Haigens ka siddhant

  1. विलासी वर्ग का सिद्धांत, वेबलिन
  2. Lamarckism in Hindi : लैमार्कवाद (लैमार्क का सिद्धांत)
  3. कार्ल मार्क्स का ऐतिहासिक भौतिकवाद सिद्धान्त
  4. हाइगेन्स का तरंग सिद्धान्त, तरंग
  5. प्लेटो का काव्य सिद्धान्त और अनुकरण सिद्धान्त
  6. 'Pyaar Ka Punchnama' fame actor Ishita Raaj to play lead role in Raaj Shaandilyaa's next – ThePrint – ANIFeed
  7. जैन धर्म के सिद्धांत
  8. अधिगम के सिद्धांत Theory Of Learning in hindi


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विलासी वर्ग का सिद्धांत, वेबलिन

vilasi varg ka siddhant veblen;वेबलिन ने विलासी वर्ग संबंधी अपने विचार अपनी सर्वप्रथम कृति 'The theory of leisure-class' में स्पष्ट किये है। यह सिद्धांत समाज के आर्थिक पहलू का समाजशास्त्रीय विश्लेषण करता है तथा वर्गों की उत्पत्ति एवं वर्ग संघर्ष के कारणों पर प्रकाश डालता है। विलासी वर्ग का सिद्धांत, वेबलिन वेब्लन का कथन है कि समाज मे दो प्रकार की संस्थायें पायी जाती है। कुछ संस्थायें ऐसी होती है जिनका उद्देश्य दूसरों की संपत्ति हड़पना होता है अथवा अपनी संपत्ति को बढ़ाना होता है। दूसरे वर्ग मे वे संस्थाये आती है जो औद्योगिक कला की श्रेणी मे आती है। इनका मुख्य कार्य उत्पादन करना होता है। इस प्रकार समाज मे दो वर्ग उत्पन्न होते है-- 1. संपत्ति हरण करने वाला अर्थात् अनुत्पादक वर्ग। 2. संपत्ति उत्पन्न करने वाला आर्थात् उत्पादक वर्ग। अनुत्पादक वर्ग केवल अपने ही स्वार्थों की पूर्ति पर ध्यान देता है और अन्य के हितों की उपेक्षा करता है। इसके विपरीत दूसरा वर्ग स्वयं के हितों के मूल्य पर अनुत्पादक वर्ग के हितों की रक्षा के लिए विवश किया जाता है। प्रथम वर्ग पूंजी, बुद्धि, स्वामित्व आदि के बल पर बैंक, विधि, औद्योगिक संस्थान आदि पर कब्जा कर लेता है। यह सब कुछ वह बिना श्रम के प्राप्त करता है और विलासी जीवन व्यतीत करने लगता है। अपने विलासी जीवन के लिये औद्योगिक संस्थाओं पर स्थायी रूप से अधिकार करने का प्रयास करता है। इस हेतु सभी उचित तथा अनुचित साधनों का इस्तेमाल करते है। उत्पादन की मात्रा कम करना, वस्तुओं का मूल्य बढ़ाना अथवा कृत्रिम अभाव पैदा करना आदि के द्वार वे बाजार को नियंत्रण मे लेते है। इससे उत्पादक-वर्ग अर्थात् श्रमिक वर्ग के हितों को आघात पहुँचता है। वे इसका विरोध करते है। इसका स...

Lamarckism in Hindi : लैमार्कवाद (लैमार्क का सिद्धांत)

लैमार्कवाद क्या है / लैमार्क का सिद्धांत क्या है (Lamarckism in Hindi/Lemark ka siddhant) : फ़्रांस के प्रसिद्ध जीव-वैज्ञानिक जीन बैप्टिस्ट डी लैमार्क ( Jean Baptiste de Lamarck) ने जैव-विकास परिकल्पना पर पहला तर्कसंगत सिद्धांत प्रस्तुत किया था, जो वर्ष 1809 में उनकी पुस्तक फिलॉसफी जूलोजीक ( Philosophie Zoologique) में प्रकाशित हुआ था | इस सिद्धांत को लैमार्क का सिद्धांत ( Lamarckian Theory) अथवा उपार्जित लक्षणों की वंशागति का सिद्धांत ( Theory of Inheritance of Acquired Characters) कहा जाता है | Lamarck Theory of Evolution in Hindi लैमार्क का सिद्धांत (Lamarckian Theory) के मुख्य बिंदु लैमार्क का सिद्धांत निम्न चार मूल धारणाओं पर आधारित है (Lamarckism in Hindi) – • बड़े होने की प्रवृत्ति (Tendency to Increase in Size) • वातावरण का सीधा प्रभाव (Direct Effect of Environment) • अंगों के अधिक अथवा कम उपयोग का प्रभाव (Effect of Use and Disuse of Organs) • उपार्जित लक्षणों की वंशागति (Inheritance of Acquired Characters) विद्यादूत की इन स्पेशल केटेगरी को भी देखें – बड़े होने की प्रवृत्ति (Tendency to Increase in Size) जैव विकास में जीव शरीर तथा उसके अंगों के माप में बढ़ोतरी की प्रवृत्ति होती है | वातावरण का सीधा प्रभाव (Direct Effect of Environment) प्रत्येक जीव की जीवन-रीतियों, स्वभाव, आचरण आदि पर वातावरण का सीधा प्रभाव पड़ता है, जिसके कारण उसके शरीर की आकृति, स्वास्थ्य, रंग, स्वभाव, विकास आदि में परिवर्तन होता है | जैसे कि नमी वाले स्थानों की अपेक्षा शुष्क वाले स्थानों में उगने वाले पौधों की जड़ें अधिक लम्बी और गहरी होती है | अंगों के अधिक अथवा कम उपयोग का प्रभाव (Effect of Use and...

कार्ल मार्क्स का ऐतिहासिक भौतिकवाद सिद्धान्त

प्रश्न 16. कार्ल मार्क्स द्वारा प्रतिपादित इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए। अथवा '' मार्क्स के इतिहास की आर्थिक व्याख्या के सिद्धान्त की समीक्षा कीजिए। अथवा '' कार्ल मार्क्स द्वारा प्रतिपादित ऐतिहासिक भौतिकवाद के सिद्धान्त की आलोचनात्मक विवेचना कीजिए। उत्तर- कार्ल मार्क्स द्वारा प्रस्तुत समाज तथा इतिहास का सिद्धान्त ' ऐतिहासिक भौतिकवाद ' के नाम से प्रसिद्ध है। इस सिद्धान्त का आधार काल्पनिक या दार्शनिक नहीं है , बल्कि उस नियम की व्याख्या है जो मानव इतिहास की गतिविधि को निर्धारित करती है। इसके द्वारा मार्क्स ने न केवल हीगल के द्वन्द्ववाद सम्बन्धी विचारों को ही उलट दिया , अपितु हीगल द्वारा प्रस्तुत इतिहास की आदर्शात्मक व्याख्या के स्थान पर अपनी भौतिकवादी व्याख्या प्रस्तुत की। ऐंजिल्स ने अपने ग्रन्थ 'Seclected Works' में लिखा है कि जिस प्रकार डार्विन ने भौतिक प्रकृति के नियम की खोज की है , उसी प्रकार मार्क्स ने मानव इतिहास के विकास के नियम की खोज की है। मार्क्स से पूर्व के विद्वानों ने इतिहास की व्याख्या आध्यात्मिक , भौगोलिक तथा ज नसंख्यात्मक आधार पर की थी , परन्तु उन्होंने ऐतिहासिक तथ्यों का भौतिक आधार खोजकर इतिहास को एक विज्ञान का रूप प्रदान किया। इसलिए मार्क्स के इस सिद्धान्त को ' ऐतिहासिक भौतिकवाद ' का नाम दिया गया है। मार्क्स ने ऐतिहासिक भौतिकवाद के सिद्धान्त की रूपरेखा अपनी पुस्तक 'German Ideology' में प्रस्तुत की है। उनके अनुसार भौतिक अस्तित्व ही मानव इतिहास का आधार है। भौतिक उत्पादन की प्रणाली ही ऐतिहासिक घटनाओं का सृजन करती है। मार्क्स की दृष्टि में मानव समाज का इतिहास राजाओं और सेनापतियों के क्रियाकलापों से सम्बन्धित नहीं है। यह उन लोगों से...

हाइगेन्स का तरंग सिद्धान्त, तरंग

हाइगेन्स का तरंग सिद्धान्त , हाइगेंस के तरंग सिद्धांत के मुख्य अधिग्रहित लिखिए, हाय गन के सिद्धांत के अनुसार प्रकाश का एक रूप है. हाइगेंस सिद्धांत क्या है, हाइगेन्स का द्वितीयक तरंग सिद्धांत. हाइगेंस का प्रथम नियम, प्रकाश का तरंग सिद्धांत. हाइगेन्स का तरंग सिद्धान्त Higens ka siddhant : प्रकाश के तरंग-सिद्धान्त का प्रतिपादन हॉलैण्ड के वैज्ञानिक हाइगेन्स ने सन् 1678 ई० में किया था। हाइगेन्स के अनुसार, प्रकाश तरंगों के रूप में चलता है। ये तरंगें प्रकाश-स्रोत से निकलकर सभी दिशाओं में प्रकाश की चाल से चलती हैं। चूँकि तरंगों को चलने के लिये माध्यम की आवश्यकता होती है, अत: हाइगेन्स ने एक सर्वव्यापी माध्यम ‘ ईथर‘ (ether) की कल्पना की। इस काल्पनिक माध्यम के लिए यह माना गया कि यह भारहीन है तथा सभी पदार्थों में प्रवेश कर सकता है। इसमें प्रकाश-तरंग के संचरण के लिए आवश्यक सभी गुण होते हैं। उदाहरण के लिये, इस प्रकार के काल्पनिक माध्यम में प्रकाश की हाइगेन्स का द्वितीयक तरंगिकाओं का सिद्धान्त हाइगेन्स ने किसी माध्यम में तरंगों के संचरण के सम्बन्ध में एक सिद्धान्त प्रतिपादित किया जिसे हाइगेन्स का ‘ द्वितीयक तरंगिकाओं का सिद्धान्त‘ कहते हैं। इसके लिये हाइगेन्स ने निम्नलिखित परिकल्पनाएँ की : (i) जब किसी माध्यम में स्थित तरंग-स्रोत से तरंगें निकलती हैं, तो स्रोत के चारों ओर स्थित माध्यम के कण कम्पन करने लगते हैं। माध्यम में वह पृष्ठ जिसमें स्थित सभी कण कम्पन की समान कला में हों, ‘तरंगाग्र’ (wave-front) कहलाता है। यदि तरंग-स्रोत बिन्दुवत् है, तो तरंगाग्र गोलीय (spherical) होता है। स्रोत से बहुत अधिक दूरी पर तरंगाग्र लगभग समतल हो जाता है। (ii) तरंगाग्र पर स्थित प्रत्येक माध्यम-कण एक नये तरंग-...

प्लेटो का काव्य सिद्धान्त और अनुकरण सिद्धान्त

plato ka anukaran sidhant प्लेटो का काव्य सिद्धान्त साहित्यशास्त्र के अंतर्गत प्लेटो का परिचय, प्रमुख ग्रंथ, प्लेटो का काव्य दर्शन, प्लेटो का अनुकरण सिद्धान्त, कला के संदर्भ में प्लेटो का मत आदि पर विस्तार से विचार किया गया है। पाश्चात्य काव्यशास्त्र की व्यवस्थित परम्परा की शुरुआत ही प्लेटो से होती है, इसलिए प्लेटो का काव्य सिद्धान्त काफी महत्वपूर्ण हैं। प्लेटो का परिचय प्लेटो का जन्म 428 ई. पू. में हुआ था, परंतु जन्म स्थान एथेंस या एजीना को लेकर मतभेद है। इसका मूल नाम अरिस्तोक्लीस और अरबी-फारसी में अफलातून नाम प्रसिद्ध है। प्लेटो सुकरात के शिष्य थे, उनके विचारों और तर्क-पद्धति से गहरे प्रभावित भी। 20 वर्ष की अवस्था में सुकरात के अकादमी में आकर 8 वर्ष तक शिक्षा ग्रहण की। प्लेटो ने 387 ई. पू. (एथेंस) में एक अकादमी स्थापित किया था, गुरुकुल की तरह जिसमें अपने चेलों को पढ़ाता था। एक तरह से यह बौद्धिक केंद्र था। जो राजा बनने के काबिल होते थे वे वहाँ जाते थे। इस अकादमी का उद्देश्य दार्शनिक और वैज्ञानिक अनुसंधान का विकास और बढ़ावा देना था। यहाँ सभी विषयों की शिक्षा दी जाती थी परंतु गणित एवं ज्यामिति को प्रमुखता प्राप्त थी। अकादमी के प्रवेश द्वार पर ही लिखा था कि ‘ज्यामिति से अनभिज्ञ कोई व्यक्ति यहाँ प्रवेश न करे। प्लेटो ने यहीं पर अपने सुप्रसिद्ध संवाद (Apologia) और आलेख (Epistles) लिखा। अपने जीवन के अंतिम 40 वर्षों तक यहीं पर अध्ययन-अध्यापन करते रहे। 347 ई. पू. में उनकी मृत्यु हुई। प्लेटो आत्मवादी या प्रत्ययवादी दार्शनिक था, प्रत्यय जगत को ही वह यथार्थ मानता था। इसके दर्शन के प्रमुख विषय निम्नलिखित हैं- • प्रत्यय सिद्वान्त • आदर्श राज्य • आत्मा की अमरत्व सिद्धि • सृष्टि शास्त्र • ...

'Pyaar Ka Punchnama' fame actor Ishita Raaj to play lead role in Raaj Shaandilyaa's next – ThePrint – ANIFeed

Mumbai (Maharashtra) [India], October 22 (ANI): Bollywood actor Ishita Raaj is all set to portray the lead role in the ‘Dream Girl’ director and producer Raaj Shandilya’s next untitled film. Taking to Instagram, trade analyst Taran Aadarsh shared the news which he captioned, “RAAJ SHAANDILYAA – SANDEEP SINGH SIGN ISHITA. RAAJ… #PyaarKaPunchnama and #SonuKeTituKiSweety actress #IshitaRaaj will essay the role of a news anchor and narrator, who takes the story forward, in producers #RaajShaandilyaa and #SandeepSingh’s new film, not titled yet. The film – based on a true event – begins shoot in Jan 2023 in #Maharashtra and #Bihar… Story by #SamKhan… Written by #AnilChoudhary, #ChaitanyaTulsyan and #SamKhan… Co-produced by #VimalKLahoti and #ZafarMehdi.” Produced by Raaj Shadiliyaa and Sandeep Singh, Ishita will be seen portraying the role of a news anchor and narrator and is based on a true story. Previously, Ishita worked in famous films like ‘Pyaar Ka Punchnama’, ‘Pyaar Ka Punchnama 2’, and ‘Sonu Ke Titu Ki Sweety’ alongside actor Kartik Aaryan. She was last seen in a romantic comedy film ‘Yaaram’ alongside Prateik Babbar and Siddhant Kapoor. Talking about her new project, the makers will begin shooting the film in January 2023 in Maharashtra and Bihar. The official release date of the film is still awaited. (ANI) This report is auto-generated from ANI news service. ThePrint holds no responsibility for its content.

जैन धर्म के सिद्धांत

nivrittimarg eeshvar jain dharm eeshvar ke astittv ko nahian svikar karata. vah eeshvar ko srishtikarta bhi nahian manata. isaka karan yah hai ki aisa manane se use sansar ke papoan aur kukarmoan ka bhi karta manana p dega. srishti jain dharm sansar ko shashvat, nity, anashvar, aur vastavik astittv vala manata hai. karm jain dharm manushy ko svayan apana bhagy vidhata manata hai. apane saansarik evan adhyatmik jivan mean manushy apane pratyek karm ke lie uttaradayi hai. usake sare sukh-dukh karm ke karan hi haian. usake karm hi punarjanm ka karan haian. manushy 8 prakar ke karm karata hai- • jnanavaraniy • darshanavaraniy • vedaniy • mohaniy • ayukarm • namakarm • gotrakarm • antaray karm mokshaprapti ke lie avashyak hai ki manushy apane poorvajanm ke karmaphal ka nash kare aur is janm mean kisi prakar ka karmaphal sangrahit n kare. yah lakshy ‘ triratn jain dharm ke triratn haian- • samyakh shraddha • samyakh jnan • samyakh acharan sath mean vishvas samyakh shraddha hai, sadroop ka shankavihin aur vastavik jnan samyakh jnan hai tatha vahy jagath ke vishayoan ke prati sam du:kh-sukh bhav se udasinata hi samyak acharan hai. jnan jain dharm ke anusar paanch prakar ke jnan haian- • mati, jo ianndriyoan ke dvara prapt hota hai • shruti, jo sunakar ya varnan ke dvara prapt hota hai • avadhi, jo divy jnan hai • man paryay, jo any vyaktiyoan ke man-mastishk ki bat jan lene ka jnan hai • kaival, jo poorn jnan hai aur nigranthoan ko prapt hota hai. syadvad ya anekaantavad ya saptab...

अधिगम के सिद्धांत Theory Of Learning in hindi

अधिगम के सिद्धांत Theory Of Learning in hindi!! अधिगम जीवन पर्यंत चलने वाली प्रक्रिया होती है अधिगम का अर्थ होता है सीखना। मनुष्य अपने जीवन के प्रत्येक क्षणों में कुछ ना कुछ सीखता रहता है सीखने की यह प्रगति मनुष्य में जीवन पर्यंत चलती रहती है मनोवैज्ञानिकों ने मनोविज्ञान के अंतर्गत कुछ अधिगम के सिद्धांत Theory Of Learning in hindi दिए हैं जो निम्नलिखित है- 1. उद्दीपक अनुक्रिया सिद्धांत इस सिद्धांत का प्रतिपादन अमेरिकी मनोवैज्ञानिक ए एल थार्नडाइकने किया था। इस नियम के अनुसार,” जब प्राणी के समक्ष कोई उद्दीपक उपस्थित होता है तब वह उसके प्रति अनुक्रिया करता है, परिणाम संतोषजनक प्राप्त होने पर वह अनुक्रिया उद्दीपक के साथ जुड़ जाती है।” इस सिद्धांत के प्रतिपादन के लिए थार्नडाइक ने बिल्लीपर प्रयोग किया। इस प्रयोग के पश्चात थार्नडाइक ने सीखने के क्षेत्र में तीन मुख्य नियमों का प्रतिपादन किया- 1.तत्परता का नियम 2.अभ्यास का नियम 3. प्रभाव का नियम थार्नडाइक ने उपरोक्त मुख्य नियमों के अलावा पांच गौण नियमों का भी प्रतिपादन किया है- 1.बहु अनुक्रिया का नियम 2. आंशिक क्रिया का नियम 3. मनोवृति का नियम ( रुचि का नियम) 4. सादृश्यता का नियम ( पूर्व अनुभव का नियम) 5. साहचर्य रूपांतरण का नियम प्रश्न-थार्नडाइक का कौन सा नियम पूर्व अनुभव पर आधारित होता है? उत्तर-सादृश्यता का नियम प्रश्न-प्रयास एवं त्रुटि सिद्धांत का प्रतिपादन किसने किया? उत्तर-थार्नडाइक 2. अनुकूलित अनुक्रिया सिद्धांत इस सिद्धांत का प्रतिपादन रूस के शरीर शास्त्री इवान पी पावलावने किया है। इस सिद्धांत के अनुसार,” जब प्राणी के समक्ष कोई उद्दीपक उपस्थित होता है, तो वह उसके प्रति अनुक्रिया करता है यदि प्राणी के समक्ष प्रथम उद्दीपक के ...