ़ेंगे। मैंने कोशिश किया है इससमझौते को रोचक तरीके से लिखने का। गांधी-इरविन समझौता कब हुआ ( Gandhi Irwin Samjhauta Kab Hua ) था ? जब ब्रिटिश सरकार कांग्रेस से कुछ चाह रही थी और कांग्रेस ब्रिटिश सरकार से तब गाँधी – इरविन समझौता 5 March 1931 को दिल्ली में हुआ था। तेज बहादुर सप्रू और एम आर जयकर के प्रयत्न से गांधीजी और तत्कालीन वॉयसरॉय इरविन के बीच फ़रवरी 1931 में बातचीत शुरू हुई और ये वार्ता 4 मार्च 1931 के रात तक तक चला। इनके बीच वार्ता लगभग 15 दिनों तक चला। और 5 मार्च को दोनों पक्ष ( कांग्रेस के तरफ से गांधीजी और ब्रिटिश सरकार के तरफ से इरविन ) कुछ शर्तों पर समझौते करने को राजी हो गए। और इस प्रकार से दोनों समझौते पर हस्ताक्षर किये। यह समझौता पहले गोलमेज सम्मलेन समाप्त होने के बाद हुआ था। Ques – गांधी-इरविन समझौता क्यों हुआ ? Ans – पहला गोलमेज सम्मलेन के असफल होने के कारण ब्रिटिश सरकार ये समझ गयी कि कांग्रेस के भागीदारी के बिना दूसरा गोलमेज सम्मलेन भी असफल ही रहेगा। इसलिए दूसरे गोलमेज सम्मलेन में आने के लिए ब्रिटिश सरकार ने गाँधी-इरविन समझौता के लिए अपना मन बनाया। वैसे अन्य और भी कारण थे लेकिन ये मुख्या कारण था। Ques – गांधी इरविन समझौता की मध्यस्थता किसने की ? Ans – गाँधी इरविन समझौता के लिए मध्यस्थता करने वाले दो व्यक्ति थे। उनका नाम था – तेज बहादुर सप्रू और एम आर जयकर। इन दोनों ने गाँधी इरविन समझौते के मध्यस्थता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाया। भारत छोड़ो आंदोलन के सम्पूर्ण जानकारी के लिए नीचे Click करें। Bharat Chhodo Andolan गांधी-इरविन समझौता...

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People Also Read: What is Gandhi–Irwin Pact – Wikipedia The Gandhi–Irwin Pact was a political agreement signed by Mahatma Gandhi and Lord Irwin, Viceroy of India, on 5 March 1931 before the Second Round Table Coference in London. Before this, Irwin , the Viceroy, had announced in October 1929 a vague offer of ' dominion status ' for India in an unspecified future and a Round Table Coference to discuss a future constitution. People Also Read: How to use गांधी -इरविन समझौता कब हुआ था? » Gandhi Irvine Samjhauta Kab Hua Tha गाँधी-इरविन समझौता | Gandhi–Irwin Pact in Hindi | दिल्ली समझौता,. This post is also available in: English (English) गांधी इरविन समझौता (Gandhi Irwin Pact in Hindi) 5 मार्च 1931 को महात्मा गांधी और लॉर्ड इरविन द्वारा संपन्न एक राजनीतिक समझौता है। इस समझौते का उद्देश्य गोलमेज सम्मेलनों में भारतीय. Gandhi Irwin Pact-गांधी-इरविन पैक्ट या गाँधी इरविन समझौता 5 मार्च सन 1931 को महात्मा गाँधी और भारत के तत्कालीन वायसराय लार्ड इरविन के बीच हुआ था. यह समझौता अपने आप में एक ऐतिहासिक समझौता था. Rajiv Gandhi Longowal Samjhauta Kab Hua Tha. (क) 1985 में (ख) 1990 में (ग) 2000 में (घ) 2005 में. People Also Read: Disclaimer Statement: This article was written by someone else. Their opinions are their own and not necessarily those of Nashikcorporation.in or NC. NC doesn't guarantee or endorse anything in this article, so please make sure to check that the information is accurate and up-to-date. NC doesn't provide any warranties about this article. You can also report this us...

गांधी

gandhi irwin pact in hindi गांधी-इरविन समझौता कब हुआ उसके दो शर्तों का उल्लेख कीजिए , क्यों और कब हुआ और किस नाम से जाना जाता है ? प्रश्न: गांधी-इरविन समझौता क्या था ? इसकी आलोचनात्मकता विवेचना कीजिए। उत्तर: सर तेज बहादुर सप्रू, श्री जयकर एवं बी.एस. शास्त्री के प्रयत्नों के फलस्वरूप गांधीजी एवं वायसराय इरविन के बीच 5 मार्च, 1931 को एक समझौता हुआ, जिसे गांधी-इरविन समझौता या ‘दिल्ली पैक्ट‘ कहते हैं। समझौते की प्रमुख विशेषताएं निम्न हैं। 1. कांग्रेस को सविनय अवज्ञा आंदोलन वापस ले लेना पड़ा। 2. कांग्रेस द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए तैयार हो गयी। 3. संविधान के प्रश्न पर यह तय हुआ कि संविधान का बुनियादी आधार संघात्मक हो। 4. जिन लोगों को बन्दी बनाया गया, उनमें से उन सभी राजनीतिक बन्दियों की रिहाई, जिन पर हिंसक कार्रवाई का आरोप नहीं है। 5. कानून द्वारा निर्धारित सीमा में शराब व विदेशी दुकानों को रखना होगा। 6. जुर्माना समाप्त करना तथा चल सम्पत्ति जो जब्त की गयी, उसको वापस कर दिया जायेगा। 7. सरकार ने तटीय इलाकों में रहने वाले ग्रामीणों को घरेलू उपयोग हेतु नमक बनाने के अधिकार दिये और शांतिपूर्ण तरीके से बिना आक्रामक हुए लोगों को धरना देने का अधिकार भी दिया। 8. सविनय अवज्ञा आन्दोलन से संबंधित सभी अध्यादेशों को वापस कर लिया गया। करांची अधिवेशन (1931) ने गांधी-इरविन समझौते का अनुमोदन कर दिया। प्रश्न: मैकडोनाल्ड निर्णय क्या था ? इसे गांधीजी ने किस प्रकार संशोधित किया गया ? उत्तर: द्वितीय गोलमेज सम्मेलन की समाप्ति पर रैम्से मैकडोनाल्ड ने अगस्त, 1932 में ‘सांप्रदायिक निर्णय‘ की घोषणा की। इस घोषणा में दलित वर्ग को भी मुसलमान, सिख, ईसाई के साथ अल्पसंख्यक वर्ग में रख दिया गया, जि...

गांधी इरविन समझौता कब हुआ था?

इरविन को यह आभास हुआ कि सविनय अवज्ञा आन्दोलन दबाया नहीं जा सकता। उसने मध्यस्थ द्वारा गाँधीजी से समझौते की बातचीत आरम्भ की। इसी बीच गोलमेज सम्मेलन का प्रथम अधिवेशन लंदन में आरम्भ हो गया लेकिन कांग्रेस ने उसमें हिस्सा नहीं लिया। प्रधानमंत्री रैम्जे ने यह आशा व्यक्त की कि कांग्रेस दूसरे अधिवेशन में भाग ले सकेगी। फलस्वरूप गांधीजी को जेल से 26 फरवरी, 1931 ई. को छोड़ दिया गया। 5 मार्च, 1931 को दोनों पक्षों ने समझौते पर हस्ताक्षर किये। Explanation : मुहम्मद आदिल शाह का मकबरा बीजापुर, कर्नाटक में स्थित है। इसे गोल गुंबज या गोल गुंबद कहा जाता है। बीजापुर के सुल्तान मुहम्मद आदिल शाह के मकबरे गोल गुंबज का निर्माण फारसी वास्तुकार दाबुल के याकूत ने 1656 ई. में कराया था। गोल गुंबज • राज्य सभा में सदस्य बनने के लिए किसी भी व्यक्ति की कम से कम आयु कितनी होनी चाहिए?

गांधी इरविन समझौता कब हुआ था

गांधी इरविन समझौता कब हुआ था – 1930 में, भारत अभी भी ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के अधीन था, और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन गति पकड़ रहा था। वायसराय लॉर्ड इरविन के नेतृत्व में ब्रिटिश सरकार को बढ़ते सविनय अवज्ञा और विरोध का सामना करना पड़ा। इन आंदोलनों को कुचलने के प्रयास में, लॉर्ड इरविन ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता मोहनदास करमचंद गांधी के साथ बातचीत शुरू की। इन वार्ताओं ने ऐतिहासिक गांधी-इरविन समझौते को जन्म दिया, एक ऐसा समझौता जिसने स्वतंत्रता के लिए भारत के संघर्ष में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर चिह्नित किया। गांधी-इरविन समझौते की ओर ले जाने वाला प्रसंग भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन भारत लगभग दो शताब्दियों तक ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के अधीन रहा था जब 20वीं शताब्दी की शुरुआत में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन ने गति पकड़ी थी। मोहनदास करमचंद गांधी सहित भारतीय नेता, ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता प्राप्त करने और एक स्वतंत्र, लोकतांत्रिक भारत की स्थापना के लिए दृढ़ संकल्पित थे। नमक सत्याग्रह और सविनय अवज्ञा गांधी-इरविन समझौते तक पहुंचने वाली सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक नमक सत्याग्रह था, जिसे नमक मार्च भी कहा जाता है। 1930 में, गांधी ने अनुयायियों के एक समूह का नेतृत्व करते हुए नमक इकट्ठा करने के लिए अरब सागर की ओर मार्च किया, ब्रिटिश कानूनों की अवज्ञा में, जिसने भारतीयों को बिना कर का भुगतान किए नमक इकट्ठा करने या बेचने पर रोक लगा दी थी। इस आंदोलन ने व्यापक सविनय अवज्ञा को जन्म दिया, जिसमें हजारों भारतीय विरोध में शामिल हुए और ब्रिटिश शासन के खिलाफ सविनय अवज्ञा के कृत्यों का मंचन किया। बातचीत की आवश्यकता वायसराय लॉर्ड इरविन के नेतृत्व वाली ब्रिटिश सरकार को एक दुविधा का सामना करना पड़ा...

1931 में आज के दिन गांधी

आधुनिक भारत के इतिहास में 5 मार्च 1931 का दिन बहुत खास था। महात्मा गांधी और तत्कालीन वायसरॉय लॉर्ड इरविन के बीच ऐतिहासिक समझौता हुआ था। पहली बार अंग्रेजों ने भारतीयों के साथ समान स्तर पर समझौता किया था। इतिहासकार यह भी मानते हैं कि गांधीजी चाहते तो भगत सिंह की फांसी रोकने के लिए वायसरॉय पर दबाव बना सकते थे, पर उन्होंने ऐसा किया नहीं। इस समझौते की पृष्ठभूमि 1930 की है। अंग्रेजी हुकूमत ने भारतीयों के नमक बनाने और बेचने पर पाबंदी लगा दी थी। इसके खिलाफ महात्मा गांधी ने अहमदाबाद के साबरमती आश्रम से दांडी तक मार्च निकाला, जिसे दांडी मार्च भी कहते हैं। यह सविनय अवज्ञा आंदोलन की ओर पहला कदम था। गांधीजी ने समुद्र तट पर पहुंचकर खुद यह नमक कानून तोड़ा था। इस पर उन्हें जेल में डाल दिया गया था। नमक आंदोलन ने पूरी दुनियाभर में सुर्खियां हासिल कीं और इस कारण लॉर्ड इरविन की मुश्किलें बढ़ गई थीं। तब उन्होंने पांच दौर की बैठक के बाद महात्मा गांधी के साथ 5 मार्च 1931 को समझौता किया, जिसे गांधी-इरविन पैक्ट कहा जाता है। इसमें हिंसा के आरोपियों को छोड़कर बाकी सभी राजनीतिक बंदियों को रिहा करने पर सहमति बनी थी। उस समय पूरा देश 23 साल के भगत सिंह की चर्चा कर रहा था, जिन्हें अक्टूबर 1930 में फांसी की सजा सुनाई गी थी। गांधीजी पर कांग्रेस के साथ-साथ देश का भी दबाव था कि वे भगत सिंह की फांसी को रुकवाएं, पर गांधी-इरविन समझौते में इसका जिक्र तक नहीं था। गांधी ने अपने पत्र में इतना ही लिखा कि भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी न दी जाए तो अच्छा है। दरअसल, वे भगत सिंह के संघर्ष को राष्ट्रीय आंदोलन का हिस्सा नहीं मानते थे। इसी वजह से 23 मार्च 1931 को भगत सिंह और उनके दो साथियों को फांसी दे दी गई। वहीं, स...