गाय और बछड़े का चित्र

  1. उत्तराखण्ड की लोककथा : गाय, बछड़ा और बाघ
  2. गाय का बछड़ा जंगल में एक गड्ढे में गिर गया, उसके मालिक ने कई कोशिशें कीं लेकिन नहीं निकाल सका तो वो गड्ढे में मिट्टी डालकर उसे वहीं दफनाने लगा, तभी हुआ चमत्कार और बछड़ा बच गया
  3. आलोकधन्वा :: :: :: गाय और बछड़ा :: कविता
  4. Cow and Tiger Story in Hindi: गाय और बाघ की कहानी


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कांग्रेस का चुनाव चिह्न ‘पंजा’ रद्द कराने के लिए जहां बीजेपी के एक नेता ने चुनाव आयोग का दरवाजा खटखटाया है वहीं लेखक और पत्रकार राशिद किदवई ने अपनी किताब ‘बैलट: टेन एपिसोड्स दैट हैव शेप्ड इंडियाज डेमोक्रेसी’ में कांग्रेस को पंजा चुनाव चिह्न आवंटित होने के घटनाक्रम का उल्लेख किया है कि इंदिरा गांधी ने साइकिल, हाथी और पंजा में से पंजा का चुनाव किया था। बता दें कि साल 1950 में चुनाव आयोग ने सबसे पहले कांग्रेस को ‘दो बैलों की जोड़ी’ चुनाव चिह्न आवंटित किया था लेकिन 1969 में पार्टी का विभाजन होने के बाद चुनाव आयोग ने इस सिंबल को फ्रीज कर दिया और कामराज धड़े वाली कांग्रेस को ‘तिरंगे में चरखा’ और इंदिरा गांधी की अगुवाई वाली नई कांग्रेस (आई) को ‘गाय और बछड़ा’ का चुनाव चिह्न आवंटित किया था। बाद में 1977 में चुनाव आयोग ने गाय- बछड़ा चुनाव चिह्न की जगह कांग्रेस को ‘पंजा’ निशान आवंटित कर दिया था। राशिद किदवई की किताब में कहा गया है कि 1977 में देश में कांग्रेस के खिलाफ हवा थी। यहां तक कि उनके चुनाव चिह्न गाय और बछड़े को लोग विकृत कर पुकारते थे। गाय का मतलब इंदिरा गांधी और बछड़े का मतलब संजय गांधी निकाला जाता था। इसके बाद कांग्रेस ने चुनाव आयोग में अर्जी देकर नया चुनाव चिह्न आवंटित करने को कहा था। इससे पहले कांग्रेस ने पुराने चुनाव चिह्न ‘दो बैलों की जोड़ी’ की मांग की लेकिन आयोग ने उसे फ्रीज होने की बात कह कांग्रेस की मांग नकार दी। इसके बात तत्कालीन कांग्रेस महासचिव बूटा सिंह ने आयोग को नया चुनाव चिह्न के लिए आवेदन दिया। उस वक्त इंदिरा गांधी दिल्ली से बाहर विजयवाड़ा में थीं। उनके साथ नरसिम्हा राव भी थे। इसी बीच आयोग की तरफ से कांग्रेस को साइकिल, हाथी और पंजा में से किसी एक चुनाव चिह्न ...

उत्तराखण्ड की लोककथा : गाय, बछड़ा और बाघ

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गाय का बछड़ा जंगल में एक गड्ढे में गिर गया, उसके मालिक ने कई कोशिशें कीं लेकिन नहीं निकाल सका तो वो गड्ढे में मिट्टी डालकर उसे वहीं दफनाने लगा, तभी हुआ चमत्कार और बछड़ा बच गया

Motivational story in hindi with Moral inspirational story of a Farmer and his cow रिलिजन डेस्क. किसी गांव में एक किसान रहता था। एक दिन वो अपनी गाय और उसके बछड़े को लेकर जंगल के रास्ते जा रहा था। तभी रास्ते में एक गड्ढे में गाय का बछड़ा फिसल कर गिर गया। गड्ढा थोड़ा गहरा था। किसान उसमें कूदकर उसे उठाकर नहीं ला सकता था। वो घबराया। परेशानी में अलग-अलग कोशिशें करने लगा। कभी वो कमर तक गड्ढे में झुककर बछड़े को पकड़ने की कोशिश करता तो कभी रस्सी का फंदा बनाकर उसे बांधने की कोशिश करता। काफी समय बीत गया। दिन भी धीरे-धीरे ढलने लगा। किसान की बेचैनी और बढ़ गई। वो ये सोचने लगा कि बछड़ा नहीं निकला तो गड्ढे में ही मर जाएगा। उसे निकालना असंभव सा दिख रहा है। किसी भी तरह उसे निकालने की कोई तरकीब काम नहीं कर रही है। और अगर वो ज्यादा देर जंगल में रुका रहा था तो जंगली जानवरों का डर भी रहेगा। कहीं, बछड़े को बचाने के चक्कर में उसे खुद की और गाय की जान ना गंवानी पड़ जाए। ये सोचकर किसान के हाथ-पैर ढीले पड़ने लगे। उसने सोचा कि बछड़े का मरना तो तय ही दिख रहा है, क्यों ना इसी गड्ढे में इसे जिंदा ही दफना दिया जाए ताकि कोई जानवर उसे मारकर खा ना सके। इस तरह उसका अंतिम संस्कार भी ठीक से हो जाएगा। किसान ने ये सोचकर आसपास पड़े मिट्टी और पत्थर गड्ढे में डालना शुरू कर दिए। काफी मिट्टी डालने से बछड़े पर मिट्टी जमने लगी और वो मिट्टी झाड़ते हुए थोड़ा ऊपर आ गया। किसान को तरकीब मिल गई। उसने ज्यादा तेजी से गड्ढे में मिट्टी डालना शुरू की और बछड़ा भी मिट्टी झाड़ते हुए ऊपर आता गया। इस तरह गड्ढा भर गया और बछड़ा अपने आप बाहर आ गया। किसान खुशी-खुशी गाय और बछड़े को लेकर घर आ गया। कहानी से सीख (Moral of Story) कभी किसी भी ...

आलोकधन्वा :: :: :: गाय और बछड़ा :: कविता

एक भूरी गाय अपने बछड़े के साथ बछड़ा क़रीब एक दिन का होगा घास के मैदान में जो धूप से भरा है बछड़ा भी भूरा ही है लेकिन उसका नन्हा गीला मुख ज़रा सफेद उसका पूरा शरीर ही गीला है गाय उसे जीभ से चाट रही है गाय थकी हुई है ज़रूर प्रसव की पीड़ा से बाहर आई है फिर भी बछड़े को अपनी काली आँखों से निहारती जाती है और उसे चाटती जा रही है बछड़े की आँखें उसकी माँ से भी ज़्यादा काली हैं अभी दुनिया की धूल से अछूती बछड़ा खड़ा होने में लगा है लेकिन कमल के नाल जैसी कोमल उसकी टाँगें क्यों भला ले पायेंगी उसका भार ! वह आगे के पैरों से ज़ोर लगाता है उसके घुटने भी मुड़ रहे हैं पहली पहली बार ज़रा-सा उठने में गिरता है कई बार घास पर गाय और चरवाहा दोनों उसे देखते हैं सृष्टि के सबक हैं अपार जिन्हें इस बछड़े को भी सीखना होगा अभी तो वह आया ही है मेरी शुभकामना बछड़ा और उसकी माँ दोनों की उम्र लम्बी हो चरवाहा बछड़े को अपनी गोद में लेकर जा रहा है झोपड़ी में गाय भी पीछे-पीछे दौड़ती जा रही है।

Cow and Tiger Story in Hindi: गाय और बाघ की कहानी

पुराणों में एक से बढ़कर एक नैतिक कहानियाँ पढने-सुनने को मिलती हैं, जिनमे आदर्शों, जीवन मूल्यों, त्याग और सिद्धांतों का निचोड़ समाहित है। ऐसी ही एक कहानी ( इस युग में न सिर्फ मनुष्य, बल्कि पशु-पक्षी भी सत्य का ही आचरण करते हैं, इसीलिये इसे सत्य युग कहते हैं। यह कहानी है एक सत्यनिष्ठ गाय और बाघ की, जिन्होंने सत्य पर दृढ रहकर, इतना ऊँचा आदर्श स्थापित किया कि वह इंसानों से भी आगे बढ़ गये। एक बार साँझ के समय एक नयी ब्याही गाय जंगल से निकलकर तेजी से अपने घर की तरफ दौड़ती जा रही थी कि अचानक एक शक्तिशाली बाघ बीच रास्ते में आकर खड़ा हो गया। उसे देखकर गाय एकदम सहम गयी, क्योंकि वह जानती थी कि बाघ के रूप में उसका काल ही रास्ते में आकर खड़ा हो गया है और वह उसे मारे बिना नहीं छोड़ेगा। लेकिन उसे अपने जीवन की नहीं, बल्कि अपनी संतान, उस बछड़े की चिंता थी जो एक दिन पहले ही जन्मा था। अपनी मजबूरी देखकर, उस गाय की आँखों में आँसू आ गये। Cow and Tiger Story in Hindi कोई और उपाय न देख उसने बाघ से ही विनती करने का निश्चय किया, क्योंकि अब उसके और उसकी संतान के जीवन का भाग्यविधाता वही था। वह बाघ से बोली –“हे वनराज! कृपया मुझे जाने दो। मेरा बछड़ा घर पर मेरा इंतजार कर रहा है। उसने कुछ ही समय पहले जन्म लिया है और वह मेरे दूध पर ही जिन्दा है। अगर तुम मुझे मार डालोगे, तो निश्चित रूप से वह भी मर जायेगा।” कृपया मेरी विनती सुनकर मुझे जाने की आज्ञा दे दो, ताकि अंतिम बार मै अपने बच्चे को अपना दूध पिला आँउ। फिर मै स्वयं ही तुम्हारे सामने प्रस्तुत हो जाऊँगी, तब तुम मुझे आसानी से खा लेना, मै सत्य की शपथ खाकर कहती हूँ। बाघ मंद-मंद मुस्कुराते हुए बोला –“हे गौ! मै पिछले कई दिन से भूखा हूँ और आज संध्या के समय तुम मुझे आहार क...