Geeta ka 14 adhyay in hindi

  1. श्रीमद भगवद गीता
  2. ऐसे करें ''गीता'' का पाठ, टल जाएगा बुरा समय
  3. संपूर्ण गीता सार
  4. श्रीमद्भगवद्गीता के तृतीय अध्याय का माहात्म्य,उपदेश,अर्थ व सार The significance, precept, meaning and essence of the third chapter of Srimad Bhagavad Gita
  5. श्रीमद्भागवत गीता का सार
  6. Shrimad Bhagwat Geeta In Hindi ~ सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता
  7. सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता Shrimad Bhagwat Geeta In Hindi
  8. श्रीमद भगवत गीता के श्लोक अर्थ सहित


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श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 18 का श्लोक 1 (अर्जुन उवाच) सóयासस्य, महाबाहो, तत्त्वम्, इच्छामि, वेदितुम्, त्यागस्य, च, हृषीकेश, पृथक्, केशिनिषूदन।।1।। अनुवाद: (महाबाहो) हे महाबाहो! (हृषीकेश) हे अन्तर्यामिन! (केशिनिषूदन) केशिनाशक (सóयासस्य) संन्यास (च) और (त्यागस्य) त्यागके (तत्त्वम्) तत्वको (पृथक्) पृथक्-पृथक् (वेदितुम्) जानना (इच्छामि) चाहता हूँ। (1) हिन्दी: हे महाबाहो! हे अन्तर्यामिन! केशिनाशक संन्यास और त्यागके तत्वको पृथक्-पृथक् जानना चाहता हूँ। अध्याय 18 का श्लोक 2 काम्यानाम्, कर्मणाम्, न्यासम्, सóयासम्, कवयः, विदुः, सर्वकर्मफलत्यागम्, प्राहुः, त्यागम्, विचक्षणाः।।2।। अनुवाद: (कवयः) पण्डितजन तो (काम्यानाम्) मनोकामना के लिए किए धार्मिक (कर्मणाम्) कर्मोंके (न्यासम्) त्यागको (सóयासम्) संन्यास (विदुः) समझते हैं तथा दूसरे (विचक्षणाः) विचारकुशल पुरुष (सर्वकर्मफलत्यागम्) सब कर्मोंके फलके त्यागको (त्यागम्) त्याग (प्राहुः) कहते हैं। (2) हिन्दी: पण्डितजन तो मनोकामना के लिए किए धार्मिक कर्मोंके त्यागको संन्यास समझते हैं तथा दूसरे विचारकुशल पुरुष सब कर्मोंके फलके त्यागको त्याग कहते हैं। अध्याय 18 का श्लोक 3 त्याज्यम्, दोषवत्, इति, एके, कर्म, प्राहुः, मनीषिणः, यज्ञदानतपःकर्म, न, त्याज्यम्, इति, च, अपरे।।3।। अनुवाद: (एके) कई एक (मनीषिणः) विद्वान् (इति) ऐसा (प्राहुः) कहते हैं कि (कर्म) शास्त्र विधि रहित भक्ति कर्म (दोषवत्) दोषयुक्त हैं इसलिये (त्याज्यम्) त्यागनेके योग्य हैं (च) और (अपरे) दूसरे विद्वान् (इति) यह कहते हैं कि (यज्ञदानतपःकर्मः) यज्ञ, दान और तपरूपी कर्म (न,त्याज्यम्) त्यागने योग्य नहीं हैं। (3) हिन्दी: कई एक विद्वान् ऐसा कहते हैं कि शास्त्र विधि रहित भक्ति कर्म दोषयुक्त हैं इसलिये त्यागनेके यो...

ऐसे करें ''गीता'' का पाठ, टल जाएगा बुरा समय

नई दिल्ली. भगवद् गीता को हिंदू धर्म ग्रंथों में पवित्र माना गया है। गीता पाठ के लाभ व नियम भी हैं। गीता पाठ करने से ज्ञान की प्राप्ति तो होती ही है साथ ही अशांत मन को शांति मिलती है। लेकिन भगवत गीता का पाठ करने का तरीका कुछ अलग होता है। यदि ज्योतिष की नजर से देखें तो इसके कुछ ऐसे उपाय हैं जो मनुष्य को ग्रहों के प्रभाव और उनसे होने वाले नुकसान से बचाने और उनका लाभ उठाने में मदद करते हैं। गीता के अठारह अध्यायों में भगवान श्रीकृष्ण ने जो संकेत दिए हैं, उन्हें ज्योतिष के आधार पर विश्लेषित किया गया है। इनमें से कुछ अध्याय ऐसे भी हैं जो जीवन में आ रही लगातार विपत्तियों से मनुष्य को छुटकारा दिलाते हैं। इसमें ग्रहों का प्रभाव और उनसे होने वाले नुकसान से बचने और उनका लाभ उठाने के संबंध में यह सूत्र बहुत काम के लगते हैं। इसमें शनि संबंधी पीड़ा होने पर प्रथम अध्याय का पठन करना चाहिए। द्वितीय अध्याय, जब जातक की कुंडली में गुरू की दृष्टि शनि पर हो, तृतीय अध्याय 10वां भाव शनि, मंगल और गुरू के प्रभाव में होने पर, चतुर्थ अध्याय कुंडली का 9वां भाव तथा कारक ग्रह प्रभावित होने पर, पंचम अध्याय भाव 9 तथा 10 के अंतरपरिवर्तन में लाभ देते हैं। इसी प्रकार छठा अध्याय तात्कालिक रूप से आठवां भाव एवं गुरू व शनि का प्रभाव होने और शुक्र का इस भाव से संबंधित होने पर लाभकारी है।

संपूर्ण गीता सार

ये ज्ञान परमात्मा ने भगवान कृष्ण के द्वारा सबसे बड़े धर्मयुद्ध, महाभारत की रणभूमी कुरूक्षेत्र में अर्जुन को कुछ 5000 साल पहले दिया। ये वो वक्त था जब धर्म का बार-बार उल्लंघन हुआ, परमात्मा का डर मनुष्य से निकल गया, लालच की होड़ में भाई ने भाई को मारने की कोशिश की और यही नहीं एक ब्याहता को भरी सभा में अपने बड़ों के सामने अपमानित किया गया। इससे पहले कि मनुष्य जाति धर्म युग से निकलकर पूर्ण रूप से कलयुग में जाती युद्ध की रणभूमि में युद्ध से कुछ पहले परमात्मा ने गीता भगवान कृष्ण के द्वारा मनुष्य जाति के कल्याण के लिए दि। • ये भी पढ़े - गीता परमाप्ता द्वारा दी गई किताब है, जो किसी एक धर्म के लिए नहीं बल्कि पूरी मनुष्य जाति के लिए हैं। पूरी इंसानियत के लिए हैं, सब आत्माओं के लिए हैं। क्योंकि ये आत्मा को परमात्मा के बारे में, उसकी सृष्टी के बारे में और सबसे अहम यह उन कायदों के बारे में समझाती है जिनका आत्मा को मनुष्य के रूप में हर हाल में पालन करना होगा, रक्षा करनी होगी और इन्हीं कायदों की बुनियाद पे एक आत्मा को शरीर त्याग करने के बाद परखा जाएगा और इस परीक्षा से पास होने पे हमेशा के लिए इस जन्म और मृत्यु से मुक्ति मिलेगी। परमात्मा भगवद्गीता में कहते हैं कि - मैं ही सबकी शुरूआत हूं। मैं शूरू से भी पहले था और सब खत्म होने के बाद भी रहूंगा। सब मुझ में है और मैं सब में हूं। जो भी तुम छू सकते हो, देख सकते हो, चख सकते हो या सून सकते वो सब मैं हूं। ये नदिया, पहाड़, सूरज, ग्रहण, चाँद-सितारे सब मैने बनाये है। मैने ही भगवान, शैतान, राक्षस और इंसान बनाया। मैं सर्वव्यापी हूं; सब में रहता हूं। सब मैं हूं। मैं हूं..... मैं ही हूं...। मैं ही ब्रह्म बनकर सब बनाता हूं और रूद्र बनके सब नष्ट कर देता हूं। म...

श्रीमद्भगवद्गीता के तृतीय अध्याय का माहात्म्य,उपदेश,अर्थ व सार The significance, precept, meaning and essence of the third chapter of Srimad Bhagavad Gita

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श्रीमद्भागवत गीता का सार

- Advertisement - Geeta Saar in Hindi: महाभारत के भीष्मपर्व (अध्याय) संसार के रहस्य और आध्यात्म का ज्ञान दिया है, उसे ही श्रीमद्भगवद गीता का उपदेश कहते हैं। लगभग 5 हजार वर्ष पहले की बात है। धर्म का साथ देने वाले पांडव और अधर्म का साथ देने वाले कौरवों के बीच एक निर्णायक युद्ध होने वाला था। यह महाभारत के युद्ध का समय था। धर्म की रक्षा करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण बिना शस्त्र उठाए पांडवों के सारथी बनने का दायित्व निभाया। महाभारत के युद्ध के समय अर्जुन का मन विचलित था। ♦Conclusion♦ यह युद्ध, धर्म युद्ध था। कौरवों के अत्याचार और शोषण के खिलाफ इस युद्ध में पांडवों की तरफ से जब अर्जुन रणभूमि में थे तो अर्जुन का मन विचलित हो गया, वे सोचने लगे कि कैसे अपने सगे-संबंधियों से युद्ध करें, उन पर प्रहार (वार) करें। एक तरफ कौरव पांडवों का सब कुछ हड़पना चाहते थे तो दूसरी ओर सत्य की विजय और अपने अधिकार की लड़ाई लड़ रहे थे पांडव। श्रीकृष्ण सारथी बनकर धर्म की रक्षा के लिए अर्जुन के साथ उनके मार्गदर्शक की भूमिका में थे। धर्म-अधर्म, माया-मोह और कर्म का ज्ञान युद्ध के समय विचलित अर्जुन को भगवान श्री कृष्ण देते हैं। अर्जुन का भ्रम दूर होता है और वे धर्म- मार्ग पर चलने के लिए तैयार हो जाते हैं। श्रीकृष्ण के द्वारा दिया गया यह ज्ञान श्री भगवत गीता का ज्ञान (Shri Bhagwat Gita ka Gyaan) कहलाता है। गीता के उपदेश आज भी हमारे जीवन के रहस्यों को उजागर करती है। अर्जुन की तरह हर इंसान इस जीवन के माया- मोह में पड़ा रहता है और भगवत गीता का ज्ञान ही हमें माया -मोह के बंधन से आजाद कर सकता है। स्वयं को और सर्वशक्तिशाली ईश्वर को पहचानने का अवसर देता है। श्रीमद्भागवत गीता भगवान श्री कृष्ण (Lord Shri Krishna) द्वार...

Shrimad Bhagwat Geeta In Hindi ~ सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता

श्रीमद्भगवद्‌गीता हिन्दुओं के पवित्रतम ग्रन्थों में से एक है। महाभारत के अनुसार कुरुक्षेत्र युद्ध में भगवान श्री कृष्ण ने गीता का सन्देश अर्जुन को सुनाया था। यह महाभारत के भीष्मपर्व के अन्तर्गत दिया गया एक उपनिषद् है। भगवत गीता में एकेश्वरवाद, कर्म योग, ज्ञानयोग, भक्ति योग की बहुत सुन्दर ढंग से चर्चा हुई है। श्रीमद्भगवद्‌गीता की पृष्ठभूमि महाभारत का युद्ध है। जिस प्रकार एक सामान्य मनुष्य अपने जीवन की समस्याओं में उलझकर किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाता है और जीवन की समस्यायों से लड़ने की बजाय उससे भागने का मन बना लेता है उसी प्रकार अर्जुन जो महाभारत के महानायक थे, अपने सामने आने वाली समस्याओं से भयभीत होकर जीवन और क्षत्रिय धर्म से निराश हो गए थे , अर्जुन की तरह ही हम सभी कभी-कभी अनिश्चय की स्थिति में या तो हताश हो जाते हैं और या फिर अपनी समस्याओं से विचलित होकर भाग खड़े होते हैं। भारत वर्ष के ऋषियों ने गहन विचार के पश्चात जिस ज्ञान को आत्मसात किया उसे उन्होंने वेदों का नाम दिया। इन्हीं वेदों का अंतिम भाग उपनिषद कहलाता है। मानव जीवन की विशेषता मानव को प्राप्त बौद्धिक शक्ति है और उपनिषदों में निहित ज्ञान मानव की बौद्धिकता की उच्चतम अवस्था तो है ही , अपितु बुद्धि की सीमाओं के परे मनुष्य क्या अनुभव कर सकता है उसकी एक झलक भी दिखा देता है। श्रीमद्भगवद्गीता वर्तमान में धर्म से ज्यादा जीवन के प्रति अपने दार्शनिक दृष्टिकोण को लेकर भारत में ही नहीं विदेशों में भी लोगों का ध्यान अपनी और आकर्षित कर रही है। निष्काम कर्म का गीता का संदेश प्रबंधन गुरुओं को भी लुभा रहा है। विश्व के सभी धर्मों की सबसे प्रसिद्ध पुस्तकों में शामिल है। गीता प्रेस गोरखपुर जैसी धार्मिक साहित्य की पुस्तकों को काफी कम मूल्य...

सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता Shrimad Bhagwat Geeta In Hindi

श्रीमद्भागवद्गीता Shrimad Bhagwat Geeta भारत का अति प्राचीन एवं महत्वपूर्ण धर्मग्रन्थ है इसी कारण इसे सभी शास्त्रों का शिरोमणि भी कहा जाता है जिस किसी ने भी इसका अध्ययन किया तथा अपने जीवन में इसे आत्मसात किया है उसने जीवन में महानता के शिखर को छुआ है चाहे वह स्वामी विवेकानन्द हों या महात्मा गांधी। विशुद्ध आध्यात्मिक ज्ञान की दृष्टि से गीता अतुलनीय है क्योंकि इसमें वर्णित ज्ञान किसी विशेष सम्प्रदाय पर न होकर सर्व मानव-प्राणियों पर लागू होता है। Bhagwatgeeta in hindi यह एक ऐसा अमृत है जिसका पान करने पर मानव के सभी प्रश्नों का उत्तर सहज ही प्राप्त हो जाता है तथा वह अमृत्व को प्राप्त करने की ओर अग्रसर होता है। वर्तमान समय में प्रायः देखा जाता है कि हम जिस समाज में रहते हैं वह अक्सर चिंता, उदासीनता, तनाव तथा कलह आदि में डूबा हुआ है। Shrimad Bhagwat Geeta in hindi PDF हमारी युवा पीढ़ी जिसे देश की रीढ़ कहा जाता है उसमें यह अनुपात सर्वाधिक है। ऐसे समय में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा महाभारत युद्ध के समय कुरूक्षेत्र के रण में अर्जुन को दिये गये उपदेशों की वर्तमान में प्रासंगिकता बहुत बढ़ गई है। जिस प्रकार एक मां अपने बच्चे को उत्तम संस्कार प्रदान करती है उसी प्रकार श्रीमद्भागवद्गीता Bhagwat Geeta katha भी मनुष्य में अच्छे संस्कार प्रदान करती है। आज गीता एक धर्म विशेष तक ही सीमित न रहकर व्यापक स्तर पर बढ़ गई है। देश ही नहीं अपितु विदेशों में भी इसका अनुवाद कर पुस्तकें छापी जा रही हैं। यहां गीता के अठ्ठारह अध्यायों का श्लोक सहित अर्थ दिया जा रहा है जिससे पाठ्कों को यह सुगमता से सहज रूप में प्राप्त हो सके तथा वह इनका अध्ययन कर परमात्मा की असीम अनुकम्पा को प्राप्त कर सकें :- • Click to share on...

श्रीमद भगवत गीता के श्लोक अर्थ सहित

गीता के श्लोक कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥ अर्थ – श्री कृष्ण कहते हैं कि हे अर्जुन, कर्म करना तुम्हारा अधिकार है परन्तु फल की इच्छा करना तुम्हारा अधिकार नहीं है| कर्म करो और फल की इच्छा मत करो अर्थात फल की इच्छा किये बिना कर्म करो क्यूंकि फल देना मेरा काम है| गीता श्लोक परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्। धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे॥ अर्थ – श्री कृष्ण कहते हैं कि हे अर्जुन, साधू और संत पुरुषों की रक्षा के लिये, दुष्कर्मियों के विनाश के लिये और धर्म की स्थापना हेतु मैं युगों युगों से धरती पर जन्म लेता आया हूँ| गीता श्लोक गुरूनहत्वा हि महानुभवान श्रेयो भोक्तुं भैक्ष्यमपीह लोके | हत्वार्थकामांस्तु गुरुनिहैव भुञ्जीय भोगान्रुधिरप्रदिग्धान् || अर्थ – महाभारत के युद्ध के समय जब अर्जुन के सामने उनके सगे सम्बन्धी और गुरुजन खड़े होते हैं तो अर्जुन दुःखी होकर श्री कृष्ण से कहते हैं कि अपने महान गुरुओं को मारकर जीने से तो अच्छा है कि भीख मांगकर जीवन जी लिया जाये| भले ही वह लालचवश बुराई का साथ दे रहे हैं लेकिन वो हैं तो मेरे गुरु ही, उनका वध करके अगर मैं कुछ हासिल भी कर लूंगा तो वह सब उनके रक्त से ही सना होगा| गीता श्लोक न चैतद्विद्मः कतरन्नो गरियो यद्वा जयेम यदि वा नो जयेयु: | यानेव हत्वा न जिजीविषाम- स्तेSवस्थिताः प्रमुखे धार्तराष्ट्राः || अर्थ – अर्जुन कहते हैं कि मुझे तो यह भी नहीं पता कि क्या उचित है और क्या नहीं – हम उनसे जीतना चाहते हैं या उनके द्वारा जीते जाना चाहते हैं| धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारकर हम कभी जीना नहीं चाहेंगे फिर भी वह सब युद्धभूमि में हमारे सामने खड़े हैं| गीता श्लोक कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः पृच्छा...