हिंदी कहानी का उद्भव और विकास

  1. हिंदी निबन्ध का उद्भव और विकास
  2. हिंदी उपन्यास का उद्भव एवं विकास
  3. Optional Subject : Hindi Literature
  4. हिन्दी का उद्भव एवं विकास Origin and Development of Hindi ~ Hindi greema
  5. हिंदी नाटक का उद्भव और विकास
  6. कहानी शब्द का अर्थ एवं व्याख्या ।कहानी : उद्भव एवं विकास। Kahani Ka Arth Evam Vyakhya


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हिंदी निबन्ध का उद्भव और विकास

निबन्ध 'निबन्ध' शब्द नि+बन्ध से बना है, जिसका अर्थ अच्छी तरह बंधी हुई परिमार्जित प्रौढ़ रचना से है। निबंध अपने आधुनिक रूप में 'ऐसे (ESSAY)' शब्द का पर्याय है। अंग्रेजी में इसका अर्थ है प्रयत्न, प्रयोग अथवा परीक्षण अभिप्राय यह है कि किसी विषय का भली-भाँति प्रतिपादन करना या परीक्षण करना निबंध कहा जाता है। बाबू गुलाबराय के अनुसार— 'निबंध उस गद्य रचना को कहते हैं, जिसमें एक सीमित आकार के भीतर किसी विषय का वर्णन या प्रतिपादन एक विशेष निजीपन, स्वच्छंदता, सौष्ठव और सजीवता तथा आवश्यक संगति और सम्बद्धता के साथ किया गया हो।' डॉ. लक्ष्मीनारायण वार्ष्णेय 'निबन्ध से तात्पर्य सच्चे साहित्यिक निबंधों से है, जिनमें लेखक अपने-आपको प्रकट करता है विषय को नहीं। विषय तो केवल बहाना मात्र होता है।' निबन्ध गद्य की सर्वोत्तम विधा है-'गद्यं कवीनां निकषं वदन्ति'- संस्कृत की इस प्रसिद्ध उक्ति का विस्तार कर आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने कहा- "यदि गद्य कवियों की कसौटी है तो निबन्ध गद्य की कसौटी है।" गद्यकार की रचनात्मक क्षमता एवं प्रतिभा की पहचान निबंध रचना से ही संभव है। 'निबन्ध' का अभिप्राय है 'किसी वस्तु को सम्यक रूप से बाँधना।' अर्थात् 'निबन्ध' वह रचना है जिसमें किसी विशिष्ट विषय से सम्बन्धित तर्क संगत विचार परस्पर गुंथे हुए हों। निबन्ध का उद्भव और विकास : निबंध भी गद्य साहित्य की विविध विधाओं की भाँति आधुनिक युग की ही देन है। जिसमें भारतेन्दु जी का महत्वपूर्ण योगदान है। इसके विकास क्रम को चार सोपानों में विभक्त कर सकते हैं— • भारतेन्दु युग (1868 से 1900) • द्विवेदी युग (1900 से 1920) • शुक्ल युग (1920 से 1940) • शुक्लोत्तर युग (1920 से 1940) भारतेन्दु युग: • हिंदी निबंध साहित्य का प्रारंभ भारतेन्दु यु...

हिंदी उपन्यास का उद्भव एवं विकास

Hindi Upanyas ka udbhav evam vikas • उपन्यास हिंदी गद्य की एक आधुनिक विधा है। इस विधा का हिंदी में प्रादुर्भाव अंग्रेजी साहित्य के प्रभाव स्वरूप हुआ । लेकिन इसका यह अर्थ कदापि नहीं कि इससे पहले भारत में उपन्यास जैसी विधा थी ही नहीं। • उपन्यास विधा का उद्भव और विकास पहले यूरोप में हुआ। बाद में बांग्ला साहित्य के माध्यम से यह विधा हिंदी साहित्य में आयी। हिंदी का पहला उपन्यासHindi ka pahala Upanyas kaunasa hai • लाला श्रीनिवास दास का 'परीक्षा गुरु' (1888) इंशा अल्ला खां द्वारा रचित 'रानी केतकी की कहानी' तथा श्रद्धा राम फिल्लौरी कृत 'भाग्यवती' आदि कुछ ऐसी रचनाएं हैं जिन्हें हिंदी का प्रथम उपन्यास माना जाता है। • आज अधिकांश विद्वान लाला श्रीनिवास दास कृत 'परीक्षा गुरु' को हिंदी का प्रथम उपन्यास स्वीकार करते हैं। • हिंदी उपन्यास के विकास क्रम का अध्ययन करने के लिए इसे तीन भागों में बांटा जा सकता है- • प्रेमचंद पूर्व हिंदी उपन्यास • प्रेमचंदयुगीन हिुदी उपन्यास और • प्रेमचंदोत्तर हिंदी उपन्यास। 1. प्रेमचंद पूर्व हिंदी उपन्यासPremchand purv Hindi Upanyas इस युग के उपन्यासों को हम पांच भागों में विभाजित कर सकते हैं: • सामाजिक उपन्यास, तिलस्मी तथा ऐय्यारी के उपन्यास, जासूसी उपन्यास, प्रेमाख्यात्मक और ऐतिहासिक उपन्यास। सामाजिक उपन्यास • सामाजिक उपन्यासों में श्रद्धाराम फिल्लौरी का 'भाग्यवती' सामाजिक समस्या को लेकर लिखा हुआ सबसे प्रथम मौलिक उपन्यास था। इसकी रचना 1877 में हुई थी। यह अपने समय में बहुत लोकप्रिय रहा। श्रीनिवासदास का 'परीक्षा गुरु' भी मौलिक सामाजिक उपन्यास है। बालकृष्ण भट्ट का 'नूतन ब्रह्मचारी', किशोरी लाल गोस्वामी का 'हृदयहारिणी', लज्जा राम मेहता का 'परतन्त्र लक्ष्मी', कार...

Optional Subject : Hindi Literature

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हिन्दी का उद्भव एवं विकास Origin and Development of Hindi ~ Hindi greema

हिन्दी,बोलियां,हिन्दी साहित्य का इतिहास,आदिकाल,भक्तिकाल,रीतिकाल,आधुनिक काल हिंदी कथा साहित्य,कविता हिंदी के प्रमुख कवि व रचनाएँ देवनागरी लिपि,हिंदी व्याकरण,मानक हिन्दी, नवीनतम शोध ,हिंदी साहित्य और नवजागरण,हिंदी साहित्य और स्वतंत्रता संघर्ष,मार्क्सवाद और हिंदी साहित्य,हिंदी अलंकार,पुरस्कार,हिंदी आलोचना,हिंदी आत्मकथा,हिंदी उपन्यास ,हिंदी के साहित्यकार,हिंदी साहित्य भाषा विज्ञान,हिंदी में रस, यूपीएससी,नेट,हिंदी रचना,हिंदी रचनाएँ,साहित्य विमर्श,हिंदी शिक्षण विधियाँ' विश्व में अनेक भाषाएँ हैं जिन्हें मुख्य रूप से चार भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है- • भारोपीय • द्राविड़ • आस्ट्रिक • चीनी इनमें भारोपीय समूह सबसे बड़ा है। जर्मन विद्वान विल्हेम फॉन हुम्बोल्ट ने सभी भाषाओं को 13 समूहों में बांटा है। • द्राविड़ • हेमेटिक • चीनी • सेमेटिक • आग्नेय • अमरीकी • वुशमैन • यूराल • काकेशस • बोटू • सूडानी • जापानी-कोरियाई • भारोपीय इस समूह में भारोपीय भाषा बोलने वालों की संख्या 73 प्रतिशत से अधिक है। भारोपीय भाषा परिवार को दो बड़े समूहों में वर्गीकृत किया जाता है- • शतम् ( भारत-ईरानी ) • केंटम् ( यूरोपीय ) । शतम् भाषा के पुनः तीन उपभेद हैं • ईरानी • उरद • आर्य | केंटम् ( यूरोपीय ) भाषा समूह में ग्रीक , इटैलिक , जर्मनिक , कोल्कि , तोखारियम , इलीरियन आदि भाषाएँ शामिल हैं। भारतीय आर्य भाषा का विकास भारतीय आर्य भाषा के विकास को तीन कालोंमें बाँटा जाता है • प्राचीन भारतीय आर्य भाषा काल- 1500 ई.पू.-500 ई.पू.- वैदिक संस्कृत , लौकिक संस्कृत • मध्यकालीन आर्य भाषा काल- 500 ई.पू.-1000 ई.पू.- पालि , प्राकृत • आधुनिक आर्य भाषा काल- 1000 ई. से आज तक- अपभ्रंश तथा हिन्दी सहित आधुनिक भारतीय भाषाएँ भारतीय ...

हिंदी नाटक का उद्भव और विकास

हिंदी नाटक का उद्भव और विकास हिंदी नाटक का उद्भव हिंदी में नाटक लिखने का विकास आधुनिक युग में हुआ। क्योंकि इससे पूर्व के हिंदी नाटकों में नाट्यकला के तत्वों का अभाव है। इसमें अधिकतर नाटकीय काव्य हैं या संस्कृत नाटकों के अनुवाद। प्राणचंद चौहान कृत ‘रामायण महानाटक’ (1610 ई.) तथा कवि उदय कृत ‘हनुमान नाटक’ (1840 ई.) पद्यात्मक प्रबंध हैं, नाट्य रचनाएं नहीं। अन्य नाटककारों में भारतेंदु जी के पिता गोपालचंद्र (गिरधरदास) ने ‘नहुष’ (1857 ई.), गणेश कवि ने ‘प्रद्युम्न विजय’ (1863 ई.) तथा शीतला प्रसाद त्रिपाठी ने जानकी मंगल (1868 ई.) आदि नाटकों की रचना की। ‘जानकी मंगल’ ही नाट्यगुणों से संपन्न है, जिसका मंचन बनारस में हुआ और इसके एक अभिनेता भारतेंदु खुद थे। परंतु तब तक भारतेंदुजी का विद्यासुन्दर (1868 ई.) नाटक प्रकाशित हो चुका था जो संस्कृत की ‘चौरपंचाशिका’ कृत के बंगला संस्करण का छाया अनुवाद है। इसीलिए हिंदी में नाटक लिखने की परम्परा का आरंभ भारतेंदु हरिश्चंद्र से माना जाता है। खड़ी बोली में लिखा गया पहला नाटक राजा शिव प्रसाद सिंह का ‘शकुंतला’ (1863 ई.) है जो कालिदास के ‘अभिज्ञान शकुंतलम’ का हिंदी अनुवाद है। भारतेंदु हरिश्चंद्र ने ‘कालचक्र’ में ‘नहुष’ को हिंदी का प्रथम, ‘शकुंतला’ को द्वितीय और विद्यासुंदर’ को तृतीय नाटक स्वीकार किया है। वहीं दशरथ ओझा ने 13वीं सदी के नाटक ‘गाय कुमार रास’ को हिंदी का प्रथम नाटक माना है। भारतेंदु जी ने न केवल हिंदी में मौलिक नाटकों की रचना की अपितु उन्होंने दूसरी भाषाओं की श्रेष्ठ नाट्य रचनाओं के अनुवाद भी किए। यही नहीं उन्होंने नाट्य शिल्प पर प्रकाश डालने हेतु ‘नाटक’ नामक आलोचनात्मक रचना में नाट्यकला के तत्वों का उल्लेख करते हुए नए नाटककारों को दिशा निदे...

कहानी शब्द का अर्थ एवं व्याख्या ।कहानी : उद्भव एवं विकास। Kahani Ka Arth Evam Vyakhya

कहानी : उद्भव एवं विकास • मानव के आदि काल से कहानी कहने , सुनने , सुनाने की प्रवृत्ति चली आ रही है। विश्व के प्राचीनतम ग्रंथों में कहानी का महत्व प्रायः देशों में है। भारतीय वांगमय में वैदिक संस्कृत , लौकिक संस्कृत , पालि , प्राकृत , अपभ्रंश तथा पुरानी हिंदी में किसी न किसी स्वरूप में कहानी विद्यमान है , इसके अतिरिक्त पुराणों , उपनिषदों , ब्राह्मणों , रामायण , महाभारत , पालि जातक तथा पंचतंत्र आदि में कहानियों का भंडार भरा पड़ा है। इन सभी कहानियों में उपदेशात्मक अथवा धार्मिक सिद्धांतों का प्रतिपादन किया गया है। आधुनिक अर्थ में इन्हें कहानी नहीं कहा जा सकता है। कहानी शब्द का अर्थ एवं व्याख्या • ' कहानी ' शब्द संस्कृत कथानिका प्राकृत कहाणिआ सिंहली-मराठी कहानी से विकसित हुआ है जिसका अर्थ मौखिक या लिखित कल्पित या वास्तविक , तथा गद्य या पद्य में लिखी हुई कोई भाव प्रधान या विषय प्रधान घटना , जिसका मुख्य उद्देश्य पाठकों का मनोरंजन करना , उन्हें कोई शिक्षा देना अथवा किसी वस्तु स्थिति से परिचित कराना होता है। इसका अंग्रेजी पर्याय ' स्टोरी ' है। • आधुनिक हिंदी कहानी का प्रारंभ उन्नीसवीं सदी में हुआ जिसे कहानी या कथा कहते हैं इसका शाब्दिक अर्थ ' कहना ' है। इस अर्थ के अनुसार जो कुछ भी कहा जाये कहानी है। किंतु विशिष्ट अर्थ में किसी विशेष घटना के रोचक ढंग से वर्णन को ' कहानी ' कहते हैं। ' कथा ' एवं ' कहानी ' पर्यायवाची होते हुए भी समानार्थी नहीं हैं। दोनों के अर्थों में सूक्ष्म अंतर आ गया है। • कथानक व्यापक अर्थ की प्रतीति कराता है इसमें कहानी , उपन्यास , नाटक , एकांकी आदि का समावेश हो जाता है। कथा साहित्य के अंतर्गत मुख्य रूप से कहानी एवं उपन्यास को ही माना जाता है जबकि कहानी के अंतर्गत...