गति को परिभाषित कीजिए

  1. गति (भौतिकी)
  2. न्यूटन के गति के 3 नियम क्या है, सूत्र, सीमाएं तथा निगमन
  3. सरल आवर्त गति को परिभाषित कीजिए
  4. मृदा अपरदन: कारण, प्रकार, दुष्परिणाम और संरक्षण के उपाय
  5. गति
  6. ब्राउनी
  7. सरल आवर्त गति को परिभाषित कीजिए
  8. गति (भौतिकी)
  9. न्यूटन के गति के 3 नियम क्या है, सूत्र, सीमाएं तथा निगमन
  10. मृदा अपरदन: कारण, प्रकार, दुष्परिणाम और संरक्षण के उपाय


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गति (भौतिकी)

यदि कोई वस्तु अन्य वस्तुओं की तुलना में समय के सापेक्ष में स्थान परिवर्तन करती है, तो वस्तु की इस अवस्था को गति (motion/मोशन) कहा जाता है। सामान्य शब्दों में गति का अर्थ - वस्तु की स्थिति में परिवर्तन गति कहलाती है। गति (Motion)= यदि कोई वस्तु अपनी स्थिति अपने चारों ओर कि वस्तुओं की अपेक्षा बदलती रहती है तो वस्तु की इस स्थिति को गति कहते है। जैसे- नदी में चलती हुई नाव, वायु में उडता हुआ वायुयान आदि। अनुक्रम • 1 परिभाषाएँ • 2 सन्दर्भ • 3 इन्हेंभीदेखें • 4 बाहरी कड़ियाँ परिभाषाएँ [ ] दूरी (distance): किसी दिए गए समयान्तराल में वस्तु द्वारा तय किए गए मार्ग की लंबाई को विस्थापन (displacement): एक निश्चित दिशा में दो बिन्दुओं के बीच की लंबवत दूरी को चाल (speed): किसी वस्तु के दूरी की दर को चाल = दूरी / समय यह एक अदिश राशि है। इसका S.I. मात्रक मीटर/सेकंड है। वेग (velocity ): किसी वस्तु के विस्थापन की दर को या एक निश्चित दिशा में प्रति सेकंड वस्तु द्वारा तय की विस्थापन को संवेग(momentum): किसी वस्तु के द्रव्यमान और वेग का गुणनफल उस वस्तु का संवेग कहलाता है। संवेग = वेग × द्रव्यमान SI मात्रक- किग्रा × मी/से त्वरण (acceleration): किसी वस्तु के वेग में परिवर्तन की दर को त्वरण कहते हैं। इसका S.I. मात्रक मी/से 2 है। यदि समय के साथ वस्तु का वेग घटता है तो त्वरण ऋणात्मक होता है, जिसे मंदन (retardation ) कहते हैं। गति के प्रकार (१) रैखिक गति- जब कोई वस्तु किसी सरल या वर्क रेखा पर गति करती है, तो इस प्रकार की गति को रैखिक गति कहते है! (२) वृतीय गति- जब कोई वस्तु किसी वृताकार पथ पर गतिमान हो तो, इस प्रकार की गति को वृतीय गति कहते है! (३) दोलनी गति- जब कोई वस्तु किसी निश्चित बिंदु के आगे-पी...

न्यूटन के गति के 3 नियम क्या है, सूत्र, सीमाएं तथा निगमन

1. प्रथम नियम (Law of Inertia in Hindi) नियम के अनुसार, “प्रत्येक वस्तु जिस अवस्था में है। तो वह उसी अवस्था में रहेगी (अर्थात स्थिर है तो स्थिर रहेगी तथा गति की अवस्था में है तो उसी वेग से गति करती रहेगी ) तथा जब तक कि उस पर कोई और बाह्य बल न लगाया जाए ।” अर्थात् यदि बल \overrightarrow = नियत ….(1) “वस्तु का वह गुण जो उसकी विराम या गति की अवस्था को नहीं बदल सकता, जड़त्व (Inertia) कहलाता है। इसलिए न्यूटन के प्रथम नियम को जड़त्व का नियम भी कहते हैं।” इसे भी पढ़ें.. 2. द्वितीय नियम (Law of Force in Hindi) “किसी वस्तु के संवेग परिवर्तन की दर, उस वस्तु पर लगाए गए बल के अनुक्रमानुपाती होती है। तथा संवेग में परिवर्तन की दिशा वही होती है। जिस दिशा में वस्तु पर बल आरोपित किया गया है।” यदि किसी वस्तु पर आरोपित बल \overrightarrow यही “ न्यूटन का तृतीय नियम है।” और पढ़ें.. न्यूटन के नियमों की सीमाएं लिखिए 1.न्यूटन के नियम केवल 2.न्यूटन के पहला व दूसरा नियम तभी लागू होता हैं, जब निर्देश – फ्रेम का कोई और त्वरण नहीं होता हैं। 3.तीसरा नियम जिसका अर्थ है कि किसी क्षण पर क्रिया – प्रतिक्रिया बराबर व विपरीत प्रतिक्रिया होती है, जो कि पूर्णतः सत्य नहीं हैं। 4.न्यूटन के नियम केवल तभी लागू होते हैं। जबकि वस्तु का वेग प्रकाश की चाल की तुलना में नगण्य हो अन्यथा वस्तु का द्रव्यमान नियत नहीं रहेगा । Note – न्यूटन से सम्बन्धित प्रश्न Q.1 न्यूटन के नियम व सीमाओं को परिभाषित कीजिए? दिखाइए कि न्यूटन का प्रथम नियम, द्वितीय नियम की विशेष अवस्था है? Q.2 न्यूटन के गति के नियम बताइए? न्यूटन के गति के दूसरे नियम से, पहले नियम को परिभाषित कीजिए। इन नियमों की सीमाएं क्या हैं?

सरल आवर्त गति को परिभाषित कीजिए

विषयसूची Show • • • • • • • • • • • • यदि कोई पिण्ड आवर्त गति में एक ही पथ पर किसी बिन्दु के इधर-उधर गति करता है तो पिण्ड की गति को कम्पनिक अथवा दोलन गति कहते हैं जैसे- सरल लोलक की गति सरल आवर्त गति कम्पनिक अथवा दोलन गति का सबसे सरल रूप है । सरल आवर्त गति की विशेषताएँ • कण की गति एक स्थिर बिन्दु (साम्य स्थिति) के इधर-उधर सीधी रेखा में हो । • कण पर कार्यकारी प्रत्यानयन बल सदैव उस बिन्दु (साम्य स्थिति) से कण के विस्थापन के अनुक्रमानुपाती हो । • बल सदैव उस बिन्दु की ओर (साम्य स्थिति) को दिष्ट (Directed) हो, तो कण की गति सरल आवर्त गति कहलाती है । सरल आवर्त गति के लक्षण - • गतिमान वस्तु एक सरल रेखा में एक निश्चित बिन्दु (साम्य स्थिति) के दोनों ओर गति करती है । • गतिमान वस्तु अपने पथ के किसी बिन्दु से चलकर उसी बिन्दु तक उसी दिशा में पुनः आने में एक निश्चित समय लेती है । • वस्तु के त्वरण की दिशा सदैव वस्तु की साम्य स्थिति की ओर होती है । • वस्तु का किसी क्षण त्वरण, साम्य स्थिति से वस्तु की दूरी के अनुक्रमानुपाती होता है । साम्य स्थिति, वस्तु की मध्यमान स्थिति भी कहलाती है; अतः सरल आवर्त गति को इस प्रकार परिभाषित करते हैं - जब कोई कण एक सरल रेखा में मध्यमान स्थिति के इधर-उधर गति करे तथा जिसमें त्वरण मध्यमान स्थिति से उसके विस्थापन के अनुक्रमानुपाती हो तथा त्वरण की दिशा सदैव उसकी मध्यमान स्थिति की ओर हो , तो उसकी गति को सरल आवर्त गई कहते हैं । आवर्त गति सम्बन्धी परिभाषायें कम्पन (Vibration) कण अपनी माध्य स्थिति से चलकर उसके दोनों ओर गति करके, जब फिर उसी स्थिति में वापसपहुँचता है तो इस पूर्ण एक चक्कर को एक कम्पन कहते हैं । यह प्रक्रिया बारम्बार होती है ; अतः इसे कण का दोलन करना भी क...

मृदा अपरदन: कारण, प्रकार, दुष्परिणाम और संरक्षण के उपाय

✕ • जीके हिंदी में • इतिहास • भूगोल • राजनीति • अर्थशास्त्र • विज्ञान • खेल • पुरस्कार और सम्मान • संगठन • भारत • विश्व • महत्वपूर्ण दिवस • सरकारी योजनाएं • आज का इतिहास • करेंट अफेयर्स • जीवनी • प्रसिद्ध आकर्षण • देशों की जानकारी • इतिहास वर्षवार • अंग्रेजी शब्दावली • एसएससी प्रश्नोत्तरी • मौखिक तर्क प्रश्नोत्तरी • गैर-मौखिक तर्क प्रश्नोत्तरी • प्रसिद्ध व्यक्तियों के जन्मदिन • सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी • About us • Privacy Policy • YoDiary मृदा अपरदन किसे कहते हैं? - What is soil erosion? मृदा कृषि का आधार है। यह मनुष्य की आधारभूत आवश्यकताओं, यथा- खाद्य, ईंधन तथा चारे की पूर्ति करती है। इतनी महत्वपूर्ण होने के बावजूद भी मिट्टी के संरक्षण के प्रति उपेक्षित दृष्टिकोण अपनाया जाता है। यदि कहीं सरकार द्वारा प्रबंधन करने की कोशिश की भी गई है तो अपेक्षित लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया गया है। फलतः मिट्टी अपनी उर्वरा शक्ति खोती जा रही है। मृदा अपरदन वस्तुतः मिट्टी की सबसे ऊपरी परत का क्षय होना है। सबसे ऊपरी परत का क्षय होने का अर्थ है-समस्त व्यावहारिक प्रक्रियाओं हेतु मिट्टी का बेकार हो जाना। मृदा अपरदन प्रमुख रूप से जल व वायु द्वारा होता है। यदि जल व वायु का वेग तीव्र होगा तो अपरदन की प्रक्रिया भी तीव्र होती है। मृदा अपरदन को परिभाषित कीजिए (Define soil erosion) अपरदन (Erosion) वह प्राकृतिक प्रक्रिया है, जिसमें चट्टानों का विखंडन और परिणामस्वरूप निकले ढीले पदार्थों का जल, पवन, इत्यादि प्रक्रमों द्वारा स्थानांतरण होता है। अपरदन के प्रक्रमों में वायु, जल तथा हिमनद और सागरीय लहरें प्रमुख हैं। लवणीयता व क्षारीयता मृदा के दुष्प्रभाव • ऐसे मृदा की संरचना सघन हो जाती है, जिससे इसमें जल क...

गति

गति संज्ञा स्त्री० [सं०]१. एक स्थान से दूसरे स्थान पर क्रमश;जाने की क्रिया । निंरतर स्थानत्याग की परंपरा । चाल ।गमन । जैसे—वह बड़ी मंद गति से जा रहा है । २. हिलनेडोलने की क्रिया । हरकत । जैसे—उसकी नाड़ी की गति मंद है । ३. अवस्था । दशा । हालत । उ०—भइ गति साँपछछूं दर केरी । तुलसी (शब्द०) । ४. रूप रंग । वेष ।उ०—तन खीन, कोउ पीन पावन कोउ अपावन गतिधरे ।—तुलसी (शब्द०) । ५. पहुंच । प्रवेश । दखल ।जैसे (क) मनुष्य की क्या बात, वहाँ तक वायु की भी गतिनहीं है । (ख) राजा के यहाँ तक उनकी गति कहाँ । (ग)इस शास्त्र में उनकी गति नहीं है । ६. प्रयत्न की सीमा ।अंतिम उपाय । दौड़ । तदबीर । जैसे उसकी गति बस यहींतक थी, आगे वह क्या कर सकेगा । ७. सहारा । अवलंब ।शरण । उ०—तुमहिं छाँड़ि दूसरि गति नाहीं । बसहु रामतिनके उर माहीं ।—तुलसी (शब्द०) । ८. चाल । चेष्टा ।करनी । क्रियाकलाप । प्रयत्न । जैसे—उसकी गति सदा हमारेप्रतिकूल रहती है । ९. लीला । विधान । माया । उ०—दयानिधि, तेरी गति लखि न परे ।—सूर (शब्द०) १०. ढंग ।रीति । चाल । दस्तूर । जैसे—वहाँ की तो गति ही निराली है । ११. जीवात्मा का एक शरीर से दूसरे शरीर में गमन ।विशेष—हिंदू शास्त्रों के अनुसार जीव की तीन गतियाँ है—उर्ध्वगति (देवयोनि), मध्यगति (मनुष्य योनि) और अधोगति(तिर्यक्योनि) । जैन शास्त्रों में गति पाँच प्रकार की कहीगई है—नरकगति, तिर्यक्गति, मनुष्यगति, देवगति औरसिद्धगति ।१२. मृत्यु के उपरांत जीवात्मा की दशा । उ०—(क) गीधअधम खग आमिष भोगी । गति दीन्हीं जो जाँचत जोगी ।—तुलसी (शब्द०) । (ख) साधुन की गति पावत पापी ।—केशव (शब्द०) । १३. मृत्यु के उपरांत जीवात्मा की उत्तमदशा । मोक्ष । मुक्ति । जैसे पापियों की गति नहीं होती ।उ०—है हरि कौन दोष तोहिं दीजै । जेहि ...

ब्राउनी

Que : 269. ब्राउनी -गति को परिभाषित कीजिए । Answer: ब्राउनी गति : जब कोलॉइडी विलयनों को शक्तिशाली अतिसूक्ष्मदर्शी में देखा जाता है तो कोलॉइडी कण पूरे प्रेक्षित क्षेत्र में लगातार टेढ़ी-मेढ़ी गति की अवस्था में दिखाई देते हैं। यह गति सर्वप्रथम ब्रिटिश वनस्पति वैज्ञानिक रॉबर्ट ब्राउन ने प्रेक्षित की, इसीलिए इसे ब्राउनी गति कहते हैं (चित्र)। यह गति कोलॉइड की प्रकृति से स्वतंत्र होती है परन्तु कणों के आकार एवं विलयन की श्यानता (विस्कॉसिटी) पर निर्भर करती है। जितना छोटा आकार होगा एवं श्यानता जितनी कम होगी, गति उतनी ही तीव्र होगी। ब्राउनी गति को परिक्षेपण माध्यम के अणुओं द्वारा कोलॉइडी कणों से असमान टक्कर के द्वारा समझाया गया है। ब्राउनी गति बिलोडन प्रभाव डालती है जो कणों को स्थिर नहीं होने देता तथा इस प्रकार कोलॉइडी सॉल के स्थायित्व के लिए उत्तरदायी होता है।

सरल आवर्त गति को परिभाषित कीजिए

विषयसूची Show • • • • • • • • • • • • यदि कोई पिण्ड आवर्त गति में एक ही पथ पर किसी बिन्दु के इधर-उधर गति करता है तो पिण्ड की गति को कम्पनिक अथवा दोलन गति कहते हैं जैसे- सरल लोलक की गति सरल आवर्त गति कम्पनिक अथवा दोलन गति का सबसे सरल रूप है । सरल आवर्त गति की विशेषताएँ • कण की गति एक स्थिर बिन्दु (साम्य स्थिति) के इधर-उधर सीधी रेखा में हो । • कण पर कार्यकारी प्रत्यानयन बल सदैव उस बिन्दु (साम्य स्थिति) से कण के विस्थापन के अनुक्रमानुपाती हो । • बल सदैव उस बिन्दु की ओर (साम्य स्थिति) को दिष्ट (Directed) हो, तो कण की गति सरल आवर्त गति कहलाती है । सरल आवर्त गति के लक्षण - • गतिमान वस्तु एक सरल रेखा में एक निश्चित बिन्दु (साम्य स्थिति) के दोनों ओर गति करती है । • गतिमान वस्तु अपने पथ के किसी बिन्दु से चलकर उसी बिन्दु तक उसी दिशा में पुनः आने में एक निश्चित समय लेती है । • वस्तु के त्वरण की दिशा सदैव वस्तु की साम्य स्थिति की ओर होती है । • वस्तु का किसी क्षण त्वरण, साम्य स्थिति से वस्तु की दूरी के अनुक्रमानुपाती होता है । साम्य स्थिति, वस्तु की मध्यमान स्थिति भी कहलाती है; अतः सरल आवर्त गति को इस प्रकार परिभाषित करते हैं - जब कोई कण एक सरल रेखा में मध्यमान स्थिति के इधर-उधर गति करे तथा जिसमें त्वरण मध्यमान स्थिति से उसके विस्थापन के अनुक्रमानुपाती हो तथा त्वरण की दिशा सदैव उसकी मध्यमान स्थिति की ओर हो , तो उसकी गति को सरल आवर्त गई कहते हैं । आवर्त गति सम्बन्धी परिभाषायें कम्पन (Vibration) कण अपनी माध्य स्थिति से चलकर उसके दोनों ओर गति करके, जब फिर उसी स्थिति में वापसपहुँचता है तो इस पूर्ण एक चक्कर को एक कम्पन कहते हैं । यह प्रक्रिया बारम्बार होती है ; अतः इसे कण का दोलन करना भी क...

गति (भौतिकी)

यदि कोई वस्तु अन्य वस्तुओं की तुलना में समय के सापेक्ष में स्थान परिवर्तन करती है, तो वस्तु की इस अवस्था को गति (motion/मोशन) कहा जाता है। सामान्य शब्दों में गति का अर्थ - वस्तु की स्थिति में परिवर्तन गति कहलाती है। गति (Motion)= यदि कोई वस्तु अपनी स्थिति अपने चारों ओर कि वस्तुओं की अपेक्षा बदलती रहती है तो वस्तु की इस स्थिति को गति कहते है। जैसे- नदी में चलती हुई नाव, वायु में उडता हुआ वायुयान आदि। अनुक्रम • 1 परिभाषाएँ • 2 सन्दर्भ • 3 इन्हेंभीदेखें • 4 बाहरी कड़ियाँ परिभाषाएँ [ ] दूरी (distance): किसी दिए गए समयान्तराल में वस्तु द्वारा तय किए गए मार्ग की लंबाई को विस्थापन (displacement): एक निश्चित दिशा में दो बिन्दुओं के बीच की लंबवत दूरी को चाल (speed): किसी वस्तु के दूरी की दर को चाल = दूरी / समय यह एक अदिश राशि है। इसका S.I. मात्रक मीटर/सेकंड है। वेग (velocity ): किसी वस्तु के विस्थापन की दर को या एक निश्चित दिशा में प्रति सेकंड वस्तु द्वारा तय की विस्थापन को संवेग(momentum): किसी वस्तु के द्रव्यमान और वेग का गुणनफल उस वस्तु का संवेग कहलाता है। संवेग = वेग × द्रव्यमान SI मात्रक- किग्रा × मी/से त्वरण (acceleration): किसी वस्तु के वेग में परिवर्तन की दर को त्वरण कहते हैं। इसका S.I. मात्रक मी/से 2 है। यदि समय के साथ वस्तु का वेग घटता है तो त्वरण ऋणात्मक होता है, जिसे मंदन (retardation ) कहते हैं। गति के प्रकार (१) रैखिक गति- जब कोई वस्तु किसी सरल या वर्क रेखा पर गति करती है, तो इस प्रकार की गति को रैखिक गति कहते है! (२) वृतीय गति- जब कोई वस्तु किसी वृताकार पथ पर गतिमान हो तो, इस प्रकार की गति को वृतीय गति कहते है! (३) दोलनी गति- जब कोई वस्तु किसी निश्चित बिंदु के आगे-पी...

न्यूटन के गति के 3 नियम क्या है, सूत्र, सीमाएं तथा निगमन

1. प्रथम नियम (Law of Inertia in Hindi) नियम के अनुसार, “प्रत्येक वस्तु जिस अवस्था में है। तो वह उसी अवस्था में रहेगी (अर्थात स्थिर है तो स्थिर रहेगी तथा गति की अवस्था में है तो उसी वेग से गति करती रहेगी ) तथा जब तक कि उस पर कोई और बाह्य बल न लगाया जाए ।” अर्थात् यदि बल \overrightarrow = नियत ….(1) “वस्तु का वह गुण जो उसकी विराम या गति की अवस्था को नहीं बदल सकता, जड़त्व (Inertia) कहलाता है। इसलिए न्यूटन के प्रथम नियम को जड़त्व का नियम भी कहते हैं।” इसे भी पढ़ें.. 2. द्वितीय नियम (Law of Force in Hindi) “किसी वस्तु के संवेग परिवर्तन की दर, उस वस्तु पर लगाए गए बल के अनुक्रमानुपाती होती है। तथा संवेग में परिवर्तन की दिशा वही होती है। जिस दिशा में वस्तु पर बल आरोपित किया गया है।” यदि किसी वस्तु पर आरोपित बल \overrightarrow यही “ न्यूटन का तृतीय नियम है।” और पढ़ें.. न्यूटन के नियमों की सीमाएं लिखिए 1.न्यूटन के नियम केवल 2.न्यूटन के पहला व दूसरा नियम तभी लागू होता हैं, जब निर्देश – फ्रेम का कोई और त्वरण नहीं होता हैं। 3.तीसरा नियम जिसका अर्थ है कि किसी क्षण पर क्रिया – प्रतिक्रिया बराबर व विपरीत प्रतिक्रिया होती है, जो कि पूर्णतः सत्य नहीं हैं। 4.न्यूटन के नियम केवल तभी लागू होते हैं। जबकि वस्तु का वेग प्रकाश की चाल की तुलना में नगण्य हो अन्यथा वस्तु का द्रव्यमान नियत नहीं रहेगा । Note – न्यूटन से सम्बन्धित प्रश्न Q.1 न्यूटन के नियम व सीमाओं को परिभाषित कीजिए? दिखाइए कि न्यूटन का प्रथम नियम, द्वितीय नियम की विशेष अवस्था है? Q.2 न्यूटन के गति के नियम बताइए? न्यूटन के गति के दूसरे नियम से, पहले नियम को परिभाषित कीजिए। इन नियमों की सीमाएं क्या हैं?

मृदा अपरदन: कारण, प्रकार, दुष्परिणाम और संरक्षण के उपाय

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