गर्भ में लड़के की हार्ट बीट कितनी होती है

  1. गर्भ में लड़का होने पर कहां दर्द होता है । बिना अल्ट्रासाउंड के गर्भ में लड़का लड़की के लक्षण । Baby boy symptoms during pregnancy
  2. प्रेगनेंसी में बच्चे की धड़कन कितनी होनी चाहिए
  3. सोनोग्राफी से क्या क्या पता चलता है? – ElegantAnswer.com
  4. How Maternal Stress Affect Your Baby? Know The Link Between Baby Heartbeat And Anxious Mother In Hindi
  5. गर्भ में लड़के की हलचल से जानिए गर्भ में पुत्र या पुत्री है
  6. डायास्टोलिक हार्ट फेलियर के लक्षण, कारण और इलाज के बारे में जानें यहां
  7. असामान्य हृदय गति के 5 कारण, नॉर्मल हार्ट रेट कितना होना चाहिए
  8. गर्भ में भ्रूण का लिंग क्या दर्शाता है विशेष लक्षण
  9. डायास्टोलिक हार्ट फेलियर के लक्षण, कारण और इलाज के बारे में जानें यहां
  10. गर्भ में लड़के की हलचल से जानिए गर्भ में पुत्र या पुत्री है


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गर्भ में लड़का होने पर कहां दर्द होता है । बिना अल्ट्रासाउंड के गर्भ में लड़का लड़की के लक्षण । Baby boy symptoms during pregnancy

गर्भ में लड़का होने पर कहां दर्द होता है । बिना अल्ट्रासाउंड के गर्भ में लड़का लड़की के लक्षण । गर्भ में लड़का होने पर महिला के पेट में कहां पर दर्द होता है या फिर गर्भ में लड़का होने पर महिला के किस भाग में दर्द होता है । कौन सा ऐसा भाग है जहां पर दर्द होने से यह पता लगाया जा सकता है कि गर्भ में लड़का है । गर्भ में लड़का होने की कुछ सामान्य लक्षण की बात करेंगे । पेट में लड़का होने के लक्षण के आधार पर बात करें तो यदि किसी गर्भवती महिला के गर्भ में लड़का होने पर ऐसा माना जाता है कि सिर में काफी दर्द होता है । सिर में अधिक दर्द होने पर गर्भ में लड़का होने की संभावना होती है । यह एक लक्षण है जिसके आधार पर कह सकते हैं कि गर्भ में लड़का है । गर्भ में लड़का होने पर सिर में दर्द होता है । नोट – अल्ट्रासाउंड या किसी अन्य तकनीक के माध्यम से गर्भ में पल रहे शिशु की जांच करना कानूनन अपराध है । यह वेबसाइट इस तरह की किसी भी गतिविधि को बढ़ावा नहीं देती है । इस वेबसाइट का उद्देश्य सिर्फ जानकारी पहुंचाना है । गर्भ में लड़का होने पर कहां दर्द होता है Labour pain के दौरान दर्द कहां से शुरू होता है । इसके आधार पर यह पता लगाया जा सकता है कि गर्भ में लड़का है या लड़की । Labour pain के दर्द के आधार पर ऐसा माना जाता है कि यदि Labour pain के दौरान दर्द यदि कमर से शुरू होता है तो बेबी बॉय अर्थात लड़का होने की संभावना होती है । यदि Labour pain के दौरान दर्द पेट से शुरू होता है तो यह लड़की होने की संभावना होती है । लेकिन इस बात में कितनी सच्चाई है इसके बारे में अभी तक कोई सटीक प्रमाण नहीं है । इस बात के पीछे लोगों की अपनी अलग मान्यता है । कुछ मामलों में यह बात सही होती है तो कुछ मामलों में यह गलत भी...

प्रेगनेंसी में बच्चे की धड़कन कितनी होनी चाहिए

सेल-फ्री डीएनए एक तरह का ब्लड टेस्ट (Blood test) है। आप अपनी गर्भावस्था के लगभग नौ सप्ताह होने के बाद यह परीक्षण करवा सकते हैं। इस परीक्षण का मुख्य लक्ष्य आपके बच्चे के सेक्स का पता करना नहीं है। इस टेस्ट के जरिए डॉक्टर्स संभावित आनुवंशिक असामान्यताओं की स्क्रीनिंग करते हैं। आपके बच्चे का सेक्स क्रोमसोम उन सभी जनेटिक इन्फॉर्मैशन में से एक हैं। Table of Contents Show • • • • • • • • • • • • • • • • • समान स्क्रीन (वेरीफाई, मेटरनिट 21, हार्मनी) की तुलना में, पैनोरमा भ्रूण के लिंग का निर्धारण करने का 100 प्रतिशत सटीकता दर का दावा करता है। वाई क्रोमसोम की उपस्थिति या अनुपस्थिति का पता लगाने से बच्चे के लिंग का पता चलता है। इस बात का ध्यान रखें कि डोनर अंडे का उपयोग करने वाली महिलाओं के लिए या जिन लोगों ने बोन मैरो ट्रांसप्लांट (Bone Marrow Transplant) करवाया है, उनके लिए यह परीक्षण नहीं है। क्योंकि पैनोरमा एक स्क्रीनिंग टेस्ट है, इसलिए आनुवंशिक असामान्यताओं के संबंध में परिणाम फॉल्स पॉजिटिव या फॉल्स नेगटिव भी हो सकते हैं। इसलिए, किसी भी डायग्नोसिस की पुष्टि कुछ और टेस्ट के साथ ही की जानी चाहिए। और पढ़ें : गर्भावस्था से ही बच्चे का दिमाग होगा तेज, जानिए कैसे? हार्टबीट से सेक्स का पता: आनुवंशिक परीक्षण आपकी गर्भावस्था के कुछ समय बाद, डॉक्टर आपको एमनियोसेंटेसिस (amniocentesis) या कोरियोनिक विली सैंपलिंग (chorionic villi sampling) करवाने की सलाह देते हैं है। ये परीक्षण सेल-फ्री डीएनए की तरह जेनेटिक असामान्यताओं की पहचान करता है। नतीजतन, इससे आपके बच्चे के लिंग की जानकारी मिल सकती है। ये परीक्षण सेल-फ्री रक्त परीक्षणों की तुलना में अधिक सटीक हैं, लेकिन ये खतरनाक भी हैं और इसमे गर्भप...

सोनोग्राफी से क्या क्या पता चलता है? – ElegantAnswer.com

सोनोग्राफी से क्या क्या पता चलता है? इसे सुनेंरोकेंइसे सोनोग्राफी के नाम से भी जाना जाता है। अल्ट्रासाउंड स्कैन में उच्च फ्रीक्वेंसी वाली ध्वनि तरंगें पेट के जरिये गर्भाशय में भेजी जाती हैं। ये तरंगे शिशु को छू कर वापिस आती हैं और कम्प्यूटर इन तरंगों को तस्वीर के रूप में परिवर्तित कर देता है। गर्भ में शिशु की स्थिति और हलचल के बारे में इस तस्वीर से पता चलता है। अल्ट्रासाउंड कब करवाना चाहिए? इसे सुनेंरोकेंसामान्य प्रेग्नेंसी में दो अल्ट्रासाउंड करने का सुझाव दिया जाता है। पहला अल्ट्रासाउंड गर्भावस्था की पहली तिमाही में किया जाता है जबकि दूसरा अल्ट्रासाउंड दूसरी तिमाही के आखिरी चरण में होता है। सोनोग्राफी क्यों की जाती है? इसे सुनेंरोकेंसोनोग्राफी या अल्ट्रासोनोग्राफी, चिकित्सीय निदान (diagnostics) का एक महत्वपूर्ण साधन है। यह पराश्रव्य ध्वनि पर आधारित एक चित्रांकन (इमेजिंग) तकनीक है। चिकित्सा क्षेत्र में इसके कई उपयोग हैं जिसमें से गर्भावस्था में गर्भस्थ शिशु के स्वास्थ्य के बारे में जानकारी की प्राप्ति सर्वाधिक जानीमानी है। गर्भ में लड़के की हार्ट बीट कितनी होती है? इसे सुनेंरोकेंतथ्‍य : अध्‍ययनों की मानें तो पहली तिमाही में लड़के और लड़की के हार्ट रेट में कोई अंतर नहीं होता है। भ्रूण की सामान्‍य हार्ट रेट 120 से 160 बीपीएम होती है जो कि प्रेग्‍नेंसी के शुरुआती चरण में 140 से 160 बीपीएम और गर्भावस्‍था के आखिरी चरण में 120 से 140 बीपीएम तक जा सकती है। अल्ट्रासाउंड खाली पेट होता है क्या? इसे सुनेंरोकेंअभी तक यह धारणा बनी थी कि सोनोग्राफी कराने के लिए खाली पेट आना जरूरी होता हैै। लेकिन सिम्स में महिलाओं को जागरूक करने के लिए रेडियोलॉजी विभाग के पास एक बोर्ड लगाया गया है जिसमे...

How Maternal Stress Affect Your Baby? Know The Link Between Baby Heartbeat And Anxious Mother In Hindi

कहते हैं एक नवजात बच्‍चे और उसकी मां का स्‍वास्‍थ्‍य एक दूसरे से जुड़ा होता है। यह बिलकुल सही और सच बात है। ऐसा इसलिए क्‍योंकि हाल में हुए एक नए अध्‍ययन में भी पाया गया है कि एक नवजात शिशु के दिल की धड़कन से उसकी मां में चिंता, तनाव या डिप्रेशन जैसे मूड डिसऑर्डर का पता चल सकता है। एक खुश और स्‍वस्‍थ शिशुओं में सामान्य दिल की धड़कन होती है, जबकि भावनात्मक रूप से चुनौती या तनावग्रस्त मां के शिशुओं के दिल की धड़कन दूसरों की तुलना में तेज होती है। ऐसा ज्यादातर चिंतित रहने वाली या तनावग्रस्‍त माओं से पैदा हुए बच्चों के साथ होता है। शुरुआती महीनों में, मां और बच्चे की बातचीत अधिक मजबूत होती है। बच्चा केवल अपनी मां को महसूस कर सकता है और उसके अनुसार गुण विकसित कर सकता है। एक स्वस्थ और खुश माँ से पैदा होने वाला बच्चा शारीरिक, भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक रूप से अच्छा होता है। जबकि तनावग्रस्त माँ से होने वाले बच्चे पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, जो कि बच्‍चे के मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है। जिससे कि वह मजबूत शारीरिक लक्षणों का प्रदर्शन कर सकता है। माँ और बच्चे के स्वास्थ्य के बीच संबंध बच्चे भाषा नहीं समझ सकते हैं लेकिन वे व्यक्ति की भावनाओं को महसूस कर सकते हैं, विशेष रूप से अपनी माँ की भावनाओं को। एक माँ का स्वास्थ्य बच्चे की वृद्धि और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ऐसे में एक चिंतित, उदास, तनावग्रस्‍त और भावनात्मक रूप से परेशान मां एक बच्चे को मनोवैज्ञानिक रूप से कमजोर बना सकती है। इससे बच्चे का स्‍वास्‍थ्‍य कई तरीके से प्रभावित हो सकता है और यह उसके स्‍वास्‍थ्‍य में असुरक्षा का कारण बन सकता है। इसे भी पढ़ें: रिसर्च हाल में हुए इस नए अध्‍ययन में शोधकर्ताओ...

गर्भ में लड़के की हलचल से जानिए गर्भ में पुत्र या पुत्री है

ग्रामीण क्षेत्रों में बुजुर्ग और तजुर्बे वाली महिलाएं गर्भवती महिला के गर्भ में बच्चे की हलचल देखकर बता देती हैं की उसके गर्भ में लड़के की हलचल है या लड़की की हलचल अतार्थ गर्भवती महिला के गर्भ में होने वाले बच्चे के मूवमेंट को देखकर बता देती हैं की गर्भ में पुत्र या पुत्री है. आज के जमाने में अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट से यह सब पता चल जाता है लेकिन भारत में अल्ट्रासाउंड से बच्चे का लिंग पता करना कानूनी अपराध है. लेकिन यदि आप होने वाले बच्चे से संबंधित विभिन्न प्लानिंग और खरीददारी करना चाहती है तो आज की पोस्ट में हम गर्भ में लड़के की हलचल क्या होती है तथा गर्भ में पुत्र या पुत्री है कैसे पता करे आदि के बारे में जानकारी प्रदान करेंगे. तो आज की पोस्ट शुरू करते हैं तथा आपको बताते हैं गर्भ में पुत्र या पुत्री है कैसे पता करे यानी गर्भ में लड़का है या लड़की है के बारे में कैसे पता करे. गर्भ में लड़के की हलचल । Garbh me ladke ki halchal इस मान्यता के अनुसार किसी भी गर्भवती स्त्री के गर्भ में बच्चे की हलचल से पता लगाया जा सकता है कि गर्भ में लड़का या लड़की है क्योंकि ऐसा माना जाता है की लड़के के मुकाबले लड़की गर्भ में मूवमेंट जल्दी शुरू करती है. गर्भाशय में एक लड़की जहां चार महीने में ही मूवमेंट करना शुरू कर देती है वहीं लड़का हलचल शुरू करने में पांच महीने तक का समय लेता है. इस मूवमेंट को देखकर आप अंदाजा लगा सकते है की गर्भ में पुत्र या पुत्री है. गर्भ में बच्चे की हलचल किस तरह से होती है गर्भ में बच्चे की हलचल किक मारने, हिचकियां लेने, हिलने-डुलने आदि के रूप में होती है. इसके अलावा शिशु अपने शरीर को दूसरी तरफ मोड़ना, चेहरे को हिलाना तथा हाथ को चेहरे को छूने हेतू हिलाना आदि मूवमेंट भी ...

डायास्टोलिक हार्ट फेलियर के लक्षण, कारण और इलाज के बारे में जानें यहां

नैशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इन्फॉर्मेशन (NCBI) में पब्लिश्ड रिपोर्ट के अनुसार भारत में हार्ट फेलियर का मुख्य कारण हार्ट डिजीज (Heart disease), हायपरटेंशन (Hypertension), मोटापा (Obesity) एवं रूमेटिक हार्ट डिजीज (Rheumatic Heart Disease) है। रिसर्च रिपोर्ट में इस बात की चर्चा की गई है कि भारत में हार्ट फेलियर की समस्या बढ़ती जा रही है। हार्ट फेलियर अलग-अलग तरह के होते हैं और आज इस आर्टिकल में डायास्टोलिक हार्ट फेलियर (Diastolic Heart Failure) क्या है और डायास्टोलिक हार्ट फेलियर के इलाज से जुड़ी संपूर्ण जानकारी शेयर करेंगे। और पढ़ें : डायास्टोलिक हार्ट फेलियर क्या है? डायास्टोलिक हार्ट फेलियर के लक्षण क्या है? डायास्टोलिक हार्ट फेलियर के कारण क्या हैं? डायास्टोलिक हार्ट फेलियर का निदान कैसे किया जाता है? डायास्टोलिक हार्ट फेलियर का इलाज कैसे किया जाता है? चलिए अब डायास्टोलिक हार्ट फेलियर (Diastolic Heart Failure) से जुड़े इन सवालों का जवाब जानते हैं। और पढ़ें : डायास्टोलिक हार्ट फेलियर (Diastolic Heart Failure) क्या है? डायास्टोलिक हार्ट फेलियर को हिंदी में डायस्टोलिक हृदय विफलता कहते हैं। जब हृदय के बाएं वेंट्रिकल में ब्लड नहीं पहुंच पाता है और हृदय से शरीर में ब्लड पंप ठीक तरह से नहीं हो पाता है, तो ऐसी स्थिति डायास्टोलिक हार्ट फेलियर कहलाती है। अगर इसे सामान्य शब्दों में समझें, तो जब हार्ट रेस्ट की पुजिशन में होता है, तो इस दौरान वहां ब्लड भरा होता है और जब हार्ट में ब्लड ठीक तरह से स्टोर नहीं पाता है और पम्पिंग प्रोसेस स्लो होने लगती है, तो यह स्थिति डायास्टोलिक हार्ट फेलियर की ओर इशारा करती है। ऐसा दरअसल बाएं वेंट्रिकल की पेशी सख्त होने लगती है। मनुष्य का हृदय और पढ़ें : ड...

असामान्य हृदय गति के 5 कारण, नॉर्मल हार्ट रेट कितना होना चाहिए

Heart Rate in Hindi: हृदय यानी दिल हमारे शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग होता है। जब हमारा हृदय स्वस्थ रहता है, तो हम भी स्वस्थ महसूस करते हैं। हृदय स्वस्थ है या नहीं इसका पता उसकी गति से लगाया जा सकता है। जी हां, जब हृदय स्वस्थ रहता है तो इसकी गति सामान्य रहती है, जबकि असामान्य हृदय गति किसी न किसी समस्या का संकेत देता है। इसलिए अगर आपको भी कभी अपनी हृदय गति असामान्य लगे तो, तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। चलिए मणिपाल अस्पताल, हेब्बल के सलाहकार - इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजी डॉक्टर सुनील कुमार (Dr Sunil Kumar, Consultant-Interventional Cardiology Manipal Hospital Hebbal) से विस्तार से जानते हैं असामान्य हृदय गति के कारण और नॉर्मल हार्ट रेट कितना होना चाहिए? नॉर्मल हार्ट रेट कितना होना चाहिए? (Normal Heart Rate) डॉक्टर सुनील कुमार बताते हैं कि वयस्कों में सामान्य हृदय गति की दर प्रति मिनट 60 से 100 के बीच होनी चाहिए। अगर हृदय गति की दर प्रति मिनट 60 से कम और 100 से अधिक होती है, तो इस स्थिति को असामान्य हृदय गति कहा जाता है। किसी भी व्यक्ति में हृदय गति की दर प्रति मिनट 150 से अधिक होना, हृदय रोग पैदा होने संकेत हो सकता है। असामान्य हृदय गति के कारण (Abnormal Heart Rate Causes) जब हृदय गति यानी हार्ट रेट प्रति मिनट 60 से कम होता है, तो इसे ब्राडीकार्डिया कहा जाता है। इसके विपरीत जब हमारा दिल तेजी से धड़कने लगता है, तो इस स्थिति को टाचिकार्डिया कहा जाता है। टाचिकार्डिया में हृदय अपनी क्षमता से अधिक तेज धड़कता है, इसकी वजह से सीने में दर्द महसूस हो सकता है। थकान, कमजोरी, बेहोशी, सांस लेने में दिक्कत, और चक्कर आना हृदय गति कम होने यानी ब्राडीकार्डिया के लक्षण हो सकते हैं। वही दिल का तेज धड...

गर्भ में भ्रूण का लिंग क्या दर्शाता है विशेष लक्षण

भ्रूण का जेंडर क्या है? इसको लेकर कई लोग कुछ न कुछ अनुमान लगाते हैं। यह अनुमान कुछ लक्षणों पर भी आधारित हो सकता है। हालांकि, बच्चे के लिंग को लेकर ज्यादातर भविष्यवाणियां विज्ञान के बजाय सुनी-सुनाई बातों पर की जाती हैं। प्रेग्नेंसी के 20 हफ्ते पूरा होने पर एक अल्ट्रासाउंड टेस्ट किया जाता है। यह टेस्ट इस संबंध में ज्यादा विश्वसनीय होता है। हमारे देश में बच्चे का लिंग पता करना कानूनन अपराध है। ज्यादातर महिलाएं शिशु के जन्म से पहले ही उसका नाम और उसके कपड़ों के बारे में सोचने लगती हैं। इसकी वजह से उनके लिए शिशु के लिंग को लेकर उत्सुकता बढ़ जाती है। आज हम इस आर्टिकल में ऐसे कुछ वैज्ञानिक सुबूतों के बारे में बात करेंगे, जो बिना किसी टेस्ट के भ्रूण का जेंडर या गर्भ में लड़का है या लड़की, क्या हो सकता है इसका संकेत देते हैं। हालांकि इस विषय में सौ फीसदी जानकारी उपलब्ध नहीं है या यूं कह लें ये एक अनुमान हो सकता है। गर्भ में भ्रूण का लिंग क्या होगा, इसे लेकर कुछ मिथक भी हैं जो हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से बताएंगे। नोट: भारतीय दंड संहिता के अनुसार जन्म से पूर्व गर्भ में बच्चे के लिंग की जांच करना एक कानूनी अपराध है। आर्टिकल में दी गई जानकारी कुछ मिथक और अध्ययन पर आधारित हैं। इसका मकसद लिंग जांच को प्रोत्साहित करना नहीं है। और पढ़ें: गर्भ में भ्रूण का लिंग : दिख सकते हैं ये लक्षण जानिए महिला की हार्ट बीट तेज (Heart rate) होना किस बात का है संकेत ? यदि गर्भ में लड़की का भ्रूण है तो उसकी यह अध्ययन प्रेग्नेंसी के शुरुआती 12 हफ्तों पर किया गया। इसमें पाया गया कि गर्भ में लड़का होने पर भ्रूण की हार्ट रेट 154.9 बीट्स प्रति मिनट से तेज भागती है। वहीं, लड़कियों की 151.7 बीट्स प्रति मिनट से ...

डायास्टोलिक हार्ट फेलियर के लक्षण, कारण और इलाज के बारे में जानें यहां

नैशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इन्फॉर्मेशन (NCBI) में पब्लिश्ड रिपोर्ट के अनुसार भारत में हार्ट फेलियर का मुख्य कारण हार्ट डिजीज (Heart disease), हायपरटेंशन (Hypertension), मोटापा (Obesity) एवं रूमेटिक हार्ट डिजीज (Rheumatic Heart Disease) है। रिसर्च रिपोर्ट में इस बात की चर्चा की गई है कि भारत में हार्ट फेलियर की समस्या बढ़ती जा रही है। हार्ट फेलियर अलग-अलग तरह के होते हैं और आज इस आर्टिकल में डायास्टोलिक हार्ट फेलियर (Diastolic Heart Failure) क्या है और डायास्टोलिक हार्ट फेलियर के इलाज से जुड़ी संपूर्ण जानकारी शेयर करेंगे। और पढ़ें : डायास्टोलिक हार्ट फेलियर क्या है? डायास्टोलिक हार्ट फेलियर के लक्षण क्या है? डायास्टोलिक हार्ट फेलियर के कारण क्या हैं? डायास्टोलिक हार्ट फेलियर का निदान कैसे किया जाता है? डायास्टोलिक हार्ट फेलियर का इलाज कैसे किया जाता है? चलिए अब डायास्टोलिक हार्ट फेलियर (Diastolic Heart Failure) से जुड़े इन सवालों का जवाब जानते हैं। और पढ़ें : डायास्टोलिक हार्ट फेलियर (Diastolic Heart Failure) क्या है? डायास्टोलिक हार्ट फेलियर को हिंदी में डायस्टोलिक हृदय विफलता कहते हैं। जब हृदय के बाएं वेंट्रिकल में ब्लड नहीं पहुंच पाता है और हृदय से शरीर में ब्लड पंप ठीक तरह से नहीं हो पाता है, तो ऐसी स्थिति डायास्टोलिक हार्ट फेलियर कहलाती है। अगर इसे सामान्य शब्दों में समझें, तो जब हार्ट रेस्ट की पुजिशन में होता है, तो इस दौरान वहां ब्लड भरा होता है और जब हार्ट में ब्लड ठीक तरह से स्टोर नहीं पाता है और पम्पिंग प्रोसेस स्लो होने लगती है, तो यह स्थिति डायास्टोलिक हार्ट फेलियर की ओर इशारा करती है। ऐसा दरअसल बाएं वेंट्रिकल की पेशी सख्त होने लगती है। मनुष्य का हृदय और पढ़ें : ड...

गर्भ में लड़के की हलचल से जानिए गर्भ में पुत्र या पुत्री है

ग्रामीण क्षेत्रों में बुजुर्ग और तजुर्बे वाली महिलाएं गर्भवती महिला के गर्भ में बच्चे की हलचल देखकर बता देती हैं की उसके गर्भ में लड़के की हलचल है या लड़की की हलचल अतार्थ गर्भवती महिला के गर्भ में होने वाले बच्चे के मूवमेंट को देखकर बता देती हैं की गर्भ में पुत्र या पुत्री है. आज के जमाने में अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट से यह सब पता चल जाता है लेकिन भारत में अल्ट्रासाउंड से बच्चे का लिंग पता करना कानूनी अपराध है. लेकिन यदि आप होने वाले बच्चे से संबंधित विभिन्न प्लानिंग और खरीददारी करना चाहती है तो आज की पोस्ट में हम गर्भ में लड़के की हलचल क्या होती है तथा गर्भ में पुत्र या पुत्री है कैसे पता करे आदि के बारे में जानकारी प्रदान करेंगे. तो आज की पोस्ट शुरू करते हैं तथा आपको बताते हैं गर्भ में पुत्र या पुत्री है कैसे पता करे यानी गर्भ में लड़का है या लड़की है के बारे में कैसे पता करे. गर्भ में लड़के की हलचल । Garbh me ladke ki halchal इस मान्यता के अनुसार किसी भी गर्भवती स्त्री के गर्भ में बच्चे की हलचल से पता लगाया जा सकता है कि गर्भ में लड़का या लड़की है क्योंकि ऐसा माना जाता है की लड़के के मुकाबले लड़की गर्भ में मूवमेंट जल्दी शुरू करती है. गर्भाशय में एक लड़की जहां चार महीने में ही मूवमेंट करना शुरू कर देती है वहीं लड़का हलचल शुरू करने में पांच महीने तक का समय लेता है. इस मूवमेंट को देखकर आप अंदाजा लगा सकते है की गर्भ में पुत्र या पुत्री है. गर्भ में बच्चे की हलचल किस तरह से होती है गर्भ में बच्चे की हलचल किक मारने, हिचकियां लेने, हिलने-डुलने आदि के रूप में होती है. इसके अलावा शिशु अपने शरीर को दूसरी तरफ मोड़ना, चेहरे को हिलाना तथा हाथ को चेहरे को छूने हेतू हिलाना आदि मूवमेंट भी ...