गिरिजाकुमार माथुर किस काल के कवि हैं

  1. गिरिजाकुमार माथुर का जीवन परिचय
  2. NCERT Solutions for Class 10 Hindi Chapter 7
  3. गिरिजाकुमार माथुर
  4. गिरिजा कुमार माथुर का जीवन परिचय, शिक्षा दीक्षा, रचनाएं, कवि परिचय, पुरस्कार, मृत्यु
  5. छाया मत छूना/गिरिजाकुमार माथुर की कविता छाया मत छूना/Chaya mat chuna/Girija kumar mathur ki kavita chaya mat chuna/chaya mat chuna kavita ka saar
  6. कवि ने कठिन यथार्थ के पूजन की बात क्यों कही है? from Hindi गिरिजाकुमार माथुर
  7. जन्मदिन विशेष: हिंदी कविता की एक अविस्‍मणीय प्रतिमूर्ति हैं गिरिजा कुमार माथुर
  8. कवि ने कठिन यथार्थ के पूजन की बात क्यों कही है? from Hindi गिरिजाकुमार माथुर
  9. NCERT Solutions for Class 10 Hindi Chapter 7
  10. गिरिजाकुमार माथुर का जीवन परिचय


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गिरिजाकुमार माथुर का जीवन परिचय

‘तार सप्तक’ के कवि गिरिजाकुमार माथुर का जन्म 22 अगस्त 1919 को मध्य प्रदेश के अशोक नगर में हुआ। उनमें कविता का बीज उनके पिता देवीचरण माथुर से पड़ा जो स्वयं कवित्त, सवैयाँ और दोहे लिखते थे और उनका एक संग्रह भी प्रकाशित हुआ था। हिंदी में उनकी कविता-यात्रा का आरंभ 1941 में प्रकाशित ‘मंजीर’ काव्य-संग्रह से हुआ जिसकी भूमिका निराला ने लिखी थी। वह माखनलाल चतुर्वेदी, बालकृष्ण शर्मा नवीन सरीखे कवियों की विद्रोही काव्य चेतना से प्रभावित थे। 1943 में अज्ञेय द्वारा संपादित ‘तार सप्तक’ में उन्हें भी शामिल किया गया। उनका विवाह शकुंत माथुर से हुआ जो अज्ञेय द्वारा संपादित ‘दूसरा सप्तक' में शामिल थीं। वह 'ऑल इंडिया रेडियो' में अनेक महत्त्वपूर्ण पदों पर रहे और लोकप्रिय रेडियो चैनल 'विविध भारती' उन्हीं की संकल्पना का मूर्त रूप है। उनमें प्रगति और प्रयोगवादी धारा—दोनों का समावेश था। वे मार्क्सवाद से प्रभावित थे। उनके स्वयं के शब्दों में—‘‘मार्क्सवाद को मैंने अपने देश की जन-परंपरा और सांस्कृतिक उत्स की मिट्टी में रोप कर आत्मसात कर लिया और एक नई जीवन-दृष्टि मुझे प्राप्‍त हुई। मुक्ति के वही मूल्य मेरी कविता को झंकृत और उद्दीप्त करते रहे हैं।” उनकी कविताओं में लोक-चेतना और वैज्ञानिक-चेतना दोनों के दर्शन हो जाते हैं। मालवा का प्राकृतिक वैभव उस क्षेत्र के अन्य कवियों-गद्यकारों की तरह उनके यहाँ भी समृद्धि से उतरा है। उनका एक गीत ‘छाया मत छूना मन’ और ‘वी शैल ओवरकम’ का हिंदी भावांतर ‘हम होंगे कामयाब’ अत्यंत लोकप्रिय रहा है। कविता और गीतों के अतिरिक्त उन्होंने एकांकी नाटक, नाटक, कहानी, आलोचना में भी कार्य किया है। ‘मंजीर’, ‘नाश और निर्माण’, ‘धूप के धान’, ‘जनम क़ैद’, ‘मुझे और अभी कहना है’, ‘शिलापंख चमकीले’...

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Chapter 7

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Chapter 7 गिरिजाकुमार माथुर are provided here with simple step-by-step explanations. These solutions for गिरिजाकुमार माथुर are extremely popular among Class 10 students for Hindi गिरिजाकुमार माथुर Solutions come handy for quickly completing your homework and preparing for exams. All questions and answers from the NCERT Book of Class 10 Hindi Chapter 7 are provided here for you for free. You will also love the ad-free experience on Meritnation’s NCERT Solutions. All NCERT Solutions for class Class 10 Hindi are prepared by experts and are 100% accurate. Answer: यथार्थ मनुष्य जीवन के संघर्षों का कड़वा सच है। हम यदि जीवन की कठिनाइयों व दु: खों का सामना न कर उनको अनदेखा करने का प्रयास करेंगे तो हम स्वयं किसी मंजिल को प्राप्त नहीं कर सकते। बीते पलों की स्मृतियों को अपने से चिपकाके रखना और अपने वर्तमान से अंजान हो जाना मनुष्य के लिए मात्र समय की बर्बादी के अलावा और कुछ नहीं है। अपने जीवन में घट रहे कड़वे अनुभवों व मुश्किलों से दृढ़तापूर्वक लड़ना ही मनुष्य का प्रथम कर्त्तव्य है अर्थात् जीवन की कठिनाइयों को यथार्थ भाव से स्वीकार उनसे मुँह न मोड़कर उसके प्रति सकारात्मक भाव से उसका सामना करना चाहिए। तभी स्वयं की भलाई की ओर एक कदम उठाया जा सकता है, नहीं तो सब मिथ्या ही है। इसलिए कवि ने यथार्थ के पूजन की बात कही है। Page No 47: Answer: प्रसंग - प्रस्तुत पंक्ति प्रसिद्ध कवि गिरिजाकुमार माथुर द्वारा रचित ‘ छाया मत छूना ’ नामक कविता से ली गई है। भाव - भाव यह है कि मनुष्य सदैव प्रभुता व बड़प्पन के कारण अनेकों प्रकार के भ्रम में उलझ जाता है, उसका मन विचलित...

गिरिजाकुमार माथुर

पूरा नाम गिरिजाकुमार माथुर जन्म जन्म भूमि मृत्यु मृत्यु स्थान अभिभावक श्री देवीचरण माथुर और श्रीमती लक्ष्मीदेवी पति/पत्नी शकुन्त माथुर कर्म भूमि मुख्य रचनाएँ 'नाश और निर्माण', 'मंजीर', 'शिलापंख चमकीले', 'जो बंध नहीं सका', 'साक्षी रहे वर्तमान', 'मैं वक्त के हूँ सामने' आदि। भाषा विद्यालय शिक्षा एम.ए. पुरस्कार-उपाधि नागरिकता भारतीय संबंधित लेख अन्य जानकारी भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद की साहित्यिक पत्रिका 'गगनांचल' का संपादन करने के अलावा इन्होंने अद्यतन‎

गिरिजा कुमार माथुर का जीवन परिचय, शिक्षा दीक्षा, रचनाएं, कवि परिचय, पुरस्कार, मृत्यु

गिरिजा कुमार माथुर का जीवन परिचय गिरिजा कुमार माथुर का जन्म सन 1919 को ग्वालियर शहर के अशोकनगर मध्य प्रदेश में हुआ। आपके पिता का नाम देवी चरण माथुर था। तथा आप की माता का नाम लक्ष्मी देवी था। आपके पिता एक अध्यापक थे। और आपके पिता संगीत व साहित्य के बहुत ही बड़े प्रेमी थे। गिरिजाकुमार माथुर की पत्नी का नाम शकुंत माथुर था आपका विवाह 1940 को दिल्ली में हुआ था। आप की प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुई। गिरिजा कुमार माथुर का जीवन परिचय जन्म तिथि 1919 जन्म स्थान ग्वालियर शहर के अशोकनगर मध्य प्रदेश पिता का नाम देवी चरण माथुर माता का नाम लक्ष्मी देवी पत्नी का नाम शकुंत माथुर रचनाएं मंजीर, नाश और निर्माण, धूप के धान, शिलापंख चमकीले पुरस्कार साहित्य अकादमी’, ‘व्यास सम्मान’, ‘शलाका सम्मान’ निधन 10 जनवरी 1994 को शिक्षा दीक्षा माथुर जी के प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुई। तथा झांसी उत्तर प्रदेश शहर से आपने इण्टर तक शिक्षा ग्रहण की। गिरिजाकुमार माथुर उच्च शिक्षा के लिए सन् 1936 को ग्वालियर शहर चले आए। और वर्ष 1938 में उन्होंने विक्टोरिया कॉलेज ग्वालियर से बीएससी की। तथा उसके बाद लखनऊ चले गए और सन 1941 में लखनऊ विश्वविद्यालय से आपने अंग्रेजी में एम ए की उपाधि प्राप्त की तथा एलएलबी की परीक्षा भी पास की। कार्यरत क्षेत्र गिरिजा कुमार माथुर जी ने कानून की उपाधि प्राप्त करने के बाद दिल्ली की रहने वाली शकुंत माथुर से सन 1940 को दिल्ली में ही विवाह कर लिया था। शकुंत माथुर अज्ञेय द्वारा प्रस्तुत ‘दूसरा सप्तक’ की पहली कवित्री रही। कानून की पढ़ाई के बाद माथुर जी ने प्रारंभ में एक वकील के तौर पर कार्य प्रारंभ किया था। बाद में आप ऑल इंडिया रेडियो में कार्यरत हुए। आपने आकाशवाणी से कार्य प्रारंभ किया बाद में आ...

छाया मत छूना/गिरिजाकुमार माथुर की कविता छाया मत छूना/Chaya mat chuna/Girija kumar mathur ki kavita chaya mat chuna/chaya mat chuna kavita ka saar

प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक “क्षितिज भाग-2” में संकलित कविता“छाया मत छूना” से लिया गया है। इसके रचयिता“श्री गिरिजाकुमार माथुर जी” हैं। यह कविता अतीत की स्मृतियों को भूल वर्तमान का सामना कर भविष्य का वरण करने का संदेश देती है। इस पद्यांश में कवि ने स्पष्ट किया है कि हमें बीते हुए सुख को याद करके अपने वर्तमान के दुख को अधिक गहरा नहीं करना चाहिए। भावार्थ : इस कविता में कवि ने बताया है कि हमें अपने भूतकाल को पकड़ कर नहीं रखना चाहिए , चाहे उसकी यादें कितनी भी सुहानी क्यों न हो। जीवन में ऐसी कितनी सुहानी यादें रह जाती हैं। आँखों के सामने भूतकाल के कितने ही मोहक चित्र तैरने लगते हैं। प्रेयसी के साथ रात बिताने के बाद केवल उसके तन की सुगंध ही शेष रह जाती है। कोई भी सुहानी चाँदनी रात बस बालों में लगे बेले के फूलों की याद दिला सकती है। जीवन का हर क्षण किसी भूली सी छुअन की तरह रह जाता है। कुछ भी स्थाई नहीं रहता है। इसलिए हमें अपने भूतकाल को कभी भी पकड़ कर नहीं रखना चाहिए। भावार्थ :यश या वैभव या पीछे की जमापूँजी ; कुछ भी बाकी नहीं रहता है। आप जितना ही दौड़ेंगे उतना ज्यादा भूलभुलैया में खो जाएँगे; क्योंकि भूतकाल में बहुत कुछ घटित हो चुका होता है। अपने भूतकाल की कीर्तियों पर किसी बड़प्पन का अहसास किसी मृगमरीचिका की तरह है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हर चाँद के पीछे एक काली रात छिपी होती है। इसलिए भूतकाल को भूलकर हमें अपने वर्तमान की ओर ध्यान देना चाहिए। भावार्थ :कई बार ऐसा होता है कि हिम्मत होने के बावजूद आदमी दुविधा में पड़ जाता है और उसे सही रास्ता नहीं दिखता। कई बार आपका शरीर तो स्वस्थ रहता है लेकिन मन के अंदर हजारों दुख भरे होते हैं। कई लोग छोटी या बड़ी बातों पर द...

कवि ने कठिन यथार्थ के पूजन की बात क्यों कही है? from Hindi गिरिजाकुमार माथुर

‘छाया’ शब्द में लाक्षणिकता विद्यमान है जो भ्रम और दुविधा की स्थिति को प्रकट करता है। यह सुखों के भावों को प्रकट करता है जो मनुष्य के जीवन में सदा नहीं रहते। सुख-दुःख दोनों मिलकर मानव जीवन को बनाते हैं। जब दुःख का भाव जीवन में आ जाता है तब मनुष्य बार-बार उन सुखों को याद करता है जिन्हें उसने कभी प्राप्त किया था। दुःख की घड़ियों में सुखद समय की स्मृतियों में डूबने से उसके दुःख दुगुने हो जाते हैं। इसीलिए कवि ने उसे छूने के लिए मना किया है। ‘मृगतृष्णा’ का शाब्दिक अर्थ है- धोखा। जो न होकर भी होने का प्रकट करता है वही मृगतृष्णा है। कवि ने कविता में सुख संपदाओं की प्राप्ति से मानसिक सुख की प्राप्ति के लिए ‘मृगतृष्णा’ शब्द का प्रयोग किया है। किसी व्यक्ति के पास चाहे अपार भौतिक सुख हो पर उन सब से मानसिक सुख और शांति की प्राप्ति हो जाना संभव नहीं होता चाहे उसकी संपन्नता को देखकर लोग उसे सुखी मानते रहें। कवि ने माना है कि धन-दौलत और सुखों की प्राप्ति हर मनुष्य अपने जीवन में करना चाहता है पर सबके लिए ऐसा हो पाना संभव नहीं होता। वह तो उसके मृगतृष्णा के समान ही सिद्ध होकर जाता है। उसे केवल सुखों के प्राप्त हो जाने का झूठा आभास मात्र होता है। वह उसे प्राप्त कर नहीं पाता। जिस कारण उसका हृदय पीड़ा से भर जाता है। हर चांदनी रात के पीछे जिस तरह अमावस्या की अंधेरी रात छिपी रहती है उसी प्रकार हर सुख के बाद दु:ख का भाव भी निश्चित रूप से छिपा ही रहता है। कवि ने छायावादी काव्यधारा से प्रभावित होकर अपनी कविता में विशेषणों का विशिष्ट प्रयोग किया है, जैसे- (i) सुरंग सुधियां = यादों की विविधता और मोहक सुंदरता की विशिष्टता। (ii) छवियों की चित्र--गंध = सुंदर रूपों में मादक गंध की विशिष्टता। (iii) तन-सुगंध ...

जन्मदिन विशेष: हिंदी कविता की एक अविस्‍मणीय प्रतिमूर्ति हैं गिरिजा कुमार माथुर

‘मेरे युवा आम में नया बौर आया है’, यह गीत मुझे बहुत प्रिय है. लखनऊ में रहते हुए उनके कई संग्रह पढ़ चुका था. ‘मंजीर’, ‘शिलापंख चमकीले’, ‘धूप के धान’, बाद में – ‘भीतरी नदी की यात्रा’, ‘मैं वक्‍त के हूँ सामने’ और उनका कविता चयन ‘छाया मत छूना मन.’ कहना न होगा कि मालवा की मिट्टी से आने वाले पत्रकारों में राजेंद्र माथुर हों, प्रभाष जोशी या राहुल बारपुते, अथवा कवियों में कवि शिरोमणि नरेश मेहता, माखन लाल चतुर्वेदी और गिरिजा कुमार माथुर तथा आलोचना में प्रभाकर श्रोत्रिय, हिंदी के पद्य और गद्य के सांचे में जिस तरह की सौष्‍ठवता और प्राणवत्‍ता इन लेखकों में दिखती है वैसी सुगंध और प्राणवत्‍ता अन्‍यत्र दुर्लभ है. जब भी गीत के गलियारे से होकर गुजरना हुआ बच्चन, नीरज, रामावतार त्‍यागी व शंभुनाथ सिंह आदि के प्रारंभिक प्रभावों के बाद गिरिजाकुमार माथुर और उमाकांत मालवीय के गीतों ने छुआ. हिंदी कविता के बड़े कवियों के संपर्क में आने के बाद जहां केदारनाथ सिंह के प्रांजल बिम्‍बों वाले गीत लुभाते थे तो गिरिजाकुमार माथुर के मांसल बिम्‍बों वाले गीत ‘ले चल मुझे भुलावा देकर’ (जयशंकर प्रसाद) वाले दिनों में उड़ा ले जाते थे. कविता में धीरे-धीरे गिरिजा कुमार माथुर की एक बड़ी प्रतिमूर्ति बने. जिन दिनों बनारस में शंभुनाथ सिंह लिख रहे थे, ‘मन का आकाश उड़ा जा रहा, पुरवइया धीरे बहो’, उन्‍हीं दिनों गिरिजा कुमार माथुर का गीत ‘छाया मत छूना मन, होगा दुख दूना मन’ हर उदास मन का गीत बन गया था. यों उनका व्‍यक्‍तित्‍व चमकीले कागज जैसा प्रभावान लगता था पर भीतर के तहखाने में ऐसे उदास कर देने वाले गीत भी थे. अपने इन्‍हीं गुणों के कारण वे अज्ञेय के ‘तारसप्‍तक’ के कवि बने. एक ऐसी पैस्‍टोरल इमेजरी उनके गीतों में थी जैसी कभी ठ...

कवि ने कठिन यथार्थ के पूजन की बात क्यों कही है? from Hindi गिरिजाकुमार माथुर

कवि ने छायावादी काव्यधारा से प्रभावित होकर अपनी कविता में विशेषणों का विशिष्ट प्रयोग किया है, जैसे- (i) सुरंग सुधियां = यादों की विविधता और मोहक सुंदरता की विशिष्टता। (ii) छवियों की चित्र--गंध = सुंदर रूपों में मादक गंध की विशिष्टता। (iii) तन-सुगंध = सुगंध के साकार रूप की विशिष्टता। (iv) जीवित-क्षण = समय की सकारात्मकता की विशिष्टता। (v) शरण-बिंब = जीवन में आधार बनने की विशिष्टता। (vi) यथार्थ कठिन = जीवन की कठोर वास्तविकता की विशिष्टता। (vii) दुविधा-हत साहस = साहस होते हुए भी दुविधाग्रस्त रहने की विशिष्टता। (viii) शरद्-रात = रात में शरद् ऋतु की ठंडक की विशिष्टता। (ix) रस-वसंत = वसंत ऋतु में मधुर रस के अहसास की विशिष्टता। ‘मृगतृष्णा’ का शाब्दिक अर्थ है- धोखा। जो न होकर भी होने का प्रकट करता है वही मृगतृष्णा है। कवि ने कविता में सुख संपदाओं की प्राप्ति से मानसिक सुख की प्राप्ति के लिए ‘मृगतृष्णा’ शब्द का प्रयोग किया है। किसी व्यक्ति के पास चाहे अपार भौतिक सुख हो पर उन सब से मानसिक सुख और शांति की प्राप्ति हो जाना संभव नहीं होता चाहे उसकी संपन्नता को देखकर लोग उसे सुखी मानते रहें। मनुष्य का जीवन कल्पनाओं के आधार पर नहीं टिकता। वह जीवन के कठोर धरातल पर स्थित होकर ही आगे गीत करता है। पुरानी सुख भरी यादों से वर्तमान दुःखी हो जाता है। मन में पलायनवाद के भाव उत्पन्न हो जाते हैं। उसे कठिन यथार्थ से आमना-सामना कर के ही आगे बढ़ने की चेष्टा करनी चाहिए। कवि ने जीवन की कठिन-कठोर वास्तविकता को स्वीकार करने की बात इसीलिए कही है। कवि ने माना है कि धन-दौलत और सुखों की प्राप्ति हर मनुष्य अपने जीवन में करना चाहता है पर सबके लिए ऐसा हो पाना संभव नहीं होता। वह तो उसके मृगतृष्णा के समान ही सिद्ध ह...

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Chapter 7

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Chapter 7 गिरिजाकुमार माथुर are provided here with simple step-by-step explanations. These solutions for गिरिजाकुमार माथुर are extremely popular among Class 10 students for Hindi गिरिजाकुमार माथुर Solutions come handy for quickly completing your homework and preparing for exams. All questions and answers from the NCERT Book of Class 10 Hindi Chapter 7 are provided here for you for free. You will also love the ad-free experience on Meritnation’s NCERT Solutions. All NCERT Solutions for class Class 10 Hindi are prepared by experts and are 100% accurate. Answer: यथार्थ मनुष्य जीवन के संघर्षों का कड़वा सच है। हम यदि जीवन की कठिनाइयों व दु: खों का सामना न कर उनको अनदेखा करने का प्रयास करेंगे तो हम स्वयं किसी मंजिल को प्राप्त नहीं कर सकते। बीते पलों की स्मृतियों को अपने से चिपकाके रखना और अपने वर्तमान से अंजान हो जाना मनुष्य के लिए मात्र समय की बर्बादी के अलावा और कुछ नहीं है। अपने जीवन में घट रहे कड़वे अनुभवों व मुश्किलों से दृढ़तापूर्वक लड़ना ही मनुष्य का प्रथम कर्त्तव्य है अर्थात् जीवन की कठिनाइयों को यथार्थ भाव से स्वीकार उनसे मुँह न मोड़कर उसके प्रति सकारात्मक भाव से उसका सामना करना चाहिए। तभी स्वयं की भलाई की ओर एक कदम उठाया जा सकता है, नहीं तो सब मिथ्या ही है। इसलिए कवि ने यथार्थ के पूजन की बात कही है। Page No 47: Answer: प्रसंग - प्रस्तुत पंक्ति प्रसिद्ध कवि गिरिजाकुमार माथुर द्वारा रचित ‘ छाया मत छूना ’ नामक कविता से ली गई है। भाव - भाव यह है कि मनुष्य सदैव प्रभुता व बड़प्पन के कारण अनेकों प्रकार के भ्रम में उलझ जाता है, उसका मन विचलित...

गिरिजाकुमार माथुर का जीवन परिचय

‘तार सप्तक’ के कवि गिरिजाकुमार माथुर का जन्म 22 अगस्त 1919 को मध्य प्रदेश के अशोक नगर में हुआ। उनमें कविता का बीज उनके पिता देवीचरण माथुर से पड़ा जो स्वयं कवित्त, सवैयाँ और दोहे लिखते थे और उनका एक संग्रह भी प्रकाशित हुआ था। हिंदी में उनकी कविता-यात्रा का आरंभ 1941 में प्रकाशित ‘मंजीर’ काव्य-संग्रह से हुआ जिसकी भूमिका निराला ने लिखी थी। वह माखनलाल चतुर्वेदी, बालकृष्ण शर्मा नवीन सरीखे कवियों की विद्रोही काव्य चेतना से प्रभावित थे। 1943 में अज्ञेय द्वारा संपादित ‘तार सप्तक’ में उन्हें भी शामिल किया गया। उनका विवाह शकुंत माथुर से हुआ जो अज्ञेय द्वारा संपादित ‘दूसरा सप्तक' में शामिल थीं। वह 'ऑल इंडिया रेडियो' में अनेक महत्त्वपूर्ण पदों पर रहे और लोकप्रिय रेडियो चैनल 'विविध भारती' उन्हीं की संकल्पना का मूर्त रूप है। उनमें प्रगति और प्रयोगवादी धारा—दोनों का समावेश था। वे मार्क्सवाद से प्रभावित थे। उनके स्वयं के शब्दों में—‘‘मार्क्सवाद को मैंने अपने देश की जन-परंपरा और सांस्कृतिक उत्स की मिट्टी में रोप कर आत्मसात कर लिया और एक नई जीवन-दृष्टि मुझे प्राप्‍त हुई। मुक्ति के वही मूल्य मेरी कविता को झंकृत और उद्दीप्त करते रहे हैं।” उनकी कविताओं में लोक-चेतना और वैज्ञानिक-चेतना दोनों के दर्शन हो जाते हैं। मालवा का प्राकृतिक वैभव उस क्षेत्र के अन्य कवियों-गद्यकारों की तरह उनके यहाँ भी समृद्धि से उतरा है। उनका एक गीत ‘छाया मत छूना मन’ और ‘वी शैल ओवरकम’ का हिंदी भावांतर ‘हम होंगे कामयाब’ अत्यंत लोकप्रिय रहा है। कविता और गीतों के अतिरिक्त उन्होंने एकांकी नाटक, नाटक, कहानी, आलोचना में भी कार्य किया है। ‘मंजीर’, ‘नाश और निर्माण’, ‘धूप के धान’, ‘जनम क़ैद’, ‘मुझे और अभी कहना है’, ‘शिलापंख चमकीले’...