हास्य रस का स्थाई भाव है

  1. रस किसे कहते है, परिभाषा, प्रकार (भेद) एवं उदाहरण
  2. हास्य रस की परिभाषा, भेद और उदाहरण। Hasya ras in Hindi
  3. नौ रस की सम्पूर्ण व्याख्या और प्रयोग कत्थक नृत्य में
  4. रस किसे कहते हैं, रस के भेद और उदाहरण
  5. हास्य रस का स्थायी भाव क्या है?


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रस किसे कहते है, परिभाषा, प्रकार (भेद) एवं उदाहरण

दोस्तों हिंदी व्याकरण में रस बहुत ही महत्वपूर्ण होते हैं। हिंदी काव्य पढ़ते वक्त हमें विभिन्न रसों की अनुभूति होती है। रसवादी आचार्यों ने रस को काव्य की अहम भूमिका माना है। उन्होंने रस को मुख्य माना है। इतना ही नहीं बल्कि रसों को काव्य की आत्मा भी कहा गया है। तो दोस्तों अगर आप भी रसों के बारे में विस्तार से जानना चाहते हैं तो हमारा आज का यह आर्टिकल आपके लिए ही है। क्योंकि आज के इस आर्टिकल में हम आपको रसों की परिभाषा, भेद प्रकार अंग स्थायी भाव के बारे में विस्तारपूर्वक बताने जा रहे हैं। आज के इस लेख में हम दसों रसों – श्रृंगार रस, हास्य रस, करुण रस, रौद्र रस, वीभत्स रस, भयानक रस, अद्धभुत रस, वीर रस, शान्त रस, और वात्सल्य रस की परिभाषा उदाहरण सहित जानेगें। दोस्तों जिस प्रकार आत्मा के बिना शरीर का कोई मूल्य नहीं उसी प्रकार रस के बिना काव्य भी निर्जीव माना जाता है। रस शब्द आनंद का पर्याय है। तो आइए अब हम रसों के बारे में विस्तार से जानते हैं – रस किसे कहते है? (Ras kise kahte hai) दोस्तों जैसा कि हम ऊपर पढ़ चुके हैं कि रस शब्द का अर्थ आनंद होता है। साहित्य शास्त्र मे रस का अर्थ अलौकिक या लोकोत्तर आनंद होता हैं। दूसरे शब्दों में जिसका आश्वासन दिया जाये वही रस है। रस का अर्थ आनन्द है अर्थात् काव्य को पढ़ने सुनने या देखने से मिलने वाला आनन्द ही रस है। रस की निष्पत्ति विभाव, अनुभाव, संचारी भाव के संयोग से होती है। रस की परिभाषा (ras ki paribhasha) दोस्तों जब कभी भी हम किसी काव्य कहानियां नाटक को पढ़ते हैं तो हमें एक प्रकार के आनंद की अनुभूति होती है। इस आनंद को ही रस कहा गया है। सरल शब्दों में समझें तो, काव्य के पढ़ने सुनने अथवा उसका अभिनय देखने मे पाठक, श्रोता या दर्शक को जो आनंद...

हास्य रस की परिभाषा, भेद और उदाहरण। Hasya ras in Hindi

प्रस्तुत लेख में हास्य रस के विषय में विस्तृत ज्ञान प्रस्तुत किया गया है। यह लेख विद्यालय, विश्वविद्यालय अथवा प्रतियोगी परीक्षाओं के अनुरूप तैयार किया गया है। इस लेख के अध्ययन के बाद विद्यार्थी स्वयं के विवेक से किसी भी प्रकार के हास्य रस से संबंधित प्रश्नों का स्पष्ट और सटीक उत्तर दे पाने में सक्षम होगा। यह लेख विद्यार्थियों के ज्ञान , रुचि और जिज्ञासा को बढ़ाने अथवा उसको ज्ञान का भंडार देने के उद्देश्य से लिखा गया है। आशा है यह लेख अपने उद्देश्यों की पूर्ति कर सकें. हास्य रस – Hasya ras in Hindi परिभाषा :- हास्य रस की प्रस्तुति में विभाव, अनुभाव, संचारी तथा अन्य भाव आस्वाद रूप में प्रकट होते हैं। हास्य नायक के भाव – भंगिमावों तथा उसके वेशभूषा अथवा परिधानों के माध्यम से भी प्रकट अथवा निष्पत्ति होती है। विद्वानों के अनुसार सहृदय सामाजिक व्यक्ति को उदात रूप में हास्य का अधिक आनंद अनुभव होता है। माना जाता है हास का वेग जितना तीव्र होगा उतना अधिक हास्य रस होगा। हास्य रस का स्थाई भाव हास है। यह मनोरंजन के उद्देश्यों की पूर्ति करता है। आलम्बन हास्य के आलंबनो की कोई सीमा नहीं होती , अर्थात हास्य कभी भी प्रकट हो सकता है। यह प्रायोजित अथवा अप्रायोजित भी होते हैं। उद्दीपन हास्य से पूर्ण परिस्थितियां तथा उसको उत्पन्न करने की क्रियाकलाप ही उद्दीपन का विषय बनती है। अनुभाव अनुभाव के अंतर्गत • आंखों का मूंदना , • मुंह बनाना , • संकेत करना , • आंखें खिल उठना , • हंसना , • हंसते – हंसते लोटपोट हो जाना , • व्यंग्य कसना , • ताली पीटना , • हाथ मारना , • नाक – कान – गला आदि का स्पंदन। रोमांस आदि सात्विक अनुभाव के अंतर्गत आते हैं। संचारी भाव संचारी भाव के अंतर्गत – घृणा , हास – परिहास , स्नेह ...

नौ रस की सम्पूर्ण व्याख्या और प्रयोग कत्थक नृत्य में

मान व जीवन रंगीन कपड़े की तरह है जो कई घटनाओं से रंग और बनावट प्रदान करता है जो इसे आकार देता हैं। सांसारिक क्रियाएं जो हर दिन घटित होती हैं, साथ ही असाधारण घटनाएं जो हमारी जिंदगी को रोचक बनाते हैं, वे सभी धागे की तरह हीं हैं जो इसके निर्माण के लिए एक साथ बुने जाते हैं। इन सभी धागे के लिए एक आम बात यह है कि वे हमारे अंदर की भावनाओं को उजागर करते हैं, हम अपनी भावनाओं के साथ जवाब देते हैं इससे पहले कि वे हमारे आंतरिक जीवन का हिस्सा बन सकें। दरअसल, जीवन को विभिन्न संदर्भों और परिस्थितियों में उत्पन्न होने वाली भावनाओं की लगातार अनुक्रम के रूप में माना जा सकता है। ये भावनाएं, या रस, जो जीवन को अलग-अलग रंग और आकार देते हैं। इस प्रकार यह आश्चर्यजनक नहीं है कि दर्शकों को प्रभावित करने के लिए दर्शकों के समक्ष पेश करने की कोशिश करने वाले अधिकांश कलाकार कला रस या भावनाओं पर ध्यान केंद्रित करते हैं। यह रस कला या नाट्य का प्रदर्शन करने का मुख्य आधार है। यह एक तथ्य है जो सदियों से अच्छी तरह से पहचाना गया है। नाट्यशास्त्र एक प्राचीन भारतीय पाठ है, जो 2 शताब्दी ईसा पूर्व और दूसरी शताब्दी ईस्वी के बीच रचा गया। जो कला प्रदर्शन के सभी पहलुओं का विश्लेषण करता है। इसके महत्व के कारण इसे अक्सर पांचवा वेद कहा जाता है। इसमें रस पर बहुत डिटेल में लिखा गया है, यह भावनाएं जो जीवन के साथ ही आर्ट की विशेषता बताती हैं। नाट्यशास्त्र में नौ रसों का वर्णन किया गया है जो सभी मानव भावनाओं का आधार हैं। प्रत्येक पर विस्तार से टिप्पणी की गई है। यह ध्यान रखना उपयोगी है कि रस में सिर्फ भावना नहीं होती है, बल्कि विभिन्न चीजें हैं जो उस भावना का कारण बनती हैं। श्रृंगार रस श्रृंगार का मतलब प्यार और सुंदरता है,इसके...

रस किसे कहते हैं, रस के भेद और उदाहरण

विषय सूची • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • रस की परिभाषा (Ras Ki Paribhasha) जब हम किसी भी साहित्य को या उसके काव्य पंक्ति को पढ़ते हैं या किसी कार्य को देखते हैं तब पाठक या श्रोता या दर्शक के मन में उस समय जिस आनंद की अनुभूति होती है, उसे ही रस कहा जाता है। रस को काव्य का आत्मा कहा जाता है। बिना रस के काव्य नहीं हो सकता। हर तरह की पंक्ति में कुछ ना कुछ रस जरूर होते हैं और उसी के अनुसार व्यक्ति के चित में भाव उत्पन्न होता है। यदि रस को आप विस्तार पूर्वक जाना चाहते हैं तो इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें। क्योंकि इस लेख में हमने रस की परिभाषा, रस के भेद एवं रस के उदाहरण, आचार्य भरतमुनि के अनुसार रस की परिभाषा बताएं है। रस का शाब्दिक अर्थ रस का शाब्दिक अर्थ निचोड़ होता है। रस काव्य की आत्मा होती है। इन्हीं के कारण काव्य को पढ़ने से आनंद आता है। हालांकि यह आनंद अलौकिक होता है। संस्कृत में रस युक्त वाक्य को ही काव्य माना गया है। भरत मुनि द्वारा रस की परिभाषा सर्वप्रथम भरत मुनि ने ही अपने नाट्यशास्त्र में रस को स्पष्ट किया है। आचार्य भरतमुनि के अनुसार आठ प्रकार के रस होता है- शृंगार, हास्य, करुण, रौद्र, वीर, भयानक, बीभत्स एवं अद्भुत। भरत मुनि ने स्थाई भाव को यह कहा है। इसी भाव का विभाव, अनुभाव तथा व्यभिचारी के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है। भरत मुनि ने रस को काव्य की आत्मा कहा है। इन्होंने बताया है कि रस का वही स्थान होता है, जो शरीर में आत्मा का होता है। बिना आत्मा के जिस तरह शरीर का कोई अस्तित्व नहीं वैसे ही बिना रसयुक्त कथन के काव्य का कोई अस्तित्व नहीं। रस की व्याख्या करते हुए भरतमुनि ने कहा है कि सब नाट्य उपकरणों द्वारा प्रस्तुत ए...

हास्य रस का स्थायी भाव क्या है?

Explanation : हास्य रस का स्थायी भाव हास है। ऐसे भाव जो हृदय में संस्कार रूप में स्थित होते हैं, जो चिरकाल तक रहने वाले अर्थात् अक्षय, स्थिर और प्रबल होते हैं तथा जो रसरूप में परिवर्तित या परिणत होते हैं, स्थायी भाव कहलाते हैं। स्थायी भावों की संख्या कुल संख्या 9 है और स्थायी भाव की मान्यताओं की संख्या 11 है। सामान्य हिंदी के अन्तर्गत रस और भाव संबंधी प्रश्न पूछे जाते है। जो आपके लिए आईएएस, पीसीएस, कर्मचारी चयन आयोग, बीएड., सब इंस्पेक्टर, बैंक भर्ती परीक्षा, समूह 'ग' जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं के अलावा विभिन्न विश्वविद्यालयों की प्रवेश परीक्षाओं के लिए भी उपयोगी होते है। Tags :