गुलाबी गणगौर

  1. [Solved] राजस्थान के निम्नलिखित में से किस क्षेत्र मे�
  2. धीगां गणगौर कब और कहां मनाई जाती है , Dinga Gangor Kab Aur Kahan Manae Jaati Hai
  3. चैत्र मास
  4. श्रीनाथजी में आज गुलाबी गणगौर के दर्शन : DIVYASHANKHNAAD
  5. Gangaur Festival 2023: Date, Significance, How Celebrated, and Types
  6. Gangaur Puja 2021:15 अप्रैल को मनाया जाएगा गणगौर उत्सव, पूजा से मिलता है अखंड सौभाग्य


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[Solved] राजस्थान के निम्नलिखित में से किस क्षेत्र मे�

सही उत्तर नाथद्वारा है। • गुलाबी गणगौर का त्यौहार नाथद्वारा में चैत्र शुक्ल पंचमी को मनाया जाता है। Additional Information • विभिन्न महीनों में मनाये जाने वाले राजस्थान के कुछ मेले और त्यौहार निम्नलिखित हैं: • वैशाख - भर्तृहरि मेला (अलवर) • श्रावण - कल्याण जी कामेला (मालपुरा- टोंक) • चैत्र - लक्खी मेला, करणी माता मेला • भद्रा - बाबा रामदेव जी कामेला (पोखरण-जैसलमेर) • कार्तिक - कपिल मुनि मेला (बीकानेर)

धीगां गणगौर कब और कहां मनाई जाती है , Dinga Gangor Kab Aur Kahan Manae Jaati Hai

धीगां गणगौर कब और कहां मनाई जाती है , Dinga gangor kab aur kahan manae jaati hai धीगां गणगौर कब और कहां मनाई जाती है , Dinga gangor kab aur kahan manae jaati hai , धीगां गणगौर कब मनाई जाती है ? , धीगां गणगौर कहां मनाई जाती है ? , धीगां गणगौर कहां की प्रसिद्ध है ? धीगां गणगौर का उद्गम , धीगां गणगौर के दिन कौन सा मेला लगता है, धीगां गणगौर कब है, Dinga gangor धीगां गणगौर हिंदू कैलेंडर के वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को राजस्थान के उदयपुर तथा जोधपुर जिले में मुख्य रूप से मनाई जाती है। धीगां गणगौर कहां की प्रसिद्ध है ? यह गणगौर वर्तमान समय में राजस्थान के जोधपुर जिले की प्रसिद्ध है। इस पर्व के दौरान जोधपुर में महिलाएं क्रांतिकारी पुरुषों की वेशभूषा धारण करके एक दूसरे को बैंत मारती है। धींगा गणगौर का उद्गम ? इस गणगौर के पर्व के दिन राजस्थान के जोधपुर जिले की मसूरिया पहाड़ी पर धीगांगवर बेंतमार मेला लगता है। इस मेले को बेंतमार मेला भी कहा जाता है। इस मेले में राजस्थान सहित हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश तथा गुजरात से भी सैकड़ों लोग भाग लेने के लिए आते हैं। धीगां गणगौर कब है ? धींगा गणगौर 9 मार्च 2023 (रविवार) को है। इस गणगौर का आयोजन मुख्य रूप से मेवाड़ तथा मारवाड़ क्षेत्र में किया जाता है। तथा इस गणगौर को एक नृत्य खेल के रूप में खेला जाता है जो राजस्थान की संस्कृति का परिचायक है। Disclaimer: इस पर्व से संबंधित यह जानकारी हमारे द्वारा विभिन्न स्त्रोतों के माध्यम से प्राप्त करके आपके साथ साझा की गई है यदि इसमें किसी भी प्रकार की कोई भी त्रुटि होती है तो इसके लिए Gaanvkhabar जिम्मेदार नहीं हैं।

चैत्र मास

हिन्दू कैलेंडर के अनुसार चैत्र मास वर्ष का प्रथम माह है। यह वसंत ऋतु में आता हैं। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह मार्च-अप्रैल महीने में आता है। चैत्र मास की प्रतिपदा तिथि से ही हिन्दू नववर्ष की शुरुआत होती है। विक्रम संवत की चैत्र शुक्ल की पहली तिथि से नवरात्रि में दुर्गा व्रत-पूजन का आरंभ होता है। चैत्र के नवरात्री का काफी महत्त्व है आज भी बहीखाते का नवीनिकरण और मंगल कार्य की शुरुआत इसी माह में होती है। ज्योतिष विद्या में ग्रह, ऋतु, मास, तिथि एवं पक्ष आदि की गणना भी चैत्र प्रतिपदा से ही की जाती है। • ईरान में इस तिथि को ‘नौरोज’ यानी ‘नया वर्ष’ मनाया जाता है। आंध्र में यह पर्व ‘उगादिनाम’ से मनाया जाता है। उगादिका अर्थ होता है युग का प्रारंभ, अथवा ब्रह्मा की सृष्टि रचना का पहला दिन। • इस प्रतिपदा तिथि को ही जम्मू-कश्मीर में ‘नवरेह’, पंजाब में वैशाखी, महाराष्ट्र में ‘गुडीपड़वा’, सिंध में चेतीचंड, केरल में ‘विशु’, असम में ‘रोंगली बिहू’ आदि के रूप में मनाया जाता है। • विक्रम संवत की चैत्र शुक्ल की पहली तिथि से नवरात्रि में दुर्गा व्रत-पूजन का आरंभ होता है, बल्कि राजा रामचंद्र का राज्याभिषेक, युधिष्ठिर का राज्याभिषेक, सिख परंपरा के द्वितीय गुरु अंगददेव का जन्म हुआ था। चैत्र मास कृष्ण पक्ष चैत्र मास शुक्ल पक्ष प्रतिपदा– होली(धुलंडी) फाल्गुन माह की पूर्णिमा को होलिका दहन कर होली मनाई जाती है इसके अगले दिन चैत्र कृष्ण एकम को रंगों का त्यौहार होली धुलंडी मनाई जाती है। प्रतिपदा– नव सम्वत्सर (नया वर्ष) हिन्दू धर्म में नव वर्ष चैत्र शुक्ल एकम (चेत्र प्रतिपदा) को मनाया जाता है। प्रतिपदा– चैत्र नवरात्रा हिन्दु धर्म में साल में चार नवरात्रि मनाई जाती हैं। इसमें पहली नवरात्रि पौराणिक मान्य...

श्रीनाथजी में आज गुलाबी गणगौर के दर्शन : DIVYASHANKHNAAD

व्रज – चैत्र शुक्ल पंचमी, 06 अप्रैल 2022 आज गुलाबी गणगौर • आज गुलाबी गणगौर है और ललिताजी के भाव की है अतः आज सर्व साज एवं वस्त्र गुलाबी घटावत धराये जाते हैं • आज के वस्त्र शीतकाल की गुलाबी घटा जैसे ही होते हैं परन्तु उन दिनों शीतकाल होने से वस्त्र साटन के धराये जाते हैं,और आज उष्णकाल के कारण मलमल के वस्त्र धराये जाते हैं • इसके अतिरिक्त शीतकाल की गुलाबी घटा के दिन किनारी वाले वस्त्र नहीं होते जबकि आज के वस्त्र सुनहरी ज़री की किनारी से सुशोभित होते हैं • प्रभु को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से चैत्री गुलाब का सीरा अरोगाया जाता है • आज श्रीजी में नियम की चैत्री गुलाब की मंडली आती है. • श्रृंगार समय धरायी पिछवाई ग्वाल बाद बड़ी कर (हटा) दी जाती है और चैत्री गुलाब से निर्मित मंडली (बंगला) में प्रभु विराजित होते हैं. • मनोरथ के रूप में विविध सामग्रियां प्रभु को अरोगायी जाती हैं. राजभोग से संध्या-आरती तक प्रभु मंडली में विराजते हैं एवं आरती दर्शन के पश्चात मंडली हटा दी जाती है. • आज विशेष रूप से प्रभु में गोखड़े (तिबारी) वाली मंडली धरायी जाती है. इस प्रकार की मंडली में श्रीजी वर्ष में केवल आज के दिन ही विराजते हैं. • शयनभोग की सखड़ी में श्री नवनीतप्रियाजी में सिद्ध होकर श्रीजी के अरोगने के लिए गुलाब का सीरा आता है. श्रीजी दर्शन: • साज: आज श्रीजी में गुलाबी रंग की मलमल की सुनहरी ज़री की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है • गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है • एक पडघा पर बंटाजी में बीड़ा व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है, सम्मुख में धरती पर त्रष्टि धरी जाती हैं • वस्त्र : • आज श्रीजी को गुलाबी मलमल का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. • ठाड़े ...

Gangaur Festival 2023: Date, Significance, How Celebrated, and Types

गणगौर त्योहार 2023: भारत को अगर त्योहारों का देश कहा जाए तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी, क्योकि भारत में पुरे साल अलग-अलग राज्यों में कई त्यौहार मनाये जाते है। जैसे - तीज-त्यौहार, होली, दिवाली, रक्षाबंधन, गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस, छोटी तीज, बड़ी तीज, करवा चौथ, जन्माष्टमी, शिवरात्रि, गणगौर, गणेश चतुर्थी, भाई दूज, तिल चौथ आदि कई छोटे और बड़े त्योहारों को बड़े ही धूमधाम से अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग रीति रिवाजो से मनाया जाता हैं। आज हम इस ब्लॉग के माध्यम से आपको राजस्थान में बहुत ही हर्षोल्लाष से मनाये जाने वाले गणगौर के त्योहार के बारे में विस्तार से बताने का प्रयास करेंगे। गणगौर का त्यौहार: गणगौर शब्द से तात्पर्य है - गण यानी कि "शिव" और गौर यानी कि "पार्वती"।गणगौर के व्रत में कुंवारी कन्याओं तथा विवाहित महिलाये शिव पार्वती की पूजा करती है। यह त्योहार होलिका दहन के कुछ ही दिनों बाद अर्थात् चैत्र शुक्ल तृतीया तिथि के दिन इस त्यौहार को मनाया जाता है। यह व्रत कुंवारी कन्याओं तथा विवाहित महिलाओ द्वारा मनाया जाता है। गणगौर का व्रत कुंवारी कन्याए अच्छे वर की कामना तथा विवाहित महिलाये अपने सुहाग की दीर्घायु हेतु करती है। राजस्थान में गणगौर का त्योहार कैसे मनाया जाता है? गणगौर का त्यौहार अन्य त्यौहारों की भांति ही राजस्थान का एक खास त्यौहार माना जाता है। यह एक ऐसा पर्व है जो होलिका दहन के दूसरे दिन अर्थात् चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से शुरू होकर चैत्र शुक्ल तृतीया तिथि तक 16 दिनों तक चलता है। इन दिनों में लड़कियां और विवाहित स्त्रियां हमेशा बगीचे में जाकर कलश भर कर कलश को फूल - पत्तो से सजाकर गणगौर के गीत गाती हुई अपने घर लाती हैं। इसी तरह से 16 दिन तक यह त्यौहार चलता है फिर 16व...

Gangaur Puja 2021:15 अप्रैल को मनाया जाएगा गणगौर उत्सव, पूजा से मिलता है अखंड सौभाग्य

Gangaur Puja 2021: 15 अप्रैल को मनाया जाएगा गणगौर उत्सव, पूजा से मिलता है अखंड सौभाग्य विस्तार नवरात्रि के तीसरे दिन यानि चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाने वाला गणगौर का त्योहार स्त्रियों के लिए अखण्ड सौभाग्य प्राप्ति का पर्व है। इस साल यह पावन पर्व 15 अप्रैल को मनाया जाएगा। गणगौर दो शब्दों से मिलकर बना है,'गण' और 'गौर'। गण का तात्पर्य है शिव (ईसर) और गौर का अर्थ है पार्वती। वास्तव में गणगौर पूजन माँ पार्वती और भगवान शिव की पूजा का दिन है। भगवान शिव को पाया- शास्त्रों के अनुसार मां पार्वती ने भी अखण्ड सौभाग्य की कामना से कठोर तपस्या की थी और उसी तप के प्रताप से भगवान शिव को पाया। इस दिन भगवान शिव ने माता पार्वती को तथा पार्वती जी ने समस्त स्त्री जाति को सौभाग्य का वरदान दिया था। माना जाता है कि तभी से इस व्रत को करने की प्रथा आरंभ हुई। इसी से प्रभावित होकर विवाह योग्य कन्याएं सुयोग्य वर पाने के लिए पूर्ण श्रद्धा भक्ति से यह पूजन-व्रत करती हैं।वहीं सुहागिन महिलाएं अपने पति की दीर्घायु व मंगल कामना के लिए शिव -गौरी पूजन करती हैं। सुहागजल से होती है पूजा गणगौर पूजन के लिए कुंवारी कन्याएं व विवाहित स्त्रियां सुबह सुंदर वस्त्र एवं आभूषण पहन कर सिर पर लोटा लेकर बाग़-बगीचों में जाती हैं। वहीं से ताज़ा जल लोटों में भरकर उसमें हरी-हरी दूब और फूल सजाकर सिर पर रखकर गणगौर के गीत गाती हुई घर आती हैं। इसके बाद शुद्ध मिट्टी के शिव स्वरुप ईसर और पार्वती स्वरुप गौर की प्रतिमा बनाकर स्थापित करती हैं। शिव-गौरी को सुंदर वस्त्र पहनाकर सम्पूर्ण सुहाग की वस्तुएं अर्पित करके चन्दन,अक्षत, धूप,दीप,दूब व पुष्प से उनकी पूजा-अर्चना की जाती है। दीवार पर सोलह -सोलह बिंदियां रोली,हल्दी,मेहंद...