गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ

  1. गणेश अथर्वशीर्ष पाठ के लाभ
  2. Ganesh atharvashirsha lyrics in hindi
  3. श्री गणपती अथर्वशीर्ष
  4. श्री गणपति अथर्वशीर्ष पाठ
  5. पवित्र श्री गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ
  6. श्री गणपति अथर्वशीर्ष
  7. Shri Ganpati Atharvashirsha in Hindi
  8. गणपति अथर्वशीर्षम


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गणेश अथर्वशीर्ष पाठ के लाभ

यही वजह है कि हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य, किसी अनुष्ठान और उत्कृष्टतम कार्य प्रयोजन के पूर्व भगवान गणेश की आराधना की जाती है. उनके पूजन, अर्चन और वंदन से समस्त प्रकार के विध्न दूर होते हैं और कार्य संपूर्ण हो जाते हैं. गणेश उत्सव के 10 दिनों में भगवान गणेश के भक्त उनकी निरंतर आराधना करते हैं. भक्तगण तरह तरह के अनुष्ठान, मंत्र और विधियों से उनकी आराधना करते हैं. Advertisement भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए अनेकों प्रकार के जाप, पाठ, श्लोक एवं स्तोत्र के माध्यम से भगवान श्री गणेश जी का पूजन अर्चन होता है. मान्यता है कि इन सभी पाठों में से गणेश अथर्वशीर्ष पाठ भगवान श्री गणेश जी को बेहद प्रिय होता है. गणेश अथर्वशीर्ष पाठ बेहद मंगलकारी होता है. शुद्ध अंतःकरण एवं श्रद्धा भावना से गणेश अथर्वशीर्ष पाठ करने से भगवान गणेश प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों को तमाम विध्नों से बचाते हैं. Advertisement Also Read: गणेश अथर्वशीर्ष पाठ के लाभ | Benefits Of Ganesh Atharvashirsha in Hindi • गणेश अथर्वशीर्ष पाठ को नियमित रुप से करने से तन और मन की आंतरिक शुद्धि होती है. • गणेश अथर्वशीर्ष पाठ करने से सकारात्मकता आती है. • गणेश अथर्वशीर्ष पाठ करने से न सिर्फ शारीरिक और मानसिक मजबूती आती है. • गणेश अथर्वशीर्ष पाठ से मन स्थिर होता है जिससे निर्णय क्षमता में वृद्धि होती है. यह जीवन में उतरोत्तर सफलता प्राप्त कराती है. • गणेश अथर्वशीर्ष के नियमित पाठ से शरीर के अंदर से तमाम विषैले तत्व बाहर आ जाते हैं और चेहरे पर कांति आती है. • गणेश अथर्वशीर्ष पाठ से मन की चंचलता समाप्त होती है. जीवन में स्थिरता का भाव पैदा होता है. इस वजह से एकाग्रता बढ़ती है और हर क्षेत्र में सफलता मिलती है. • चूंकि भगवान...

Ganesh atharvashirsha lyrics in hindi

गणेश अथर्वशीर्ष स्तोत्र ॐ नमस्ते गणपतये। त्वमेव प्रत्यक्षं तत्वमसि। त्वमेव केवलं कर्त्तासि। त्वमेव केवलं धर्तासि। त्वमेव केवलं हर्तासि। त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि। त्वं साक्षादात्मासि नित्यम्। ऋतं वच्मि। सत्यं वच्मि। अव त्वं मां। अव वक्तारं। अव श्रोतारं। अव दातारं। अव धातारम्। अवानूचानमव शिष्यं। अव पश्चात्तात्। अवं पुरस्तात्। अव चोत्तरातात्। अव दक्षिणात्तात्। अव चोर्ध्वात्तात्। अवाधरात्तात्। सर्वतो मां पाहि पाहि समंतात्। त्वं वाङ्मयस्त्वं चिन्मय:। त्वमानन्दमयस्त्वं ब्रह्ममय:। त्वं सच्चिदानंदा द्वितियोऽसि। त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि। त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि। सर्वं जगदि‍दं त्वत्तो जायते। सर्वं जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति। सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति। सर्वं जगदिदं त्वयि प्रत्येति। त्वं भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभ:। त्वं चत्वारि वाक्पदानी। त्वं गुणत्रयातीत:। त्वं कालत्रयातीत:। त्वं देहत्रयातीत:। त्वं मूलाधार स्थितोऽसि नित्यं। त्वं शक्तित्रयात्मक:।। त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यम्। त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं रुद्रस्त्वमिन्द्रस्त्वमग्निस्त्वं। वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चंद्रमास्त्वं ब्रह्म भूर्भुव: स्वरोम्। गणादिं पूर्वमुच्चार्य वर्णादिं तदनंतरम्। अनुस्वार: परतर:। अर्धेन्दुलसितम्। ।।१।।तारेण रुद्धं। एतत्तव मनुस्वरूपं। गकार: पूर्व रूपम्। अकारो मध्यमरूपं। अनुस्वारश्चान्त्य रूपम्। बिन्दुरूत्तर रूपं।। नाद: संधानम्। संहिता संधि: सैषा गणेश विद्या। गणक ऋषि: निचृद्गायत्री छंद:। श्रीमहाग‍णपतिर्देवता। ॐ गं। गणपतये नम:। एकदंताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्। एकदन्तं चतुर्हस्तं पाशमंकुशधारिणम्। अभयं वरदं हस्तैर्ब्रिभ्राणं मूषक ध्वजम्। रक्तं लम्बोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम्। रक्त...

श्री गणपती अथर्वशीर्ष

॥ श्रीगणपत्यथर्वशीर्षम् ॥ ॥ श्रीगणेशाय नमः ॥ शांति मंत्राः ॐ भद्रं कर्णेभिः श्रृणुयाम देवा । भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः । स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवांसस्तनूभिः । व्यशेम देवहितं यदायुः । ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः । स्वस्ति नः पुषा विश्वैवेदाः । स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः । स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु । ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः । अथर्वशीर्ष ॐ नमस्ते गणपतये । त्वमेव प्रत्यक्षं तत्त्वमसि । त्वमेव केवलं कर्तासि । त्वमेव केवलं धर्तासि । त्वमेव केवलं हर्तासि । त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि । त्वं साक्षादात्मासि नित्यम् ॥१॥ ऋतं वच्मि । सत्यं वच्मि ॥२॥ अव त्वं माम् । अव वक्तारम् । अव श्रोतारम् । अव दातारम् । अव धातारम् । अवानूचानमवशिष्यम्‌‍ | अव पश्चात्तात् । अव पुरस्तात् । अवोत्तरात्तात् । अव दक्षिणात्तात् । अव चोर्ध्वात्तात् । अवाधरात्तात् । सर्वतो मां पाहि पाहि समन्तात् ॥३॥ त्वं वाङ्‌मयस्त्वं चिन्मयः । त्वमानन्दमयस्त्वं ब्रह्ममयः । त्वं सच्चिदानन्दाद्वितीयोऽसि । त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि । त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि ॥४॥ सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायते । सर्वं जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति ॥ सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति । सर्वं जगदिदं त्वयि प्रत्येति । त्वं भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभः । त्वं चत्वारि वाक्पदानि ॥५॥ त्वं गुणत्रयातीतः । त्वं देहत्रयातीतः । त्वं कालत्रयातीतः । त्वं मूलाधारस्थितोऽसि नित्यम् । त्वं शक्तित्रयात्मकः । त्वां योगिनो ध्यायन्ति नित्यम् । त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वंरुद्रस्त्वमिन्द्रस्त्वमग्निस्त्वं वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चन्द्रमास्त्वं ब्रह्मभूर्भुवःस्वरोम् ॥६॥ गणादिं पूर्वमुच्चार्य वर्णादिं तदनन्तरम् । अनुस्वारः परतरः । अर्धेन्दुलसितम् । तारेण ऋद्धम् । एतत्तव मनुस...

श्री गणपति अथर्वशीर्ष पाठ

।। श्री गणपति अथर्वशीर्ष पाठ ।। हर बुधवार को करे श्री गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ धन की परेशानी होगी खत्म ।।श्री गणपति अथर्वशीर्ष।। भगवान गणेश की उपासना से सब कुछ प्राप्त होता है। धन, सुख, समृद्धि, संपत्ति, संतान, शांति, ऐश्वर्य, यश, कीर्ति, सम्मान, वैभव आदि। यह स्त्रोत्र इतना कल्याणकारी है कि मनुष्य का भाग्य बदलते देर नहीं लगती। अगर आप भी जीवन में अपनी सभी मनोकामनाएं पूरी करना चाहते हैं तो इस स्त्रोत का पाठ करें।इस स्त्रोत्र को आप रोज एक बार पढ़ें | जल्दी ही आपकी कमाई में बरकत होने लगेगी। रुका हुआ धन वापस आने लगेगा। जीवन में सुख समृद्धि की वृद्धि होने लगेगी। प्रतिदिन पढ़ेंगे श्री गणपति अथर्वशीर्ष पाठ तो बदल जायेगी किस्मत ॐ नमस्ते गणपतये। त्वमेव प्रत्यक्षं तत्वमसि त्वमेव केवलं कर्ताऽसि त्वमेव केवलं धर्ताऽसि त्वमेव केवलं हर्ताऽसि त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि त्व साक्षादात्माऽसि नित्यम्।। 1 ।। ऋतं वच्मि। सत्यं वच्मि।। 2 ।। अव त्व मां। अव वक्तारं। अव श्रोतारं। अव दातारं। अव धातारं। अवानूचानमव शिष्यं। अव पश्चातात। अव पुरस्तात। अवोत्तरात्तात। अव दक्षिणात्तात्। अवचोर्ध्वात्तात्।। अवाधरात्तात्।। सर्वतो मां पाहि-पाहि समंतात्।। 3 ।। त्वं वाङ्‍मयस्त्वं चिन्मय:। त्वमानंदमसयस्त्वं ब्रह्ममय:। त्वं सच्चिदानंदाद्वितीयोऽसि। त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि। त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि।। 4 ।। सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायते। सर्वं जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति। सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति। सर्वं जगदिदं त्वयि प्रत्येति। त्वं भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभ:। त्वं चत्वारिवाक्पदानि।। 5 ।। त्वं गुणत्रयातीत: त्वमवस्थात्रयातीत:। त्वं देहत्रयातीत:। त्वं कालत्रयातीत:। त्वं मूलाधारस्थितोऽसि नित्यं। त्वं शक्तित्रयात्मक:। त्वां यो...

पवित्र श्री गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ

।।श्री गणपति अथर्वशीर्ष।। ॐ नमस्ते गणपतये। त्वमेव प्रत्यक्षं तत्वमसि त्वमेव केवलं कर्ताऽसि त्वमेव केवलं धर्ताऽसि त्वमेव केवलं हर्ताऽसि त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि त्व साक्षादात्माऽसि नित्यम्।।1।। ऋतं वच्मि। सत्यं वच्मि।।2।। अव त्व मां। अव वक्तारं। अव श्रोतारं। अव दातारं। अव धातारं। अवानूचानमव शिष्यं। अव पश्चातात। अव पुरस्तात। अवोत्तरात्तात। अव दक्षिणात्तात्। अवचोर्ध्वात्तात्।। अवाधरात्तात्।। सर्वतो मां पाहि-पाहि समंतात्।।3।। त्वं वाङ्‍मयस्त्वं चिन्मय:। त्वमानंदमसयस्त्वं ब्रह्ममय:। त्वं सच्चिदानंदाद्वितीयोऽसि। त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि। त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि।।4।। सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायते। सर्वं जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति। सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति। सर्वं जगदिदं त्वयि प्रत्येति। त्वं भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभ:। त्वं चत्वारिवाक्पदानि।।5।। त्वं गुणत्रयातीत: त्वमवस्थात्रयातीत:। त्वं देहत्रयातीत:। त्वं कालत्रयातीत:। त्वं मूलाधारस्थितोऽसि नित्यं। त्वं शक्तित्रयात्मक:। त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यं। त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं रूद्रस्त्वं इंद्रस्त्वं अग्निस्त्वं वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चंद्रमास्त्वं ब्रह्मभूर्भुव:स्वरोम्।।6।। गणादि पूर्वमुच्चार्य वर्णादिं तदनंतरं। अनुस्वार: परतर:। अर्धेन्दुलसितं। तारेण ऋद्धं। एतत्तव मनुस्वरूपं। गकार: पूर्वरूपं। अकारो मध्यमरूपं। अनुस्वारश्चान्त्यरूपं। बिन्दुरूत्तररूपं। नाद: संधानं। सं हितासंधि: सैषा गणेश विद्या। गणकऋषि: निचृद्गायत्रीच्छंद:। गणपतिर्देवता। ॐ गं गणपतये नम:।।7।। एकदंताय विद्‍महे। वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नो दंती प्रचोदयात।।8।। एकदंतं चतुर्हस्तं पाशमंकुशधारिणम्। रदं च वरदं हस्तैर्विभ्राणं मूषकध्वजम्। रक्तं लंबोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवास...

श्री गणपति अथर्वशीर्ष

श्री गणपति अथर्वशीर्ष बुद्धि व विद्या के दाता गणेश जी परमात्मा का विघ्ननाशक स्वरूप है। श्री गणेश के भक्त विभिन्न प्रकार से उनकी अनेक श्लोक, स्तोत्र, जाप द्वारा गणेशजी की आराधना करते हैं। इनमें से गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ भी बहुत मंगलकारी है। प्रतिदिन प्रात: शुद्ध होकर इस पाठ करने से गणेशजी की कृपा अवश्य प्राप्त होती है। यहां हम अर्थ सहित श्री गणपति अथर्वशीर्ष स्तोत्र को प्रस्तुत कर रहे हैं। लेख में- • श्री गणपति अथर्वशीर्ष पाठ की विधि। • श्री गणपति अथर्वशीर्ष पाठ से लाभ। • श्री गणपति अथर्वशीर्ष स्तोत्र एवं अर्थ। 1. गणपति अथर्वशीर्ष पाठ विधि: गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ हमेशा आसन पर बैठ पूर्व, उत्तर या ईशान कोण की दिशा की ओर मुख करके करना चाहिए। 2. गणपति अथर्वशीर्ष पाठ से लाभ: • अथर्वशीर्ष स्तोत्र के पाठ से मनुष्य के जीवन में सर्वांगीण उन्नति होती है। • इसके पाठ से सभी प्रकार के विघ्न-बाधाएं दूर होती है। • व्यापार या नौकरी में उन्नति होती है। • आर्थिक समस्या दूर होने के साथ समृद्धि बढ़ती है। • विद्यार्थियों को शिक्षा के क्षेत्र में आ रही रुकावटें दूर होती है। • विचारों से नकारात्मकता खत्म होती है और पवित्रता आती है। अथ श्री गणपति अथर्वशीर्ष मूलपाठ शांति पाठ ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा। भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः।। स्थिरैरंगैस्तुष्टुवां सस्तनूभिः। व्यशेम देवहितं यदायुः।। अर्थ: हे देववृंद, हम अपने कानों से कल्याणमय वचन सुनें। जो याज्ञिक अनुष्ठानों के योग्य हैं ऐसे हे देव, हम अपनी आंखों से मंगलमय कार्यों को होते देखें निरोग इंद्रियों एवं स्वस्थ देह के माध्यम से आपकी स्तुति करते हुए हम प्रजापति ब्रह्मा द्वारा हमारे हितार्थ सौ वर्ष अथवा उससे भी अधिक जो आयु नियत कर रखी है उसे प्राप...

Shri Ganpati Atharvashirsha in Hindi

श्री गणपति अथर्वशीर्ष ॐ नमस्ते गणपतये। त्वमेव प्रत्यक्षं तत्वमसि त्वमेव केवलं कर्ताऽ सि त्वमेव केवलं धर्ताऽसि त्वमेव केवलं हर्ताऽसि त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि त्व साक्षादात्माऽसि नित्यम्।।1।। ऋतं वच्मि। सत्यं वच्मि।।2।। अव त्व मां। अव वक्तारं। अव श्रोतारं। अव दातारं। अव धातारं। अवानूचानमव शिष्यं। अव पश्चातात। अव पुरस्तात। अवोत्तरात्तात। अव दक्षिणात्तात्। अवचोर्ध्वात्तात्।। अवाधरात्तात्।। सर्वतो मां पाहि-पाहि समंतात्।।3।। त्वं वाङ्‍मयस्त्वं चिन्मय:। त्वमानंदमसयस्त्वं ब्रह्ममय:। त्वं सच्चिदानंदाद्वितीयोऽषि। त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्माषि। त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽषि।।4।। सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायते। सर्वं जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति। सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति। सर्वं जगदिदं त्वयि प्रत्येति। त्वं भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभ:। त्वं चत्वारिकाकूपदानि।।5।। त्वं गुणत्रयातीत: त्वमवस्थात्रयातीत:। त्वं देहत्रयातीत:। त्वं कालत्रयातीत:। त्वं मूलाधारस्थितोऽसि नित्यं। त्वं शक्तित्रयात्मक:। त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यं। त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं रूद्रस्त्वं इंद्रस्त्वं अग्निस्त्वं वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चंद्रमास्त्वं ब्रह्मभूर्भुव:स्वरोम्।।6।। गणादि पूर्वमुच्चार्य वर्णादिं तदनंतरं। अनुस्वार: परतर:। अर्धेन्दुलसितं। तारेण ऋद्धं। एतत्तव मनुस्वरूपं। गकार: पूर्वरूपं। अकारो मध्यमरूपं। अनुस्वारश्चान्त्यरूपं। बिन्दुरूत्तररूपं। नाद: संधानं। सँ हितासंधि: सैषा गणेश विद्या। गणकऋषि: निचृद्गायत्रीच्छंद:। गणपतिर्देवता। ॐ गं गणपतये नम:।।7।। एकदंताय विद्‍महे। वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नो दंती प्रचोदयात।।8।। एकदंतं चतुर्हस्तं पाशमंकुशधारिणम्। रदं च वरदं हस्तैर्विभ्राणं मूषकध्वजम्। रक्तं लंबोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम्...

गणपति अथर्वशीर्षम

प्रथम पूज्य भगवान श्रीगणेश समस्त विघ्न बाधाओं का नाश करने वाले देवता हैं। इन्हीं को समर्पित एक वैदिक प्रार्थना है गणपति अथर्वशीर्ष। इसमें भगवान श्रीगणेश में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों का वास मानते हुए जीवन के समस्त दुखों को हरने की प्रार्थना की गईयह पाठ एक सिद्ध पाठ माना गया हैं जिसके नित्य उच्चारण से जीवन के विघ्न दूर होते हैं। गणपति पाठ सफलता, समृद्धि और सौभाग्य के लिए लाभकारी होता है। यह सफलता के मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करता है। गणपति अथर्वशीर्ष कथा का पाठ करना भी आध्यात्मिक उत्थान के लिए सहायक होता है। भगवान गणेश की पूजा करने से अपार धन और यश की प्राप्ति होती है। गणपति अथर्वशीर्षम स्तोत्र | Ganapati Atharvashirsham Stotra ॥ गणपत्यथर्वशीर्​षोपनिषत् (श्री गणेषाथर्वषीर्​षम्) ॥ ॐ भ॒द्रं कर्णे॑भिः शृणु॒याम॑ देवाः । भ॒द्रं प॑श्येमा॒क्षभि॒र्यज॑त्राः । स्थि॒रैरंगै᳚स्तुष्ठु॒वाग्ं स॑स्त॒नूभिः॑ । व्यशे॑म दे॒वहि॑तं॒-यँदायुः॑ । स्व॒स्ति न॒ इंद्रो॑ वृ॒द्धश्र॑वाः । स्व॒स्ति नः॑ पू॒षा वि॒श्ववे॑दाः । स्व॒स्ति न॒स्तार्क्ष्यो॒ अरि॑ष्टनेमिः । स्व॒स्ति नो॒ बृह॒स्पति॑र्दधातु ॥ ॐ शांतिः॒ शांतिः॒ शांतिः॑ ॥ ॐ नम॑स्ते ग॒णप॑तये । त्वमे॒व प्र॒त्यक्षं॒ तत्त्व॑मसि । त्वमे॒व के॒वलं॒ कर्ता॑ऽसि । त्वमे॒व के॒वलं॒ धर्ता॑ऽसि । त्वमे॒व के॒वलं॒ हर्ता॑ऽसि । त्वमेव सर्वं खल्विदं॑ ब्रह्मा॒सि । त्वं साक्षादात्मा॑ऽसि नि॒त्यम् ॥ 1 ॥ ऋ॑तं-वँ॒च्मि । स॑त्यं-वँ॒च्मि ॥ 2 ॥ अ॒व त्वं॒ माम् । अव॑ व॒क्तारम्᳚ । अव॑ श्रो॒तारम्᳚ । अव॑ दा॒तारम्᳚ । अव॑ धा॒तारम्᳚ । अवानूचानम॑व शि॒ष्यम् । अव॑ प॒श्चात्ता᳚त् । अव॑ पु॒रस्ता᳚त् । अवोत्त॒रात्ता᳚त् । अव॑ द॒क्षिणात्ता᳚त् । अव॑ चो॒र्ध्वात्ता᳚त् । अवाध॒रात्ता᳚त् । सर्वतो मां...