गुरु गोविंद

  1. गुरु गोबिंद सिंह
  2. गुरु गोविन्द दोऊ खड़े काके लागूं पांय कबीर दास के दोहे पर प्रेरक कहानी
  3. Kabir Ke Dohe Guru Govind Dou Khade Meaning in Hindi
  4. Guru Gobind Singh : गुरु गोविंद सिंह का जीवन परिचय
  5. राज्यपाल मिश्र ने गोविंद गुरु पुस्तकालय का लोकार्पण किया – ThePrint Hindi
  6. Guru Gobind Singh History in Hindi
  7. राज्यपाल मिश्र ने गोविंद गुरु पुस्तकालय का लोकार्पण किया – ThePrint Hindi
  8. Guru Gobind Singh : गुरु गोविंद सिंह का जीवन परिचय
  9. गुरु गोविन्द दोऊ खड़े काके लागूं पांय कबीर दास के दोहे पर प्रेरक कहानी
  10. Kabir Ke Dohe Guru Govind Dou Khade Meaning in Hindi


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गुरु गोबिंद सिंह

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गुरु गोविन्द दोऊ खड़े काके लागूं पांय कबीर दास के दोहे पर प्रेरक कहानी

गुरु का स्थान कहानी | Importance Of Teacher For Student Story In Hindi छोटे से कस्बे में इंजीनियर साहब के मकान के बाहर बाईं तरफ मदार का पेड़ जो काफी पुराना हो चुका है न जाने किस वजह से सूखता जा रहा है । इंजीनियर साहब के यहां बिटिया की शादी है ऐसे मैं वह ससुराल पक्ष के आने से पहले वे घर को चमकाने में लगे हैं । वह घर के सामने चारदीवारी कराना चाहते हैं मगर चारदीवारी के बीच में ही मदार का पेड़ आ रहा है । उसे उन्होने एक बाबा जी के कहने पर लगाया था । यह पेड़ उनके लिए काफी शुभ रहा क्योंकि इसके बाद उन्हें जीवन में काफी उन्नति प्राप्त हुई चूंकि यह पेड़ अब सूख चुका है इसलिए इसे निकाल देने में कोई हर्ज नहीं है । नीव की खुदाई चल रही है ऐसे में बीच में आए इस मदार के पेड़ को मजदूरों ने इंजीनियर साहब के कहे अनुसार बहुत ही एहतियात बरतते हुए बाहर निकाल दिया है अब चूंकि इंजीनियर साहब को मदार के इस पेड़ मे काफी श्रद्धा है इसलिए वो उसे मजदूरों की मदद से ले जाकर दूसरे मंजिले की छत पर रखवा देते हैं । धीरे-धीरे शादी का समय निकट आ जाता है । काफी दिनों बाद घर में हो रहे उत्सव में इंजीनियर साहब ने अपने सभी निकट संबंधियों नात रिश्तेदारों एवं आस पड़ोस के सभी लोगों को बुला रखे हैं । इंजिनियर साहब इस कार्यक्रम में बाबा जी को आमंत्रित करने उनके आश्रम गए थे । मगर अस्वस्थ होने के कारण वे उनकी बिटिया की शादी में नहीं आ सके । शादी का कार्यक्रम निपटे धीरे-धीरे काफी समय गुजर जाता है । फुर्सत मिलने पर इंजीनियर साहब को मदार के पेड़ की याद आती है । चूंकि उन्होंने किसी से सुन रखा था कि पुराने मदार के पेड़ में भगवान गणेश निकल आते हैं । ऐसे में वे दौड़े-दौड़े उस मदार के पेड़ का निरीक्षण करने जाते हैं जो उनके छत पर प...

Kabir Ke Dohe Guru Govind Dou Khade Meaning in Hindi

हम सभी ने कभी न कभी कबीर दास जी के दोहे पढ़ें हैं। उन्होंने बहुत ही कम शब्दों में हमें सच्चाई से अवगत कराया है। यहाँ जानें कबीर दास जी के दोहे “गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय” का अर्थ – Kabir Ke Dohe Guru Govind Dou Khade Meaning in Hindi कबीर के दोहे गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय। बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय।। कबीर के दोहे गुरू गोविन्द दोऊ खड़े अर्थ सहित:उपरोक्त दोहे में संत कबीर ने गुरु तथा गोविंद यानि कि भगवान की तुलना की है। वे कहते हैं कि यदि गुरु और गोविंद साथ खड़े हों, तो किसके पैर छूना उत्तम है। ऐसे में गुरु के ही समक्ष शीश झुकाना चाहिए, क्योंकि वही होते हैं, जो भगवान से शिष्य का परिचय कराते हैं और शिष्य को भगवान की कृपा का सौभाग्य दिलवाते हैं।

Guru Gobind Singh : गुरु गोविंद सिंह का जीवन परिचय

श्री गुरु गो‍बिंद सिंह जी सिखों के दसवें गुरु हैं। इनका जन्म पौष सुदी 7वीं सन् 1666 को पटना में माता गुजरी जी तथा पिता श्री गुरु तेगबहादुर जी के घर हुआ। उस समय गुरु तेगबहादुर जी बंगाल में थे। उन्हीं के वचनोंनुसार गुरुजी का नाम गोविंद राय रखा गया, और सन् 1699 को बैसाखी वाले दिन गुरुजी पंज प्यारों से अमृत छक कर गोविंद राय से गुरु गोविंद सिंह जी बन गए। उनके बचपन के पांच साल पटना में ही गुजरे। 1675 को कश्मीरी पंडितों की फरियाद सुनकर श्री गुरु तेगबहादुर जी ने दिल्ली के चांदनी चौक में बलिदान दिया। श्री गुरु गोबिंद सिंह जी 11 नवंबर 1675 को गुरु गद्दी पर विराजमान हुए। धर्म एवं समाज की रक्षा हेतु ही गुरु गोबिंद सिंह जी ने 1699 ई. में खालसा पंथ की स्थापना की। पांच प्यारे बनाकर उन्हें गुरु का दर्जा देकर स्वयं उनके शिष्य बन जाते हैं और कहते हैं-जहां पांच सिख इकट्ठे होंगे, वहीं मैं निवास करूंगा। उन्होंने सभी जातियों के भेद-भाव को समाप्त करके समानता स्थापित की और उनमें आत्म-सम्मान की भावना भी पैदा की। गुरु गोबिंद सिंह जी की पत्नियां, माता जीतो जी, माता सुंदरी जी और माता साहिबकौर जी थीं। बाबा अजीत सिंह, बाबा जुझार सिंह आपके बड़े साहिबजादे थे जिन्होंने चमकौर के युद्ध में शहादत प्राप्त की थीं। और छोटे साहिबजादों में बाबा जोरावर सिंह और फतेह सिंह को सरहंद के नवाब ने जिंदा दीवारों में चुनवा दिया था। युद्ध की दृष्‍टि से आपने केसगढ़, फतेहगढ़, होलगढ़, अनंदगढ़ और लोहगढ़ के किले बनवाएं। पौंटा साहिब आपकी साहित्यिक गतिविधियों का स्थान था। दमदमा साहिब में आपने अपनी याद शक्ति और ब्रह्मबल से श्री गुरुग्रंथ साहिब का उच्चारण किया और लिखारी (लेखक) भाई मनी सिंह जी ने गुरुबाणी को लिखा। गुरुजी रोज गुरुबाणी ...

राज्यपाल मिश्र ने गोविंद गुरु पुस्तकालय का लोकार्पण किया – ThePrint Hindi

राज्यपाल ने पुस्तकालय भवन के लोकार्पण के बाद वहां विकसित पुस्तकालय सुविधाओं, वाचनालय आदि का अवलोकन कर पुस्तक संस्कृति के लिए इन्हें महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने वहां उपस्थित बच्चों से संवाद भी किया। इस अवसर पर सांसद देवजी भाई पटेल, नीरज डांगी और विधायक समाराम गरासिया भी मौजूद रहे। राज्यपाल इन दिनों माउंट आबू के प्रवास पर हैं। भाषा पृथ्‍वी नरेश नोमान नोमान यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

Guru Gobind Singh History in Hindi

गुरु गोबिंद सिंह जी सीखो के 10 वें गुरु थे | गुरु गोविंद सिंह का जन्म नौवें सिख गुरु के घर पटना के साहिब में पौष शुक्ल सप्तमी संवत् 1723 यानि की 22 दिसम्बर 1666 को हुआ था | उनके बचपन का नाम गोविन्द राय था | 1670 में गुरु गोबिंद सिंह का परिवार पंजाब में आ गया | गुरु गोबिंद सिंह जी एक महान योद्धा, कवि, भक्त एवं आध्यात्मिक नेता थे | 1699 बैसाखी के दिन गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की थी यह दिन सिखों के इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है | कहा जाता है कि गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा और सच्चाई की राह पर चलते हुए ही गुजार दी थी | गुरु गोबिंद सिंह का उदाहरण और शिक्षाएं आज भी लोगों को प्रेरित करती है | चलिए जानते हैं Guru Gobind Singh History in Hindi के बारे में। Check Out : बिल गेट्स की सफलता की कहानी Source : Pinterest गरू गोबिन्द सिंह ने सिखों की पवित्र ग्रन्थ गुरु ग्रंथ साहिब को पूरा कर गुरु रूप में सुशोभित किया | गुरु गोबिंद सिंह जी एक महान योद्धा, कवि, भक्त एवं आध्यात्मिक नेता थे उन्होंने धर्म के लिए समस्त परिवार का बलिदान किया | जिसके लिए उन्हें ‘सरबंसदानी’ (सर्ववंशदानी) भी कहा जाता है | गुरु गोविंद सिंह कलगीधर, दशमेश, बाजांवाले आदि कई नाम, उपनाम व उपाधियों से भी जाने जाते हैं | गुरु गोविंद सिंह जी ने सदा प्रेम, एकता, भाईचारे का संदेश दिया | उनकी मान्यता थी कि मनुष्य को किसी को डराना नहीं चाहिए और न किसी से डरना चाहिए | उनकी वाणी में मधुरता, सादगी, सौजन्यता एवं वैराग्य की भावना कूट-कूटकर भरी थी | उनके जीवन का प्रथम दर्शन ही था कि धर्म का मार्ग सत्य का मार्ग है और सत्य की सदैव विजय होती है | गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपना पूरा जीवन लोग...

राज्यपाल मिश्र ने गोविंद गुरु पुस्तकालय का लोकार्पण किया – ThePrint Hindi

राज्यपाल ने पुस्तकालय भवन के लोकार्पण के बाद वहां विकसित पुस्तकालय सुविधाओं, वाचनालय आदि का अवलोकन कर पुस्तक संस्कृति के लिए इन्हें महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने वहां उपस्थित बच्चों से संवाद भी किया। इस अवसर पर सांसद देवजी भाई पटेल, नीरज डांगी और विधायक समाराम गरासिया भी मौजूद रहे। राज्यपाल इन दिनों माउंट आबू के प्रवास पर हैं। भाषा पृथ्‍वी नरेश नोमान नोमान यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

Guru Gobind Singh : गुरु गोविंद सिंह का जीवन परिचय

श्री गुरु गो‍बिंद सिंह जी सिखों के दसवें गुरु हैं। इनका जन्म पौष सुदी 7वीं सन् 1666 को पटना में माता गुजरी जी तथा पिता श्री गुरु तेगबहादुर जी के घर हुआ। उस समय गुरु तेगबहादुर जी बंगाल में थे। उन्हीं के वचनोंनुसार गुरुजी का नाम गोविंद राय रखा गया, और सन् 1699 को बैसाखी वाले दिन गुरुजी पंज प्यारों से अमृत छक कर गोविंद राय से गुरु गोविंद सिंह जी बन गए। उनके बचपन के पांच साल पटना में ही गुजरे। 1675 को कश्मीरी पंडितों की फरियाद सुनकर श्री गुरु तेगबहादुर जी ने दिल्ली के चांदनी चौक में बलिदान दिया। श्री गुरु गोबिंद सिंह जी 11 नवंबर 1675 को गुरु गद्दी पर विराजमान हुए। धर्म एवं समाज की रक्षा हेतु ही गुरु गोबिंद सिंह जी ने 1699 ई. में खालसा पंथ की स्थापना की। पांच प्यारे बनाकर उन्हें गुरु का दर्जा देकर स्वयं उनके शिष्य बन जाते हैं और कहते हैं-जहां पांच सिख इकट्ठे होंगे, वहीं मैं निवास करूंगा। उन्होंने सभी जातियों के भेद-भाव को समाप्त करके समानता स्थापित की और उनमें आत्म-सम्मान की भावना भी पैदा की। गुरु गोबिंद सिंह जी की पत्नियां, माता जीतो जी, माता सुंदरी जी और माता साहिबकौर जी थीं। बाबा अजीत सिंह, बाबा जुझार सिंह आपके बड़े साहिबजादे थे जिन्होंने चमकौर के युद्ध में शहादत प्राप्त की थीं। और छोटे साहिबजादों में बाबा जोरावर सिंह और फतेह सिंह को सरहंद के नवाब ने जिंदा दीवारों में चुनवा दिया था। युद्ध की दृष्‍टि से आपने केसगढ़, फतेहगढ़, होलगढ़, अनंदगढ़ और लोहगढ़ के किले बनवाएं। पौंटा साहिब आपकी साहित्यिक गतिविधियों का स्थान था। दमदमा साहिब में आपने अपनी याद शक्ति और ब्रह्मबल से श्री गुरुग्रंथ साहिब का उच्चारण किया और लिखारी (लेखक) भाई मनी सिंह जी ने गुरुबाणी को लिखा। गुरुजी रोज गुरुबाणी ...

गुरु गोविन्द दोऊ खड़े काके लागूं पांय कबीर दास के दोहे पर प्रेरक कहानी

गुरु का स्थान कहानी | Importance Of Teacher For Student Story In Hindi छोटे से कस्बे में इंजीनियर साहब के मकान के बाहर बाईं तरफ मदार का पेड़ जो काफी पुराना हो चुका है न जाने किस वजह से सूखता जा रहा है । इंजीनियर साहब के यहां बिटिया की शादी है ऐसे मैं वह ससुराल पक्ष के आने से पहले वे घर को चमकाने में लगे हैं । वह घर के सामने चारदीवारी कराना चाहते हैं मगर चारदीवारी के बीच में ही मदार का पेड़ आ रहा है । उसे उन्होने एक बाबा जी के कहने पर लगाया था । यह पेड़ उनके लिए काफी शुभ रहा क्योंकि इसके बाद उन्हें जीवन में काफी उन्नति प्राप्त हुई चूंकि यह पेड़ अब सूख चुका है इसलिए इसे निकाल देने में कोई हर्ज नहीं है । नीव की खुदाई चल रही है ऐसे में बीच में आए इस मदार के पेड़ को मजदूरों ने इंजीनियर साहब के कहे अनुसार बहुत ही एहतियात बरतते हुए बाहर निकाल दिया है अब चूंकि इंजीनियर साहब को मदार के इस पेड़ मे काफी श्रद्धा है इसलिए वो उसे मजदूरों की मदद से ले जाकर दूसरे मंजिले की छत पर रखवा देते हैं । धीरे-धीरे शादी का समय निकट आ जाता है । काफी दिनों बाद घर में हो रहे उत्सव में इंजीनियर साहब ने अपने सभी निकट संबंधियों नात रिश्तेदारों एवं आस पड़ोस के सभी लोगों को बुला रखे हैं । इंजिनियर साहब इस कार्यक्रम में बाबा जी को आमंत्रित करने उनके आश्रम गए थे । मगर अस्वस्थ होने के कारण वे उनकी बिटिया की शादी में नहीं आ सके । शादी का कार्यक्रम निपटे धीरे-धीरे काफी समय गुजर जाता है । फुर्सत मिलने पर इंजीनियर साहब को मदार के पेड़ की याद आती है । चूंकि उन्होंने किसी से सुन रखा था कि पुराने मदार के पेड़ में भगवान गणेश निकल आते हैं । ऐसे में वे दौड़े-दौड़े उस मदार के पेड़ का निरीक्षण करने जाते हैं जो उनके छत पर प...

Kabir Ke Dohe Guru Govind Dou Khade Meaning in Hindi

हम सभी ने कभी न कभी कबीर दास जी के दोहे पढ़ें हैं। उन्होंने बहुत ही कम शब्दों में हमें सच्चाई से अवगत कराया है। यहाँ जानें कबीर दास जी के दोहे “गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय” का अर्थ – Kabir Ke Dohe Guru Govind Dou Khade Meaning in Hindi कबीर के दोहे गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय। बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय।। कबीर के दोहे गुरू गोविन्द दोऊ खड़े अर्थ सहित:उपरोक्त दोहे में संत कबीर ने गुरु तथा गोविंद यानि कि भगवान की तुलना की है। वे कहते हैं कि यदि गुरु और गोविंद साथ खड़े हों, तो किसके पैर छूना उत्तम है। ऐसे में गुरु के ही समक्ष शीश झुकाना चाहिए, क्योंकि वही होते हैं, जो भगवान से शिष्य का परिचय कराते हैं और शिष्य को भगवान की कृपा का सौभाग्य दिलवाते हैं।